Surah Al-A’raf
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
الۤمّۤصۤ ۚ١
Alif lām mīm ṣād.
[1]
अलिफ़, लाम, मीम, साद।
كِتٰبٌ اُنْزِلَ اِلَيْكَ فَلَا يَكُنْ فِيْ صَدْرِكَ حَرَجٌ مِّنْهُ لِتُنْذِرَ بِهٖ وَذِكْرٰى لِلْمُؤْمِنِيْنَ٢
Kitābun unzila ilaika falā yakun fī ṣadrika ḥarajum minhu litunżira bihī wa żikrā lil-mu'minīn(a).
[2]
यह एक पुस्तक है, जो आपकी ओर उतारी गई है। अतः (ऐ नबी!) आपके सीने में इससे कोई तंगी न हो। ताकि आप इसके द्वारा (लोगों को) सावधान करें1 और (यह) ईमान वालों के लिए उपदेश है।
1. अर्थात अल्लाह के इनकार और उसके दुष्परिणाम से।
اِتَّبِعُوْا مَآ اُنْزِلَ اِلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَلَا تَتَّبِعُوْا مِنْ دُوْنِهٖٓ اَوْلِيَاۤءَۗ قَلِيْلًا مَّا تَذَكَّرُوْنَ٣
Ittabi‘ū mā unzila ilaikum mir rabbikum wa lā tattabi‘ū min dūnihī auliyā'(a), qalīlam mā tażakkarūn(a).
[3]
(ऐ लोगो!) जो कुछ तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उसका अनुसरण करो और उसके सिवा दूसरे सहायकों के पीछे न चलो। तुम बहुत ही कम उपदेश ग्रहण करते हो।
وَكَمْ مِّنْ قَرْيَةٍ اَهْلَكْنٰهَا فَجَاۤءَهَا بَأْسُنَا بَيَاتًا اَوْ هُمْ قَاۤىِٕلُوْنَ٤
Wa kam min qaryatin ahlaknāhā fa jā'ahā ba'sunā bayātan au hum qā'ilūn(a).
[4]
कितनी ही बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने विनष्ट कर दिया। तो उनपर हमारा प्रकोप रातों-रात आया या जब वे दोपहर में विश्राम करने वाले थे।
فَمَا كَانَ دَعْوٰىهُمْ اِذْ جَاۤءَهُمْ بَأْسُنَآ اِلَّآ اَنْ قَالُوْٓا اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ٥
Famā kāna da‘wāhum iż jā'ahum ba'sunā illā an qālū innā kunnā ẓālimīn(a).
[5]
फिर जब उनपर हमारा प्रकोप आ पड़ा, तो उनकी पुकार यह कहने के सिवा कुछ नहीं थी : निश्चय हम ही अत्याचारी2 थे।
2. अर्थात अपनी हठधर्मी को उस समय स्वीकार किया।
فَلَنَسْـَٔلَنَّ الَّذِيْنَ اُرْسِلَ اِلَيْهِمْ وَلَنَسْـَٔلَنَّ الْمُرْسَلِيْنَۙ٦
Fa lanas'alannal-lażīna ursila ilaihim wa lanas'alannal-mursalīn(a).
[6]
तो निश्चय हम उन लोगों से अवश्य पूछेंगे, जिनके पास रसूल भेजे गए तथा निश्चय हम रसूलों से (भी) ज़रूर3 पूछेंगे।
3. अर्थात प्रयल के दिन उन समुदायों से प्रश्न किया जाएगा कि तुम्हारे पास रसूल आए या नहीं? वे उत्तर देंगे : आए थे। परंतु हम ही अत्याचारी थे। हमने उनकी एक न सुनी। फिर रसूलों से प्रश्न किया जाएगा कि उन्होंने अल्लाह का संदेश पहुँचाया या नहीं? तो वे कहेंगे : अवश्य हमने तेरा संदेश पहुँचा दिया।
فَلَنَقُصَّنَّ عَلَيْهِمْ بِعِلْمٍ وَّمَا كُنَّا غَاۤىِٕبِيْنَ٧
Fa lanaquṣṣanna ‘alaihim bi‘ilmiw wa mā kunnā gā'ibīn(a).
[7]
फिर निश्चय हम पूरी जानकारी के साथ उनके सामने सब कुछ बयान कर देंगे और हम कहीं अनुपस्थित नहीं थे।
وَالْوَزْنُ يَوْمَىِٕذِ ِۨالْحَقُّۚ فَمَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِيْنُهٗ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ٨
Wal-waznu yauma'iżinil-ḥaqq(u), faman ṡaqulat mawāzīnuhū fa ulā'ika humul-mufliḥūn(a).
[8]
तथा उस दिन (कर्मों का) वज़न न्याय के साथ होगा। फिर जिसके पलड़े भारी हो गए, तो वही लोग सफल होने वाले हैं।
وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِيْنُهٗ فَاُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ خَسِرُوْٓا اَنْفُسَهُمْ بِمَا كَانُوْا بِاٰيٰتِنَا يَظْلِمُوْنَ٩
Wa man khaffat mawāzīnuhū fa ulā'ikal-lażīna khasirū anfusahum bimā kānū bi'āyātinā yaẓlimūn(a).
[9]
और जिसके पलड़े हल्के हो गए, तो यही वे लोग हैं जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला, क्योंकि वे हमारी आयतों के साथ अन्याय करते थे।4
4. भावार्थ यह है कि यह अल्लाह का नियम है कि प्रत्येक व्यक्ति तथा समुदाय को उनके कर्मानुसार फल मिलेगा। और कर्मों की तौल के लिये अल्लाह ने नाप निर्धारित कर दी है।
وَلَقَدْ مَكَّنّٰكُمْ فِى الْاَرْضِ وَجَعَلْنَا لَكُمْ فِيْهَا مَعَايِشَۗ قَلِيْلًا مَّا تَشْكُرُوْنَ ࣖ١٠
Wa laqad makkannākum fil-arḍi wa ja‘alnā lakum fīhā ma‘āyisy(a), qalīlam mā tasykurūn(a).
[10]
तथा निःसंदेह हमने तुम्हें धरती में बसा दिया और उसमें तुम्हारे लिए जीवन के संसाधन बनाए। तुम बहुत कम शुक्र करते हो।
وَلَقَدْ خَلَقْنٰكُمْ ثُمَّ صَوَّرْنٰكُمْ ثُمَّ قُلْنَا لِلْمَلٰۤىِٕكَةِ اسْجُدُوْا لِاٰدَمَ فَسَجَدُوْٓا اِلَّآ اِبْلِيْسَۗ لَمْ يَكُنْ مِّنَ السّٰجِدِيْنَ١١
Wa laqad khalaqnākum ṡumma ṣawwarnākum ṡumma qulnā lil-malā'ikatisjudū li'ādama fa sajadū illā iblīs(a), lam yakum minas-sājidīn(a).
[11]
और निःसंदेह हमने तुम्हें पैदा किया5, फिर तुम्हारा रूप बनाया, फिर फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो। तो उन्होंने सजदा किया, सिवाय इबलीस के। वह सदजा करने वालों में से न हुआ।
5. अर्थात मूल पुरुष आदम को अस्तित्व दिया।
قَالَ مَا مَنَعَكَ اَلَّا تَسْجُدَ اِذْ اَمَرْتُكَ ۗقَالَ اَنَا۠ خَيْرٌ مِّنْهُۚ خَلَقْتَنِيْ مِنْ نَّارٍ وَّخَلَقْتَهٗ مِنْ طِيْنٍ١٢
Qāla mā mana‘aka allā tasjuda iż amartuk(a), qāla ana khairum minh(u), khalaqtanī min nāriw wa khalaqtahū min ṭīn(in).
[12]
(अल्लाह ने) कहा : जब मैंने तुझे आदेश दिया था तो तुझे किस बात ने सजदा करने से रोका? उसने कहा : मैं उससे अच्छा हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया है और तूने उसे मिट्टी से बनाया है।
قَالَ فَاهْبِطْ مِنْهَا فَمَا يَكُوْنُ لَكَ اَنْ تَتَكَبَّرَ فِيْهَا فَاخْرُجْ اِنَّكَ مِنَ الصّٰغِرِيْنَ١٣
Qāla fahbiṭ minhā famā yakūnu laka an tatakabbara fīhā fakhruj innaka minaṣ-ṣāgirīn(a).
[13]
(अल्लाह ने) कहा : फिर इस (जन्नत) से उतर जा। क्योंकि तेरे लिए यह न होगा कि तू इसमें घमंड करे। सो निकल जा। निश्चय ही तू अपमानित होने वालों में से है।
قَالَ اَنْظِرْنِيْٓ اِلٰى يَوْمِ يُبْعَثُوْنَ١٤
Qāla anẓirnī ilā yaumi yub‘aṡūn(a).
[14]
(इबलीस ने) कहा : मुझे उस दिन तक मोहलत दे, जब वे उठाए जाएँगे।
قَالَ اِنَّكَ مِنَ الْمُنْظَرِيْنَ١٥
Qāla innaka minal-munẓarīn(a).
[15]
(अल्लाह ने) कहा : निःसंदेह तू मोहलत दिए जाने वालों में से है।
قَالَ فَبِمَآ اَغْوَيْتَنِيْ لَاَقْعُدَنَّ لَهُمْ صِرَاطَكَ الْمُسْتَقِيْمَۙ١٦
Qāla fabimā agwaitanī la'aq‘udanna lahum ṣirāṭakal-mustaqīm(a).
[16]
उसने कहा : फिर इस कारण कि तूने मुझे गुमराह किया है, मैं निश्चय उनके लिए तेरे सीधे मार्ग पर अवश्य बैठूँगा।
ثُمَّ لَاٰتِيَنَّهُمْ مِّنْۢ بَيْنِ اَيْدِيْهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ وَعَنْ اَيْمَانِهِمْ وَعَنْ شَمَاۤىِٕلِهِمْۗ وَلَا تَجِدُ اَكْثَرَهُمْ شٰكِرِيْنَ١٧
Ṡumma la'ātiyannahum mim baini aidīhim wa min khalfihim wa ‘an aimānihim wa ‘an syamā'ilihim, wa lā tajidu akṡarahum syākirīn(a).
[17]
फिर मैं उनके पास उनके आगे से, उनके पीछे से, उनके दाएँ से और उनके बाएँ से आऊँगा। और तू उनमें से अधिकतर लोगों को शुक्र करने वाला नहीं पाएगा।6
6. शैतान ने अपना विचार सच कर दिखाया और अधिकतर लोग उसके जाल में फंस कर शिर्क जैसे महा पाप में पड़ गए। (देखिए : सूरत सबा, आयत : 20)
قَالَ اخْرُجْ مِنْهَا مَذْءُوْمًا مَّدْحُوْرًا ۗ لَمَنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ لَاَمْلَـَٔنَّ جَهَنَّمَ مِنْكُمْ اَجْمَعِيْنَ١٨
Qālakhruj minhā maż'ūmam madḥūrā(n), laman tabi‘aka minhum la'amla'anna jahannama minkum ajma‘īn(a).
[18]
(अल्लाह ने) कहा : यहाँ से निंदित धिक्कारा हुआ निकल जा। निःसंदेह उनमें से जो तेरे पीछे चलेगा, मैं निश्चय ही तुम सब से नरक को अवश्य भर दूँगा।
وَيٰٓاٰدَمُ اسْكُنْ اَنْتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ فَكُلَا مِنْ حَيْثُ شِئْتُمَا وَلَا تَقْرَبَا هٰذِهِ الشَّجَرَةَ فَتَكُوْنَا مِنَ الظّٰلِمِيْنَ١٩
Wa yā ādamuskun anta wa zaujukal-jannata fa kulā min ḥaiṡu syi'tumā wa lā taqrabā hāżihisy-syajarata fa takūnā minaẓ-ẓālimīn(a).
[19]
और ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी इस जन्नत में रहो। अतः दोनों जहाँ से चाहो, खाओ और इस पेड़ के पास मत जाना कि दोनों अत्याचारियों में से हो जाओगे।
فَوَسْوَسَ لَهُمَا الشَّيْطٰنُ لِيُبْدِيَ لَهُمَا مَا وٗرِيَ عَنْهُمَا مِنْ سَوْءٰتِهِمَا وَقَالَ مَا نَهٰىكُمَا رَبُّكُمَا عَنْ هٰذِهِ الشَّجَرَةِ اِلَّآ اَنْ تَكُوْنَا مَلَكَيْنِ اَوْ تَكُوْنَا مِنَ الْخٰلِدِيْنَ٢٠
Fa waswasa lahumasy-syaiṭānu liyubdiya lahumā mā wūriya ‘anhumā min sau'ātihimā wa qāla mā nahākumā rabbukumā ‘an hāżihisy-syajarati illā an takūnā malakaini au takūnā minal-khālidīn(a).
[20]
फिर शैतान ने उन दोनों के हृदय में वसवसा डाला। ताकि उनके लिए प्रकट कर दे जो कुछ उनके गुप्तांगों में से उनसे छिपाया गया था, और उसने कहा : तुम दोनों के पालनहार ने तुम्हें इस पेड़ से केवल इसलिए मना किया है कि कहीं तुम दोनों फ़रिश्ते न बन जाओ, अथवा हमेशा रहने वालों में से न हो जाओ।
وَقَاسَمَهُمَآ اِنِّيْ لَكُمَا لَمِنَ النّٰصِحِيْنَۙ٢١
Wa qāsamahumā innī lakumā laminan-nāṣiḥīn(a).
[21]
तथा उसने उन दोनों से क़सम खाकर कहा : निःसंदेह मैं तुम दोनों का निश्चित रूप से हितैषी हूँ।
فَدَلّٰىهُمَا بِغُرُوْرٍۚ فَلَمَّا ذَاقَا الشَّجَرَةَ بَدَتْ لَهُمَا سَوْءٰتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفٰنِ عَلَيْهِمَا مِنْ وَّرَقِ الْجَنَّةِۗ وَنَادٰىهُمَا رَبُّهُمَآ اَلَمْ اَنْهَكُمَا عَنْ تِلْكُمَا الشَّجَرَةِ وَاَقُلْ لَّكُمَآ اِنَّ الشَّيْطٰنَ لَكُمَا عَدُوٌّ مُّبِيْنٌ٢٢
Fa dallāhumā bigurūr(in), falammā żāqasy-syajarata badat lahumā sau'ātuhumā wa ṭafiqā yakhṣifāni ‘alaihimā miw waraqil-jannah(ti), wa nādāhumā rabbuhumā alam anhakumā ‘an tilkumasy-syajarati wa aqul lakumā innasy-syaiṭāna lakumā ‘aduwwum mubīn(un).
[22]
चुनाँचे उसने उन दोनों को धोखे से नीचे उतार लिया। फिर जब उन दोनों ने उस वृक्ष को चखा, तो उनके लिए उनके गुप्तांग प्रकट हो गए और दोनों अपने आपपर जन्नत के पत्ते चिपकाने लगे। और उन दोनों को उनके पालनहार ने आवाज़ दी : क्या मैंने तुम दोनों को इस वृक्ष से रोका नहीं था और तुम दोनों से नहीं कहा था कि निःसंदेह शैतान तुम दोनों का खुला शत्रु है?
قَالَا رَبَّنَا ظَلَمْنَآ اَنْفُسَنَا وَاِنْ لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُوْنَنَّ مِنَ الْخٰسِرِيْنَ٢٣
Qālā rabbanā ẓalamnā anfusanā wa illam tagfir lanā wa tarḥamnā lanakūnanna minal-khāsirīn(a).
[23]
दोनों ने कहा : ऐ हमारे पालनहार! हमने अपने आपपर अत्याचार किया है। और यदि तूने हमें क्षमा न किया तथा हमपर दया न की, तो निश्चय हम अवश्य घाटा उठाने वालों में से हो जाएँगे।7
7. अर्थात आदम तथा ह़व्वा ने अपने पाप के लिए अल्लाह से क्षमा माँग ली। शैतान के समान अभिमान नहीं किया।
قَالَ اهْبِطُوْا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ۚوَلَكُمْ فِى الْاَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَّمَتَاعٌ اِلٰى حِيْنٍ٢٤
Qālahbiṭū ba‘ḍukum liba‘ḍin ‘aduww(un), wa lakum fil-arḍi mustaqarruw wa matā‘un ilā ḥīn(in).
[24]
(अल्लाह ने) कहा : उतर जाओ। तुम एक-दूसरे के शत्रु हो और तुम्हारे लिए धरती में एक अवधि तक रहने का स्थान और कुछ जीवन-सामग्री है।
قَالَ فِيْهَا تَحْيَوْنَ وَفِيْهَا تَمُوْتُوْنَ وَمِنْهَا تُخْرَجُوْنَ ࣖ٢٥
Qāla fīhā taḥyauna wa fīhā tamūtūna wa minhā tukhrajūn(a).
[25]
उसने कहा : तुम उसी में जीवित रहोगे और उसी में मरोगे और उसी से निकाले जाओगे।
يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ قَدْ اَنْزَلْنَا عَلَيْكُمْ لِبَاسًا يُّوَارِيْ سَوْءٰتِكُمْ وَرِيْشًاۗ وَلِبَاسُ التَّقْوٰى ذٰلِكَ خَيْرٌۗ ذٰلِكَ مِنْ اٰيٰتِ اللّٰهِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُوْنَ٢٦
Yā banī ādama qad anzalnā ‘alaikum libāsay yuwārī sau'ātikum wa rīsyā(n), wa libāsut-taqwā żālika khair(un), żālika min āyātillāhi la‘allahum yażżakkarūn(a).
[26]
ऐ आदम की संतान! निश्चय हमने तुमपर वस्त्र उतारा है, जो तुम्हारे गुप्तांगों को छिपाता है और शोभा भी है। और तक़वा (अल्लाह की आज्ञाकारिता) का वस्त्र सबसे अच्छा है। यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें।8
8. तथा उसके आज्ञाकारी एवं कृतज्ञ बनें।
يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ لَا يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطٰنُ كَمَآ اَخْرَجَ اَبَوَيْكُمْ مِّنَ الْجَنَّةِ يَنْزِعُ عَنْهُمَا لِبَاسَهُمَا لِيُرِيَهُمَا سَوْءٰتِهِمَا ۗاِنَّهٗ يَرٰىكُمْ هُوَ وَقَبِيْلُهٗ مِنْ حَيْثُ لَا تَرَوْنَهُمْۗ اِنَّا جَعَلْنَا الشَّيٰطِيْنَ اَوْلِيَاۤءَ لِلَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ٢٧
Yā banī ādama lā yaftinannakumusy-syaiṭānu kamā akhraja abawaikum minal-jannati yanzi‘u ‘anhumā libāsahumā liyuriyahumā sau'ātihimā, innahū yarākum huwa wa qabīluhū min ḥaiṡu lā taraunahum, innā ja‘alnasy-syayāṭīna auliyā'a lil-lażīna lā yu'minūn(a).
[27]
ऐ आदम की संतान! ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें लुभाए, जैसे उसने तुम्हारे माता-पिता को जन्नत से निकाल दिया; वह दोनों के वस्त्र उतारता था, ताकि दोनों को उनके गुप्तांग दिखाए। निःसंदेह वह तथा उसकी जाति, तुम्हें वहाँ से देखते हैं, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते। निःसंदेह हमने शैतानों को उन लोगों का मित्र बनाया है, जो ईमान नहीं रखते।
وَاِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً قَالُوْا وَجَدْنَا عَلَيْهَآ اٰبَاۤءَنَا وَاللّٰهُ اَمَرَنَا بِهَاۗ قُلْ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَأْمُرُ بِالْفَحْشَاۤءِۗ اَتَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ٢٨
Wa iżā fa‘alū fāḥisyatan qālū wajadnā ‘alaihā ābā'anā wallāhu amaranā bihā, qul innallāha lā ya'muru bil-faḥsyā'(i), ataqūlūna ‘alallāhi mā lā ta‘lamūn(a).
[28]
तथा जब वे कोई निर्लज्जता का काम करते हैं, तो कहते हैं कि हमने अपने पूर्वजों को कि इसी (रीति) पर पाया तथा अल्लाह ने हमें इसका आदेश दिया है। (ऐ नबी!) आप उनसे कह दें : निःसंदेह अल्लाह निर्लज्जता का आदेश नहीं देता। क्या तुम अल्लाह पर ऐसी बात का आरोप धरते हो, जो तुम नहीं जानते?
قُلْ اَمَرَ رَبِّيْ بِالْقِسْطِۗ وَاَقِيْمُوْا وُجُوْهَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَّادْعُوْهُ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ەۗ كَمَا بَدَاَكُمْ تَعُوْدُوْنَۗ٢٩
Qul amara rabbī bil-qisṭ(i), wa aqīmū wujūhakum ‘inda kulli masjidiw wad‘ūhu mukhliṣīna lahud-dīn(a), kamā bada'akum ta‘ūdūn(a).
[29]
आप कह दें : मेरे पालनहार ने न्याय का आदेश दिया है। तथा प्रत्येक नमाज़ के समय अपने चेहरे को सीधा रखो, और उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए उसे पुकारो। जिस तरह उसने तुम्हें पहली बार पैदा किया, उसी तरह वह तुम्हें दोबारा पैदा करेगा।9
9. इस आयत में सत्य धर्म के तीन मूल नियम बताए गए हैं : कर्म में संतुलन, इबादत में अल्लाह की ओर ध्यान तथा धर्म में विशुद्धता तथा एक अल्लाह की इबादत करना।
فَرِيْقًا هَدٰى وَفَرِيْقًا حَقَّ عَلَيْهِمُ الضَّلٰلَةُ ۗاِنَّهُمُ اتَّخَذُوا الشَّيٰطِيْنَ اَوْلِيَاۤءَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَيَحْسَبُوْنَ اَنَّهُمْ مُّهْتَدُوْنَ٣٠
Farīqan hadā wa farīqan ḥaqqa ‘alaihimuḍ-ḍalālah(tu), innahumuttakhażusy-syayāṭīna auliyā'a min dūnillāhi wa yaḥsabūna annahum muhtadūn(a).
[30]
एक समूह का उसने मार्गदर्शन किया और एक समूह पर गुमराही सिद्ध हो गई। निःसंदेह उन्होंने अल्लाह को छोड़कर शैतानों को दोस्त बना लिया और समझते हैं कि निश्चय वे सीधे मार्ग पर हैं।
۞ يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ خُذُوْا زِيْنَتَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَّكُلُوْا وَاشْرَبُوْا وَلَا تُسْرِفُوْاۚ اِنَّهٗ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِيْنَ ࣖ٣١
Yā banī ādama khużū zīnatakum ‘inda kulli masjidiw wa kulū wasyrabū wa lā tusrifū, innahū lā yuḥibbul-musrifīn(a).
[31]
ऐ आदम की संतान! प्रत्येक नमाज़ के समय अपनी शोभा धारण10 करो। तथा खाओ और पियो और हद से आगे न बढ़ो। निःसंदेह वह हद से आगे बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता।
10. क़ुरैश नग्न होकर काबा की परिक्रमा करते थे। इसी पर यह आयत उतरी।
قُلْ مَنْ حَرَّمَ زِيْنَةَ اللّٰهِ الَّتِيْٓ اَخْرَجَ لِعِبَادِهٖ وَالطَّيِّبٰتِ مِنَ الرِّزْقِۗ قُلْ هِيَ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا خَالِصَةً يَّوْمَ الْقِيٰمَةِۗ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الْاٰيٰتِ لِقَوْمٍ يَّعْلَمُوْنَ٣٢
Qul man ḥarrama zīnatallāhil-latī akhraja li‘ibādihī waṭ-ṭayyibāti minar-rizq(i), qul hiya lil-lażīna āmanū fil-ḥayātid-dun-yā khāliṣatay yaumal-qiyāmah(ti), każālika nufaṣṣilul-āyāti liqaumiy ya‘lamūn(a).
