Surah Al-Tatfif
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَيْلٌ لِّلْمُطَفِّفِيْنَۙ١
Wailul lil-muṭaffifīn(a).
[1]
विनाश है नाप-तौल में कमी करने वालों के लिए।
الَّذِيْنَ اِذَا اكْتَالُوْا عَلَى النَّاسِ يَسْتَوْفُوْنَۖ٢
Allażīna iżaktālū ‘alan-nāsi yastaufūn(a).
[2]
वे लोग कि जब लोगों से नापकर लेते हैं, तो पूरा लेते हैं।
وَاِذَا كَالُوْهُمْ اَوْ وَّزَنُوْهُمْ يُخْسِرُوْنَۗ٣
Wa iżā kālūhum au wazanūhum yukhsirūn(a).
[3]
और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं, तो कम देते हैं।
اَلَا يَظُنُّ اُولٰۤىِٕكَ اَنَّهُمْ مَّبْعُوْثُوْنَۙ٤
Alā yaẓunnu ulā'ika annahum mab‘ūṡūn(a).
[4]
क्या वे लोग विश्वास नहीं रखते कि वे (मरने के बाद) उठाए जाने वाले हैं?
لِيَوْمٍ عَظِيْمٍۙ٥
Liyaumin ‘aẓīm(in).
[5]
एक बहुत बड़े दिन के लिए।
يَّوْمَ يَقُوْمُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَۗ٦
Yauma yaqūmun-nāsu lirabbil-‘ālamīn(a).
[6]
जिस दिन लोग सर्व संसार के पालनहार के सामने खड़े होंगे।1
1. (1-6) इस सूरत की प्रथम छह आयतों में इसी व्यवसायिक विश्वास घात पर पकड़ की गई है कि न्याय तो यह है कि अपने लिए अन्याय नहीं चाहते, तो दूसरों के साथ न्याय करो। और इस रोग का निवारण अल्लाह के भय तथा परलोक पर विश्वास ही से हो सकता है। क्योंकि इस स्थिति में अमानतदारी एक नीति ही नहीं, बल्कि धार्मिक कर्तव्य होगा औ इस पर स्थित रहना लाभ तथा हानि पर निर्भर नहीं रहेगा।
كَلَّآ اِنَّ كِتٰبَ الْفُجَّارِ لَفِيْ سِجِّيْنٍۗ٧
Kallā inna kitābal-fujjāri lafī sijjīn(in).
[7]
हरगिज़ नहीं, निःसंदेह दुराचारियों का कर्म-पत्र "सिज्जीन" में है।
وَمَآ اَدْرٰىكَ مَا سِجِّيْنٌۗ٨
Wa mā adrāka mā sijjīn(un).
[8]
और तुम क्या जानो कि 'सिज्जीन' क्या है?
كِتٰبٌ مَّرْقُوْمٌۗ٩
Kitābum marqūm(un).
[9]
वह एक लिखित पुस्तक है।
وَيْلٌ يَّوْمَىِٕذٍ لِّلْمُكَذِّبِيْنَۙ١٠
Wailuy yauma'iżil lil-mukażżibīn(a).
[10]
उस दिन झुठलाने वालों के लिए विनाश है।
الَّذِيْنَ يُكَذِّبُوْنَ بِيَوْمِ الدِّيْنِۗ١١
Allażīna yukażżibūna biyaumid-dīn(i).
[11]
जो बदले के दिन को झुठलाते हैं।
وَمَا يُكَذِّبُ بِهٖٓ اِلَّا كُلُّ مُعْتَدٍ اَثِيْمٍۙ١٢
Wa mā yukażżibu bihī illā kullu mu‘tadin aṡīm(in).
[12]
तथा उसे केवल वही झुठलाता है, जो सीमा का उल्लंघन करने वाला, बड़ा पापी है।
اِذَا تُتْلٰى عَلَيْهِ اٰيٰتُنَا قَالَ اَسَاطِيْرُ الْاَوَّلِيْنَۗ١٣
Iżā tutlā ‘alaihi āyātunā qāla asāṭīrul-awwalīn(a).
[13]
जब उसके सामने हमारी आयतों को पढ़ा जाता है, तो कहता है : यह पहले लोगों की कहानियाँ हैं।
كَلَّا بَلْ ۜرَانَ عَلٰى قُلُوْبِهِمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ١٤
Kallā bal…rāna ‘alā qulūbihim mā kānū yaksibūn(a).
