Surah At-Tahrim
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
يٰٓاَيُّهَا النَّبِيُّ لِمَ تُحَرِّمُ مَآ اَحَلَّ اللّٰهُ لَكَۚ تَبْتَغِيْ مَرْضَاتَ اَزْوَاجِكَۗ وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ١
Yā ayyuhan-nabiyyu lima tuḥarrimu mā aḥallallāhu lak(a), tabtagī marḍāta azwājik(a), wallāhu gafūrur raḥīm(un).
[1]
ऐ नबी! आप उस चीज़ को क्यों हराम करते हैं, जिसे अल्लाह ने आपके लिए हलाल किया है? आप अपनी पत्नियों की प्रसन्नता1 चाहते हैं? तथा अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
1. ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अस्र की नमाज़ के पश्चात् अपनी सब पत्नियों के यहाँ कुछ देर के लिए जाया करते थे। एक बार कई दिन अपनी पत्नी ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) के यहाँ अधिक देर तक रह गए। कारण यह था कि वह आपको मधु पिलाती थीं। आपकी पत्नी आइशा तथा ह़फ़्सा (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) ने योजना बनाई कि जब आप आएँ, तो जिसके पास जाएँ वह यह कहे कि आपके मुँह से मग़ाफ़ीर (एक प्रकार का फूल जिसमें दुर्गंध होती है) की गंध आ रही है। और उन्होंने यही किया। जिसपर आपने शपथ ले ली कि अब मधु नहीं पिऊँगा। उसी पर यह आयत उतरी। (बुख़ारी : 4912) इसमें यह संकेत भी है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को भी किसी ह़लाल को ह़राम करने अथवा ह़राम को ह़लाल करने का कोई अधिकार नहीं था।
قَدْ فَرَضَ اللّٰهُ لَكُمْ تَحِلَّةَ اَيْمَانِكُمْۚ وَاللّٰهُ مَوْلٰىكُمْۚ وَهُوَ الْعَلِيْمُ الْحَكِيْمُ٢
Qad faraḍallāhu lakum taḥillata aimānikum, wallāhu maulākum, wa huwal-‘alīmul-ḥakīm(u).
[2]
निश्चय अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी क़समों का कफ़्फ़ारा2 निर्धारित कर दिया है। तथा अल्लाह तुम्हारा स्वामी है और वही सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
2. अर्थात प्रयाश्चित देकर उसको करने का जिसके न करने की शपथ ली हो। क़सम के प्रायश्चित (कफ़्फ़ारा) के लिए देखिए : सूरतुल माइदा, आयत : 81.
وَاِذْ اَسَرَّ النَّبِيُّ اِلٰى بَعْضِ اَزْوَاجِهٖ حَدِيْثًاۚ فَلَمَّا نَبَّاَتْ بِهٖ وَاَظْهَرَهُ اللّٰهُ عَلَيْهِ عَرَّفَ بَعْضَهٗ وَاَعْرَضَ عَنْۢ بَعْضٍۚ فَلَمَّا نَبَّاَهَا بِهٖ قَالَتْ مَنْ اَنْۢبَاَكَ هٰذَاۗ قَالَ نَبَّاَنِيَ الْعَلِيْمُ الْخَبِيْرُ٣
Wa iż asarran-nabiyyu ilā ba‘ḍi azwājihī ḥadīṡā(n), falammā nabba'at bihī wa aẓharahullāhu ‘alaihi ‘arrafa ba‘ḍahū wa a‘raḍa ‘am baḍ(in), falammā nabba'ahā bihī qālat man amba'aka hāżā, qāla nabba'aniyal-‘alīmul-khabīr(u).
