Surah `Abasa
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
عَبَسَ وَتَوَلّٰىٓۙ١
‘Abasa wa tawallā.
[1]
उस (नबी) ने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया।
اَنْ جَاۤءَهُ الْاَعْمٰىۗ٢
An jā'ahul-a‘mā.
[2]
इस कारण कि उनके पास अंधा आया।
وَمَا يُدْرِيْكَ لَعَلَّهٗ يَزَّكّٰىٓۙ٣
Wa mā yudrīka la‘allahū yazzakkā.
[3]
और आपको क्या मालूम शायद वह पवित्रता प्राप्त कर ले।
اَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنْفَعَهُ الذِّكْرٰىۗ٤
Au yażżakkaru fatanfa‘ahuż-żikrā.
[4]
या नसीहत ग्रहण करे, तो वह नसीहत उसे लाभ दे।
اَمَّا مَنِ اسْتَغْنٰىۙ٥
Ammā manistagnā.
[5]
लेकिन जो बेपरवाह हो गया।
فَاَنْتَ لَهٗ تَصَدّٰىۗ٦
Fa anta lahū taṣaddā.
[6]
तो आप उसके पीछे पड़ रहे हैं।
وَمَا عَلَيْكَ اَلَّا يَزَّكّٰىۗ٧
Wa mā ‘alaika allā yazzakkā.
[7]
हालाँकि आपपर कोई दोष नहीं कि वह पवित्रता ग्रहण नहीं करता।
وَاَمَّا مَنْ جَاۤءَكَ يَسْعٰىۙ٨
Wa ammā man jā'aka yas‘ā.
[8]
लेकिन जो व्यक्ति आपके पास दौड़ता हुआ आया।
وَهُوَ يَخْشٰىۙ٩
Wa huwa yakhsyā.
[9]
और वह डर (भी) रहा है।
فَاَنْتَ عَنْهُ تَلَهّٰىۚ١٠
Fa anta ‘anhu talahhā.
[10]
तो आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते।1
1. (1-10) भावार्थ यह है कि सत्य के प्रचारक का यह कर्तव्य है कि जो सत्य की खोज में हो, भले ही वह दरिद्र हो, उसी के सुधार पर ध्यान दे। और जो अभिमान के कारण सत्य की परवाह नहीं करते उनके पीछे समय न गवाँए। आपका यह दायित्व भी नहीं है कि उन्हें अपनी बात मनवा दें।
كَلَّآ اِنَّهَا تَذْكِرَةٌ ۚ١١
Kallā innahā tażkirah(tun).
[11]
ऐसा हरगिज़ नहीं चाहिए, यह (क़ुरआन) तो एक उपदेश है।
فَمَنْ شَاۤءَ ذَكَرَهٗ ۘ١٢
Faman syā'a żakarah(ū).
[12]
अतः जो चाहे, उसे याद करे।
فِيْ صُحُفٍ مُّكَرَّمَةٍۙ١٣
Fī ṣuḥufim mukarrmah(tin).
[13]
(यह क़ुरआन) सम्मानित सहीफ़ों (ग्रंथों) में है।
مَّرْفُوْعَةٍ مُّطَهَّرَةٍ ۢ ۙ١٤
Marfū‘atim muṭahharah(tin).
[14]
जो उच्च स्थान वाले तथा पवित्र हैं।
بِاَيْدِيْ سَفَرَةٍۙ١٥
Bi'aidī safarah(tin).
[15]
ऐसे लिखने वालों (फ़रिश्तों) के हाथों में हैं।
كِرَامٍۢ بَرَرَةٍۗ١٦
Kirāmim bararah(tin).
[16]
जो माननीय और नेक हैं।2
2. (11-16) इनमें क़ुरआन की महानता को बताया गया है कि यह एक स्मृति (याद दहानी) है। किसी पर थोपने के लिए नहीं आया है। बल्कि वह तो फ़रिश्तों के हाथों में स्वर्ग में एक पवित्र शास्त्र के अंदर सुरक्षित है। और वहीं से वह (क़ुरआन) इस संसार में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा जा रहा है।
قُتِلَ الْاِنْسَانُ مَآ اَكْفَرَهٗۗ١٧
Qutilal-insānu mā akfarah(ū).
[17]
सर्वनाश हो मनुष्य का, वह कितना कृतघ्न (नाशुक्रा) है।
مِنْ اَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهٗۗ١٨
Min ayyi syai'in khalaqah(ū).
[18]
(अल्लाह ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया?
مِنْ نُّطْفَةٍۗ خَلَقَهٗ فَقَدَّرَهٗۗ١٩
Min nuṭfah(tin), khalaqahū fa qaddarah(ū).
[19]
एक नुत्फ़े (वीर्य) से उसे पैदा किया, फिर विभिन्न चरणों में उसकी रचना की।
ثُمَّ السَّبِيْلَ يَسَّرَهٗۙ٢٠
Ṡummas-sabīla yassarah(ū).
[20]
फिर उसके लिए रास्ता आसान कर दिया।
ثُمَّ اَمَاتَهٗ فَاَقْبَرَهٗۙ٢١
Ṡumma amātahū fa aqbarah(ū).
[21]
फिर उसे मृत्यु दी, फिर उसे क़ब्र में रखवाया।
ثُمَّ اِذَا شَاۤءَ اَنْشَرَهٗۗ٢٢
Ṡumma iżā syā'a ansyarah(ū).