[32]
(ऐ नबी!) कह दें : किसने अल्लाह की उस शोभा को, जिसे उसने अपने बंदों के लिए पैदा किया है तथा खाने-पीने की पवित्र चीज़ों को हराम किया है?11 आप कह दें : ये चीज़ें सांसारिक जीवन में (भी) ईमान वालों के लिए हैं, जबकि क़ियामत के दिन केवल उन्हीं के लिए विशिष्ट12 होंगी। इसी तरह, हम निशानियों को उन लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करते हैं, जो जानते हैं।
11. इस आयत में संन्यास का खंडन किया गया है कि जीवन के सुखों तथा शोभाओं से लाभान्वित होना धर्म के विरुद्ध नहीं है। इन सबसे लाभान्वित होने ही में अल्लाह की प्रसन्नता है। नग्न रहना तथा सांसारिक सुखों से वंचित हो जाना सत्धर्म नहीं है। धर्म की यह शिक्षा है कि अपनी शोभाओं से सुसज्जित होकर अल्लाह की इबादत और उपासना करो। 12. एक बार नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से कहा : क्या तुम प्रसन्न नहीं हो कि संसार काफ़िरों के लिए है और परलोक हमारे लिए। (बुख़ारी : 2468, मुस्लिम : 1479)
قُلْ اِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالْاِثْمَ وَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَاَنْ تُشْرِكُوْا بِاللّٰهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهٖ سُلْطٰنًا وَّاَنْ تَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ٣٣
Qul innamā ḥarrama rabbiyal-fawāḥisya mā ẓahara minhā wa mā baṭana wal-iṡma wal-bagya bigairil-ḥaqqi wa an tusyrikū billāhi mā lam yunazzil bihī sulṭānaw wa an taqūlū ‘alallāhi mā lā ta‘lamūn(a).
[33]
(ऐ नबी!) आप कह दें कि मेरे पालनहार ने तो केवल खुले एवं छिपे अश्लील कर्मों को तथा पाप एवं नाहक़ अत्याचार को हराम किया है, तथा इस बात को कि तुम उसे अल्लाह का साझी बनाओ, जिस (के साझी होने) का कोई प्रमाण उसने नहीं उतारा है तथा यह कि तुम अल्लाह पर ऐसी बात कहो, जो तुम नहीं जानते।
وَلِكُلِّ اُمَّةٍ اَجَلٌۚ فَاِذَا جَاۤءَ اَجَلُهُمْ لَا يَسْتَأْخِرُوْنَ سَاعَةً وَّلَا يَسْتَقْدِمُوْنَ٣٤
Wa likulli ummatin ajal(un), fa iżā jā'a ajaluhum lā yasta'khirūna sā‘ataw wa lā yastaqdimūn(a).
[34]
प्रत्येक समुदाय का13 एक निर्धारित समय है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है, तो वे एक घड़ी न पीछे होते हैं और न आगे होते हैं।
13. अर्थात काफ़िर समुदाय की यातना के लिए।
يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ اِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ رُسُلٌ مِّنْكُمْ يَقُصُّوْنَ عَلَيْكُمْ اٰيٰتِيْۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ٣٥
Yā banī ādama immā ya'tiyannakum rusulum minkum yaquṣṣūna ‘alaikum āyātī, famanittaqā wa aṣlaḥa falā khaufun ‘alaihim wa lā hum yaḥzanūn(a).
[35]
ऐ आदम की संतान! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल आएँ, जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाएँ, तो जो कोई डरा और अपना सुधार कर लिया, तो उनके लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोक करेंगे।14
14. इस आयत में मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए समय-समय पर रसूलों के आने के बारे में सूचित किया गया है और बताय जा रहा है कि अब इसी नियमानुसार अंतिम रसूल मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आ गए हैं। अतः उनकी बात मान लो, अन्यथा इसका परिणाम स्वयं तुम्हारे सामने आ जाएगा।
وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَاسْتَكْبَرُوْا عَنْهَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ٣٦
Wal-lażīna każżabū bi'āyātinā wastakbarū ‘anhā ulā'ika aṣḥābun-nār(i), hum fīhā khālidūn(a).
[36]
तथा जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उन्हें मानने से अभिमान किया, वही लोग आग (जहन्नम) वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
فَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرٰى عَلَى اللّٰهِ كَذِبًا اَوْ كَذَّبَ بِاٰيٰتِهٖۗ اُولٰۤىِٕكَ يَنَالُهُمْ نَصِيْبُهُمْ مِّنَ الْكِتٰبِۗ حَتّٰٓى اِذَا جَاۤءَتْهُمْ رُسُلُنَا يَتَوَفَّوْنَهُمْۙ قَالُوْٓا اَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗقَالُوْا ضَلُّوْا عَنَّا وَشَهِدُوْا عَلٰٓى اَنْفُسِهِمْ اَنَّهُمْ كَانُوْا كٰفِرِيْنَ٣٧
Faman aẓlamu mimmaniftarā ‘alallāhi każiban au każżaba bi'āyātih(ī), ulā'ika yanāluhum naṣībuhum minal-kitāb(i), ḥattā iżā jā'athum rusulunā yatawaffaunahum, qālū aina mā kuntum tad‘ūna min dūnillāh(i), qālū ḍallū ‘annā wa syahidū ‘alā anfusihim annahum kānū kāfirīn(a).
[37]
फिर उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जो अल्लाह पर झूठा आरोप लगाए या उसकी आयतों को झुठलाए? ये वही लोग हैं, जिन्हें लिखे हुए में से उनका हिस्सा मिलता रहेगा। यहाँ तक कि जब उनके पास हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनका प्राण निकालने के लिए आएँगे, तो कहेंगे : कहाँ हैं वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते थे? वे कहेंगे : वे हमसे गुम हो गए। तथा वे अपने ख़िलाफ़ गवाही देंगे कि वे वास्तव में काफ़िर थे।
قَالَ ادْخُلُوْا فِيْٓ اُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِكُمْ مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ فِى النَّارِۙ كُلَّمَا دَخَلَتْ اُمَّةٌ لَّعَنَتْ اُخْتَهَا ۗحَتّٰٓى اِذَا ادَّارَكُوْا فِيْهَا جَمِيْعًا ۙقَالَتْ اُخْرٰىهُمْ لِاُوْلٰىهُمْ رَبَّنَا هٰٓؤُلَاۤءِ اَضَلُّوْنَا فَاٰتِهِمْ عَذَابًا ضِعْفًا مِّنَ النَّارِ ەۗ قَالَ لِكُلٍّ ضِعْفٌ وَّلٰكِنْ لَّا تَعْلَمُوْنَ٣٨
Qāladkhulū fī umamin qad khalat min qablikum minal-jinni wal-insi fin-nār(i), kullamā dakhalat ummatul la‘anat ukhtahā, ḥattā iżaddārakū fīhā jamī‘ā(n), qālat ukhrāhum li'ūlāhum rabbanā hā'ulā'i aḍallūnā fa ātihim ‘ażāban ḍi‘fam minan-nār(i), qāla likullin ḍi‘fuw wa lākil lā ta‘lamūn(a).
[38]
वह कहेगा : उन समूहों के साथ जो जिन्नों और इनसानों में से तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, आग में प्रवेश कर जाओ। जब भी कोई समूह प्रवेश करेगा, तो अपने साथ वाले समूह को लानत करेगा। यहाँ तक कि जब उसमें सभी एकत्र हो जाएँगे, तो उनमें से बाद में आने वाले लोग पहले आने वाले लोगों के बारे में कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! इन लोगों ने हमें गुमराह किया था। अतः इन्हें आग की दुगनी यातना दे! अल्लाह कहेगा : सभी के लिए दुगनी यातना है, परंतु तुम नहीं जानते।
وَقَالَتْ اُوْلٰىهُمْ لِاُخْرٰىهُمْ فَمَا كَانَ لَكُمْ عَلَيْنَا مِنْ فَضْلٍ فَذُوْقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْسِبُوْنَ ࣖ٣٩
Wa qālat ūlāhum li'ukhrāhum famā kāna lakum ‘alainā min faḍlin fa żūqul-‘ażāba bimā kuntum taksibūn(a).
[39]
तथा उनमें से पहला समूह अपने बाद के समूह से कहेगा : फिर तुम्हें हमपर कोई श्रेष्ठता15 नहीं है। अतः जो कुछ तुम कमाया करते थे उसके बदले में यातना का स्वाद चखो।
15. और हम और तुम यातना में बराबर हैं। आयत में इस तथ्य की ओर संकेत है कि कोई समुदाय कुपथ होता है तो वह स्वयं कुपथ नहीं होता, वह दूसरों को भी अपने कुचरित्र से कुपथ करता है। अतः सभी दुगनी यातना के अधिकारी हुए।
اِنَّ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَاسْتَكْبَرُوْا عَنْهَا لَا تُفَتَّحُ لَهُمْ اَبْوَابُ السَّمَاۤءِ وَلَا يَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ حَتّٰى يَلِجَ الْجَمَلُ فِيْ سَمِّ الْخِيَاطِ ۗ وَكَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُجْرِمِيْنَ٤٠
Innal-lażīna każżabū bi'āyātinā wastakbarū ‘anhā lā tufattaḥu lahum abwābus-samā'i wa lā yadkhulūnal-jannata ḥattā yalijal-jamalu fī sammil-khiyāṭ(i), wa każālika najzil-mujrimīn(a).
[40]
निःसंदेह जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उन्हें स्वीकार करने से अहंकार किया, उनके लिए न आकाश के द्वार खोले जाएँगे और न वे जन्नत में प्रवेश करेंगे, यहाँ तक16 कि ऊँट सुई के नाके में प्रवेश कर जाए और हम अपराधियों को इसी प्रकार बदला देते हैं।
16. अर्थात उनका स्वर्ग में प्रवेश असंभव है।
لَهُمْ مِّنْ جَهَنَّمَ مِهَادٌ وَّمِنْ فَوْقِهِمْ غَوَاشٍۗ وَكَذٰلِكَ نَجْزِى الظّٰلِمِيْنَ٤١
Lahum min jahannama mihāduw wa min fauqihim gawāsy(in), wa każālika najziẓ-ẓālimīn(a).
[41]
उनके लिए जहन्नम ही का बिछौना और उनके ऊपर का ओढ़ना होगा और हम अत्याचारियों को इसी तरह बदला17 देते हैं।
17. अर्थात उनके कुकर्मों तथा अत्याचारों का।
وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَا نُكَلِّفُ نَفْسًا اِلَّا وُسْعَهَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ٤٢
Wal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti lā nukallifu nafsan illā wus‘ahā, ulā'ika aṣḥābul-jannah(ti), hum fīhā khālidūn(a).
[42]
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए, हम किसी पर उसके सामर्थ्य से बढ़कर भार नहीं डालते, वही लोग जन्नत वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
وَنَزَعْنَا مَا فِيْ صُدُوْرِهِمْ مِّنْ غِلٍّ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهِمُ الْاَنْهٰرُۚ وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ هَدٰىنَا لِهٰذَاۗ وَمَا كُنَّا لِنَهْتَدِيَ لَوْلَآ اَنْ هَدٰىنَا اللّٰهُ ۚ لَقَدْ جَاۤءَتْ رُسُلُ رَبِّنَا بِالْحَقِّۗ وَنُوْدُوْٓا اَنْ تِلْكُمُ الْجَنَّةُ اُوْرِثْتُمُوْهَا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ٤٣
Wa naza‘nā mā fī ṣudūrihim min gillin tajrī min taḥtihimul-anhār(u), wa qālul-ḥamdu lillāhil-lażī hadānā lihāżā, wa mā kunnā linahtadiya lau lā an hadānallāh(u), laqad jā'at rusulu rabbinā bil-ḥaqq(i), wa nūdū an tilkumul-jannatu ūriṡtumūhā bimā kuntum ta‘malūn(a).
[43]
तथा उनके सीनों में जो भी द्वेष होगा, हम उसे निकाल देंगे।18 उनके नीचे से नहरें बहती होंगी। तथा वे कहेंगे : सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने इसके लिए हमारा मार्गदर्शन किया। और यदि अल्लाह हमारा मार्गदर्शन न किया होता, तो हम कभी भी मार्ग न पाते। निश्चय ही हमारे पालनहार के रसूल सत्य लेकर आए। तथा उन्हें पुकार कर कहा जाएगा : यही वह जन्नत है, जिसके वारिस तुम उसके कारण बनाए गए हो, जो तुम किया करते थे।
18. स्वर्गियों को सभी प्रकार की सुख-सुविधा के साथ यह भी बड़ी नेमत मिलेगी कि उनके दिलों का बैर निकाल दिया जाएगा, ताकि स्वर्ग में मित्र बनकर रहें। क्योंकि आपस के बैर से सब सुख किरकिरा हो जाता है।
وَنَادٰٓى اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ اَصْحٰبَ النَّارِ اَنْ قَدْ وَجَدْنَا مَا وَعَدَنَا رَبُّنَا حَقًّا فَهَلْ وَجَدْتُّمْ مَّا وَعَدَ رَبُّكُمْ حَقًّا ۗقَالُوْا نَعَمْۚ فَاَذَّنَ مُؤَذِّنٌۢ بَيْنَهُمْ اَنْ لَّعْنَةُ اللّٰهِ عَلَى الظّٰلِمِيْنَ٤٤
Wa nādā aṣḥābul-jannati aṣḥāban-nāri an qad wajadnā mā wa‘adanā rabbunā ḥaqqan fahal wajattum mā wa‘ada rabbukum ḥaqqā(n), qālū na‘am, fa ażżana mu'ażżinum bainahum al la‘natullāhi ‘alaẓ-ẓālimīn(a).
[44]
तथा स्वर्गवासी नरकवासियों को पुकारकर कहेंगे कि हमें, हमारे पालनहार ने जो वचन दिया था, उसे हमने सच पाया, तो क्या तुम्हारे पानलहार ने तुम्हें जो वचन दिया था, उसे तुमने सच पाया? वे कहेंगे कि हाँ! फिर उनके बीच एक पुकारने वाला पुकारेगा कि अत्याचारियों पर अल्लाह की लानत है।
اَلَّذِيْنَ يَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَيَبْغُوْنَهَا عِوَجًاۚ وَهُمْ بِالْاٰخِرَةِ كٰفِرُوْنَۘ٤٥
Al-lażīna yaṣuddūna ‘an sabīlillāhi wa yabgūnahā ‘iwajā(n), wa hum bil-ākhirati kāfirūn(a).
[45]
जो अल्लाह के मार्ग से रोकते हैं और उसमें टेढ़ापन ढूँढ़ते हैं तथा वे आख़िरत का इनकार करने वाले हैं।
وَبَيْنَهُمَا حِجَابٌۚ وَعَلَى الْاَعْرَافِ رِجَالٌ يَّعْرِفُوْنَ كُلًّا ۢ بِسِيْمٰىهُمْۚ وَنَادَوْا اَصْحٰبَ الْجَنَّةِ اَنْ سَلٰمٌ عَلَيْكُمْۗ لَمْ يَدْخُلُوْهَا وَهُمْ يَطْمَعُوْنَ٤٦
Wa bainahumā ḥijāb(un), wa ‘alal-a‘rāfi rijāluy ya‘rifūna kullam bisīmāhum, wa nādau aṣḥābal-jannati an salāmun ‘alaikum, lam yadkhulūhā wa hum yaṭma‘ūn(a).
[46]
और दोनों के बीच एक परदा होगा। और उसकी ऊँचाइयों (आराफ़)19 पर कुछ आदमी होंगे, जो सभी को उनके लक्षणों से पहचानें गे। और वे जन्नत वालों को पुकारकर कहेंगे : तुमपर सलाम हो। वे उसमें दाखिल न हुए होंगे, जबकि उसकी आशा रखते होंगे।
19. आराफ़ नरक तथा स्वर्ग के मध्य एक दीवार है, जिसपर वे लोग रहेंगे जिनके सुकर्म और कुकर्म बराबर होंगे। और वे अल्लाह की दया से स्वर्ग में प्रवेश की आशा रखते होंगे। (इब्ने कसीर)
۞ وَاِذَا صُرِفَتْ اَبْصَارُهُمْ تِلْقَاۤءَ اَصْحٰبِ النَّارِۙ قَالُوْا رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا مَعَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ ࣖ٤٧
Wa iżā ṣurifat abṣāruhum tilqā'a aṣḥābin-nāri qālū rabbanā lā taj‘alnā ma‘al-qaumiẓ-ẓālimīn(a).
[47]
और जब उनकी आँखें जहन्नम वालों की ओर फेरी जाएँगी, तो कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमें अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।
وَنَادٰٓى اَصْحٰبُ الْاَعْرَافِ رِجَالًا يَّعْرِفُوْنَهُمْ بِسِيْمٰىهُمْ قَالُوْا مَآ اَغْنٰى عَنْكُمْ جَمْعُكُمْ وَمَا كُنْتُمْ تَسْتَكْبِرُوْنَ٤٨
Wa nādā aṣḥābul-a‘rāfi rijālay ya‘rifūnahum bisīmāhum qālū mā agnā ‘ankum jam‘ukum wa mā kuntum tastakbirūn(a).
[48]
तथा आराफ़ (ऊँचाइयों) वाले कुछ लोगों को पुकारेंगे, जिन्हें वे उनके लक्षणों से पहचानते होंगे20, कहेंगे : तुम्हारे काम न तुम्हारे जत्थे आए और न जो तुम बड़े बनते थे।
20. जिनको संसार में पहचानते थे और याद दिलाएँगे कि जिसपर तुम्हें घमंड था आज तुम्हारे काम नहीं आया।
اَهٰٓؤُلَاۤءِ الَّذِيْنَ اَقْسَمْتُمْ لَا يَنَالُهُمُ اللّٰهُ بِرَحْمَةٍۗ اُدْخُلُوا الْجَنَّةَ لَا خَوْفٌ عَلَيْكُمْ وَلَآ اَنْتُمْ تَحْزَنُوْنَ٤٩
Ahā'ulā'il-lażīna aqsamtum lā yanāluhumullāhu biraḥmah(tin), udkhulul-jannata lā khaufun ‘alaikum wa lā antum taḥzanūn(a).
[49]
(और अल्लाह काफ़िरों को फटकारते हुए कहेगा :) क्या ये वही लोग हैं, जिनके बारे में तुमने क़सम खाई थी कि अल्लाह उन्हें कोई दया प्रदान नहीं करेगा? (तथा अल्लाह मोमिनों से कहेगा :) जन्नत में प्रवेश कर जाओ। न तुम्हें कोई डर है और न तुम्हें शोक होगा।
وَنَادٰٓى اَصْحٰبُ النَّارِ اَصْحٰبَ الْجَنَّةِ اَنْ اَفِيْضُوْا عَلَيْنَا مِنَ الْمَاۤءِ اَوْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ ۗقَالُوْٓا اِنَّ اللّٰهَ حَرَّمَهُمَا عَلَى الْكٰفِرِيْنَۙ٥٠
Wa nādā aṣḥābun-nāri aṣḥābal-jannati an afīḍū ‘alainā minal-mā'i au mimmā razaqakumullāh(u), qālū innallāha ḥarramahumā ‘alal-kāfirīn(a).
[50]
तथा जहन्नम वाले जन्नत वालों को पुकारेंगे कि हमपर कुछ पानी डाल दो, या उसमें से कुछ जो अल्लाह ने तुम्हें प्रदान किया है। वे कहेंगे : निःसंदेह अल्लाह ने ये दोनों चीज़ें काफ़िरों पर हराम कर दी हैं।
الَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا دِيْنَهُمْ لَهْوًا وَّلَعِبًا وَّغَرَّتْهُمُ الْحَيٰوةُ الدُّنْيَاۚ فَالْيَوْمَ نَنْسٰىهُمْ كَمَا نَسُوْا لِقَاۤءَ يَوْمِهِمْ هٰذَاۙ وَمَا كَانُوْا بِاٰيٰتِنَا يَجْحَدُوْنَ٥١
Al-lażīnattakhażū dīnahum lahwaw wa la‘ibaw wa garrathumul-ḥayātud-dun-yā, fal-yauma nansāhum kamā nasū liqā'a yaumihim hāżā, wa mā kānū bi'āyātinā yajḥadūn(a).
[51]
जिन्होंने अपने धर्म को तमाशा और खेल बना लिया तथा उन्हें सांसारिक जीवन ने धोखे में डाल रखा था। अतः आज हम उन्हें वैसे ही भुला देंगे, जैसे वे आज के दिन की मुलाकात को भूल गए21 और जैसे वे हमारे प्रमाणों का इनकार किया करते थे।
21. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : प्रलय के दिन अल्लाह ऐसे बंदों से कहेगा : क्या मैंने तुम्हें बीवी-बच्चे नहीं दिए, आदर-मान नहीं दिया? क्या ऊँट-घोड़े तेरे अधीन नहीं किए, क्या तू मुखिया बनकर चुंगी नहीं लेता था? वह कहेगा : ऐ अल्लाह! सब सह़ीह़ है। अल्लाह प्रश्न करेगा : क्या मुझसे मिलने की आशा रखता था? वह कहेगा : नहीं। अल्लाह कहेगा : जैसे तू मुझे भूला रहा, आज मैं तुझे भूल जाता हूँ। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2968)
وَلَقَدْ جِئْنٰهُمْ بِكِتٰبٍ فَصَّلْنٰهُ عَلٰى عِلْمٍ هُدًى وَّرَحْمَةً لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ٥٢
Wa laqad ji'nāhum bikitābin faṣṣalnāhu ‘alā ‘ilmin hudaw wa raḥmatal liqaumiy yu'minūn(a).
[52]
निःसंदेह हम उनके पास एक ऐसी पुस्तक लाए हैं, जिसे हमने ज्ञान के आधार पर सविस्तार बयान कर दिया है, उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दया बनाकर, जो ईमान रखते हैं।
هَلْ يَنْظُرُوْنَ اِلَّا تَأْوِيْلَهٗۗ يَوْمَ يَأْتِيْ تَأْوِيْلُهٗ يَقُوْلُ الَّذِيْنَ نَسُوْهُ مِنْ قَبْلُ قَدْ جَاۤءَتْ رُسُلُ رَبِّنَا بِالْحَقِّۚ فَهَلْ لَّنَا مِنْ شُفَعَاۤءَ فَيَشْفَعُوْا لَنَآ اَوْ نُرَدُّ فَنَعْمَلَ غَيْرَ الَّذِيْ كُنَّا نَعْمَلُۗ قَدْ خَسِرُوْٓا اَنْفُسَهُمْ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ࣖ٥٣
Hal yanẓurūna illā ta'wīlah(ū), yauma ya'tī ta'wīluhū yaqūlul-lażīna nasūhu min qablu qad jā'at rusulu rabbinā bil-ḥaqq(i), fahal lanā min syufa‘ā'a fa yasyfa‘ū lanā au nuraddu fa na‘mala gairal-lażī kunnā na‘mal(u), qad khasirū anfusahum wa ḍalla ‘anhum mā kānū yaftarūn(a).
