Surah At-Tariq
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالسَّمَاۤءِ وَالطَّارِقِۙ١
Was-samā'i waṭ-ṭāriq(i).
[1]
क़सम है आकाश की तथा रात में प्रकट होने वाले की!
وَمَآ اَدْرٰىكَ مَا الطَّارِقُۙ٢
Wa mā adrāka maṭ-ṭāriq(u).
[2]
और तुम क्या जानो कि रात में प्रकट होने वाला क्या है?
النَّجْمُ الثَّاقِبُۙ٣
An-najmuṡ-ṡāqib(u).
[3]
वह चमकता हुआ सितारा है।
اِنْ كُلُّ نَفْسٍ لَّمَّا عَلَيْهَا حَافِظٌۗ٤
In kullu nafsil lammā ‘alaihā ḥāfiẓ(un).
[4]
प्रत्येक प्राणी पर एक निरीक्षक नियुक्त है।1
1. (1-4) इनमें आकाश के तारों को इस बात की गवाही में लाया गया है कि ब्रह्मांड की कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो एक रक्षक के बिना अपने स्थान पर स्थित रह सकती है, और वह रक्षक स्वयं अल्लाह है।
فَلْيَنْظُرِ الْاِنْسَانُ مِمَّ خُلِقَ٥
Falyanẓuril-insānu mimma khuliq(a).
[5]
अतः इनसान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है?
خُلِقَ مِنْ مَّاۤءٍ دَافِقٍۙ٦
Khuliqa mim mā'in dāfiq(in).
[6]
वह एक उछलने वाले पानी से पैदा किया गया है।
يَّخْرُجُ مِنْۢ بَيْنِ الصُّلْبِ وَالتَّرَاۤىِٕبِۗ٧
Yakhruju mim bainiṣ-ṣulbi wat-tarā'ib(i).
[7]
जो पीठ और सीने की हड्डियों के बीच से निकलता है।
اِنَّهٗ عَلٰى رَجْعِهٖ لَقَادِرٌۗ٨
Innahū ‘alā raj‘ihī laqādir(un).
[8]
निःसंदेह वह उसे लौटाने में निश्चय सक्षम है।2
2. (5-8) इन आयतों में इनसान का ध्यान उसके अस्तित्व की ओर आकर्षित किया गया है कि वह विचार तो करे कि कैसे पैदा किया गया है वीर्य से? फिर उसकी निरंतर रक्षा कर रहा है। फिर वही उसे मृत्यु के पश्चात पुनः पैदा करने की शक्ति भी रखता है।
يَوْمَ تُبْلَى السَّرَاۤىِٕرُۙ٩
Yauma tublas-sarā'ir(u).
[9]
जिस दिन छिपी हुई बातों की जाँच-पड़ताल की जाएगी।
فَمَا لَهٗ مِنْ قُوَّةٍ وَّلَا نَاصِرٍۗ١٠
Famā lahū min quwwatiw wa lā nāṣir(in).
[10]
तो (उस दिन) उसके पास न कोई शक्ति होगी और न ही कोई सहायक।3
3. (9-10) इन आयतों में यह बताया गया है कि फिर से पैदाइश इसलिए होगी ताकि इनसान के सभी भेदों की जाँच की जाए, जिनपर संसार में पर्दा पड़ा रह गया था और सबका बदला न्याय के साथ दिया जाए।
وَالسَّمَاۤءِ ذَاتِ الرَّجْعِۙ١١
Was-samā'i żātir-raj‘(i).
[11]
क़सम है बार-बार बारिश बरसाने वाले आसमान की।
وَالْاَرْضِ ذَاتِ الصَّدْعِۙ١٢
Wal-arḍi żātiṣ-ṣad‘(i).
[12]
तथा फटने वाली धरती की।
اِنَّهٗ لَقَوْلٌ فَصْلٌۙ١٣
Innahū laqaulun faṣl(un).
[13]
निश्चय ही यह (क़ुरआन) एक निर्णायक कथन है।
وَّمَا هُوَ بِالْهَزْلِۗ١٤
Wa mā huwa bil-hazl(i).
[14]
और यह हँसी-मज़ाक़ नही है।4
4. (11-14) इन आयतों में बताया गया है कि आकाश से वर्षा का होना तथा धरती से पेड़ पौधों का उपजना कोई खेल नहीं, एक गंभीर कर्म है। इसी प्रकार क़ुरआन में जो तथ्य बताए गए हैं, वे भी हँसी-उपहास नहीं हैं, पक्की और अडिग बातें हैं। काफ़िर (विश्वासहीन) इस भ्रम में न रहें कि उनकी चालें इस क़ुरआन के आमंत्रण को विफल कर देंगी। अल्लाह भी एक उपाय में लगा है जिसके आगे इनकी चालें धरी रह जाएँगी।
اِنَّهُمْ يَكِيْدُوْنَ كَيْدًاۙ١٥
Innahum yakīdūna kaidā(n).
[15]
निःसंदेह वे गुप्त उपाय करते हैं।
وَّاَكِيْدُ كَيْدًاۖ١٦
Wa akīdu kaidā(n).
[16]
और मैं भी गुप्त उपाय करता हूँ।
فَمَهِّلِ الْكٰفِرِيْنَ اَمْهِلْهُمْ رُوَيْدًا ࣖ١٧
Fa mahhilil-kāfirīna amhilhum ruwaidā(n).
[17]
अतः काफ़िरों को मोहलत दे दें, उन्हें थोड़ी देर के लिए छोड़ दें।5
5. (15-17) इन आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सांत्वना तथा अधर्मियों को यह धमकी देकर बात पूरी कर दी गई है कि आप तनिक सहन करें और विश्वासहीन को मनमानी कर लेने दें, कुछ ही देर होगी कि इन्हें अपने दुष्परिणाम का ज्ञान हो जाएगा। और इक्कीस वर्ष ही बीते थे कि पूरे मक्का और अरब द्वीप में इस्लाम का ध्वज लहराने लगा।