Surah As-Saffat
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالصّٰۤفّٰتِ صَفًّاۙ١
Waṣ-ṣāffāti ṣaffā(n).
[1]
क़सम है पंक्तिबद्ध (फ़रिश्तों) की!
فَالزّٰجِرٰتِ زَجْرًاۙ٢
Faz-zājirāti zajrā(n).
[2]
फिर झिड़क कर डाँटने वालों की!
فَالتّٰلِيٰتِ ذِكْرًاۙ٣
Fat-tāliyāti żikrā(n).
[3]
फिर (अल्लाह के) ज़िक्र (वाणी) की तिलावत करने वालों की।1
1. ये तीनों गुण फ़रिश्तों के हैं जो आकाशों में अल्लाह की इबादत के लिए पंक्तिबद्ध रहते तथा बादलों को हाँकते और अल्लाह के स्मरण जैसे क़ुरआन तथा नमाज़ पढ़ने और उसकी पवित्रता का गान करने इत्यादि में लगे रहते हैं।
اِنَّ اِلٰهَكُمْ لَوَاحِدٌۗ٤
Inna ilāhakum lawāḥid(un).
[4]
निःसंदेह तुम्हारा पूज्य निश्चय एक ही है।
رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَرَبُّ الْمَشَارِقِۗ٥
Rabbus-samāwāti wal-arḍi wa mā bainahumā wa rabbul-masyāriq(i).
[5]
जो आकाशों और धरती का तथा उन दोनों के बीच की समस्त चीज़ों का स्वामी है और सूर्य के उदय होने के सभी स्थानों का मालिक है।
اِنَّا زَيَّنَّا السَّمَاۤءَ الدُّنْيَا بِزِيْنَةِ ِۨالْكَوَاكِبِۙ٦
Innā zayyannas-samā'ad-dun-yā bizīnatinil-kawākib(i).
[6]
निःसंदेह हमने संसार के आकाश को एक सुंदर शृंगार के साथ सुशोभित किया है, जो सितारे हैं।
وَحِفْظًا مِّنْ كُلِّ شَيْطٰنٍ مَّارِدٍۚ٧
Wa ḥifẓam min kulli syaiṭānim mārid(in).
[7]
और प्रत्येक सरकश शैतान से सुरक्षित करने के लिए।
لَا يَسَّمَّعُوْنَ اِلَى الْمَلَاِ الْاَعْلٰى وَيُقْذَفُوْنَ مِنْ كُلِّ جَانِبٍۖ٨
Lā yassammā‘ūna ilal-mala'il-a‘lā wa yuqżafūna min kulli jānib(in).
[8]
वे सर्वोच्च सभा (मला-ए-आ'ला) के फ़रिश्तों की बात नहीं सुन सकते, तथा वे हर ओर से (उल्काओं से) मारे जाते हैं।
دُحُوْرًا وَّلَهُمْ عَذَابٌ وَّاصِبٌ٩
Duḥūraw wa lahum ‘ażābuw wāṣib(un).
[9]
भगाने के लिए। तथा उनके लिए स्थायी यातना है।
اِلَّا مَنْ خَطِفَ الْخَطْفَةَ فَاَتْبَعَهٗ شِهَابٌ ثَاقِبٌ١٠
Illā man khaṭifal-khaṭfata fa'atba‘ahū syihābun ṡāqib(un).
[10]
परंतु जो कोई (शैतान फरिश्तों की किसी बात को) अचानक उचक ले जाए, तो एक दहकता हुआ अंगारा (उल्का)2 उसका पीछा करता है।
2. फिर यदि उससे बचा रह जाए तो आकाश की बात अपने नीचे के शैतानों तक पहुँचाता है और वे उसे काहिनों तथा ज्योतिषियों को बताते हैं। फिर वे उसमें सौ झूठ मिलाकर लोगों को बताते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6213, सह़ीह़ मुस्लिम : 2228)
فَاسْتَفْتِهِمْ اَهُمْ اَشَدُّ خَلْقًا اَمْ مَّنْ خَلَقْنَا ۗاِنَّا خَلَقْنٰهُمْ مِّنْ طِيْنٍ لَّازِبٍ١١
Fastaftihim ahum asyaddu khalqan am man khalaqnā, innā khalaqnāhum min ṭīnil lāzib(in).
[11]
तो आप इन (काफ़िरों) से पूछें कि क्या इन्हें पैदा करना अधिक कठिन है या उनका जिन्हें3 हम पैदा कर चुके? निःसंदेह हमने उन्हें4 एक लेसदार मिट्टी से पैदा किया है।
3. अर्थात फ़रिश्तों तथा आकाशों को। 4. अर्थात् उनके पिता आदम (अलैहिस्सलाम) को।
بَلْ عَجِبْتَ وَيَسْخَرُوْنَ ۖ١٢
Bal ‘ajibta wa yaskharūn(a).
[12]
बल्कि आपने आश्चर्य किया और वे उपहास करते हैं।
وَاِذَا ذُكِّرُوْا لَا يَذْكُرُوْنَ ۖ١٣
Wa iżā żukkirū lā yażkurūn(a).
[13]
और जब उन्हें नसीहत की जाए, तो वे क़बूल नहीं करते।
وَاِذَا رَاَوْا اٰيَةً يَّسْتَسْخِرُوْنَۖ١٤
Wa iżā ra'au āyatay yastaskhirūn(a).