[53]
वे इसके परिणाम के सिवा किस चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हैं? जिस दिन इसका परिणाम आ पहुँचेगा, तो वे लोग, जिन्होंने इससे पहले इसे भुला दिया था, कहेंगे कि निश्चय हमारे पालनहार के रसूल सच लेकर आए। तो क्या हमारे लिए कोई सिफ़ारिशी हैं कि वे हमारे लिए सिफ़ारिश करें? या हमें वापस भेज दिया जाए, तो जो कुछ हम करते थे उसके विपरीत कार्य करें? निःसंदेह उन्होंने स्वयं को घाटे में डाल दिया और उनसे वह गुम हो गया, जो वे झूठ गढ़ा करते थे।
اِنَّ رَبَّكُمُ اللّٰهُ الَّذِيْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ فِيْ سِتَّةِ اَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوٰى عَلَى الْعَرْشِۗ يُغْشِى الَّيْلَ النَّهَارَ يَطْلُبُهٗ حَثِيْثًاۙ وَّالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ وَالنُّجُوْمَ مُسَخَّرٰتٍۢ بِاَمْرِهٖٓ ۙاَلَا لَهُ الْخَلْقُ وَالْاَمْرُۗ تَبٰرَكَ اللّٰهُ رَبُّ الْعٰلَمِيْنَ٥٤
Inna rabbakumullāhul-lażī khalaqas-samāwāti wal-arḍa fī sittati ayyāmin ṡummastawā ‘alal-‘arsy(i), yugsyil-lailan-nahāra yaṭlubuhū ḥaṡīṡā(n), wasy-syamsa wal-qamara wan-nujūma musakhkharātim bi'amrih(ī), alā lahul-khalqu wal-amr(u), tabārakallāhu rabbul-‘ālamīn(a).
[54]
निःसंदेह तुम्हारा पालनहार वह अल्लाह है, जिसने आकाशों तथा धरती को छह दिनों22 में बनाया। फिर अर्श (सिंहासन) पर बुलंद हुआ। वह रात से दिन को ढाँप देता है, जो उसके पीछे दौड़ता हुआ चला आता है। तथा सूर्य और चाँद और तारे (बनाए), इस हाल में कि वे उसके आदेश के अधीन किए हुए हैं। सुन लो! सृष्टि करना और आदेश देना उसी का काम23 है। बहुत बरकत वाला है अल्लाह, जो सारे संसारों का पालनहार है।
22. ये छह दिन शनिवार, रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार हैं। पहले दो दिन में धरती को, फिर आकाश को बनाया, फिर आकाश को दो दिन में बराबर किया, फिर धरती को फैलाया और उसमें पर्वत, पानी और उपज की व्यवस्था दो दिन में की। इस प्रकार यह कुल छह दिन हुए। (देखिए सूरतुस-सजदह, आयत : 9-10) 23. अर्थात इस विश्व की व्यवस्था का अधिकार उसके सिवा किसी को नहीं है।
اُدْعُوْا رَبَّكُمْ تَضَرُّعًا وَّخُفْيَةً ۗاِنَّهٗ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِيْنَۚ٥٥
Ud‘ū rabbakum taḍarru‘aw wa khufūyah(tan), innahū lā yuḥibbul-mu‘tadīn(a).
[55]
तुम अपने पालनहर को गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके पुकारो। निःसंदेह वह हद से बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता।
وَلَا تُفْسِدُوْا فِى الْاَرْضِ بَعْدَ اِصْلَاحِهَا وَادْعُوْهُ خَوْفًا وَّطَمَعًاۗ اِنَّ رَحْمَتَ اللّٰهِ قَرِيْبٌ مِّنَ الْمُحْسِنِيْنَ٥٦
Wa lā tufsidū fil-arḍi ba‘da iṣlāḥihā wad‘ūhu khaufaw wa ṭama‘ā(n), inna raḥmatallāhi qarībum minal-muḥsinīn(a).
[56]
तथा धरती में उसके सुधार के पश्चात्24 बिगाड़ न पैदा करो, और उसे भय और लोभ के साथ25 पुकारो। निःसंदेह अल्लाह की दया अच्छे कर्म करने वालों के क़रीब है।
24. अर्थात सत्धर्म और रसूलों द्वारा सुधार किए जाने के पश्चात। 25. अर्थात पापाचार से डरते और उस की दया की आशा रखते हुए।
وَهُوَ الَّذِيْ يُرْسِلُ الرِّيٰحَ بُشْرًاۢ بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهٖۗ حَتّٰٓى اِذَآ اَقَلَّتْ سَحَابًا ثِقَالًا سُقْنٰهُ لِبَلَدٍ مَّيِّتٍ فَاَنْزَلْنَا بِهِ الْمَاۤءَ فَاَخْرَجْنَا بِهٖ مِنْ كُلِّ الثَّمَرٰتِۗ كَذٰلِكَ نُخْرِجُ الْمَوْتٰى لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ٥٧
Wa huwal-lażī yursilur-riyāḥa busyram baina yadai raḥmatih(ī), ḥattā iżā aqallat saḥāban ṡiqālan suqnāhu libaladim mayyitin fa anzalnā bihil-mā'a fa akhrajnā bihī min kulliṡ-ṡamarāt(i), każālika nukhrijul-mautā la‘allakum tażakkarūn(a).
[57]
और वही है, जो अपनी दया (वर्षा) से पहले हवाओं को (वर्षा) की शुभ सूचना देने के लिए भेजता है। यहाँ तक कि जब वे भारी बादल
उठाती हैं, तो हम उसे एक मृत शहर की ओर ले जाते हैं। फिर हम उससे पानी उतारते हैं, फिर उसके साथ सभी प्रकार के कुछ फल पैदा करते हैं। इसी तरह हम मरे हुए लोगों को निकालेंगे। ताकि तुम उपदेश ग्रहण करो।
وَالْبَلَدُ الطَّيِّبُ يَخْرُجُ نَبَاتُهٗ بِاِذْنِ رَبِّهٖۚ وَالَّذِيْ خَبُثَ لَا يَخْرُجُ اِلَّا نَكِدًاۗ كَذٰلِكَ نُصَرِّفُ الْاٰيٰتِ لِقَوْمٍ يَّشْكُرُوْنَ ࣖ٥٨
Wal-baladuṭ-ṭayyibu yakhruju nabātuhū bi'iżni rabbih(ī), wal-lażī khabuṡa lā yakhruju illā nakidā(n), każālika nuṣarriful-āyāti liqaumiy yasykurūn(a).
[58]
और अच्छी भूमि के पौधे उसके रब के आदेश से (भरपूर) निकलते हैं, और जो (भूमि) ख़राब है उससे आधी-अधूरी पैदावार के सिवा कुछ नहीं निकलता। इसी प्रकार हम निशानियों26 को उन लोगों के लिए फेर-फेरकर बयान करते हैं, जो शुक्र अदा करते हैं।
26. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : मुझे अल्लाह ने जिस मार्गदर्शन और ज्ञान के साथ भेजा है, वह उस वर्षा के समान है, जो किसी भूमि में हुई। तो उसका कुछ भाग अच्छा था जिसने पानी लिया और उससे बहुत सी घास और चारा उगाया। और कुछ कड़ा था जिसने पानी रोक लिया, तो लोगों को लाभ हुआ और उससे पिया और सींचा। और कुछ चिकना था, जिसने न पानी रोका न घास उपजाई। तो यही उसकी दशा है जिसने अल्लाह के धर्म को समझा और उसे सीखा तथा सिखाया। और उसकी जिस ने उसपर ध्यान ही नहीं दिया और न अल्लाह के मार्गदर्शन को स्वीकार किया, जिसके साथ मुझे भेजा गया है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 79)
لَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا اِلٰى قَوْمِهٖ فَقَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗۗ اِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ٥٩
Laqad arsalnā nūḥan ilā qaumihī fa qāla yā qaumi‘budullāha mā lakum min ilāhin gairuh(ū), innī akhāfu ‘alaikum ‘ażāba yaumin ‘aẓīm(in).
[59]
निःसंदेह हमने नूह़27 को उसकी जाति की ओर भेजा, तो उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। निःसंदेह मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।
27. बताया जाता है कि नूह़ अलैहिस्सलाम प्रथम मनुष्य आदम (अलैहिस्स्लाम) के दसवें वंश में थे। उनके कुछ पहले तक लोग इस्लाम पर चले आ रहे थे। फिर अपने धर्म से फिर गए और अपने पुनीत पूर्वजों की मूर्तियाँ बनाकर पूजने लगे। तब अल्लाह ने नूह़ को भेजा। किंतु कुछ के सिवा किसी ने उनकी बात नहीं मानी। अंततः सब डुबो दिए गए। फिर नूह़ के तीन पुत्रों से मानव वंश चला। इसीलिए उनको दूसरा आदम भी कहा जाता है। (देखिए : सूरत नूह़, आयत : 71)
قَالَ الْمَلَاُ مِنْ قَوْمِهٖٓ اِنَّا لَنَرٰىكَ فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ٦٠
Qālal mala'u min qaumihī innā lanarāka fī ḍalālim mubīn(in).
[60]
उसकी जाति के प्रमुखों ने कहा : निःसंदेह हम निश्चय तुझे खुली गुमराही में देख रहे हैं।
قَالَ يٰقَوْمِ لَيْسَ بِيْ ضَلٰلَةٌ وَّلٰكِنِّيْ رَسُوْلٌ مِّنْ رَّبِّ الْعٰلَمِيْنَ٦١
Qāla yā qaumi laisa bī ḍalālatuw wa lākinnī rasūlum mir rabbil-‘ālamīn(a).
[61]
उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मुझमें कोई गुमराही नहीं है, बल्कि मैं सारे संसारों के पालनहार की ओर से एक रसूल हूँ।
اُبَلِّغُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَاَنْصَحُ لَكُمْ وَاَعْلَمُ مِنَ اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ٦٢
Uballigukum risālāti rabbī wa anṣaḥu lakum wa a‘lamu minallāhi mā lā ta‘lamūn(a).
[62]
मैं तुम्हें अपने पालनहार के संदेश पहुँचाता हूँ और तुम्हारी भलाई चाहता हूँ और अल्लाह की ओर से वे बातें जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।
اَوَعَجِبْتُمْ اَنْ جَاۤءَكُمْ ذِكْرٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَلٰى رَجُلٍ مِّنْكُمْ لِيُنْذِرَكُمْ وَلِتَتَّقُوْا وَلَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ٦٣
Awa‘ajibtum an jā'akum żikrum mir rabbikum ‘alā rajulim minkum liyunżirakum wa litattaqū wa la‘allakum turḥamūn(a).
[63]
क्या तुम्हें इस पार आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हीं में से एक आदमी पर नसीहत आई, ताकि वह तुम्हें डराए और ताकि तुम बच जाओ और ताकि तुमपर दया की जाए?
فَكَذَّبُوْهُ فَاَنْجَيْنٰهُ وَالَّذِيْنَ مَعَهٗ فِى الْفُلْكِ وَاَغْرَقْنَا الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمًا عَمِيْنَ ࣖ٦٤
Fa każżabūhu fa anjaināhu wal-lażīna ma‘ahū fil-fulki wa agraqnal-lażīna każżabū bi'āyātinā, innahum kānū qauman ‘amīn(a).
[64]
फिर उन्होंने उसे झुठला दिया, तो हमने उसे और उन लोगों को, जो नाव में उसके साथ थे, बचा लिया और उन लोगों को डुबो दिया, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया। निश्चय ही वे अंधे लोग थे।
۞ وَاِلٰى عَادٍ اَخَاهُمْ هُوْدًاۗ قَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗۗ اَفَلَا تَتَّقُوْنَ٦٥
Wa ilā ‘ādin akhāḥum hūdā(n), qāla yā qaumi‘budullāha mā lakum min ilāhin gairuh(ū), afalā tattaqūn(a).
[65]
और 'आद'28 (जाति) की ओर उनके भाई हूद को (भेजा)। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तो क्या तुम नहीं डरते?
28. नूह़ की जाति के पश्चात अरब में 'आद' जाति का उत्थान हुआ। जिसका निवास स्थान अह़क़ाफ़ का क्षेत्र था। जो ह़िजाज तथा यमामा के बीच स्थित है। उनकी आबादियाँ उमान से ह़ज़रमौत और इराक़ तक फैली हुई थीं।
قَالَ الْمَلَاُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖٓ اِنَّا لَنَرٰىكَ فِيْ سَفَاهَةٍ وَّاِنَّا لَنَظُنُّكَ مِنَ الْكٰذِبِيْنَ٦٦
Qālal-mala'ul-lażīna kafarū min qaumihī innā lanarāka fī safāhatiw wa innā lanaẓunnuka minal-kāżibīn(a).
[66]
उसकी जाति में से उन सरदारों ने, जिन्होंने कुफ़्र किया, कहा : निःसंदेह हम निश्चय तुझे एक प्रकार की मूर्खता में (पीड़ित) देख रहे हैं और निःसंदेह हम निश्चय तुझे झूठे लोगों में से समझते हैं।
قَالَ يٰقَوْمِ لَيْسَ بِيْ سَفَاهَةٌ وَّلٰكِنِّيْ رَسُوْلٌ مِّنْ رَّبِّ الْعٰلَمِيْنَ٦٧
Qāla yā qaumi laisa bī safāhatuw wa lākinnī rasūlum mir rabbil-‘ālamīn(a).
[67]
उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मुझमें कोई मूर्खता नहीं है, बल्कि मैं सारे संसारों के पालनहार की ओर से एक रसूल हूँ।
اُبَلِّغُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَاَنَا۠ لَكُمْ نَاصِحٌ اَمِيْنٌ٦٨
Uballigukum risālāti rabbī wa ana lakum nāṣiḥun amīn(un).
[68]
मैं तुम्हें अपने पालनहार के संदेश पहुँचाता हूँ और मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार हितैषी हूँ।
اَوَعَجِبْتُمْ اَنْ جَاۤءَكُمْ ذِكْرٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَلٰى رَجُلٍ مِّنْكُمْ لِيُنْذِرَكُمْۗ وَاذْكُرُوْٓا اِذْ جَعَلَكُمْ خُلَفَاۤءَ مِنْۢ بَعْدِ قَوْمِ نُوْحٍ وَّزَادَكُمْ فِى الْخَلْقِ بَصْۣطَةً ۚفَاذْكُرُوْٓا اٰلَاۤءَ اللّٰهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ٦٩
Awa‘ajibtum an jā'akum żikrum mir rabbikum ‘alā rajulim minkum liyunżirakum, ważkurū iż ja‘alakum khulafā'a mim ba‘di qaumi nūḥiw wa zādakum fil-khalqi basṭah(tan), fażkurū ālā'allāhi la‘allakum tufliḥūn(a).
[69]
क्या तुम्हें इस पार आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हीं में से एक आदमी पर नसीहत आई, ताकि वह तुम्हें डराए तथा याद करो, जब उसने तुम्हें नूह़ की जाति के बाद उत्तराधिकारी बनाया और तुम्हें डील-डौल में भारी-भरकम बनाया। अतः अल्लाह की नेमतों को याद29 करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
29. अर्थात उसके आज्ञाकारी तथा कृतज्ञ बनो।
قَالُوْٓا اَجِئْتَنَا لِنَعْبُدَ اللّٰهَ وَحْدَهٗ وَنَذَرَ مَا كَانَ يَعْبُدُ اٰبَاۤؤُنَاۚ فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ٧٠
Qālū aji'tanā lina‘budallāha waḥdahū wa nażara mā kāna ya‘budu ābā'unā, fa'tinā bimā ta‘idunā in kunta minaṣ ṣādiqīn(a).
[70]
उन्होंने कहा : क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हम अकेले अल्लाह की इबादत करें और उन्हें छोड़ दें जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते थे? तो जिसकी तू हमें धमकी देता है, वह हमारे ऊपर ले आ, यदि तू सच्चों में से है।
قَالَ قَدْ وَقَعَ عَلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ رِجْسٌ وَّغَضَبٌۗ اَتُجَادِلُوْنَنِيْ فِيْٓ اَسْمَاۤءٍ سَمَّيْتُمُوْهَآ اَنْتُمْ وَاٰبَاۤؤُكُمْ مَّا نَزَّلَ اللّٰهُ بِهَا مِنْ سُلْطٰنٍۗ فَانْتَظِرُوْٓا اِنِّيْ مَعَكُمْ مِّنَ الْمُنْتَظِرِيْنَ٧١
Qāla qad waqa‘a ‘alaikum mir rabbikum rijsuw wa gaḍab(un), atujādilūnanī fī asmā'in sammaitumūhā antum wa ābā'ukum mā nazzalallāhu bihā min sulṭān(in), fantaẓirū innī ma‘akum minal-muntaẓirīn(a).
[71]
उसने कहा : निश्चय तुमपर तुम्हारे पालनहार की ओर से यातना और प्रकोप आ पड़ा है। क्या तुम मुझसे उन नामों के विषय में झगड़ते हो, जो तुमने तथा तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं, जिनका अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा है? तो तुम प्रतीक्षा करो, निःसंदेह मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।
فَاَنْجَيْنٰهُ وَالَّذِيْنَ مَعَهٗ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَقَطَعْنَا دَابِرَ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَمَا كَانُوْا مُؤْمِنِيْنَ ࣖ٧٢
Fa anjaināhu wal-lażīna ma‘ahū biraḥmatim minnā wa qaṭa‘nā dābiral-lażīna każżabū bi'āyātinā wa mā kānū mu'minīn(a).
[72]
अंततः हमने उसे और उन लोगों को जो उसके साथ थे, अपनी रहमत से बचा लिया तथा उन लोगों की जड़ काट दी, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और वे ईमान लाने वाले न थे।
وَاِلٰى ثَمُوْدَ اَخَاهُمْ صٰلِحًاۘ قَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗۗ قَدْ جَاۤءَتْكُمْ بَيِّنَةٌ مِّنْ رَّبِّكُمْۗ هٰذِهٖ نَاقَةُ اللّٰهِ لَكُمْ اٰيَةً فَذَرُوْهَا تَأْكُلْ فِيْٓ اَرْضِ اللّٰهِ وَلَا تَمَسُّوْهَا بِسُوْۤءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ٧٣
Wa ilā ṡamūda akhāhum ṣāliḥā(n), qāla yā qaumi‘budullāha mā lakum min ilāhin gairuh(ū), qad jā'atkum bayyinatum mir rabbikum, hāżihī nāqatullāhi lakum āyatan fa żarūhā ta'kul fī arḍillāhi wa lā tamassūhā bisū'in fa ya'khużakum ‘ażābun alīm(un).
[73]
और समूद30 की ओर उनके भाई सालेह़ को (भेजा)। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी31 के रूप में है। अतः इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाती फिरे और इसे बुरे इरादे से हाथ न लगाना, अन्यथा तुम्हें एक दुःखदायी यातना घेर लेगी।
30. समूद जाति अरब के उस क्षेत्र में रहती थी, जो ह़िजाज़ तथा शाम के बीच "वादिये क़ुर" तक चला गया है। जिसको आज "अल-उला" कहते हैं। इसी को दूसरे स्थान पर "अलहिज्र" भी कहा गया है। 31. समूद जाति ने अपने नबी सालेह़ अलैहिस्सलाम से यह माँग की थी कि पर्वत से एक ऊँटनी निकाल दें। और सालेह़ अलैहिस्सलाम की प्रार्थना से अल्लाह ने उनकी यह माँग पूरी कर दी। (इब्ने कसीर)
وَاذْكُرُوْٓا اِذْ جَعَلَكُمْ خُلَفَاۤءَ مِنْۢ بَعْدِ عَادٍ وَّبَوَّاَكُمْ فِى الْاَرْضِ تَتَّخِذُوْنَ مِنْ سُهُوْلِهَا قُصُوْرًا وَّتَنْحِتُوْنَ الْجِبَالَ بُيُوْتًا ۚفَاذْكُرُوْٓا اٰلَاۤءَ اللّٰهِ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ٧٤
Ważkurū iż ja‘alakum khulafā'a mim ba‘di ‘ādiw wa bawwa'akum fil-arḍi tattakhiżūna min suhūlihā quṣūraw wa tanḥitūnal-jibāla buyūtā(n), fażkurū ālā'allāhi wa lā ta‘ṡau fil-arḍi mufsidīn(a).
[74]
तथा याद करो जब उसने तुम्हें आद जाति के पश्चात् उत्तराधिकारी बनाया और तुम्हें धरती में बसाया, तुम उसके समतल भागों में भवन बनाते हो और पहाड़ों को घरों के रूप में तराशते हो। अतः अल्लाह की नेमतों को याद करो और धरती में बिगाड़ पैदा करते न फिरो।
قَالَ الْمَلَاُ الَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لِلَّذِيْنَ اسْتُضْعِفُوْا لِمَنْ اٰمَنَ مِنْهُمْ اَتَعْلَمُوْنَ اَنَّ صٰلِحًا مُّرْسَلٌ مِّنْ رَّبِّهٖۗ قَالُوْٓا اِنَّا بِمَآ اُرْسِلَ بِهٖ مُؤْمِنُوْنَ٧٥
Qālal-mala'ul-lażīnastakbarū min qaumihī lil-lażīnastuḍ‘ifū liman āmana minhum ata‘lamūna anna ṣāliḥam mursalum mir rabbih(ī), qālū innā bimā ursila bihī mu'minūn(a).
[75]
उसकी जाति के उन सरदारों ने जो बड़े बने हुए थे, उन लोगों से जो निर्बल समझे जाते थे, जो उनमें से ईमान लाए थे, कहा : क्या तुम जानते हो कि सचमुच सालेह़ अपने रब की ओर से भेजा हुआ है? उन्होंने कहा : निःसंदेह हम जो कुछ उसे देकर भेजा गया है उसपर ईमान लाने वाले हैं।
قَالَ الَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْٓا اِنَّا بِالَّذِيْٓ اٰمَنْتُمْ بِهٖ كٰفِرُوْنَ٧٦
Qālal-lażīnastakbarū innā bil-lażī āmantum bihī kāfirūn(a).
[76]
जो लोग बड़े बने हुए थे32, उन्होंने कहा : निःसंदेह हम उसका इनकार करने वाले हैं, जिसपर तुम ईमान लाए हो।
32. अर्तथात अपने सांसारिक सुखों के कारण अपने बड़े होने का गर्व था।
فَعَقَرُوا النَّاقَةَ وَعَتَوْا عَنْ اَمْرِ رَبِّهِمْ وَقَالُوْا يٰصٰلِحُ ائْتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ اِنْ كُنْتَ مِنَ الْمُرْسَلِيْنَ٧٧
Fa ‘aqarun-nāqata wa ‘atau ‘an amri rabbihim wa qālū yā ṣāliḥu'tinā bimā ta‘idunā in kunta minal-mursalīn(a).
[77]
फिर उन्होंने ऊँटनी की हत्या कर दी और अपने पालनहार की आज्ञा का उल्लंघन किया, और उन्होंने कहा : ऐ सालेह! तू हमें जिसकी धमकी देता है, वह हमपर ले आ, यदि तू रसूलों में से है।
فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِيْ دَارِهِمْ جٰثِمِيْنَ٧٨
Fa akhażathumur-rajfatu fa aṣbaḥū fī dārihim jāṡimīn(a).
[78]
तो उन्हें भूकंप ने पकड़ लिया, तो वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए।
فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسَالَةَ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْ وَلٰكِنْ لَّا تُحِبُّوْنَ النّٰصِحِيْنَ٧٩
Fa tawallā ‘anhum wa qāla yā qaumi laqad ablagtukum risālata rabbī wa naṣaḥtu lakum wa lākil lā tuḥibbūnan-nāṣiḥīn(a).
