Surah Az-Zukhruf

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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
حٰمۤ ۚ١
Ḥā mīm.
[1] ह़ा, मीम।

وَالْكِتٰبِ الْمُبِيْنِ ۙ٢
Wal-kitābil-mubīn(i).
[2] क़सम है स्पष्ट करने वाली पुस्तक की।

اِنَّا جَعَلْنٰهُ قُرْاٰنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَۚ٣
Innā ja‘alnāhu qur'ānan ‘arabiyyal la‘allakum ta‘qilūn(a).
[3] निःसंदेह हमने इसे अरबी क़ुरआन बनाया, ताकि तुम समझो।

وَاِنَّهٗ فِيْٓ اُمِّ الْكِتٰبِ لَدَيْنَا لَعَلِيٌّ حَكِيْمٌ ۗ٤
Wa innahū fī ummil-kitābi ladainā la‘aliyyun ḥakīm(un).
[4] तथा निःसंदेह वह हमारे पास मूल पुस्तक1 में निश्चय बड़ा उच्च तथा पूर्ण हिकमत वाला है।
1. मूल पुस्तक से अभिप्राय 'लौह़-मह़फ़ूज़' (सुरक्षित पुस्तक) है। जिससे सभी आकाशीय पुस्तकें अलग करके अवतरित की गई हैं। सूरतुल-वाक़िआ में इसी को "किताब-मक्नून" कहा गया है। सूरतुल-बुरूज में इसे "लौह़-मह़फ़ूज़" कहा गया है। सूरतुश्-शुअरा में कहा गया है कि यह अगले लोगों की पुस्तकों में है। सूरतुल-आला में कहा गया है कि यह विषय पहली पुस्तकों में भी अंकित है। सारांश यह है कि क़ुरआन के इनकार करने का कोई कारण नहीं। तथा क़ुरआन का इनकार सभी पहली पुस्तकों का इनकार करने के बराबर है।

اَفَنَضْرِبُ عَنْكُمُ الذِّكْرَ صَفْحًا اَنْ كُنْتُمْ قَوْمًا مُّسْرِفِيْنَ٥
Afa naḍribu ‘ankumuż-żikra ṣafḥan an kuntum qaumam musrifīn(a).
[5] तो क्या हम तुमसे इस नसीहत को फेर दें, उपेक्षा करते हुए, इस कारण कि तुम हद से बढ़ने वाले लोग हो?

وَكَمْ اَرْسَلْنَا مِنْ نَّبِيٍّ فِى الْاَوَّلِيْنَ٦
Wa kam arsalnā min nabiyyin fil-awwalīn(a).
[6] और कितने ही नबी हमने पहले लोगों में भेजे।

وَمَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ نَّبِيٍّ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ٧
Wa mā ya'tīhim min nabiyyin illā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[7] और उनके पास कोई नबी नहीं आता था, परंतु वे उसका उपहास करते थे।

فَاَهْلَكْنَآ اَشَدَّ مِنْهُمْ بَطْشًا وَّمَضٰى مَثَلُ الْاَوَّلِيْنَ٨
Fa ahlaknā asyadda minhum baṭsyaw wa maḍā maṡalul-awwalīn(a).
[8] तो हमने इनसे2 कहीं अधिक बलशाली लोगों को विनष्ट कर दिया तथा अगले लोगों का उदाहरण गुज़र चुका।
2. अर्थात मक्का वासियों से।

وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ لَيَقُوْلُنَّ خَلَقَهُنَّ الْعَزِيْزُ الْعَلِيْمُۙ٩
Wa la'in sa'altahum man khalaqas-samāwāti wal-arḍa layaqūlunna khalaqahunnal-‘azīzul-‘alīm(u).
[9] और निःसंदेह यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया? तो निश्चय अवश्य कहेंगे कि उन्हें सब पर प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले ने पैदा किया है।

الَّذِيْ جَعَلَ لَكُمُ الْاَرْضَ مَهْدًا وَّجَعَلَ لَكُمْ فِيْهَا سُبُلًا لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ ۚ١٠
Allażī ja‘ala lakumul-arḍa mahdaw wa ja‘ala lakum fīhā subulal la‘allakum tahtadūn(a).
[10] वह जिसने तुमहारे लिए धरती को समतल बनाया और उसमें तुम्हारे लिए मार्ग बनाए, ताकि तुम राह पा सको।3
3. एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए।

وَالَّذِيْ نَزَّلَ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءًۢ بِقَدَرٍۚ فَاَنْشَرْنَا بِهٖ بَلْدَةً مَّيْتًا ۚ كَذٰلِكَ تُخْرَجُوْنَ١١
Wal-lażī nazzala minas-samā'i mā'am biqadar(in), fa'ansyarnā bihī baldatam maitā(n), każālika tukhrajūn(a).
[11] तथा वह जिसने आकाश से एक विशेष मात्रा में जल उतारा। फिर हमने उसके द्वारा एक मुर्दा शहर को ज़िंदा कर दिया, इसी तरह तुम निकाले जाओगे।

وَالَّذِيْ خَلَقَ الْاَزْوَاجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُمْ مِّنَ الْفُلْكِ وَالْاَنْعَامِ مَا تَرْكَبُوْنَۙ١٢
Wal-lażī khalaqal-azwāja kullahā wa ja‘ala lakum minal-fulki wal-an‘āmi mā tarkabūn(a).
[12] तथा वह जिसने सब प्रकार के जोड़े पैदा किए तथा तुम्हारे लिए वे नौकाएँ एवं पशु बनाए, जिनपर तुम सवार होते हो।

لِتَسْتَوٗا عَلٰى ظُهُوْرِهٖ ثُمَّ تَذْكُرُوْا نِعْمَةَ رَبِّكُمْ اِذَا اسْتَوَيْتُمْ عَلَيْهِ وَتَقُوْلُوْا سُبْحٰنَ الَّذِيْ سَخَّرَ لَنَا هٰذَا وَمَا كُنَّا لَهٗ مُقْرِنِيْنَۙ١٣
Litastawū ‘alā ẓuhūrihī ṡumma tażkurū ni‘mata rabbikum iżastawaitum ‘alaihi wa taqūlū subḥānal-lażī sakhkhara lanā hāżā wa mā kunnā lahū muqrinīn(a).
[13] ताकि तुम उनकी पीठों पर जमकर बैठो, फिर अपने पालनहार की नेमत को याद करो जब उनपर जमकर बैठ जाओ और कहो : पवित्र है वह अल्लाह, जिसने इसे हमारे वश में कर दिया। हालाँकि हम इसे वश में करने वाले नहीं थे।
4. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ऊँट पर सवार होते, तो तीन बार 'अल्लाहु अक्बर' कहते, फिर यही आयत "मुन्क़लिबून" तक पढ़ते। और कुछ और प्रार्थना के शब्द कहते थे जो दुआओं की पुस्तकों में मिलेंगे। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस संख्या : 1342)

