Surah Az-Zumar
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
تَنْزِيْلُ الْكِتٰبِ مِنَ اللّٰهِ الْعَزِيْزِ الْحَكِيْمِ١
Tanzīlul-kitābi minallāhil-‘azīzil-ḥakīm(i).
[1]
इस पुस्तक का उतारना अल्लाह की ओर से है, जो अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
اِنَّآ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكَ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ فَاعْبُدِ اللّٰهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّيْنَۗ٢
Innā anzalnā ilaikal-kitāba bil-ḥaqqi fa‘budillāha mukhliṣal lahud-dīn(a).
[2]
निःसंदेह हमने आपकी ओर यह पुस्तक सत्य के साथ उतारी है। अतः आप अल्लाह की इबादत इस तरह करें कि धर्म को उसी के लिए खालिस करने वाले हों।
اَلَا لِلّٰهِ الدِّيْنُ الْخَالِصُ ۗوَالَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِهٖٓ اَوْلِيَاۤءَۘ مَا نَعْبُدُهُمْ اِلَّا لِيُقَرِّبُوْنَآ اِلَى اللّٰهِ زُلْفٰىۗ اِنَّ اللّٰهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِيْ مَا هُمْ فِيْهِ يَخْتَلِفُوْنَ ەۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِيْ مَنْ هُوَ كٰذِبٌ كَفَّارٌ٣
Alā lillāhid-dīnul-khāliṣ(u), wal-lażīnattakhażū min dūnihī auliyā'(a), mā na‘buduhum illā liyuqarribūnā ilallāhi zulfā, innallāha yaḥkumu bainahum fī mā hum fīhi yakhtalifūn(a), innallāha lā yahdī man huwa kāżibun kaffār(un).
[3]
सुन लो! ख़ालिस (विशुद्ध) धर्म केवल अल्लाह ही के लिए है। तथा जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा अन्य संरक्षक बना रखे हैं (वे कहते हैं कि) हम उनकी पूजा केवल इसलिए करते हैं कि वे हमें अल्लाह से क़रीब1 कर दें। निश्चय अल्लाह उनके बीच उसके बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे मतभेद कर रहे हैं। निःसंदेह अल्लाह उसे मार्गदर्शन नहीं करता, जो झूठा, बड़ा नाशुक्रा हो।
1. मक्का के काफ़िर यह मानते थे कि अल्लाह ही वास्तविक पूज्य है। परंतु वे यह समझते थे कि उसका दरबार बहुत ऊँचा है, इसलिए वे इन पूज्यों को माध्यम बनाते थे। ताकि इनके द्वारा उनकी प्रार्थनाएँ अल्लाह तक पहुँच जाएँ। यही बात साधारणतः मुश्रिक कहते आए हैं। इन तीन आयतों में उनके इसी कुविचार का खंडन किया गया है। फिर उनमें कुछ ऐसे थे जो समझते थे कि अल्लाह के संतान है। कुछ, फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते, और कुछ, नबियों (जैसे ईसा) को अल्लाह का पुत्र कहते थे। यहाँ इसी का खंडन किया गया है।
لَوْ اَرَادَ اللّٰهُ اَنْ يَّتَّخِذَ وَلَدًا لَّاصْطَفٰى مِمَّا يَخْلُقُ مَا يَشَاۤءُ ۙ سُبْحٰنَهٗ ۗهُوَ اللّٰهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ٤
Wa lau arādallāhu ay yattakhiża waladal laṣṭafā mimmā yakhluqu mā yasyā'(u), subḥānah(ū), huwallāhul-wāḥidul-qahhār(u).
[4]
यदि अल्लाह चाहता कि (किसी को) संतान बनाए, तो वह उनमें से जिन्हें वह पैदा करता है, जिसे चाहता अवश्य चुन लेता, वह पवित्र है! वह तो अल्लाह है, जो अकेला है, बहुत प्रभुत्व वाला है।
خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ بِالْحَقِّۚ يُكَوِّرُ الَّيْلَ عَلَى النَّهَارِ وَيُكَوِّرُ النَّهَارَ عَلَى الَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَۗ كُلٌّ يَّجْرِيْ لِاَجَلٍ مُّسَمًّىۗ اَلَا هُوَ الْعَزِيْزُ الْغَفَّارُ٥
Khalaqas-samāwāti wal-arḍa bil-ḥaqq(i), yukawwirul-laila ‘alan-nahāri wa yukawwirun nahāra ‘alal-laili wa sakhkharasy-syamsa wal-qamar(a), kulluy yajrī li'ajalim musammā(n), alā huwal-‘azīzul-gaffār(u).
[5]
उसने आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ पैदा किया। वह रात को दिन पर लपेटता है तथा दिन को रात पर लपेटता है। तथा उसने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। प्रत्येक, एक नियत समय के लिए चल रहा है। सावधान! वही सब पर प्रभुत्वशाली, अत्यंत क्षमाशील है।
خَلَقَكُمْ مِّنْ نَّفْسٍ وَّاحِدَةٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَاَنْزَلَ لَكُمْ مِّنَ الْاَنْعَامِ ثَمٰنِيَةَ اَزْوَاجٍ ۗ يَخْلُقُكُمْ فِيْ بُطُوْنِ اُمَّهٰتِكُمْ خَلْقًا مِّنْۢ بَعْدِ خَلْقٍ فِيْ ظُلُمٰتٍ ثَلٰثٍۗ ذٰلِكُمُ اللّٰهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُۗ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۚ فَاَنّٰى تُصْرَفُوْنَ٦
Khalaqakum min nafsiw wāḥidatin ṡumma ja‘ala minhā zaujahā wa anzala lakum minal-an‘āmi ṡamāniyata azwāj(in), yakhluqukum fī buṭūni ummahātikum khalqam mim ba‘di khalqin fī ẓulumātin ṡalāṡ(in), żālikumullāhu rabbukum lahul-mulk(u), lā ilāha illā huw(a), fa'annā tuṣrafūn(a).
[6]
उसने तुम्हें एक जान से पैदा किया, फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया, तथा तुम्हारे लिए पशुओं में से आठ प्रकार (नर-मादा) उतारे। वह तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेटों में, तीन अंधेरों में, एक रचना के बाद दूसरी रचना में, पैदा करता है। यही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है। उसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं। फिर तुम किस तरह फेरे जाते हो?
اِنْ تَكْفُرُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ عَنْكُمْ ۗوَلَا يَرْضٰى لِعِبَادِهِ الْكُفْرَۚ وَاِنْ تَشْكُرُوْا يَرْضَهُ لَكُمْۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰىۗ ثُمَّ اِلٰى رَبِّكُمْ مَّرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَۗ اِنَّهٗ عَلِيْمٌ ۢبِذَاتِ الصُّدُوْرِ٧
In takfurū fa'innallāha ganiyyun ‘ankum, wa lā yarḍā li‘ibādihil-kufr(a), wa in tasykurū yarḍahu lakum, wa lā taziru wāziratuw wizra ukhrā, ṡumma ilā rabbikum marji‘ukum fa yunabbi'ukum bimā kuntum ta‘malūn(a), innahū ‘alīmum biżātiṣ-ṣudūr(i).