[79]
तो सालेह़ ने उनसे मुँह मोड़ लिया और कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मैंने तुम्हें अपने पालनहार का संदेश पहुँचा दिया और मैंने तुम्हारे लिए मंगलकामना की, लेकिन तुम शुभचिंतकों को पसंद नहीं करते।
وَلُوْطًا اِذْ قَالَ لِقَوْمِهٖٓ اَتَأْتُوْنَ الْفَاحِشَةَ مَا سَبَقَكُمْ بِهَا مِنْ اَحَدٍ مِّنَ الْعٰلَمِيْنَ٨٠
Wa lūṭan iż qāla liqaumihī ata'tūnal-fāḥisyata mā sabaqakum bihā min aḥadim minal-‘ālamīn(a).
[80]
तथा लूत33 को (भेजा), जब उसने अपनी जाति से कहा : क्या तुम ऐसी निर्लज्जता का कार्य करते हो, जिसे तुमसे पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया?
33. लूत अलैहिस्सलाम इबराहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। और वह जिस जाति के मार्गदर्शन के लिए भेजे गए थे, वह उस क्षेत्र में रहती थी जहाँ अब "मृत सागर" स्थित है। उसका नाम भाष्यकारों ने सदूम बताया है।
اِنَّكُمْ لَتَأْتُوْنَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّنْ دُوْنِ النِّسَاۤءِۗ بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُوْنَ٨١
Innakum lata'tūnar-rijāla syahwatam min dūnin-nisā'(i), bal antum qaumum musrifūn(a).
[81]
निःसंदेह तुम स्त्रियों को छोड़कर काम-वासना की पूर्ति के लिए पुरुषों के पास आते हो। बल्कि तुम सीमा का उल्लंघन34 करने वाले हो।
34. लूत अलैहिस्सलाम की जाति ने निर्लज्जता और बालमैथुन की कुरीति बनाई थी जो मनुष्य के स्वभाव के विरुद्ध था। आज रिसर्च से पता चला कि यह विभिन्न प्रकार के रोगों का कारण है, जिसमें विशेषकर "एड्स" के रोगों का वर्णन करते हैं। परंतु आज पश्चिमी देश दुबारा उस अंधकार युग की ओर जा रहे हैं और इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का नाम दे रखा है।
وَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهٖٓ اِلَّآ اَنْ قَالُوْٓا اَخْرِجُوْهُمْ مِّنْ قَرْيَتِكُمْۚ اِنَّهُمْ اُنَاسٌ يَّتَطَهَّرُوْنَ٨٢
Wa mā kāna jawāba qaumihī illā an qālū akhrijūhum min qaryatikum, innahum unāsuy yataṭahharūn(a).
[82]
और उसकी जाति का उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा : इन्हें अपनी बस्ती से बाहर निकालो। निःसंदेह ये ऐसे लोग हैं जो बड़े पाक बनते हैं।
فَاَنْجَيْنٰهُ وَاَهْلَهٗٓ اِلَّا امْرَاَتَهٗ كَانَتْ مِنَ الْغٰبِرِيْنَ٨٣
Fa anjaināhu wa ahlahū illamra'atahū kānat minal-gābirīn(a).
[83]
तो हमने उसे तथा उसके घर वालों को बचा लिया, उसकी पत्नी को छोड़कर, वह पीछे रहने वालों में से थी।
وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَّطَرًاۗ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِيْنَ ࣖ٨٤
Wa amṭarnā ‘alaihim maṭarā(n), fanẓur kaifa kāna ‘āqibatul-mujrimīn(a).
[84]
और हमने उनपर (पत्थरों की) भारी बारिश बरसाई। तो देखो अपराधियों का परिणाम कैसा हुआ?
وَاِلٰى مَدْيَنَ اَخَاهُمْ شُعَيْبًاۗ قَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗۗ قَدْ جَاۤءَتْكُمْ بَيِّنَةٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ فَاَوْفُوا الْكَيْلَ وَالْمِيْزَانَ وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ اَشْيَاۤءَهُمْ وَلَا تُفْسِدُوْا فِى الْاَرْضِ بَعْدَ اِصْلَاحِهَاۗ ذٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَۚ٨٥
Wa ilā madyana akhāhum syu‘aibā(n), qāla yā qaumi‘budullāha mā lakum min ilāhin gairuh(ū), qad jā'atkum bayyinatum mir rabbikum fa auful-kaila wal-mīzāna wa lā tabkhasun-nāsa asy-yā'ahum wa lā tufsidū fil-arḍi ba‘da iṣlāḥihā, żālikum khairul lakum in kuntum mu'minīn(a).
[85]
तथा मद्यन35 की ओर उनके भाई शुऐब को (भेजा)। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। अतः पूरा-पूरा नाप और तौलकर दो और लोगों की चीज़ों में कमी न करो। तथा धरती में उसके सुधार के पश्चात बिगाड़ न फैलाओ। यही तुम्हारे लिए बेहतर है, यदि तुम ईमानवाले हो।
35. मद्यन एक क़बीले का नाम था। और उसी के नाम पर एक नगर बस गया, जो ह़िजाज़ के उत्तर-पश्चिम तथा फ़लस्तीन के दक्षिण में लाल सागर और अक़्बा खाड़ी के किनारे पर था। ये लोग व्यापार करते थे। प्राचीन व्यापार राजपथ, लाल सागर के किनारे यमन से मक्का तथा यंबू' होते हुए सीरिया तक जाता था।
وَلَا تَقْعُدُوْا بِكُلِّ صِرَاطٍ تُوْعِدُوْنَ وَتَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ مَنْ اٰمَنَ بِهٖ وَتَبْغُوْنَهَا عِوَجًاۚ وَاذْكُرُوْٓا اِذْ كُنْتُمْ قَلِيْلًا فَكَثَّرَكُمْۖ وَانْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِيْنَ٨٦
Wa lā taq‘udū bikulli ṣirāṭin tū‘idūna wa taṣuddūna ‘an sabīlillāhi man āmana bihī wa tabgūnahā ‘iwajā(n), ważkurū iż kuntum qalīlan fa kaṡṡarakum, wanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-mufsidīn(a).
[86]
तथा प्रत्येक मार्ग पर न बैठो कि (लोगों को) धमकाते हो और उसको अल्लाह के रास्ते रोकते हो, जो उसपर ईमान लाए36, और उसमें टेढ़ापन खोजते हो। तथा याद करो जब तुम थोड़े थे, तो उसने तुम्हें अधिक कर दिया। तथा देखो बिगाड़ पैदा करने वालों का परिणाम कैसा हुआ?
36. जैसे मक्का वाले मक्का के बाहर से आने वालों को क़ुरआन सुनने से रोका करते थे। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जादूगर कहकर आपके पास जाने से रोकते थे। परंतु उनकी एक न चली और क़ुरआन लोगों के दिलों में उतरता और इस्लाम फैलता चला गया। इससे पता चलता है कि नबियों की शिक्षाओं के साथ उनकी जातियों ने एक-जैसा व्यवहार किया।
وَاِنْ كَانَ طَاۤىِٕفَةٌ مِّنْكُمْ اٰمَنُوْا بِالَّذِيْٓ اُرْسِلْتُ بِهٖ وَطَاۤىِٕفَةٌ لَّمْ يُؤْمِنُوْا فَاصْبِرُوْا حَتّٰى يَحْكُمَ اللّٰهُ بَيْنَنَاۚ وَهُوَ خَيْرُ الْحٰكِمِيْنَ ۔٨٧
Wa in kāna ṭā'ifatum minkum āmanū bil-lażī ursiltu bihī wa ṭā'ifatul lam tu'minū faṣbirū ḥattā yaḥkumallāhu bainanā, wa huwa khairul-ḥākimīn(a).
[87]
और यदि तुममें से एक समूह उसपर ईमान लाया है, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ और दूसरा समूह ईमान नहीं लाया, तो तुम धैर्य रखो, यहाँ तक कि अल्लाह हमारे बीच निर्णय कर दे और वह सब निर्णय करने वालों से बेहतर है।
۞ قَالَ الْمَلَاُ الَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لَنُخْرِجَنَّكَ يٰشُعَيْبُ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مَعَكَ مِنْ قَرْيَتِنَآ اَوْ لَتَعُوْدُنَّ فِيْ مِلَّتِنَاۗ قَالَ اَوَلَوْ كُنَّا كٰرِهِيْنَ٨٨
Qālal-mala'ul-lażīnastakbarū min qaumihī lanukhrijannaka yā syu‘aibu wal-lażīna āmanū ma‘aka min qaryatinā au lata‘ūdunna fī millatinā, qāla awalau kunnā kārihīn(a).
[88]
उसकी जाति के उन प्रमुखों ने कहा जो बड़े बने हुए थे कि ऐ शुऐब! हम तुझे तथा उन लोगों को जो तेरे साथ ईमान लाए हैं, अपने नगर से अवश्य ही निकाल देंगे, या हर हाल में तुम हमारे धर्म में वापस आओगे। (शुऐब ने) कहा : क्या अगरचे हम नापसंद करने वाले हों?
قَدِ افْتَرَيْنَا عَلَى اللّٰهِ كَذِبًا اِنْ عُدْنَا فِيْ مِلَّتِكُمْ بَعْدَ اِذْ نَجّٰىنَا اللّٰهُ مِنْهَاۗ وَمَا يَكُوْنُ لَنَآ اَنْ نَّعُوْدَ فِيْهَآ اِلَّآ اَنْ يَّشَاۤءَ اللّٰهُ رَبُّنَاۗ وَسِعَ رَبُّنَا كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًاۗ عَلَى اللّٰهِ تَوَكَّلْنَاۗ رَبَّنَا افْتَحْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ قَوْمِنَا بِالْحَقِّ وَاَنْتَ خَيْرُ الْفٰتِحِيْنَ٨٩
Qadiftarainā ‘alallāhi każiban in ‘udnā fī millatikum ba‘da iż najjānallāhu minhā, wa mā yakūnu lanā an na‘ūda fīhā illā ay yasyā'allāhu rabbunā, wasi‘a rabbunā kulla syai'in ‘ilmā(n), ‘alallāhi tawakkalnā, rabbanaftaḥ bainanā wa baina qauminā bil-ḥaqqi wa anta khairul-fātiḥīn(a).
[89]
निश्चय हमने अल्लाह पर झूठ गढ़ा यदि हम तुम्हारे धर्म में फिर आ जाएँ, इसके बाद कि अल्लाह ने हमें उससे बचा लिया। और हमारे लिए संभव नहीं कि हम उसमें फिर आ जाएँ, परंतु यह कि हमारा पालनहार अल्लाह ही ऐसा चाहे। हमारा पालनहार प्रत्येक वस्तु को अपने ज्ञान के घेरे में लिए हुए है। हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया। ऐ हमारे पालनहार! हमारे और हमारी जाति के बीच न्याय के साथ निर्णय कर दे। और तू सब निर्णय करने वालों से बेहतर है।
وَقَالَ الْمَلَاُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لَىِٕنِ اتَّبَعْتُمْ شُعَيْبًا اِنَّكُمْ اِذًا لَّخٰسِرُوْنَ٩٠
Wa qālal-mala'ul-lażīna kafarū min qaumihī la'inittaba‘tum syu‘aiban innakum iżal lakhāsirūn(a).
[90]
तथा उसकी जाति के काफ़िर प्रमुखों ने कहा कि यदि तुम शुऐब के पीछे चले, तो निःसंदेह तुम उस समय अवश्य घाटा उठाने वाले हो।
فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِيْ دَارِهِمْ جٰثِمِيْنَۙ٩١
Fa akhażathumur-rajfatu fa aṣbaḥū fī dārihim jāṡimīn(a).
[91]
तो उन्हें भूकंप ने पकड़ लिया, तो वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए।
الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَاَنْ لَّمْ يَغْنَوْا فِيْهَاۚ اَلَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَانُوْا هُمُ الْخٰسِرِيْنَ٩٢
Al-lażīna każżabū syu‘aiban ka'allam yagnau fīhā, al-lażīna każżabū syu‘aiban kānū humul-khāsirīn(a).
[92]
जिन लोगों ने शुऐब को झुठलाया (वे ऐसे हो गए कि) मानो कभी वे उन (घरों) में बसे ही न थे। जिन लोगों ने शुऐब को झुठलाया, वही लोग घाटा उठाने वाले थे।
فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْۚ فَكَيْفَ اٰسٰى عَلٰى قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ࣖ٩٣
Fa tawallā ‘anhum wa qāla yā qaumi laqad ablagtukum risālāti rabbī wa naṣaḥtu lakum, fa kaifa āsā ‘alā qaumin kāfirīn(a).
[93]
तो शुऐब उनसे विमुख हो गए और कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मैंने तुम्हें अपने पालनहार के संदेश पहुँचा दिए, तथा मैं तुम्हारा हितकारी रहा। तो फिर मैं काफ़िर जाति (के विनाश) पर कैसे शोक करूँ?
وَمَآ اَرْسَلْنَا فِيْ قَرْيَةٍ مِّنْ نَّبِيٍّ اِلَّآ اَخَذْنَآ اَهْلَهَا بِالْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ لَعَلَّهُمْ يَضَّرَّعُوْنَ٩٤
Wa mā arsalnā fī qaryatim min nabiyyin illā akhażnā ahlahā bil-ba'sā'i waḍ-ḍarrā'i la‘allahum yaḍḍarra‘ūn(a).
[94]
तथा हमने जिस बस्ती में भी कोई नबी भेजा, तो उसके वासियों को तंगी और कष्ट से ग्रस्त कर दिया ताकि वे गिड़गिड़ाएँ।37
37. आयत का भावार्थ यह है कि सभी नबी अपनी जाति में पैदा हुए। सब अकेले धर्म का प्रचार करने के लिए आए। और सबका उपदेश एक था कि अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। सबने सत्कर्म की प्रेर्णा दी, और कुकर्म के दुष्परिणाम से सावधान किया। सबका साथ निर्धनों तथा निर्बलों ने दिया। प्रमुखों और बड़ों ने उनका विरोध किया। नबियों का विरोध भी उन्हें धमकी तथा दुःख देकर किया गया। और सबका परिणाम भी एक प्रकार हुआ, अर्थात उनको अल्लाह की यातना ने घेर लिया। और यही सदा इस संसार में अल्लाह का नियम रहा है।
ثُمَّ بَدَّلْنَا مَكَانَ السَّيِّئَةِ الْحَسَنَةَ حَتّٰى عَفَوْا وَّقَالُوْا قَدْ مَسَّ اٰبَاۤءَنَا الضَّرَّاۤءُ وَالسَّرَّاۤءُ فَاَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ٩٥
Ṡumma baddalnā makānas-sayyi'atil-ḥasanata ḥattā ‘afau wa qālū qad massa ābā'anaḍ-ḍarrā'u was-sarrā'u fa akhażnāhum bagtataw wa hum lā yasy‘urūn(a).
[95]
फिर हमने उस खराब स्थिति को अच्छी स्थिति में बदल दिया, यहाँ तक कि वे (संख्या और धन में) बहुत बढ़ गए और उन्होंने कहा यह दुख और सुख हमारे बाप-दादा को भी पहुँचा था। तो हमने उन्हें अचानक इस हाल में पकड़ लिया कि वे सोचते न थे।
وَلَوْ اَنَّ اَهْلَ الْقُرٰٓى اٰمَنُوْا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَرَكٰتٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ وَلٰكِنْ كَذَّبُوْا فَاَخَذْنٰهُمْ بِمَا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ٩٦
Wa lau anna ahlal-qurā āmanū wattaqau lafataḥnā ‘alaihim barakātim minas-samā'i wal ardḍi wa lākin każżabū fa akhażnāhum bimā kānū yaksibūn(a).
[96]
और यदि इन बस्तियों के वासी ईमान ले आते और डरते, तो हम अवश्य ही उनपर आकाश और धरती की बरकतों के द्वार खोल देते, परन्तु उन्होंने झुठला दिया। अतः हमने उनकी करतूतों के कारण उन्हें पकड़ लिया।
اَفَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا بَيَاتًا وَّهُمْ نَاۤىِٕمُوْنَۗ٩٧
Afa amina ahlul-qurā ay ya'tiyahum ba'sunā bayātaw wa hum nā'imūn(a).
[97]
क्या फिर इन बस्तियों के वासी इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि उनपर हमारी यातना रात के समय आ जाए, जबकि वे सोए हुए हों?
اَوَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا ضُحًى وَّهُمْ يَلْعَبُوْنَ٩٨
Awa amina ahlul-qurā ay ya'tiyahum ba'sunā ḍuḥaw wa hum yal‘abūn(a).
[98]
और क्या नगर वासी इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि उनपर हमारी यातना दिन चढ़े आ जाए और वे खेल रहे हों?
اَفَاَمِنُوْا مَكْرَ اللّٰهِۚ فَلَا يَأْمَنُ مَكْرَ اللّٰهِ اِلَّا الْقَوْمُ الْخٰسِرُوْنَ ࣖ٩٩
Afa aminū makrallāh(i), falā ya'manu makrallāhi illal-qaumul khāsirūn(a).
[99]
तो क्या वे अल्लाह के गुप्त उपाय से निश्चिंत हो गए हैं? तो (याद रखो!) अल्लाह के गुप्त उपाय से वही लोग निश्चिंत होते हैं, जो घाटा उठाने वाले हैं।
اَوَلَمْ يَهْدِ لِلَّذِيْنَ يَرِثُوْنَ الْاَرْضَ مِنْۢ بَعْدِ اَهْلِهَآ اَنْ لَّوْ نَشَاۤءُ اَصَبْنٰهُمْ بِذُنُوْبِهِمْۚ وَنَطْبَعُ عَلٰى قُلُوْبِهِمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُوْنَ١٠٠
Awalam yahdi lil-lażīna yariṡūnal-arḍa mim ba‘di ahlihā allau nasyā'u aṣabnāhum biżunūbihim, wa naṭba‘u ‘alā qulūbihim fahum lā yasma‘ūn(a).
[100]
तो क्या उन लोगों के लिए यह तथ्य स्पष्ट नहीं हुआ, जो धरती के अगले वासियों के बाद उसके वारिस हुए कि यदि हम चाहें, तो उन्हें उनके पापों के कारण पकड़ लें और उनके दिलों पर मुहर लगा दें, फिर वे कोई बात न सुन सकें?
تِلْكَ الْقُرٰى نَقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ اَنْۢبَاۤىِٕهَاۚ وَلَقَدْ جَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِۚ فَمَا كَانُوْا لِيُؤْمِنُوْا بِمَا كَذَّبُوْا مِنْ قَبْلُۗ كَذٰلِكَ يَطْبَعُ اللّٰهُ عَلٰى قُلُوْبِ الْكٰفِرِيْنَ١٠١
Tilkal-qurā naquṣṣu ‘alaika min ambā'ihā, wa laqad jā'athum rusuluhum bil-bayyināt(i), famā kānū liyu'minū bimā każżabū min qabl(u), każālika yaṭba‘ullāhu ‘alā qulūbil-kāfirīn(a).
[101]
ये बस्तियाँ हैं, हम (ऐ नबी!) आपसे उनके कुछ वृत्तान्त सुना रहे हैं। निःसंदेह उनके पास उनके रसूल खुले प्रमाण लेकर आए, तो वे ऐसे न थे कि उस चीज़ पर ईमान ले आते, जिसे वे इससे पहले झुठला38 चुके थे। इसी प्रकार अल्लाह काफ़िरों के दिलों पर मुहर लगा देता है।
38. अर्थात् सत्य का प्रमाण आने से पहले झुठला दिया था, उसके पश्चात् भी अपनी हठधर्मी से उसी पर अड़े रहे।
وَمَا وَجَدْنَا لِاَكْثَرِهِمْ مِّنْ عَهْدٍۚ وَاِنْ وَّجَدْنَآ اَكْثَرَهُمْ لَفٰسِقِيْنَ١٠٢
Wa mā wajadnā li'akṡarihim min ‘ahd(in), wa iw wajadnā akṡarahum lafāsiqīn(a).
[102]
और हमने उनमें से अधिकतर लोगों में प्रतिज्ञा पालन नहीं पाया39 तथा निःसंदेह हमने उनमें अधिकतर लोगों को अवज्ञाकारी ही पाया।
39. इससे उस प्रण (वचन) की ओर संकेत है, जो अल्लाह ने सबसे "आदि काल" में लिया था कि क्या मैं तुम्हारा पालनहार (पूज्य) नहीं हूँ? तो सबने इसे स्वीकार किया था। (देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 172)
ثُمَّ بَعَثْنَا مِنْۢ بَعْدِهِمْ مُّوْسٰى بِاٰيٰتِنَآ اِلٰى فِرْعَوْنَ وَمَلَا۟ىِٕهٖ فَظَلَمُوْا بِهَاۚ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِيْنَ١٠٣
Ṡumma ba‘aṡnā mim ba‘dihim mūsā bi'āyātinā ilā fir‘auna wa mala'ihī fa ẓalamū bihā, fanẓur kaifa kāna ‘āqibatul-mufsidīn(a).
[103]
फिर उन (रसूलों) के बाद, हमने मूसा को अपनी आयतों (चमत्कारों) के साथ फ़िरऔन40 और उसके प्रमुखों के पास भेजा। तो उन्होंने उन (आयतों) के साथ अन्याय किया। तो देख लो कि बिगाड़ पैदा करने वालों का परिणाम कैसा हुआ?
40. मिस्र के शासकों की उपाधि फ़िरऔन होती थी। यह ईसा पूर्व डेढ़ हज़ार वर्ष की बात है। उनका राज्य शाम से लीबिया तथा ह़बशा तक था। फ़िरऔन अपने को सबसे बड़ा पूज्य मानता था और लोग भी उसकी पूजा करते थे। उसकी ओर अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को एक अल्लाह की इबादत का संदेश देकर भेजा कि पूज्य तो केवल अल्लाह है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं।
وَقَالَ مُوْسٰى يٰفِرْعَوْنُ اِنِّيْ رَسُوْلٌ مِّنْ رَّبِّ الْعٰلَمِيْنَۙ١٠٤
Wa qāla mūsa yā fir‘aunu innī rasūlum mir rabbil-‘ālamīn(a).
[104]
तथा मूसा ने कहा : ऐ फ़िरऔन! निःसंदेह मैं सर्व संसार के पालनहार की ओर से भेजा हुआ (रसूल) हूँ।
حَقِيْقٌ عَلٰٓى اَنْ لَّآ اَقُوْلَ عَلَى اللّٰهِ اِلَّا الْحَقَّۗ قَدْ جِئْتُكُمْ بِبَيِّنَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ فَاَرْسِلْ مَعِيَ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۗ١٠٥
Ḥaqīqun ‘alā allā aqūla ‘alallāhi illal-ḥaqq(a), qad ji'tukum bibayyinatim mir rabbikum fa arsil ma‘iya banī isrā'īl(a).
[105]
मेरे लिए यही योग्य है कि अल्लाह पर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहूँ। मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक खुला प्रमाण लाया हूँ। इसलिए बनी इसराई41 को मेरे साथ भेज दे।
41. बनी इसराईल यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के युग में मिस्र आए थे। चार सौ वर्ष का युग बड़े आदर के साथ व्यतीत किया। फिर उनके कुकर्मों के कारण फ़िरऔन और उसकी जाति ने उनको अपना दास बना लिया। जिसके कारण मूसा (अलैहिस्सलाम) ने बनी इसराईल को मुक्त करने की माँग की। (इब्ने कसीर)
قَالَ اِنْ كُنْتَ جِئْتَ بِاٰيَةٍ فَأْتِ بِهَآ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ١٠٦
Qāla in kunta ji'ta bi'āyatin fa'ti bihā in kunta minaṣ ṣādiqīn(a).
[106]
उसने कहा : यदि तुम कोई प्रमाण (चमत्कार) लाए हो, तो प्रस्तुत करो, यदि तुम सच्चों में से हो।
فَاَلْقٰى عَصَاهُ فَاِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُّبِيْنٌ ۖ١٠٧
Fa alqā ‘aṣāhu fa iżā hiya ṡu‘bānum mubīn(un).