[14]
और जब वे कोई निशानी देखते हैं, तो खूब उपहास करते हैं।
وَقَالُوْٓا اِنْ هٰذَآ اِلَّا سِحْرٌ مُّبِيْنٌ ۚ١٥
Wa qālū in hāżā illā siḥrum mubīn(un).
[15]
तथा कहते हैं कि यह तो मात्र खुला जादू है।
ءَاِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَّعِظَامًا ءَاِنَّا لَمَبْعُوْثُوْنَۙ١٦
A'iżā mitnā wa kunnā turābaw wa ‘iẓāman a'innā lamab‘ūṡūn(a).
[16]
क्या जब हम मर गए और मिट्टी तथा हड्डियाँ हो चुके, तो क्या सचमुच हम अवश्य उठाए जाने वाले हैं?
اَوَاٰبَاۤؤُنَا الْاَوَّلُوْنَۗ١٧
Awa ābā'unal-awwalūn(a).
[17]
और क्या हमारे पहले बाप-दादा भी (उठाए जाएँगे)?
قُلْ نَعَمْ وَاَنْتُمْ دٰخِرُوْنَۚ١٨
Qul na‘am wa antum dākhirūn(a).
[18]
आप कह दीजिए : हाँ! तथा तुम अपमानित (भी) होगे!
فَاِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَّاحِدَةٌ فَاِذَا هُمْ يَنْظُرُوْنَ١٩
Fa'innamā hiya zajratuw wāḥidatun fa'iżā hum yanẓurūn(a).
[19]
वह बस एक ही झिड़की होगी, तो एकाएक वे देख रहे होंगे।
وَقَالُوْا يٰوَيْلَنَا هٰذَا يَوْمُ الدِّيْنِ٢٠
Wa qālū yā wailanā hāżā yaumud-dīn(i).
[20]
तथा वे कहेंगे : हाय हमारा विनाश! यह तो बदले का दिन है।
هٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ الَّذِيْ كُنْتُمْ بِهٖ تُكَذِّبُوْنَ ࣖ٢١
Hāżā yaumul-faṣlil-lażī kuntum bihī tukażżibūn(a).
[21]
यही निर्णय का दिन है, जिसे तुम झुठलाया करते थे।
اُحْشُرُوا الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا وَاَزْوَاجَهُمْ وَمَا كَانُوْا يَعْبُدُوْنَ ۙ٢٢
Uḥsyurul-lażīna ẓalamū wa azwājahum wa mā kānū ya‘budūn(a).
[22]
(आदेश होगा कि) इकट्ठा करो उन लोगों को जिन्होंने अत्याचार किया तथा उनके साथियों को और जिनकी वे उपासना किया करते थे ।
مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ فَاهْدُوْهُمْ اِلٰى صِرَاطِ الْجَحِيْمِ٢٣
Min dūnillāhi fahdūhum ilā ṣirāṭil-jaḥīm(i).
[23]
अल्लाह के सिवा। फिर उन्हें जहन्नम की राह दिखा दो।
وَقِفُوْهُمْ اِنَّهُمْ مَّسْـُٔوْلُوْنَ ۙ٢٤
Waqifūhum innahum mas'ūlūn(a).
[24]
और उन्हें ठहराओ5, निःसंदेह वे प्रश्न किए जाने वाले हैं।
5. नरक में झोंकने से पहले।
مَا لَكُمْ لَا تَنَاصَرُوْنَ٢٥
Mā lakum lā tanāṣarūn(a).
[25]
तुम्हें क्या हुआ कि तुम एक-दूसरे की सहायता नहीं करते?
بَلْ هُمُ الْيَوْمَ مُسْتَسْلِمُوْنَ٢٦
Bal humul-yauma mustaslimūn(a).
[26]
बल्कि, आज वे सर्वथा आज्ञाकारी हैं।
وَاَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلٰى بَعْضٍ يَّتَسَاۤءَلُوْنَ٢٧
Wa aqbala ba‘ḍuhum ‘alā ba‘ḍiy yatasā'alūn(a).
[27]
और वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके परस्पर प्रश्न करेंगे।6
6. अर्थात एक-दूसरे को धिक्कारेंगे।
قَالُوْٓا اِنَّكُمْ كُنْتُمْ تَأْتُوْنَنَا عَنِ الْيَمِيْنِ٢٨
Qālū innakum kuntum ta'tūnanā ‘anil-yamīn(i).
[28]
वे कहेंगे : निःसंदेह तुम हमारे पास दाहिने7 से आया करते थे।
7. इससे अभिप्राय यह है कि धर्म तथा सत्य के नाम से आते थे। अर्थात यह विश्वास दिलाते थे कि यही मिश्रणवाद मूल तथा सत्धर्म है।
قَالُوْا بَلْ لَّمْ تَكُوْنُوْا مُؤْمِنِيْنَۚ٢٩
Qālū bal lam takūnū mu'minīn(a).
[29]
वे8 कहेंगे : बल्कि तुम (स्वयं) ईमान वाले न थे।
8. इससे अभिप्राय उन के प्रमुख लोग हैं।
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيْكُمْ مِّنْ سُلْطٰنٍۚ بَلْ كُنْتُمْ قَوْمًا طٰغِيْنَ٣٠
Wa mā kāna lanā ‘alaikum min sulṭān(in), bal kuntum qauman ṭāgīn(a).