وَاِنَّآ اِلٰى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُوْنَ١٤
Wa innā ilā rabbinā lamunqalibūn(a).
[14] तथा निःसंदेह हम अपने पालनहार की ओर अवश्य लौटकर जाने वाले हैं।

وَجَعَلُوْا لَهٗ مِنْ عِبَادِهٖ جُزْءًا ۗاِنَّ الْاِنْسَانَ لَكَفُوْرٌ مُّبِيْنٌ ۗ ࣖ١٥
Wa ja‘alū lahū min ‘ibādihī juz'ā(n), innal-insāna lakafūrum mubīn(un).
[15] और उन्होंने5 उसके बंदों में से कुछ को उसका अंश बना लिया। निःसंदेह मनुष्य खुला कृतघ्न (नाशुक्रा) है।
5. जैसे मक्का के मुश्रिक लोग फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ मानते थे। और ईसाइयों ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का पुत्र माना। और किसी ने आत्मा को प्रमात्मा तथा अवतारों को प्रभु बना दिया। और फिर उन्हें पूजने लगे।

اَمِ اتَّخَذَ مِمَّا يَخْلُقُ بَنٰتٍ وَّاَصْفٰىكُمْ بِالْبَنِيْنَ ۗ١٦
Amittakhażū mimmā yakhluqu banātiw wa aṣfākum bil-banīn(a).
[16] या उसने उसमें से जिसे वह पैदा करता है अपने लिए पुत्रियाँ रख लीं और तुम्हें पुत्रों के लिए चुन लिया?

وَاِذَا بُشِّرَ اَحَدُهُمْ بِمَا ضَرَبَ لِلرَّحْمٰنِ مَثَلًا ظَلَّ وَجْهُهٗ مُسْوَدًّا وَّهُوَ كَظِيْمٌ١٧
Wa iżā busysyira aḥaduhum bimā ḍaraba lir-raḥmāni maṡalan ẓalla wajhuhū muswaddaw wa huwa kaẓīm(un).
[17] हालाँकि जब उनमें से किसी को उस चीज़ की मंगल सूचना दी जाए, जिसकी उसने रहमान (परम दयावान्) के लिए मिसाल बयान की है, तो उसके मुँह पर कलौंस6 छा जाती है और वह शोक से भर जाता है।
6. इस्लाम से पूर्व यही दशा थी कि यदि किसी के हाँ बच्ची जन्म लेती, तो लज्जा के मारे उसका मुख काला हो जाता। और कुछ अरब के क़बीले उसे जन्म लेते ही जीवित गाड़ दिया करते थे। किंतु इस्लाम ने उसको सम्मान दिया। तथा उसकी रक्षा की। और उसके पालन-पोषण को पुण्य कार्य घोषित किया। ह़दीस में है कि जो पुत्रियों के कारण दुःख झेले और उनके साथ उपकार करे, तो उसके लिए वे नरक से पर्दा बनेंगी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 5995, सह़ीह़ मुस्लिम : 2629) आज भी कुछ पापी लोग गर्भ में बच्ची का पता लगते ही गर्भपात करा देते हैं। जिसको इस्लाम बहुत बड़ा अत्याचार समझता है।

اَوَمَنْ يُّنَشَّؤُا فِى الْحِلْيَةِ وَهُوَ فِى الْخِصَامِ غَيْرُ مُبِيْنٍ١٨
Awamay yunasysya'u fil-ḥilyati wa huwa fil-khiṣāmi gairu mubīn(in).
[18] और क्या वह (अल्लाह के लिए) है, जिसका पालन-पोषण आभूषण में किया जाता है तथा वह वाद-विवाद में खुलकर बात नहीं कर सकती?

وَجَعَلُوا الْمَلٰۤىِٕكَةَ الَّذِيْنَ هُمْ عِبٰدُ الرَّحْمٰنِ اِنَاثًا ۗ اَشَهِدُوْا خَلْقَهُمْ ۗسَتُكْتَبُ شَهَادَتُهُمْ وَيُسْـَٔلُوْنَ١٩
Wa ja‘alul-malā'ikatal-lażīna hum ‘ibādur raḥmāni ināṡā(n), asyahidū khalqahum, satuktabu syahādatuhum wa yus'alūn(a).
[19] और उन्होंने फ़रिश्तों को, जो 'रहमान' के बंदे हैं, स्त्रियाँ क़रार दे लिया। क्या वे उनकी उत्पत्ति के समय उपस्थित थे? उनकी गवाही लिख ली जाएगी और उनसे पूछताछ की जाएगी।

وَقَالُوْا لَوْ شَاۤءَ الرَّحْمٰنُ مَا عَبَدْنٰهُمْ ۗمَا لَهُمْ بِذٰلِكَ مِنْ عِلْمٍ اِنْ هُمْ اِلَّا يَخْرُصُوْنَۗ٢٠
Wa qālū lau syā'ar-raḥmānu mā ‘abadnāhum, mā lahum biżālika min ‘ilm(in), in hum illā yakhruṣūn(a).
[20] तथा उन्होंने कहा : यदि 'रहमान' चाहता, तो हम उनकी इबादत न करते। उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं, वे तो केवल अटकलें दौड़ा रहे हैं।

اَمْ اٰتَيْنٰهُمْ كِتٰبًا مِّنْ قَبْلِهٖ فَهُمْ بِهٖ مُسْتَمْسِكُوْنَ٢١
Am ātaināhum kitābam min qablihī fahum bihī mustamsikūn(a).
[21] या हमने उन्हें इससे पहले कोई पुस्तक प्रदान की है? तो वे उसे दृढ़ता से थामने वाले हैं?1
7. अर्थात क़ुरआन से पहले की किसी ईश-पुस्तक में अल्लाह के सिवा किसी और की उपासना की शिक्षा दी ही नहीं गई है कि वे कोई पुस्तक ला सकें।

بَلْ قَالُوْٓا اِنَّا وَجَدْنَآ اٰبَاۤءَنَا عَلٰٓى اُمَّةٍ وَّاِنَّا عَلٰٓى اٰثٰرِهِمْ مُّهْتَدُوْنَ٢٢
Bal qālū innā wajadnā ābā'anā ‘alā ummatiw wa innā ‘alā āṡārihim muhtadūn(a).
[22] बल्कि उन्होंने कहा : निःसंदेह हमने अपने बाप-दादा को एक मार्ग पर पाया है और निःसंदेह हम उन्हीं के पदचिह्नों पर राह पाने वाले हैं।

