Surah Al-Fajr

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالْفَجْرِۙ١
Wal-fajr(i).
[1] क़सम है फ़ज्र (उषाकाल) की!

وَلَيَالٍ عَشْرٍۙ٢
Wa layālin ‘asyr(in).
[2] तथा दस रातों की!

وَّالشَّفْعِ وَالْوَتْرِۙ٣
Wasy-syaf‘i wal-watr(i).
[3] और सम (जोड़े) और विषम (अकेले) की!

وَالَّيْلِ اِذَا يَسْرِۚ٤
Wal-laili iżā yasr(i).
[4] और रात की, जब वह चलती है!

هَلْ فِيْ ذٰلِكَ قَسَمٌ لِّذِيْ حِجْرٍۗ٥
Hal fī żālika qasamul liżī ḥijr(in).
[5] निश्चय इसमें बुद्धिमान के लिए बड़ी क़सम है?1
1. (1-5) इन आयतों में सबसे पहले चार चीजों की क़सम खाई गई है, जिन्हें परलोक में कर्मों के फल के सबूत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिस का अर्थ यह है कि कर्मों का फल सत्य है। जिस व्यवस्था से यह दिन-रात चल रहा है उससे सिद्ध होता है कि अल्लाह ही इसे चला रहा है। "दस रात्रियों" से अभिप्राय "ज़ुल ह़िज्जा" मास की प्रारंभिक दस रातें हैं। सह़ीह़ ह़दीसों में इनकी बड़ी प्रधानता बताई गई है।

اَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍۖ٦
Alam tara kaifa fa‘ala rabbuka bi‘ād(in).
[6] क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे पालनहार ने "आद" के साथ किस तरह किया?

اِرَمَ ذَاتِ الْعِمَادِۖ٧
Irama żātil-‘imād(i).
[7] (वे आद) जो स्तंभों वाले 'इरम' (गोत्र के लोग) थे।

الَّتِيْ لَمْ يُخْلَقْ مِثْلُهَا فِى الْبِلَادِۖ٨
Allatī lam yukhlaq miṡluhā fil-bilād(i).
[8] जिनके समान (दुनिया के) शहरों में कोई पैदा नहीं किया गया।

وَثَمُوْدَ الَّذِيْنَ جَابُوا الصَّخْرَ بِالْوَادِۖ٩
Wa ṡamūdal-lażīna jābuṣ-ṣakhra bil-wād(i).
[9] तथा 'समूद' के साथ (किस तरह किया) जिन्होंने वादी में चट्टानों को तराशा।

وَفِرْعَوْنَ ذِى الْاَوْتَادِۖ١٠
Wa fir‘auna żil-autād(i).
[10] और मेखों वाले फ़िरऔन के साथ (किस तरह किया)।

الَّذِيْنَ طَغَوْا فِى الْبِلَادِۖ١١
Allażīna ṭagau fil-bilād(i).
[11] वे लोग, जो नगरों में हद से बढ़ गए।

فَاَكْثَرُوْا فِيْهَا الْفَسَادَۖ١٢
Fa akṡarū fīhal-fasād(a).
[12] और उनमें बहुत अधिक उपद्रव फैलाया।

فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍۖ١٣
Fa ṣabba ‘alaihim rabbuka sauṭa ‘ażāb(in).
[13] तो तेरे पालनहार ने उनपर यातना का कोड़ा बरसाया।

اِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِۗ١٤
Inna rabbaka labil-mirṣād(i).
[14] निःसंदेह तेरा पालनहार निश्चय घात में है।2
2. (6-14) इन आयतों में उन जातियों की चर्चा की गई है, जिन्होंने माया मोह में पड़कर परलोक और प्रतिफल का इनकार किया, और अपने नैतिक पतन के कारण धरती में उग्रवाद किया। "आद, इरम" से अभिप्रेत वह पुरानी जाति है जिसे क़ुरआन तथा अरब में "आदे ऊला" (प्रथम आद) कहा गया है। यह वह प्राचीन जाति है जिसके पास हूद (अलैहिस्सलाम) को भेजा गया। और इनको "आदे इरम" इस लिए कहा गया है कि यह शामी वंशक्रम की उस शाखा से संबंधित थे जो इरम बिन शाम बिन नूह़ से चली आती थी। आयत संख्या 11 में इसका संकेत है कि उग्रवाद का उद्गम भौतिकवाद एवं सत्य विश्वास का इनकार है, जिसे वर्तमान युग में भी प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है।

فَاَمَّا الْاِنْسَانُ اِذَا مَا ابْتَلٰىهُ رَبُّهٗ فَاَكْرَمَهٗ وَنَعَّمَهٗۙ فَيَقُوْلُ رَبِّيْٓ اَكْرَمَنِۗ١٥
Fa ammal-insānu iżā mabtalāhu rabbuhū fa akramahū wa na‘‘amah(ū), fa yaqūlu rabbī akraman(i).
[15] लेकिन मनुष्य (का हाल यह है कि) जब उसका पालनहार उसका परीक्षण करे, फिर उसे सम्मानित करे और नेमत प्रदान करे, तो कहता है कि मेरे पालनहार ने मुझे सम्मानित किया।

وَاَمَّآ اِذَا مَا ابْتَلٰىهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهٗ ەۙ فَيَقُوْلُ رَبِّيْٓ اَهَانَنِۚ١٦
Wa ammā iżā mabtalāhu fa qadara ‘alaihi rizqah(ū), fa yaqūlu rabbī ahānan(i).
[16] लेकिन जब वह उसका परीक्षण करे, फिर उसपर उसकी रोज़ी तंग कर दे, तो कहता कि मेरे पालनहार ने मुझे अपमानित किया।