[107]
फिर उसने अपनी लाठी फेंकी, तो अचानक वह एक प्रत्यक्ष अजगर बन गई।
وَّنَزَعَ يَدَهٗ فَاِذَا هِيَ بَيْضَاۤءُ لِلنّٰظِرِيْنَ ࣖ١٠٨
Wa naza‘a yadahū fa iżā hiya baiḍā'u lin-nāẓirīn(a).
[108]
तथा अपना हाथ निकाला, तो अचानक वह देखने वालों के लिए चमक रहा था।
قَالَ الْمَلَاُ مِنْ قَوْمِ فِرْعَوْنَ اِنَّ هٰذَا لَسٰحِرٌ عَلِيْمٌۙ١٠٩
Qālal-mala'u min qaumi fir‘auna inna hāżā lasāḥirum ‘alīm(un).
[109]
फ़िरऔन की जाति के प्रमुखों ने कहा : निश्चय यह तो एक दक्ष जादूगर है।
يُّرِيْدُ اَنْ يُّخْرِجَكُمْ مِّنْ اَرْضِكُمْ ۚ فَمَاذَا تَأْمُرُوْنَ١١٠
Yurīdu ay yukhrijakum min arḍikum, fa māżā ta'murūn(a).
[110]
वह चाहता है कि तुम्हें तुम्हारी धरती से निकाल दे, तो तुम क्या आदेश देते हो?
قَالُوْآ اَرْجِهْ وَاَخَاهُ وَاَرْسِلْ فِى الْمَدَاۤىِٕنِ حٰشِرِيْنَۙ١١١
Qālū arjih wa akhāhu wa arsil fil-madā'ini ḥāsyirīn(a).
[111]
उन्होंने कहा : इसे और इसके भाई के मामले को स्थगित कर दो और नगरों में जमा करने वाले भेज दो।
يَأْتُوْكَ بِكُلِّ سٰحِرٍ عَلِيْمٍ١١٢
Ya'tūka bikulli sāḥirin ‘alīm(in).
[112]
वे तेरे पास हर कुशल जादूगर ले आएँ।
وَجَاۤءَ السَّحَرَةُ فِرْعَوْنَ قَالُوْٓا اِنَّ لَنَا لَاَجْرًا اِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغٰلِبِيْنَ١١٣
Wa jā'as-saḥaratu fir‘auna qālū inna lanā la'ajran in kunnā naḥnul-gālibīn(a).
[113]
और जादूगर फ़िरऔन के पास आए। उन्होंने कहा : यदि हम ही विजयी हुए, तो निश्चय हमें अवश्य कुछ पुरस्कार मिलेगा?
قَالَ نَعَمْ وَاِنَّكُمْ لَمِنَ الْمُقَرَّبِيْنَ١١٤
Qāla na‘am wa innakum laminal-muqarrabīn(a).
[114]
उसने कहा : हाँ! और निश्चय तुम अवश्य निकटवर्तियों में से हो जाओगे ।
قَالُوْا يٰمُوْسٰٓى اِمَّآ اَنْ تُلْقِيَ وَاِمَّآ اَنْ نَّكُوْنَ نَحْنُ الْمُلْقِيْنَ١١٥
Qālū yā mūsā immā an tulqiya wa immā an nakūna naḥnul-mulqīn(a).
[115]
उन्होंने कहा : ऐ मूसा! या तो तुम (पहले) फेंको, या हम ही फेंकने वाले हों?
قَالَ اَلْقُوْاۚ فَلَمَّآ اَلْقَوْا سَحَرُوْٓا اَعْيُنَ النَّاسِ وَاسْتَرْهَبُوْهُمْ وَجَاۤءُوْ بِسِحْرٍ عَظِيْمٍ١١٦
Qāla alqū, falammā alqau saḥarū a‘yunan-nāsi wastarhabūhum wa jā'ū bisiḥrin ‘aẓīm(in).
[116]
मूसा ने कहा : तुम्हीं फेंको। चुनाँचे जब उन्होंने (रस्सियाँ) फेंकीं, तो लोंगों की आँखों पर जादू कर दिया, और उन्हें सख़्त भयभीत कर दिया, और वे बहुत बड़ा जादू लेकर आए।
۞ وَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اَنْ اَلْقِ عَصَاكَۚ فَاِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُوْنَۚ١١٧
Wa auḥainā ilā mūsā an alqi ‘aṣāk(a), fa iżā hiya talqafu mā ya'fikūn(a).
[117]
और हमने मूसा को वह़्य की कि अपनी लाठी फेंको, तो अचानक वह उन चीज़ों को निगलने लगी, जो वे झूठ-मूठ बना रहे थे।
فَوَقَعَ الْحَقُّ وَبَطَلَ مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَۚ١١٨
Fa waqa‘al-ḥaqqu wa baṭala mā kānū ya‘malūn(a).
[118]
अतः सत्य सामने आ गया और जो कुछ वे कर रहे थे, असत्य42 होकर रह गया।
42. क़ुरआन ने अब से तेरह सौ वर्ष पहले यह घोषणा कर दी थी कि जादू तथा मंत्र-तंत्र निर्मूल हैं।
فَغُلِبُوْا هُنَالِكَ وَانْقَلَبُوْا صٰغِرِيْنَۚ١١٩
Fa gulibū hunālika wanqalabū ṣāgirīn(a).
[119]
अंततः वे उस जगह पराजित हो गए और अपमानित होकर लौटे।
وَاُلْقِيَ السَّحَرَةُ سٰجِدِيْنَۙ١٢٠
Wa ulqiyas-saḥaratu sājidīn(a).
[120]
और जादूगर सजदे में गिर गए।
قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَۙ١٢١
Qālū āmannā birabbil-‘ālamīn(a).
[121]
उन्होंने कहा : हम सर्व संसार के पालनहार पर ईमान लाए।
رَبِّ مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ١٢٢
Rabbi mūsā wa hārūn(a).
[122]
मूसा तथा हारून के पालनहार पर।
قَالَ فِرْعَوْنُ اٰمَنْتُمْ بِهٖ قَبْلَ اَنْ اٰذَنَ لَكُمْۚ اِنَّ هٰذَا لَمَكْرٌ مَّكَرْتُمُوْهُ فِى الْمَدِيْنَةِ لِتُخْرِجُوْا مِنْهَآ اَهْلَهَاۚ فَسَوْفَ تَعْلَمُوْنَ١٢٣
Qāla fir‘aunu āmantum bihī qabla an āżana lakum, inna hāżā lamakrum makartumūhu fil-madīnati litukhrijū minhā ahlahā, fa saufa ta‘lamūn(a).
[123]
फ़िरऔन ने कहा : इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति दूँ, तुम उसपर ईमान ले आए? निःसंदेह यह एक चाल है, जो तुमने इस नगर में चली है, ताकि उसके निवासियों को उससे निकाल दो! तो शीघ्र ही तुम (इसका परिणाम) जान लोगे।
لَاُقَطِّعَنَّ اَيْدِيَكُمْ وَاَرْجُلَكُمْ مِّنْ خِلَافٍ ثُمَّ لَاُصَلِّبَنَّكُمْ اَجْمَعِيْنَ١٢٤
La'uqaṭṭi‘anna aidiyakum wa arjulakum min khilāfin ṡumma la'uṣallibannakum ajma‘īn(a).
[124]
निश्चय मैं अवश्य तुम्हारे हाथ और तुम्हारे पाँव विपरीत दिशाओं से बुरी तरह काटूँगा, फिर तुम सभी को अवश्य सूली चढ़ा दूँगा।
قَالُوْٓا اِنَّآ اِلٰى رَبِّنَا مُنْقَلِبُوْنَۙ١٢٥
Qālū innā ilā rabbinā munqalibūn(a).
[125]
उन्होंने कहा : निश्चय हम अपने पालनहार ही की ओर लौटने वाले हैं।
وَمَا تَنْقِمُ مِنَّآ اِلَّآ اَنْ اٰمَنَّا بِاٰيٰتِ رَبِّنَا لَمَّا جَاۤءَتْنَا ۗرَبَّنَآ اَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَّتَوَفَّنَا مُسْلِمِيْنَ ࣖ١٢٦
Wa mā tanqimu minnā illā an āmannā bi'āyāti rabbinā lammā jā'atnā, rabanā afrig ‘alainā ṣabraw wa tawaffanā muslimīn(a).
[126]
और तू हमसे केवल इस बात का बदला ले रहा है कि हम अपने पालनहार की निशानियों पर ईमान ले आए, जब वे हमारे पास आईं? ऐ हमारे पालनहार! हमपर धैर्य उड़ेल दे और हमें इस दशा में (संसार से) उठा कि तेरे आज्ञाकारी हों।
وَقَالَ الْمَلَاُ مِنْ قَوْمِ فِرْعَوْنَ اَتَذَرُ مُوْسٰى وَقَوْمَهٗ لِيُفْسِدُوْا فِى الْاَرْضِ وَيَذَرَكَ وَاٰلِهَتَكَۗ قَالَ سَنُقَتِّلُ اَبْنَاۤءَهُمْ وَنَسْتَحْيٖ نِسَاۤءَهُمْۚ وَاِنَّا فَوْقَهُمْ قٰهِرُوْنَ١٢٧
Wa qālal-mala'u min qaumi fir‘auna atażaru mūsā wa qaumahū liyufsidū fil-arḍi wa yażaraka wa ālihatak(a), qāla sanuqattilu abnā'ahum wa nastaḥyī nisā'ahum, wa innā fauqahum qāhirūn(a).
[127]
और फ़िरऔन की जाति के प्रमुखों ने (उससे) कहा : क्या तुम मूसा और उसकी जाति को छोड़े रखोगे कि वे देश में बिगाड़ फैलाएँ तथा तुम्हें और तुम्हारे पूज्यों43 को छोड़ दें? उसने कहा : हम उनके बेटों को बुरी तरह क़त्ल करेंगे और उनकी स्त्रियों को जीवित रखेंगे। निश्चय हम उनपर पूर्ण नियंत्रण रखने वाले हैं।
43. कुछ भाष्यकारों ने लिखा है कि मिस्री अनेक देवताओं की पूजा करते थे, जिनमें सबसे बड़ा देवता सूर्य था, जिसे "रूअ" कहते थे। और राजा को उसी का अवतार मानते थे, और उसकी पूजा और उसके लिए सजदा करते थे, जिस प्रकार अल्लाह के लिए सजदा किया जाता है।
قَالَ مُوْسٰى لِقَوْمِهِ اسْتَعِيْنُوْا بِاللّٰهِ وَاصْبِرُوْاۚ اِنَّ الْاَرْضَ لِلّٰهِ ۗيُوْرِثُهَا مَنْ يَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِهٖۗ وَالْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِيْنَ١٢٨
Qāla mūsā liqaumihista‘īnū billāhi waṣbirū, innal-arḍa lillāh(i), yūriṡuhā may yasyā'u min ‘ibādih(ī), wal-‘āqibatu lil-muttaqīn(a).
[128]
मूसा ने अपनी जाति से कहा : अल्लाह से सहायता माँगो और धैर्य से काम लो। निःसंदेह धरती अल्लाह की है। वह अपने बंदों में जिसे चाहता है, उसका वारिस (उत्तराधिकारी) बनाता है। और अच्छा परिणाम परहेज़गारों के लिए है।
قَالُوْٓا اُوْذِيْنَا مِنْ قَبْلِ اَنْ تَأْتِيَنَا وَمِنْۢ بَعْدِ مَا جِئْتَنَا ۗقَالَ عَسٰى رَبُّكُمْ اَنْ يُّهْلِكَ عَدُوَّكُمْ وَيَسْتَخْلِفَكُمْ فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرَ كَيْفَ تَعْمَلُوْنَ ࣖ١٢٩
Qālū ūżīnā min qabli an ta'tiyanā wa mim ba‘di mā ji'tanā, qāla ‘asā rabbukum ay yuhlika ‘aduwwakum wa yastakhlifakum fil-arḍi fa yanẓura kaifa ta‘malūn(a).
[129]
उन्होंने कहा : हम तुम्हारे आने से पहले भी सताए गए और तुम्हारे आने के बाद भी (सताए जा रहे हैं)! (मूसा ने) कहा : निकट है कि तुम्हारा पालनहार तुम्हारे शत्रु को विनष्ट कर दे और तुम्हें देश में ख़लीफ़ा बना दे। फिर देखे कि तुम कैसे कर्म करते हो?
وَلَقَدْ اَخَذْنَآ اٰلَ فِرْعَوْنَ بِالسِّنِيْنَ وَنَقْصٍ مِّنَ الثَّمَرٰتِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُوْنَ١٣٠
Wa laqad akhażnā āla fir‘auna bis-sinīna wa naqṣim minaṡ-ṡamarāti la‘allahum yażżakkarūn(a).
[130]
और निःसंदेह हमने फ़िरऔन की जाति को अकालों तथा फलों की कमी से ग्रस्त कर दिया, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
فَاِذَا جَاۤءَتْهُمُ الْحَسَنَةُ قَالُوْا لَنَا هٰذِهٖ ۚوَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَّطَّيَّرُوْا بِمُوْسٰى وَمَنْ مَّعَهٗۗ اَلَآ اِنَّمَا طٰۤىِٕرُهُمْ عِنْدَ اللّٰهِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ١٣١
Fa iżā jā'athumul-ḥasanatu qālū lanā hāżihī, wa in tuṣibhum sayyi'atuy yaṭṭayyarū bimūsā wa mam ma‘ah(ū), alā innamā ṭā'iruhum ‘indallāhi wa lākinna aksṡarahum lā ya‘lamūn(a).
[131]
फिर जब उन्हें संपन्नता प्राप्त होती, तो कहते कि यह तो हमारा हक़ है और यदि उन्हें कोई विपत्ति पहुँचती, तो मूसा और उसके साथियों से अपशकुन लेते। सुन लो! उनका अपशकुन तो अल्लाह ही के पास44 है, परंतु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।
44. अर्थात अल्लाह ने प्रत्येक दशा के लिए एक नियम बना दिया है, जिसके अनुसार कर्मों के परिणाम सामने आते हैं, चाहे वह अशुभ हों या न हों, सब अल्लाह के निर्धारित नियमानुसार होते हैं।
وَقَالُوْا مَهْمَا تَأْتِنَا بِهٖ مِنْ اٰيَةٍ لِّتَسْحَرَنَا بِهَاۙ فَمَا نَحْنُ لَكَ بِمُؤْمِنِيْنَ١٣٢
Wa qālū mahmā ta'tinā bihī min āyatil litasḥaranā bihā, famā naḥnu laka bimu'minīn(a).
[132]
और उन्होंने कहा : तू हमपर जादू करने के लिए हमारे पास जो निशानी भी ले आए, हम तेरा विश्वास करने वाले नहीं हैं।
فَاَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الطُّوْفَانَ وَالْجَرَادَ وَالْقُمَّلَ وَالضَّفَادِعَ وَالدَّمَ اٰيٰتٍ مُّفَصَّلٰتٍۗ فَاسْتَكْبَرُوْا وَكَانُوْا قَوْمًا مُّجْرِمِيْنَ١٣٣
Fa arsalnā ‘alaihimuṭ-ṭūfāna wal-jarāda wal-qummala waḍ-ḍafādi‘a wad-dama āyātim mufaṣṣalāt(in), fastakbarū wa kānū qaumam mujrimīn(a).
[133]
फिर हमने उनपर तूफ़ान भेजा और टिड्डियाँ और जुएँ और मेंढक और रक्त, जो अलग-अलग निशानियाँ थीं। फिर भी उन्होंने अभिमान किया और वे अपराधी लोग थे।
وَلَمَّا وَقَعَ عَلَيْهِمُ الرِّجْزُ قَالُوْا يٰمُوْسَى ادْعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِنْدَكَۚ لَىِٕنْ كَشَفْتَ عَنَّا الرِّجْزَ لَنُؤْمِنَنَّ لَكَ وَلَنُرْسِلَنَّ مَعَكَ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۚ١٣٤
Wa lammā waqa‘a ‘alihimur-rijzu qālū yā mūsad‘u lanā rabbaka bimā ‘ahida ‘indak(a), la'in kasyafta ‘annar-rijza lanu'minanna laka wa lanursilanna ma‘aka banī isrā'īl(a).
[134]
और जब उनपर यातना आती, तो कहते : ऐ मूसा! तुम अपने पालनहार से हमारे लिए उस प्रतिज्ञा के आधार पर दुआ करो, जो उसने तुमसे कर रखी है। यदि तुम (अपनी दुआ से) हमसे यह यातना दूर कर दो, तो हम अवश्य ही तुमपर ईमान ले आएँगे और तुम्हारे साथ बनी इसराईल को अवश्य भेज देंगे।
فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُمُ الرِّجْزَ اِلٰٓى اَجَلٍ هُمْ بَالِغُوْهُ اِذَا هُمْ يَنْكُثُوْنَ١٣٥
Falammā kasyafnā ‘anhumur-rijza ilā ajalin hum bāligūhu iżā hum yankuṡūn(a).
[135]
फिर जब हम उनसे यातना को उस समय तक दूर कर देते, जिसे वे पहुँचने वाले होते, तो अचानक वे वचन भंग कर देते थे।
فَانْتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَاَغْرَقْنٰهُمْ فِى الْيَمِّ بِاَنَّهُمْ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَكَانُوْا عَنْهَا غٰفِلِيْنَ١٣٦
Fantaqamnā minhum fa agraqnāhum fil-yammi bi'annahum każżabū bi'āyātinā wa kānū ‘anhā gāfilīn(a).
[136]
अंततः हमने उनसे बदला लिया और उन्हें सागर में डुबो दिया, इस कारण कि उन्होंने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठलाया और वे उनसे ग़ाफ़िल थे।
وَاَوْرَثْنَا الْقَوْمَ الَّذِيْنَ كَانُوْا يُسْتَضْعَفُوْنَ مَشَارِقَ الْاَرْضِ وَمَغَارِبَهَا الَّتِيْ بٰرَكْنَا فِيْهَاۗ وَتَمَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ الْحُسْنٰى عَلٰى بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَۙ بِمَا صَبَرُوْاۗ وَدَمَّرْنَا مَا كَانَ يَصْنَعُ فِرْعَوْنُ وَقَوْمُهٗ وَمَا كَانُوْا يَعْرِشُوْنَ١٣٧
Wa auraṡnal-qaumal-lażīna kānū yustaḍ‘afūna masyāriqal-arḍi wa magāribahal-latī bāraknā fīhā, wa tammat kalimatu rabbikal-ḥusnā ‘alā banī isrā'īl(a), bimā ṣabarū, wa dammarnā mā kāna yaṣna‘u fir‘aunu wa qaumuhū wa mā kānū ya‘risyūn(a).
[137]
और हमने उन लोगों को जो कमज़ोर समझे जाते थे, उस धरती के पूर्व और पश्चिम के भूभागों का वारिस बना दिया, जिसमें हमने बरकत रखी है। और (इस प्रकार) बनी इसराईल के हक़ में (ऐ नबी!) आपके पालनहार का शुभ वचन पूरा हो गया, इस कारण कि उन्होंने धैर्य से काम लिया। तथा फ़िरऔन और उसकी जाति के लोग जो कुछ बनाते थे और वे जो इमारते ऊँची करते थे, हमने उन्हें नष्ट कर दिया।45
45. अर्थात उनके ऊँचे-ऊँचे भवन तथा सुंदर बाग़-बग़ीचे।
وَجَاوَزْنَا بِبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ الْبَحْرَ فَاَتَوْا عَلٰى قَوْمٍ يَّعْكُفُوْنَ عَلٰٓى اَصْنَامٍ لَّهُمْ ۚقَالُوْا يٰمُوْسَى اجْعَلْ لَّنَآ اِلٰهًا كَمَا لَهُمْ اٰلِهَةٌ ۗقَالَ اِنَّكُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُوْنَ١٣٨
Wa jāwaznā bibanī isrā'īlal-baḥra fa atau ‘alā qaumiy ya‘kufūna ‘alā aṣnāmil lahum, qālū yā mūsaj‘al lanā ilāhan kamā lahum ālihah(tun), qāla innakum qaumun tajhalūn(a).
[138]
और हमने बनी इसराईल को सागर के पार उतार दिया। तो वे एक ऐसी जाति पर आए, जो अपनी कुछ मूर्तियों पर जमी बैठी थी। उन्होंने कहा : ऐ मूसा! हमारे लिए कोई पूज्य बना दीजिए, जैसे इनके कुछ पूज्य हैं। (मूसा ने) कहा : निःसंदेह तुम ऐसे लोग हो जो नादानी करते हो।
اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ مُتَبَّرٌ مَّا هُمْ فِيْهِ وَبٰطِلٌ مَّا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ١٣٩
Inna hā'ulā'i mutabbarum mā hum fīhi wa bāṭilum mā kānū ya‘malūn(a).
[139]
ये लोग जिस काम में लगे हुए हैं, निश्चय ही वह नष्ट किया जाने वाला है और वे जो कुछ करते चले आ रहे हैं, बिलकुल असत्य है।
قَالَ اَغَيْرَ اللّٰهِ اَبْغِيْكُمْ اِلٰهًا وَّهُوَ فَضَّلَكُمْ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ١٤٠
Qāla agairallāhi abgīkum ilāhaw wa huwa faḍḍalakum ‘alal-‘ālamīn(a).
[140]
(मूसा ने) कहा : क्या मैं अल्लाह के सिवा तुम्हारे लिए कोई पूज्य तलाश करूँ? हालाँकि उसने तुम्हें सारे संसार वालों पर श्रेष्ठता प्रदान की है।
وَاِذْ اَنْجَيْنٰكُمْ مِّنْ اٰلِ فِرْعَوْنَ يَسُوْمُوْنَكُمْ سُوْۤءَ الْعَذَابِۚ يُقَتِّلُوْنَ اَبْنَاۤءَكُمْ وَيَسْتَحْيُوْنَ نِسَاۤءَكُمْۗ وَفِيْ ذٰلِكُمْ بَلَاۤءٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَظِيْمٌ ࣖ١٤١
Wa iż anjainākum min āli fir‘auna yasūmūnakum sū'al-‘ażāb(i), yuqattilūna abnā'akum wa yastaḥyūna nisā'akum wa fī żālikum balā'um mir rabbikum ‘aẓīm(un).
[141]
तथा (वह समय याद करो) जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से मुक्ति दिलाई, जो तुम्हें बुरी यातना देते थे; तुम्हारे पुत्रों को बुरी तरह मार डालते थे तथा तुम्हारी नारियों को जीवित रहने देते थे। इसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से बहुत बड़ी परीक्षा थी।
۞ وَوٰعَدْنَا مُوْسٰى ثَلٰثِيْنَ لَيْلَةً وَّاَتْمَمْنٰهَا بِعَشْرٍ فَتَمَّ مِيْقَاتُ رَبِّهٖٓ اَرْبَعِيْنَ لَيْلَةً ۚوَقَالَ مُوْسٰى لِاَخِيْهِ هٰرُوْنَ اخْلُفْنِيْ فِيْ قَوْمِيْ وَاَصْلِحْ وَلَا تَتَّبِعْ سَبِيْلَ الْمُفْسِدِيْنَ١٤٢
Wa wā‘adnā mūsā ṡalāṡīna lailataw wa atmamnāhā bi‘asyrin fa tamma mīqātu rabbihī arba‘īna lailah(tan), wa qāla mūsā li'akhīhi hārūnakhlufnī fī qaumī wa aṣliḥ wa lā tattabi‘ sabīlal-mufsidīn(a).