[3]
और उस समय को याद करो, जब नबी ने अपनी किसी पत्नी से गोपनीय रूप से एक बात3 कही। फिर जब उस (पत्नी) ने वह बात बता दी और अल्लाह ने नबी को उससे अवगत कर दिया, तो नबी ने (उस पत्नी को) उसमें से कुछ बात बताई और कुछ टाल गए। फिर जब नबी ने उस पत्नी को इसके बारे में बताया, तो उसने कहा : यह आपको किसने बताया? आपने कहा : मूझे उस (अल्लाह) ने बताया, जो सब कुछ जानने वाला, सब की खबर रखने वाला है।
3. अर्थात मधु न पीने की बात।
اِنْ تَتُوْبَآ اِلَى اللّٰهِ فَقَدْ صَغَتْ قُلُوْبُكُمَاۚ وَاِنْ تَظٰهَرَا عَلَيْهِ فَاِنَّ اللّٰهَ هُوَ مَوْلٰىهُ وَجِبْرِيْلُ وَصَالِحُ الْمُؤْمِنِيْنَۚ وَالْمَلٰۤىِٕكَةُ بَعْدَ ذٰلِكَ ظَهِيْرٌ٤
In tatūbā ilallāhi faqad ṣagat qulūbukumā, wa in taẓāharā ‘alaihi fa innallāha huwa maulāhu wa jibrīlu wa ṣāliḥul-mu'minīn(a), wal-malā'ikatu ba‘da żālika ẓahīr(un).
[4]
यदि तुम दोनों4 अल्लाह के समक्ष तौबा करो, क्योंकि निश्चय तुम दोनों के दिल झुक गए हैं। और यदि तुम उनके विरुद्ध एक-दूसरे की सहायता करोगी, तो निःसंदेह अल्लाह उनका सहायक है तथा जिब्रील और सदाचारी ईमान वाले और इसके बाद समस्त फ़रिश्ते (उनके) सहायक हैं।
4. दोनों से अभिप्राय : आइशा तथा ह़फ़्सा रज़ियल्लाहु अन्हुमा हैं।
عَسٰى رَبُّهٗٓ اِنْ طَلَّقَكُنَّ اَنْ يُّبْدِلَهٗٓ اَزْوَاجًا خَيْرًا مِّنْكُنَّ مُسْلِمٰتٍ مُّؤْمِنٰتٍ قٰنِتٰتٍ تٰۤىِٕبٰتٍ عٰبِدٰتٍ سٰۤىِٕحٰتٍ ثَيِّبٰتٍ وَّاَبْكَارًا٥
‘Asā rabbuhū in ṭallaqakunna ay yubdilahū azwājan khairam minkunna muslimātim mu'minātin qānitātin tā'ibātin ‘ābidātin sā'iḥātin ṡayyibātiw wa abkārā(n).
[5]
यदि वह (नबी) तुम्हें तलाक़ दे दें, तो निकट है कि उनका पालनहार तुम्हारे बदले में उन्हें तुमसे बेहतर पत्नियाँ प्रदान कर दे, जो इस्लाम वालियाँ, ईमान वालियाँ, आज्ञापालन करने वालियाँ, तौबा करने वालियाँ, इबादत करने वालियाँ, रोज़ा रखने वालियाँ, पहले से शादीशुदा तथा कुँवारियाँ हों।
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قُوْٓا اَنْفُسَكُمْ وَاَهْلِيْكُمْ نَارًا وَّقُوْدُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلٰۤىِٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا يَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَآ اَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُوْنَ مَا يُؤْمَرُوْنَ٦
Yā ayyuhal-lażīna āmanū qū anfusakum wa ahlīkum nāraw waqūduhan-nāsu wal-ḥijāratu ‘alaihā malā'ikatun gilāẓun syidādul lā ya‘ṣūnallāha mā amarahum wa yaf‘alūna mā yu'marūn(a).