وَكَذٰلِكَ مَآ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ فِيْ قَرْيَةٍ مِّنْ نَّذِيْرٍۙ اِلَّا قَالَ مُتْرَفُوْهَآ ۙاِنَّا وَجَدْنَآ اٰبَاۤءَنَا عَلٰٓى اُمَّةٍ وَّاِنَّا عَلٰٓى اٰثٰرِهِمْ مُّقْتَدُوْنَ٢٣
Wa każālika mā arsalnā min qablika fī qaryatim min nażīr(in), illā qāla mutrafūhā, innā wajadnā ābā'anā ‘alā ummatiw wa innā ‘alā āṡārihim muqtadūn(a).
[23] तथा इसी प्रकार, हमने आपसे पूर्व जिस बस्ती में भी कोई सावधान करने वाला भेजा, तो वहाँ के संपन्न लोगों ने यही कहा कि निःसंदेह हमने अपने बाप-दादा को एक रीति पर पाया और निःसंदेह हम उन्हीं के पद्चिह्नों का अनुसरण करने वाले हैं।8
8. आयत का भावार्थ यह है कि प्रत्येक युग के काफ़िर अपने पूर्वजों के अनुसरण के कारण अपने शिर्क और अंधविश्वास पर क़ायम रहे।

۞ قٰلَ اَوَلَوْ جِئْتُكُمْ بِاَهْدٰى مِمَّا وَجَدْتُّمْ عَلَيْهِ اٰبَاۤءَكُمْۗ قَالُوْٓا اِنَّا بِمَآ اُرْسِلْتُمْ بِهٖ كٰفِرُوْنَ٢٤
Qāla awalau ji'tukum bi'ahdā mimmā wajattum ‘alaihi ābā'akum, qālū innā bimā ursiltum bihī kāfirūn(a).
[24] उसने कहा : और क्या यदि मैं तुम्हारे पास उससे अधिक सीधा मार्ग ले आऊँ, जिसपर तुमने अपने बाप-दादा को पाया है? उन्होंने कहा : निःसंदेह हम उसका इनकार करने वाले हैं, जिसके साथ तुम भेजे गए हो।

فَانْتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِيْنَ ࣖ٢٥
Fantaqamnā minhum fanẓur kaifa kāna ‘āqibatul-mukażżibīn(a).
[25] अंततः हमने उनसे बदला लिया। तो देख लो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा हुआ।

وَاِذْ قَالَ اِبْرٰهِيْمُ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖٓ اِنَّنِيْ بَرَاۤءٌ مِّمَّا تَعْبُدُوْنَۙ٢٦
Wa iż qāla ibrāhīmu li'abīhi wa qaumihī innanī barā'um mimmā ta‘budūn(a).
[26] तथा याद करो, जब इबराहीम ने अपने पिता तथा अपनी जाति से कहा : निःसंदेह मैं उन चीज़ों से बरी हूँ, जिनकी तुम इबादत करते हो।

اِلَّا الَّذِيْ فَطَرَنِيْ فَاِنَّهٗ سَيَهْدِيْنِ٢٧
Illāl-lażī faṭaranī fa'innahū sayahdīn(i).
[27] सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निःसंदेह वह मुझे अवश्य मार्ग दिखाएगा।

وَجَعَلَهَا كَلِمَةً ۢ بَاقِيَةً فِيْ عَقِبِهٖ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَۗ٢٨
Wa ja‘alahā kalimatam bāqiyatan fī ‘aqibihī la‘allahum yarji‘ūn(a).
[28] तथा उसने इस (एकेश्वरवाद की बात)9 को अपने पिछलों में बाक़ी रहने वाली बात बना दिया। ताकि वे लौट आएँ।
9. आयत 26 से 28 तक का भावार्थ यह है कि यदि तुम्हें अपने पूर्वजों ही का अनुसरण करना है, तो अपने पूर्वज इबराहीम (अलैहिस्सलाम) का अनुसरण करो। जो शिर्क से विरक्त तथा एकेश्वरवादी थे। और अपनी संतान में एकेश्वरवाद (तौह़ीद) की शिक्षा छोड़ गए ताकि लोग शिर्क से बचते रहें।

بَلْ مَتَّعْتُ هٰٓؤُلَاۤءِ وَاٰبَاۤءَهُمْ حَتّٰى جَاۤءَهُمُ الْحَقُّ وَرَسُوْلٌ مُّبِيْنٌ٢٩
Bal matta‘tu hā'ulā'i wa ābā'ahum ḥattā jā'ahumul-ḥaqqu wa rasūlum mubīn(un).
[29] बल्कि, मैंने इन्हें तथा इनके बाप-दादा को जीवन का सामान दिया। यहाँ तक कि उनके पास सत्य (क़ुरआन) और खोलकर बयान करने वाला रसूल10 आ गया।
10. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।

وَلَمَّا جَاۤءَهُمُ الْحَقُّ قَالُوْا هٰذَا سِحْرٌ وَّاِنَّا بِهٖ كٰفِرُوْنَ٣٠
Wa lammā jā'ahumul-ḥaqqu qālū hāżā siḥruw wa innā bihī kāfirūn(a).
[30] तथा जब उनके पास सत्य आ गया, तो उन्होंने कहा : यह तो जादू है तथा निःसंदेह हम इसका इनकार करते हैं।

وَقَالُوْا لَوْلَا نُزِّلَ هٰذَا الْقُرْاٰنُ عَلٰى رَجُلٍ مِّنَ الْقَرْيَتَيْنِ عَظِيْمٍ٣١
Wa qālū lau lā nuzzila hāżal-qur'ānu ‘alā rajulim minal-qaryataini ‘aẓīm(in).
[31] तथा उन्होंने कहा कि यह क़ुरआन इन दो बस्तियों में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं उतारा गया?11
11. मक्का के काफ़िरों ने कहा कि यदि अल्लाह को रसूल ही भेजना था, तो मक्का और ताइफ़ के नगरों में से किसी प्रधान व्यक्ति पर क़ुरआन उतार देता। अब्दुल्लाह का अनाथ-निर्धन पुत्र मुह़म्मद तो कदापि इसके योग्य नहीं है।