[22]
फिर जब वह चाहेगा, उसे उठाएगा।
كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَآ اَمَرَهٗۗ٢٣
Kallā lammā yaqḍi mā amarah(ū).
[23]
हरगिज़ नहीं, अभी तक उसने उसे पूरा नहीं किया, जिसका अल्लाह ने उसे आदेश दिया था।3
3. (17-23) तक विश्वासहीनों पर धिक्कार है कि यदि वे अपने अस्तित्व पर विचार करें कि हमने कितनी तुच्छ वीर्य की बूँद से उसकी रचना की तथा अपनी दया से उसे चेतना और समझ दी। परंतु इन सब उपकारों को भूलकर कृतघ्न बना हुआ है, और उपासना अन्य की करता है।
فَلْيَنْظُرِ الْاِنْسَانُ اِلٰى طَعَامِهٖٓ ۙ٢٤
Falyanẓuril-insānu ilā ṭa‘āmih(ī).
[24]
अतः इनसान को चाहिए कि अपने भोजन को देखे।
اَنَّا صَبَبْنَا الْمَاۤءَ صَبًّاۙ٢٥
Annā ṣababnal-mā'a ṣabbā(n).
[25]
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया।
ثُمَّ شَقَقْنَا الْاَرْضَ شَقًّاۙ٢٦
Ṡumma syaqaqnal-arḍa syaqqā(n).
[26]
फिर हमने धरती को विशेष रूप से फाड़ा।
فَاَنْۢبَتْنَا فِيْهَا حَبًّاۙ٢٧
Fa'ambatnā fīhā ḥabbā(n).
[27]
फिर हमने उसमें अनाज उगाया।
وَّعِنَبًا وَّقَضْبًاۙ٢٨
Wa ‘inabaw wa qaḍbā(n).
[28]
तथा अंगूर और (मवेशियों का) चारा।
وَّزَيْتُوْنًا وَّنَخْلًاۙ٢٩
Wa zaitūnaw wa nakhlā(n).
[29]
तथा ज़ैतून और खजूर के पेड़।
وَّحَدَاۤىِٕقَ غُلْبًا٣٠
Wa ḥadā'iqa gulbā(n).
[30]
तथा घने बाग़।
وَفَاكِهَةً وَّاَبًّا٣١
Wa fākihataw wa abbā(n).
[31]
तथा फल और चारा।
مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِاَنْعَامِكُمْۗ٣٢
Matā‘al lakum wa li'an‘āmikum.
[32]
तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे पशुओं के लिए जीवन-सामग्री के रूप में।4
4. (24-32) इन आयतों में इनसान के जीवन साधनों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो अल्लाह की अपार दया की परिचायक हैं। अतः जब सारी व्यवस्था वही करता है, तो फिर उसके इन उपकारों पर इनसान के लिए उचित था कि उसी की बात माने और उसी के आदेशों का पालन करे जो क़ुरआन के माध्यम से अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्म) द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। (दावतुल क़ुरआन)
فَاِذَا جَاۤءَتِ الصَّاۤخَّةُ ۖ٣٣
Fa iżā jā'atiṣ-ṣākhkhah(tu).
[33]
तो जब कानों को बहरा कर देने वाली प्रचंड आवाज़ (क़ियामत) आ जाएगी।
يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ اَخِيْهِۙ٣٤
Yauma yafirrul-mar'u min akhīh(i).
[34]
जिस दिन इनसान अपने भाई से भागेगा।
وَاُمِّهٖ وَاَبِيْهِۙ٣٥
Wa ummihī wa abīh(i).
[35]
तथा अपनी माता और अपने पिता (से)।
وَصَاحِبَتِهٖ وَبَنِيْهِۗ٣٦
Wa ṣāḥibatihī wa banīh(i).
[36]
तथा अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ يَوْمَىِٕذٍ شَأْنٌ يُّغْنِيْهِۗ٣٧
Likullimri'im minhum yauma'iżin sya'nuy yugnīh(i).
[37]
उस दिन उनमें से प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी स्थिति होगी, जो उसे (दूसरों से) बेपरवाह कर देगी।
وُجُوْهٌ يَّوْمَىِٕذٍ مُّسْفِرَةٌۙ٣٨
Wujūhuy yauma'iżim musfirah(tun).
[38]
उस दिन कुछ चेहरे रौशन होंगे।
ضَاحِكَةٌ مُّسْتَبْشِرَةٌ ۚ٣٩
Ḍāḥikatum mustabsyirah(tun).
[39]
हँसते हुए, प्रसन्न होंगे।
وَوُجُوْهٌ يَّوْمَىِٕذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌۙ٤٠
Wa wujūhuy yauma'iżin ‘alaihā gabarah(tun).
[40]
तथा कुछ चेहरों उस दिन धूल से ग्रस्त होंगे।
تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ ۗ٤١
Tarhaquhā qatarah(tun).
[41]
उनपर कालिमा छाई होगी।
اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ ࣖ٤٢
Ulā'ika humul-kafaratul-fajarah(tu).
[42]
वही काफ़िर और कुकर्मी लोग हैं।5
5. (33-42) इन आयतों का भावार्थ यह है कि संसार में किसी पर कोई आपदा आती है, तो उसके अपने लोग उसकी सहायता और रक्षा करते हैं। परंतु प्रलय के दिन सबको अपनी-अपनी पड़ी होगी और उसके कर्म ही उसकी रक्षा करेंगे।