[142]
और हमने मूसा से तीस रातों का वादा46 किया और उसकी पूर्ति दस रातों से कर दी। तो तेरे पालनहार की निर्धारित अवधि चालीस रातें पूरी हो गई। तथा मूसा ने अपने भाई हारून से कहा : तुम मेरी जाति में मेरा उत्तराधिकारी बनकर रहना, और सुधार करते रहना तथा उपद्रवकारियों की नीति न अपनाना।
46. अर्थात तूर पर्वत पर आकर अल्लाह की इबादत करने और धर्म विधान प्रदान करने के लिए।
وَلَمَّا جَاۤءَ مُوْسٰى لِمِيْقَاتِنَا وَكَلَّمَهٗ رَبُّهٗۙ قَالَ رَبِّ اَرِنِيْٓ اَنْظُرْ اِلَيْكَۗ قَالَ لَنْ تَرٰىنِيْ وَلٰكِنِ انْظُرْ اِلَى الْجَبَلِ فَاِنِ اسْتَقَرَّ مَكَانَهٗ فَسَوْفَ تَرٰىنِيْۚ فَلَمَّا تَجَلّٰى رَبُّهٗ لِلْجَبَلِ جَعَلَهٗ دَكًّا وَّخَرَّ مُوْسٰى صَعِقًاۚ فَلَمَّآ اَفَاقَ قَالَ سُبْحٰنَكَ تُبْتُ اِلَيْكَ وَاَنَا۠ اَوَّلُ الْمُؤْمِنِيْنَ١٤٣
Wa lammā jā'a mūsā limīqātinā wa kallamahū rabbuh(ū), qāla rabbi arinī anẓur ilaik(a), qāla lan tarānī wa lākininẓur ilal-jabali fa inistaqarra makānahū fa saufa tarānī, falammā tajallā rabbuhū lil-jabali ja‘alahū dakkaw wa kharra mūsā ṣa‘iqā(n), falammā afāqa qāla subḥānaka tubtu ilaika wa ana awwalul-mu'minīn(a).
[143]
और जब मूसा हमारे निर्धारित समय पर आ गया और उसके पालनहार ने उससे बात की, तो उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मुझे दिखा कि मैं तुझे देखूँ। (अल्लाह ने) फरमाया : तू मुझे कदापि नहीं देख सकेगा। लेकिन इस पर्वत की ओर देख! यदि वह अपने स्थान पर स्थिर रहा, तो तू मुझे देख लेगा। फिर जब उसका पालनहार पर्वत के समक्ष प्रकट हुआ, तो उसे चूर-चूर कर दिया और मूसा बेहोश होकर गिर गया। फिर जब उसे होश आया, तो उसने कहा : तू पवित्र है! मैंने तेरी ओर तौबा की और मैं ईमान लाने वालों में सबसे पहला47 हूँ।
47. इससे प्रत्यक्ष हुआ कि कोई व्यक्ति इस संसार में रहते हुए अल्लाह को नहीं देख सकता और जो ऐसा कहते हैं वे शैतान के बहकावे में हैं। परंतु सह़ीह़ ह़दीस से सिद्ध होता है कि आख़िरत में ईमानवाले अल्लाह का दर्शन करेंगे।
قَالَ يٰمُوْسٰٓى اِنِّى اصْطَفَيْتُكَ عَلَى النَّاسِ بِرِسٰلٰتِيْ وَبِكَلَامِيْ ۖفَخُذْ مَآ اٰتَيْتُكَ وَكُنْ مِّنَ الشّٰكِرِيْنَ١٤٤
Qāla yā mūsā inniṣṭafaituka ‘alan-nāsi birisālātī wa bikalāmī, fa khuż mā ātaituka wa kum minasy-syākirīn(a).
[144]
अल्लाह ने कहा : ऐ मूसा! निःसंदेह मैंने तुम्हें अपने संदेशों तथा अपने वार्तालाप के साथ लोगों पर चुन लिया है। अतः जो कुछ मैंने तुम्हें प्रदान किया है, उसे ले लो और आभार प्रकट करने वालों में से हो जाओ।
وَكَتَبْنَا لَهٗ فِى الْاَلْوَاحِ مِنْ كُلِّ شَيْءٍ مَّوْعِظَةً وَّتَفْصِيْلًا لِّكُلِّ شَيْءٍۚ فَخُذْهَا بِقُوَّةٍ وَّأْمُرْ قَوْمَكَ يَأْخُذُوْا بِاَحْسَنِهَا ۗسَاُورِيْكُمْ دَارَ الْفٰسِقِيْنَ١٤٥
Wa katabnā lahū fil-alwāḥi min kulli syai'im mau‘iẓataw wa tafṣīlal likulli syai'(in), fa khużhā biquwwatiw wa'mur qaumaka ya'khużū bi'aḥsanihā, sa'urīkum dāral-fāsiqīn(a).
[145]
और हमने उसके लिए तख़्तियों पर हर चीज़ से संबंधित निर्देश और हर चीज़ का विवरण लिख दिया। (तथा कह दिया कि) इसे मज़बूती से पकड़ लो और अपनी जाति को आदेश दो कि वे उसके उत्तम निर्देशों का पालन करें। शीघ्र ही मैं तुम्हें अवज्ञाकारियों का घर दिखाऊँगा।
سَاَصْرِفُ عَنْ اٰيٰتِيَ الَّذِيْنَ يَتَكَبَّرُوْنَ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّۗ وَاِنْ يَّرَوْا كُلَّ اٰيَةٍ لَّا يُؤْمِنُوْا بِهَاۚ وَاِنْ يَّرَوْا سَبِيْلَ الرُّشْدِ لَا يَتَّخِذُوْهُ سَبِيْلًاۚ وَاِنْ يَّرَوْا سَبِيْلَ الْغَيِّ يَتَّخِذُوْهُ سَبِيْلًاۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَكَانُوْا عَنْهَا غٰفِلِيْنَ١٤٦
Sa'aṣrifu ‘an āyātiyal-lażīna yatakabbarūna fil-arḍi bigairil-ḥaqq(i), wa iy yarau kulla āyatil lā yu'minū bihā, wa iy yarau sabīlar-rusydi lā yattakhiżūhu sabīlā(n), wa iy yarau sabīlal-gayyi yattakhiżūhu sabīlā(n), żālika bi'annahum każżabū bi'āyātinā wa kānū ‘anhā gāfilīn(a).
[146]
मैं अपनी आयतों (निशानियों) से उन लोगों48 को फेर दूँगा, जो धरती में नाहक़ बड़े बनते49 हैं। और यदि वे प्रत्येक निशानी देख लें, तब भी उसपर ईमान नहीं लाते। और यदि वे भलाई का मार्ग देख लें, तो उसे मार्ग नहीं बनाते और यदि गुमराही का मार्ग देखें, तो उसे मार्ग बना लेते हैं। यह इस कारण कि उन्होंने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठलाया और वे उनसे ग़ाफ़िल थे।
48. अर्थात तुम्हें उनपर विजय दूँगा जो अवज्ञाकारी हैं, जैसे उस समय की अमालिक़ा इत्यादि जातियों पर। 49. अर्थात जो जान-बूझकर अवज्ञा करेगा, अल्लाह का नियम यही है कि वह तर्कों तथा प्रकाशों से प्रभावित होने की योग्यता खो देगा। इस का यह अर्थ नहीं कि अल्लाह किसी को अकारण कुपथ पर बाध्य कर देता है।
وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَلِقَاۤءِ الْاٰخِرَةِ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْۗ هَلْ يُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ࣖ١٤٧
Wal-lażīna każżabū bi'āyātinā wa liqā'il-ākhirati ḥabiṭat a‘māluhum, hal yujzauna illā mā kānū ya‘malūn(a).
[147]
और जिन लोगों ने हमारी आयतों तथा परलोक (में हमसे) मिलने को झुठलाया, उनके कर्म व्यर्थ हो गए और उन्हें उसी का बदला मिलेगा, जो वे किया करते थे।
وَاتَّخَذَ قَوْمُ مُوْسٰى مِنْۢ بَعْدِهٖ مِنْ حُلِيِّهِمْ عِجْلًا جَسَدًا لَّهٗ خُوَارٌۗ اَلَمْ يَرَوْا اَنَّهٗ لَا يُكَلِّمُهُمْ وَلَا يَهْدِيْهِمْ سَبِيْلًاۘ اِتَّخَذُوْهُ وَكَانُوْا ظٰلِمِيْنَ١٤٨
Wattakhaża mūsā mim ba‘dihī min ḥuliyyihim ‘ijlan jasadal lahū khuwār(un), alam yarau annahū lā yukallimuhum wa lā yahdīhim sabīlā(n), ittakhażūhu wa kānū ẓālimīn(a).
[148]
और मूसा की जाति ने उसके (पर्वत पर जाने के) पश्चात् अपने ज़ेवरों से एक बछड़ा बना लिया, जो एक शरीर था, जिसकी गाय जैसी आवाज़ थी। क्या उन्होंने यह नहीं देखा कि वह न तो उनसे बात करता50 है और न उन्हें कोई राह दिखाता है? उन्होंने उसे (पूज्य) बना लिया तथा वे अत्याचारी थे।
50. अर्थात उससे एक ही प्रकार की ध्वनि क्यों निकलती है। बाबिल और मिस्र में भी प्राचीन युग में गाय-बैल की पूजा हो रही थी। और यदि बाबिल की सभ्यता को प्राचीन मान लिया जाए तो यह विचार दूसरे देशों में वहीं से फैला होगा।
وَلَمَّا سُقِطَ فِيْٓ اَيْدِيْهِمْ وَرَاَوْا اَنَّهُمْ قَدْ ضَلُّوْاۙ قَالُوْا لَىِٕنْ لَّمْ يَرْحَمْنَا رَبُّنَا وَيَغْفِرْ لَنَا لَنَكُوْنَنَّ مِنَ الْخٰسِرِيْنَ١٤٩
Wa lammā suqiṭa fī aidīhim wa ra'au annahum qad ḍallū, qālū la'il lam yarḥamnā rabbunā wa yagfir lanā lanakūnanna minal-khāsirīn(a).
[149]
और जब वे (अपने किए पर) लज्जित हुए और उन्होंने देखा कि निःसंदेह वे तो पथभ्रष्ट हो गए हैं। तो कहने लगे : यदि हमारे पालनहार ने हमपर दया नहीं की और हमें क्षमा नहीं किया, तो हम अवश्य घाटा उठाने वालों में से हो जाएँगे।
وَلَمَّا رَجَعَ مُوْسٰٓى اِلٰى قَوْمِهٖ غَضْبَانَ اَسِفًاۙ قَالَ بِئْسَمَا خَلَفْتُمُوْنِيْ مِنْۢ بَعْدِيْۚ اَعَجِلْتُمْ اَمْرَ رَبِّكُمْۚ وَاَلْقَى الْاَلْوَاحَ وَاَخَذَ بِرَأْسِ اَخِيْهِ يَجُرُّهٗٓ اِلَيْهِ ۗقَالَ ابْنَ اُمَّ اِنَّ الْقَوْمَ اسْتَضْعَفُوْنِيْ وَكَادُوْا يَقْتُلُوْنَنِيْۖ فَلَا تُشْمِتْ بِيَ الْاَعْدَاۤءَ وَلَا تَجْعَلْنِيْ مَعَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ١٥٠
Wa lammā raja‘a mūsā ilā qaumihī gaḍbāna asifā(n), qāla bi'samā khalaftumūnī mim ba‘dī, a‘ajiltum amra rabbikum, wa alqal-alwāḥa wa akhaża bira'si akhīhi yajurruhū ilaih(i), qālabna umma innal-qaumastaḍ‘afūnī wa kādū yaqtulūnanī, falā tusymit biyal-a‘dā'a wa lā taj‘alnī ma‘al-qaumiẓ-ẓālimīn(a).
[150]
और जब मूसा अपनी जाति की ओर क्रोध तथा दुःख से भरा हुआ वापस आया, तो उसने कहा : तुमने मेरे बाद मेरा बहुत बुरा प्रतिनिधित्व किया। क्या तुम अपने पालनहार की आज्ञा से पहले ही जल्दी कर51 गए? तथा उसने तख़्तियाँ डाल दीं और अपने भाई (हारून) का सिर पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। उसने कहा : ऐ मेरे माँ जाये भाई! लोगों ने मुझे कमज़ोर समझ लिया और निकट था कि वे मुझे मार डालें। अतः तू शत्रुओं को मुझपर हँसने का अवसर न दे और मुझे अत्याचारियों का साथी न बना।
51. अर्थात मेरे आने की प्रतीक्षा नहीं की।
قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِيْ وَلِاَخِيْ وَاَدْخِلْنَا فِيْ رَحْمَتِكَ ۖوَاَنْتَ اَرْحَمُ الرّٰحِمِيْنَ ࣖ١٥١
Qāla rabbigfirlī wa li'akhī wa adkhilnā fī raḥmatik(a), wa anta arḥamur-rāḥimīn(a).
[151]
उसने कहा52 : ऐ मेरे पालनहार! मुझे तथा मेरे भाई को क्षमा कर दे और हमें अपनी दया में प्रवेश प्रदान कर दे और तू सब दया करने वालों से अधिक दयावान् है।
52. अर्थात जब यह सिद्ध हो गया कि मेरा भाई निर्दोष है।
اِنَّ الَّذِيْنَ اتَّخَذُوا الْعِجْلَ سَيَنَالُهُمْ غَضَبٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَذِلَّةٌ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَاۗ وَكَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُفْتَرِيْنَ١٥٢
Innal-lażīnattakhażul-‘ijla sayanāluhum gaḍabum mir rabbihim wa żillatun fil-ḥayātid-dun-yā, wa każālika najzil-muftarīn(a).
[152]
निःसंदेह जिन लोगों ने बछड़े को पूज्य बनाया, उन्हें उनके पालनहार की ओर से बड़ा प्रकोप और सांसारिक जीवन में अपमान पहुँचेगा और हम झूठ गढ़ने वालों को इसी प्रकार दंड देते हैं।
وَالَّذِيْنَ عَمِلُوا السَّيِّاٰتِ ثُمَّ تَابُوْا مِنْۢ بَعْدِهَا وَاٰمَنُوْٓا اِنَّ رَبَّكَ مِنْۢ بَعْدِهَا لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ١٥٣
Wal-lażīna ‘amilus-sayyi'āti ṡumma tābū mim ba‘dihā wa āmanū inna rabbaka mim ba‘dihā lagafūrur raḥīm(un).
[153]
और जिन लोगों ने बुरे कर्म किए, फिर उसके पश्चात् क्षमा माँग ली और ईमान ले आए, तो निःसंदेह तेरा पालनहार इसके बाद अवश्य अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
وَلَمَّا سَكَتَ عَنْ مُّوْسَى الْغَضَبُ اَخَذَ الْاَلْوَاحَۖ وَفِيْ نُسْخَتِهَا هُدًى وَّرَحْمَةٌ لِّلَّذِيْنَ هُمْ لِرَبِّهِمْ يَرْهَبُوْنَ١٥٤
Wa lammā sakata ‘am mūsal-gaḍabu akhażal-alwāḥ(a), wa fī nuskhatihā hudaw wa raḥmatul lil-lażīna hum lirabbihim yarhabūn(a).
[154]
फिर जब मूसा का क्रोध शांत हो गया, तो उसने तख़्तियाँ उठा लीं, और उनके लेख में उन लोगों के लिए मार्गदर्शन तथा दया थी, जो केवल अपने पालनहार से डरते हों।
وَاخْتَارَ مُوْسٰى قَوْمَهٗ سَبْعِيْنَ رَجُلًا لِّمِيْقَاتِنَا ۚفَلَمَّآ اَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ قَالَ رَبِّ لَوْ شِئْتَ اَهْلَكْتَهُمْ مِّنْ قَبْلُ وَاِيَّايَۗ اَتُهْلِكُنَا بِمَا فَعَلَ السُّفَهَاۤءُ مِنَّاۚ اِنْ هِيَ اِلَّا فِتْنَتُكَۗ تُضِلُّ بِهَا مَنْ تَشَاۤءُ وَتَهْدِيْ مَنْ تَشَاۤءُۗ اَنْتَ وَلِيُّنَا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَاَنْتَ خَيْرُ الْغٰفِرِيْنَ١٥٥
Wakhtāra mūsā qaumahū sab‘īna rajulal limīqātinā, falammā akhażathumur-rajfatu qāla rabbi lau syi'ta ahlaktahum min qablu wa iyyāy(a), atuhlikunā bimā fa‘alas-sufahā'u minnā, in hiya illā fitnatuk(a), tuḍillu bihā man tasyā'u wa tahdī man tasyā'(u), anta waliyyunā fagfir lanā warḥamnā wa anta khairul-gāfirīn(a).
[155]
और मूसा ने हमारे निर्धारित53 समय के लिए अपनी जाति के सत्तर व्यक्तियों को चुन लिया। फिर जब उन्हें भूकंप ने पकड़54 लिया, तो उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! यदि तू चाहता तो इससे पहले ही इन सबका और मेरा विनाश कर देता। क्या तू उसके कारण हमारा विनाश करता है, जो हममें से मूर्खों ने किया है? यह55 तो केवल तेरी ओर से एक परीक्षा है। जिसके द्वारा तू जिसे चाहता है, गुमराह करता है और जिसे चाहता है, सीधा मार्ग दिखाता है। तू ही हमारा संरक्षक है। अतः हमारे पापों को क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू क्षमा करने वालों में सबसे बेहतर है।
53. अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को आदेश दिया था कि वह तूर पर्वत के पास बछड़े की पूजा से क्षमा याचना के लिए कुछ लोगों को लाएँ। (इब्ने कसीर) 54. जब वह उस स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने यह माँग की कि हम को हमारी आँखों से अल्लाह को दिखा दे। अन्यथा हम तेरा विश्वास नहीं करेंगे। उस समय उनपर भूकंप आया। (इब्ने कसीर) 55. अर्थात बछड़े की पूजा।
۞ وَاكْتُبْ لَنَا فِيْ هٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةً وَّفِى الْاٰخِرَةِ اِنَّا هُدْنَآ اِلَيْكَۗ قَالَ عَذَابِيْٓ اُصِيْبُ بِهٖ مَنْ اَشَاۤءُۚ وَرَحْمَتِيْ وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍۗ فَسَاَكْتُبُهَا لِلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَ وَيُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَالَّذِيْنَ هُمْ بِاٰيٰتِنَا يُؤْمِنُوْنَۚ١٥٦
Waktub lanā fī hāżihid-dun-yā ḥasanataw wa fil-ākhirati innā hudnā ilaik(a), qāla ‘ażābī uṣību bihī man asyā'(u), wa raḥmatī wasi‘at kulla syai'(in), fa sa'aktubuhā lil-lażīna yattaqūna wa yu'tūnaz-zakāta wal-lażīna hum bi'āyātinā yu'minūn(a).
[156]
और हमारे लिए इस संसार में भलाई लिख दे तथा परलोक (आख़िरत) में भी। निःसंदेह हम तेरी ओर लौट आए। अल्लाह ने कहा : मैं अपनी यातना से जिसे चाहता हूँ, ग्रस्त करता हूँ। और मेरी दया प्रत्येक चीज़ को घेरे हुए है। अतः मैं उसे उन लोगों के लिए अवश्य लिख दूँगा, जो डरते हैं और ज़कात देते है और जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं।
اَلَّذِيْنَ يَتَّبِعُوْنَ الرَّسُوْلَ النَّبِيَّ الْاُمِّيَّ الَّذِيْ يَجِدُوْنَهٗ مَكْتُوْبًا عِنْدَهُمْ فِى التَّوْرٰىةِ وَالْاِنْجِيْلِ يَأْمُرُهُمْ بِالْمَعْرُوْفِ وَيَنْهٰىهُمْ عَنِ الْمُنْكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ الطَّيِّبٰتِ وَيُحَرِّمُ عَلَيْهِمُ الْخَبٰۤىِٕثَ وَيَضَعُ عَنْهُمْ اِصْرَهُمْ وَالْاَغْلٰلَ الَّتِيْ كَانَتْ عَلَيْهِمْۗ فَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِهٖ وَعَزَّرُوْهُ وَنَصَرُوْهُ وَاتَّبَعُوا النُّوْرَ الَّذِيْٓ اُنْزِلَ مَعَهٗٓ ۙاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ࣖ١٥٧
Al-lażīna yattabi‘ūnar-rasūlan nabiyyal-ummiyyal-lażī yajidūnahū maktūban ‘indahum fit-taurāti wal-injīli ya'muruhum bil-ma‘rūfi wa yanhāhum ‘anil-munkari wa yuḥillu lahumuṭ-ṭayyibāti wa yuḥarrimu ‘alaihimul-khabā'iṡa wa yaḍa‘u ‘anhum iṣrahum wal-aglālal-latī kānat ‘alaihim, fal-lażīna āmanū bihī wa ‘azzarūhu wa naṣarūhu wattaba‘un nūral-lażī unzila ma‘ah(ū), ulā'ika humul-mufliḥūn(a).
[157]
जो लोग उस रसूल का अनुसरण करते हैं, जो उम्मी नबी56 है, जिसे वे अपने पास तौरात तथा इंजील में लिखा हुआ पाते हैं, जो उन्हें नेकी का आदेश देता है और बुराई से रोकता है, तथा उनके लिए पाकीज़ा चीज़ों को हलाल (वैध) करता और उनपर अपवित्र चीज़ों को हराम (अवैध) ठहराता है और उनसे उनका बोझ और वह तौक़ उतारता है, जो उनपर पड़े हुए थे। अतः जो लोग उसपर ईमान लाए, उसका समर्थन किया, उसकी सहायता की और उस प्रकाश (क़ुरआन) का अनुसरण किया, जो उसके साथ उतारा गया, वही लोग सफलता प्राप्त करने वाले हैं।
56. अर्थात बनी इसराईल से नहीं। इससे अभिप्राय अंतिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जिनके आगमन की भविष्यवाणी तौरात, इंजील तथा दूसरे धर्म शास्त्रों में पाई जाती है। यहाँ पर आपकी तीन विशेषताओं की चर्चा की गयी है : 1. आप सदाचार का आदेश देते तथा दुराचार से रोकते हैं। 2. स्वच्छ चीज़ों के प्रयोग को उचित तथा मलिन चीज़ों के प्रयोग को अनुचित ठहराते हैं। 3. अह्ले किताब जिन कड़े धार्मिक नियमों के बोझ तले दबे हुए थे, उन्हें उनसे मुक्त करते हैं। और रसूल इस्लामी धर्म विधान प्रस्तुत करते हैं, और उनके आगमन के पश्चात् लोक-परलोक की सफलता आप ही के धर्म विधान के अनुसरण में सीमित है।
قُلْ يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اِنِّيْ رَسُوْلُ اللّٰهِ اِلَيْكُمْ جَمِيْعًا ۨالَّذِيْ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ يُحْيٖ وَيُمِيْتُۖ فَاٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهِ النَّبِيِّ الْاُمِّيِّ الَّذِيْ يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَكَلِمٰتِهٖ وَاتَّبِعُوْهُ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ١٥٨
Qul yā ayyuhan-nāsu innī rasūlullāhi ilaikum jamī‘anil-lażī lahū mulkus-samāwāti wal-arḍ(i), lā ilāha illā huwa yuḥyī wa yumīt(u), fa āminū billāhi wa rasūlihin-nabiyyil-ummiyyil-lażī yu'minu billāhi wa kalimatihī wattabi‘ūhu la‘allakum tahtadūn(a).