اَهُمْ يَقْسِمُوْنَ رَحْمَتَ رَبِّكَۗ نَحْنُ قَسَمْنَا بَيْنَهُمْ مَّعِيْشَتَهُمْ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَاۙ وَرَفَعْنَا بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجٰتٍ لِّيَتَّخِذَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا سُخْرِيًّا ۗوَرَحْمَتُ رَبِّكَ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُوْنَ٣٢
Ahum yaqsimūna raḥmata rabbik(a), naḥnu qasamnā bainahum ma‘īsyatahum fil-ḥayātid-dun-yā, wa rafa‘nā ba‘ḍahum fauqa ba‘ḍin darajātil liyattakhiża ba‘ḍuhum ba‘ḍan sukhriyyā(n), wa raḥmatu rabbika khairum mimmā yajma‘ūn(a).
[32] कया वे आपके पालनहार की दया को बाँटते12 हैं? हमने ही दुनिया के जीवन में उनके बीच उनकी रोज़ी को बाँटा है तथा उनमें से कुछ को दूसरों से श्रेणियों की दृष्टि से उच्च रखा है, ताकि उनमें से कुछ दूसरों को (अपने) अधीन बना लें, तथा आपके पालनहार की दया13 उससे उत्तम है, जिसे वे इकट्ठा करते हैं।
12. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने जैसे सांसारिक धन-धान्य में लोगों की विभिन्न श्रेणियाँ बनाई हैं उसी प्रकार नुबुव्वत और रिसालत, जो उसकी दया हैं, उनसे भी जिसे चाहा सम्मानित किया है। 13. अर्थात परलोक में स्वर्ग सदाचारी बंदों को मिलेगी।

وَلَوْلَآ اَنْ يَّكُوْنَ النَّاسُ اُمَّةً وَّاحِدَةً لَّجَعَلْنَا لِمَنْ يَّكْفُرُ بِالرَّحْمٰنِ لِبُيُوْتِهِمْ سُقُفًا مِّنْ فِضَّةٍ وَّمَعَارِجَ عَلَيْهَا يَظْهَرُوْنَۙ٣٣
Wa lau lā ay yakūnan-nāsu ummataw wāḥidatal laja‘alnā limay yakfuru bir-raḥmāni libuyūtihim suqufam min fiḍḍatiw wa ma‘ārija ‘alaihā yaẓharūn(a).
[33] और यदि ऐसा न होता कि सब लोग एक ही समुदाय हो जाएँगे, तो निश्चय हम उन लोगों के लिए जो रहमान के साथ कुफ़्र करते हैं, उनके घरों की छतें चाँदी की बना देते और सीढ़ियाँ भी, जिनपर वे चढ़ते हैं।

وَلِبُيُوْتِهِمْ اَبْوَابًا وَّسُرُرًا عَلَيْهَا يَتَّكِـُٔوْنَۙ٣٤
Wa libuyūtihim abwābaw wa sururan ‘alaihā yattaki'ūn(a).
[34] तथा उनके घरों के द्वार और तख़्त भी, जिनपर वे टेक लगाते हैं।

وَزُخْرُفًاۗ وَاِنْ كُلُّ ذٰلِكَ لَمَّا مَتَاعُ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا ۗوَالْاٰخِرَةُ عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُتَّقِيْنَ ࣖ٣٥
Wa zukhrufā(n), wa in kullu żālika lammā matā‘ul-ḥayātid-dun-yā, wal-ākhiratu ‘inda rabbika lil-muttaqīn(a).
[35] और सोने के (बना देते)। यह सब तो मात्र सांसारिक जीवन का सामान है तथा आख़िरत14 आपके पालनहार के यहाँ केवल परहेज़गारों के लिए है।
14. भावार्थ यह है कि सांसारिक धन-धान्य का अल्लाह के यहाँ कोई महत्व नहीं है।

وَمَنْ يَّعْشُ عَنْ ذِكْرِ الرَّحْمٰنِ نُقَيِّضْ لَهٗ شَيْطٰنًا فَهُوَ لَهٗ قَرِيْنٌ٣٦
Wa may ya‘syu ‘an żikrir-raḥmāni nuqayyiḍ lahū syaiṭānan fahuwa lahū qarīn(un).
[36] और जो व्यक्ति 'रहमान' (परम दयालु अल्लाह) के स्मरण से अंधा बन जाए, हम उसके लिए एक शैतान नियुक्त कर देते हैं, फिर वह उसके साथ रहने वाला होता है।

وَاِنَّهُمْ لَيَصُدُّوْنَهُمْ عَنِ السَّبِيْلِ وَيَحْسَبُوْنَ اَنَّهُمْ مُّهْتَدُوْنَ٣٧
Wa innahum layaṣuddūnahum ‘anis-sabīli wa yaḥsabūna annahum muhtadūn(a).
[37] और निःसंदेह ये (शैतान) उन्हें सत्य मार्ग से रोकते हैं और वे समझते हैं कि वे सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं।

حَتّٰىٓ اِذَا جَاۤءَنَا قَالَ يٰلَيْتَ بَيْنِيْ وَبَيْنَكَ بُعْدَ الْمَشْرِقَيْنِ فَبِئْسَ الْقَرِيْنُ٣٨
Ḥattā iżā jā'anā qāla yā laita bainī wa bainaka bu‘dal-masyriqaini fa bi'sal-qarīn(u).
[38] यहाँ तक कि जब वह हमारे पास आएगा, तो कहेगा : ऐ काश! मेरे और तेरे बीच पूर्व और पश्चिम की दूरी होती। अतः तू बहुत बुरा साथी है।

وَلَنْ يَّنْفَعَكُمُ الْيَوْمَ اِذْ ظَّلَمْتُمْ اَنَّكُمْ فِى الْعَذَابِ مُشْتَرِكُوْنَ٣٩
Wa lay yanfa‘akumul-yauma iẓ ẓalamtum annakum fil-‘ażābi musytarikūn(a).
[39] और आज इस बात से तुम्हें कुछ लाभ न होगा, जबकि तुमने ज़ुल्म किया, कि तुम (सब) यातना में एक-दूसरे के साझी हो।

اَفَاَنْتَ تُسْمِعُ الصُّمَّ اَوْ تَهْدِى الْعُمْيَ وَمَنْ كَانَ فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ٤٠
Afa anta tusmi‘uṣ-ṣumma au tahdil-‘umya wa man kāna fī ḍalālim mubīn(in).
[40] फिर क्या आप बहरों को सुनाएँगे या अंधों को राह दिखाएँगे और उनको जो खुली गुमराही15 में पड़े हैं?
15. अर्थ यह है कि जो सच को न सुने तथा दिल का अंधा हो, तो आपके सीधी राह दिखाने का उसपर कोई प्रभाव नहीं होगा।

