Surah Az-Zariyat

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالذّٰرِيٰتِ ذَرْوًاۙ١
Waż-żāriyāti żarwā(n).
[1] क़सम है उन (हवाओं) की जो (धूल आदि) उड़ाने वाली हैं!

فَالْحٰمِلٰتِ وِقْرًاۙ٢
Fal-ḥāmilāti wiqrā(n).
[2] फिर पानी का बड़ा भारी बोझ उठाने वाले बादलों की!

فَالْجٰرِيٰتِ يُسْرًاۙ٣
Fal-jāriyāti yusrā(n).
[3] फिर आसानी से चलने वाली नावों की!

فَالْمُقَسِّمٰتِ اَمْرًاۙ٤
Fal-muqassimāti amrā(n).
[4] फिर (अल्लाह का) आदेश बाँटने वाले (फ़रिश्तों की)!

اِنَّمَا تُوْعَدُوْنَ لَصَادِقٌۙ٥
Innamā tū‘adūna laṣādiq(un).
[5] निःसंदेह जो तुमसे वादा किया जाता है, निश्चय वह सत्य है।1
1. इन आयतों में हवाओं की शपथ ली गई है कि हवा (वायु) तथा वर्षा की यह व्यवस्था गवाह है कि प्रलय तथा परलोक का वचन सत्य तथा न्याय का होना आवश्यक है।

وَّاِنَّ الدِّيْنَ لَوَاقِعٌۗ٦
Wa innad-dīna lawāqi‘(un).
[6] तथा निःसंदेह हिसाब अनिवार्य रूप से घटित होने वाला है।

وَالسَّمَاۤءِ ذَاتِ الْحُبُكِۙ٧
Was-samā'i żātil-ḥubuk(i).
[7] क़सम है रास्तों वाले आकाश की!

اِنَّكُمْ لَفِيْ قَوْلٍ مُّخْتَلِفٍۙ٨
Innakum lafī qaulim mukhtalif(in).
[8] निःसंदेह तुम निश्चय एक विवादास्पद बात2 में पड़े हो।
2. अर्थात क़ुरआन तथा प्रलय के विषय में विभिन्न बातें कर रहे हैं।

يُّؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ اُفِكَۗ٩
Yu'faku ‘anhu man ufik(a).
[9] उससे वही फेरा जाता है, जो (अल्लाह के ज्ञान में) फेर दिया गया है।

قُتِلَ الْخَرَّاصُوْنَۙ١٠
Qutilal-kharrāṣūn(a).
[10] अटकल लगाने वाले मारे गए।

الَّذِيْنَ هُمْ فِيْ غَمْرَةٍ سَاهُوْنَۙ١١
Allażīna hum fī gamratin sāhūn(a).
[11] जो बड़ी ग़फ़लत में भूले हुए हैं।

يَسْـَٔلُوْنَ اَيَّانَ يَوْمُ الدِّيْنِۗ١٢
Yas'alūna ayyāna yaumud-dīn(i).
[12] वे पूछते3 हैं कि बदले का दिन कब है?
3. अर्थात उपहास स्वरूप पूछते हैं।

يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُوْنَ١٣
Yauma hum ‘alan-nāri yuftanūn(a).
[13] जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे।

ذُوْقُوْا فِتْنَتَكُمْۗ هٰذَا الَّذِيْ كُنْتُمْ بِهٖ تَسْتَعْجِلُوْنَ١٤
Żūqū fitnatakum, hāżal-lażī kuntum bihī tasta‘jilūn(a).
[14] अपने फ़ितने (यातना) का मज़ा चखो, यही है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।

اِنَّ الْمُتَّقِيْنَ فِيْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍۙ١٥
Innal-muttaqīna fī jannātiw wa ‘uyūn(in).
[15] निःसंदेह परहेज़गार लोग बाग़ों और जल स्रोतों में होंगे।

اٰخِذِيْنَ مَآ اٰتٰىهُمْ رَبُّهُمْ ۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَبْلَ ذٰلِكَ مُحْسِنِيْنَۗ١٦
Ākhiżīna mā ātāhum rabbuhum, innahum kānū qabla żālika muḥsinīn(a).
[16] जो कुछ उनका रब उन्हें देगा, उसे वे लेने वाले होंगे। निश्चय ही वे इससे पहले नेकी करने वाले थे।

