Surah Al-Mu’min

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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
حٰمۤ ۚ١
Ḥā mīm.
[1] ह़ा, मीम।

تَنْزِيْلُ الْكِتٰبِ مِنَ اللّٰهِ الْعَزِيْزِ الْعَلِيْمِۙ٢
Tanzīlul-kitābi minallāhil-‘azīzil-‘alīm(i).
[2] इस पुस्तक का अवतरण अति प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले अल्लाह की ओर से है।

غَافِرِ الذَّنْۢبِ وَقَابِلِ التَّوْبِ شَدِيْدِ الْعِقَابِ ذِى الطَّوْلِۗ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۗاِلَيْهِ الْمَصِيْرُ٣
Gāfiriż-żambi wa qābilit-taubi syadīdil-‘iqābi żiṭ-ṭaul(i), lā ilāha illā huw(a), ilaihil-maṣīr(u).
[3] जो पाप क्षमा करने वाला और तौबा स्वीकार करने वाला, कठोर दंड देने वाला, बड़ा अनुग्रहशील है। उसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं। उसी की ओर (सबको) जाना है।

مَا يُجَادِلُ فِيْٓ اٰيٰتِ اللّٰهِ اِلَّا الَّذِيْنَ كَفَرُوْا فَلَا يَغْرُرْكَ تَقَلُّبُهُمْ فِى الْبِلَادِ٤
Mā yujādilu fī āyātillāhi illal-lażīna kafarū falā yagrurka taqallubuhum fil-bilād(i).
[4] अल्लाह की आयतों के बारे में केवल वही लोग झगड़ा करते हैं, जो काफ़िर हैं। अतः आपको उनका नगरों में चलना-फिरना धोखे में न डाले।

كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوْحٍ وَّالْاَحْزَابُ مِنْۢ بَعْدِهِمْ ۖوَهَمَّتْ كُلُّ اُمَّةٍۢ بِرَسُوْلِهِمْ لِيَأْخُذُوْهُ وَجَادَلُوْا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوْا بِهِ الْحَقَّ فَاَخَذْتُهُمْ ۗفَكَيْفَ كَانَ عِقَابِ٥
Każżabat qablahum qaumu nūḥiw wal-aḥzābu mim ba‘dihim, wa hammat kullu ummatim birasūlihim liya'khużūhu wa jādalū bil-bāṭili liyudḥiḍū bihil-ḥaqqa fa'akhażtuhum, fa kaifa kāna ‘iqāb(i).
[5] इनसे पहले नूह की जाति ने झुठलाया तथा उनके बाद के (दूसरे) समूहों ने भी (झुठलाया)। और प्रत्येक समुदाय के लोगों ने इरादा किया कि अपने रसूल को पकड़ लें। तथा उन्होंने असत्य के साथ झगड़ा किया ताकि उसके द्वारा सत्य को ग़लत ठहरा दें। अंततः मैंने उन्हें पकड़ लिया। तो मेरी सज़ा कैसी थी?

وَكَذٰلِكَ حَقَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ عَلَى الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنَّهُمْ اَصْحٰبُ النَّارِۘ٦
Wa każālika ḥaqqat kalimatu rabbika ‘alal-lażīna kafarū annahum aṣḥābun-nār(i).
[6] और इसी प्रकार आपके पालनहार की बात उन लोगों पर सिद्ध हो गई, जिन्होंने कुफ़्र किया कि वे जहन्नम वाले हैं।

اَلَّذِيْنَ يَحْمِلُوْنَ الْعَرْشَ وَمَنْ حَوْلَهٗ يُسَبِّحُوْنَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيُؤْمِنُوْنَ بِهٖ وَيَسْتَغْفِرُوْنَ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْاۚ رَبَّنَا وَسِعْتَ كُلَّ شَيْءٍ رَّحْمَةً وَّعِلْمًا فَاغْفِرْ لِلَّذِيْنَ تَابُوْا وَاتَّبَعُوْا سَبِيْلَكَ وَقِهِمْ عَذَابَ الْجَحِيْمِ٧
Allażīna yaḥmilūnal-‘arsya wa man ḥaulahū yusabbiḥūna biḥamdi rabbihim wa yu'minūna bihī wa yastagfirūna lil-lażīna āmanū, rabbanā wasi‘ta kulla syai'ir raḥmataw wa ‘ilman fagfir lil-lażīna tābū wattaba‘ū sabīlaka wa qihim ‘ażābal-jaḥīm(i).
[7] जो (फ़रिश्ते) अर्श (सिंहासन) को उठाए हुए हैं और जो उसके आस-पास हैं, वे अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता बयान करते हैं, तथा उसपर ईमान रखते हैं, और उन लोगों के लिए क्षमा याचना करते हैं1 जो ईमान लाए। (वे कहते हैं :) ऐ हमारे पालनहार! तूने हर चीज़ को (अपनी) दया और ज्ञान से घेर रखा है। अतः उन लोगों को क्षमा कर दे, जिन्होंने तौबा की और तेरे मार्ग का अनुसरण किया, तथा उन्हें भड़कती हुई आग की यातना से बचा।
1. यहाँ फ़रिश्तों के दो गिरोह का वर्णन किया गया है। एक वह जो अर्श को उठाए हुए है। और दूसरा वह जो अर्श के चारों ओर घूमकर अल्लाह की प्रशंसा का गान और ईमान वालों के लिए क्षमा याचना करता है।

رَبَّنَا وَاَدْخِلْهُمْ جَنّٰتِ عَدْنِ ِۨالَّتِيْ وَعَدْتَّهُمْ وَمَنْ صَلَحَ مِنْ اٰبَاۤىِٕهِمْ وَاَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيّٰتِهِمْ ۗاِنَّكَ اَنْتَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُۙ٨
Rabbanā wa adkhilhum jannāti ‘adninil-latī wa‘attahum wa man ṣalaḥa min ābā'ihim wa azwājihim wa żurriyyātihim, innaka antal ‘azīzul-ḥakīm(u).
[8] ऐ हमारे पालनहार! तथा उन्हें उन स्थायी जन्नतों में दाखिल कर, जिनका तूने उनसे वादा किया है। तथा उनके सदाचारी बाप-दादाओं, पत्नियों और संतानों को भी। निःसंदेह तू प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

وَقِهِمُ السَّيِّاٰتِۗ وَمَنْ تَقِ السَّيِّاٰتِ يَوْمَىِٕذٍ فَقَدْ رَحِمْتَهٗ ۗوَذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيْمُ ࣖ٩
Wa qihimus-sayyi'āt(i), wa man taqis-sayyi'āti yauma'iżin faqad raḥimtah(ū), wa żālika huwal-fauzul-‘aẓīm(u).
[9] तथा उन्हें बुराइयों (के दुष्परिणाम) से सुरक्षित रख। और जिसे तूने उस दिन बुराइयों के दुष्परिणाम से सुरक्षित रखा, तो निश्चय ही तूने उसपर दया की। और यही बड़ी सफलता है।

اِنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا يُنَادَوْنَ لَمَقْتُ اللّٰهِ اَكْبَرُ مِنْ مَّقْتِكُمْ اَنْفُسَكُمْ اِذْ تُدْعَوْنَ اِلَى الْاِيْمَانِ فَتَكْفُرُوْنَ١٠
Innal-lażīna kafarū yunādauna lamaqtullāhi akbaru mim maqtikum anfusakum iż tad‘ūna ilal-īmāni fatakfurūn(a).
[10] निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उन्हें (क़ियामत के दिन) पुकारकर कहा जाएगा कि अल्लाह का क्रोध तुमपर उससे अधिक था, जितना तुम्हें आज अपने ऊपर क्रोध आ रहा है, जब तुम संसार में ईमान की ओर बुलाए2 जाते थे, तो तुम इनकार कर देते थे।
2. आयत का अर्थ यह है कि जब काफ़िर लोग प्रलय के दिन यातना देखेंगे, तो अपने ऊपर क्रोधित होंगे। उस समय उनसे पुकारकर यह कहा जाएगा कि जब संसार में तुम्हें ईमान की ओर बुलाया जाता था, फिर भी तुम कुफ़्र करते थे तो अल्लाह को इससे अधिक क्रोध होता था जितना आज तुम्हें अपने ऊपर हो रहा है।

قَالُوْا رَبَّنَآ اَمَتَّنَا اثْنَتَيْنِ وَاَحْيَيْتَنَا اثْنَتَيْنِ فَاعْتَرَفْنَا بِذُنُوْبِنَا فَهَلْ اِلٰى خُرُوْجٍ مِّنْ سَبِيْلٍ١١
Qālū rabbanā amattanaṡnataini wa aḥyaitanaṡnataini fa‘tarafnā biżunūbinā fa hal ilā khurūjim min sabīl(in).
[11] वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! तूने हमें दो बार मारा3 तथा दो बार जीवित किया। अब हमने अपने पापों को स्वीकार किया। तो क्या (यहाँ से) निकलने का कोई रास्ता है?
3. देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 28.