[7]
यदि तुम नाशुक्री करो, तो अल्लाह तुमसे बहुत बेनियाज़ है और वह अपने बंदों के लिए नाशुक्री पसंद नहीं करता, और यदि तुम शुक्रिया अदा करो, तो वह उसे तुम्हारे लिए पसंद करेगा। और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। फिर तुम्हारा लौटना तुम्हारे पालनहार ही की ओर है। तो वह तुम्हें बतलाएगा जो कुछ तुम किया करते थे। निश्चय वह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।
۞ وَاِذَا مَسَّ الْاِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَا رَبَّهٗ مُنِيْبًا اِلَيْهِ ثُمَّ اِذَا خَوَّلَهٗ نِعْمَةً مِّنْهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدْعُوْٓا اِلَيْهِ مِنْ قَبْلُ وَجَعَلَ لِلّٰهِ اَنْدَادًا لِّيُضِلَّ عَنْ سَبِيْلِهٖ ۗ قُلْ تَمَتَّعْ بِكُفْرِكَ قَلِيْلًا ۖاِنَّكَ مِنْ اَصْحٰبِ النَّارِ٨
Wa iżā massal-insāna ḍurrun da‘ā rabbahū munīban ilaihi ṡumma iżā khawwalahū ni‘matan minhu nasiya mā kāna yad‘ū ilaihi min qablu wa ja‘ala lilllāhi andādal liyuḍilla ‘an sabīlih(ī), qul tamatta‘ bikufrika qalīlā(n), innaka min aṣḥābin-nār(i).
[8]
तथा जब मनुष्य को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वह अपने पालनहार को पुकारता है, इस हाल में कि उसी की ओर एकाग्र, ध्यानमग्न होता है। फिर जब वह उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करता है, तो वह उसे भूल जाता है, जिसे वह इससे पहले पुकार रहा था, तथा वह अल्लाह का साझी बना लेता है, ताकि उसके मार्ग से गुमराह कर दे। आप कह दें कि अपने कुफ़्र का थोड़ा सा लाभ उठा लो। निश्चय तुम जहन्नमियों में से हो।
اَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ اٰنَاۤءَ الَّيْلِ سَاجِدًا وَّقَاۤىِٕمًا يَّحْذَرُ الْاٰخِرَةَ وَيَرْجُوْا رَحْمَةَ رَبِّهٖۗ قُلْ هَلْ يَسْتَوِى الَّذِيْنَ يَعْلَمُوْنَ وَالَّذِيْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ ۗ اِنَّمَا يَتَذَكَّرُ اُولُوا الْاَلْبَابِ ࣖ٩
Amman huwa qānitun ānā'al-laili sājidaw wa qā'imay yaḥżarul-ākhirata wa yarjū raḥmata rabbih(ī), qul hal yastawil-lażīna ya‘lamūna wal-lażīna lā ya‘lamūn(a), innamā yatażakkaru ulul-albāb(i).
[9]
(क्या यह बेहतर) या वह व्यक्ति जो रात की घड़ियों में सजदा करते हुए तथा क़ियाम करते हुए इबादत करने वाला है। आख़िरत का भय रखता है तथा अपने पालनहार की दया की आशा रखता है? आप कह दें कि क्या समान हैं वे लोग जो ज्ञान रखते हों तथा वे जो ज्ञान नहीं रखते? उपदेश तो वही ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।
قُلْ يٰعِبَادِ الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوْا رَبَّكُمْ ۗلِلَّذِيْنَ اَحْسَنُوْا فِيْ هٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۗوَاَرْضُ اللّٰهِ وَاسِعَةٌ ۗاِنَّمَا يُوَفَّى الصّٰبِرُوْنَ اَجْرَهُمْ بِغَيْرِ حِسَابٍ١٠
Qul yā ‘ibādil-lażīna āmanuttaqū rabbakum, lil-lażīna aḥsanū fī hāżihid-dun-yā ḥasanah(tun), wa arḍullāhi wāsi‘ah(tun), innamā yuwaffaṣ-ṣābirūna ajrahum bigairi ḥisāb(in).
[10]
(ऐ रसूल!) आप कह दें : ऐ मेरे बंदो, जो ईमान लाए हो! अपने पालनहार से डरो। उन लोगों के लिए जिन्होंने इस दुनिया में अच्छे कार्य किए, बड़ी भलाई है। तथा अल्लाह की धरती विस्तृत है। केवल सब्र करने वालों ही को उनका बदला बिना किसी हिसाब (शुमार) के दिया जाएगा।
قُلْ اِنِّيْٓ اُمِرْتُ اَنْ اَعْبُدَ اللّٰهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّيْنَ١١
Qul innī umirtu an a‘budallāha mukhliṣal lahud-dīn(a).
[11]
आप कह दें : निःसंदेह मुझे आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की इबादत करूँ, इस हाल में कि धर्म को उसी के लिए ख़ालिस (विशुद्ध) करने वाला हूँ।
وَاُمِرْتُ لِاَنْ اَكُوْنَ اَوَّلَ الْمُسْلِمِيْنَ١٢
Wa umirtu li'an akūna awwalal-muslimīn(a).
[12]
तथा मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में से पहला मैं बनूँ।
قُلْ اِنِّيْٓ اَخَافُ اِنْ عَصَيْتُ رَبِّيْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ١٣
Qul innī akhāfu in ‘aṣaitu rabbī ‘ażāba yaumin ‘aẓīm(in).
[13]
आप कह दें : निःसंदेह मैं एक बहुत बड़े दिन की यातना से डरता हूँ, यदि मैं अपने पालनहार की अवज्ञा करूँ।
قُلِ اللّٰهَ اَعْبُدُ مُخْلِصًا لَّهٗ دِيْنِيْۚ١٤
Qulillāha a‘budu mukhliṣal lahū dīnī.
[14]
आप कह दें : मैं अल्लाह ही की इबादत करता हूँ, इस हाल में कि उसी के लिए अपने धर्म को विशुद्ध (ख़ालिस) करने वाला हूँ।
فَاعْبُدُوْا مَا شِئْتُمْ مِّنْ دُوْنِهٖۗ قُلْ اِنَّ الْخٰسِرِيْنَ الَّذِيْنَ خَسِرُوْٓا اَنْفُسَهُمْ وَاَهْلِيْهِمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِۗ اَلَا ذٰلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِيْنُ١٥
Fa‘budū mā syi'tum min dūnih(ī), qul innal-khāsirīnal-lażīna khasirū anfusahum wa ahlīhim yaumal-qiyāmah(ti), alā żālika huwal-khusrānul-mubīn(u).
[15]
अतः तुम उसके सिवा जिसकी चाहो इबादत करो। आप कह दें : निःसंदेह वास्तविक घाटे में पड़ने वाले तो वे हैं, जिन्होंने क़ियामत के दिन खुद को तथा अपने घर वालों को घाटे में डाला। सुन लो! यही खुला घाटा है।
لَهُمْ مِّنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِّنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ۗذٰلِكَ يُخَوِّفُ اللّٰهُ بِهٖ عِبَادَهٗ ۗيٰعِبَادِ فَاتَّقُوْنِ١٦
Lahum min fauqihim ẓulalum minan-nāri wa min taḥtihim ẓulal(un), żālika yukhawwifullāhu bihī ‘ibādah(ū), yā ‘ibādi fattaqūn(i).