كَانُوْا قَلِيْلًا مِّنَ الَّيْلِ مَا يَهْجَعُوْنَ١٧
Kānū qalīlam minal-laili mā yahja‘ūn(a).
[17] वे रात के बहुत थोड़े भाग में सोते थे।4
4. अर्थात अपना अधिक समय अल्लाह के स्मरण में लगाते थे। जैसे तहज्जुद की नमाज़ और तस्बीह़ आदि।

وَبِالْاَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُوْنَ١٨
Wa bil-asḥāri hum yastagfirūn(a).
[18] तथा रात्रि की अंतिम घड़ियों5 में वे क्षमा याचना करते थे।
5. ह़दीस में है कि अल्लाह प्रत्येक रात में जब तिहाई रात रह जाए, तो संसार के आकाश की ओर उतरता है। और कहता है : है कोई जो मुझे पुकारे, तो मैं उसकी पुकार सुनूँ? है कोई जो माँगे, तो मैं उसे दूँ? है कोई जो मुझ से क्षमा माँगे, तो मैं उसे क्षमा कर दूँ? ( बुख़ारी : 1145, मुस्लिम : 758)

وَفِيْٓ اَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّاۤىِٕلِ وَالْمَحْرُوْمِ١٩
Wa fī amwālihim ḥaqqul lis-sā'ili wal-maḥrūm(i).
[19] और उनके धनों में माँगने वाले तथा वंचित6 के लिए एक हक़ (हिस्सा) था।
6. अर्थात जो निर्धन होते हुए भी नहीं माँगता था, इसलिए उसे नहीं मिलता था।

وَفِى الْاَرْضِ اٰيٰتٌ لِّلْمُوْقِنِيْنَۙ٢٠
Wa fil-arḍi āyātul lil-mūqinīn(a).
[20] तथा धरती में विश्वास करने वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।

وَفِيْٓ اَنْفُسِكُمْ ۗ اَفَلَا تُبْصِرُوْنَ٢١
Wa fī anfusikum, afalā tubṣirūn(a).
[21] तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। तो क्या तुम नहीं देखते?

وَفِى السَّمَاۤءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوْعَدُوْنَ٢٢
Wa fis-samā'i rizqukum wa mā tū‘adūn(a).
[22] और आकाश ही में तुम्हारी रोज़ी7 है तथा वह भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है।
7. अर्थात आकाश की वर्षा तुम्हारी जीविका का साधन बनती है। तथा स्वर्ग आकाश में है।

فَوَرَبِّ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ اِنَّهٗ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَآ اَنَّكُمْ تَنْطِقُوْنَ ࣖ٢٣
Fa wa rabbis-samā'i wal-arḍi innahū laḥaqqum miṡla mā annakum tanṭiqūn(a).
[23] सो क़सम है आकाश एवं धरती के पालनहार की! निःसंदेह यह बात निश्चित रूप से सत्य है, इस बात की तरह कि निःसंदेह तुम बोलते हो।8
8. अर्थात अपने बोलने का विश्वास है।

هَلْ اَتٰىكَ حَدِيْثُ ضَيْفِ اِبْرٰهِيْمَ الْمُكْرَمِيْنَۘ٢٤
Hal atāka ḥadīṡu ḍaifi ibrāhīmal-mukramīn(a).
[24] क्या आपके पास इबराहीम के सम्मानित अतिथियों की सूचना आई है?

اِذْ دَخَلُوْا عَلَيْهِ فَقَالُوْا سَلٰمًا ۗقَالَ سَلٰمٌۚ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ٢٥
Iż dakhalū ‘alaihi fa qālū salāmā(n), qāla salām(un), qaumum munkarūn(a).
[25] जब वे उसके पास आए, तो उन्होंने सलाम कहा। उसने कहा : सलाम हो। कुछ अपरिचित लोग हैं।

فَرَاغَ اِلٰٓى اَهْلِهٖ فَجَاۤءَ بِعِجْلٍ سَمِيْنٍۙ٢٦
Farāga ilā ahlihī fa jā'a bi‘ijlin samīn(in).
[26] फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया। फिर एक मोटा-ताज़ा (भुना हुआ) बछड़ा ले आया।

فَقَرَّبَهٗٓ اِلَيْهِمْۚ قَالَ اَلَا تَأْكُلُوْنَ٢٧
Fa qarrabahū ilaihim, qāla alā ta'kulūn(a).
[27] फिर उसे उनके सामने रख दिया। कहा : क्या तुम नहीं खाते?

فَاَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيْفَةً ۗقَالُوْا لَا تَخَفْۗ وَبَشَّرُوْهُ بِغُلٰمٍ عَلِيْمٍ٢٨
Fa aujasa minhum khīfah(tan), qālū lā takhaf, wa basysyarūhu bigulāmin ‘alīm(in).
[28] तो उसने उनसे दिल में डर महसूस किया। उन्होंने कहा : डरो नहीं। और उन्होंने उसे एक बहुत ही ज्ञानी पुत्र की शुभ-सूचना दी।

فَاَقْبَلَتِ امْرَاَتُهٗ فِيْ صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوْزٌ عَقِيْمٌ٢٩
Fa aqbalatimra'atuhū fī ṣarratin fa ṣakkat wajhahā wa qālat ‘ajūzun ‘aqīm(un).
[29] यह सुनकर उसकी पत्नी चिल्लाती हुई आगे आई, तो उसने अपना चेहरा पीट लिया और बोली : बूढ़ी बाँझ!

قَالُوْا كَذٰلِكِۙ قَالَ رَبُّكِ ۗاِنَّهٗ هُوَ الْحَكِيْمُ الْعَلِيْمُ ۔٣٠
Qālū każālik(i), qāla rabbuk(i), innahū huwal-ḥakīmul-‘alīm(u).
[30] उन्होंने कहा : तेरे पालनहार ने ऐसे ही फरमाया है। निश्चय वही पूर्ण हिकमत वाला, अत्यंत ज्ञानी है।

۞ قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ اَيُّهَا الْمُرْسَلُوْنَۚ٣١
Qāla famā khaṭbukum ayyuhal-mursalūn(a).
[31] उसने कहा : ऐ भेजे हुए (दूतो!) तुम्हारा अभियान क्या है?

قَالُوْآ اِنَّآ اُرْسِلْنَآ اِلٰى قَوْمٍ مُّجْرِمِيْنَۙ٣٢
Qālū innā ursilnā ilā qaumim mujrimīn(a).
[32] उन्होंने कहा : निःसंदेह हम कुछ अपराधी लोगों की ओर भेजे गए हैं।

لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّنْ طِيْنٍۙ٣٣
Linursila ‘alaihim ḥijāratam min ṭīn(in).
[33] ताकि हम उनपर मिट्टी के पत्थर बरसाएँ।

مُّسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِيْنَ٣٤
Musawwamatan ‘inda rabbika lil-musrifīn(a).
[34] जो तुम्हारे पालनहार के पास से सीमा से आगे बढ़ने वालों के लिए चिह्नित9 हैं।
9. अर्थात प्रत्येक पत्थर पर पापी का नाम है।

فَاَخْرَجْنَا مَنْ كَانَ فِيْهَا مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَۚ٣٥
Fa akhrajnā man kāna fīhā minal-mu'minīn(a).
[35] फिर हमने उस (बस्ती) में जो भी ईमानवाले थे उन्हें निकाल लिया।

فَمَا وَجَدْنَا فِيْهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِيْنَۚ٣٦
Famā wajadnā fīhā gaira baitim minal-muslimīn(a).
[36] तो हमने उसमें मुसलमानों के एक घर10 के सिवा कोई और नहीं पाया।
10. जो आदरणीय लूत (अलैहिस्सलाम) का घर था।

وَتَرَكْنَا فِيْهَآ اٰيَةً لِّلَّذِيْنَ يَخَافُوْنَ الْعَذَابَ الْاَلِيْمَۗ٣٧
Wa taraknā fīhā āyatal lil-lażīna yakhāfūnal-‘ażābal-alīm(a).
[37] तथा हमने उसमें उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुःखदायी यातना से डरते हैं।

وَفِيْ مُوْسٰىٓ اِذْ اَرْسَلْنٰهُ اِلٰى فِرْعَوْنَ بِسُلْطٰنٍ مُّبِيْنٍ٣٨
Wa fī mūsā iż arsalnāhu ilā fir‘auna bisulṭānim mubīn(in).
[38] तथा मूसा (की कहानी) में (भी एक निशानी है), जब हमने उसे फ़िरऔन की ओर एक स्पष्ट प्रमाण देकर भेजा।