[158]
(ऐ नबी!) आप कह दें कि ऐ मानव जाति के लोगो! निःसंदेह मैं तुम सब की ओर उस अल्लाह का रसूल हूँ, जिसके लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वही जीवन देता और मारता है। अतः तुम अल्लाह पर और उसके रसूल उम्मी नबी पर ईमान लाओ, जो अल्लाह पर और उसकी सभी वाणियों (पुस्तकों) पर ईमान रखता है और उसका अनुसरण करो, ताकि तुम सीधा मार्ग पाओ।57
57. इस आयत का भावार्थ यह है कि इस्लाम के नबी किसी विशेष जाति तथा देश के नबी नहीं हैं, प्रलय तक के लिए पूरी मानव जाति के नबी हैं। यह सबको एक अल्लाह की वंदना कराने के लिए आए हैं, जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। आपका चिह्न अल्लाह पर तथा सब प्राचीन पुस्तकों और नबियों पर ईमान है। आपका अनुसरण करने का अर्थ यह है कि अब उसी प्रकार अल्लाह की उपासना करो, जैसे आपने की और बताई है। और आपके लाए हुए धर्म विधान का पालन करो।
وَمِنْ قَوْمِ مُوْسٰٓى اُمَّةٌ يَّهْدُوْنَ بِالْحَقِّ وَبِهٖ يَعْدِلُوْنَ١٥٩
Wa min qaumi mūsā ummatuy yahdūna bil-ḥaqqi wa bihī ya‘dilūn(a).
[159]
और मूसा की जाति के अंदर एक गिरोह ऐसा है, जो सत्य के साथ मार्गदर्शन करता है और उसी के अनुसार न्याय करता है।58
58. इससे अभिप्राय वे लोग हैं जो मूसा (अलैहिस्सलाम) के लाए हुए धर्म पर क़ायम थे और आने वाले नबी की प्रतीक्षा कर रहे थे और जब वह आए तो तुरंत आपपर ईमान लाए, जैसे अबदुल्लाह बिन सलाम इत्यादि।
وَقَطَّعْنٰهُمُ اثْنَتَيْ عَشْرَةَ اَسْبَاطًا اُمَمًاۗ وَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اِذِ اسْتَسْقٰىهُ قَوْمُهٗٓ اَنِ اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْحَجَرَۚ فَانْۢبَجَسَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًاۗ قَدْ عَلِمَ كُلُّ اُنَاسٍ مَّشْرَبَهُمْۗ وَظَلَّلْنَا عَلَيْهِمُ الْغَمَامَ وَاَنْزَلْنَا عَلَيْهِمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوٰىۗ كُلُوْا مِنْ طَيِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْۗ وَمَا ظَلَمُوْنَا وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ١٦٠
Wa qaṭṭa‘nāhumuṡnatai ‘asyrata asbāṭan umamā(n), wa auḥainā ilā mūsā iżistasqāhu qaumuhū aniḍrib bi‘aṣākal-ḥajar(a), fambajasat minhuṡnatā ‘asyrata ‘ainā(n), qad ‘alima kullu unāsim masyrabahum, wa ẓallalnā ‘alaihimul-gamāma wa anzalnā ‘alaihimul-manna was-salwā, kulū min ṭayyibāti mā razaqnākum, wa mā ẓalamūnā wa lākin kānū anfusahum yaẓlimūn(a).
[160]
और हमने उन्हें बारह गोत्रों में विभाजित करके अलग-अलग समूह बना दिया। और जब मूसा की जाति ने उनसे पानी माँगा, तो हमने उनकी ओर वह़्य भेजी कि अपनी लाठी पत्थर पर मारो। तो उससे बारह स्रोत फूट निकले। निःसंदेह सब लोगों ने अपने पानी पीने का स्थान जान लिया। तथा हमने उनपर बादल की छाया की और उनपर मन्न और सलवा उतारा। (हमने कहा :) इन पाकीज़ा चीज़ों में से, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं, खाओ। और उन्होंने हमपर अत्याचार नहीं किया, परंतु वे अपने आप ही पर अत्याचार करते थे।
وَاِذْ قِيْلَ لَهُمُ اسْكُنُوْا هٰذِهِ الْقَرْيَةَ وَكُلُوْا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ وَقُوْلُوْا حِطَّةٌ وَّادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا نَّغْفِرْ لَكُمْ خَطِيْۤـٰٔتِكُمْۗ سَنَزِيْدُ الْمُحْسِنِيْنَ١٦١
Wa iżā qīla lahumuskunū hāżihil-qaryata wa kulū minhā ḥaiṡu syi'tum wa qūlū ḥiṭṭatuw wadkhulul-bāba sujjadan nagfir lakum khaṭī'ātikum, sanazīdul-muḥsinīn(a).
[161]
और जब उनसे कहा गया कि इस नगर (बैतुल मक़्दिस) में बस जाओ और उसमें से जहाँ से इच्छा हो खाओ और कहो कि हमें क्षमा कर दे तथा द्वार में सज्दा करते हुए प्रवेश करो, हम तुम्हारे लिए तुम्हारे पाप क्षमा कर देंगे। हम सत्कर्मियों को और अधिक देंगे।
فَبَدَّلَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْهُمْ قَوْلًا غَيْرَ الَّذِيْ قِيْلَ لَهُمْ فَاَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِجْزًا مِّنَ السَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوْا يَظْلِمُوْنَ ࣖ١٦٢
Fa baddalal-lażīna ẓalamū minhum qaulan gairal-lażī qīla lahum fa arsalnā ‘alaihim rijzam minas-samā'i bimā kānū yaẓlimūn(a).
[162]
तो उनमें से जो अत्याचारी थे, उन्होंने उस बात को जो उनसे कही गई थी, दूसरी बात से बदल59 दिया। तो हमने उनपर, उनके अत्याचार के कारण, आकाश से अज़ाब भेजा।
59. और चूतड़ों के बल खिसकते और यह कहते हुए प्रवेश किया कि हमें बालियों में दाना चाहिए। (सह़ीह़ बुख़ारीः4641)
وَسْـَٔلْهُمْ عَنِ الْقَرْيَةِ الَّتِيْ كَانَتْ حَاضِرَةَ الْبَحْرِۘ اِذْ يَعْدُوْنَ فِى السَّبْتِ اِذْ تَأْتِيْهِمْ حِيْتَانُهُمْ يَوْمَ سَبْتِهِمْ شُرَّعًا وَّيَوْمَ لَا يَسْبِتُوْنَۙ لَا تَأْتِيْهِمْ ۛ كَذٰلِكَ ۛنَبْلُوْهُمْ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ١٦٣
Was'alhum ‘anil-qaryatil-latī kānat ḥāḍiratal-baḥr(i), iż ya‘dūna fis-sabti iż ta'tīhim ḥītānuhum yauma sabtihim syurra‘aw wa yauma lā yasbitūn(a), lā ta'tīhim - każālika - nablūhum bimā kānū yafsuqūn(a).
[163]
तथा (ऐ नबी!) उनसे उस बस्ती के संबंध में पूछें, जो समुद्र (लाल सागर) के किनारे पर थी, जब वे शनिवार के दिन के विषय में सीमा का उल्लंघन60 करते थे, जब उनके पास उनकी मछलियाँ उनके शनिवार के दिन पानी की सतह पर प्रत्यक्ष होकर आती थीं और जिस दिन उनका शनिवार न होता, वे उनके पास नहीं आती थीं। इस प्रकार हम उनका परीक्षण करते थे, इस कारण कि वे अवज्ञा करते थे।
60. क्योंकि उनके लिए यह आदेश था कि शनिवार को मछलियों का शिकार नहीं करेंगे। अधिकांश भाष्यकारों ने उस नगरी का नाम ईला (ईलात) बताया है, जो क़ुल्ज़ुम सागर के किनारे पर आबाद थी।
وَاِذْ قَالَتْ اُمَّةٌ مِّنْهُمْ لِمَ تَعِظُوْنَ قَوْمًاۙ ۨاللّٰهُ مُهْلِكُهُمْ اَوْ مُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِيْدًاۗ قَالُوْا مَعْذِرَةً اِلٰى رَبِّكُمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَّقُوْنَ١٦٤
Wa iż qālat ummatum minhum lima ta‘iẓūna qaumā(n), allāhu muhlikuhum au mu‘ażżibuhum ‘ażāban syadīdā(n), qālū ma‘żiratan ilā rabbikum wa la‘allahum yattaqūn(a).
[164]
तथा जब उनमें से एक समूह ने कहा कि तुम ऐसे लोगों को क्यों समझा रहे हो, जिन्हें अल्लाह (उनकी अवज्ञा के कारण) विनष्ट करने वाला है, या उन्हें बहुत सख़्त यातना देने वाला है? उन्होंने कहा : तुम्हारे पालनहार के समक्ष उज़्र करने के लिए और इसलिए कि शायद वे डर जाएँ।61
61. आयत में यह संकेत है कि बुराई को रोकने से निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि हो सकता है कि किसी के दिल में बात लग ही जाए, और यदि न भी लगे तो अपना कर्तव्य पूरा हो जाएगा।
فَلَمَّا نَسُوْا مَا ذُكِّرُوْا بِهٖٓ اَنْجَيْنَا الَّذِيْنَ يَنْهَوْنَ عَنِ السُّوْۤءِ وَاَخَذْنَا الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا بِعَذَابٍۢ بَـِٔيْسٍۢ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ١٦٥
Falammā nasū mā żukkirū bihī anjainal-lażīna yanhauna ‘anis-sū'i wa akhażnal-lażīna ẓalamū bi‘ażābim ba'īsim bimā kānū yafsuqūn(a).
[165]
फिर जब वे उस बात को भूल गए, जिसकी उन्हें नसीहत की गई थी, तो हमने उन लोगों को बचा लिया, जो बुराई से रोक रहे थे, और उन लोगों को जिन्होंने अत्याचार किया, उनकी अवज्ञा के कारण कठोर यातना में पकड़ लिया।
فَلَمَّا عَتَوْا عَنْ مَّا نُهُوْا عَنْهُ قُلْنَا لَهُمْ كُوْنُوْا قِرَدَةً خٰسِـِٕيْنَ١٦٦
Falammā ‘atau ‘am mā nuhū ‘anhu qulnā lahum kūnū qiradatan khāsi'īn(a).
[166]
फिर जब वे उस काम में सीमा से आगे बढ़ गए, जिससे वे रोके गए थे, तो हमने उनसे कहा कि अपमानित बंदर बन जाओ।
وَاِذْ تَاَذَّنَ رَبُّكَ لَيَبْعَثَنَّ عَلَيْهِمْ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ يَّسُوْمُهُمْ سُوْۤءَ الْعَذَابِۗ اِنَّ رَبَّكَ لَسَرِيْعُ الْعِقَابِۖ وَاِنَّهٗ لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ١٦٧
Wa iż ta'ażżana rabbuka layab‘aṡanna ‘alaihim ilā yaumil-qiyāmati may yasūmuhum sū'al-‘ażāb(i), inna rabbaka lasarī‘ul-‘iqāb(i), wa innahū lagafūrur raḥīm(un).
[167]
और याद करो, जब आपके पालनहार ने घोषणा कर दी कि वह क़ियामत के दिन तक, उन (यहूदियों) पर, ऐसा व्यक्ति अवश्य भेजता रहेगा, जो उन्हें घोर यातना दे।62 निःसंदेह आपका पालनहार शीघ्र दंड देने वाला है और निःसंदेह वह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।
62. यह चेतावनी बनी इसराईल को बहुत पहले से दी जा रही थी। ईसा (अलैहिस्सलाम) से पूर्व आने वाले नबियों ने बनी इसराईल को डराया कि अल्लाह की अवज्ञा से बचो। और स्वयं ईसा ने भी उनको डराया, परंतु वे अपनी अवज्ञा पर बाक़ी रहे, जिसके कारण अल्लाह की यातना ने उन्हें घेर लिया और कई बार बैतुल मक़्दिस को उजाड़ा गया, और तौरात जलाई गई।
وَقَطَّعْنٰهُمْ فِى الْاَرْضِ اُمَمًاۚ مِنْهُمُ الصّٰلِحُوْنَ وَمِنْهُمْ دُوْنَ ذٰلِكَ ۖوَبَلَوْنٰهُمْ بِالْحَسَنٰتِ وَالسَّيِّاٰتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ١٦٨
Wa qaṭṭa‘nāhum fil-arḍi umamā(n), minhumuṣ-ṣāliḥūna wa minhum dūna żālik(a), wa balaunāhum bil-ḥasanāti was-sayyi'āti la‘allahum yarji‘ūn(a).
[168]
और हमने उन्हें धरती में कई समूहों में टुकड़े-टुकड़े कर दिया। उनमें से कुछ लोग सदाचारी थे और उनमें से कुछ इसके अलावा थे। तथा हमने अच्छी परिस्थितियों और बुरी परिस्थितियों के साथ उनका परीक्षण किया, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।
فَخَلَفَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ وَّرِثُوا الْكِتٰبَ يَأْخُذُوْنَ عَرَضَ هٰذَا الْاَدْنٰى وَيَقُوْلُوْنَ سَيُغْفَرُ لَنَاۚ وَاِنْ يَّأْتِهِمْ عَرَضٌ مِّثْلُهٗ يَأْخُذُوْهُۗ اَلَمْ يُؤْخَذْ عَلَيْهِمْ مِّيْثَاقُ الْكِتٰبِ اَنْ لَّا يَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ اِلَّا الْحَقَّ وَدَرَسُوْا مَا فِيْهِۗ وَالدَّارُ الْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ١٦٩
Fa khalafa mim ba‘dihim khalfuw wariṡul-kitāba ya'khużūna ‘araḍa hāżal-adnā wa yaqūlūna sayugfaru lanā, wa iy ya'tihim ‘araḍum miṡluhū ya'khużūh(u), alam yu'khaż ‘alaihim mīṡāqul-kitābi allā yaqūlū ‘alallāhi illal-ḥaqqa wa darasū mā fīh(i), wad-dārul-ākhiratu khairul lil-lażīna yattaqūn(a), afalā ta‘qilūn(a).
[169]
फिर उनके बाद उनकी जगह नालायक़ उत्तराधिकारी आए, जो पुस्तक के वारिस बने, वे इस तुच्छ संसार का सामान लेते हैं और कहते हैं कि हमें क्षमा कर दिया जाएगा। और यदि उनके पास इस जैसा और सामान भी आ जाए, तो उसे भी ले लेते हैं। क्या उनसे पुस्तक का दृढ़ वचन नहीं लिया गया था कि अल्लाह पर सत्य के सिवा कुछ नहीं कहेंगे, और उन्होंने जो कुछ उसमें था, पढ़ भी लिया था। और आख़िरत का घर (जन्नत) उन लोगों के लिए उत्तम है, जो अल्लाह से डरते हैं। तो क्या तुम नहीं63 समझते?
63. इस आयत में यहूदी विद्वानों की दुर्दशा बताई गई है कि वे तुच्छ सांसारिक लाभ के लिए धर्म में परिवर्तन कर देते थे और अवैध को वैध बना लेते थे। फिर भी उन्हें यह गर्व था कि अल्लाह उन्हें अवश्य क्षमा कर देगा।
وَالَّذِيْنَ يُمَسِّكُوْنَ بِالْكِتٰبِ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَۗ اِنَّا لَا نُضِيْعُ اَجْرَ الْمُصْلِحِيْنَ١٧٠
Wal-lażīna yumassikūna bil-kitābi wa aqāmuṣ-ṣalāh(ta), innā lā nuḍī‘u ajral-muṣliḥīn(a).
[170]
और जो लोग पुस्तक को दृढ़ता से पकड़ते हैं और उन्होंने नमाज़ क़ायम की, निश्चय हम सुधार करने वालों का प्रतिफल अकारथ नहीं करते।
۞ وَاِذْ نَتَقْنَا الْجَبَلَ فَوْقَهُمْ كَاَنَّهٗ ظُلَّةٌ وَّظَنُّوْٓا اَنَّهٗ وَاقِعٌۢ بِهِمْۚ خُذُوْا مَآ اٰتَيْنٰكُمْ بِقُوَّةٍ وَّاذْكُرُوْا مَا فِيْهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَ ࣖ١٧١
Wa iż nataqnal-jabala fauqahum ka'annahum ẓullatuw wa ẓannū annahū wāqi‘um bihim, khużū mā ātainākum biquwwatiw ważkurū mā fīhi la‘allakum tattaqūn(a).
[171]
और जब हमने उनके ऊपर पर्वत को इस तरह उठा लिया, जैसे वह एक छतरी हो, और उन्हें विश्वास हो गया कि वह उनपर गिरने वाला है। (तथा यह आदेश दिया कि) जो (पुस्तक) हमने तुम्हें प्रदान की है, उसे मज़बूती से थाम लो तथा उसमें जो कुछ है, उसे याद रखो, ताकि तुम परहेज़गार हो जाओ।
وَاِذْ اَخَذَ رَبُّكَ مِنْۢ بَنِيْٓ اٰدَمَ مِنْ ظُهُوْرِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَاَشْهَدَهُمْ عَلٰٓى اَنْفُسِهِمْۚ اَلَسْتُ بِرَبِّكُمْۗ قَالُوْا بَلٰىۛ شَهِدْنَا ۛاَنْ تَقُوْلُوْا يَوْمَ الْقِيٰمَةِ اِنَّا كُنَّا عَنْ هٰذَا غٰفِلِيْنَۙ١٧٢
Wa iż akhaża rabbuka mim banī ādama min ẓuhūrihim żurriyyatahum wa asyhadahum ‘alā anfusihim, alastu birabbikum, qālū balā - syahidnā - an taqūlū yaumal-qiyāmati innā kunnā ‘an hāżā gāfilīn(a).
[172]
तथा (वह समय याद करें) जब आपके पालनहार ने आदम के बेटों की पीठों से उनकी संतति को निकाला और उन्हें स्वयं उनपर गवाह बनाते हुए कहा : क्या मैं तुम्हारा पालनहार नहीं हूँ? उन्होंने कहा : क्यों नहीं, हम (इसके) गवाह64 हैं। (ऐसा न हो) कि तुम क़ियामत के दिन कहो निःसंदेह हम इससे ग़ाफ़िल थे।
64. यह उस समय की बात है जब आदम अलैहिस्सलाम की उत्पत्ति के पश्चात् उनकी सभी संतान को जो प्रलय तक होगी, उनकी आत्माओं से अल्लाह ने अपने पालनहार होने की गवाही ली थी। (इब्ने कसीर)
اَوْ تَقُوْلُوْٓا اِنَّمَآ اَشْرَكَ اٰبَاۤؤُنَا مِنْ قَبْلُ وَكُنَّا ذُرِّيَّةً مِّنْۢ بَعْدِهِمْۚ اَفَتُهْلِكُنَا بِمَا فَعَلَ الْمُبْطِلُوْنَ١٧٣
Au taqūlū innamā asyraka ābā'unā min qablu wa kunnā żurriyyatam mim ba‘dihim, afatuhlikunā bimā fa‘alal-mubṭilūn(a).
[173]
अथवा यह कहो कि शिर्क तो हमसे पहले हमारे बाप-दादा ही ने किया था और हम तो उनके बाद उनकी संतान थे। तो क्या तू गुमराहों के कर्म के कारण हमें विनष्ट करता है?65
65. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह के अस्तित्व तथा एकेश्वर्वाद की आस्था सभी मानव का स्वभाविक धर्म है। कोई यह नहीं कह सकता कि मैं अपने पूर्वजों की गुमराही से गुमराह हो गया। यह स्वभाविक आंतरिक आवाज़ है जो कभी दब नहीं सकती।
وَكَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الْاٰيٰتِ وَلَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ١٧٤
Wa każālika nufaṣṣilul-āyāti wa la‘allahum yarji‘ūn(a).
[174]
और इसी प्रकार, हम आयतों को खोल-खोल कर बयान करते हैं, और ताकि वे (सत्य की ओर) पलट आएँ।
وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ الَّذِيْٓ اٰتَيْنٰهُ اٰيٰتِنَا فَانْسَلَخَ مِنْهَا فَاَتْبَعَهُ الشَّيْطٰنُ فَكَانَ مِنَ الْغَاوِيْنَ١٧٥
Watlu ‘alaihim naba'al-lażī ātaināhu āyātinā fansalakha minhā fa atba‘ahusy-syaiṭānu fa kāna minal-gāwīn(a).
[175]
और उन्हें उस व्यक्ति का हाल पढ़कर सुनाएँ, जिसे हमने अपनी आयतें प्रदान कीं, तो वह उनसे निकल गया। फिर शैतान उसके पीछे लग गया, तो वह गुमराहों में से हो गया।
وَلَوْ شِئْنَا لَرَفَعْنٰهُ بِهَا وَلٰكِنَّهٗٓ اَخْلَدَ اِلَى الْاَرْضِ وَاتَّبَعَ هَوٰىهُۚ فَمَثَلُهٗ كَمَثَلِ الْكَلْبِۚ اِنْ تَحْمِلْ عَلَيْهِ يَلْهَثْ اَوْ تَتْرُكْهُ يَلْهَثْۗ ذٰلِكَ مَثَلُ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۚ فَاقْصُصِ الْقَصَصَ لَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُوْنَ١٧٦
Wa lau syi'nā larafa‘nāhu bihā wa lākinnahū akhlada ilal-arḍi wattaba‘a hawāh(u), fa maṡaluhū kamaṡalil-kalb(i), in taḥmil ‘alaihi yalhaṡ au tatrukūhu yalhaṡ, żālika maṡalul-qaumil-lażīna każżabū bi'āyātinā, faqṣuṣil-qaṣaṣa la‘allahum yatafakkarūn(a).
[176]
और यदि हम चाहते, तो उन (आयतों) के द्वारा उसका पद ऊँचा कर देते, परंतु वह धरती से चिमट गया और अपनी इच्छा के पीछे लग गया। अतः उसकी दशा उस कुत्ते के समान हो गई, जिसे हाँको, तब भी जीभ निकाले हाँफता रहे और छोड़ दो, तब भी जीभ निकाले हाँफता है। यह उन लोगों की मिसाल है, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया। तो आप ये कथाएँ (उन्हें) सुना दें, ताकि वे सोच-विचार करें।
سَاۤءَ مَثَلًا ۨالْقَوْمُ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَاَنْفُسَهُمْ كَانُوْا يَظْلِمُوْنَ١٧٧
Sā'a maṡalanil-qaumul-lażīna każżabū bi'āyātinā wa anfusahum kānū yaẓlimūn(a).
[177]
उन लोगों की मिसाल बहुत बुरी है, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे।66
66. भाष्यकारों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग और प्राचीन युग के कई ऐसे व्यक्तियों का नाम लिया है, जिनका यह उदाहरण हो सकता है। परंतु आयत का भावार्थ बस इतना है कि प्रत्येक व्यक्ति जिसमें ये अवगुण पाए जाते हों, उसकी दशा यही होती है, जिसकी जीभ से माया-मोह के कारण राल टपकती रहती है, और उसकी लोभाग्नि कभी नहीं बुझती।
مَنْ يَّهْدِ اللّٰهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِيْۚ وَمَنْ يُّضْلِلْ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ١٧٨
May yahdillāhu fa huwal-muhtadī, wa may yuḍlil fa ulā'ika humul-khāsirūn(a).
