Surah Asy-Syams
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالشَّمْسِ وَضُحٰىهَاۖ١
Wasy-syamsi wa ḍuḥāhā.
[1]
सूरज की क़सम! तथा उसके ऊपर चढ़ने के समय की क़सम!
وَالْقَمَرِ اِذَا تَلٰىهَاۖ٢
Wal-qamari iżā talāhā.
[2]
तथा चाँद की (क़सम), जब वह सूरज के पीछे आए।
وَالنَّهَارِ اِذَا جَلّٰىهَاۖ٣
Wan-nahāri iżā jallāhā.
[3]
और दिन की (क़सम), जब वह उस (सूरज) को प्रकट कर दे!
وَالَّيْلِ اِذَا يَغْشٰىهَاۖ٤
Wal-laili iżā yagsyāhā.
[4]
और रात की (क़सम), जब वह उस (सूरज) को ढाँप ले।
وَالسَّمَاۤءِ وَمَا بَنٰىهَاۖ٥
Was-samā'i wa mā banāhā.
[5]
और आकाश की तथा उसके निर्माण की (क़सम)।
وَالْاَرْضِ وَمَا طَحٰىهَاۖ٦
Wal-arḍi wa mā ṭaḥāhā.
[6]
और धरती की तथा उसे बिछाने की (क़सम!)1
1. (1-6) इन आयतों का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार सूर्य के विपरीत चाँद, तथा दिन के विपरीत रात है, इसी प्रकार पुण्य और पाप तथा इस संसार का प्रति एक दूसरा संसार परलोक भी है। और इन्हीं स्वभाविक लक्ष्यों से परलोक का विश्वास होता है।
وَنَفْسٍ وَّمَا سَوّٰىهَاۖ٧
Wa nafsiw wa mā sawwāhā.
[7]
और आत्मा की तथा उसके ठीक-ठाक बनाने की (क़सम)।
فَاَلْهَمَهَا فُجُوْرَهَا وَتَقْوٰىهَاۖ٨
Fa alhamahā fujūrahā wa taqwāhā.
[8]
फिर उसके दिल में उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी (की समझ) डाल दी।2
2. (7-8) इन आयतों में कहा गया है कि अल्लाह ने इनसान को शारीरिक और बौद्धिक शक्तियाँ देकर बस नहीं किया, बल्कि उसने पाप और पुण्य का स्वभाविक ज्ञान देकर नबियों को भी भेजा। और वह़्य (प्रकाशना) द्वारा पाप और पुण्य के सभी रूप समझा दिए। जिसकी अंतिम कड़ी क़ुरआन, और अंतिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।
قَدْ اَفْلَحَ مَنْ زَكّٰىهَاۖ٩
Qad aflaḥa man zakkāhā.
[9]
निश्चय वह सफल हो गया, जिसने उसे पवित्र कर लिया।
وَقَدْ خَابَ مَنْ دَسّٰىهَاۗ١٠
Wa qad khāba man dassāhā.
[10]
तथा निश्चय वह विफल हो गया, जिसने उसे (पापों में) दबा दिया।3
3. (9-10) इन दोनों आयतों में यह बताया जा रहा है कि अब भविष्य की सफलता और विफलता इस बात पर निर्भर है कि कौन अपनी स्वभाविक योग्यता का प्रयोग किसके लिए कितना करता है। और इस प्रकाशना : क़ुरआन के आदेशों को कितना मानता और पालन करता है।
كَذَّبَتْ ثَمُوْدُ بِطَغْوٰىهَآ ۖ١١
Każżabat ṡamūdu biṭagwāhā.
[11]
समूद (की जाति) ने अपनी सरकशी के कारण झुठलाया।
اِذِ انْۢبَعَثَ اَشْقٰىهَاۖ١٢
Iżimba‘aṡa asyqāhā.
[12]
जब उसका सबसे दुष्ट व्यक्ति उठ खड़ा हुआ।
فَقَالَ لَهُمْ رَسُوْلُ اللّٰهِ نَاقَةَ اللّٰهِ وَسُقْيٰهَاۗ١٣
Fa qāla lahum rasūlullāhi nāqatallāhi wa suqyāhā.
[13]
तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा : अल्लाह की ऊँटनी और उसके पीने की बारी का ध्यान रखो।
فَكَذَّبُوْهُ فَعَقَرُوْهَاۖ فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُمْ بِذَنْۢبِهِمْ فَسَوّٰىهَاۖ١٤
Fa każżabūhu fa ‘aqarūhā fa damdama ‘alaihim rabbuhum biżambihim fa sawwāhā.
[14]
परंतु उन्होंने उसे झुठलाया और उस (ऊँटनी) की कूँचें काट दीं, तो उनके पालनहार ने उनके गुनाह के कारण उन्हें पीस कर विनष्ट कर दिया और उन्हें मटियामेट कर दिया।
وَلَا يَخَافُ عُقْبٰهَا ࣖ١٥
Wa lā yakhāfu ‘uqbāhā.
[15]
और वह उसके परिणाम से नहीं डरता।4
4. (11-15) इन आयतों में समूद जाति का ऐतिहासिक उदाहरण देकर दूतत्व (रिसालत) का महत्व समझाया गया है कि नबी इस लिए भेजा जाता है कि भलाई और बुराई का जो स्वभाविक ज्ञान अल्लाह ने इनसान के स्वभाव में रख दिया है उसे उभारने में उसकी सहायता करे। ऐसे ही एक नबी जिन का नाम सालेह था समूद की जाति की ओर भेजे गए। परंतु उन्होंने उनको नहीं माना, तो वे ध्वस्त कर दिए गए। उस समय मक्का के मूर्ति पूजकों की स्थिति समूद जाति से मिलती जुलती थी। इसलिए उनको सालेह नबी की कथा सुनाकर सचेत किया जा रहा है कि सावधान! कहीं तुम लोग भी समूद की तरह यातना में न घिर जाओ। वह तो हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इस प्रार्थना के कारण बच गए कि ऐ अल्लाह! इन्हें नष्ट न कर। क्योंकि इन्हीं में से ऐसे लोग उठेंगे जो तेरे धर्म का प्रचार करेंगे। इसलिए कि अल्लाह ने आप सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम को सारे संसारों के लिए दया बना कर भेजा था।