فَتَوَلّٰى بِرُكْنِهٖ وَقَالَ سٰحِرٌ اَوْ مَجْنُوْنٌ٣٩
Fa tawallā biruknihī wa qāla sāḥirun au majnūn(un).
[39] तो उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और उसने कहा : यह जादूगर है, या पागल।

فَاَخَذْنٰهُ وَجُنُوْدَهٗ فَنَبَذْنٰهُمْ فِى الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيْمٌۗ٤٠
Fa akhażnāhu wa junūdahū fanabażnāhum fil-yammi wa huwa mulīm(un).
[40] अंततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया, फिर उन्हें समुद्र में फेंक दिया, जबकि वह एक निंदनीय काम करने वाला था।

وَفِيْ عَادٍ اِذْ اَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيْحَ الْعَقِيْمَۚ٤١
Wa fī ‘ādin iż arsalnā ‘alaihimur-rīḥal-‘aqīm(a).
[41] तथा आद में, जब हमने उनपर बाँझ11 हवा भेजी दी।
11. अर्थात अशुभ। (देखिए : सूरतुल-ह़ाक़्क़ा, आयत : 7)

مَا تَذَرُ مِنْ شَيْءٍ اَتَتْ عَلَيْهِ اِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيْمِۗ٤٢
Mā tażaru min syai'in atat ‘alaihi illā ja‘alathu kar-ramīm(i).
[42] वह जिस चीज़ पर से भी गुज़रती, उसे सड़ी हुई हड्डी की तरह कर देती थी।

وَفِيْ ثَمُوْدَ اِذْ قِيْلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوْا حَتّٰى حِيْنٍ٤٣
Wa fī ṡamūda iż qīla lahum tamatta‘ū ḥattā ḥīn(in).
[43] तथा समूद में, जब उनसे कहा गया कि एक समय तक के लिए लाभ उठा लो।

فَعَتَوْا عَنْ اَمْرِ رَبِّهِمْ فَاَخَذَتْهُمُ الصّٰعِقَةُ وَهُمْ يَنْظُرُوْنَ٤٤
Fa‘atau ‘an amri rabbihim fa akhażathumuṣ-ṣā‘iqatu wa hum yanẓurūn(a).
[44] फिर उन्होंने अपने पालनहार के आदेश की अवज्ञा की, तो उन्हें कड़क ने पकड़ लिया और वे देख रहे थे।

فَمَا اسْتَطَاعُوْا مِنْ قِيَامٍ وَّمَا كَانُوْا مُنْتَصِرِيْنَۙ٤٥
Famastaṭā‘ū min qiyāmiw wa mā kānū muntaṣirīn(a).
[45] फिर उनमें न तो खड़े होने की शक्ति थी और न ही वे प्रतिकार करने वाले थे।

وَقَوْمَ نُوْحٍ مِّنْ قَبْلُ ۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمًا فٰسِقِيْنَ ࣖ٤٦
Wa qauma nūḥim min qabl(u), innahum kānū qauman fāsiqīn(a).
[46] तथा इससे पहले नूह़ की जाति को (विनष्ट कर दिया)। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।12
12. आयत 31 से 46 तक नबियों तथा विगत जातियों के परिणाम की ओर निरंतर संकेत करके सावधान किया गया है कि अल्लाह के बदले का नियम बराबर काम कर रहा है।

وَالسَّمَاۤءَ بَنَيْنٰهَا بِاَيْىدٍ وَّاِنَّا لَمُوْسِعُوْنَ٤٧
Was-samā'a banaināhā bi'aidiw wa innā lamūsi‘ūn(a).
[47] तथा आकाश को हमने शक्ति के साथ बनाया और निःसंदेह हम निश्चय विस्तार करने वाले हैं।

وَالْاَرْضَ فَرَشْنٰهَا فَنِعْمَ الْمٰهِدُوْنَ٤٨
Wal-arḍa farasynāhā fa ni‘mal-māhidūn(a).
[48] तथा धरती को हमने बिछा दिया, तो हम क्या ही खूब बिछाने वाले हैं।

