Surah An-Najm
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالنَّجْمِ اِذَا هَوٰىۙ١
Wan-najmi iżā hawā.
[1]
क़सम है तारे की जब वह गिरे!
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوٰىۚ٢
Mā ḍalla ṣāḥibukum wa mā gawā.
[2]
तुम्हारा साथी न तो रास्ते से भटका है और न ही गलत रास्ते पर चला है।
وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوٰى٣
Wa mā yanṭiqu ‘anil-hawā.
[3]
और न वह अपनी इच्छा से बोलता है।
اِنْ هُوَ اِلَّا وَحْيٌ يُّوْحٰىۙ٤
In huwa illā waḥyuy yūḥā.
[4]
वह तो केवल वह़्य है, जो उतारी जाती है।
عَلَّمَهٗ شَدِيْدُ الْقُوٰىۙ٥
‘Allamahū syadīdul-quwā.
[5]
उसे बहुत मज़ूबत शक्तियों वाले (फ़रिश्ते)1 ने सिखाया है।
1. इससे अभिप्राय जिबरील (अलैहिस्सलाम) हैं, जो वह़्य लाते थे।
ذُوْ مِرَّةٍۗ فَاسْتَوٰىۙ٦
Żū mirrah(tin), fastawā.
[6]
जो बड़ा बलशाली है। फिर वह बुलंद हुआ (अपने असली रूप में प्रकट हुआ)।
وَهُوَ بِالْاُفُقِ الْاَعْلٰىۗ٧
Wa huwa bil-ufuqil-a‘lā.
[7]
जबकि वह आकाश के सबसे ऊँचे क्षितिज (पूर्वी किनारे) पर था।
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلّٰىۙ٨
Ṡumma danā fa tadallā.
[8]
फिर वह निकट हुआ और उतर आया।
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ اَوْ اَدْنٰىۚ٩
Fa kāna qāba qausaini au adnā.
[9]
फिर वह दो धनुषों की दूरी पर था, या उससे भी निकट।
فَاَوْحٰىٓ اِلٰى عَبْدِهٖ مَآ اَوْحٰىۗ١٠
Fa auḥā ilā ‘abdihī mā auḥā.
[10]
फिर उसने अल्लाह के बंदे2 की ओर वह़्य की, जो भी वह़्य की।
2. अर्थात मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर। इन आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जिबरील (फरिश्ते) को उनके वास्तविक रूप में दो बार देखने का वर्णन है। आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहा : जो कहे कि मुह़म्मद (सल्लल्लहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह को देखा है, तो वह झूठा है। और जो कहे कि आप कल (भविष्य) की बात जानते थे, तो वह झूठा है। तथा जो कहे कि आप ने धर्म की कुछ बातें छिपा लीं, तो वह झूठा है। किंतु आपने जिबरील (अलैहिस्सलाम) को उनके रूप में दो बार देखा। (बुख़ारी : 4855) इब्ने मसऊद ने कहा कि आपने जिबरील को देखा जिनके छह सौ पंख थे। (बुख़ारी : 4856)
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَاٰى١١
Mā każabal-fu'ādu mā ra'ā.
[11]
दिल ने झूठ नहीं बोला, जो कुछ उसने देखा।
اَفَتُمٰرُوْنَهٗ عَلٰى مَا يَرٰى١٢
Afa tumārūnahū ‘alā mā yarā.
[12]
फिर क्या तुम उससे उसपर झगड़ते हो, जो वह देखता है?
وَلَقَدْ رَاٰهُ نَزْلَةً اُخْرٰىۙ١٣
Wa laqad ra'āhu nazlatan ukhrā.
[13]
हालाँकि, निश्चित रूप से उसने उसे एक और बार उतरते हुए भी देखा है।
عِنْدَ سِدْرَةِ الْمُنْتَهٰى١٤
‘Inda sidratil-muntahā.