[30]
तथा हमारा तुमपर कोई ज़ोर9 न था, बल्कि तुम (स्वंय) हद से बढ़ने वाले लोग थे।
9. देखिए : सूरत इबराहीम, आयत : 22
فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَآ ۖاِنَّا لَذَاۤىِٕقُوْنَ٣١
Fa ḥaqqa ‘alainā qaulu rabbinā, innā lażā'iqūn(a).
[31]
तो हमपर हमारे पालनहार का कथन सिद्ध हो गया। निःसंदेह हम निश्चय (यातना) चखने वाले हैं।
فَاَغْوَيْنٰكُمْ اِنَّا كُنَّا غٰوِيْنَ٣٢
Fa agwainākum innā kunnā gāwīn(a).
[32]
तो हमने तुम्हें गुमराह किया। निःसंदेह हम स्वयं गुमराह थे।
فَاِنَّهُمْ يَوْمَىِٕذٍ فِى الْعَذَابِ مُشْتَرِكُوْنَ٣٣
Fa innahum yauma'iżin fil-‘ażābi musytarikūn(a).
[33]
तो निश्चय ही वे उस दिन यातना में सहभागी होंगे।
اِنَّا كَذٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِيْنَ٣٤
Innā każālika naf‘alu bil-mujrimīn(a).
[34]
निःसंदेह हम अपराधियों के साथ ऐसा ही किया करते हैं।
اِنَّهُمْ كَانُوْٓا اِذَا قِيْلَ لَهُمْ لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ يَسْتَكْبِرُوْنَ ۙ٣٥
Innahum kānū iżā qīla lahum lā ilāha illallāhu yastakbirūn(a).
[35]
निःसंदेह वे ऐसे लोग थे कि जब उनसे कहा जाता कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य (इबादत के योग्य) नहीं, तो वे अभिमान करते थे।
وَيَقُوْلُوْنَ اَىِٕنَّا لَتَارِكُوْٓا اٰلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ مَّجْنُوْنٍ ۗ٣٦
Wa yaqūlūna a'innā latārikū ālihatinā lisyā‘irim majnūn(in).
[36]
तथा कहते थे : क्या सचमुच हम अपने पूज्यों को एक दीवाने कवि के कारण छोड़ देने वाले हैं?
بَلْ جَاۤءَ بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْسَلِيْنَ٣٧
Bal jā'a bil-ḥaqqi wa ṣaddaqal-mursalīn(a).
[37]
बल्कि वह सत्य लेकर आए हैं तथा उन्होंने सभी रसूलों की पुष्टि की है।
اِنَّكُمْ لَذَاۤىِٕقُوا الْعَذَابِ الْاَلِيْمِ ۚ٣٨
Innakum lażā'iqul-‘ażābil-alīm(i).
[38]
निःसंदेह तुम निश्चय दुःखदायी यातना चखने वाले हो।
وَمَا تُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَۙ٣٩
Wa mā tujzauna illā mā kuntum ta‘malūn(a).
[39]
तथा तुम्हें केवल उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे।
اِلَّا عِبَادَ اللّٰهِ الْمُخْلَصِيْنَ٤٠
Illā ‘ibādallāhil-mukhlaṣīn(a).
[40]
परंतु अल्लाह के ख़ालिस (विशुद्ध) किए हुए बंदे।
اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ رِزْقٌ مَّعْلُوْمٌۙ٤١
Ulā'ika lahum rizqum ma‘lūm(un).
[41]
यही लोग हैं, जिनके लिए निर्धारित रोज़ी है।
فَوَاكِهُ ۚوَهُمْ مُّكْرَمُوْنَۙ٤٢
Fawākihu wa hum mukramūn(a).
[42]
प्रत्येक प्रकार के फल। तथा वे सम्मानित किए गए हैं।
فِيْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِۙ٤٣
Fī jannātin na‘īm(i).
[43]
नेमत के बाग़ों में।
عَلٰى سُرُرٍ مُّتَقٰبِلِيْنَ٤٤
‘Alā sururim mutaqābilīn(a).
[44]
तख़्तों पर आमने-सामने बैठे होंगे।
يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِكَأْسٍ مِّنْ مَّعِيْنٍۢ ۙ٤٥
Yuṭāfu ‘alaihim bika'sim mim ma‘īn(in).
[45]
उनपर प्रवाहित शराब के प्याले फिराए जाएँगे।
بَيْضَاۤءَ لَذَّةٍ لِّلشّٰرِبِيْنَۚ٤٦
Baiḍā'a lażżatil lisy-syāribīn(a).
[46]
जो सफ़ेद होगी, पीने वालों के लिए स्वादिष्ट होगी।
لَا فِيْهَا غَوْلٌ وَّلَا هُمْ عَنْهَا يُنْزَفُوْنَ٤٧
Lā fīhā gauluw wa lā hum ‘anhā yunzafūn(a).
[47]
न उसमें कोई सिरदर्द होगा, और न वे उससे मदहोश होंगे।
وَعِنْدَهُمْ قٰصِرٰتُ الطَّرْفِ عِيْنٌ ۙ٤٨
Wa ‘indahum qāṣirātuṭ-ṭarfi ‘īn(un).
[48]
तथा उनके पास दृष्टि नीची रखने वाली, बड़ी आँखों वाली स्त्रियाँ होंगी।
كَاَنَّهُنَّ بَيْضٌ مَّكْنُوْنٌ٤٩
Ka'annahum baiḍum maknūn(un).
