Surah Al-Hadid
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
سَبَّحَ لِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ١
Sabbaḥa lillāhi mā fis-samāwāti wal-arḍ(i), wa huwal-‘azīzul-ḥakīm(u).
[1]
अल्लाह की पवित्रता का गान किया हर उस चीज़ ने जो आकाशों और धरती में है और वही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ يُحْيٖ وَيُمِيْتُۚ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ٢
Lahū mulkus-samāwāti wal-arḍ(i), yuḥyī wa yumīt(u), wa huwa ‘alā kulli syai'in qadīr(un).
[2]
उसी के लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है। वह जीवन प्रदान करता और मौत देता है। तथा वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
هُوَ الْاَوَّلُ وَالْاٰخِرُ وَالظَّاهِرُ وَالْبَاطِنُۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ٣
Huwal-awwalu wal-ākhiru waẓ-ẓāhiru wal-bāṭin(u), wa huwa bikulli syai'in ‘alīm(un).
[3]
वही सबसे पहले है और सबसे आख़िर है और ज़ाहिर (दृश्यमान) है और पोशीदा (अदृश्य) है और वह हर चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।
هُوَ الَّذِيْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ فِيْ سِتَّةِ اَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوٰى عَلَى الْعَرْشِۗ يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِى الْاَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنْزِلُ مِنَ السَّمَاۤءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيْهَاۗ وَهُوَ مَعَكُمْ اَيْنَ مَا كُنْتُمْۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرٌۗ٤
Huwal-lażī khalaqas-samāwāti wal-arḍa fī sittati ayyāmin ṡummastawā ‘alal-‘arsy(i), ya‘lamu mā yaliju fil-arḍi wa mā yakhruju minhā wa mā yanzilu minas-samā'i wa mā ya‘ruju fīhā, wa huwa ma‘akum aina mā kuntum, wallāhu bimā ta‘malūna baṣīr(un).
[4]
उसी ने आकाशों तथा धरती को छह दिनों में पैदा किया, फिर वह अर्श पर बुलंद हुआ। वह जानता है जो कुछ धरती में प्रवेश करता है और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है और वह तुम्हारे साथ1 है, तुम जहाँ कहीं भी हो। और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे ख़ूब देखने वाला है।
1. अर्थात अपने सामर्थ्य तथा ज्ञान द्वारा। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह सदा से है और सदा रहेगा। प्रत्येक चीज़ का अस्तित्व उसके अस्तित्व के पश्चात् है। वही नित्य है, विश्व की प्रत्येक वस्तु उसके होने को बता रही है, फिर भी वह ऐसा गुप्त है कि दिखाई नहीं देता।
لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ وَاِلَى اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ٥
Lahū mulkus-samāwāti wal-arḍ(i), wa ilallāhi turja‘ul-umūr(u).
[5]
आकाशों और धरती का राज्य उसी का है और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं।
يُوْلِجُ الَّيْلَ فِى النَّهَارِ وَيُوْلِجُ النَّهَارَ فِى الَّيْلِۗ وَهُوَ عَلِيْمٌ ۢبِذَاتِ الصُّدُوْرِ٦
Yūlijul-laila fin-nahāri wa yūlijun-nahāra fil-lail(i), wa huwa ‘alīmum biżātiṣ-ṣudūr(i).
[6]
वह रात्रि को दिन में दाखिल करता है और दिन को रात्रि में दाखिल करता है तथा वह सीनों की बातों को ख़ूब जानने वाला है।
اٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَاَنْفِقُوْا مِمَّا جَعَلَكُمْ مُّسْتَخْلَفِيْنَ فِيْهِۗ فَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَاَنْفَقُوْا لَهُمْ اَجْرٌ كَبِيْرٌۚ٧
Āminū billāhi wa rasūlihī wa anfiqū mimmā ja‘alakum mustakhlafīna fīh(i), fal-lażīna āmanū minkum wa anfaqū lahum ajrun kabīr(un).