[6]
ऐ ईमान वालो! अपने आपको और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ5 जिसका ईंधन मनुष्य और पत्थर हैं। जिसपर कठोर दिल, बलशाली फ़रिश्ते नियुक्त हैं। जो अल्लाह उन्हें आदेश दे, उसकी अवज्ञा नहीं करते तथा वे वही करते हैं, जिसका उन्हें आदेश दिया जाता है।
5. अर्थात तुम्हारा कर्तव्य है कि अपने परिजनों को इस्लाम की शिक्षा दो ताकि वे इस्लामी जीवन व्यतीत करें और नरक का ईंधन बनने से बच जाएँ। ह़दीस में है कि जब बच्चा सात वर्ष का हो जाए, तो उसे नमाज़ पढ़ने का आदेश दो। और जब दस वर्ष का हो जाए, तो उसे नमाज़ के लिए (यदि ज़रूरत पड़े तो) मारो। (तिर्मिज़ी : 407) पत्थर से अभिप्राय वे मूर्तियाँ हैं जिन्हें देवता और पूज्य बनाया गया था।
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَا تَعْتَذِرُوا الْيَوْمَۗ اِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ࣖ٧
Yā ayyuhal-lażīna kafarū lā ta‘tażīrul-yaum(a), innamā tujzauna mā kuntum ta‘malūn(a).
[7]
ऐ काफ़िरो! आज बहाने न बनाओ। तुम्हें केवल उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे।
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا تُوْبُوْٓا اِلَى اللّٰهِ تَوْبَةً نَّصُوْحًاۗ عَسٰى رَبُّكُمْ اَنْ يُّكَفِّرَ عَنْكُمْ سَيِّاٰتِكُمْ وَيُدْخِلَكُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُۙ يَوْمَ لَا يُخْزِى اللّٰهُ النَّبِيَّ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مَعَهٗۚ نُوْرُهُمْ يَسْعٰى بَيْنَ اَيْدِيْهِمْ وَبِاَيْمَانِهِمْ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اَتْمِمْ لَنَا نُوْرَنَا وَاغْفِرْ لَنَاۚ اِنَّكَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ٨
Yā ayyuhal-lażīna āmanū tūbū ilallāhi taubatan naṣūḥā(n), ‘asā rabbukum ay yukaffira ‘ankum sayyi'ātikum wa yudkhilakum jannātin tajrī min taḥtihal-anhār(u), yauma lā yukhzillāhun-nabiyya wal-lażīna āmanū ma‘ah(ū), nūruhum yas‘ā baina aidīhim wa bi'aimānihim yaqūlūna rabbanā atmim lanā nūranā wagfir lanā, innaka ‘alā kulli syai'in qadīr(un).
[8]
ऐ ईमान वालो! अल्लाह के आगे सच्ची तौबा6 करो। निकट है कि तुम्हारा पालनहार तुम्हारी बुराइयाँ तुमसे दूर कर दे तथा तुम्हें ऐसी जन्नतों में दाखिल करे, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। जिस दिन अल्लाह नबी को तथा उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए हैं, अपमानित नहीं करेगा। उनका प्रकाश7 उनके आगे तथा उनके दाएँ दौड़ रहा होगा। वे कह रहे होंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारे प्रकाश को पूर्ण कर दे तथा हमें क्षमा कर दे। निःसंदेह तू हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
6. सच्ची तौबा का अर्थ यह है कि पाप को त्याग दे। और उसपर लज्जित हो तथा भविष्य में पाप न करने का संकल्प ले। और यदि किसी का कुछ लिया है तो उसे भरे और अत्याचार किया है तो क्षमा माँग ले। 7. (देखिए : सूरतुल-ह़दीद, आयत : 12)।
يٰٓاَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنٰفِقِيْنَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْۗ وَمَأْوٰىهُمْ جَهَنَّمُۗ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ٩
Yā ayyuhan-nabiyyu jāhidil-kuffāra wal-munāfiqīna wagluẓ ‘alaihim, wa ma'wāhum jahannam(u), wa bi'sal-maṣīr(u).
[9]
ऐ नबी! काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करें और उनपर सख़्ती करें8 और उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है।
8. अर्थात जो काफ़िर इस्लाम के प्रचार से रोकते हैं, और जो मुनाफ़िक़ उपद्रव फैलाते हैं उनके साथ सख़्ती से पेश आएँ।
ضَرَبَ اللّٰهُ مَثَلًا لِّلَّذِيْنَ كَفَرُوا امْرَاَتَ نُوْحٍ وَّامْرَاَتَ لُوْطٍۗ كَانَتَا تَحْتَ عَبْدَيْنِ مِنْ عِبَادِنَا صَالِحَيْنِ فَخَانَتٰهُمَا فَلَمْ يُغْنِيَا عَنْهُمَا مِنَ اللّٰهِ شَيْـًٔا وَّقِيْلَ ادْخُلَا النَّارَ مَعَ الدّٰخِلِيْنَ١٠
Ḍaraballāhu maṡalal lil-lażīna kafarumra'ata nūḥiw wamra'ata lūṭ(in), kānatā taḥta ‘abdaini min ‘ibādinā ṣāliḥaini fa khānatāhumā falam yugniyā ‘anhumā minallāhi syai'aw wa qīladkhulan-nāra ma‘ad-dākhilīn(a).
[10]
अल्लाह ने उन लोगों के लिए, जिन्होंने कुफ़्र किया, नूह की पत्नी तथा लूत की पत्नी का उदाहरण दिया है। वे दोनों हमारे बंदों में से दो नेक बंदों के विवाह में थीं। फिर उन दोनों (स्त्रियों) ने उनके साथ विश्वासघात9 किया। तो वे दोनों (रसूल) अल्लाह के यहाँ उनके कुछ काम न आए। तथा (दोनों स्त्रियों से) कहा गया : तुम दोनों जहन्नम में प्रवेश कर जाओ, प्रवेश करने वालों के साथ।
9. विश्वासघात का अर्थ यह है कि नूह़ और लूत (अलैहिमस्सलाम) की पत्नियों ने ईमान तथा धर्म में उनका साथ नहीं दिया। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह के यहाँ कर्म काम आएगा। संबंध नहीं काम आएगा।
وَضَرَبَ اللّٰهُ مَثَلًا لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا امْرَاَتَ فِرْعَوْنَۘ اِذْ قَالَتْ رَبِّ ابْنِ لِيْ عِنْدَكَ بَيْتًا فِى الْجَنَّةِ وَنَجِّنِيْ مِنْ فِرْعَوْنَ وَعَمَلِهٖ وَنَجِّنِيْ مِنَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَۙ١١
Wa ḍaraballāhu maṡalal lil-lażīna āmanumra'ata fir‘aun(a), iż qālat rabbibni lī ‘indaka baitan fil jannati wa najjinī min fir‘auna wa ‘amalihī wa najjinī minal qaumiẓ-ẓālimīn(a).
[11]
तथा अल्लाह ने उन लोगों के लिए, जो ईमान लाए, फ़िरऔन की पत्नी का उदाहरण10 दिया है। जब उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे लिए अपने पास जन्नत में एक घर बना तथा मुझे फ़िरऔन और उसके कर्म से बचा ले और मुझे अत्याचारी लोगों से छुटकारा दे।
10. ह़दीस में है कि पुरुषों में से बहुत-से पूर्ण हुए। परंतु स्त्रियों में से इमरान की पुत्री मरयम और फ़िरऔन की पत्नी आसिया ही पूर्ण हूईं। और आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) की प्रधानता नारियों पर वही है जो सरीद (एक प्रकार का खाना) की सब खानों पर है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3411, सह़ीह़ मुस्लिम : 2431)
وَمَرْيَمَ ابْنَتَ عِمْرٰنَ الَّتِيْٓ اَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيْهِ مِنْ رُّوْحِنَا وَصَدَّقَتْ بِكَلِمٰتِ رَبِّهَا وَكُتُبِهٖ وَكَانَتْ مِنَ الْقٰنِتِيْنَ ࣖ ۔١٢
Wa maryamabnata ‘imrānal-latī aḥṣanat farjahā fa nafakhnā fīhi mir rūḥinā wa ṣaddaqat bikalimāti rabbihā wa kutubihī wa kānat minal-qānitīn(a).
[12]
तथा इमरान की बेटी मरयम का (उदाहरण प्रस्तुत किया है), जिसने अपने सतीत्व की रक्षा की, तो हमने उसमें अपनी एक रूह़ फूँक दी तथा उसने अपने पालनहार की बातों और उसकी पुस्तकों की पुष्टि की और वह इबादत करने वालों में से थी।