[49]
मानो वे छिपाकर रखे हुए अंडे हों।10
10. अर्थात जिस प्रकार पक्षी के पंखों के नीचे छिपे हुए अंडे सुरक्षित होते हैं, वैसे ही वे नारियाँ सुरक्षित, सुंदर रंग और रूप की होंगी।
فَاَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلٰى بَعْضٍ يَّتَسَاۤءَلُوْنَ٥٠
Fa'aqbala ba‘ḍuhum ‘alā ba‘ḍiy yatasā'alūn(a).
[50]
फिर वे एक-दूसरे के सम्मुख होकर आपस में प्रश्न करेंगे।
قَالَ قَاۤىِٕلٌ مِّنْهُمْ اِنِّيْ كَانَ لِيْ قَرِيْنٌۙ٥١
Qāla qā'ilum minhum innī kāna lī qarīn(un).
[51]
उनमें से एक कहने वाला कहेगा : मेरा एक साथी था।
يَّقُوْلُ اَءِنَّكَ لَمِنَ الْمُصَدِّقِيْنَ٥٢
Yaqūlu a'innaka laminal-muṣaddiqīn(a).
[52]
वह कहा करता था कि क्या सचमुच तू भी (मरणोपरांत पुनर्जीवन को) मानने वालों में से है?
ءَاِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَّعِظَامًا ءَاِنَّا لَمَدِيْنُوْنَ٥٣
A'iżā mitnā wa kunnā turāban a'innā lamadīnūn(a).
[53]
क्या जब हम मर गए और हम मिट्टी तथा हड्डियाँ हो गए, तो क्या सचमुच हम अवश्य बदला दिए जाने वाले हैं?
قَالَ هَلْ اَنْتُمْ مُّطَّلِعُوْنَ٥٤
Qāla hal antum muṭṭali‘ūn(a).
[54]
वह कहेगा : क्या तुम झाँककर देखने वाले हो?
فَاطَّلَعَ فَرَاٰهُ فِيْ سَوَاۤءِ الْجَحِيْمِ٥٥
Faṭṭala‘a fa ra'āhu fī sawā'il-jaḥīm(i).
[55]
फिर वह झाँकेगा, तो उसे भड़कती हुई आग के बीच में देखेगा।
قَالَ تَاللّٰهِ اِنْ كِدْتَّ لَتُرْدِيْنِ ۙ٥٦
Qāla tallāhi in kitta laturdīn(i).
[56]
कहेगा : अल्लाह की कसम! निश्चय तू क़रीब था कि मुझे नष्ट ही कर दे।
وَلَوْلَا نِعْمَةُ رَبِّيْ لَكُنْتُ مِنَ الْمُحْضَرِيْنَ٥٧
Wa lau lā ni‘matu rabbī lakuntu minal-muḥḍarīn(a).
[57]
और यदि मेरे पालनहार की अनुकंपा न होती, तो निश्चय मैं भी (जहन्नम में) उपस्थित किए गए लोगों में से होता।
اَفَمَا نَحْنُ بِمَيِّتِيْنَۙ٥٨
Afamā naḥnu bimayyitīn(a).
[58]
तो क्या (यह सही नहीं है) कि हम कभी मरने वाले नहीं हैं?
اِلَّا مَوْتَتَنَا الْاُوْلٰى وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِيْنَ٥٩
Illā mautatunal-ūlā wa mā naḥnu bimu‘ażżabīn(a).
[59]
सिवाय अपनी प्रथम मौत के, और न हम कभी यातना दिए जाने वाले हैं।
اِنَّ هٰذَا لَهُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيْمُ٦٠
Inna hāżā lahuwal-fauzul-‘aẓīm(u).
[60]
निश्चय यही तो बहुत बड़ी सफलता है।
لِمِثْلِ هٰذَا فَلْيَعْمَلِ الْعٰمِلُوْنَ٦١
Limiṡli hāżā falya‘malil-‘āmilūn(a).
[61]
इसी (जैसी सफलता) के लिए कर्म करने वालों को कर्म करना चाहिए।
اَذٰلِكَ خَيْرٌ نُّزُلًا اَمْ شَجَرَةُ الزَّقُّوْمِ٦٢
Ażālika khairun nuzulan am syajaratuz-zaqqūm(i).
[62]
क्या यह आतिथ्य उत्तम है या थोहड़ का वृक्ष?
اِنَّا جَعَلْنٰهَا فِتْنَةً لِّلظّٰلِمِيْنَ٦٣
Innā ja‘alnāhā fitnatal liẓ-ẓālimīn(a).
[63]
निःसंदेह हमने उसे अत्याचारियों के लिए एक परीक्षा बनाया है।
اِنَّهَا شَجَرَةٌ تَخْرُجُ فِيْٓ اَصْلِ الْجَحِيْمِۙ٦٤
Innahā syajaratun takhruju fī aṣlil-jaḥīm(i).
[64]
निःसंदेह वह ऐसा वृक्ष है, जो जहन्नम के तल में उगता है।
طَلْعُهَا كَاَنَّهٗ رُءُوْسُ الشَّيٰطِيْنِ٦٥
Ṭal‘uhā ka'annahū ru'ūsusy-syayāṭīn(i).