[14]
सिदरतुल-मुनतहा'3 के पास।
3. 'सिदरतुल मुनतहा', यह छठे या सातवें आकाश पर बैरी का एक वृक्ष है। जिस तक धरती की चीज़ पहुँचती है। तथा ऊपर की चीज़ उतरती है। (सह़ीह़ मुस्लिम : 173)
عِنْدَهَا جَنَّةُ الْمَأْوٰىۗ١٥
‘Indahā jannatul-ma'wā.
[15]
उसी के पास 'जन्नतुल मावा' (शाश्वत स्वर्ग) है।
اِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشٰىۙ١٦
Iż yagsyas-sidrata mā yagsyā.
[16]
जब सिदरा पर छा रहा था, जो कुछ छा रहा था।4
4. ह़दीस में है कि वह सोने के पतिंगे थे। (सह़ीह़ मुस्लिम : 173)
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغٰى١٧
Mā zāgal-baṣaru wa mā ṭagā.
[17]
न निगाह इधर-उधर हुई और न सीमा से आगे बढ़ी।
لَقَدْ رَاٰى مِنْ اٰيٰتِ رَبِّهِ الْكُبْرٰى١٨
Laqad ra'ā min āyāti rabbihil-kubrā.
[18]
निःसंदेह उसने अपने पालनहार की कुछ बहुत बड़ी निशानियाँ5 देखीं।
5. इसमें मे'राज की रात आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आकाशों में अल्लाह की निशानियाँ देखने का वर्णन है।
اَفَرَءَيْتُمُ اللّٰتَ وَالْعُزّٰى١٩
Afa ra'aitumul-lāta wal-‘uzzā.
[19]
फिर क्या तुमने लात और उज़्ज़ा को देखा।
وَمَنٰوةَ الثَّالِثَةَ الْاُخْرٰى٢٠
Wa manātaṡ-ṡāliṡatal-ukhrā.
[20]
तथा तीसरी एक और (मूर्ति) मनात को?6
6. लात, उज़्ज़ा और मनात ये तीनों मक्का के मुश्रिकों की देवियों के नाम हैं। और अर्थ यह है कि क्या इनकी भी कोई वास्तविकता है?
اَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْاُنْثٰى٢١
Alakumuż-żakaru wa lahul-unṡā.
[21]
क्या तुम्हारे लिए पुत्र हैं और उस (अल्लाह) के लिए पुत्रियाँ?
تِلْكَ اِذًا قِسْمَةٌ ضِيْزٰى٢٢
Tilka iżan qismatun ḍīzā.
[22]
तब तो यह बड़ा अन्यायपूर्ण बँटवारा है।
اِنْ هِيَ اِلَّآ اَسْمَاۤءٌ سَمَّيْتُمُوْهَآ اَنْتُمْ وَاٰبَاۤؤُكُمْ مَّآ اَنْزَلَ اللّٰهُ بِهَا مِنْ سُلْطٰنٍۗ اِنْ يَّتَّبِعُوْنَ اِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْاَنْفُسُۚ وَلَقَدْ جَاۤءَهُمْ مِّنْ رَّبِّهِمُ الْهُدٰىۗ٢٣
In hiya illā asmā'un sammaitumūhā antum wa ābā'ukum mā anzalallāhu bihā min sulṭān(in), iy yattabi‘ūna illaẓ-ẓanna wa mā tahwal-anfus(u), wa laqad jā'ahum mir rabbihimul-hudā.
[23]
ये (मूर्तियाँ) कुछ नामों के सिवा कुछ भी नहीं हैं, जो तुमने तथा तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने इनका कोई प्रमाण नहीं उतारा है। ये लोग केवल अटकल7 के और उन चीज़ों के पीछे चल रहे हैं जो उनके दिल चाहते हैं। जबकि निःसंदेह उनके पास उनके पालनहार की ओर से मार्गदर्शन आ चुका है।
7. मुश्रिक अपनी मूर्तियों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहकर उनकी पूजा करते थे, जिसका यहाँ खंडन किया जा रहा है।
اَمْ لِلْاِنْسَانِ مَا تَمَنّٰىۖ٢٤
Am lil-insāni mā tamannā.