[178]
जिसे अल्लाह मार्गदर्शन प्रदान कर दे, तो वही मार्गदर्शन पाने वाला है और जिसे वह गुमराह67 कर दे, तो वही घाटा उठाने वाले हैं।
67. क़ुरआन ने बार-बार इस तथ्य को दुहराया है कि मार्गदर्शन के लिए सोच-विचार की आवश्यकता है। और जो लोग अल्लाह की दी हुई विचार शक्ति से काम नहीं लेते, वही सीधी राह नहीं पाते। यही अल्लाह के सुपथ और कुपथ करने का अर्थ है।
وَلَقَدْ ذَرَأْنَا لِجَهَنَّمَ كَثِيْرًا مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِۖ لَهُمْ قُلُوْبٌ لَّا يَفْقَهُوْنَ بِهَاۖ وَلَهُمْ اَعْيُنٌ لَّا يُبْصِرُوْنَ بِهَاۖ وَلَهُمْ اٰذَانٌ لَّا يَسْمَعُوْنَ بِهَاۗ اُولٰۤىِٕكَ كَالْاَنْعَامِ بَلْ هُمْ اَضَلُّ ۗ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْغٰفِلُوْنَ١٧٩
Wa laqad żara'nā lijahannama kaṡīram minal-jinni wal-ins(i), lahum qulūbul lā yafqahūna bihā wa lahum a‘yunul lā yabṣirūna bihā wa lahum āżānul lā yasma‘ūna bihā, ulā'ika kal-an‘āmi bal hum aḍall(u), ulā'ika humul-gāfilūn(a).
[179]
और निःसंदेह हमने बहुत-से जिन्न और इनसान जहन्नम ही के लिए पैदा किए हैं। उनके दिल हैं, जिनसे वे समझते नहीं, उनकी आँखें हैं, जिनसे वे देखते नहीं और उनके कान हैं, जिनसे वे सुनते नहीं। ये लोग पशुओं के समान हैं; बल्कि ये उनसे भी अधिक गुमराह हैं। यही लोग हैं जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं।68
68. आयत का भावार्थ यह है कि सत्य को प्राप्त करने के दो ही साधन है : ध्यान और ज्ञान। ध्यान यह है कि अल्लाह की दी हुई विचार शक्ति से काम लिया जाए। और ज्ञान यह है कि इस विश्व की व्यवस्था को देखा जाए और नबियों द्वारा प्रस्तुत किए हुए सत्य को सुना जाए, और जो इन दोनों से वंचित हो वह अंधा-बहरा है।
وَلِلّٰهِ الْاَسْمَاۤءُ الْحُسْنٰى فَادْعُوْهُ بِهَاۖ وَذَرُوا الَّذِيْنَ يُلْحِدُوْنَ فِيْٓ اَسْمَاۤىِٕهٖۗ سَيُجْزَوْنَ مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ۖ١٨٠
Wa lillāhil-asmā'ul-ḥusnā fad‘ūhu bihā, wa żarul-lażīna yulḥidūna fī asmā'ih(ī), sayujzauna mā kānū ya‘malūn(a).
[180]
और सबसे अच्छे नाम अल्लाह ही के हैं। अतः उसे उन्हीं के द्वारा पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो, जो उसके नामों के बारे में सीधे रास्ते से हटते69 हैं। उन्हें शीघ्र ही उसका बदला दिया जाएगा, जो वे किया करते थे।
69. अर्थात उसके गौणिक नामों से अपनी मूर्तियों को पुकारते हैं। जैसे अज़ीज़ से "उज़्ज़ा" और इलाह से "लात" इत्यादि।
وَمِمَّنْ خَلَقْنَآ اُمَّةٌ يَّهْدُوْنَ بِالْحَقِّ وَبِهٖ يَعْدِلُوْنَ ࣖ١٨١
Wa mimman khalaqnā ummatuy yahdūna bil-ḥaqqi wa bihī ya‘dilūn(a).
[181]
और उन लोगों में से जिन्हें हमने पैदा किया कुछ लोग ऐसे हैं, जो सत्य के साथ मार्गदर्शन करते और उसी के अनुसार न्याय करते हैं।
وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا سَنَسْتَدْرِجُهُمْ مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُوْنَ١٨٢
Wal-lażīna każżabū bi'āyātinā sanastadrijuhum min ḥaiṡu lā ya‘lamūn(a).
[182]
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया, हम उन्हें धीरे-धीरे (विनाश तक) ऐसे खींच कर ले जाएँगे कि उन्हें इसका ज्ञान नहीं होगा।
وَاُمْلِيْ لَهُمْ ۗاِنَّ كَيْدِيْ مَتِيْنٌ١٨٣
Wa umlī lahum, inna kaidī matīn(un).
[183]
और मैं उन्हें मोहलत दूँगा। निःसंदेह मेरा गुप्त उपाय बहुत मज़बूत है।
اَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوْا مَا بِصَاحِبِهِمْ مِّنْ جِنَّةٍۗ اِنْ هُوَ اِلَّا نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ١٨٤
Awalam yatafakkarū mā biṣāḥibihim min jinnah(tin), in huwa illā nażīrum mubīn(un).
[184]
और क्या उन्होंने विचार नहीं किया कि उनके साथी70 में कोई पागलपन नहीं है? वह तो केवल खुले रूप से सचेत करने वाला है।
70. साथी से अभिप्राय मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जिनको नबी होने से पहले वही लोग "अमीन" कहते थे।
اَوَلَمْ يَنْظُرُوْا فِيْ مَلَكُوْتِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا خَلَقَ اللّٰهُ مِنْ شَيْءٍ وَّاَنْ عَسٰٓى اَنْ يَّكُوْنَ قَدِ اقْتَرَبَ اَجَلُهُمْۖ فَبِاَيِّ حَدِيْثٍۢ بَعْدَهٗ يُؤْمِنُوْنَ١٨٥
Awalam yanẓurū fī malakūtis-samāwāti wal-arḍi wa mā khalaqallāhu min syai'iw wa an ‘asā ay yakūna qadiqtaraba ajaluhum, fa bi'ayyi ḥadīṡim ba‘dahū yu'minūn(a).
[185]
क्या उन्होंने आकाशों तथा धरती के विशाल राज्य पर और जो चीज़ भी अल्लाह ने पैदा की है, उसपर दृष्टि नहीं डाली71, और इस बात पर कि हो सकता है कि उनका (निर्धारित) समय बहुत निकट आ गया हो? तो फिर इस (क़ुरआन) के बाद वे किस बात पर ईमान लाएँगे?
71. अर्थात यदि ये विचार करें, तो इस पूरे विश्व की व्यवस्था और उसका एक-एक कण अल्लाह के अस्तित्व और उसके गुणों का प्रमाण है। और उसी ने मानव जीवन की व्यवस्था के लिए नबियों को भेजा है।
مَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَلَا هَادِيَ لَهٗ ۖوَيَذَرُهُمْ فِيْ طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُوْنَ١٨٦
May yuḍlilillāhu falā hādiya lah(ū), wa yażaruhum fī ṭugyānihim ya‘mahūn(a).
[186]
जिसे अल्लाह पथभ्रष्ट कर दे, उसे कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं और वह उन्हें उनकी सरकशी में भटकते हुए छोड़ देता है।
يَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ السَّاعَةِ اَيَّانَ مُرْسٰىهَاۗ قُلْ اِنَّمَا عِلْمُهَا عِنْدَ رَبِّيْۚ لَا يُجَلِّيْهَا لِوَقْتِهَآ اِلَّا هُوَۘ ثَقُلَتْ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ لَا تَأْتِيْكُمْ اِلَّا بَغْتَةً ۗيَسْـَٔلُوْنَكَ كَاَنَّكَ حَفِيٌّ عَنْهَاۗ قُلْ اِنَّمَا عِلْمُهَا عِنْدَ اللّٰهِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ١٨٧
Yas'alūnaka ‘anis-sā‘ati ayyāna mursāhā, qul innamā ‘ilmuhā ‘inda rabbī, lā yujallīhā liwaqtihā illā huw(a), ṡaqulat fis-samāwāti wal-arḍ(i), lā ta'tīkum illā bagtah(tan), yas'alūnaka ka'annaka ḥafiyyun ‘anhā, qul innamā ‘ilmuhā ‘indallāhi wa lākinna akṡaran nāsi lā ya‘lamūn(a).
[187]
(ऐ नबी!) वे आपसे क़ियामत के विषय में पूछते हैं कि वह कब घटित होगी? कह दें कि उसका ज्ञान तो मेरे पालनहार ही के पास है। उसे उसके समय पर वही प्रकट करेगा। वह आकाशों तथा धरती में बहुत भारी है। तुमपर अचानक ही आएगी। वे आपसे ऐसे पूछ रहे हैं, जैसे कि आप उसी की खोज में लगे हुए हों। आप कह दें कि उसका ज्ञान तो अल्लाह ही के पास है। परंतु72 अधिकांश लोग (इस तथ्य को) नहीं जानते।
72. मक्का के मिश्रणवादी आपसे उपहास स्वरूप प्रश्न करते थे कि यदि प्रलय होना सत्य है, तो बताओ बह कब होगी?
قُلْ لَّآ اَمْلِكُ لِنَفْسِيْ نَفْعًا وَّلَا ضَرًّا اِلَّا مَا شَاۤءَ اللّٰهُ ۗوَلَوْ كُنْتُ اَعْلَمُ الْغَيْبَ لَاسْتَكْثَرْتُ مِنَ الْخَيْرِۛ وَمَا مَسَّنِيَ السُّوْۤءُ ۛاِنْ اَنَا۠ اِلَّا نَذِيْرٌ وَّبَشِيْرٌ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ࣖ١٨٨
Qul lā amliku linafsī naf‘aw wa lā ḍarran illā mā syā'allāh(u), wa lau kuntu a‘lamul gaiba-lastakṡartu minal-khair(i) - wa mā massaniyas-sū'(u) - in ana illā nażīruw wa basyīrul liqaumiy yu'minūn(a).
[188]
आप कह दें कि मैं अपने लिए किसी लाभ और हानि का मालिक नहीं हूँ, परंतु जो अल्लाह चाहे। और यदि मैं ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान रखता होता, तो अवश्य बहुत अधिक भलाइयाँ प्राप्त कर लेता और मुझे कोई कष्ट नहीं पहुँचता। मैं तो केवल उन लोगों को सावधान करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।
۞ هُوَ الَّذِيْ خَلَقَكُمْ مِّنْ نَّفْسٍ وَّاحِدَةٍ وَّجَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا لِيَسْكُنَ اِلَيْهَاۚ فَلَمَّا تَغَشّٰىهَا حَمَلَتْ حَمْلًا خَفِيْفًا فَمَرَّتْ بِهٖ ۚفَلَمَّآ اَثْقَلَتْ دَّعَوَا اللّٰهَ رَبَّهُمَا لَىِٕنْ اٰتَيْتَنَا صَالِحًا لَّنَكُوْنَنَّ مِنَ الشّٰكِرِيْنَ١٨٩
Huwal-lażī khalaqakum min nafsiw wāḥidatiw waja‘ala minhā zaujahā liyaskuna ilaihā, falammā tagasysyāhā ḥamalat ḥamlan khafīfan fa marrat bih(ī), falammā aṡqalad da‘awallāha rabbahumā la'in ātaitanā ṣāliḥan lanakūnanna minasy-syākirīn(a).
[189]
वही (अल्लाह) है, जिसने तुम्हें एक जान73 से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा बनाया, ताकि वह उसके पास सुकून हासिल करे। फिर जब उस (पति) ने उस (पत्नी) से सहवास किया, तो उसको हल्का सा गर्भ रह गया। तो वह उसे लेकर चलती फिरती रही, फिर जब वह बोझल हो गई, तो दोनों (पति-पत्नी) ने अपने पालनहार अल्लाह से दुआ की : निःसंदेह यदि तूने हमें अच्छा स्वस्थ बच्चा प्रदान किया, तो हम अवश्य ही आभार प्रकट करने वालों में से होंगे।
73. अर्थात आदम अलैहिस्सलाम से।
فَلَمَّآ اٰتٰىهُمَا صَالِحًا جَعَلَا لَهٗ شُرَكَاۤءَ فِيْمَآ اٰتٰىهُمَا ۚفَتَعٰلَى اللّٰهُ عَمَّا يُشْرِكُوْنَ١٩٠
Falammā ātāhumā ṣāliḥan ja‘alā lahū syurakā'a fīmā ātāhumā, fa ta‘ālallāhu ‘ammā yusyrikūn(a).
[190]
फिर जब उस (अल्लाह) ने उन्हें एक स्वस्थ बच्चा प्रदान कर दिया, तो दोनों ने उस (अल्लाह) के लिए उसमें साझी बना लिए, जो उसने उन्हें प्रदान किया था। तो अल्लाह उससे बहुत ऊँचा है जो वे साझी बनाते हैं।74
74. इन आयतों में यह बताया गया है कि मिश्रणवादी स्वस्थ बच्चे अथवा किसी भी आवश्यकता अथवा आपदा निवारण के लिए अल्लाह ही से प्रार्थना करते हैं। और जब स्वस्थ सुंदर बच्चा पैदा हो जाता है, तो देवी-देवताओं और पीरों के नाम चढ़ावे चढ़ाने लगते हैं और इसे उन्हीं की दया समझते हैं।
اَيُشْرِكُوْنَ مَا لَا يَخْلُقُ شَيْـًٔا وَّهُمْ يُخْلَقُوْنَۖ١٩١
Ayusyrikūna mā lā yakhluqu syai'aw wa hum yukhlaqūn(a).
[191]
क्या वे उन्हें (अल्लाह का) साझी बनाते हैं, जो कोई चीज़ पैदा नहीं करते और वे स्वयं पैदा किए जाते हैं?
وَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَ لَهُمْ نَصْرًا وَّلَآ اَنْفُسَهُمْ يَنْصُرُوْنَ١٩٢
Wa lā yastaṭī‘ūna lahum naṣraw wa lā anfusahum yanṣurūn(a).
[192]
तथा वे न उनकी कोई सहायता कर सकते हैं और न स्वयं अपनी सहायता करते हैं?
وَاِنْ تَدْعُوْهُمْ اِلَى الْهُدٰى لَا يَتَّبِعُوْكُمْۗ سَوَۤاءٌ عَلَيْكُمْ اَدَعَوْتُمُوْهُمْ اَمْ اَنْتُمْ صٰمِتُوْنَ١٩٣
Wa in tad‘ūhum ilal-hudā lā yattabi‘ūkum, sawā'un ‘alaikum ada‘autumūhum am antum ṣāmitūn(a).
[193]
और यदि तुम उन्हें सीधी राह की ओर बुलाओ, तो वे तुम्हारे पीछे नहीं आएँगे। तुम्हारे लिए बराबर है, चाहे उन्हें पुकारो अथवा तुम चुप रहो।
اِنَّ الَّذِيْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ عِبَادٌ اَمْثَالُكُمْ فَادْعُوْهُمْ فَلْيَسْتَجِيْبُوْا لَكُمْ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ١٩٤
Innal-lażīna tad‘ūna min dūnillāhi ‘ibādun amṡālukum fad‘ūhum falyastajībū lakum in kuntum ṣādiqīn(a).
[194]
निःसंदेह जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, वे तुम्हारे ही जैसे (अल्लाह के) बंदे हैं। अतः तुम उन्हें पुकारो, तो वे तुम्हारी दुआ क़बूल करें, यदि तुम सच्चे हो।
اَلَهُمْ اَرْجُلٌ يَّمْشُوْنَ بِهَآ ۖ اَمْ لَهُمْ اَيْدٍ يَّبْطِشُوْنَ بِهَآ ۖ اَمْ لَهُمْ اَعْيُنٌ يُّبْصِرُوْنَ بِهَآ ۖ اَمْ لَهُمْ اٰذَانٌ يَّسْمَعُوْنَ بِهَاۗ قُلِ ادْعُوْا شُرَكَاۤءَكُمْ ثُمَّ كِيْدُوْنِ فَلَا تُنْظِرُوْنِ١٩٥
Alahum arjuluy yamsyūna bihā am lahum aidiy yabṭisyūna bihā am lahum a‘yunuy yubṣirūna bihā am lahum āżānuy yasma‘ūna bihā, qulid‘ū syurakā'akum ṡumma kīdūni falā tunẓirūn(i).
[195]
क्या इन (पत्थर की मूर्तियों) के पाँव हैं, जिनसे वे चलती हैं? या उनके हाथ हैं, जिनसे वे पकड़ती हैं? या उनकी आँखें हैं, जिनसे वे देखती हैं? या उनके कान हैं, जिनसे वे सुनती हैं? आप कह दें कि अपने साझियों को बुला लो, फिर मेरे विरुद्ध उपाय करो और मुझे कोई अवसर न दो!
اِنَّ وَلِيِّ َۧ اللّٰهُ الَّذِيْ نَزَّلَ الْكِتٰبَۖ وَهُوَ يَتَوَلَّى الصّٰلِحِيْنَ١٩٦
Inna waliyyiyallāhul-lażī nazzalal-kitāb(a), wa huwa yatawallaṣ-ṣāliḥīn(a).
[196]
निःसंदेह मेरा संरक्षक अल्लाह है, जिसने यह पुस्तक (क़ुरआन) उतारी है और वही सदाचारियों का संरक्षण करता है।
وَالَّذِيْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ لَا يَسْتَطِيْعُوْنَ نَصْرَكُمْ وَلَآ اَنْفُسَهُمْ يَنْصُرُوْنَ١٩٧
Wal-lażīna tad‘ūna min dūnihī lā yastaṭī‘ūna naṣrakum wa lā anfusahum yanṣurūn(a).
[197]
और जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, वे न तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और न स्वयं अपनी सहायता करते हैं।
وَاِنْ تَدْعُوْهُمْ اِلَى الْهُدٰى لَا يَسْمَعُوْاۗ وَتَرٰىهُمْ يَنْظُرُوْنَ اِلَيْكَ وَهُمْ لَا يُبْصِرُوْنَ١٩٨
Wa in tad‘ūhum ilal-hudā lā yasma‘ū, wa tarāhum yanẓurūna ilaika wa hum lā yubṣirūn(a).
[198]
और यदि तुम उन्हें सीधी राह की ओर बुलाओ, तो वे नहीं सुनेंगे और (ऐ नबी!) आप उन्हें देखेंगे कि वे आपकी ओर देख रहे हैं, हालाँकि वे कुछ नहीं देखते।
خُذِ الْعَفْوَ وَأْمُرْ بِالْعُرْفِ وَاَعْرِضْ عَنِ الْجٰهِلِيْنَ١٩٩
Khużil-‘afwa wa'mur bil-‘urfi wa a‘riḍ ‘anil-jāhilīn(a).
[199]
(ऐ नबी!) आप क्षमा से काम लें, भलाई का आदेश दें तथा अज्ञानियों की ओर ध्यान न दें।75
75. ह़दीस में है कि अल्लाह ने इसे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने के बारे में उतारा है। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 4643)
وَاِمَّا يَنْزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطٰنِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللّٰهِ ۗاِنَّهٗ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ٢٠٠
Wa immā yanzagannaka minasy-syaiṭāni nazgun fasta‘iż billāh(i), innahū samī‘un ‘alīm(un).
[200]
और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
اِنَّ الَّذِيْنَ اتَّقَوْا اِذَا مَسَّهُمْ طٰۤىِٕفٌ مِّنَ الشَّيْطٰنِ تَذَكَّرُوْا فَاِذَا هُمْ مُّبْصِرُوْنَۚ٢٠١
Innal-lażīnattaqau iżā massahum ṭā'ifum minasy-syaiṭāni tażakkarū fa iżā hum mubṣirūn(a).
[201]
निश्चय जो लोग (अल्लाह का) डर रखते हैं, यदि शैतान की ओर से उन्हें कोई बुरा विचार आ भी जाए, तो तत्काल संभल जाते हैं, फिर अचानक वे साफ़ देखने लगते हैं।
وَاِخْوَانُهُمْ يَمُدُّوْنَهُمْ فِى الْغَيِّ ثُمَّ لَا يُقْصِرُوْنَ٢٠٢
Wa ikhwānuhum yamuddūnahum fil-gayyi ṡumma lā yuqṣirūn(a).
[202]
और जो उन (शैतानों) के भाई हैं, वे उन्हें गुमराही में बढ़ाते रहते हैं, फिर वे (उन्हें गुमराह करने में) तनिक भी कमी नहीं करते।
وَاِذَا لَمْ تَأْتِهِمْ بِاٰيَةٍ قَالُوْا لَوْلَا اجْتَبَيْتَهَاۗ قُلْ اِنَّمَآ اَتَّبِعُ مَا يُوْحٰٓى اِلَيَّ مِنْ رَّبِّيْۗ هٰذَا بَصَاۤىِٕرُ مِنْ رَّبِّكُمْ وَهُدًى وَّرَحْمَةٌ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ٢٠٣
Wa iżā lam ta'tihim bi'āyatin qālū lau lajtabaitahā, qul inamā attabi‘u mā yūḥā ilayya mir rabbī, hāżā baṣā'iru mir rabbikum wa hudaw wa raḥmatul liqaumiy yu'minūn(a).
[203]
और जब आप इन (बहुदेववादियों) के पास कोई आयत (निशानी) नहीं लाते, तो कहते हैं कि तुमने स्वयं कोई आयत क्यों न बना ली? आप कह दें कि मैं केवल उसी का अनुसरण करता हूँ, जो मेरे पालनहार के पास से मेरी ओर वह़्य की जाती है। यह (क़ुरआन) तुम्हारे पालनहार की ओर से सूझ की बातें (प्रमाण) है, तथा ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन और दया है।
وَاِذَا قُرِئَ الْقُرْاٰنُ فَاسْتَمِعُوْا لَهٗ وَاَنْصِتُوْا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ٢٠٤
Wa iżā quri'al-qur'ānu fastami‘ū lahū wa anṣitū la‘allakum turḥamūn(a).
[204]
और जब क़ुरआन पढ़ा जाए, तो उसे ध्यानपूर्वक सुनो तथा मौन साध लो। ताकि तुमपर दया76 की जाए।
76. यह क़ुरआन की एक विशेषता है कि जब भी उसे पढ़ा जाए, तो मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह ध्यान लगाकर अल्लाह का कलाम सुने। हो सकता है कि उसपर अल्लाह की दया हो जाए। काफ़िर कहते थे कि जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो सुनो नहीं, बल्कि शोर-गुल करो। (देखिए : सूरत ह़ा-मीम सज्दा : 26)
وَاذْكُرْ رَّبَّكَ فِيْ نَفْسِكَ تَضَرُّعًا وَّخِيْفَةً وَّدُوْنَ الْجَهْرِ مِنَ الْقَوْلِ بِالْغُدُوِّ وَالْاٰصَالِ وَلَا تَكُنْ مِّنَ الْغٰفِلِيْنَ٢٠٥
Ważkur rabbaka fī nafsika taḍarru‘aw wa khīfataw wa dūnal-jahri minal-qauli bil-guduwwi wal-āṣāli wa lā takum minal-gāfilīn(a).
[205]
और (ऐ नबी!) अपने पालनहार का स्मरण अपने दिल में विनयपूर्वक तथा डरते हुए और धीमे स्वर में प्रातः तथा संध्या करते रहो और ग़ाफ़िलों में से न हो जाओ।
اِنَّ الَّذِيْنَ عِنْدَ رَبِّكَ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ عَنْ عِبَادَتِهٖ وَيُسَبِّحُوْنَهٗ وَلَهٗ يَسْجُدُوْنَ ࣖ ۩٢٠٦
Innal-lażīna ‘inda rabbika lā yastakbirūna ‘an ‘ibādatihī wa yusabbiḥūnahū wa lahū yasjudūn(a).
[206]
निःसंदेह जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे उसकी इबादत से अभिमान नहीं करते और उसकी पवित्रता का वर्णन करते हैं और उसी को सजदा करते हैं।77
77. इस आयत के पढ़ने तथा सुनने वाले को चाहिए कि सजदा-ए-तिलावत करे।