وَمِنْ كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ٤٩
Wa min kulli syai'in khalaqnā zaujaini la‘allakum tażakkarūn(a).
[49] तथा हमने हर चीज़ के दो प्रकार बनाए, ताकि तुम नसीहत ग्रहण करो।

فَفِرُّوْٓا اِلَى اللّٰهِ ۗاِنِّيْ لَكُمْ مِّنْهُ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌۚ٥٠
Fa firrū ilallāh(i), innī lakum minhu nażīrum mubīn(un).
[50] अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ।

وَلَا تَجْعَلُوْا مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَۗ اِنِّيْ لَكُمْ مِّنْهُ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ٥١
Wa lā taj‘alū ma‘allāhi ilāhan ākhar(a), innī lakum minhu nażīrum mubīn(un).
[51] और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य मत बनाओ। निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से खुला डराने वाला हूँ।

كَذٰلِكَ مَآ اَتَى الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا قَالُوْا سَاحِرٌ اَوْ مَجْنُوْنٌ٥٢
Każālika mā atal-lażīna min qablihim mir rasūlin illā qālū sāḥirun au majnūn(un).
[52] इसी प्रकार, उन लोगों के पास जो इनसे पहले थे, जब भी कोई रसूल आया, तो उन्होंने कहा : यह जादूगर है, या पागल।

اَتَوَاصَوْا بِهٖۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُوْنَۚ٥٣
Atawāṣau bih(ī), bal hum qaumun ṭāgūn(a).
[53] क्या उन्होंने एक-दूसरे को इस (बात) की वसीयत13 की है? बल्कि वे (स्वयं ही) सरकश लोग हैं।
13. जब सभी ने एक ही बात कही, तो सवाल उठता है कि क्या ये सब एक-दूसरे को वसीयत कर गए हैं? यह संभव नहीं है कि उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत की हो। इसलिए तथ्य यह है कि वे सरकश लोग हैं।

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَآ اَنْتَ بِمَلُوْمٍ٥٤
Fa tawalla ‘anhum famā anta bimalūm(in).
[54] अतः आप उनसे मुँह फेर लें। क्योंकि आपपर कोई दोष नहीं है।

وَذَكِّرْ فَاِنَّ الذِّكْرٰى تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِيْنَ٥٥
Wa żakkir fa innaż-żikra tanfa‘ul-mu'minīn(a).
[55] तथा आप नसीहत करें। क्योंकि निश्चय नसीहत ईमानवालों को लाभ देताी है।

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْاِنْسَ اِلَّا لِيَعْبُدُوْنِ٥٦
Wa mā khalaqtul-jinna wal-insa illā liya‘budūn(i).
[56] और मैंने जिन्नों तथा मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।

مَآ اُرِيْدُ مِنْهُمْ مِّنْ رِّزْقٍ وَّمَآ اُرِيْدُ اَنْ يُّطْعِمُوْنِ٥٧
Mā urīdu minhum mir rizqiw wa mā urīdu ay yuṭ‘imūn(i).
[57] मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ।

اِنَّ اللّٰهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِيْنُ٥٨
Innallāha huwar-razzāqu żul-quwwatil-matīn(u).
[58] निःसंदेह अल्लाह ही बहुत रोज़ी देनेवाला, बड़ा शक्तिशाली, अत्यंत मज़बूत है।

فَاِنَّ لِلَّذِيْنَ ظَلَمُوْا ذَنُوْبًا مِّثْلَ ذَنُوْبِ اَصْحٰبِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُوْنِ٥٩
Fa inna lil-lażīna ẓalamū żanūbam miṡla żanūbi aṣḥābihim falā yasta‘jilūn(i).
[59] अतः निश्चय उन लोगों के लिए जिन्होंने अत्याचार किया, उनके साथियों के हिस्से की तरह (यातना का) एक हिस्सा है। सो वे मुझसे जल्दी न मचाएँ।

فَوَيْلٌ لِّلَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ يَّوْمِهِمُ الَّذِيْ يُوْعَدُوْنَ ࣖ٦٠
Fa wailul lil-lażīna kafarū miy yaumihimul-lażī yū‘adūn(a).
[60] अतः इनकार करने वालों के लिए उनके उस दिन14 से बड़ा विनाश है, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है।
14. अर्थात प्रलय के दिन।