[16]
उनके लिए उनके ऊपर से आग के छत्र होंगे तथा उनके नीचे से भी छत्र होंगे। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बंदों को डराता है। ऐ मेरे बंदो! अतः तुम मुझसे डरो।
وَالَّذِيْنَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوْتَ اَنْ يَّعْبُدُوْهَا وَاَنَابُوْٓا اِلَى اللّٰهِ لَهُمُ الْبُشْرٰىۚ فَبَشِّرْ عِبَادِۙ١٧
Wal-lażīnajtanabuṭ-ṭāgūta ay ya‘budūhā wa anābū ilallāhi lahumul-busyrā, fabasysyir ‘ibād(i).
[17]
तथा जो लोग 'ताग़ूत'2 की पूजा करने से बचे रहे और अल्लाह की ओर ध्यानमग्न हो गए, उन्हीं के लिए शुभ सूचना है। अतः आप मेरे बंदों को शुभ सूचना सुना दें।
2. अल्लाह के अतिरिक्त मिथ्या पूज्यों से।
الَّذِيْنَ يَسْتَمِعُوْنَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُوْنَ اَحْسَنَهٗ ۗ اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ هَدٰىهُمُ اللّٰهُ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمْ اُولُوا الْاَلْبَابِ١٨
Allażīna yastami‘ūnal-qaula fa yattabi‘ūna aḥsanah(ū), ulā'ikal-lażīna hadāhumullāhu wa ulā'ika hum ulul-albāb(i).
[18]
वे जो ध्यान से बात सुनते हैं, फिर उसमें से सबसे अच्छी बात का अनुसरण करते हैं। यही लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्श प्रदान किया है तथा यही बुद्धि वाले हैं।
اَفَمَنْ حَقَّ عَلَيْهِ كَلِمَةُ الْعَذَابِۗ اَفَاَنْتَ تُنْقِذُ مَنْ فِى النَّارِ ۚ١٩
Afaman ḥaqqa ‘alaihi kalimatul-‘ażāb(i), afa'anta tunqiżu man fin-nār(i).
[19]
तो क्या वह व्यक्ति जिसपर यातना की बात सिद्ध हो चुकी, फिर क्या आप उसे बचा लेंगे, जो आग में है?
لٰكِنِ الَّذِيْنَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ غُرَفٌ مِّنْ فَوْقِهَا غُرَفٌ مَّبْنِيَّةٌ ۙتَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ ەۗ وَعْدَ اللّٰهِ ۗ لَا يُخْلِفُ اللّٰهُ الْمِيْعَادَ٢٠
Lākinil-lażīnattaqau rabbahum lahum gurafum min fauqihā gurafum mabniyyah(tun), tajrī min taḥtihal-anhār(u), wa‘dallāh(i), lā yukhlifullāhul-mī‘ād(a).
[20]
किंतु जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, उनके लिए उच्च भवन हैं। जिनके ऊपर निर्मित भवन हैं। जिनके नीचे से नहरें प्रवाहित हैं। यह अल्लाह का वादा है और अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।
اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ اَنْزَلَ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَسَلَكَهٗ يَنَابِيْعَ فِى الْاَرْضِ ثُمَّ يُخْرِجُ بِهٖ زَرْعًا مُّخْتَلِفًا اَلْوَانُهٗ ثُمَّ يَهِيْجُ فَتَرٰىهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَجْعَلُهٗ حُطَامًا ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَذِكْرٰى لِاُولِى الْاَلْبَابِ ࣖ٢١
Alam tara annallāha anzala minas-samā'i mā'an fasalakahū yanābī‘a fil-arḍi ṡumma yaj‘aluhū ḥuṭāmā(n), ina fī żālika lażikrā li'ulil-albāb(i).
[21]
क्या तुमने नहीं देखा3 कि अल्लाह ने आकाश से कुछ पानी उतारा। फिर उसे स्रोतों के रूप में धरती में चलाया। फिर वह उसके साथ विभिन्न रंगों की खेती निकालता है। फिर वह सूख जाती है, तो तुम उसे पीली देखते हो। फिर वह उसे चूरा-चूरा कर देता है। निःसंदेह इसमें बुद्धि वालों के लिए निश्चय बड़ी सीख है।
3. इस आयत में अल्लाह के एक नियम की ओर संकेत है जो सब में समान रूप से प्रचलित है। अर्थात वर्षा से खेती का उगना और अनेक स्थितियों से गुज़रकर नाश हो जाना। इसे मतिमानों के लिए शिक्षा कहा गया है। क्योंकि मनुष्य की भी यही दशा है। वह शिशु जन्म लेता है फिर युवक और बूढ़ा हो जाता है। और अंततः संसार से चला जाता है।
اَفَمَنْ شَرَحَ اللّٰهُ صَدْرَهٗ لِلْاِسْلَامِ فَهُوَ عَلٰى نُوْرٍ مِّنْ رَّبِّهٖ ۗفَوَيْلٌ لِّلْقٰسِيَةِ قُلُوْبُهُمْ مِّنْ ذِكْرِ اللّٰهِ ۗ اُولٰۤىِٕكَ فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ٢٢
Afaman syaraḥallāhu ṣadrahū lil-islāmi fahuwa ‘alā nūrim mir rabbih(ī), fawailul lil-qāsiyati qulūbuhum min żikrillāh(i), ulā'ika fī ḍalālim mubīn(in).
[22]
तो क्या वह व्यक्ति जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया है, तो वह अपने पालनहार की ओर से एक प्रकाश पर है (किसी कठोर हृदय काफ़िर के समान हो सकता है?) अतः उनके लिए विनाश है, जिनके दिल अल्लाह के स्मरण के प्रति कठोर हैं। ये लोग खुली गुमराही में हैं।
اَللّٰهُ نَزَّلَ اَحْسَنَ الْحَدِيْثِ كِتٰبًا مُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَۙ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُوْدُ الَّذِيْنَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ۚ ثُمَّ تَلِيْنُ جُلُوْدُهُمْ وَقُلُوْبُهُمْ اِلٰى ذِكْرِ اللّٰهِ ۗذٰلِكَ هُدَى اللّٰهِ يَهْدِيْ بِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ هَادٍ٢٣
Allāhu nazzala aḥsanal-ḥadīṡi kitābam mutasyābiham maṡāniy(a), taqsya‘irru minhu julūdul-lażīna yakhsyauna rabbahum, ṡumma talīnu julūduhum wa qulūbuhum ilā żikrillāh(i), żālika hudallāhi yahdī bihī may yasyā'(u), wa may yuḍlilillāhu famā lahū min hād(in).