[7]
अल्लाह तथा उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसमें से खर्च करो जिसमें उसने तुम्हें उत्तराधिकारी बनाया है। फिर तुममें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने ख़र्च किए, उनके लिए बहुत बड़ा प्रतिफल है।
وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ۚوَالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ لِتُؤْمِنُوْا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ اَخَذَ مِيْثَاقَكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ٨
Wa mā lakum lā tu'minūna billāh(i), war-rasūlu yad‘ūkum litu'minū birabbikum wa qad akhaża mīṡāqakum in kuntum mu'minīn(a).
[8]
और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह पर ईमान नहीं लाते, जबकि रसूल2 तुम्हें बुला रहा है कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, और निश्चय वह (अल्लाह) तुमसे दृढ़ वचन3 ले चुका है, यदि तुम ईमान वाले हो।
2. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 3. (देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 172)। इब्ने कसीर ने इससे अभिप्राय वह वचन लिया है जिसका वर्णन सूरतुल-माइदा, आयत : 7 में है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के द्वारा सह़ाबा से लिया गया कि वे आपकी बातें सुनेंगे तथा सुख-दुःख में अनुपालन करेंगे। और प्रिय और अप्रिय में सच बोलेंगे। तथा किसी की निंदा से नहीं डरेंगे। (बुख़ारी : 7199, मुस्लिम :1709)
هُوَ الَّذِيْ يُنَزِّلُ عَلٰى عَبْدِهٖٓ اٰيٰتٍۢ بَيِّنٰتٍ لِّيُخْرِجَكُمْ مِّنَ الظُّلُمٰتِ اِلَى النُّوْرِۗ وَاِنَّ اللّٰهَ بِكُمْ لَرَءُوْفٌ رَّحِيْمٌ٩
Huwal-lażī yunazzilu ‘alā ‘abdihī āyātim bayyinātil liyukhrijakum minaẓ-ẓulumāti ilan-nūr(i), wa innallāha bikum lara'ūfur raḥīm(un).
[9]
वही है, जो अपने बंदे पर स्पष्ट निशानियाँ उतारता है, ताकि तुम्हें अँधेरों से प्रकाश की ओर निकाले। तथा निःसंदेह अल्लाह तुमपर निश्चय ही बड़ा करुणामय, अत्यंत दयावान् है।
وَمَا لَكُمْ اَلَّا تُنْفِقُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَلِلّٰهِ مِيْرَاثُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ لَا يَسْتَوِيْ مِنْكُمْ مَّنْ اَنْفَقَ مِنْ قَبْلِ الْفَتْحِ وَقَاتَلَۗ اُولٰۤىِٕكَ اَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِيْنَ اَنْفَقُوْا مِنْۢ بَعْدُ وَقَاتَلُوْاۗ وَكُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰىۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرٌ ࣖ١٠
Wa mā lakum allā tunfiqū fī sabīlillāhi wa lillāhi mīrāṡus-samāwāti wal-arḍ(i), lā yastawī minkum man anfaqa min qablil-fatḥi wa qātal(a), ulā'ika a‘ẓamu darajatam minal-lażīna anfaqū mim ba‘du wa qātalū, wa kullaw wa‘adallāhul-ḥusnā, wallāhu bimā ta‘malūna khabīr(un).
[10]
और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते, जबकि आसमानों और ज़मीन की मीरास अल्लाह ही के लिए है। तुममें से जिसने (मक्का की) विजय से पहले ख़र्च किया और लड़ाई की वह (बाद में ऐसा करने वालों के) बराबर नहीं है। ये लोग पद में उन लोगों से बड़े हैं, जिन्होंने बाद में4 ख़र्च किया और युद्ध किया। जबकि अल्लाह ने प्रत्येक से अच्छा बदला देने का वादा किया है तथा तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।
4. ह़दीस में है कि यदि कोई व्यक्ति उह़ुद (पर्वत) के बराबर भी सोना दान कर दे, तो मेरे सह़ाबा के आधा अथवा चौथाई किलो के बराबर भी नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3673, सह़ीह़ मुस्लिम : 2541)
مَنْ ذَا الَّذِيْ يُقْرِضُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضٰعِفَهٗ لَهٗ وَلَهٗٓ اَجْرٌ كَرِيْمٌ١١
Man żal-lażī yuqriḍullāha qarḍan ḥasanan fa yuḍā‘ifahū lahū wa lahū ajrun karīm(un).
[11]
कौन है जो अल्लाह को अच्छा क़र्ज़5 दे, फिर वह उसे उसके लिए कई गुना कर दे और उसके लिए अच्छा (सम्मानजनक) बदला है?
5. क़र्ज़ से अभिप्राय अल्लाह की राह में धन दान करना है।
يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ يَسْعٰى نُوْرُهُمْ بَيْنَ اَيْدِيْهِمْ وَبِاَيْمَانِهِمْ بُشْرٰىكُمُ الْيَوْمَ جَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ ذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيْمُۚ١٢
Yauma taral-mu'minīna wal-mu'mināti yas‘ā nūruhum baina aidīhim wa bi'aimānihim busyrākumul-yauma jannātun tajrī min taḥtihal-anhāru khālidīna fīhā, żālika huwal-fauzul-‘aẓīm(u).
[12]
जिस दिन तुम ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे तथा उनके दाहिनी ओर दौड़ रहा होगा।5 आज तुम्हें ऐसे बागों की शुभ-सूचना है, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, जिनमें तुम हमेशा रहोगे। यही तो बहुत बड़ी सफलता है।
5. यह प्रलय के दिन होगा जब वे अपने ईमान के प्रकाश में स्वर्ग तक पहुँचेंगे।
يَوْمَ يَقُوْلُ الْمُنٰفِقُوْنَ وَالْمُنٰفِقٰتُ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوا انْظُرُوْنَا نَقْتَبِسْ مِنْ نُّوْرِكُمْۚ قِيْلَ ارْجِعُوْا وَرَاۤءَكُمْ فَالْتَمِسُوْا نُوْرًاۗ فَضُرِبَ بَيْنَهُمْ بِسُوْرٍ لَّهٗ بَابٌۗ بَاطِنُهٗ فِيْهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهٗ مِنْ قِبَلِهِ الْعَذَابُۗ١٣
Yauma yaqūlul-munāfiqūna wal-munāfiqātu lil-lażīna āmanunẓurūnā naqtabis min nūrikum, qīlarji‘ū warā'akum faltamisū nūrā(n), faḍuriba bainahum bisūril lahū bāb(un), bāṭinuhū fīhir-raḥmatu wa ẓāhiruhū min qibalihil-‘ażāb(u).
[13]
जिस दिन मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ ईमान वालों से कहेंगे कि हमारी प्रतीक्षा करो कि हम तुम्हारे प्रकाश में से कुछ प्रकाश प्राप्त कर लें। कहा जाएगा : अपने पीछे लौट जाओ, फिर कोई प्रकाश तलाश करो।6 फिर उनके बीच एक दीवार बना दी जाएगी, जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतरी भाग में दया होगी तथा उसके बाहरी भाग की ओर यातना होगी।
6. अर्थात संसार में जाकर ईमान तथा सत्कर्म के प्रकाश की खोज करो, किंतु यह असंभव होगा।
يُنَادُوْنَهُمْ اَلَمْ نَكُنْ مَّعَكُمْۗ قَالُوْا بَلٰى وَلٰكِنَّكُمْ فَتَنْتُمْ اَنْفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْاَمَانِيُّ حَتّٰى جَاۤءَ اَمْرُ اللّٰهِ وَغَرَّكُمْ بِاللّٰهِ الْغَرُوْرُ١٤
Yunādūnahum alam nakum ma‘akum, qālū balā wa lākinnakum fatantum anfusakum wa tarabbaṣtum wartabtum wa garratkumul-amāniyyu ḥattā jā'a amrullāhi wa garrakum billāhil-garūr(u).
[14]
वे उन्हें पुकारकर कहेंगे : क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे? वे कहेंगे : क्यों नहीं, परंतु तुमने अपने आपको फ़ितने (परीक्षा) में डाला, और तुम प्रतीक्षा7 करते रहे तथा तुमने संदेह किया और (झूठी) इच्छाओं ने तुम्हें धोखा दिया, यहाँ तक कि अल्लाह का आदेश आ गया, और इस धोखेबाज़ ने तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा दिया।
7. कि मुसलमानों पर कोई आपदा आए।
فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنْكُمْ فِدْيَةٌ وَّلَا مِنَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْاۗ مَأْوٰىكُمُ النَّارُۗ هِيَ مَوْلٰىكُمْۗ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ١٥
Fal-yauma lā yu'khażu minkum fidyatuw wa lā minal-lażīna kafarū, ma'wākumun-nār(u), hiya maulākum, wa bi'sal-maṣīr(u).
[15]
तो आज न तुमसे कोई छुड़ौती ली जाएगी और न उन लोगों से जिन्होंने कुफ़्र किया। तुम्हारा ठिकाना जहन्नम है। वही तुम्हारी दोस्त है और वह बुरा ठिकाना है।
۞ اَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّۙ وَلَا يَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْاَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوْبُهُمْۗ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ١٦
Alam ya'ni lil-lażīna āmanū an takhsya‘a qulūbuhum liżikrillāhi wa mā nazala minal-ḥaqq(i), wa lā yakūnū kal-lażīna ūtul-kitāba min qablu faṭāla ‘alaihimul-amadu faqasat qulūbuhum, wa kaṡīrum minhum fāsiqūn(a).
[16]
क्या उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, वह समय नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और उस सत्य के लिए झुक जाएँ जो उतरा है, और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ, जिन्हें इससे पहले पुस्तक प्रदान की गई थी, फिर उनपर लंबा समय गुज़र गया, तो उनके दिल कठोर हो गए8 और उनमें बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं?
8. (देखिए : सूरतुल-मायदा, आयत : 13)
اِعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يُحْيِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاۗ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْاٰيٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ١٧
I‘lamū annallāha yuḥyil-arḍa ba‘da mautihā, qad bayyannā lakumul-āyāti la‘allakum ta‘qilūn(a).
[17]
जान लो कि निःसंदेह अल्लाह धरती को उसके मरने के पश्चात जीवित करता है। निःसंदेह हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं, ताकि तुम समझो।
اِنَّ الْمُصَّدِّقِيْنَ وَالْمُصَّدِّقٰتِ وَاَقْرَضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا يُّضٰعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ اَجْرٌ كَرِيْمٌ١٨
Innal-muṣṣaddiqīna wal-muṣṣaddiqāti wa aqraḍullāha qarḍan ḥasanay yuḍā‘afu lahum wa lahum ajrun karīm(un).
[18]
निःसंदेह दान करने वाले पुरुष तथा दान करने वाली स्त्रियाँ और जिन्होंने अल्लाह को अच्छा ऋण9 दिया, उन्हें कई गुना दिया जाएगा और उनके लिए सम्मानित प्रतिफल है।
9. ह़दीस में है कि जो पवित्र कमाई से एक खजूर के बराबर भी दान करता है, तो अल्लाह उसे पोसता है जैसे कोई घोड़े के बच्चे को पोसता है यहाँ तक कि वह पर्वत के समान हो जाता है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 1410)
وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖٓ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الصِّدِّيْقُوْنَ ۖوَالشُّهَدَاۤءُ عِنْدَ رَبِّهِمْۗ لَهُمْ اَجْرُهُمْ وَنُوْرُهُمْۗ وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَحِيْمِ ࣖ١٩
Wal-lażīna āmanū billāhi wa rasūlihī ulā'ika humuṣ-ṣiddīqūn(a), wasy-syuhadā'u ‘inda rabbihim, lahum ajruhum wa nūruhum, wal-lażīna kafarū wa każżabū bi'āyātinā ulā'ika aṣḥābul-jaḥīm(i).