[14]
हरगिज़ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते थे, वह ज़ंग बनकर उनके दिलों पर छा गया है।
كَلَّآ اِنَّهُمْ عَنْ رَّبِّهِمْ يَوْمَىِٕذٍ لَّمَحْجُوْبُوْنَۗ١٥
Kallā innahum ‘ar rabbihim yauma'iżil lamaḥjūbūn(a).
[15]
हरगिज़ नहीं, निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार (के दर्शन) से रोक दिए जाएँगे।
ثُمَّ اِنَّهُمْ لَصَالُوا الْجَحِيْمِۗ١٦
Ṡumma innahum laṣālul-jaḥīm(i).
[16]
फिर निःसंदेह वे अवश्य जहन्नम में प्रवेश करने वाले हैं।
ثُمَّ يُقَالُ هٰذَا الَّذِيْ كُنْتُمْ بِهٖ تُكَذِّبُوْنَۗ١٧
Ṡumma yuqālu hāżal-lażī kuntum bihī tukażżibūn(a).
[17]
फिर कहा जाएगा : यही है, जिसे तुम झुठलाया करते थे।2
2. (7-17) इन आयतों में कुकर्मियों के दुष्परिणाम का विवरण दिया गया है। तथा यह बताया गया है कि उनके कुकर्म पहले ही से अपराध पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं। तथा वे परलोक में कड़ी यातना का सामना करेंगे। और नरक में झोंक दिए जाएँगे। "सिज्जीन" से अभिप्राय, एक जगह है जहाँ पर काफ़िरों, अत्याचारियों और मुश्रिकों के कुकर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। दिलों का लोहमल, पापों की कालिमा को कहा गया है। पाप अंतरात्मा को अंधकार बना देते हैं, तो सत्य को स्वीकार करने की स्वभाविक योग्यता खो देते हैं।
كَلَّآ اِنَّ كِتٰبَ الْاَبْرَارِ لَفِيْ عِلِّيِّيْنَۗ١٨
Kallā inna kitābal-abrāri lafī ‘illiyyīn(a).
[18]
हरगिज़ नहीं, निःसंदेह नेक लोगों का कर्म-पत्र निश्चय "इल्लिय्यीन" में है।
وَمَآ اَدْرٰىكَ مَا عِلِّيُّوْنَۗ١٩
Wa mā adrāka mā ‘illiyyūn(a).
[19]
और तुम क्या जानो कि 'इल्लिय्यीन' क्या है?
كِتٰبٌ مَّرْقُوْمٌۙ٢٠
Kitābum marqūm(un).
[20]
वह एक लिखित पुस्तक है।
يَّشْهَدُهُ الْمُقَرَّبُوْنَۗ٢١
Yasyhaduhul-muqarrabūn(a).
[21]
जिसके पास समीपवर्ती (फरिश्ते) उपस्थित रहते हैं।
اِنَّ الْاَبْرَارَ لَفِيْ نَعِيْمٍۙ٢٢
Innal-abrāra lafī na‘īm(in).
[22]
निःसंदेह नेक लोग बड़ी नेमत (आनंद) में होंगे।
عَلَى الْاَرَاۤىِٕكِ يَنْظُرُوْنَۙ٢٣
‘Alal-arā'iki yanẓurūn(a).
[23]
तख़्तों पर (बैठे) देख रहे होंगे।
تَعْرِفُ فِيْ وُجُوْهِهِمْ نَضْرَةَ النَّعِيْمِۚ٢٤
Ta‘rifu fī wujūhihim naḍratan na‘īm(i).
[24]
तुम उनके चेहरों पर नेमत की ताज़गी का आभास करोगे।
يُسْقَوْنَ مِنْ رَّحِيْقٍ مَّخْتُوْمٍۙ٢٥
Yusqauna mir raḥīqim makhtūm(in).
[25]
उन्हें मुहर लगी शुद्ध शराब पिलाई जाएगी।
خِتٰمُهٗ مِسْكٌ ۗوَفِيْ ذٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنٰفِسُوْنَۗ٢٦
Khitāmuhū misk(un), wa fī żālika falyatanāfasil-mutanāfisūn(a).