ذٰلِكُمْ بِاَنَّهٗٓ اِذَا دُعِيَ اللّٰهُ وَحْدَهٗ كَفَرْتُمْۚ وَاِنْ يُّشْرَكْ بِهٖ تُؤْمِنُوْا ۗفَالْحُكْمُ لِلّٰهِ الْعَلِيِّ الْكَبِيْرِ١٢
Żālikum bi'annahū iżā du‘iyallāhu waḥdahū kafartum, wa iy yusyrak bihī tu'minū, fal-ḥukmu lillāhil-‘aliyyil-kabīr(i).
[12] तुम्हें यह (यातना) इस कारण है कि जब अकेले अल्लाह को पुकारा जाता था, तो तुम इनकार कर देते थे। और यदि उसके साथ साझी ठहराया जाता, तो तुम मान लेते थे। अतः अब फ़ैसला अल्लाह के अधिकार में है, जो सर्वोच्च, बड़ा महान है।

هُوَ الَّذِيْ يُرِيْكُمْ اٰيٰتِهٖ وَيُنَزِّلُ لَكُمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ رِزْقًا ۗوَمَا يَتَذَكَّرُ اِلَّا مَنْ يُّنِيْبُ١٣
Huwal-lażī yurīkum āyātihī wa yunazzilu lakum minas-samā'i rizqā(n), wa mā yatażakkaru illā may yunīb(u).
[13] वही है जो तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, तथा तुम्हारे लिए आकाश से रोज़ी उतारता है, और शिक्षा तो केवल वही ग्रहण करता है, जो (उसकी ओर) लौटता है।

فَادْعُوا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ وَلَوْ كَرِهَ الْكٰفِرُوْنَ١٤
Fad‘ullāha mukhliṣīna lahud-dīna wa lau karihal-kāfirūn(a).
[14] अतः तुम अल्लाह को, उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए पुकारो, यद्यपि काफ़िरों को बुरा लगे।

رَفِيْعُ الدَّرَجٰتِ ذُو الْعَرْشِۚ يُلْقِى الرُّوْحَ مِنْ اَمْرِهٖ عَلٰى مَنْ يَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِهٖ لِيُنْذِرَ يَوْمَ التَّلَاقِۙ١٥
Rafī‘ud-darajāti żul-‘arsy(i), yulqir-rūḥa min amrihī ‘alā may yasyā'u min ‘ibādihī liyunżira yaumat-talāq(i).
[15] वह उच्च श्रेणियों वाला, अर्श का स्वामी है। वह अपने आदेश से, अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, वह़्य4 (प्रकाशना) उतारता है, ताकि वह मिलने के दिन से सचेत करे।
4. यहाँ वह़्य को रूह़ कहा गया है; क्योंकि जिस प्रकार रूह़ (आत्मा) मनुष्य के जीवन का कारण होती है, वैसे ही प्रकाशना भी अंतरात्मा को जीवित करती है।

يَوْمَ هُمْ بٰرِزُوْنَ ۚ لَا يَخْفٰى عَلَى اللّٰهِ مِنْهُمْ شَيْءٌ ۗلِمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ۗ لِلّٰهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ١٦
Yauma hum bārizūn(a), lā yakhfā ‘alallāhi minhum syai'(un), limanil-mulkul-yaum(a), lillāhil-wāḥidil-qahhār(i).
[16] जिस दिन वे (अपने पालनहार के सामने) प्रकट होंगे। अल्लाह से उनकी कोई चीज़ छिपी न होगी। (अल्लाह पूछेगा :) आज5 किसका राज्य है? (फिर खुद ही फरमाएगा :) अकेले अल्लाह का, जो सब पर प्रभुत्वशाली है।
5. अर्थात प्रलय के दिन। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4812)

اَلْيَوْمَ تُجْزٰى كُلُّ نَفْسٍۢ بِمَا كَسَبَتْ ۗ لَا ظُلْمَ الْيَوْمَ ۗاِنَّ اللّٰهَ سَرِيْعُ الْحِسَابِ١٧
Al-yauma tujzā kullu nafsim bimā kasabat, lā ẓulmal-yaum(a), innallāha sarī‘ul-ḥisāb(i).
[17] आज प्रत्येक प्राणी को उसके किए का बदला दिया जाएगा। आज कोई अत्याचार नहीं होगा। निःसंदेह अल्लाह अति शीघ्र हिसाब लेने वाला है।

وَاَنْذِرْهُمْ يَوْمَ الْاٰزِفَةِ اِذِ الْقُلُوْبُ لَدَى الْحَنَاجِرِ كٰظِمِيْنَ ەۗ مَا لِلظّٰلِمِيْنَ مِنْ حَمِيْمٍ وَّلَا شَفِيْعٍ يُّطَاعُۗ١٨
Wa anżirhum yaumal-āzifati iżil-qulūbu ladal-ḥanājiri kāẓimīn(a), mā liẓ-ẓālimīna min ḥamīmiw wa lā syafī‘iy yuṭā‘(u).
[18] तथा आप उन्हें निकट आने वाले (क़ियामत के) दिन से सावधान कर दें, जब शोक से भरे हुए दिल गले को आ पहुँचेंगे। अत्याचारियों का न कोई मित्र होगा, न कोई सिफ़ारिशी जिसकी बात मानी जाए।

يَعْلَمُ خَاۤىِٕنَةَ الْاَعْيُنِ وَمَا تُخْفِى الصُّدُوْرُ١٩
Ya‘lamu khā'inatal-a‘yuni wa mā tukhfiṣ-ṣudūr(u).
[19] वह आँखों की चोरी तथा सीने की छिपाई हुई बातों को जानता है।

وَاللّٰهُ يَقْضِيْ بِالْحَقِّ ۗوَالَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ لَا يَقْضُوْنَ بِشَيْءٍ ۗاِنَّ اللّٰهَ هُوَ السَّمِيْعُ الْبَصِيْرُ ࣖ٢٠
Wallāhu yaqḍī bil-ḥaqq(i), wal-lażīna yad‘ūna min dūnihī lā yaqḍūna bisyai'(in), innallāha huwas-samī‘ul-baṣīr(u).
[20] अल्लाह ही सत्य (न्याय) के साथ निर्णय करता है तथा जिन्हें वे अल्लाह के अतिरिक्त पुकारते हैं, वे किसी भी चीज़ का निर्णय नहीं करते। निःसंदेह अल्लाह ही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।

۞ اَوَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ كَانُوْا مِنْ قَبْلِهِمْ ۗ كَانُوْا هُمْ اَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَّاٰثَارًا فِى الْاَرْضِ فَاَخَذَهُمُ اللّٰهُ بِذُنُوْبِهِمْ ۗوَمَا كَانَ لَهُمْ مِّنَ اللّٰهِ مِنْ وَّاقٍ٢١
Awalam yasīrū fil-arḍi fayanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-lażīna kānū min qablihim, kānū hum asyaddu minhum quwwataw wa āṡāran fil-arḍi fa'akhażahumullāhu biżunūbihim, wa mā kāna lahum minallāhi miw wāq(in).
[21] क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं, ताकि देखते कि उन लोगों का परिणाम कैसा रहा, जो इनसे पहले थे? वे इनसे अधिक शक्तिशाली थे तथा धरती में इनसे अधिक चिह्न भी छोड़ गए। तो अल्लाह ने उन्हें उनके पापों के कारण पकड़ लिया और उन्हें अल्लाह से बचाने वाला कोई न था।

ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَانَتْ تَّأْتِيْهِمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ فَكَفَرُوْا فَاَخَذَهُمُ اللّٰهُ ۗاِنَّهٗ قَوِيٌّ شَدِيْدُ الْعِقَابِ٢٢
Żālika bi'annahum kānat ta'tīhim rusuluhum bil-bayyināti fakafarū fa'akhażahumullāh(u), innahū qawiyyun syadīdul-‘iqāb(i).
[22] यह इस कारण हुआ कि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लाते थे, तो उन्होंने इनकार किया। अंततः अल्लाह ने उन्हें पकड़ लिया। निःसंदेह वह बड़ा शक्तिशाली, कठोर दंड देने वाला है।

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا مُوْسٰى بِاٰيٰتِنَا وَسُلْطٰنٍ مُّبِيْنٍۙ٢٣
Wa laqad arsalnā mūsā bi'āyātinā wa sulṭānim mubīn(in).
[23] और हमने मूसा को अपनी निशानियों (चमत्कारों) तथा स्पष्ट तर्क के साथ भेजा।

اِلٰى فِرْعَوْنَ وَهَامٰنَ وَقَارُوْنَ فَقَالُوْا سٰحِرٌ كَذَّابٌ٢٤
Ilā fir‘auna wa hāmāna wa qārūna faqālū sāḥirun każżāb(un).
[24] फ़िरऔन और (उसके मंत्री) हामान तथा क़ारून के पास। तो उन्होंने कहा : यह तो बड़ा झूठा जादूगर है।

فَلَمَّا جَاۤءَهُمْ بِالْحَقِّ مِنْ عِنْدِنَا قَالُوا اقْتُلُوْٓا اَبْنَاۤءَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مَعَهٗ وَاسْتَحْيُوْا نِسَاۤءَهُمْ ۗوَمَا كَيْدُ الْكٰفِرِيْنَ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ٢٥
Falammā jā'ahum bil-ḥaqqi min ‘indinā qāluqtulū abnā'al-lażīna āmanū ma‘ahū wastaḥyū nisā'ahum, wa mā kaidul-kāfirīna illā fī ḍalāl(in).
[25] फिर जब वह हमारी ओर से उनके पास सत्य लेकर आया, तो उन्होंने कहा : उसके साथ जो लोग ईमान लाए हैं, उनके बेटों को मार डालो और उनकी स्त्रियों को जीवित रहने दो। और काफ़िरों की चाल विफल ही हुआ करती है।6
6. अर्थात फ़िरऔन और उसकी जाति की। जबकि मूसा (अलैहिस्सलाम) और उनकी जाति बनी इसराईल को कोई हानि नहीं हुई। इससे उनकी शक्ति बढ़ती ही गई यहाँ तक कि वे पवित्र स्थान के स्वामी बन गए।

وَقَالَ فِرْعَوْنُ ذَرُوْنِيْٓ اَقْتُلْ مُوْسٰى وَلْيَدْعُ رَبَّهٗ ۚاِنِّيْٓ اَخَافُ اَنْ يُّبَدِّلَ دِيْنَكُمْ اَوْ اَنْ يُّظْهِرَ فِى الْاَرْضِ الْفَسَادَ٢٦
Wa qāla fir‘aunu żarūnī aqtul mūsā walyad‘u rabbah(ū), innī akhāfu ay yubaddila dīnakum au ay yuẓhira fil-arḍil-fasād(a).
[26] और फ़िरऔन ने (अपने प्रमुखों से) कहा : मुझे छोड़ो, मैं मूसा को क़त्ल कर दूँ और उसे चाहिए कि अपने पालनहार को पुकारे। निःसंदेह मैं डरता हूँ कि वह तुम्हारे धर्म को बदल7 देगा या इस धरती (मिस्र) में बिगाड़ पैदा कर देगा।
7. अर्थात शिर्क तथा देवी-देवता की पूजा से रोककर एक अल्लाह की इबादत में लगा देगा। जो उपद्रव तथा अशांति का कारण बन जाएगा और देश हमारे हाथ से निकल जाएगा।

وَقَالَ مُوْسٰىٓ اِنِّيْ عُذْتُ بِرَبِّيْ وَرَبِّكُمْ مِّنْ كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لَّا يُؤْمِنُ بِيَوْمِ الْحِسَابِ ࣖ٢٧
Wa qāla mūsā innī ‘użtu birabbī wa rabbikum min kulli mutakabbiril lā yu'minu biyaumil-ḥisāb(i).
[27] तथा मूसा ने कहा : निःसंदेह मैंने अपने पालनहार तथा तुम्हारे पालनहार की हर उस अहंकारी से शरण ली है, जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं रखता।

وَقَالَ رَجُلٌ مُّؤْمِنٌۖ مِّنْ اٰلِ فِرْعَوْنَ يَكْتُمُ اِيْمَانَهٗٓ اَتَقْتُلُوْنَ رَجُلًا اَنْ يَّقُوْلَ رَبِّيَ اللّٰهُ وَقَدْ جَاۤءَكُمْ بِالْبَيِّنٰتِ مِنْ رَّبِّكُمْ ۗوَاِنْ يَّكُ كَاذِبًا فَعَلَيْهِ كَذِبُهٗ ۚوَاِنْ يَّكُ صَادِقًا يُّصِبْكُمْ بَعْضُ الَّذِيْ يَعِدُكُمْ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِيْ مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ كَذَّابٌ٢٨
Wa qāla rajulum mu'min(um), min āli fir‘auna yaktumu īmānahū ataqtulūna rajulan ay yaqūla rabbiyallāhu wa qad jā'akum bil-bayyināti mir rabbikum, wa iy yaku kāżiban fa ‘alaihi każibuh(ū), wa iy yaku ṣādiqay yuṣibkum ba‘ḍul-lażī ya‘idukum, innallāha lā yahdī man huwa musrifun każżāb(un).
[28] तथा फ़िरऔन के घराने के एक ईमानवाले व्यक्ति ने, जो अपना ईमान छिपा रहा था, कहा : क्या तुम एक व्यक्ति को केवल इसलिए मार डालना चाहते हो कि वह कहता है कि मेरा पालनहार अल्लाह है, जबकि वह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुली निशानियाँ लेकर आया है? और यदि वह झूठा है, तो उसका झूठ उसी के ऊपर है और यदि वह सच्चा है, तो तुम्हें उस (यातना) का कुछ अंश पहुँचकर रहेगा, जिसका वह तुमसे वादा कर रहा है। निःसंदेह अल्लाह उसका मार्गदर्शन नहीं करता, जो उल्लंघनकारी, बहुत झूठा है।

يٰقَوْمِ لَكُمُ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ظٰهِرِيْنَ فِى الْاَرْضِۖ فَمَنْ يَّنْصُرُنَا مِنْۢ بَأْسِ اللّٰهِ اِنْ جَاۤءَنَا ۗقَالَ فِرْعَوْنُ مَآ اُرِيْكُمْ اِلَّا مَآ اَرٰى وَمَآ اَهْدِيْكُمْ اِلَّا سَبِيْلَ الرَّشَادِ٢٩
Yā qaumi lakumul-mulkul-yauma ẓāhirīna fil-arḍ(i), famay yanṣurunā mim ba'sillāhi in jā'anā, qāla fir‘aunu mā urīkum illā mā arā wa mā ahdīkum illā sabīlar-rasyād(i).
[29] ऐ मेरी जाति के लोगो! आज तुम्हारा राज्य है। तुम धरती में प्रभावशाली हो। यदि अल्लाह की यातना हमपर आ जाए, तो उससे बचाने के लिए कौन हमारी मदद करेगा? फ़िरऔन ने कहा : मैं तुम सब को वही समझा रहा हूँ, जिसे मैं उचित समझता हूँ और मैं तुम्हें सीधी राह ही दिखा रहा हूँ।

وَقَالَ الَّذِيْٓ اٰمَنَ يٰقَوْمِ اِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ مِّثْلَ يَوْمِ الْاَحْزَابِۙ٣٠
Wa qālal-lażī āmana yā qaumi innī akhāfu ‘alaikum miṡla yaumil-aḥzāb(i).
[30] तथा जो व्यक्ति ईमान लाया था, उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! निःसंदेह मैं तुमपर (अगले) समुदायों के दिन जैसे (दिन)8 से डरता हूँ।
8. अर्थात उनकी यातना के दिन जैसे दिन से।