[24]
क्या मनुष्य को वह मिल जाएगा, जिसकी वह कामना करे?
فَلِلّٰهِ الْاٰخِرَةُ وَالْاُوْلٰى ࣖ٢٥
Fa lillāhil-ākhiratu wal-ūlā.
[25]
(नहीं, ऐसा नहीं है) क्योंकि आख़िरत और दुनिया अल्लाह ही के अधिकार में है।
۞ وَكَمْ مِّنْ مَّلَكٍ فِى السَّمٰوٰتِ لَا تُغْنِيْ شَفَاعَتُهُمْ شَيْـًٔا اِلَّا مِنْۢ بَعْدِ اَنْ يَّأْذَنَ اللّٰهُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَرْضٰى٢٦
Wa kam mim malakin fis-samāwāti lā tugnī syafā‘atuhum syai'an illā mim ba‘di ay ya'żanallāhu limay yasyā'u wa yarḍā.
[26]
और आकाशों में कितने ही फ़रिश्ते हैं कि उनकी सिफ़ारिश कुछ लाभ नहीं देती, परंतु इसके पश्चात कि अल्लाह अनुमति दे जिसके लिए चाहे तथा (जिसे) पसंद करे।8
8. अरब के मुश्रिक यह समझते थे कि यदि हम फ़रिश्तों की पूजा करेंगे, तो वे अल्लाह से सिफ़ारिश करके हमें यातना से मुक्त करा देंगे। इसी का खंडन यहाँ किया जा रहा है।
اِنَّ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ لَيُسَمُّوْنَ الْمَلٰۤىِٕكَةَ تَسْمِيَةَ الْاُنْثٰى٢٧
Innal-lażīna lā yu'minūna bil-ākhirati layusammūnal-malā'ikata tasmiyatal-unṡā.
[27]
निःसंदेह वे लोग जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, निश्चय वे फ़रिश्तों के नाम औरतों के नामों की तरह रखते हैं।
وَمَا لَهُمْ بِهٖ مِنْ عِلْمٍۗ اِنْ يَّتَّبِعُوْنَ اِلَّا الظَّنَّ وَاِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِيْ مِنَ الْحَقِّ شَيْـًٔاۚ٢٨
Wa mā lahum bihī min ‘ilm(in), iy yattabi‘ūna illaẓ-ẓann(a), wa innaẓ-ẓanna lā yugnī minal-ḥaqqi syai'ā(n).
[28]
हालाँकि उन्हें इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं। वे केवल अनुमान के पीछे चल रहे हैं। और निःसंदेह अनुमान सच्चाई की तुलना में किसी काम नहीं आता।
فَاَعْرِضْ عَنْ مَّنْ تَوَلّٰىۙ عَنْ ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ اِلَّا الْحَيٰوةَ الدُّنْيَاۗ٢٩
Fa a‘riḍ ‘am man tawallā, ‘an żikrinā wa lam yurid illal-ḥayātad-dun-yā.
[29]
अतः आप उससे मुँह फेर लें, जिसने हमारी नसीहत से मुँह मोड़ लिया और जिसने दुनिया के जीवन के सिवा कुछ नहीं चाहा।
ذٰلِكَ مَبْلَغُهُمْ مِّنَ الْعِلْمِۗ اِنَّ رَبَّكَ هُوَ اَعْلَمُ بِمَنْ ضَلَّ عَنْ سَبِيْلِهٖۙ وَهُوَ اَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدٰى٣٠
Żālika mablaguhum minal-‘ilm(i), inna rabbaka huwa a‘lamu biman ḍalla ‘an sabīlih(ī), wa huwa a‘lamu bimanihtadā.