[26]
उसकी मुहर कस्तूरी की होगी। अतः प्रतिस्पर्धा करने वालों को इसी (की प्राप्ति) के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहिए।
وَمِزَاجُهٗ مِنْ تَسْنِيْمٍۙ٢٧
Wa mizājuhū min tasnīm(in).
[27]
उसमें 'तसनीम' की मिलावट होगी।
عَيْنًا يَّشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُوْنَۗ٢٨
‘Ainay yasyrabu bihal-muqarrabūn(a).
[28]
वह एक स्रोत है, जिससे समीपवर्ती लोग पिएँगे।3
3. (18-28) इन आयतों में बताया गया है कि सदाचारियों के कर्म ऊँचे पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं जो फ़रिश्तों के पास सुरक्षित हैं। और वे स्वर्ग में सुख के साथ रहेंगे। "इल्लिय्यीन" से अभिप्राय, जन्नत में एक जगह है। जहाँ पर नेक लोगों के कर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। वहाँ पर समीपवर्ती फ़रिश्ते उपस्थित रहते हैं।
اِنَّ الَّذِيْنَ اَجْرَمُوْا كَانُوْا مِنَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يَضْحَكُوْنَۖ٢٩
Innal-lażīna ajramū kānū minal-lażīna āmanū yaḍḥakūn(a).
[29]
निःसंदेह जो लोग अपराधी हैं, वे (दुनिया में) ईमान लाने वालों पर हँसा करते थे।
وَاِذَا مَرُّوْا بِهِمْ يَتَغَامَزُوْنَۖ٣٠
Wa iżā marrū bihim yatagāmazūn(a).
[30]
और जब वे उनके पास से गुज़रते, तो आपस में आँखों से इशारे किया करते थे।
وَاِذَا انْقَلَبُوْٓا اِلٰٓى اَهْلِهِمُ انْقَلَبُوْا فَكِهِيْنَۖ٣١
Wa iżanqalabū ilā ahlihimunqalabū fakihīn(a).
[31]
और जब अपने घर वालों की ओर लौटते, तो (मोमिनों के परिहास का) आनंद लेते हुए लौटते थे।
وَاِذَا رَاَوْهُمْ قَالُوْٓا اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ لَضَاۤلُّوْنَۙ٣٢
Wa iżā ra'auhum qālū inna hā'ulā'i laḍāllūn(a).
[32]
और जब वे उन (मोमिनों) को देखते, तो कहते थे : निःसंदेह ये लोग निश्चय भटके हुए हैं।
وَمَآ اُرْسِلُوْا عَلَيْهِمْ حٰفِظِيْنَۗ٣٣
Wa mā ursilū ‘alaihim ḥāfiẓīn(a).
[33]
हालाँकि वे उनपर निरीक्षक बनाकर नहीं भेजे गए थे।
فَالْيَوْمَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنَ الْكُفَّارِ يَضْحَكُوْنَۙ٣٤
Fal-yaumal-lażīna āmanū minal kuffāri yaḍḥakūn(a).
[34]
तो आज वे लोग जो ईमान लाए, काफ़िरों पर हँस रहे हैं।
عَلَى الْاَرَاۤىِٕكِ يَنْظُرُوْنَۗ٣٥
‘Alal-arā'iki yanẓurūn(a).
[35]
तख़्तों पर बैठे देख रहे हैं।
هَلْ ثُوِّبَ الْكُفَّارُ مَا كَانُوْا يَفْعَلُوْنَ ࣖ٣٦
Hal ṡuwwibal-kuffāru mā kānū yaf‘alūn(a).
[36]
क्या काफ़िरों को उसका बदला मिल गया, जो वे किया करते थे?4
4. (29-36) इन आयतों में बताया गया है कि परलोक में कर्मों का फल दिया जाएगा, तो सांसारिक परिस्थितियाँ बदल जाएँगी। संसार में तो सब के लिए अल्लाह की दया है, परंतु न्याय के दिन जो अपने सुख सुविधा पर गर्व करते थे और जिन निर्धन मुसलमानों को देखकर आँखें मारते थे, वहाँ पर वही उनके दुष्परिणाम को देख कर प्रसन्न होंगे। अंतिम आयत में विश्वासहीनों के दुष्परिणाम को उनका कर्म कहा गया है। जिसमें यह संकेत है कि अच्छा फल और कुफल स्वयं इमसान के अपने कर्मों का स्वभाविक प्रभाव होगा।