مِثْلَ دَأْبِ قَوْمِ نُوْحٍ وَّعَادٍ وَّثَمُوْدَ وَالَّذِيْنَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ ۗوَمَا اللّٰهُ يُرِيْدُ ظُلْمًا لِّلْعِبَادِ٣١
Miṡla da'bi qaumi nūḥiw wa ‘ādiw wa ṡamūda wal-lażīna mim ba‘dihim, wa mallāhu yurīdu ẓulmal lil-‘ibād(i).
[31] नूह की जाति, तथा आद और समूद और उनके बाद होने वाले लोगों की स्थिति के समान। तथा अल्लाह अपने बंदों पर अत्याचार नहीं चाहता।

وَيٰقَوْمِ اِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ يَوْمَ التَّنَادِۙ٣٢
Wa yā qaumi innī akhāfu ‘alaikum yaumat-tanād(i).
[32] तथा ऐ मेरी जाति के लोगो! निःसंदेह मैं तुमपर एक-दूसरे को पुकारने के दिन9 से डरता हूँ।
9. अर्थात प्रलय के दिन से, जब भय के कारण एक-दूसरे को पुकारेंगे।

يَوْمَ تُوَلُّوْنَ مُدْبِرِيْنَۚ مَا لَكُمْ مِّنَ اللّٰهِ مِنْ عَاصِمٍۚ وَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ هَادٍ٣٣
Yauma tuwallūna mudbirīn(a), mā lakum minallāhi min ‘āṣim(in), wa may yuḍlilillāhu famā lahū min hād(in).
[33] जिस दिन तुम पीठ फेरकर भागोगे। तुम्हें अल्लाह से कोई बचाने वाला न होगा। तथा जिसे अल्लाह राह से भटका दे, उसे राह दिखाने वाला कोई नहीं।

وَلَقَدْ جَاۤءَكُمْ يُوْسُفُ مِنْ قَبْلُ بِالْبَيِّنٰتِ فَمَا زِلْتُمْ فِيْ شَكٍّ مِّمَّا جَاۤءَكُمْ بِهٖ ۗحَتّٰىٓ اِذَا هَلَكَ قُلْتُمْ لَنْ يَّبْعَثَ اللّٰهُ مِنْۢ بَعْدِهٖ رَسُوْلًا ۗ كَذٰلِكَ يُضِلُّ اللّٰهُ مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ مُّرْتَابٌۙ٣٤
Wa laqad jā'akum yūsufu min qablu bil-bayyināti famā ziltum fī syakkim mimmā jā'akum bih(ī), ḥattā iżā halaka qultum lay yab‘aṡallāhu mim ba‘dihī rasūlā(n), każālika yuḍillullāhu man huwa musrifum murtāb(un).
[34] तथा इससे पूर्व यूसुफ़ तुम्हारे पास स्पष्ट प्रमाणों के साथ आए, तो तुम उस चीज़ के बारे में बराबर संदेह में पड़े रहे, जो वह तुम्हारे पास लेकर आए। यहाँ तक कि जब वह मर गए, तो तुमने कहा कि अल्लाह उनके पश्चात् कोई रसूल10 हरगिज़ नहीं भेजेगा। इसी प्रकार अल्लाह उसे राह से भटका देता है, जो हद से बढ़ने वाला, संदेह करने वाला हो।
10. अर्थात तुम्हारा आचरण ही प्रत्येक नबी का विरोध रहा है। इसीलिए तुम समझते थे कि अब कोई रसूल नहीं आएगा।

ۨالَّذِيْنَ يُجَادِلُوْنَ فِيْٓ اٰيٰتِ اللّٰهِ بِغَيْرِ سُلْطٰنٍ اَتٰىهُمْۗ كَبُرَ مَقْتًا عِنْدَ اللّٰهِ وَعِنْدَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا ۗ كَذٰلِكَ يَطْبَعُ اللّٰهُ عَلٰى كُلِّ قَلْبِ مُتَكَبِّرٍ جَبَّارٍ٣٥
Allażīna yujādilūna fī āyātillāhi bigairi sulṭānin atāhum, kabura maqtan ‘indallāhi wa ‘indal-lażīna āmanū, każālika yaṭba‘ullāhu ‘alā kulli qalbi mutakabbirin jabbār(in).
[35] जो अल्लाह की आयतों के बारे में झगड़ते हैं, बिना किसी प्रमाण के, जो उनके पास आया हो। यह अल्लाह के निकट तथा उन लोगों के निकट, जो ईमान लाए हैं, बड़े क्रोध की बात है। इसी प्रकार, अल्लाह प्रत्येक अहंकारी अत्याचारी के दिल पर मुहर लगा देता है।

وَقَالَ فِرْعَوْنُ يٰهَامٰنُ ابْنِ لِيْ صَرْحًا لَّعَلِّيْٓ اَبْلُغُ الْاَسْبَابَۙ٣٦
Wa qāla fir‘aunu yā hāmānubni lī ṣarḥal la‘allī ablugul-asbāb(a).
[36] तथा फ़िरऔन ने कहा : ऐ हामान! मेरे लिए एक उच्च भवन बनाओ, ताकि मैं मार्गों तक पहुँच सकूँ।

اَسْبَابَ السَّمٰوٰتِ فَاَطَّلِعَ اِلٰٓى اِلٰهِ مُوْسٰى وَاِنِّيْ لَاَظُنُّهٗ كَاذِبًا ۗوَكَذٰلِكَ زُيِّنَ لِفِرْعَوْنَ سُوْۤءُ عَمَلِهٖ وَصُدَّ عَنِ السَّبِيْلِ ۗوَمَا كَيْدُ فِرْعَوْنَ اِلَّا فِيْ تَبَابٍ ࣖ٣٧
Asbābas-samāwāti fa aṭṭali‘a ilā ilāhi mūsā wa innī la'aẓunnuhū kāżibā(n), wa każālika zuyyina lifir‘auna sū'u ‘amalihī wa ṣudda ‘anis-sabīl(i), wa mā kaidu fir‘auna illā fī tabāb(in).
[37] आकाशों के मार्गों तक। फिर मैं मूसा के पूज्य को देख लूँ। और निश्चय ही मैं उसे झूठा समझता हूँ। इसी प्रकार, फ़िरऔन के लिए उसके बुरे कर्म को सुंदर बना दिया गया और उसे सत्य मार्ग से रोक दिया गया। और फ़िरऔन की चाल विनाश होकर रही।

وَقَالَ الَّذِيْٓ اٰمَنَ يٰقَوْمِ اتَّبِعُوْنِ اَهْدِكُمْ سَبِيْلَ الرَّشَادِۚ٣٨
Wa qālal-lażī āmana yā qaumittabi‘ūni ahdikum sabīlar-rasyād(i).
[38] तथा जो व्यक्ति ईमान लाया था, उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मेरा अनुसरण करो, मैं तुम्हे भलाई का रास्ता दिखाऊँगा।

يٰقَوْمِ اِنَّمَا هٰذِهِ الْحَيٰوةُ الدُّنْيَا مَتَاعٌ ۖوَّاِنَّ الْاٰخِرَةَ هِيَ دَارُ الْقَرَارِ٣٩
Yā qaumi innamā hāżihil-ḥayātud-dun-yā matā‘(un), wa innal-ākhirata hiya dārul-qarār(i).
[39] ऐ मेरी जाति के लोगो! यह सांसारिक जीवन तो मात्र कुछ दिनों का लाभ है और निःसंदेह स्थायी निवास का स्थान तो आख़िरत ही है।

مَنْ عَمِلَ سَيِّئَةً فَلَا يُجْزٰىٓ اِلَّا مِثْلَهَاۚ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّنْ ذَكَرٍ اَوْ اُنْثٰى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰۤىِٕكَ يَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ يُرْزَقُوْنَ فِيْهَا بِغَيْرِ حِسَابٍ٤٠
Man ‘amila sayyi'atan falā yujzā illā miṡlahā, wa man ‘amila ṣāliḥam min żakarin au unṡā wa huwa mu'minun fa'ulā'ika yadkhulūnal-jannata yurzaqūna fīhā bigairi ḥisāb(in).
[40] जिसने बुरा काम किया, उसे उसी के जैसा बदला दिया जाएगा तथा जिसने अच्छा काम किया, वह नर हो अथवा नारी, जबकि वह ईमान वाला (एकेश्वरवादी) हो, तो ऐसे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें बेहिसाब रोज़ी दी जाएगी।

۞ وَيٰقَوْمِ مَا لِيْٓ اَدْعُوْكُمْ اِلَى النَّجٰوةِ وَتَدْعُوْنَنِيْٓ اِلَى النَّارِۗ٤١
Wa yā qaumi mā lī ad‘ūkum ilan-najāti wa tad‘ūnanī ilan-nār(i).
[41] तथा ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या बात है कि मैं तुम्हें मुक्ति की ओर बुला रहा हूँ और तुम मुझे आग (नरक) की ओर बुला रहे हो?