[19]
तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों10 पर ईमान लाए, वही अपने रब के निकट सिद्दीक़ तथा शहीद11 (गवाही देने वाले) हैं, उन्हीं के लिए उनका प्रतिफल तथा उनका प्रकाश है। और वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे भड़कती आग में रहने वाले हैं।
10. अर्थात बिना अंतर और भेद-भाव किए सभी रसूलों पर ईमान लाए। 11. सिद्दीक़ का अर्थ है बड़ा सच्चा। और शहीद का अर्थ गवाह है। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत : 143, और सूरतुल-ह़ज्ज, आयत : 78)। शहीद का अर्थ अल्लाह की राह में मारा गया व्यक्ति भी है।
اِعْلَمُوْٓا اَنَّمَا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَّلَهْوٌ وَّزِيْنَةٌ وَّتَفَاخُرٌۢ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِى الْاَمْوَالِ وَالْاَوْلَادِۗ كَمَثَلِ غَيْثٍ اَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهٗ ثُمَّ يَهِيْجُ فَتَرٰىهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُوْنُ حُطَامًاۗ وَفِى الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيْدٌۙ وَّمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانٌ ۗوَمَا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَآ اِلَّا مَتَاعُ الْغُرُوْرِ٢٠
I‘lamū annamal-ḥayātud-dun-yā la‘ibuw wa lahwuw wa zīnatuw wa tafākhurum bainakum wa takāṡurun fil-amwāli wal-aulād(i), kamaṡali gaiṡin a‘jabal-kuffāra nabātuhū ṡumma yahīju fatarāhu muṣfarran ṡumma yakūnu ḥuṭāmā(n), wa fil-ākhirati ‘ażābun syadīd(un), wa magfiratum minallāhi wa riḍwān(un), wa mal-ḥayātud-dun-yā illā matā‘ul-gurūr(i).
[20]
जान लो कि वास्तव में संसार का जीवन केवल एक खेल है और मनोरंजन है और शोभा12 है, तथा तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना है और धन एवं संतान में एक-दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करना है। उस वर्षा के समान जिससे उगने वाली खेती ने किसानों को प्रसन्न कर दिया, फिर वह पक जाती है, फिर तुम उसे देखते हो कि वह पीली हो गई, फिर वह चूरा हो जाती है। और आख़िरत में कड़ी यातना है और अल्लाह की ओर से बड़ी क्षमा और प्रसन्नता है, और संसार का जीवन धोखे के सामान के सिवा और कुछ नहीं।
12. इसमें सांसारिक जीवन की शोभा की उपमा वर्षा की उपज की शोभा से दी गई है। जो कुछ ही दिन रहती है, फिर चूर-चूर हो जाती है।
سَابِقُوْٓا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِۙ اُعِدَّتْ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖۗ ذٰلِكَ فَضْلُ اللّٰهِ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ٢١
Sābiqū ilā magfiratim mir rabbikum wa jannatin ‘arḍuhā ka‘arḍis-samā'i wal-arḍ(i), u‘iddat lil-lażīna āmanū billāhi wa rasūlih(ī), żālika faḍlullāhi yu'tīhi may yasyā'(u), wallāhu żul-faḍlil-‘aẓīm(i).
[21]
अपने पालनहार की क्षमा तथा उस जन्नत की ओर एक-दूसरे से आगे बढ़ो, जिसका विस्तार आकाश तथा धरती के विस्तार के समान है, वह उन लोगों के लिए तैयार की गई है, जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए। यह अल्लाह का अनुग्रह है। वह इसे उसको देता है जिसे चाहता है और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है।
مَآ اَصَابَ مِنْ مُّصِيْبَةٍ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِيْٓ اَنْفُسِكُمْ اِلَّا فِيْ كِتٰبٍ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّبْرَاَهَا ۗاِنَّ ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ يَسِيْرٌۖ٢٢
Mā aṣāba mim muṣībatin fil-arḍi wa lā fī anfusikum illā fī kitābim min qabli an nabra'ahā, inna żālika ‘alallāhi yasīr(un).
[22]
धरती में तथा तुम्हारे प्राणों पर जो भी विपदा आती है, वह एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसे पैदा करें।13 निश्चय यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है।
13. अर्थात इस संसार और मनुष्य के अस्तित्व से पूर्व ही अल्लाह ने अपने ज्ञान अनुसार 'लौह़े मह़फ़ूज़' (सुरक्षित पट्टिका) में लिख रखा है। ह़दीस में है कि अल्लाह ने पूरी सृष्टि का भाग्य आकाशों तथा धरती की रचना से पचास हज़ार वर्ष पहले लिख दिया, जबकि उसका अर्श पानी पर था। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2653)
لِّكَيْلَا تَأْسَوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوْا بِمَآ اٰتٰىكُمْ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرٍۙ٢٣
Likailā ta'sau ‘alā mā fātakum wa lā tafraḥū bimā ātākum, wallāhu lā yuḥibbu kulla mukhtālin fakhūr(in).