فَاِمَّا نَذْهَبَنَّ بِكَ فَاِنَّا مِنْهُمْ مُّنْتَقِمُوْنَۙ٤١
Fa immā nażhabanna bika fa innā minhum muntaqimūn(a).
[41] फिर यदि हम आपको (संसार से) ले ही जाएँ, तो निःसंदेह हम उनसे बदला लेने वाले हैं।

اَوْ نُرِيَنَّكَ الَّذِيْ وَعَدْنٰهُمْ فَاِنَّا عَلَيْهِمْ مُّقْتَدِرُوْنَ٤٢
Au nuriyannakal-lażī wa‘adnāhum fa'innā ‘alaihim muqtadirūn(a).
[42] या हम आपको वह (यातना) दिखा दें, जिसका हमने उनसे वादा किया है, तो निःसंदेह हम उनपर पूरी शक्ति रखने वाले हैं।

فَاسْتَمْسِكْ بِالَّذِيْٓ اُوْحِيَ اِلَيْكَ ۚاِنَّكَ عَلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ٤٣
Fastamsik bil-lażī ūḥiya ilaik(a), innaka ‘alā ṣirāṭim mustaqīm(in).
[43] अतः आप उसे दृढ़ता से पकड़े रहें, जिसकी आपकी ओर वह़्य की गई है। निश्चय ही आप सीधी राह पर हैं।

وَاِنَّهٗ لَذِكْرٌ لَّكَ وَلِقَوْمِكَ ۚوَسَوْفَ تُسْـَٔلُوْنَ٤٤
Wa innahū lażikrul laka wa liqaumik(a), wa saufa tus'alūn(a).
[44] और निःसंदेह वह निश्चय आपके लिए तथा आपकी जाति के लिए एक नसीहत (तथा सम्मान) है और शीघ्र ही तुमसे प्रश्न किया जाएगा।

وَسْـَٔلْ مَنْ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رُّسُلِنَآ ۖ اَجَعَلْنَا مِنْ دُوْنِ الرَّحْمٰنِ اٰلِهَةً يُّعْبَدُوْنَ ࣖ٤٥
Was'al man arsalnā min qablika mir rusulinā, aja‘alnā min dūnir-raḥmāni ālihatay yu‘badūn(a).
[45] तथा (ऐ नबी!) आप उनसे पूछ लें, जिन्हें हमने आपसे पहले अपने रसूलों में से भेजा, क्या हमने 'रहमान' के अलावा कोई पूज्य बनाए, जिनकी इबादत की जाए?

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا مُوْسٰى بِاٰيٰتِنَآ اِلٰى فِرْعَوْنَ وَمَلَا۟ىِٕهٖ فَقَالَ اِنِّيْ رَسُوْلُ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ٤٦
Wa laqad arsalnā mūsā bi'āyātinā ilā fir‘auna wa mala'ihī fa qāla innī rasūlu rabbil-‘ālamīn(a).
[46] तथा निःसंदेह हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसके प्रमुखों की ओर भेजा। तो उसने कहा : निःसंदेह मैं सारे संसारों के पालनहार का रसूल हूँ।

فَلَمَّا جَاۤءَهُمْ بِاٰيٰتِنَآ اِذَا هُمْ مِّنْهَا يَضْحَكُوْنَ٤٧
Falammā jā'ahum bi'āyātinā iżā hum minhā yaḍḥakūn(a).
[47] फिर जब वह उनके पास हमारी निशानियाँ लेकर आया, तो सहसा वे उनकी हँसी उड़ाने लगे।

وَمَا نُرِيْهِمْ مِّنْ اٰيَةٍ اِلَّا هِيَ اَكْبَرُ مِنْ اُخْتِهَاۗ وَاَخَذْنٰهُمْ بِالْعَذَابِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ٤٨
Wa mā nurīhim min āyatin illā hiya akbaru min ukhtihā, wa akhażnāhum bil-‘ażābi la‘allahum yarji‘ūn(a).
[48] और हम उन्हें जो भी निशानी दिखाते, वह अपने जैसी (पहली निशानी) से बढ़कर होती थी। तथा हम उन्हें यातना से ग्रस्त किया, ताकि वे लौट आएँ।

وَقَالُوْا يٰٓاَيُّهَ السَّاحِرُ ادْعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِنْدَكَۚ اِنَّنَا لَمُهْتَدُوْنَ٤٩
Wa qālū yā ayyuhas-sāḥirud‘u lanā rabbaka bimā ‘ahida ‘indak(a), innanā lamuhtadūn(a).
[49] और उन्होंने कहा : ऐ जादूगर! हमारे लिए अपने पालनहार से उसके द्वारा दुआ कर, जो उसने तुझसे प्रतिज्ञा कर रखी है। निःसंदेह हम अवश्य ही सीधी राह पर आने वाले हैं।

فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُمُ الْعَذَابَ اِذَا هُمْ يَنْكُثُوْنَ٥٠
Falammā kasyafnā ‘anhumul-‘ażāba iżā hum yankuṡūn(a).
[50] फिर जब हम उनसे यातना दूर कर देते, सहसा वे वचन तोड़ देते थे।

وَنَادٰى فِرْعَوْنُ فِيْ قَوْمِهٖ قَالَ يٰقَوْمِ اَلَيْسَ لِيْ مُلْكُ مِصْرَ وَهٰذِهِ الْاَنْهٰرُ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِيْۚ اَفَلَا تُبْصِرُوْنَۗ٥١
Wa nādā fir‘aunu fī qaumihī qāla yā qaumi alaisa lī mulku miṣra wa hāżihil-anhāru tajrī min taḥtī, afalā tubṣirūn(a).
[51] तथा फ़िरऔन ने अपनी जाति में घोषणा करवाया, उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या मेरे पास मिस्र का राज्य नहीं है? तथा ये नहरें मेरे तहत नहीं चलतीं? तो क्या तुम नहीं देखते?