تَدْعُوْنَنِيْ لِاَكْفُرَ بِاللّٰهِ وَاُشْرِكَ بِهٖ مَا لَيْسَ لِيْ بِهٖ عِلْمٌ وَّاَنَا۠ اَدْعُوْكُمْ اِلَى الْعَزِيْزِ الْغَفَّارِ٤٢
Tad‘ūnanī li'akfura billāhi wa usyrika bihī mā laisa lī bihī ‘ilmuw wa ana ad‘ūkum ilal-‘azīzil-gaffār(i).
[42] तुम मुझे इस बात की ओर बुला रहे हो कि मैं अल्लाह के साथ कुफ़्र करूँ और उसके साथ उसे साझी ठहराऊँ जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं, तथा मैं तुम्हें प्रभुत्वशाली, अत्यंत क्षमाशील (अल्लाह) की ओर बुला रहा हूँ।

لَا جَرَمَ اَنَّمَا تَدْعُوْنَنِيْٓ اِلَيْهِ لَيْسَ لَهٗ دَعْوَةٌ فِى الدُّنْيَا وَلَا فِى الْاٰخِرَةِ وَاَنَّ مَرَدَّنَآ اِلَى اللّٰهِ وَاَنَّ الْمُسْرِفِيْنَ هُمْ اَصْحٰبُ النَّارِ٤٣
Lā jarama annamā tad‘ūnanī ilaihi laisa lahū da‘watun fid-dun-yā wa lā fil-ākhirati wa anna maraddanā ilallāhi wa annal-musrifīna hum aṣḥābun-nār(i).
[43] निःसंदेह तुम जिसकी ओर मुझे बुला रहे हो, वह न तो दुनिया में पुकारे जाने के योग्य11 है और न आख़िरत में। तथा यह कि निश्चय हमारा लौटना अल्लाह की ओर है और यह कि निश्चय हद से आगे बढ़ने वाले ही, आग में रहने वाले हैं।
11. क्योंकि लोक तथा परलोक में कोई सहायता नही कर सकते। (देखिए : सूरत-फ़ातिर, आयत : 140, तथा सूरतुल-ह़्क़ाफ़, आयत : 5)

فَسَتَذْكُرُوْنَ مَآ اَقُوْلُ لَكُمْۗ وَاُفَوِّضُ اَمْرِيْٓ اِلَى اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ بَصِيْرٌ ۢبِالْعِبَادِ٤٤
Fa satażkurūna mā aqūlu lakum, wa ufawwiḍu amrī ilallāh(i), innallāha baṣīrum bil-‘ibād(i).
[44] तो जो कुछ मैं तुमसे कह रहा हूँ, शीघ्र ही तुम उसे याद करोगे। तथा मैं अपना मामला अल्लाह के हवाले करता हूँ। निःसंदेह अल्लाह बंदों को देख रहा है।

فَوَقٰىهُ اللّٰهُ سَيِّاٰتِ مَا مَكَرُوْا وَحَاقَ بِاٰلِ فِرْعَوْنَ سُوْۤءُ الْعَذَابِۚ٤٥
Fa waqāhullāhu sayyi'āti mā makarū wa ḥāqa bi'āli fir‘auna sū'al-‘ażāb(i).
[45] तो अल्लाह ने उसे उनकी चालों की बुराइयों से बचा लिया और फ़िरऔनियों को बुरी यातना ने घेर लिया।

اَلنَّارُ يُعْرَضُوْنَ عَلَيْهَا غُدُوًّا وَّعَشِيًّا ۚوَيَوْمَ تَقُوْمُ السَّاعَةُ ۗ اَدْخِلُوْٓا اٰلَ فِرْعَوْنَ اَشَدَّ الْعَذَابِ٤٦
An-nāru yu‘raḍūna ‘alaihā guduwwaw wa ‘asyiyyā(n), wa yauma taqūmus-sā‘ah(tu), adkhilū āla fir‘auna asyaddal-‘ażāb(i).
[46] वे12 सुबह और शाम आग पर प्रस्तुत किए जाते हैं, तथा जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, (तो आदेश होगा) कि फ़िरऔनियों को सबसे कठोर यातना में डाल दो।
12. ह़दीस में है कि जब तुममें से कोई मरता है तो (क़ब्र में) उसपर सुबह और शाम उसका स्थान प्रस्तुत किया जाता है। (अर्थात स्वार्गी है तो स्वर्ग और नारकी है तो नरक)। और कहा जाता है कि यही प्रलय के दिन तेरा स्थान होगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 1379, मुस्लिम : 2866)

وَاِذْ يَتَحَاۤجُّوْنَ فِى النَّارِ فَيَقُوْلُ الضُّعَفٰۤؤُا لِلَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْٓا اِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ اَنْتُمْ مُّغْنُوْنَ عَنَّا نَصِيْبًا مِّنَ النَّارِ٤٧
Wa iż yataḥājjūna fin-nāri fayaqūluḍ-ḍu‘afā'u lil-lażīnastakbarū innā kunnā lakum taba‘an fahal antum mugnūna ‘annā naṣībam minan-nār(i).
[47] तथा (याद करो) जब वे नरक में आपस में झगड़ा करेंगे, तो कमज़ोर लोग बड़ा बनने वाले लोगों से कहेंगे : हम (दुनिया में) तुम्हारे अनुयायी थे। तो क्या तुम हमसे आग का कुछ भाग हटा सकते हो?

قَالَ الَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْٓا اِنَّا كُلٌّ فِيْهَآ اِنَّ اللّٰهَ قَدْ حَكَمَ بَيْنَ الْعِبَادِ٤٨
Qālal-lażīnastakbarū innā kullun fīhā innallāha qad ḥakama bainal-‘ibād(i).
[48] वे बड़ा बनने वाले लोग कहेंगे : निःसंदेह हम सब इसी में हैं। निश्चय ही अल्लाह ने बंदों के बीच निर्णय कर दिया है।

وَقَالَ الَّذِيْنَ فِى النَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ادْعُوْا رَبَّكُمْ يُخَفِّفْ عَنَّا يَوْمًا مِّنَ الْعَذَابِ٤٩
Wa qālal-lażīna fin-nāri likhazanati jahannamad‘ū rabbakum yukhaffif ‘annā yaumam minal-‘ażāb(i).
[49] तथा जो लोग आग में होंगे, वे जहन्नम के रक्षकों से कहेंगे : अपने पालनहार से प्रार्थना करो कि वह हमसे एक दिन तो कुछ यातना हल्की कर दे।

قَالُوْٓا اَوَلَمْ تَكُ تَأْتِيْكُمْ رُسُلُكُمْ بِالْبَيِّنٰتِ ۗقَالُوْا بَلٰىۗ قَالُوْا فَادْعُوْا ۚوَمَا دُعٰۤؤُا الْكٰفِرِيْنَ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ ࣖ٥٠
Qālū awalam taku ta'tīkum rusulukum bil-bayyināt(i), qālū balā, qālū fad‘ū, wa mā du‘ā'ul-kāfirīna illā fī ḍalāl(in).
[50] जहन्नम के रक्षक कहेंगे : क्या तुम्हारे पास, तुम्हारे रसूल, स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आए थे? काफ़िर लोग कहेंगे : क्यों नहीं? रक्षकगण कहेंगे : तो तुम ही प्रार्थना करो। और काफ़िरों की प्रार्थना व्यर्थ ही होगी।