[65]
उसके गुच्छे ऐसे हैं मानो वे शैतानों के सिर हों।
فَاِنَّهُمْ لَاٰكِلُوْنَ مِنْهَا فَمَالِـُٔوْنَ مِنْهَا الْبُطُوْنَۗ٦٦
Fa innahum la'ākilūna minhā fa māli'ūna minhal-buṭūn(a).
[66]
तो वे (जहन्नमवासी) निश्चय उसमें से खाने वाले हैं। फिर उससे पेट भरने वाले हैं।
ثُمَّ اِنَّ لَهُمْ عَلَيْهَا لَشَوْبًا مِّنْ حَمِيْمٍۚ٦٧
Ṡumma inna lahum ‘alaihā lasyaubam min ḥamīm(in).
[67]
फिर निःसंदेह उनके लिए उसपर खौलते हुए पानी का मिश्रण है।
ثُمَّ اِنَّ مَرْجِعَهُمْ لَاِلَى الْجَحِيْمِ٦٨
Ṡumma inna marji‘ahum la'ilal-jaḥīm(i).
[68]
फिर निःसंदेह उनकी वापसी निश्चय उसी भड़कती हुई आग की ओर होगी।
اِنَّهُمْ اَلْفَوْا اٰبَاۤءَهُمْ ضَاۤلِّيْنَۙ٦٩
Innahum alfau ābā'ahum ḍāllīn(a).
[69]
निःसंदेह उन्होंने अपने बाप-दादा को गुमराह पाया।
فَهُمْ عَلٰٓى اٰثٰرِهِمْ يُهْرَعُوْنَ٧٠
Fahum ‘alā āṡārihim yuhra‘ūn(a).
[70]
तो वे उन्हीं के पदचिह्नों पर दौड़े चले जा रहे हैं।11
11. इसमें नरक में जाने का जो सबसे बड़ा कारण बताया गया है, वह है नबी को न मानना और अपने पूर्वजों के पंथ पर ही चलते रहना।
وَلَقَدْ ضَلَّ قَبْلَهُمْ اَكْثَرُ الْاَوَّلِيْنَۙ٧١
Wa laqad ḍalla qablahum akṡarul-awwalīn(a).
[71]
और निःसंदेह इनसे पहले अगले लोगों में से अधिकतर लोग गुमराह हो चुके हैं।
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا فِيْهِمْ مُّنْذِرِيْنَ٧٢
Wa laqad arsalnā fīhim munżirīn(a).
[72]
तथा निःसंदेह हमने उनके अंदर कई डराने वाले भेजे।
فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُنْذَرِيْنَۙ٧٣
Fanẓur kaifa kāna ‘āqibatul-munżarīn(a).
[73]
तो देखो कि उन डराए जाने वालों का परिणाम12 कैसा हुआ?
12. अतः उनके दुष्परिणाम से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए।
اِلَّا عِبَادَ اللّٰهِ الْمُخْلَصِيْنَ ࣖ٧٤
Illā ‘ibādallāhil-mukhlaṣīn(a).
[74]
सिवाय अल्लाह के ख़ालिस किए हुए बंदों के।
وَلَقَدْ نَادٰىنَا نُوْحٌ فَلَنِعْمَ الْمُجِيْبُوْنَۖ٧٥
Wa laqad nādānā nūḥun falani‘mal-mujībūn(a).
[75]
तथा निःसंदेह नूह ने हमें पुकारा, तो निश्चय हम अच्छे स्वीकार करने वाले हैं।
وَنَجَّيْنٰهُ وَاَهْلَهٗ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيْمِۖ٧٦
Wa najjaināhu wa ahlahū minal-karbil-‘aẓīm(i).
[76]
और हमने उसे और उसके घर वालों को बहुत बड़ी आपदा से बचा लिया।
وَجَعَلْنَا ذُرِّيَّتَهٗ هُمُ الْبَاقِيْنَ٧٧
Wa ja‘alnā żurriyyatahū humul-bāqīn(a).
[77]
तथा हमने उसकी संतति ही को बाक़ी रहने वाला13 बना दिया।
13. उसकी जाति के जलमग्न हो जाने के पश्चात्।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِى الْاٰخِرِيْنَ ۖ٧٨
Wa taraknā ‘alaihi fil-ākhirīn(a).
[78]
और हमने पीछे आने वालों में उसके लिए (अच्छा स्मरण) बाक़ी रखा।
سَلٰمٌ عَلٰى نُوْحٍ فِى الْعٰلَمِيْنَ٧٩
Salāmun ‘alā nūḥin fil-‘ālamīn(a).
[79]
सर्व संसार में नूह़ पर सलाम14 हो।
14. अर्थात उसकी बुरी चर्चा से सुरक्षा।
اِنَّا كَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُحْسِنِيْنَ٨٠
Innā każālika najzil-muḥsinīn(a).
[80]
निःसंदेह हम सदाचारियों को इसी तरह बदला देते हैं।
اِنَّهٗ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِيْنَ٨١
Innahū min ‘ibādinal-mu'minīn(a).
[81]
निश्चय वह हमारे ईमान वाले बंदों में से था।
ثُمَّ اَغْرَقْنَا الْاٰخَرِيْنَ٨٢
Ṡumma agraqnal-ākharīn(a).
[82]
फिर हमने दूसरों को डुबो दिया।
۞ وَاِنَّ مِنْ شِيْعَتِهٖ لَاِبْرٰهِيْمَ ۘ٨٣
Wa inna min syī‘atihī la'ibrāhīm(a).
[83]
और निःसंदेह उसी के तरीक़े पर चलने वालों में से निश्चय इबराहीम (भी) थे।
اِذْ جَاۤءَ رَبَّهٗ بِقَلْبٍ سَلِيْمٍۙ٨٤
Iż jā'a rabbahū biqalbin salīm(in).
[84]
(उस समय को याद करें) जब वह अपने पालनहार के पास शुद्ध दिल लेकर आए।
اِذْ قَالَ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖ مَاذَا تَعْبُدُوْنَ ۚ٨٥
Iż qāla li'abīhi wa qaumihī māżā ta‘budūn(a).
[85]
जब उसने अपने बाप तथा अपनी जाति से कहा : तुम किस चीज़ की इबादत करते हो?
اَىِٕفْكًا اٰلِهَةً دُوْنَ اللّٰهِ تُرِيْدُوْنَۗ٨٦
A'ifkan ālihatan dūnallāhi turīdūn(a).
[86]
क्या अल्लाह को छोड़कर अपने गढ़े हुए पूज्यों को चाहते हो?
فَمَا ظَنُّكُمْ بِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَ٨٧
Famā ẓannukum birabbil-‘ālamīn(a).
[87]
तो सर्व संसार के पालनहार के विषय में तुम्हारा क्या गुमान है?
فَنَظَرَ نَظْرَةً فِى النُّجُوْمِۙ٨٨
Fa naẓara naẓratan fin-nujūm(i).
[88]
फिर उसने एक दृष्टि तारों पर डाली।15
15. यह सोचते हुए कि इनके उत्सव में न जाने के लिए क्या बहाना करूँ।
فَقَالَ اِنِّيْ سَقِيْمٌ٨٩
Fa qāla innī saqīm(un).
[89]
फिर कहा : मैं तो बीमार हूँ।
فَتَوَلَّوْا عَنْهُ مُدْبِرِيْنَ٩٠
Fa tawallau ‘anhu mudbirīn(a).
[90]
तो वे उससे पीठ फेरकर वापस चले गए।
فَرَاغَ اِلٰٓى اٰلِهَتِهِمْ فَقَالَ اَلَا تَأْكُلُوْنَۚ٩١
Farāga ilā ālihatihim faqāla alā ta'kulūn(a).
[91]
फिर वह चुपके से उनके पूज्यों की ओर गया और कहा : क्या तुम खाते नहीं?
مَا لَكُمْ لَا تَنْطِقُوْنَ٩٢
Mā lakum lā tanṭiqūn(a).
[92]
तुम्हें क्या हुआ कि तुम बोलते नहीं?
فَرَاغَ عَلَيْهِمْ ضَرْبًا ۢبِالْيَمِيْنِ٩٣
Farāga ‘alaihim ḍarbam bil-yamīn(i).
[93]
फिर वह दाएँ हाथ से मारते हुए उनपर पिल पड़ा।
فَاَقْبَلُوْٓا اِلَيْهِ يَزِفُّوْنَ٩٤
Fa aqbalū ilaihi yaziffūn(a).
[94]
फिर वे दौड़ते हुए उसकी ओर आए।
قَالَ اَتَعْبُدُوْنَ مَا تَنْحِتُوْنَۙ٩٥
Qāla ata‘budūna mā tanḥitūn(a).
[95]
उसने कहा : क्या तुम उसकी इबादत करते हो, जिसे ख़ुद तराशते हो?
وَاللّٰهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُوْنَ٩٦
Wallāhu khalaqakum wa mā ta‘malūn(a).
[96]
हालाँकि अल्लाह ही ने तुम्हें पैदा किया तथा उसे भी जो तुम करते हो।
قَالُوا ابْنُوْا لَهٗ بُنْيَانًا فَاَلْقُوْهُ فِى الْجَحِيْمِ٩٧
Qālubnū lahū bun-yānan fa'alqūhu fil-jaḥīm(i).
[97]
उन्होंने कहा : इसके लिए एक इमारत (अग्नि-कुंड) बनाओ, फिर इसे भड़कती आग में फेंक दो।
فَاَرَادُوْا بِهٖ كَيْدًا فَجَعَلْنٰهُمُ الْاَسْفَلِيْنَ٩٨
Fa arādū bihī kaidan faja‘alnāhumul-asfalīn(a).
[98]
अतः उन्होंने उसके साथ एक चाल चलनी चाही, तो हमने उन्हीं को सबसे नीचा कर दिया।
وَقَالَ اِنِّيْ ذَاهِبٌ اِلٰى رَبِّيْ سَيَهْدِيْنِ٩٩
Wa qāla innī żāhibun ilā rabbī sayahdīn(i).
[99]
तथा उसने कहा : निःसंदेह मैं अपने पालनहार की ओर16 जाने वाला हूँ। वह मुझे अवश्य सीधा रास्ता दिखाएगा।
16. अर्थात ऐसे स्थान की ओर जहाँ अपने पालनहार की इबादत कर सकूँ।
رَبِّ هَبْ لِيْ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ١٠٠
Rabbi hab lī minaṣ-ṣāliḥīn(a).
[100]
ऐ मेरे पालनहार! मुझे एक सदाचारी पुत्र प्रदान कर।
فَبَشَّرْنٰهُ بِغُلٰمٍ حَلِيْمٍ١٠١
Fa basysyarnāhu bigulāmin ḥalīm(in).
[101]
तो हमने उसे एक सहनशील पुत्र की शुभ सूचना दी।
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ السَّعْيَ قَالَ يٰبُنَيَّ اِنِّيْٓ اَرٰى فِى الْمَنَامِ اَنِّيْٓ اَذْبَحُكَ فَانْظُرْ مَاذَا تَرٰىۗ قَالَ يٰٓاَبَتِ افْعَلْ مَا تُؤْمَرُۖ سَتَجِدُنِيْٓ اِنْ شَاۤءَ اللّٰهُ مِنَ الصّٰبِرِيْنَ١٠٢
Falammā balaga ma‘ahus-sa‘ya qāla yā bunayya innī arā fil-manāmi annī ażbaḥuka fanẓur māżā tarā, qāla yā abatif‘al mā tu'mar(u), satajidunī in syā'allāhu minaṣ-ṣābirīn(a).
[102]
फिर जब वह उसके साथ दौड़-धूप की आयु को पहुँचा, तो उसने कहा : ऐ मेरे प्रिय बेटे! निःसंदेह मैं स्वप्न में देखता हूँ कि मैं तुझे ज़बह कर रहा हूँ। तो अब देख, तेरा क्या विचार है? उसने कहा : ऐ मेरे पिता! आपको जो आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए। अगर अल्लाह ने चाहा, तो आप अवश्य मुझे धैर्यवानों में से पाएँगे।
فَلَمَّآ اَسْلَمَا وَتَلَّهٗ لِلْجَبِيْنِۚ١٠٣
Falammā aslamā wa tallahū lil-jabīn(i).
[103]
अंततः जब दोनों (अल्लाह के आदेश के प्रति) समर्पित हो गए, और उसने उसे पेशानी के एक किनारे पर गिरा दिया।
وَنَادَيْنٰهُ اَنْ يّٰٓاِبْرٰهِيْمُ ۙ١٠٤
Wa nādaināhu ay yā ibrāhīm(u).
[104]
और हमने उसे आवाज़ दी कि ऐ इबराहीम!
قَدْ صَدَّقْتَ الرُّءْيَا ۚاِنَّا كَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُحْسِنِيْنَ١٠٥
Qad ṣaddaqtar-ru'yā, innā każālika najzil-muḥsinīn(a).
[105]
निश्चय तूने स्वप्न को सच कर दिखाया। हम सदाचारियों को इसी तरह बदला प्रदान करते हैं।
اِنَّ هٰذَا لَهُوَ الْبَلٰۤؤُا الْمُبِيْنُ١٠٦
Inna hāżā lahuwal-balā'ul-mubīn(u).
[106]
निःसंदेह यही तो निश्चय खुला परीक्षण है।
وَفَدَيْنٰهُ بِذِبْحٍ عَظِيْمٍ١٠٧
Wa fadaināhu biżibḥin ‘aẓīm(in).
[107]
और हमने उसके फ़िदया (छुड़ौती) में एक बहुत बड़ा ज़बीहा17 दिया।
17. यह महान ज़बीहा एक मेंढा था। जिसे जिबरील (अलैहिस्सलाम) द्वारा स्वर्ग से भेजा गया। जो आपके प्रिय पुत्र इसमाईल (अलैहिस्सलाम) के स्थान पर ज़बह किया गया। फिर इस विधि को प्रलय तक के लिए अल्लाह के सामीप्य का एक साधन तथा ईदुल अज़हा (बक़रईद) का प्रियवर कर्म बना दिया गया। जिसे संसार के सभी मुसलमान ईदुल अज़हा में करते हैं।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِى الْاٰخِرِيْنَ ۖ١٠٨
Wa taraknā ‘alaihi fil-ākhirīn(a).
[108]
और हमने पीछे आने वालों में उसके लिए (अच्छा स्मरण) बाक़ी रखा।
سَلٰمٌ عَلٰٓى اِبْرٰهِيْمَ١٠٩
Salāmun ‘alā ibrāhīm(a).
[109]
सलाम हो इबराहीम पर।
كَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُحْسِنِيْنَ١١٠
Każālika najzil-muḥsinīn(a).
[110]
हम इसी तरह सदाचारियों को बदला प्रदान करते हैं।
اِنَّهٗ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِيْنَ١١١
Innahū min ‘ibādinal-mu'minīn(a).
[111]
निश्चय वह हमारे ईमान वाले बंदों में से था।
وَبَشَّرْنٰهُ بِاِسْحٰقَ نَبِيًّا مِّنَ الصّٰلِحِيْنَ١١٢
Wa basysyarnāhu bi'isḥāqa nabiyyam minaṣ-ṣāliḥīn(a).
[112]
तथा हमने उसे इसहाक़ की शुभ सूचना दी, जो नबी होगा, सदाचारियों में से (होगा)।18
18. इस आयत से विदित होता है कि इबराहीम (अलैहिस्सलाम) को इस बलि के पश्चात् दूसरे पुत्र आदरणीय इसहाक़ की शुभ सूचना दी गई। इससे ज्ञात हुआ की बलि इसमाईल (अलैहिस्सलाम) की दी गई थी। और दोनों की आयु में लग-भग चौदह वर्ष का अंतर है।
وَبٰرَكْنَا عَلَيْهِ وَعَلٰٓى اِسْحٰقَۗ وَمِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا مُحْسِنٌ وَّظَالِمٌ لِّنَفْسِهٖ مُبِيْنٌ ࣖ١١٣
Wa bāraknā ‘alaihi wa ‘alā isḥāq(a), wa min żurriyyatihimā muḥsinuw wa ẓālimul linafsihī mubīn(un).