اَمْ اَنَا۠ خَيْرٌ مِّنْ هٰذَا الَّذِيْ هُوَ مَهِيْنٌ ەۙ وَّلَا يَكَادُ يُبِيْنُ٥٢
Am ana khairum min hāżal-lażī huwa mahīn(un), wa lā yakādu yubīn(u).
[52] बल्कि मैं इस व्यक्ति से बेहतर हूँ, जो हीन है और क़रीब नहीं कि वह अपनी बात स्पष्ट कर सके।

فَلَوْلَآ اُلْقِيَ عَلَيْهِ اَسْوِرَةٌ مِّنْ ذَهَبٍ اَوْ جَاۤءَ مَعَهُ الْمَلٰۤىِٕكَةُ مُقْتَرِنِيْنَ٥٣
Falau lā ulqiya ‘alaihi aswiratum min żahabin au jā'a ma‘ahul-malā'ikatu muqtarinīn(a).
[53] सो उसपर सोने के कंगन क्यों नहीं डाले गए, या उसके साथ फ़रिश्ते मिलकर क्यों नहीं आए?16
16. अर्थात यदि मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह का रसूल होता, तो उसके पास राज्य, और हाथों में सोने के कंगन तथा उसकी रक्षा के लिए फ़रिश्तों को उसके साथ रहना चाहिए था। जैसे मेरे पास राज्य, हाथों में सोने के कंगन तथा सुरक्षा के लिये सेना है।

فَاسْتَخَفَّ قَوْمَهٗ فَاَطَاعُوْهُ ۗاِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمًا فٰسِقِيْنَ٥٤
Fastakhaffa qaumahū fa aṭā‘ūh(u), innahum kānū qauman fāsiqīn(a).
[54] फिर उसने अपनी जाति को फुसलाया, तो उन्होंने उसकी बात मान ली, निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।

فَلَمَّآ اٰسَفُوْنَا انْتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَاَغْرَقْنٰهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ٥٥
Falammā āsafūnantaqamnā minhum fa agraqnāhum ajma‘īn(a).
[55] फिर जब उन्होंने हमें क्रोधित कर दिया, तो हमने उनसे बदला लिया। अतः हमने उन सबको डुबो दिया।

فَجَعَلْنٰهُمْ سَلَفًا وَّمَثَلًا لِّلْاٰخِرِيْنَ ࣖ٥٦
Fa ja‘alnāhum salafaw wa maṡalal lil-ākhirīn(a).
[56] तो हमने उन्हें बाद में आने वाले लोगों के लिए अग्रगामी और एक उदाहरण बना दिया।

۞ وَلَمَّا ضُرِبَ ابْنُ مَرْيَمَ مَثَلًا اِذَا قَوْمُكَ مِنْهُ يَصِدُّوْنَ٥٧
Wa lammā ḍuribabnu maryama maṡalan iżā qaumuka minhu yaṣiddūn(a).
[57] तथा जब मरयम के पुत्र का उदाहरण17 दिया गया, तो सहसा आपकी जाति उसपर शोर मचाने लगी।
17. आयत संख्या 45 में कहा है कि पहले नबियों की शिक्षा पढ़कर देखो कि क्या किसी ने यह आदेश दिया है कि अल्लाह अत्यंत कृपाशील के सिवा दूसरों की इबादत की जाए? इसपर मुश्रिकों ने कहा कि ईसा (अलैहिस्सलाम) की इबादत क्यों की जाती है? क्या हमारे पूज्य उनसे कम हैं?

وَقَالُوْٓا ءَاٰلِهَتُنَا خَيْرٌ اَمْ هُوَ ۗمَا ضَرَبُوْهُ لَكَ اِلَّا جَدَلًا ۗبَلْ هُمْ قَوْمٌ خَصِمُوْنَ٥٨
Wa qālū a'ālihatunā khairun am huw(a), mā ḍarabūhu laka illā jadalā(n), bal hum qaumun khaṣimūn(a).
[58] तथा उन्होंने कहा : क्या हमारे देवता अच्छे हैं या वह? उन्होंने आपके लिए यह (उदाहरण) केवल झगड़ने के लिए दिया है। बल्कि वे झगड़ालू लोग हैं।

اِنْ هُوَ اِلَّا عَبْدٌ اَنْعَمْنَا عَلَيْهِ وَجَعَلْنٰهُ مَثَلًا لِّبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۗ٥٩
In huwa illā ‘abdun an‘amnā ‘alaihi wa ja‘alnāhu maṡalal libanī isrā'īl(a).
[59] वह18 तो केवल एक बंदा है, जिसपर हमने उपकार किया तथा हमने उसे बनी इसराईल के लिए एक उदाहरण बना दिया।
18. इस आयत में बताया जा रहा है कि ये मुश्रिक ईसा (अलैहिस्सलाम) के उदाहरण पर बड़ा शोर मचा रहे हैं। और उसे कुतर्क स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं। जबकि वह पूज्य नहीं, अल्लाह के दास हैं। जिनपर अल्लाह ने उपकार किया और इसराईल की संतान के लिए एक उदाहरण बना दिया।

وَلَوْ نَشَاۤءُ لَجَعَلْنَا مِنْكُمْ مَّلٰۤىِٕكَةً فِى الْاَرْضِ يَخْلُفُوْنَ٦٠
Wa lau nasyā'u laja‘alnā minkum malā'ikatan fil-arḍi yakhlufūn(a).
[60] और यदि हम चाहें तो अवश्य तुम्हारे स्थान पर फ़रिश्तों को बना दें, जो धरती में उत्ताराधिकारी हों।

وَاِنَّهٗ لَعِلْمٌ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمْتَرُنَّ بِهَا وَاتَّبِعُوْنِۗ هٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيْمٌ٦١
Wa innahū la‘ilmul lis-sā‘ati falā tamtarunna bihā wattabi‘ūn(i), hāżā ṣirāṭum mustaqīm(un).
[61] तथा निःसंदेह वह (ईसा) निश्चय क़ियामत की एक निशानी19 है। अतः तुम उसमें कदापि संदेह न करो और मेरी पैरवी करो, यही सीधा रास्ता है।
19. ह़दीस शरीफ़ में आया है कि प्रलय की बड़ी दस निशानियों में से ईसा (अलैहिस्सलाम) का आकाश से उतरना भी एक निशानी है। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2901)

وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ الشَّيْطٰنُۚ اِنَّهٗ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِيْنٌ٦٢
Wa lā yaṣuddannakumusy-syaiṭān(u), innahū lakum ‘aduwwum mubīn(un).
[62] तथा शौतान तुम्हें कदापि रोकने न पाए। निश्चय वह तुम्हारा खुला शत्रु है।