اِنَّا لَنَنْصُرُ رُسُلَنَا وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَيَوْمَ يَقُوْمُ الْاَشْهَادُۙ٥١
Innā lananṣuru rusulanā wal-lażīna āmanū fil-ḥayātid-dun-yā wa yauma yaqūmul-asyhād(u).
[51] निःसंदेह हम अपने रसूलों की और उन लोगों की जो ईमान लाए, सांसारिक जीवन में भी अवश्य सहायता करते हैं तथा उस दिन13 भी (करेंगे) जब साक्षी खड़े होंगे।
13. अर्थात प्रलय के दिन, जब अंबिया और फ़रिश्ते गवाही देंगे।

يَوْمَ لَا يَنْفَعُ الظّٰلِمِيْنَ مَعْذِرَتُهُمْ وَلَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوْۤءُ الدَّارِ٥٢
Yauma lā yanfa‘uẓ-ẓālimīna ma‘żiratuhum wa lahumul-la‘natu wa lahum sū'ud-dār(i).
[52] जिस दिन अत्याचारियों को उनका बहाना (सफ़ाई देना) कोई लाभ नहीं देगा तथा उनके लिए धिक्कार है और उनके लिए बुरा घर है।

وَلَقَدْاٰتَيْنَا مُوْسَى الْهُدٰى وَاَوْرَثْنَا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ الْكِتٰبَۙ٥٣
Wa laqad ātainā mūsal-hudā wa auraṡnā banī isrā'īlal-kitāb(a).
[53] तथा हमने मूसा को मार्गदर्शन प्रदान किया और इसराईल की संतान को पुस्तक (तौरात) का उत्तराधिकारी बनाया।

هُدًى وَّذِكْرٰى لِاُولِى الْاَلْبَابِ٥٤
Hudaw wa żikrā li'ulil-albāb(i).
[54] जो बुद्धि वालों के लिए मार्गदर्शन तथा उपदेश थी।

فَاصْبِرْ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ وَّاسْتَغْفِرْ لِذَنْۢبِكَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ بِالْعَشِيِّ وَالْاِبْكَارِ٥٥
Faṣbir inna wa‘dallāhi ḥaqquw wastagfir liżambika wa sabbiḥ biḥamdi rabbika bil-‘asyiyyi wal-ibkār(i).
[55] अतः (ऐ नबी!) आप धैर्य रखें। निःसंदेह अल्लाह का वचन14 सत्य है। तथा अपने पापों15 की क्षमा माँगें और सायंकाल तथा प्रातःकाल अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहें।
14. नबियों की सहायता करने का। 15. अर्थात भूल-चूक की। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया मैं दिन में 70 बार क्षमा माँगता हूँ। और 70 बार से अधिक तौबा करता हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6307)

اِنَّ الَّذِيْنَ يُجَادِلُوْنَ فِيْٓ اٰيٰتِ اللّٰهِ بِغَيْرِ سُلْطٰنٍ اَتٰىهُمْ ۙاِنْ فِيْ صُدُوْرِهِمْ اِلَّا كِبْرٌ مَّا هُمْ بِبَالِغِيْهِۚ فَاسْتَعِذْ بِاللّٰهِ ۗاِنَّهٗ هُوَ السَّمِيْعُ الْبَصِيْرُ٥٦
Innal-lażīna yujādilūna fī āyātillāhi bigairi sulṭānin atāhum, in fī ṣudūrihim illā kibrum mā hum bibāligīh(i), fasta‘iż billāh(i), innahū huwas-samī‘ul-baṣīr(u).
[56] निःसंदेह जो लोग बिना किसी प्रमाण के, जो उनके पास आया हो16, अल्लाह की आयतों के बारे में झगड़ते हैं, उनके दिलों में बड़ाई के सिवा कुछ नहीं है, जिस तक वे पहुँचने वाले नहीं हैं। अतः आप अल्लाह की शरण लें। निःसंदेह वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
16. अर्थात बिना किसी ऐसे प्रमाण के जो अल्लाह की ओर से आया हो। उनके सब प्रमाण वे हैं, जो उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखे हैं। जिनकी कोई वास्तविकता नहीं है।

لَخَلْقُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ اَكْبَرُ مِنْ خَلْقِ النَّاسِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ٥٧
Lakhalqus-samāwāti wal-arḍi akbaru min khalqin-nāsi wa lākinna akṡaran-nāsi lā ya‘lamūn(a).
[57] निश्चय ही आकाशों तथा धरती को पैदा करना, मनुष्य को पैदा करने से अधिक बड़ा (कार्य) है। परंतु अधिकतर लोग नहीं जानते।17
17. और मनुष्य के पुनः जीवित किए जाने का इनकार करते हैं।

وَمَا يَسْتَوِى الْاَعْمٰى وَالْبَصِيْرُ ەۙ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَلَا الْمُسِيْۤئُ ۗقَلِيْلًا مَّا تَتَذَكَّرُوْنَ٥٨
Wa mā yastawil-a‘mā wal-baṣīr(u), wal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti wa lal-musī'(u), qalīlam mā tatażakkarūn(a).
[58] तथा अंधा और आँखों वाला बराबर नहीं हो सकते। तथा जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म किए, वे और बुरा कर्म करने वाला बराबर नहीं हो सकते। तुम (बहुत) कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।

اِنَّ السَّاعَةَ لَاٰتِيَةٌ لَّا رَيْبَ فِيْهَا ۖوَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُوْنَ٥٩
Innas-sā‘ata la'ātiyatul lā raiba fīhā, wa lākinna akṡaran-nāsi lā yu'minūn(a).
[59] निःसंदेह क़ियामत अवश्य आने वाली है। इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन अधिकतर लोग ईमान नहीं लाते।

وَقَالَ رَبُّكُمُ ادْعُوْنِيْٓ اَسْتَجِبْ لَكُمْ ۗاِنَّ الَّذِيْنَ يَسْتَكْبِرُوْنَ عَنْ عِبَادَتِيْ سَيَدْخُلُوْنَ جَهَنَّمَ دَاخِرِيْنَ ࣖ٦٠
Wa qāla rabbukumud‘ūnī astajib lakum, innal-lażīna yastakbirūna ‘an ‘ibādatī sayadkhulūna jahannama dākhirīn(a).
[60] तथा तुम्हारे पालनहार ने कहा है : तुम मुझे पुकारो। मैं तुम्हारी प्रार्थना18 स्वीकार करूँगा। निःसंदेह जो लोग मेरी इबादत से अहंकार करते हैं, वे शीघ्र ही अपमानित होकर जहन्नम में प्रवेश करेंगे।
18. ह़दीस में है कि प्रार्थना ही इबादत है। फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यही आयत पढ़ी। (तिर्मिज़ी : 2969) इस ह़दीस की सनद ह़सन है।

اَللّٰهُ الَّذِيْ جَعَلَ لَكُمُ الَّيْلَ لِتَسْكُنُوْا فِيْهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۗاِنَّ اللّٰهَ لَذُوْ فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُوْنَ٦١
Allāhul-lażī ja‘ala lakumul-laila litaskunū fīhi wan-nahāra mubṣirā(n), innallāha lażū faḍlin ‘alan-nāsi wa lākinna akṡaran-nāsi lā yasykurūn(a).
[61] अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए रात बनाई, ताकि तुम उसमें विश्राम करो तथा दिन को प्रकाशमान बनाया।19 निःसंदेह अल्लाह लोगों पर बड़ा अनुग्रह वाला है। लेकिन अधिकतर लोग आभार प्रकट नहीं करते।
19. ताकि तुम जीविका प्राप्त करने के लिए दौड़-धूप करो।

ذٰلِكُمُ اللّٰهُ رَبُّكُمْ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍۘ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۖفَاَنّٰى تُؤْفَكُوْنَ٦٢
Żālikumullāhu rabbukum khāliqu kulli syai'(in), lā ilāha illā huw(a), fa'annā tu'fakūn(a).
[62] यही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, प्रत्येक वस्तु का रचयिता, उसके सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं। फिर तुम कहाँ बहकाए जाते हो?