[30]
यही उनके ज्ञान की सीमा है। निश्चित रूप से आपका पालनहार ही उसे अधिक जानने वाला है, जो उसके मार्ग से भटक गया और वही उसे भी ज़्यादा जानने वाला है, जो सीधे मार्ग पर चला।
وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۗ لِيَجْزِيَ الَّذِيْنَ اَسَاۤءُوْا بِمَا عَمِلُوْا وَيَجْزِيَ الَّذِيْنَ اَحْسَنُوْا بِالْحُسْنٰىۚ٣١
Wa lillāhi mā fis-samāwāti wa mā fil-arḍ(i), liyajziyal-lażīna asā'ū bimā ‘amilū wa yajziyal-lażīna aḥsanū bil-ḥusnā.
[31]
तथा जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, सब अल्लाह ही का है, ताकि वह बुराई करने वालों को उनके किए का बदला दे, और भलाई करने वालों को अच्छा बदला दे।
اَلَّذِيْنَ يَجْتَنِبُوْنَ كَبٰۤىِٕرَ الْاِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ اِلَّا اللَّمَمَۙ اِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِۗ هُوَ اَعْلَمُ بِكُمْ اِذْ اَنْشَاَكُمْ مِّنَ الْاَرْضِ وَاِذْ اَنْتُمْ اَجِنَّةٌ فِيْ بُطُوْنِ اُمَّهٰتِكُمْۗ فَلَا تُزَكُّوْٓا اَنْفُسَكُمْۗ هُوَ اَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقٰى ࣖ٣٢
Allażīna yajtanibūna kabā'iral-iṡmi wal-fawāḥisya illal-lamam(a), inna rabbaka wāsi‘ul-magfirah(ti), huwa a‘lamu bikum iż ansya'akum minal-arḍi wa iż antum ajinnatun fī buṭūni ummahātikum, falā tuzakkū anfusakum, huwa a‘lamu bimanittaqā.
[32]
वे लोग जो बड़े गुनाहों तथा अश्लील कार्यों9 से दूर रहते हैं, सिवाय कुछ छोटे गुनाहों के। निःसंदेह आपका पालनहार बड़ा क्षमा करने वाला है। वह तुम्हें अधिक जानने वाला है जब उसने तुम्हें धरती10 से पैदा किया और जब तुम अपनी माँओं के पेटों में बच्चे थे। अतः अपनी पवित्रता का दावा मत करो, वह उसे ज़्यादा जानने वाला है जो वास्तव में परहेज़गार है।
9. इससे अभिप्राय अश्लीलता पर आधारित कुकर्म हैं। जैसे बाल-मैथुन, व्यभिचार, नारियों का अपने सौंदर्य का प्रदर्शन और पर्दे का त्याग, मिश्रित शिक्षा, मिश्रित सभाएँ, सौंदर्य की प्रतियोगिता आदि। जिसे आधुनिक युग में सभ्यता का नाम दिया जाता है। और मुस्लिम समाज भी इससे प्रभावित हो रहा है। ह़दीस में है कि सात विनाशकारी कर्मों से बचो : 1- अल्लाह का साझी बनाने से। 2- जादू करना। 3- अकारण जान मारना। 4- मदिरा पीना। 5- अनाथ का धन खाना। 6- युद्ध के दिन भागना। 7- तथा भोली-भाली पवित्र स्त्री को कलंक लगाना। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2766, मुस्लिम : 89) 10. अर्थात तुम्हारे मूल आदम (अलैहिस्सलाम) को।
اَفَرَءَيْتَ الَّذِيْ تَوَلّٰىۙ٣٣
Afa ra'aital-lażī tawallā.
[33]
फिर क्या आपने उसे देखा जिसने मुँह फेर लिया?
وَاَعْطٰى قَلِيْلًا وَّاَكْدٰى٣٤
Wa a‘ṭā qalīlaw wa akdā.
[34]
और थोड़ा-सा दिया फिर रोक लिया।
اَعِنْدَهٗ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرٰى٣٥
A‘indahū ‘ilmul-gaibi fahuwa yarā.