[23]
ताकि तुम उसपर शोक न करो, जो तुमसे छूट जाए और उसपर फूल न जाओ, जो वह तुम्हें प्रदान करे। और अल्लाह किसी अहंकार करने वाले, बहुत गर्व करने वाले से प्रेम नहीं करता।
ۨالَّذِيْنَ يَبْخَلُوْنَ وَيَأْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ ۗوَمَنْ يَّتَوَلَّ فَاِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيْدُ٢٤
Allażīna yabkhalūna wa ya'murūnan-nāsa bil-bukhl(i), wa may yatawalla fa'innallāha huwal-ganiyyul-ḥamīd(u).
[24]
वे लोग जो कंजूसी करते हैं और लोगों को कंजूसी करने का आदेश देते हैं। तथा जो मुँह फेर ले, तो निश्चय अल्लाह ही है जो बड़ा बेनियाज़, बहुत प्रशंसनीय है।
لَقَدْ اَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنٰتِ وَاَنْزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتٰبَ وَالْمِيْزَانَ لِيَقُوْمَ النَّاسُ بِالْقِسْطِۚ وَاَنْزَلْنَا الْحَدِيْدَ فِيْهِ بَأْسٌ شَدِيْدٌ وَّمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللّٰهُ مَنْ يَّنْصُرُهٗ وَرُسُلَهٗ بِالْغَيْبِۗ اِنَّ اللّٰهَ قَوِيٌّ عَزِيْزٌ ࣖ٢٥
Laqad arsalnā rusulanā bil-bayyināti wa anzalnā ma‘ahumul-kitāba wal-mīzāna liyaqūman-nāsu bil-qisṭ(i), wa anzalnal-ḥadīda fīhi ba'sun syadīduw wa manāfi‘u lin-nāsi wa liya‘lamallāhu may yanṣuruhū wa rusulahū bil-gaib(i), innallāha qawiyyun ‘azīz(un).
[25]
निःसंदेह हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा तथा उनके साथ पुस्तक और तराज़ू उतारा, ताकि लोग न्याय पर क़ायम रहें। तथा हमने लोहा उतारा, जिसमें बहुत शक्ति14 है और लोगों के लिए बहुत-से लाभ हैं, और ताकि अल्लाह जान ले कि कौन उसकी तथा उसके रसूलों की बिना देखे सहायता करता है। निश्चय ही अल्लाह अति शक्तिशाली, सब पर प्रभुत्वशाली है।
14. उससे अस्त्र-शस्त्र बनाए जाते हैं।
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا وَّاِبْرٰهِيْمَ وَجَعَلْنَا فِيْ ذُرِّيَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتٰبَ فَمِنْهُمْ مُّهْتَدٍۚ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ٢٦
Wa laqad arsalnā nūḥaw wa ibrāhīma wa ja‘alnā fī żurriyyatihiman-nubuwwata wal-kitāba fa minhum muhtad(in), wa kaṡīrum minhum fāsiqūn(a).
[26]
और निःसंदेह हमने नूह़ और इबराहीम को (रसूल बनाकर) भेजा, और उन दोनों की संतान में नुबुव्वत तथा पुस्तक रख दी। फिर उनमें से कुछ सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं और उनमें से बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं।
ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلٰٓى اٰثَارِهِمْ بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيْسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَاٰتَيْنٰهُ الْاِنْجِيْلَ ەۙ وَجَعَلْنَا فِيْ قُلُوْبِ الَّذِيْنَ اتَّبَعُوْهُ رَأْفَةً وَّرَحْمَةً ۗوَرَهْبَانِيَّةَ ِۨابْتَدَعُوْهَا مَا كَتَبْنٰهَا عَلَيْهِمْ اِلَّا ابْتِغَاۤءَ رِضْوَانِ اللّٰهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا ۚفَاٰتَيْنَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْهُمْ اَجْرَهُمْ ۚ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ٢٧
Ṡumma qaffainā ‘alā āṡārihim birusulinā wa qaffainā bi‘īsabni maryama wa ātaināhul-injīl(a), wa ja‘alnā fī qulūbil-lażīnattaba‘ūhu ra'fataw wa raḥmah(tan), wa rahbāniyyatanibtada‘ūhā mā katabnā ‘alaihim illabtigā'a riḍwānillāhi famā ra‘auhā ḥaqqa ri‘āyatihā, fa'ātainal-lażīna āmanū minhum ajrahum, wa kaṡīrum minhum fāsiqūn(a).