كَلَّا بَلْ لَّا تُكْرِمُوْنَ الْيَتِيْمَۙ١٧
Kallā bal lā tukrimūnal-yatīm(a).
[17] हरगिज़ ऐसा नहीं, बल्कि तुम अनाथ का सम्मान नहीं करते।

وَلَا تَحٰۤضُّوْنَ عَلٰى طَعَامِ الْمِسْكِيْنِۙ١٨
Wa lā taḥāḍḍūna ‘alā ṭa‘āmil-miskīn(i).
[18] तथा तुम एक-दूसरे को ग़रीब को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हो।

وَتَأْكُلُوْنَ التُّرَاثَ اَكْلًا لَّمًّاۙ١٩
Wa ta'kulūnat-turāṡa aklal lammā(n).
[19] और तुम मीरास का सारा धन समेटकर खा जाते हो।

وَّتُحِبُّوْنَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّاۗ٢٠
Wa tuḥibbūnal-māla ḥubban jammā(n).
[20] और तुम धन से बहुत अधिक प्रेम करते हो।3
3. (15-20) इन आयतों में समाज की साधारण नैतिक स्थिति का सर्वेक्षण किया गया है, और भौतिकवादी विचार की आलोचना की गई है, जो मात्र सांसारिक धन और मान मर्यादा को सम्मान तथा अपमान का पैमाना समझता है और यह भूल गया है कि न धनी होना कोई पुरस्कार है और न निर्धन होना कोई दंड है। अल्लाह दोनों स्थितियों में मानवजाति की परीक्षा ले रहा है। फिर यह बात किसी के बस में हो तो दूसरे का धन भी हड़प कर जाए, क्या ऐसा करना कुकर्म नहीं जिसका ह़िसाब लिया जाना चाहिए?

كَلَّآ اِذَا دُكَّتِ الْاَرْضُ دَكًّا دَكًّاۙ٢١
Kallā iżā dukkatil-arḍu dakkan dakkā(n).
[21] हरगिज़ नहीं! जब धरती कूट-कूटकर चूर्ण-विचूर्ण कर दी जाएगी।

وَّجَاۤءَ رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفًّا صَفًّاۚ٢٢
Wa jā'a rabbuka wal-malaku ṣaffan ṣaffā(n).
[22] और तेरा पालनहार आएगा और फ़रिश्ते जो पंक्तियों में होंगे।

وَجِايْۤءَ يَوْمَىِٕذٍۢ بِجَهَنَّمَۙ يَوْمَىِٕذٍ يَّتَذَكَّرُ الْاِنْسَانُ وَاَنّٰى لَهُ الذِّكْرٰىۗ٢٣
Wa jī'a yauma'iżim bijahannam(a), yauma'iżiy yatażakkarul-insānu wa annā lahuż-żikrā.
[23] और उस दिन नरक लाई जाएगी। उस दिन इनसान याद करेगा। लेकिन उस दिन याद करना उसे कहाँ से लाभ देगा।

يَقُوْلُ يٰلَيْتَنِيْ قَدَّمْتُ لِحَيَاتِيْۚ٢٤
Yaqūlu yā laitanī qaddamtu liḥayātī.
[24] वह कहेगा : ऐ काश! मैंने अपने (इस) जीवन के लिए कुछ आगे भेजा होता।

فَيَوْمَىِٕذٍ لَّا يُعَذِّبُ عَذَابَهٗٓ اَحَدٌ ۙ٢٥
Fa yauma'iżil lā yu‘ażżibu ‘ażābahū aḥad(un).
[25] चुनाँचे उस दिन उस (अल्लाह) के दंड जैसा दंड कोई नहीं देगा।

وَّلَا يُوْثِقُ وَثَاقَهٗٓ اَحَدٌ ۗ٢٦
Wa lā yūṡiqu waṡāqahū aḥad(un).
[26] और न उसके बाँधने जैसा कोई बाँधेगा।4
4. (21-26) इन आयतों मे बताया गया है कि धन पूजने और उससे परलोक न बनाने का दुष्परिणाम नरक की घोर यातना के रूप में सामने आएगा, तब भौतिकवादी कुकर्मियों की समझ में आएगा कि क़ुरआन को न मानकर बड़ी भूल हुई और हाथ मलेंगे।

يٰٓاَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَىِٕنَّةُۙ٢٧
Yā ayyatuhan-nafsul-muṭma'innah(tu).
[27] ऐ संतुष्ट आत्मा!

ارْجِعِيْٓ اِلٰى رَبِّكِ رَاضِيَةً مَّرْضِيَّةً ۚ٢٨
Irji‘ī ilā rabbiki rāḍiyatam marḍiyyah(tan).
[28] अपने पालनहार की ओर लौट चल, इस हाल में कि तू उससे प्रसन्न है, उसके निकट पसंदीदा है।

فَادْخُلِيْ فِيْ عِبٰدِيْۙ٢٩
Fadkhuli fī ‘ibādī.
[29] अतः तू मेरे बंदों में प्रवेश कर जा।

وَادْخُلِيْ جَنَّتِيْ ࣖࣖ٣٠
Wadkhulī jannatī.
[30] और मेरी जन्नत में प्रवेश कर जा।5
5. (27-30) इन आयतों में उनके सुख और सफलता का वर्णन किया गया है, जो क़ुरआन की शिक्षा का अनुपालन करते हुए आत्मा की शांति के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं।