Surah An-Naba’

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
عَمَّ يَتَسَاۤءَلُوْنَۚ١
‘Amma yatasā'alūn(a).
[1] वे आपस में किस चीज़ के विषय में प्रश्न कर रहे हैं?

عَنِ النَّبَاِ الْعَظِيْمِۙ٢
‘Anin naba'il-‘aẓīm(i).
[2] बहुत बड़ी सूचना के विषय में।

الَّذِيْ هُمْ فِيْهِ مُخْتَلِفُوْنَۗ٣
Allażī hum fīhi mukhtalifūn(a).
[3] जिसमें वे मतभेद करने वाले हैं।

كَلَّا سَيَعْلَمُوْنَۙ٤
Kallā saya‘lamūn(a).
[4] हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।

ثُمَّ كَلَّا سَيَعْلَمُوْنَ٥
Ṡumma kallā saya‘lamūn(a).
[5] फिर हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।1
1. (1-5) इन आयतों में उनको धिक्कारा गया है, जो प्रलय की हँसी उड़ाते हैं। जैसे उनके लिए प्रलय की सूचना किसी गंभीर चिंता के योग्य नहीं। परंतु वह दिन दूर नहीं जब प्रलय उनके आगे आ जाएगी और वे विश्व विधाता के सामने उत्तरदायित्व के लिए उपस्थित होंगे।

اَلَمْ نَجْعَلِ الْاَرْضَ مِهٰدًاۙ٦
Alam naj‘alil-arḍa mihādā(n).
[6] क्या हमने धरती को बिछौना नहीं बनाया?

وَّالْجِبَالَ اَوْتَادًاۖ٧
Wal-jibāla autādā(n).
[7] और पर्वतों को मेखें?

وَّخَلَقْنٰكُمْ اَزْوَاجًاۙ٨
Wa khalaqnākum azwājā(n).
[8] तथा हमने तुम्हें जोड़े-जोड़े पैदा किया।

وَّجَعَلْنَا نَوْمَكُمْ سُبَاتًاۙ٩
Wa ja‘alnā naumakum subātā(n).
[9] तथा हमने तुम्हारी नींद को आराम (का साधन) बनाया।

وَّجَعَلْنَا الَّيْلَ لِبَاسًاۙ١٠
Wa ja‘alnal-laila libāsā(n).
[10] और हमने रात को आवरण बनाया।

وَّجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًاۚ١١
Wa ja‘alnan-nahāra ma‘āsyā(n).
[11] और हमने दिन को कमाने के लिए बनाया।

وَبَنَيْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًاۙ١٢
Wa banainā fauqakum sab‘an syidādā(n).
[12] तथा हमने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आकाश) बनाए।

وَّجَعَلْنَا سِرَاجًا وَّهَّاجًاۖ١٣
Wa ja‘alnā sirājaw wahhājā(n).
[13] और हमने एक प्रकाशमान् तप्त दीप (सूर्य) बनाया।

وَّاَنْزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرٰتِ مَاۤءً ثَجَّاجًاۙ١٤
Wa anzalnā minal-mu‘ṣirāti mā'an ṡajjājā(n).
[14] और हमने बदलियों से मूसलाधार पानी उतारा।

لِّنُخْرِجَ بِهٖ حَبًّا وَّنَبَاتًاۙ١٥
Linukhrija bihī ḥabbaw wa nabātā(n).
[15] ताकि हम उसके द्वारा अन्न और वनस्पति उगाएँ।

وَّجَنّٰتٍ اَلْفَافًاۗ١٦
Wa jannātin alfāfā(n).
[16] और घने-घने बाग़।2
2. (6-16) इन आयतों में अल्लाह की शक्ति और प्रतिपालन (रूबूबिय्यत) के लक्षण दर्शाए गए हैं, जो यह साक्ष्य देते हैं कि प्रतिकार (बदले) का दिन आवश्यक है, क्योंकि जिसके लिए इतनी बड़ी व्यवस्था की गई हो और उसे कर्मों के अधिकार भी दिए गए हों, तो उसके कर्मों का पुरस्कार या दंड तो मिलना ही चाहिए।

اِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِيْقَاتًاۙ١٧
Inna yaumal-faṣli kāna mīqātā(n).
[17] निःसंदेह निर्णय (फ़ैसले) का दिन एक नियत समय है।

يَّوْمَ يُنْفَخُ فِى الصُّوْرِ فَتَأْتُوْنَ اَفْوَاجًاۙ١٨
Yauma yunfakhu fiṣ-ṣūri fa ta'tūna afwājā(n).
[18] जिस दिन सूर में फूँक मारी जाएगी, तो तुम दल के दल चले आओगे।

وَّفُتِحَتِ السَّمَاۤءُ فَكَانَتْ اَبْوَابًاۙ١٩
Wa futiḥatis-samā'u fa kānat abwābā(n).
[19] और आकाश खोल दिया जाएगा, तो उसमें द्वार ही द्वार हो जाएँगे।

وَّسُيِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًاۗ٢٠
Wa suyyiratil-jibālu fa kānat sarābā(n).
[20] और पर्वत चलाए जाएँगे, तो वे मरीचिका बन जाएँगे।3
3. (17-20) इन आयतों में बताया जा रहा है कि निर्णय का दिन अपने निश्चित समय पर आकर रहेगा, उस दिन आकाश तथा धरती में एक बड़ी उथल-पुथल होगी। इसके लिए सूर में एक फूँक मारने की देर है। फिर जिसकी सूचना दी जा रही है तुम्हारे सामने आ जाएगी। तुम्हारे मानने या न मानने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और सब अपना ह़िसाब देने के लिए अल्लाह के न्यायालय की ओर चल पड़ेंगे।

اِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتْ مِرْصَادًاۙ٢١
Inna jahannama kānat mirṣādā(n).
[21] निःसंदेह जहन्नम घात में है।

لِّلطّٰغِيْنَ مَاٰبًاۙ٢٢
Liṭ-ṭāgīna ma'ābā(n).
[22] सरकशों का ठिकाना है।

لّٰبِثِيْنَ فِيْهَآ اَحْقَابًاۚ٢٣
Lābiṡīna fīhā aḥqābā(n).
[23] जिसमें वे अनगिनत वर्षों तक रहेंगे।

لَا يَذُوْقُوْنَ فِيْهَا بَرْدًا وَّلَا شَرَابًاۙ٢٤
Lā yażūqūna fīhā bardaw wa lā syarābā(n).
[24] वे उसमें न कोई ठंड चखेंगे और न पीने की चीज़।

اِلَّا حَمِيْمًا وَّغَسَّاقًاۙ٢٥
Illā ḥamīmaw wa gassāqā(n).
[25] सिवाय अत्यंत गर्म पानी और बहती पीप के।

جَزَاۤءً وِّفَاقًاۗ٢٦
Jazā'aw wifāqā(n).
[26] यह पूरा-पूरा बदला है।

اِنَّهُمْ كَانُوْا لَا يَرْجُوْنَ حِسَابًاۙ٢٧
Innahum kānū lā yarjūna ḥisābā(n).
[27] निःसंदेह वे हिसाब से नहीं डरते थे।

وَّكَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا كِذَّابًاۗ٢٨
Wa każżabū bi'āyātinā kiżżābā(n).
[28] तथा उन्होंने हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया।

وَكُلَّ شَيْءٍ اَحْصَيْنٰهُ كِتٰبًاۙ٢٩
Wa kulla syai'in aḥṣaināhu kitābā(n).
[29] और हमने हर चीज़ को लिखकर संरक्षित कर रखा है।

فَذُوْقُوْا فَلَنْ نَّزِيْدَكُمْ اِلَّا عَذَابًا ࣖ٣٠
Fa żūqū falan nazīdakum illā ‘ażābā(n)
[30] तो चखो, हम तुम्हारे लिए यातना ही अधिक करते रहेंगे।4
4. (21-30) इन आयतों में बताया गया है कि जो ह़िसाब की आशा नहीं रखते और हमारी आयतों को नहीं मानते हमने उनकी एक-एक करतूत को गिनकर अपने यहाँ लिख रखा है। और उनकी ख़बर लेने के लिए नरक घात लगाए तैयार है, जहाँ उनके कुकर्मों का भरपूर बदला दिया जाएगा।

اِنَّ لِلْمُتَّقِيْنَ مَفَازًاۙ٣١
Inna lil-muttaqīna mafāzā(n).
[31] निःसंदेह (अल्लाह से) डरने वालों के लिए सफलता है।

حَدَاۤىِٕقَ وَاَعْنَابًاۙ٣٢
Ḥadā'iqa wa a‘nābā(n).
[32] बाग़ तथा अंगूर।

وَّكَوَاعِبَ اَتْرَابًاۙ٣٣
Wa kawā‘iba atrābā(n).
[33] और समान उम्र वाली नवयुवतियाँ।