[27]
फिर हमने उनके पद्चिह्नों पर निरंतर अपने रसूल भेजे। और उनके पीछे मरयम के पुत्र ईसा को भेजा, और उसे इंजील प्रदान किया, और हमने उन लोगों के दिलों में जिन्होंने उसका अनुसरण किया नर्मी और मेहरबानी रख दी। रहा संन्यास, तो उन्होंने खुद इसका आविष्कार किया, हमने उसे उनके ऊपर अनिवार्य नहीं किया15 था, परंतु अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए (उन्होंने ऐसा किया)। फिर उन्होंने उसका पूर्ण रूप से पालन नहीं किया। फिर हमने उनमें से जो लोग ईमान लाए उन्हें उनका बदला प्रदान कर दिया और उनमें से बहुत-से लोग अवज्ञाकारी हैं।
15. संसार त्याग अर्थात संन्यास के विषय में यह बताया गया है कि अल्लाह ने उन्हें इसका आदेश नहीं दिया। उन्होंने अल्लाह की प्रसन्नता के लिए स्वयं इसे अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया। फिर भी इसे निभा नहीं सके। इसमें यह संकेत है कि योग तथा संन्यास का धर्म में कभी कोई आदेश नहीं दिया गया है। इस्लाम में भी शरीअत के स्थान पर तरीक़त बनाकर नई बातें बनाई गईं। और सत्धर्म का रूप बदल दिया गया। ह़दीस में है कि कोई हमारे धर्म में नई बात निकाले जो उसमें नहीं है, तो वह मान्य नहीं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2697, सह़ीह़ मुस्लिम : 1718)
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَاٰمِنُوْا بِرَسُوْلِهٖ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِنْ رَّحْمَتِهٖ وَيَجْعَلْ لَّكُمْ نُوْرًا تَمْشُوْنَ بِهٖ وَيَغْفِرْ لَكُمْۗ وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌۙ٢٨
Yā ayyuhal-lażīna āmanuttaqullāha wa āminū birasūlihī yu'tikum kiflaini mir raḥmatihī wa yaj‘al lakum nūran tamsyūna bihī wa yagfir lakum, wallāhu gafūrur raḥīm(un).
[28]
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! अल्लाह से डरो और उसके रसूल पर ईमान लाओ, वह तुम्हें अपनी दया का दोहरा हिस्सा16 प्रदान करेगा। और तुम्हें ऐसा प्रकाश देगा, जिसमें तुम चलोगे। तथा तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
16. ह़दीस में है कि तीन व्यक्ति ऐसे हैं जिनको दोहरा प्रतिफल मिलेगा। इन में एक अह्ले किताब में से वह वयक्ति है जो अपने नबी पर ईमान लाया था फिर मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी ईमान लाया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 97, 2544, सह़ीह़ मुस्लिम : 154)
لِّئَلَّا يَعْلَمَ اَهْلُ الْكِتٰبِ اَلَّا يَقْدِرُوْنَ عَلٰى شَيْءٍ مِّنْ فَضْلِ اللّٰهِ وَاَنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّٰهِ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ ࣖ ۔٢٩
Li'allā ya‘lama ahlul-kitābi allā yaqdirūna ‘alā syai'im min faḍlillāhi wa annal-faḍla biyadillāhi yu'tīhi may yasyā'(u), wallāhu żul-faḍlil-‘aẓīm(i).
[29]
ताकि अह्ले किताब17 जान लें कि वे अल्लाह के अनुग्रह में से किसी चीज़ पर अधिकार नहीं रखते और यह कि सारा अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है। वह जिसे चाहता है, प्रदान करता है और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है।
17. अह्ले किताब से अभिप्राय यहूदी तथा ईसाई हैं।