وَلَمَّا جَاۤءَ عِيْسٰى بِالْبَيِّنٰتِ قَالَ قَدْ جِئْتُكُمْ بِالْحِكْمَةِ وَلِاُبَيِّنَ لَكُمْ بَعْضَ الَّذِيْ تَخْتَلِفُوْنَ فِيْهِۚ فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ٦٣
Wa lammā jā'a ‘īsā bil-bayyināti qāla qad ji'tukum bil-ḥikmati wa li'ubayyina lakum ba‘ḍal-lażī takhtalifūna fīh(i), fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[63] और जब ईसा खुले तर्कों के साथ आया, तो उसने कहा : निःसंदेह मैं तुम्हारे पास हिकमत लेकर आया हूँ और ताकि मैं तुम्हारे लिए कुछ ऐसी बातें स्पष्ट कर दूँ, जिनमें तुम विभेद करते हो। अतः अल्लाह से डरो और मेरा कहना मानो।

اِنَّ اللّٰهَ هُوَ رَبِّيْ وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوْهُۗ هٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيْمٌ٦٤
Innallāha huwa rabbī wa rabbukum fa‘budūh(u), hāżā ṣirāṭum mustaqīm(un).
[64] निःसंदेह अल्लाह ही मेरा रब और तुम्हारा रब है। अतः उसी की इबादत करो। यही सीधा मार्ग है।

فَاخْتَلَفَ الْاَحْزَابُ مِنْۢ بَيْنِهِمْ ۚفَوَيْلٌ لِّلَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْ عَذَابِ يَوْمٍ اَلِيْمٍ٦٥
Fakhtalafal-aḥzābu mim bainihim, fawailul lil-lażīna ẓalamūmin ‘ażābi yaumin alīm(in).
[65] फिर कई गिरोहों20 ने आपस में विभेद किया। तो उन लोगों के लिए जिन्होंने ज़ुल्म किया एक दर्दनाक दिन के अज़ाब से बड़ा विनाश है।
20. इसराईली समुदायों में कुछ ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का पुत्र, किसी ने प्रभु तथा किसी ने उसे तीन का तीसरा (तीन खुदाओं में से एक) कहा। केवल एक ही समुदाय ने उन्हें अल्लाह का बंदा तथा नबी माना।

هَلْ يَنْظُرُوْنَ اِلَّا السَّاعَةَ اَنْ تَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ٦٦
Hal yanẓurūna illas-sā‘ata an ta'tiyahum bagtataw wa hum lā yasy‘urūn(a).
[66] वे क़ियामत के सिवा किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं कि वह उनपर अचानक आ जाए और वे सोचते भी न हों?

اَلْاَخِلَّاۤءُ يَوْمَىِٕذٍۢ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ اِلَّا الْمُتَّقِيْنَ ۗ ࣖ٦٧
Al-akhillā'u yauma'iżim ba‘ḍuhum liba‘ḍin ‘aduwwun illal-muttaqīn(a).
[67] उस दिन नेक लोगों को छोड़कर सभी सच्चे दोस्त एक-दूसरे के दुश्मन होंगे।

يٰعِبَادِ لَاخَوْفٌ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ وَلَآ اَنْتُمْ تَحْزَنُوْنَۚ٦٨
Yā ‘ibādi lā khaufun ‘alaikumul-yauma wa lā antum taḥzanūn(a).
[68] ऐ मेरे बंदो! आज न तुमपर कोई भय है और न तुम शोकाकुल होगे।

اَلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاٰيٰتِنَا وَكَانُوْا مُسْلِمِيْنَۚ٦٩
Allażīna āmanū bi'āyātinā wa kānū muslimīn(a).
[69] वे लोग जो हमारी आयतों पर ईमान लाए तथा वे आज्ञाकारी थे।

اُدْخُلُوا الْجَنَّةَ اَنْتُمْ وَاَزْوَاجُكُمْ تُحْبَرُوْنَ٧٠
Udkhulul-jannata antum wa azwājukum tuḥbarūn(a).
[70] तुम और तुम्हारी पत्नियाँ जन्नत में प्रवेश कर जाओ। तुम्हें खुश रखा जाएगा।

يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِصِحَافٍ مِّنْ ذَهَبٍ وَّاَكْوَابٍ ۚوَفِيْهَا مَا تَشْتَهِيْهِ الْاَنْفُسُ وَتَلَذُّ الْاَعْيُنُ ۚوَاَنْتُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَۚ٧١
Yuṭāfu ‘alaihim biṣiḥāfim min żahabiw wa akwāb(in), wa fīhā mā tasytahīhil-anfusu wa talażżul-a‘yun(u), wa antum fīhā khālidūn(a).
[71] उनपर सोने की थालें तथा प्याले फिराए जाएँगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और जिससे आँखें आनंदित हों और तुम उसमें सदा निवास करने वाले हो।

وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِيْٓ اُوْرِثْتُمُوْهَا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ٧٢
Wa tilkal-jannatul-latī ūriṡtumūhā bimā kuntum ta‘malūn(a).
[72] और यही वह जन्नत है, जिसके तुम उत्तराधिकारी बनाए गए हो, उसके बदले में जो तुम कार्य करते थे।

لَكُمْ فِيْهَا فَاكِهَةٌ كَثِيْرَةٌ مِّنْهَا تَأْكُلُوْنَ٧٣
Lakum fīhā fākihatun kaṡīratum minhā ta'kulūn(a).
[73] तुम्हारे लिए इसमें बहुत-से मेवे हैं, जिनसे तुम खाते रहोगे।

اِنَّ الْمُجْرِمِيْنَ فِيْ عَذَابِ جَهَنَّمَ خٰلِدُوْنَۖ٧٤
Innal-mujrimīna fī ‘ażābi jahannama khālidūn(a).
[74] निःसंदेह अपराधी लोग जहन्नम की यातना में सदैव रहने वाले हैं।

لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيْهِ مُبْلِسُوْنَ ۚ٧٥
Lā yufattaru ‘anhum wa hum fīhi mublisūn(a).
[75] वह (यातना) उनसे हल्की नहीं की जाएगी तथा वे उसी में निराश पड़े रहेंगे।

وَمَا ظَلَمْنٰهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْا هُمُ الظّٰلِمِيْنَ٧٦
Wa mā ẓalamnāhum wa lākin kānū humuẓ-ẓālimīn(a).
[76] और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि वे स्वयं ही अत्याचारी थे।

وَنَادَوْا يٰمٰلِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَۗ قَالَ اِنَّكُمْ مّٰكِثُوْنَ٧٧
Wa nādau yā māliku liyaqḍi ‘alainā rabbuk(a), qāla innakum mākiṡūn(a).
[77] तथा वे पुकारेंगे : ऐ मालिक!21 तेरा पालनहार हमारा काम तमाम ही कर दे। वह कहेगा : निःसंदेह तुम (यहीं) ठहरने वाले हो।
21. मालिक, नरक के अधिकारी फ़रिश्ते का नाम है।