وَّكَأْسًا دِهَاقًاۗ٣٤
Wa ka'san dihāqā(n).
[34] और छलकते हुए प्याले।

لَا يَسْمَعُوْنَ فِيْهَا لَغْوًا وَّلَا كِذّٰبًا٣٥
Lā yasma‘ūna fīhā lagwaw wa lā kiżżābā(n).
[35] वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न (एक दूसरे को) झुठलाना।

جَزَاۤءً مِّنْ رَّبِّكَ عَطَاۤءً حِسَابًاۙ٣٦
Jazā'am mir rabbika ‘aṭā'an ḥisābā(n).
[36] यह तुम्हारे पालनहार की ओर से बदले में ऐसा प्रदान है जो पर्याप्त होगा।

رَّبِّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الرَّحْمٰنِ لَا يَمْلِكُوْنَ مِنْهُ خِطَابًاۚ٣٧
Rabbis-samāwāti wal-arḍi wa mā bainahumar-raḥmāni lā yamlikūna minhu khiṭābā(n).
[37] जो आकाशों और धरती तथा उनके बीच की हर चीज़ का पालनहार है, अत्यंत दयावान् है। उससे बात करने का उन्हें अधिकार नहीं होगा।

يَوْمَ يَقُوْمُ الرُّوْحُ وَالْمَلٰۤىِٕكَةُ صَفًّاۙ لَّا يَتَكَلَّمُوْنَ اِلَّا مَنْ اَذِنَ لَهُ الرَّحْمٰنُ وَقَالَ صَوَابًا٣٨
Yauma yaqūmur-rūḥu wal-malā'ikatu ṣaffā(n), lā yatakallamūna illā man ażina lahur-raḥmānu wa qāla ṣawābā(n).
[38] जिस दिन रूह़ (जिबरील) तथा फ़रिश्ते पंक्तियों में खड़े होंगे, उससे केवल वही बात कर सकेगा जिसे रहमान (अल्लाह) आज्ञा देगा और वह ठीक बात कहेगा।

ذٰلِكَ الْيَوْمُ الْحَقُّۚ فَمَنْ شَاۤءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ مَاٰبًا٣٩
Żālikal-yaumul-ḥaqq(u), faman syā'attakhaża ilā rabbihī ma'ābā(n).
[39] यही (वह) दिन है जो सत्य है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर लौटने की जगह (ठिकाना) बना ले।5
5. (37-39) इन आयतों में अल्लाह के न्यायालय में उपस्थिति (ह़ाज़िरी) का चित्र दिखाया गया है। और जो इस भ्रम में पड़े हैं कि उनके देवी-देवता आदि अभिस्ताव करेंगे उनको सावधान किया गया है कि उस दिन कोई बिना उस की आज्ञा के मुँह नहीं खोलेगा और अल्लाह की आज्ञा से अभिस्ताव भी करेगा तो उसी के लिए जो संसार में सत्य वचन "ला इलाहा इल्लल्लाह" को मानता हो। अल्लाह के द्रोही और सत्य के विरोधी किसी अभिस्ताव के योग्य नगीं होंगे।

اِنَّآ اَنْذَرْنٰكُمْ عَذَابًا قَرِيْبًا ەۙ يَّوْمَ يَنْظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ وَيَقُوْلُ الْكٰفِرُ يٰلَيْتَنِيْ كُنْتُ تُرٰبًا ࣖ٤٠
Innā anżarnākum ‘ażāban qarībā(n), yauma yanẓurul-mar'u mā qaddamat yadāhu wa yaqūlul-kāfiru yā laitanī kuntu turābā(n).
[40] निःसंदेह हमने तुम्हें एक निकट ही आने वाली यातना से डरा दिया है, जिस दिन मनुष्य देख लेगा, जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा है, और काफिर कहेगा : ऐ काश कि मैं मिट्टी होता!6
6. (40) बात को इस चेतावनी पर समाप्त किया गया है कि जिस दिन के आने की सूचना दी जा रही है, उस का आना सत्य है, उसे दूर न समझो। अब जिसका दिल चाहे इसे मानकर अपने पालनहार की ओर मार्ग बना ले। परंतु इस चेतावनी के होते जो इनकार करेगा, उसका किया-धरा सामने आएगा, तो पछता-पछता कर यह कामना करेगा कि मैं संसार में पैदा ही न होता। उस समय इस संसार के बारे में उसका यह विचार होगा जिसके प्रेम में आज वह परलोक से अंधा बना हुआ है।