[35]
क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है? अतः वह देख रहा है।11
11. इस आयत में जो परंपरागत धर्म को मोक्ष का साधन समझता है उससे कहा जा रहा है कि क्या वह जानता है कि प्रलय के दिन इतने ही से सफल हो जाएगा? जबकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) वह़्य के आधार पर जो प्रस्तुत कर रहे हैं, वही सत्य है। और अल्लाह की वह़्य ही परोक्ष के ज्ञान का साधन है।
اَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِيْ صُحُفِ مُوْسٰى٣٦
Am lam yunabba' bimā fī ṣuḥufi mūsā.
[36]
या उसे उन बातों की सूचना नहीं दी गई, जो मूसा के ग्रंथों में हैं?
وَاِبْرٰهِيْمَ الَّذِيْ وَفّٰىٓ ۙ٣٧
Wa ibrāhīmal-lażī waffā.
[37]
और इबराहीम के (ग्रंथों में), जिसने (कर्तव्य) पूरा किया।
اَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰىۙ٣٨
Allā taziru wāziratuw wizra ukhrā.
[38]
कि कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा।
وَاَنْ لَّيْسَ لِلْاِنْسَانِ اِلَّا مَا سَعٰىۙ٣٩
Wa al laisa lil-insāni illā mā sa‘ā.
[39]
और यह कि मनुष्य के लिए केवल वही है, जिसके लिए उसने प्रयास किया।
وَاَنَّ سَعْيَهٗ سَوْفَ يُرٰىۖ٤٠
Wa anna sa‘yahū saufa yurā.
[40]
और यह कि निश्चय उसका प्रयास शीघ्र ही देखा जाएगा।
ثُمَّ يُجْزٰىهُ الْجَزَاۤءَ الْاَوْفٰىۙ٤١
Ṡumma yujzāhul-jazā'al-aufā.
[41]
फिर उसे उसका पूरा प्रतिफल दिया जाएगा।
وَاَنَّ اِلٰى رَبِّكَ الْمُنْتَهٰىۙ٤٢
Wa anna ilā rabbikal-muntahā.
[42]
और यह कि निःसंदेह आपके पालनहार ही की ओर अंततः पहुँचना है।
وَاَنَّهٗ هُوَ اَضْحَكَ وَاَبْكٰى٤٣
Wa annahū huwa aḍḥaka wa abkā.
[43]
तथा यह कि निःसंदह वही है, जिसने हँसाया तथा रुलाया।
وَاَنَّهٗ هُوَ اَمَاتَ وَاَحْيَاۙ٤٤
Wa annahū huwa amāta wa aḥyā.
[44]
तथा यह कि निःसंदेह वही है, जिसने मृत्यु दी और जीवन दिया।
وَاَنَّهٗ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْاُنْثٰىۙ٤٥
Wa annahū khalaqaz-zaujainiż-żakara wal-unṡā.
[45]
और यह कि निःसंदेह उसी ने दो प्रकार : नर और मादा पैदा किए।
مِنْ نُّطْفَةٍ اِذَا تُمْنٰىۙ٤٦
Min nuṭfatin iżā tumnā.
[46]
एक बूँद से, जब वह टपकाई जाती है।
وَاَنَّ عَلَيْهِ النَّشْاَةَ الْاُخْرٰىۙ٤٧
Wa anna ‘alaihin nasy'atal-ukhrā.
[47]
और यह कि निःसंदेह उसी के ज़िम्मे दूसरी बार12 पैदा करना है।
12. अर्थात प्रलय के दिन प्रतिफल प्रदान करने के लिए।
وَاَنَّهٗ هُوَ اَغْنٰى وَاَقْنٰىۙ٤٨
Wa annahū huwa agnā wa aqnā.
[48]
और यह कि निःसंदेह उसी ने धनी बनाया और कोष प्रदान किया।
وَاَنَّهٗ هُوَ رَبُّ الشِّعْرٰىۙ٤٩
Wa annahū huwa rabbusy-syi‘rā.
[49]
और यह कि निःसंदेह वही ''शे'रा'' 13 का रब है।
13. शे'रा एक तारे का नाम है। जिसकी पूजा कुछ अरब के लोग किया करते थे। (इब्ने कसीर) अर्थ यह है कि यह तारा पूज्य नहीं, वास्तविक पूज्य उसका स्वामी अल्लाह है।
وَاَنَّهٗٓ اَهْلَكَ عَادًا ۨالْاُوْلٰىۙ٥٠
Wa annahū ahlaka ‘ādanil-ūlā.
[50]
और यह कि निःसंदेह उसी ने प्रथम 'आद' 14 को विनष्ट किया।
14. यह हूद (अलैहिस्सलाम) की जाति थे।
وَثَمُوْدَا۟ فَمَآ اَبْقٰىۙ٥١
Wa ṡamūda famā abqā.
[51]
तथा समूद को, फिर (किसी को) बाक़ी न छोड़ा।
وَقَوْمَ نُوْحٍ مِّنْ قَبْلُۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا هُمْ اَظْلَمَ وَاَطْغٰىۗ٥٢
Wa qauma nūḥim min qabl(u), innahum kānū hum aẓlama wa aṭgā.
[52]
तथा इनसे पहले नूह़ की जाति को। निःसंदेह वे बहुत ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे।
وَالْمُؤْتَفِكَةَ اَهْوٰىۙ٥٣
Wal-mu'tafikata ahwā.
[53]
और उलट जाने वाली बस्ती15 को उसने उठाकर धरती पर दे मारा।
15. अर्थात लूत अलैहिस्सलमा की जाति कि बस्तियों को।
فَغَشّٰىهَا مَا غَشّٰىۚ٥٤
Fa gasysyāhā mā gasysyā.
[54]
तो ढाँप दिया16 उसे जिस चीज़ से ढाँपा।
16. अर्थात पत्थरों की वर्षा करके उससे उनकी बस्ती को ढाँप दिया।
فَبِاَيِّ اٰلَاۤءِ رَبِّكَ تَتَمَارٰى٥٥
Fa bi'ayyi ālā'i rabbika tatamārā.
[55]
तो (ऐ इनसान!) तू अपने पालनहार की ने'मतों में से किस-किस में संदेह करेगा?
هٰذَا نَذِيْرٌ مِّنَ النُّذُرِ الْاُوْلٰى٥٦
Hāżā nażīrum minan-nużuril-ūlā.
[56]
यह17 पहले डराने वालों में से एक डराने वाला है।
17. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी एक रसूल हैं प्रथम रसूलों के समान।
اَزِفَتِ الْاٰزِفَةُ ۚ٥٧
Azifatil-āzifah(tu).
[57]
निकट आने वाली निकट आ गई।
لَيْسَ لَهَا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ كَاشِفَةٌ ۗ٥٨
Laisa lahā min dūnillāhi kāsyifah(tun).
[58]
जिसे अल्लाह के सिवा कोई हटाने वाला नहीं।
اَفَمِنْ هٰذَا الْحَدِيْثِ تَعْجَبُوْنَۙ٥٩
Afamin hāżal-ḥadīṡi ta‘jabūn(a).
[59]
तो क्या तुम इस बात पर आश्चर्य करते हो?
وَتَضْحَكُوْنَ وَلَا تَبْكُوْنَۙ٦٠
Wa taḍḥakūna wa lā tabkūn(a).
[60]
तथा हँसते हो और रोते नहीं हो?
وَاَنْتُمْ سٰمِدُوْنَ٦١
Wa antum sāmidūn(a).
[61]
तथा तुम ग़ाफ़िल हो!
فَاسْجُدُوْا لِلّٰهِ وَاعْبُدُوْا ࣖ ۩٦٢
Fasjudū lillāhi wa‘budū.
[62]
अतः अल्लाह को सजदा करो और उसी की इबादत18 करो।
18. ह़दीस में है कि जब सजदे की प्रथम सूरत "नज्म" उतरी, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और जो आपके पास थे, सब ने सजदा किया, एक व्यक्ति के सिवा। उसने कुछ धूल ली, और उसपर सज्दा किया। तो मैंने इसके पश्चात् देखा कि वह काफ़िर रहते हुए मारा गया। और वह उमय्या बिन ख़लफ़ है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4863)