[23]
अल्लाह ने सबसे अच्छी बात (क़ुरआन) अवतरित की, ऐसी पुस्तक जो परस्पर मिलती-जुलती, (जिसकी आयतें) बार-बार दोहराई जाने वाली हैं। इससे उन लोगों की खालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जो अपने पालनहार से डरते हैं। फिर उनकी खालें तथा उनके दिल अल्लाह के स्मरण की ओर कोमल हो जाते हैं। यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा वह जिसे चाहता है, संमार्ग पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं।
اَفَمَنْ يَّتَّقِيْ بِوَجْهِهٖ سُوْۤءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۗوَقِيْلَ لِلظّٰلِمِيْنَ ذُوْقُوْا مَا كُنْتُمْ تَكْسِبُوْنَ٢٤
Afamay yattaqī biwajhihī sū'al-‘ażābi yaumal-qiyāmah(ti), wa qīla liẓ-ẓālimīna żūqū mā kuntum taksibūn(a).
[24]
तो क्या जो व्यक्ति क़ियामत के दिन अपने चेहरे4 के साथ, बुरी यातना से, अपनी रक्षा करेगा? तथा अत्याचारियों से कहा जाएगा : उसे चखो, जो तुम किया करते थे।
4. इसलिए कि उसके हाथ पीछे बंधे होंगे। वह अच्छा है या जो स्वर्ग के सुख में होगा वह अच्छा है?
كَذَّبَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَاَتٰىهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُوْنَ٢٥
Każżabal-lażīna min qablihim fa'atāhumul-‘ażābu mi ḥaiṡu lā yasy‘urūn(a).
[25]
इनसे पहले के लोगों ने भी झुठलाया, तो उनपर वहाँ से यातना आई कि वे सोचते भी न थे।
فَاَذَاقَهُمُ اللّٰهُ الْخِزْيَ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا ۚوَلَعَذَابُ الْاٰخِرَةِ اَكْبَرُ ۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ٢٦
Fa ażāqahumullāhul-khizya fil-ḥayātid-dun-yā, wa la‘ażābul-ākhirati akbar(u), lau kānū ya‘lamūn(a).
[26]
तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान चखाया और निश्चय आख़िरत (परलोक) की यातना अत्यधिक बड़ी है। काश! वे जानते होते।
وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِيْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَۚ٢٧
Wa laqad ḍarabnā lin-nāsi fī hāżal-qur'āni min kulli maṡalil la‘allahum yatażakkarūn(a).
[27]
और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर प्रकार के उदाहरण दिए हैं, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें।
قُرْاٰنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِيْ عِوَجٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَّقُوْنَ٢٨
Qur'ānan ‘arabiyyan gaira żī ‘iwajil la‘allahum yattaqūn(a).
[28]
अरबी भाषा में क़ुरआन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।
ضَرَبَ اللّٰهُ مَثَلًا رَّجُلًا فِيْهِ شُرَكَاۤءُ مُتَشٰكِسُوْنَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِّرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيٰنِ مَثَلًا ۗ اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ ۗبَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ٢٩
Ḍaraballāhu maṡalar rajulan fīhi syurakā'u mutasyākisūna wa rajulan salamal lirajulin hal yastawiyāni maṡalā(n), al-ḥamdu lillāh(i), bal akṡaruhum lā ya‘lamūn(a).
[29]
अल्लाह ने एक व्यक्ति का उदाहरण दिया है, जिसमें कई परस्पर विरोधी साझी हैं तथा एक और व्यक्ति का, जो पूरा एक ही व्यक्ति का (दास) है। क्या दोनों की स्थिति समान हैं?5 सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।
5. इस आयत में मिश्रणवादी और एकेश्वरवादी की दशा का वर्णन किया गया है कि मिश्रणवादी अनेक पूज्यों को प्रसन्न करने में व्याकुल रहता है। तथा एकेश्वरवादी शांत होकर केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और एक ही को प्रसन्न करता है।
اِنَّكَ مَيِّتٌ وَّاِنَّهُمْ مَّيِّتُوْنَ ۖ٣٠
Innaka mayyituw wa innahum mayyitūn(a).
[30]
(ऐ नबी!) निःसंदेह आप मरने वाले हैं तथा निःसंदेह वे भी मरने वाले हैंl6
6. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मौत को सिद्ध किया गया है। जिस प्रकार सूरत आले-इमरान, आयत : 144 में आपकी मौत का प्रमाण बताया गया है।
ثُمَّ اِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ عِنْدَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُوْنَ ࣖ ۔٣١
Ṡumma innakum yaumal-qiyāmati ‘inda rabbikum takhtaṣimūn(a).
[31]
फिर निःसंदेह तुम क़ियामत के दिन अपने पालनहार के पास झगड़ोगे।
۞ فَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنْ كَذَبَ عَلَى اللّٰهِ وَكَذَّبَ بِالصِّدْقِ اِذْ جَاۤءَهٗۗ اَلَيْسَ فِيْ جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْكٰفِرِيْنَ٣٢
Faman aẓlamu mimman każaba ‘alallāhi wa każżaba biṣ-ṣidqi iż jā'ah(ū), alaisa fī jahannama maṡwal lil-kāfirīn(a).
[32]
तथा उससे अधिक अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े या जब सच उसके पास आ जाए, तो उसे झुठलाए? तो क्या जहन्नम में काफ़िरों का आवास नहीं होगा?
وَالَّذِيْ جَاۤءَ بِالصِّدْقِ وَصَدَّقَ بِهٖٓ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُتَّقُوْنَ٣٣
Wal-lażī jā'a biṣ-ṣidqi wa ṣaddaqa bihī ulā'ika humul-muttaqūn(a).
[33]
तथा जो सत्य लेकर आया7 और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले लोग हैं।
7. इससे अभिप्राय अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं।
لَهُمْ مَّا يَشَاۤءُوْنَ عِنْدَ رَبِّهِمْ ۗ ذٰلِكَ جَزَاۤءُ الْمُحْسِنِيْنَۚ٣٤
Lahum mā yasyā'ūna ‘inda rabbihim, żālika jazā'ul-muḥsinīn(a).
[34]
उनके लिए उनके पालनहार के यहाँ वह सब कुछ होगा, जो वे चाहेंगे। और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।
لِيُكَفِّرَ اللّٰهُ عَنْهُمْ اَسْوَاَ الَّذِيْ عَمِلُوْا وَيَجْزِيَهُمْ اَجْرَهُمْ بِاَحْسَنِ الَّذِيْ كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ٣٥
Liyukaffirallāhu ‘anhum aswa'al-lażī ‘amilū wa yajziyahum ajrahum bi'aḥsanil-lażī kānū ya‘malūn(a).
[35]
ताकि जो बुरे कर्म उन्होंने किए हैं, उन्हें अल्लाह क्षमा कर दे तथा उनके अच्छे कर्मों के बदले, जो वे कर रहे थे, उन्हें उनका प्रतिफल प्रदान करे।
اَلَيْسَ اللّٰهُ بِكَافٍ عَبْدَهٗۗ وَيُخَوِّفُوْنَكَ بِالَّذِيْنَ مِنْ دُوْنِهٖۗ وَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ هَادٍۚ٣٦
Alaisallāhu bikāfin ‘abdah(ū), wa yukhawwifūnaka bil-lażīna min dūnih(ī), wa may yuḍlilillāhu famā lahū min hād(in).