لَقَدْ جِئْنٰكُمْ بِالْحَقِّ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كٰرِهُوْنَ٧٨
Laqad ji'nākum bil-ḥaqqi wa lākinna akṡarakum lil-ḥaqqi kārihūn(a).
[78] निःसंदेह हम तो तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं, लेकिन तुममें से अधिकतर लोग सत्य को नापसंद करने वाले हैं।

اَمْ اَبْرَمُوْٓا اَمْرًا فَاِنَّا مُبْرِمُوْنَۚ٧٩
Am abramū amran fa innā mubrimūn(a).
[79] या उन्होंने किसी कार्य का दृढ़ निश्चय कर लिया है? तो निःसंदेह हम भी दृढ़ उपाय करने वाले हैं।

اَمْ يَحْسَبُوْنَ اَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ ۗ بَلٰى وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُوْنَ٨٠
Am yaḥsabūna annā lā nasma‘u sirrahum wa najwāhum, balā wa rusulunā ladaihim yaktubūn(a).
[80] या वे समझते हैं कि हम उनके रहस्य और उनकी कानाफूसी को नहीं सुनते? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके पास लिखते रहते हैं।

قُلْ اِنْ كَانَ لِلرَّحْمٰنِ وَلَدٌ ۖفَاَنَا۠ اَوَّلُ الْعٰبِدِيْنَ٨١
Qul in kāna lir-raḥmāni walad(un), fa ana awwalul-‘ābidīn(a).
[81] (ऐ नबी!) आप कह दें : यदि रहमान की कोई संतान हो, तो मैं सबसे पहले इबादत करने वाला हूँ।

سُبْحٰنَ رَبِّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُوْنَ٨٢
Subḥāna rabbis-samāwāti wal-arḍi rabbil-‘arsyi ‘ammā yaṣifūn(a).
[82] पवित्र है आकाशों तथा धरती का पालनहार, सिंहासन का स्वामी उन बातों से जो वे बयान करते हैं।

فَذَرْهُمْ يَخُوْضُوْا وَيَلْعَبُوْا حَتّٰى يُلٰقُوْا يَوْمَهُمُ الَّذِيْ يُوْعَدُوْنَ٨٣
Fa żarhum yakhūḍū wa yal‘abū ḥattā yulāqū yaumahumul-lażī yū‘adūn(a).
[83] तो आप उन्हें छोड़ दें व्यर्थ की बहस करते रहें तथा खेलते रहें, यहाँ तक कि उनका सामना उनके उस दिन से हो जाए, जिसका उनसे वादा किया जाता है।

وَهُوَ الَّذِيْ فِى السَّمَاۤءِ اِلٰهٌ وَّ فِى الْاَرْضِ اِلٰهٌ ۗوَهُوَ الْحَكِيْمُ الْعَلِيْمُ٨٤
Wa huwal-lażī fis-samā'i ilāhuw wa fil-arḍi ilāh(un), wa huwal-ḥakīmul-‘alīm(u).
[84] वही है जो आकाश में पूज्य है और धरती में भी पूज्य है और वही पूर्ण ह़िकमत वाला, सब कुछ जानने वाला है।

وَتَبٰرَكَ الَّذِيْ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۚوَعِنْدَهٗ عِلْمُ السَّاعَةِۚ وَاِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ٨٥
Wa tabārakal-lażī lahū mulkus-samāwāti wal-arḍi wa mā bainahumā, wa ‘indahū ‘ilmus-sā‘ah(ti), wa ilaihi turja‘ūn(a).
[85] और बड़ा ही बरकत वाला है वह, जिसके पास आसमानों और ज़मीन की बादशाही है और उसकी भी जो उन दोनों के दरमियान है तथा उसी के पास क़ियामत का ज्ञान है और उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।

وَلَا يَمْلِكُ الَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهِ الشَّفَاعَةَ اِلَّا مَنْ شَهِدَ بِالْحَقِّ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ٨٦
Wa lā yamlikul-lażīna yad‘ūna min dūnihisy-syafā‘ata illā man syahida bil-ḥaqqi wa hum ya‘lamūn(a).
[86] तथा वे लोग जिन्हें ये उसके सिवा पुकारते हैं, वे सिफ़ारिश का अधिकार नहीं रखते। परंतु जिसने सत्य22 की गवाही दी और वे (उसे) जानते हों।
22. सत्य से अभिप्राय धर्म-सूत्र "ला इलाहा इल्लल्लाह" है। अर्थात जो इसे जान-बूझ कर स्वीकार करते हों, तो शफ़ाअत उन्हीं के लिए होगी। उन काफ़िरों के लिए नहीं, जो मूर्तियों को पुकारते हैं। अथवा इससे अभिप्राय यह है कि सिफ़ारिश का अधिकार उनको मिलेगा जिन्होंने सत्य को स्वीकार किया है। जैसे नबियों, फ़रिश्तों तथा सदाचारियों को, न कि उन झूठे पूज्यों को जिन्हें मुश्रिक अपना सिफ़ारिशी समझते हैं।

وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ خَلَقَهُمْ لَيَقُوْلُنَّ اللّٰهُ فَاَنّٰى يُؤْفَكُوْنَۙ٨٧
Wa la'in sa'altahum man khalaqahum layaqūlunnallāhu fa annā yu'fakūn(a).
[87] और निश्चय यदि आप उनसे पूछें कि उन्हें किसने पैदा किया? तो वे अवश्य कहेंगे : अल्लाह ने। तो फिर वे कहाँ बहकाए जाते हैं?23
23. अर्थात अल्लाह की उपासना से।

وَقِيْلِهٖ يٰرَبِّ اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ قَوْمٌ لَّا يُؤْمِنُوْنَۘ٨٨
Wa qīlihī yā rabbi inna hā'ulā'i qaumul lā yu'minūn(a).
[88] तथा (उसके पास) रसूल के इस कथन (का भी ज्ञान है कि) : ऐ मेरे पालनहार! ये तो ऐसे लोग हैं, जो ईमान नहीं लाते।

فَاصْفَحْ عَنْهُمْ وَقُلْ سَلٰمٌۗ فَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَ ࣖ٨٩
Faṣfaḥ ‘anhum wa qul salām(un), fa saufa ya‘lamūn(a).
[89] अतः आप उनसे मुँह फेर लें तथा कह दें कि सलाम24 है तुम्हें। जल्द ही उन्हें पता चल जाएगा।
24. अर्थात उनसे न उलझें।