Surah Ad-Duha

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالضُّحٰىۙ١
Waḍ-ḍuḥā.
[1] कस़म है धूप चढ़ने के समय की!

وَالَّيْلِ اِذَا سَجٰىۙ٢
Wal-laili iżā sajā.
[2] और क़सम है रात की, जब वह छा जाए।

مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلٰىۗ٣
Mā wadda‘aka rabbuka wa mā qalā.
[3] (ऐ नबी!) तेरे पालनहार ने तुझे न तो छोड़ा और न नाराज़ हुआ।

وَلَلْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لَّكَ مِنَ الْاُوْلٰىۗ٤
Wa lal-ākhiratu khairul laka minal-ūlā.
[4] और निश्चित रूप से आख़िरत आपके लिए दुनिया से बेहतर है।

وَلَسَوْفَ يُعْطِيْكَ رَبُّكَ فَتَرْضٰىۗ٥
Wa lasaufa yu‘ṭīka rabbuka fa tarḍā.
[5] और निश्चय तेरा पालनहार तुझे प्रदान करेगा, तो तू प्रसन्न हो जाएगा।

اَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيْمًا فَاٰوٰىۖ٦
Alam yajidka yatīman fa āwā.
[6] क्या उसने आपको अनाथ पाकर शरण नहीं दी?

وَوَجَدَكَ ضَاۤلًّا فَهَدٰىۖ٧
Wa wajadaka ḍāllan fa hadā.
[7] और आपको मार्ग से अनभिज्ञ पाया, तो सीधा मार्ग दिखाया।

وَوَجَدَكَ عَاۤىِٕلًا فَاَغْنٰىۗ٨
Wa wajadaka ‘ā'ilan fa agnā.
[8] और उसने आपको निर्धन पाया, तो संपन्न कर दिया।

فَاَمَّا الْيَتِيْمَ فَلَا تَقْهَرْۗ٩
Fa ammal-yatīma falā taqhar.
[9] अतः आप अनाथ पर कठोरता न दिखाएँ।1
1. (1-9) इन आयतों में अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फरमाया है कि तुम्हें यह चिंता कैसे हो गई है कि हम अप्रसन्न हो गए? हमने तो तुम्हारे जन्म के दिन से निरंतर तुमपर उपकार किए हैं। तुम अनाथ थे, तो तुम्हारे पालन और रक्षा की व्यवस्था की। राह से अंजान थे, तो राह दिखाई। निर्धन थे, तो धनी बना दिया। ये बातें बता रही हैं कि तुम आरंभ ही से हमारे प्रियवर हो और तुमपर हमारा उपकार निरंतर रहा है।

وَاَمَّا السَّاۤىِٕلَ فَلَا تَنْهَرْ١٠
Wa ammas-sā'ila falā tanhar.
[10] और माँगने वाले को न झिड़कें।

وَاَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ ࣖ١١
Wa ammā bini‘mati rabbika fa ḥaddiṡ.
[11] और अपने रब के उपकार का वर्णन करते रहें।2
2. (10-11) इन अंतिम आयतों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बताया गया है कि हमने तुमपर जो उपकार किए हैं, उनके बदले में तुम अल्लाह की उत्पत्ति के साथ दया और उपकार करो यही हमारे उपकारों की कृतज्ञता होगी।