[36]
क्या अल्लाह अपने बंदे के लिए काफ़ी नहीं है? तथा वे आपको उन (झूठे पूज्यों) से डराते हैं, जो उसके सिवा हैं। तथा जिसे अल्लाह राह से हटा दे, उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं है।
وَمَنْ يَّهْدِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ مُّضِلٍّ ۗ اَلَيْسَ اللّٰهُ بِعَزِيْزٍ ذِى انْتِقَامٍ٣٧
Wa may yahdillāhu famā lahū min muḍill(in), alaisallāhu bi‘azīzin żintiqām(in).
[37]
और जिसे अल्लाह सीधी राह पर लगा दे, उसे कोई राह से भटका नहीं सकता। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला नहीं है?
وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ لَيَقُوْلُنَّ اللّٰهُ ۗ قُلْ اَفَرَءَيْتُمْ مَّا تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اِنْ اَرَادَنِيَ اللّٰهُ بِضُرٍّ هَلْ هُنَّ كٰشِفٰتُ ضُرِّهٖٓ اَوْ اَرَادَنِيْ بِرَحْمَةٍ هَلْ هُنَّ مُمْسِكٰتُ رَحْمَتِهٖۗ قُلْ حَسْبِيَ اللّٰهُ ۗعَلَيْهِ يَتَوَكَّلُ الْمُتَوَكِّلُوْنَ٣٨
Wa la'in sa'altahum man khalaqas-samāwāti wal-arḍa layaqūlunnallāh(u), qul afara'aitum mā tad‘ūna min dūnillāhi in arādaniyallāhu biḍurrin hal hunna kāsyifātu ḍurrihī au arādanī biraḥmatin hal hunna mumsikātu raḥmatih(ī), qul ḥasbiyallāh(u), ‘alaihi yatawakkalul-mutawakkilūn(a).
[38]
और यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया है? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दीजिए कि तुम बताओ कि जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, यदि अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो क्या ये उसकी हानि दूर कर सकते हैं? या मेरे साथ दया करना चाहे, तो क्या ये उसकी दया को रोक सकते हैं? आप कह दें कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है। उसीपर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं।
قُلْ يٰقَوْمِ اعْمَلُوْا عَلٰى مَكَانَتِكُمْ اِنِّيْ عَامِلٌ ۚفَسَوْفَ تَعْلَمُوْنَۙ٣٩
Qul yā qaumi‘malū ‘alā makānatikum innī ‘āmil(un), fa saufa ta‘lamūn(a).
[39]
आप कह दें कि ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम काम करो अपने स्थान पर, मैं भी काम कर रहा हूँ। फिर शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा।
مَنْ يَّأْتِيْهِ عَذَابٌ يُّخْزِيْهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُّقِيْمٌ٤٠
May ya'tīhi ‘ażābuy yukhzīhi wa yaḥillu ‘alaihi ‘ażābum muqīm(un).
[40]
कि कौन है वह व्यक्ति, जिसपर अपमानकारी यातना आएगी और उसपर स्थायी अज़ाब उतरेगा?
اِنَّآ اَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتٰبَ لِلنَّاسِ بِالْحَقِّۚ فَمَنِ اهْتَدٰى فَلِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ ضَلَّ فَاِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۚوَمَآ اَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيْلٍ ࣖ٤١
Innā anzalnā ‘alaikal-kitāba lin-nāsi bil-ḥaqq(i), fa manihtadā fa linafsih(ī), wa man ḍalla fa innamā yaḍillu ‘alaihā, wa mā anta ‘alaihim biwakīl(in).
[41]
वास्तव में, हमने ही आपपर यह पुस्तक लोगों के लिए सत्य के साथ उतारी है। अब जिसने सीधा मार्ग ग्रहण किया, तो अपने लिए, तथा जो भटका, तो वह भटककर अपना नुकसान करता है। तथा आप उनके ज़िम्मेवार नहीं हैं।
اَللّٰهُ يَتَوَفَّى الْاَنْفُسَ حِيْنَ مَوْتِهَا وَالَّتِيْ لَمْ تَمُتْ فِيْ مَنَامِهَا ۚ فَيُمْسِكُ الَّتِيْ قَضٰى عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْاُخْرٰىٓ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّىۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّتَفَكَّرُوْنَ٤٢
Allāhu yatawaffal-anfusa ḥīna mautihā wal-latī lam tamut fī manāmihā, fayumsikul-latī qaḍā ‘alaihal-mauta wa yursilul-ukhrā ilā ajalim musammā(n), inna fī żālika la'āyātil liqaumiy yatafakkarūn(a).
[42]
अल्लाह ही प्राणों को उनकी मौत के समय क़ब्ज़ करता है, तथा जिसकी मौत का समय नहीं आया, उसकी नींद की अवस्था में। फिर (उसे) रोक लेता है, जिसके बारे में मौत का निर्णय कर दिया हो तथा अन्य को एक निर्धारित समय तक के लिए भेज देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय कई निशानियाँ हैं, जो मनन-चिंतन8 करते हैं।
8. इस आयत में बताया जा रहा है कि मरण तथा जीवन अल्लाह के नियंत्रण में हैं। निद्रा में प्राणों को खींचने का अर्थ है, उनकी संवेदन शक्ति को समाप्त कर देना। अतः कोई इस निद्रा की दशा पर विचार करे, तो यह समझ सकता है कि अल्लाह मुर्दों को भी जीवित कर सकता है।
اَمِ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ شُفَعَاۤءَۗ قُلْ اَوَلَوْ كَانُوْا لَا يَمْلِكُوْنَ شَيْـًٔا وَّلَا يَعْقِلُوْنَ٤٣
Amittakhażū min dūnillāhi syufa‘ā'(a), qul awalau kānū lā yamlikūna syai'aw wa lā ya‘qilūn(a).
[43]
क्या उन्होंने अल्लाह के अतिरिक्त बहुत-से सिफ़ारिशी बना लिए हैं? आप कह दें: क्या यदि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते हों तो भी (वे सिफ़ारिश करेंगे)?
قُلْ لِّلّٰهِ الشَّفَاعَةُ جَمِيْعًا ۗ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ ثُمَّ اِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ٤٤
Qul lillāhisy-syafā‘atu jamī‘ā(n), lahū mulkus-samāwāti wal-arḍ(i), ṡumma ilaihi turja‘ūn(a).
[44]
आप कह दें कि सिफ़ारिश तो सब अल्लाह के अधिकार में है। उसी के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।
وَاِذَا ذُكِرَ اللّٰهُ وَحْدَهُ اشْمَـَٔزَّتْ قُلُوْبُ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِۚ وَاِذَا ذُكِرَ الَّذِيْنَ مِنْ دُوْنِهٖٓ اِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُوْنَ٤٥
Wa iżā żukirallāhu waḥdahusyma'azzat qulūbul-lażīna lā yu'minūna bil-ākhirah(ti), wa iżā żukiral-lażīna min dūnihī iżā hum yastabsyirūn(a).
