Surah Al-Infitar
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اِذَا السَّمَاۤءُ انْفَطَرَتْۙ١
Iżas-samā'unfaṭarat.
[1]
जब आकाश फट जाएगा।
وَاِذَا الْكَوَاكِبُ انْتَثَرَتْۙ٢
Wa iżal-kawākibuntaṡarat.
[2]
तथा जब तारे झड़ जाएँगे।
وَاِذَا الْبِحَارُ فُجِّرَتْۙ٣
Wa iżal-biḥāru fujjirat.
[3]
और जब समुद्र बह निकलेंगे।
وَاِذَا الْقُبُوْرُ بُعْثِرَتْۙ٤
Wa iżal-qubūru bu‘ṡirat.
[4]
और जब क़बरें उलट दी जाएँगी।
عَلِمَتْ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ وَاَخَّرَتْۗ٥
‘Alimat nafsum mā qaddamat wa akhkharat.
[5]
तब प्रत्येक प्राणी जान लेगा, जो उसने आगे भेजा और जो पीछे छोड़ा।1
1. (1-5) इनमें प्रलय के दिन आकाश ग्रहों तथा धरती और समाधियों पर जो दशा गुज़रेगी, उसका चित्रण किया गया है। तथा चेतावनी दी गई है कि हर एक की करतूत उसके सामने आ जाएगी।
يٰٓاَيُّهَا الْاِنْسَانُ مَا غَرَّكَ بِرَبِّكَ الْكَرِيْمِۙ٦
Yā ayyuhal-insānu mā garraka birabbikal-karīm(i).
[6]
ऐ इनसान! तुझे किस चीज़ ने तेरे उदार पालनहार से बहका दिया?
الَّذِيْ خَلَقَكَ فَسَوّٰىكَ فَعَدَلَكَۙ٧
Allażī khalaqaka fa sawwāka fa ‘adalak(a).
[7]
जिसने तेरी रचना की, फिर तुझे ठीक ठाक किया, फिर तुझे संतुलित बनाया।
فِيْٓ اَيِّ صُوْرَةٍ مَّا شَاۤءَ رَكَّبَكَۗ٨
Fī ayyi ṣūratim mā syā'a rakkabak(a).
[8]
जिस रूप में भी उसने चाहा, तुझे बना दिया।2
2. (6-8) भावार्थ यह है कि इनसान की पैदाइश में अल्लाह की शक्ति, दक्षता तथा दया के जो लक्षण हैं, उनके दर्पण में यह बताया गया है कि प्रलय को असंभव न समझो। यह सब व्यवस्था इस बात का प्रमाण है कि तुम्हारा अस्तित्व व्यर्थ नहीं है कि मनमानी करो। (देखिए : तर्जुमानुल क़ुरआन, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद) इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जब तुम्हारा अस्तित्व और रूप-रेखा कुछ भी तुम्हारे बस में नहीं, तो फिर जिस शक्ति ने सब किया उसी की शक्ति में प्रलय तथा प्रतिकार के होने को क्यों नहीं मानते?
كَلَّا بَلْ تُكَذِّبُوْنَ بِالدِّيْنِۙ٩
Kallā bal tukażżibūna bid-dīn(i).
[9]
हरगिज़ नहीं, बल्कि तुम बदले (के दिन) को झुठलाते हो।
وَاِنَّ عَلَيْكُمْ لَحٰفِظِيْنَۙ١٠
Wa inna ‘alaikum laḥāfiẓīn(a).
[10]
हालाँकि निःसंदेह तुमपर निगेहबान नियुक्त हैं।
كِرَامًا كٰتِبِيْنَۙ١١
Kirāman kātibīn(a).
[11]
जो सम्माननीय लिखने वाले हैं।
يَعْلَمُوْنَ مَا تَفْعَلُوْنَ١٢
Ya‘lamūna mā taf‘alūn(a).
[12]
वे जानते हैं, जो तुम करते हो।3
3. (9-12) इन आयतों में इस भ्रम का खंडन किया गया है कि सभी कर्मों और कथनों का ज्ञान कैसे हो सकता है।
اِنَّ الْاَبْرَارَ لَفِيْ نَعِيْمٍۙ١٣
Innal-abrāra lafī na‘īm(in).
[13]
निःसंदेह नेक लोग बड़ी नेमत (आनंद) में होंगे।
وَّاِنَّ الْفُجَّارَ لَفِيْ جَحِيْمٍ١٤
Wa innal-fujjāra lafī jaḥīm(in).
[14]
और निःसंदेह दुराचारी लोग जहन्नम में होंगे।
يَصْلَوْنَهَا يَوْمَ الدِّيْنِ١٥
Yaṣlaunahā yaumad-dīn(i).
[15]
वे उसमें बदले के दिन प्रवेश करेंगे।
وَمَا هُمْ عَنْهَا بِغَاۤىِٕبِيْنَۗ١٦
Wa mā hum ‘anhā bigā'ibīn(a).
[16]
और वे उससे कभी ग़ायब होने वाले नहीं हैं।4
4. (13-16) इन आयतों में सदाचारियों तथा दुराचारियों का परिणाम बताया गया है कि एक स्वर्ग के सुखों में रहेगा और दूसरा नरक के दंड का भागी बनेगा।
وَمَآ اَدْرٰىكَ مَا يَوْمُ الدِّيْنِۙ١٧
Wa mā adrāka mā yaumud-dīn(i).
[17]
और आप क्या जानें कि बदले का दिन क्या है?
ثُمَّ مَآ اَدْرٰىكَ مَا يَوْمُ الدِّيْنِۗ١٨
Ṡumma mā adrāka mā yaumud-dīn(i).
[18]
फिर आप क्या जानें कि बदले का दिन क्या है?
يَوْمَ لَا تَمْلِكُ نَفْسٌ لِّنَفْسٍ شَيْـًٔا ۗوَالْاَمْرُ يَوْمَىِٕذٍ لِّلّٰهِ ࣖ١٩
Yauma lā tamliku nafsul linafsin syai'ā(n), wal-amru yauma'iżil lillāh(i).
[19]
जिस दिन कोई प्राणी किसी प्राणी के लिए किसी चीज़ का अधिकार न रखेगा और उस दिन आदेश केवल अल्लाह का होगा।5
5. (17-19) इन आयतों में दो वाक्यों में प्रलय की चर्चा दोहराकर उसकी भयानकता को दर्शाते हुए बताया गया है कि निर्णय बे लाग होगा। कोई किसी की सहायता नहीं कर सकेगा। सत्य आस्था और सत्कर्म ही सहायक होंगे जिसका मार्ग क़ुरआन दिखा रहा है। क़ुरआन की सभी आयतों में प्रतिकार का दिन प्रलय के दिन को ही बताया गया है जिस दिन प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मानुसार प्रतिकार मिलेगा।