كَذٰلِكَ يُؤْفَكُ الَّذِيْنَ كَانُوْا بِاٰيٰتِ اللّٰهِ يَجْحَدُوْنَ٦٣
Każālika yu'fakul-lażīna kānū bi'āyātillāhi yajḥadūn(a).
[63] इसी प्रकार वे लोग बहकाए जाते रहे हैं, जो अल्लाह की आयतों का इनकार किया करते थे।

اَللّٰهُ الَّذِيْ جَعَلَ لَكُمُ الْاَرْضَ قَرَارًا وَّالسَّمَاۤءَ بِنَاۤءً وَّصَوَّرَكُمْ فَاَحْسَنَ صُوَرَكُمْ وَرَزَقَكُمْ مِّنَ الطَّيِّبٰتِ ۗذٰلِكُمُ اللّٰهُ رَبُّكُمْ ۚ فَتَبٰرَكَ اللّٰهُ رَبُّ الْعٰلَمِيْنَ٦٤
Allāhul-lażī ja‘ala lakumul-arḍa qarāraw was-samā'a binā'aw wa ṣawwarakum fa'aḥsana ṣuwarakum wa razaqakum minaṭ-ṭayyibāt(i), żālikumullāhu rabbukum, fatabārakallāhu rabbul-‘ālamīn(a).
[64] अल्लाह ही है, जिसने धरती को तुम्हारे लिए निवास स्थान तथा आकाश को छत बनाया और तुम्हारा रूप बनाया, तो सुंदर रूप बनाया, तथा तुम्हें पाकीज़ा चीज़ों से जीविका प्रदान की। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। तो सारे संसार का पालनहार अल्लाह बहुत बरकत वाला है।

هُوَ الْحَيُّ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ فَادْعُوْهُ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ۗ اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ٦٥
Huwal-ḥayyu lā ilāha illā huwa fad‘ūhu mukhliṣīna lahud-dīn(a), al-ḥamdu lillāhi rabbil-‘ālamīn(a).
[65] वही जीवित है, उसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं। अतः उसी को पुकारो, उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए। सब प्रशंसा सारे संसारों के पालनहार, अल्लाह के लिए है।

۞ قُلْ اِنِّيْ نُهِيْتُ اَنْ اَعْبُدَ الَّذِيْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ لَمَّا جَاۤءَنِيَ الْبَيِّنٰتُ مِنْ رَّبِّيْ وَاُمِرْتُ اَنْ اُسْلِمَ لِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَ٦٦
Qul innī nuhītu an a‘budal-lażīna tad‘ūna min dūnillāhi lammā jā'aniyal-bayyinātu mir rabbī wa umirtu an uslima lirabbil-‘ālamīn(a).
[66] आप कह दें : निःसंदेह मुझे इस बात से रोक दिया गया है कि मैं उनकी इबादत करूँ, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, जबकि मेरे पास मेरे पालनहार की ओर से स्पष्ट प्रमाण आ गए। तथा मुझे आदेश दिया गया है कि मैं सारे संसारों के पालनहार का आज्ञाकारी रहूँ।

هُوَ الَّذِيْ خَلَقَكُمْ مِّنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُّطْفَةٍ ثُمَّ مِنْ عَلَقَةٍ ثُمَّ يُخْرِجُكُمْ طِفْلًا ثُمَّ لِتَبْلُغُوْٓا اَشُدَّكُمْ ثُمَّ لِتَكُوْنُوْا شُيُوْخًا ۚوَمِنْكُمْ مَّنْ يُّتَوَفّٰى مِنْ قَبْلُ وَلِتَبْلُغُوْٓا اَجَلًا مُّسَمًّى وَّلَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ٦٧
Huwal-lażī khalaqakum min turābin ṡumma min nuṭfatin ṡumma min ‘alaqatin ṡumma yukhrijukum ṭiflan ṡumma litablugū asyuddakum ṡumma litakūnū syuyūkhā(n), wa minkum may yutawaffā min qablu wa litablugū ajalam musammaw wa la‘allakum ta‘qilūn(a).
[67] वही है, जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर जमे हुए रक्त से। फिर वह तुम्हें बच्चे के रूप में निकालता है। फिर (बड़ा करता है) ताकि तुम अपनी पूरी शक्ति को पहुँचो, फिर ताकि तुम बूढ़े हो जाओ, तथा तुममें कुछ इससे पहले ही मर जाते हैं। और (यह इसलिए होता है) ताकि तुम अपनी निश्चित आयु को पहुँच जाओ, तथा ताकि तुम समझो।20
20. अर्थात तुम यह समझो कि जो अल्लाह तुम्हें अस्तित्व में लाता है तथा गर्भ से लेकर आयु पूरी होने तक तुम्हारा पालन-पोषण करता है, तुम स्वयं अपने जीवन और मरण के विषय में कोई अधिकार नहीं रखते, तो फिर तुम्हें इबादत भी उसी एक की करनी चाहिए। यही समझ-बूझ का निर्णय है।

هُوَ الَّذِيْ يُحْيٖ وَيُمِيْتُۚ فَاِذَا قَضٰىٓ اَمْرًا فَاِنَّمَا يَقُوْلُ لَهٗ كُنْ فَيَكُوْنُ ࣖ٦٨
Huwal-lażī yuḥyī wa yumīt(u), fa'iżā qaḍā amran fa'innamā yaqūlu lahū kun fa yakūn(u).
[68] वही है जो जीवित करता है और मारता है। फिर जब वह किसी काम का निर्णय कर लेता है, तो उसे मात्र यह कहता है कि "हो जा", तो वह हो जाता है।

اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ يُجَادِلُوْنَ فِيْٓ اٰيٰتِ اللّٰهِ ۗاَنّٰى يُصْرَفُوْنَۚ٦٩
Alam tara ilal-lażīna yujādilūna fī āyātillāh(i), annā yuṣrafūn(a).
[69] क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा, जो अल्लाह की आयतों के बारे में झगड़ते21 हैं, वे कहाँ फेरे जा रहे हैं?
21. अर्थात अल्लाह की आयतों का विरोध करते हैं।

اَلَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِالْكِتٰبِ وَبِمَآ اَرْسَلْنَا بِهٖ رُسُلَنَا ۗفَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَۙ٧٠
Allażīna każżabū bil kitābi wa bimā arsalnā bihī rusulanā, fasaufa ya‘lamūn(a).
[70] जिन्होंने पुस्तक को और जो कुछ हमने अपने रसूलों को देकर भेजा, उसे झुठला दिया। तो शीघ्र ही वे जान लेंगे।

اِذِ الْاَغْلٰلُ فِيْٓ اَعْنَاقِهِمْ وَالسَّلٰسِلُۗ يُسْحَبُوْنَۙ٧١
Iżil-aglālu fī a‘nāqihim was-salāsil(u), yusḥabūn(a).
[71] जब उनके गले में तौक़ होंगे तथा (पैरों में) बेड़ियाँ होंगी, वे घसीटे जाएँगे।

فِى الْحَمِيْمِ ەۙ ثُمَّ فِى النَّارِ يُسْجَرُوْنَۚ٧٢
Fil-ḥamīm(i), ṡumma fin-nāri yusjarūn(a).
[72] खौलते पानी में (घसीटे जाएँगे)। फिर आग में झोंक दिए जाएँगे।

ثُمَّ قِيْلَ لَهُمْ اَيْنَ مَا كُنْتُمْ تُشْرِكُوْنَۙ٧٣
Ṡumma qīla lahum aina mā kuntum tusyrikūn(a).
[73] फिर उनसे कहा जाएगा : कहाँ हैं वे, जिन्हें तुम साझी बनाया करते थे?

مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗقَالُوْا ضَلُّوْا عَنَّا بَلْ لَّمْ نَكُنْ نَّدْعُوْا مِنْ قَبْلُ شَيْـًٔاۗ كَذٰلِكَ يُضِلُّ اللّٰهُ الْكٰفِرِيْنَ٧٤
Min dūnillāh(i), qālū ḍallū ‘annā bal lam nakun nad‘ū min qablu syai'ā(n), każālika yuḍillullāhul-kāfirīn(a).
[74] अल्लाह के सिवा? वे कहेंगे : वे हमसे गुम हो गए। बल्कि, हम इससे पहले किसी चीज़ को नहीं पुकारते थे। इसी प्रकार, अल्लाह काफ़िरों को गुमराह कर देता है।

ذٰلِكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَفْرَحُوْنَ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنْتُمْ تَمْرَحُوْنَ٧٥
Żālikum bimā kuntum tafraḥūna fil-arḍi bigairil-ḥaqqi wa bimā kuntum tamraḥūn(a).
[75] यह यातना इसलिए है कि तुम धरती में नाहक़ बहुत प्रसन्न होते थे तथा इस कारण कि तुम अकड़ते फिरते थे।

اُدْخُلُوْٓا اَبْوَابَ جَهَنَّمَ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا ۚفَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِيْنَ٧٦
Udkhlulū abwāba jahannama khālidīna fīhā, fabi'sa maṡwal-mutakabūbirīn(a).
[76] जहन्नम के द्वारों में प्रवेश कर जाओ, उसमें सदैव रहने वाले हो। अतः अभिमानियों का ठिकाना बहुत बुरा है।

فَاصْبِرْ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ ۚفَاِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِيْ نَعِدُهُمْ اَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَاِلَيْنَا يُرْجَعُوْنَ٧٧
Faṣbir inna wa‘dallāhi ḥaqq(un), fa'immā nuriyannaka ba‘ḍal-lażī na‘iduhum au natawaffayannaka fa'ilainā yurja‘ūn(a).
[77] अतः आप धैर्य रखें। निःसंदेह अल्लाह का वादा सच्चा है। फिर यदि हम आपको उस (यातना) का कुछ भाग दिखा दें, जिसका हम उनसे वादा करते हैं या हम आपको (उससे पहले ही) मृत्यु दे दें, तो वे हमारी ही ओर लौटाए जाएँगे।22
22. अर्थात प्रलय के दिन। फिर वे अपनी यातना देख लेंगे।

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا رُسُلًا مِّنْ قَبْلِكَ مِنْهُمْ مَّنْ قَصَصْنَا عَلَيْكَ وَمِنْهُمْ مَّنْ لَّمْ نَقْصُصْ عَلَيْكَ ۗوَمَا كَانَ لِرَسُوْلٍ اَنْ يَّأْتِيَ بِاٰيَةٍ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ ۚفَاِذَا جَاۤءَ اَمْرُ اللّٰهِ قُضِيَ بِالْحَقِّ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْمُبْطِلُوْنَ ࣖ٧٨
Wa laqad arsalnā rusulam min qablika minhum man qaṣaṣnā ‘alaika wa minhum mal lam naqṣuṣ ‘alaik(a), wa mā kāna lirasūlin ay ya'tiya bi'āyatin illā bi'iżnillāh(i), fa'iżā jā'a amrullāhi quḍiya bil-ḥaqqi wa khasira hunālikal-mubṭilūn(a).
[78] तथा (ऐ नबी!) हम आपसे पहले बहुत-से रसूलों को भेज चुके हैं, जिनमें से कुछ ऐसे हैं जिनका हाल हम आपसे वर्णन कर चुके हैं तथा उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके हाल का वर्णन हमने आपसे नहीं किया है। तथा किसी रसूल के वश23 में यह नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई आयत (चमत्कार) ले आए। फिर जब अल्लाह का आदेश आ गया, तो सत्य के साथ निर्णय कर दिया गया और उस समय झूठे लोग घाटे में रहे।
23. मक्का के काफ़िर लोग, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से यह माँग कर रहे थे कि आप अपने सत्य रसूल होने के प्रमाण में कोई चमत्कार दिखाएँ। जिसके अनेक उत्तर आगामी आयतों में दिए जा रहे हैं।

اَللّٰهُ الَّذِيْ جَعَلَ لَكُمُ الْاَنْعَامَ لِتَرْكَبُوْا مِنْهَا وَمِنْهَا تَأْكُلُوْنَۖ٧٩
Allāhul-lażī ja‘ala lakumul-an‘āma litarkabū minhā wa minhā ta'kulūn(a).
[79] अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए चौपाए बनाए, ताकि उनमें से कुछ पर तुम सवारी करो और उनमें से कुछ को तुम खाते हो।

وَلَكُمْ فِيْهَا مَنَافِعُ وَلِتَبْلُغُوْا عَلَيْهَا حَاجَةً فِيْ صُدُوْرِكُمْ وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُوْنَۗ٨٠
Wa lakum fīhā manāfi‘u wa litablugū ‘alaihā ḥājatan fī ṣudūrikum wa ‘alaihā wa ‘alal-fulki tuḥmalūn(a).
[80] तथा तुम्हारे लिए उनमें बहुत लाभ हैं। और ताकि उनपर सवार होकर तुम अपनी उस आवश्यकता तक पहुँचो, जो तुम्हारे दिलों में है। तथा उन (चौपायों) पर और नावों पर तुम सवार किए जाते हो।

وَيُرِيْكُمْ اٰيٰتِهٖۖ فَاَيَّ اٰيٰتِ اللّٰهِ تُنْكِرُوْنَ٨١
Wa yurīkum āyātih(ī), fa ayya āyātillāhi tunkirūn(a).
[81] तथा वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है। तो तुम अल्लाह की किन-किन निशानियों का इनकार करोगे?

اَفَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۗ كَانُوْٓا اَكْثَرَ مِنْهُمْ وَاَشَدَّ قُوَّةً وَّاٰثَارًا فِى الْاَرْضِ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ٨٢
Afalam yasīrū fil-arḍi fa yanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-lażīna min qablihim, kānū akṡara minhum wa asyadda quwwataw wa āṡāran fil-arḍi famā agnā ‘anhum mā kānū yaksibūn(a).
[82] तो क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं, ताकि देखते कि उन लोगों का परिणाम कैसा रहा, जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं? वे (धन में) इनसे अधिक तथा शक्ति और धरती में (छोड़ी हुई) निशानियों24 में अधिक बढ़कर थे। किंतु वे जो कुछ कमाते थे, वह उनके कुछ काम न आया।
24. अर्थात निर्माण तथा भवन इत्यादि।

فَلَمَّا جَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ فَرِحُوْا بِمَا عِنْدَهُمْ مِّنَ الْعِلْمِ وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ٨٣
Falammā jā'athum rusuluhum bil-bayyināti fariḥū bimā ‘indahum minal-‘ilmi wa ḥāqa bihim mā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[83] फिर जब उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाण लेकर आए, तो वे उस ज्ञान25 पर इतराने लगे, जो उनके पास था, और उन्हें उस (यातना) ने घेर लिया, जिसका वे उपहास कर रहे थे।
25. अर्थात सत्य-विरोधी ज्ञान।

فَلَمَّا رَاَوْا بَأْسَنَاۗ قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَحْدَهٗ وَكَفَرْنَا بِمَا كُنَّا بِهٖ مُشْرِكِيْنَ٨٤
Falammā ra'au ba'sanā qālū āmannā billāhi waḥdahū wa kafarnā bimā kunnā bihī musyrikīn(a).
[84] फिर जब उन्होंने हमारी यातना देखी, तो कहने लगे : हम अल्लाह अकेले पर ईमान लाए, तथा उसका इनकार किया, जिसे हम उसका साझी बनाया करते थे।

فَلَمْ يَكُ يَنْفَعُهُمْ اِيْمَانُهُمْ لَمَّا رَاَوْا بَأْسَنَا ۗسُنَّتَ اللّٰهِ الَّتِيْ قَدْ خَلَتْ فِيْ عِبَادِهٖۚ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْكٰفِرُوْنَ ࣖ٨٥
Falam yaku yanfa‘uhum īmānuhum lammā ra'au ba'sanā, sunnatallāhil latī qad khalat fī ‘ibādih(ī), wa khasira hunālikal-kāfirūn(a).
[85] फिर यह न था कि जब उन्होंने हमारी यातना को देख लिया, तो उनका ईमान (लाना) उन्हें लाभ देता। यही अल्लाह की रीति है, जो उसके बंदों में गुज़र चुकी। और उस समय काफ़िर घाटे में पड़ गए।