[45]
तथा जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उन लोगों के दिल संकीर्ण होने लगते हैं, जो आख़िरत9 पर ईमान नहीं रखते तथा जब उसके सिवा अन्य पूज्यों का ज़िक्र आता है, तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।
9. इसमें मुश्रिकों की दशा का वर्णन किया जा रहा है कि वे अल्लाह की महिमा और प्रेम को स्वीकार तो करते हैं, फिर भी जब अकेले अल्लाह की महिमा तथा प्रशंसा का वर्णन किया जाता है, तो प्रसन्न नहीं होते जब तक दूसरे पीरों-फ़क़ीरों तथा देवताओं के चमत्कार की चर्चा न की जाए।
قُلِ اللّٰهُمَّ فَاطِرَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ عٰلِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ اَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِيْ مَا كَانُوْا فِيْهِ يَخْتَلِفُوْنَ٤٦
Qulillāhumma fāṭiras-samāwāti wal-arḍi ‘ālimal-gaibi wasy-syahādati anta taḥkumu baina ‘ibādika fīmā kānū fīhi yakhtalifūn(a).
[46]
(ऐ नबी!) आप कह दें: ऐ अल्लाह, आकाशों तथा धरती के पैदा करने वाले, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष के जानने वाले! तू ही अपने बंदों के बीच उस बात के बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे झगड़ रहे थे।
وَلَوْ اَنَّ لِلَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مَا فِى الْاَرْضِ جَمِيْعًا وَّمِثْلَهٗ مَعَهٗ لَافْتَدَوْا بِهٖ مِنْ سُوْۤءِ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيٰمَةِۗ وَبَدَا لَهُمْ مِّنَ اللّٰهِ مَا لَمْ يَكُوْنُوْا يَحْتَسِبُوْنَ٤٧
Wa lau anna lil-lażīna ẓalamū mā fil-arḍi jamī‘aw wa miṡlahū ma‘ahū laftadau bihī min sū'il-‘ażābi yaumal-qiyāmah(ti), wa badā lahum minallāhi mā lam yakūnū yaḥtasibūn(a).
[47]
और जिन लोगों ने अत्याचार किया है, अगर धरती की सारी चीज़ें उनकी हो जाएँ, और उनके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए इन सारी चीज़ों को फ़िदया में दे देंगे।10 तथा अल्लाह की ओर से उनके लिए वह बात खुल जाएगी, जिसका वे गुमान भी न करते थे।
10. परंतु वह सब स्वीकार्य नहीं होगा। (देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 48, तथा सूरत आल-इमरान, आयत : 91)
وَبَدَا لَهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ٤٨
Wa badā lahum sayyi'ātu mā kasabū wa ḥāqa bihim mā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[48]
और उनके कुकर्मों की बुराइयाँ उनके सामने आ जाएँगी और उन्हें वह यातना घेर लेगी, जिसका वे मज़ाक उड़ाया करते थे।
فَاِذَا مَسَّ الْاِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَانَاۖ ثُمَّ اِذَا خَوَّلْنٰهُ نِعْمَةً مِّنَّاۙ قَالَ اِنَّمَآ اُوْتِيْتُهٗ عَلٰى عِلْمٍ ۗبَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ٤٩
Fa'iżā massal-insāna ḍurrun da‘ānā ṡumma iżā khawwalnāhu ni‘matam minnā, qāla innamā ūtītuhū ‘alā ‘ilm(in), bal hiya fitnatuw wa lākinna akṡarahum lā ya‘lamūn(a).
[49]
और जब इनसान को कोई दुःख पहुँचाता है, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करते हैं, तो कहता हैः "यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ है।" बल्कि, यह एक परीक्षा है। किन्तु, उनमें से अधिकतर लोग (इसे) नहीं जानते।
قَدْ قَالَهَا الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ٥٠
Qad qālahal-lażīna min qablihim famā agnā ‘anhum mā kānū yaksibūn(a).
[50]
यही बात, उन लोगों ने भी कही थी, जो इनसे पूर्व थे। तो नहीं काम आया उनके, जो कुछ वे कमा रहे थे।
فَاَصَابَهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا ۗوَالَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْ هٰٓؤُلَاۤءِ سَيُصِيْبُهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا ۙوَمَا هُمْ بِمُعْجِزِيْنَ٥١
Fa'aṣābahum sayyi'ātu mā kasabū, wal-lażīna ẓalamū min hā'ulā'i sayuṣībuhum sayyi'ātu mā kasabū, wa mā hum bimu‘jizīn(a).
[51]
तो उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ीं। और इनमें से जिन लोगों ने अत्याचार किया, उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ेंगी। और वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।
اَوَلَمْ يَعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَقْدِرُ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ࣖ٥٢
Awalam ya‘lamū annallāha yabsuṭur-rizqa limay yasyā'u wa yaqdir(u), inna fī żālika la'āyātil liqaumiy yu'minūn(a).
[52]
क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है, और (जिसे चाहता है) नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
۞ قُلْ يٰعِبَادِيَ الَّذِيْنَ اَسْرَفُوْا عَلٰٓى اَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوْا مِنْ رَّحْمَةِ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ جَمِيْعًا ۗاِنَّهٗ هُوَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُ٥٣
Qul yā ‘ibādiyal-lażīna asrafū ‘alā anfusihim lā taqnaṭū mir raḥmatillāh(i), innallāha yagfiruż-żunūba jamī‘ā(n), innahū huwal-gafūrur-raḥīm(u).
[53]
(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।11 निःसंदेह अल्लाह सब पापों को क्षमा कर देता है। निःसंदेह वही तो अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
11. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ मुश्रिक आए जिन्होंने बहुत जानें मारीं और बहुत व्यभिचार किए थे। और कहा वास्तव में, आप जो कुछ कह रहे हैं वह बहुत अच्छा है। तो आप बताएँ कि हमने जो कुकर्म किए हैं उनके लिए कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है? उसी पर क़ुरआन की आयत 68 और यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4810)
وَاَنِيْبُوْٓا اِلٰى رَبِّكُمْ وَاَسْلِمُوْا لَهٗ مِنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُوْنَ٥٤
Wa anībū ilā rabbikum wa aslimū lahū min qabli ay ya'tiyakumul-‘ażābu ṡumma lā tunṣarūn(a).
[54]
तथा अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो और उसके आज्ञाकारी हो जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए।
وَاتَّبِعُوْٓا اَحْسَنَ مَآ اُنْزِلَ اِلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَّاَنْتُمْ لَا تَشْعُرُوْنَ ۙ٥٥
Wattabi‘ū aḥsana mā unzila ilaikum mir rabbikum min qabli ay ya'tiyakumul ‘ażābu bagtataw wa antum lā tasy‘urūn(a).
[55]
तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो अल्लाह की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो।
اَنْ تَقُوْلَ نَفْسٌ يّٰحَسْرَتٰى عَلٰى مَا فَرَّطْتُّ فِيْ جَنْۢبِ اللّٰهِ وَاِنْ كُنْتُ لَمِنَ السّٰخِرِيْنَۙ٥٦
An taqūla yā ḥasratā ‘alā mā farraṭṭu fī jambillāhi wa in kuntu laminas-sākhirīn(a).
[56]
(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि अफ़सोस है उस कोताही पर, जो मैंने अल्लाह के हक में की तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।
اَوْ تَقُوْلَ لَوْ اَنَّ اللّٰهَ هَدٰىنِيْ لَكُنْتُ مِنَ الْمُتَّقِيْنَ ۙ٥٧
Au taqūla lau annallāha hadānī lakuntu minal-muttaqīn(a).
[57]
या फिर कहे कि यदि अल्लाह मुझे सीधा रास्ता दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।
اَوْ تَقُوْلَ حِيْنَ تَرَى الْعَذَابَ لَوْ اَنَّ لِيْ كَرَّةً فَاَكُوْنَ مِنَ الْمُحْسِنِيْنَ٥٨
Au taqūla ḥīna taral-‘ażāba lau anna lī karratan fa akūna minal-muḥsinīn(a).
[58]
या जब यातना को देख ले, तो कहने लगे कि अगर मुझे (संसार की ओर) वापस जाने का अवसर मिले, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
بَلٰى قَدْ جَاۤءَتْكَ اٰيٰتِيْ فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكٰفِرِيْنَ٥٩
Balā qad jā'atka āyātī fa każżabta bihā wastakbarta wa kunta minal-kāfirīn(a).
[59]
हाँ, तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ आईं, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।
وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ تَرَى الَّذِيْنَ كَذَبُوْا عَلَى اللّٰهِ وُجُوْهُهُمْ مُّسْوَدَّةٌ ۗ اَلَيْسَ فِيْ جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْمُتَكَبِّرِيْنَ٦٠
Wa yaumal-qiyāmati taral-lażīna każabū ‘alallāhi wujūhuhum muswaddah(tun), alaisa fī jahannama maṡwal lil-mutakabbirīn(a).
[60]
और क़ियामत के दिन आप उन लोगों को देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोला कि उनके चेहरे काले होंगे। तो क्या अभिमानियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?
وَيُنَجِّى اللّٰهُ الَّذِيْنَ اتَّقَوْا بِمَفَازَتِهِمْۖ لَا يَمَسُّهُمُ السُّوْۤءُ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ٦١
Wa yunajjillāhul-lażīnattaqau bimafāzatihim, lā yamassuhumus-sū'u wa lā hum yaḥzanūn(a).
[61]
तथा अल्लाह उन लोगों को उनकी सफलता के साथ बचा लेगा, जो आज्ञाकारी रहे। न उन्हें कोई तकलीफ छुएगी और न वे शोकाकुल होंगे।
اَللّٰهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ ۙوَّهُوَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ وَّكِيْلٌ٦٢
Allāhu khāliqu kulli syai'(in), wa huwa ‘alā kulli syai'iw wakīl(un).
[62]
अल्लाह ही प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला है तथा वही प्रत्येक वस्तु का संरक्षक है।
لَهٗ مَقَالِيْدُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِاٰيٰتِ اللّٰهِ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ࣖ٦٣
Lahū maqālīdus-samāwāti wal-arḍ(i), wal-lażīna kafarū bi'āyātillāhi ulā'ika humul-khāsirūn(a).
[63]
आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ12 उसी के पास हैं तथा जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, वही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
12. अर्थात सबका विधाता तथा स्वामी वही है। वही सबकी व्यवस्था करता है। और सब उसी के अधीन तथा अधिकार में हैं।
قُلْ اَفَغَيْرَ اللّٰهِ تَأْمُرُوْۤنِّيْٓ اَعْبُدُ اَيُّهَا الْجٰهِلُوْنَ٦٤
Qul afagairallāhi ta'murūnnī a‘budu ayyuhal-jāhilūn(a).
[64]
आप कह दें के ऐ अज्ञानो! क्या तुम मुझे आदेश देते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत (वंदना) करूँ?
وَلَقَدْ اُوْحِيَ اِلَيْكَ وَاِلَى الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِكَۚ لَىِٕنْ اَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُوْنَنَّ مِنَ الْخٰسِرِيْنَ٦٥
Wa laqad ūḥiya ilaika wa ilal-lażīna min qablik(a), la'in asyrakta layaḥbaṭanna ‘amaluka wa latakūnanna minal-khāsirīn(a).
[65]
और निःसंदेह तुम्हारी ओर एवं तुमसे पहले के नबियों की ओर वह़्य की गई है कि यदि तुमने शिर्क किया, तो निश्चय तुम्हारा कर्म अवश्य नष्ट हो जाएगा और तुम निश्चित रूप से हानि उठाने वालों में से हो जाओगे।13
13. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाए कि आपके जीवन का अंत शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आपके भी कर्म नष्ट हो जाएँगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इसलिए कि उनका संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खंडन है। फिर भी इसमें संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उसका अनुयायी हो।
بَلِ اللّٰهَ فَاعْبُدْ وَكُنْ مِّنَ الشّٰكِرِيْنَ٦٦
Balillāha fa‘bud wa kum minasy-syākirīn(a).
[66]
बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करें तथा शुक्र करने वालों में से हो जाएँ।
وَمَا قَدَرُوا اللّٰهَ حَقَّ قَدْرِهٖۖ وَالْاَرْضُ جَمِيْعًا قَبْضَتُهٗ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَالسَّمٰوٰتُ مَطْوِيّٰتٌۢ بِيَمِيْنِهٖ ۗسُبْحٰنَهٗ وَتَعٰلٰى عَمَّا يُشْرِكُوْنَ٦٧
Wa mā qadarullāha ḥaqqa qadrih(ī), wal-arḍu jamī‘an qabḍatuhū yaumal-qiyāmati was-samāwātu maṭwiyyātum biyamīnih(ī), subḥānahū wa ta‘ālā ‘ammā yusyrikūn(a).
[67]
तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिए था और क़ियामत के दिन पूरी धरती उसकी एक मुट्ठी में होगी, तथा आकाश उसके दाएँ हाथ14 में लिपटे होंगे। वह उस शिर्क से पवित्र तथा उच्च है, जो वे कर रहे हैं।
14. ह़दीस में आता है कि एक यहूदी विद्वान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : हम अल्लाह के विषय में (अपनी धर्म पुस्तकों में) यह पाते हैं कि प्रलय के दिन आकाशों को एक उँगली, तथा भूमि को एक उँगली पर और पेड़ों को एक उंँगली, जल तथा तरी को एक उंँगली पर और समस्त उत्पत्ति को एक उंँगली पर रख लेगा, तथा कहेगा : "मैं ही राजा हूँ।" यह सुनकर आप हँस पड़े और इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4812, 6519, 7382, 7413)
وَنُفِخَ فِى الصُّوْرِ فَصَعِقَ مَنْ فِى السَّمٰوٰتِ وَمَنْ فِى الْاَرْضِ اِلَّا مَنْ شَاۤءَ اللّٰهُ ۗ ثُمَّ نُفِخَ فِيْهِ اُخْرٰى فَاِذَا هُمْ قِيَامٌ يَّنْظُرُوْنَ٦٨
Wa nufikha fiṣ-ṣūri faṣa‘iqa man fis-samāwāti wa man fil-arḍi illā man syā'allāh(u), ṡumma nufikha fīhi ukhrā fa'iżā hum qiyāmuy yanẓurūn(a).
[68]
तथा सूर (नरसिंघा) में फूँक15 मारी जाएगी, तो जो कोई आकाशों और धरती में होगा, बेहोश हो जाएगा। सिवाय उसके, जिसको अल्लाह चाहे। फिर उसमें पुनः फूँक मारी जाएगी, तो अचानक सब खड़े होकर देखने लगेंगे।
15. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : दूसरी फूँक के पश्चात् सबसे पहले मैं सिर उठाऊँगा। तो मूसा अर्श पकड़े हुए खड़े होंगे। मुझे ज्ञान नहीं कि वह ऐसे ही रह गए थे, या फूँकने के पश्चात् मुझसे पहले उठ चुके होंगे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4813) दूसरी ह़दीस में है कि दोनों फूँकों के बीच चालीस की अवधि होगी। और मनुष्य की दुमची की हड्डी के सिवा सब सड़ जाएगा। और उसी से उसको फिर बनाया जाएगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4814)
وَاَشْرَقَتِ الْاَرْضُ بِنُوْرِ رَبِّهَا وَوُضِعَ الْكِتٰبُ وَجِايْۤءَ بِالنَّبِيّٖنَ وَالشُّهَدَاۤءِ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ٦٩
Wa asyraqatil-arḍu binūri rabbihā wa wuḍi‘al-kitābu wa jī'a bin-nabiyyīna wasy-syuhadā'i wa quḍiya bainahum bil-ḥaqqi wa hum lā yuẓlamūn(a).
[69]
तथा धरती अपने पालनहार की ज्योति से जगमगाने लगेगी, और कर्मलेख (खोलकर लोगों के आगे) रख दिए जाएँगे, तथा नबियों और साक्षियों को लाया जाएगा, और उनके बीच सत्य के साथ निर्णय कर दिया जाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।
وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ وَهُوَ اَعْلَمُ بِمَا يَفْعَلُوْنَ ࣖ٧٠
Wa wuffiyat kullu nafsim mā ‘amilat wa huwa a‘lamu bimā yaf‘alūn(a).
[70]
तथा प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म का पूरा-पूरा फल दिया जाएगा। तथा वह भली-भाँति जानता है उसे, जो वे करते हैं।
وَسِيْقَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِلٰى جَهَنَّمَ زُمَرًا ۗحَتّٰىٓ اِذَا جَاۤءُوْهَا فُتِحَتْ اَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَآ اَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِّنْكُمْ يَتْلُوْنَ عَلَيْكُمْ اٰيٰتِ رَبِّكُمْ وَيُنْذِرُوْنَكُمْ لِقَاۤءَ يَوْمِكُمْ هٰذَا ۗقَالُوْا بَلٰى وَلٰكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَى الْكٰفِرِيْنَ٧١
Wasīqal-lażīna kafarū ilā jahannama zumarā(n), ḥattā iżā jā'ūhā futiḥat abwābuhā wa qāla lahum khazanatuhā alam ya'tikum rusulum minkum yatlūna ‘alaikum āyāti rabbikum wa yunżirūnakum liqā'a yaumikum hāżā, qālū balā wa lākin ḥaqqat kalimatul-‘ażābi ‘alal-kāfirīn(a).
[71]
तथा जो लोग काफ़िर होंगे, वे जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह हाँके जाएँगे। यहाँ तक कि जब वे उसके पास आएँगे, तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे तथा उसके रक्षक उनसे कहेंगेः "क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें तुम्हारे पालनहार की आयतें सुनाते रहे तथा तुम्हें अपने इस दिन का सामना करने से सचेत करते रहे?" वे कहेंगेः "क्यों नहीं? परन्तु, काफ़िरों पर यातना की बात सिद्ध हो चुकी है।"
قِيْلَ ادْخُلُوْٓا اَبْوَابَ جَهَنَّمَ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا ۚفَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِيْنَ٧٢
Qīladkhulū abwāba jahannama khālidīna fīhā, fa bi'sa maṡwal-mutakabūbirīn(a).
[72]
उनसे कहा जाएगाः जहन्नम के द्वारों में प्रवेश कर जाओ। उसमें सदावासी रहोगे। अतः क्या ही बुरा है अभिमानियों का ठिकाना!
وَسِيْقَ الَّذِيْنَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ اِلَى الْجَنَّةِ زُمَرًا ۗحَتّٰىٓ اِذَا جَاۤءُوْهَا وَفُتِحَتْ اَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا سَلٰمٌ عَلَيْكُمْ طِبْتُمْ فَادْخُلُوْهَا خٰلِدِيْنَ٧٣
Wasīqal-lażīnattaqau rabbahum ilal-jannati zumarā(n), ḥattā iżā jā'ūhā wa futiḥat abwābuhā wa qāla lahum khazanatuhā salāmun ‘alaikum ṭibtum fadkhulūhā khālidīn(a).
[73]
तथा जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, वे जन्नत की ओर गिरोह के गिरोह ले जाए जाएँगे। यहाँ तक कि जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे तथा उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके रक्षक उनसे कहेंगेः सलाम है तुमपर। तुम पवित्र हो। सो तुम इसमें हमेशा रहने को प्रवेश कर जाओ।
وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ صَدَقَنَا وَعْدَهٗ وَاَوْرَثَنَا الْاَرْضَ نَتَبَوَّاُ مِنَ الْجَنَّةِ حَيْثُ نَشَاۤءُ ۚفَنِعْمَ اَجْرُ الْعٰمِلِيْنَ٧٤
Wa qālul-ḥamdu lillāhil-lażī ṣadaqanā wa‘dahū wa auraṡanal-arḍa natabawwa'u minal-jannati ḥaiṡu nasyā'(u), fani‘ma ajrul-‘āmilīn(a).
[74]
तथा वे कहेंगे : सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे किया हुआ अपना वचन सच कर दिखाया, तथा हमें इस धरती का उत्तराधिकारी बना दिया। हम स्वर्ग के अंदर जहाँ चाहें, रहें। क्या ही अच्छा बदला है कर्म करने वालों का।16
16. अर्थात एकेश्वरवादी सदाचारियों का।
وَتَرَى الْمَلٰۤىِٕكَةَ حَاۤفِّيْنَ مِنْ حَوْلِ الْعَرْشِ يُسَبِّحُوْنَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْۚ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَقِيْلَ الْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ࣖ٧٥
Wa taral-malā'ikata ḥāffīna min ḥaulil-‘arsyi yusabbiḥūna biḥamdi rabbihim, wa quḍiya bainahum bil-ḥaqqi wa qīlal-ḥamdu lillāhi rabbil-‘ālamīn(a).
[75]
तथा आप फ़रिश्तों को अर्श (सिंहासन) के चारों ओर से उसे घेरे हुए देखेंगे। वे अपने पालनहार की पवित्रता गान कर रहे होंगे, उसकी प्रशंसा के साथ। और लोगों के बीच सत्य के साथ निर्णय कर दिया जाएगा। तथा कह दिया जाएगा कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का पालनहार है।17
17. अर्थात जब ईमान वाले स्वर्ग में और मुश्रिक नरक में चले जाएँगे तो उस समय का चित्र यह होगा कि अल्लाह के अर्श को फ़रिश्ते हर ओर से घेरे हुए उसकी पवित्रता तथा प्रशंसा का गान कर रहे होंगे।