[113]
तथा हमने उसपर और इसहाक़ पर बरकत उतारी। और उन दोनों की संतति में से कोई सदाचारी है और कोई अपने आप पर खुला अत्याचार करने वाला है।
وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلٰى مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ ۚ١١٤
Wa laqad manannā ‘alā mūsā wa hārūn(a).
[114]
तथा निःसंदेह हमने मूसा और हारून पर उपकार किया।
وَنَجَّيْنٰهُمَا وَقَوْمَهُمَا مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيْمِۚ١١٥
Wa najjaināhumā wa qaumahumā minal-karbil-‘aẓīm(i).
[115]
और हमने उन दोनों को और उन दोनों की जाति को बहुत बड़ी विपत्ति से छुटकारा दिया।
وَنَصَرْنٰهُمْ فَكَانُوْا هُمُ الْغٰلِبِيْنَۚ١١٦
Wa naṣarnāhum fakānū humul-gālibīn(a).
[116]
तथा हमने उनकी सहायता की, तो वही प्रभुत्वशाली रहे।
وَاٰتَيْنٰهُمَا الْكِتٰبَ الْمُسْتَبِيْنَ ۚ١١٧
Wa ātaināhumal-kitābal-mustabīn(a).
[117]
तथा हमने उन दोनों को अत्यंत स्पष्ट पुस्तक (तौरात) प्रदान की।
وَهَدَيْنٰهُمَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيْمَۚ١١٨
Wa hadaināhumaṣ-ṣirāṭal-mustaqīm(a).
[118]
और हमने उन दोनों को सीधे मार्ग पर चलाया।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِمَا فِى الْاٰخِرِيْنَ ۖ١١٩
Wa taraknā ‘alaihimā fil-ākhirīn(a).
[119]
और हमने पीछे आने वालों में उन दोनों का अच्छा स्मरण छोड़ा।
سَلٰمٌ عَلٰى مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ١٢٠
Salāmun ‘alā mūsā wa hārūn(a).
[120]
सलाम हो मूसा और हारून पर।
اِنَّا كَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُحْسِنِيْنَ١٢١
Innā każālika najzil-muḥsinīn(a).
[121]
निःसंदेह हम सदाचारियों को इसी तरह बदला देते हैं।
اِنَّهُمَا مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِيْنَ١٢٢
Innahumā min ‘ibādinal-mu'minīn(a).
[122]
निःसंदेह वे दोनों हमारे ईमान वाले बंदों में से थे।
وَاِنَّ اِلْيَاسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِيْنَۗ١٢٣
Wa inna ilyāsa laminal-mursalīn(a).
[123]
तथा निःसंदेह इलयास निश्चय नबियों में से थे।
اِذْ قَالَ لِقَوْمِهٖٓ اَلَا تَتَّقُوْنَ١٢٤
Iż qāla liqaumihī alā tattaqūn(a).
[124]
जब उसने अपनी जाति से कहा : क्या तुम डरते नहीं?
اَتَدْعُوْنَ بَعْلًا وَّتَذَرُوْنَ اَحْسَنَ الْخٰلِقِيْنَۙ١٢٥
Atad‘ūna ba‘law wa tażarūna aḥsanal-khāliqīn(a).
[125]
क्या तुम 'बअ्ल' (नामक मूर्ति) को पुकारते हो? तथा पैदा करने वालों में सबस बेहतर को छोड़ देते हो?
اللّٰهَ رَبَّكُمْ وَرَبَّ اٰبَاۤىِٕكُمُ الْاَوَّلِيْنَ١٢٦
Allāha rabbakum wa rabba ābā'ikumul-awwalīn(a).
[126]
अल्लाह को, जो तुम्हारा पालनहार है तथा तुम्हारे पहले बाप-दादा का पालनहार है।
فَكَذَّبُوْهُ فَاِنَّهُمْ لَمُحْضَرُوْنَۙ١٢٧
Fakażżabūhu fa'innahum lamuḥḍarūn(a).
[127]
किंतु उन्होंने उसे झुठला दिया। तो निश्चय वे अवश्य हाज़िर किए जाने वाले हैं।
اِلَّا عِبَادَ اللّٰهِ الْمُخْلَصِيْنَ١٢٨
Illā ‘ibādallāhil-mukhlaṣīn(a).
[128]
सिवाय अल्लाह के ख़ालिस किए हुए बंदों के।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِى الْاٰخِرِيْنَ ۙ١٢٩
Wa taraknā ‘alaihi fil-ākhirīn(a).
[129]
और हमने पीछे आने वालों में उसके लिए (अच्छा स्मरण) बाक़ी रखा।
سَلٰمٌ عَلٰٓى اِلْ يَاسِيْنَ١٣٠
Salāmun ‘alā ilyāsīn(a).
[130]
सलाम हो इल्यासीन19 पर।
19. इल्यासीन इलयास ही का एक उच्चारण है। उन्हें अन्य धर्म ग्रंथों में इलया भी कहा गया है।
اِنَّا كَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُحْسِنِيْنَ١٣١
Innā każālika najzil-muḥsinīn(a).
[131]
निःसंदेह हम सदाचारियों को इसी तरह बदला देते हैं।
اِنَّهٗ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِيْنَ١٣٢
Innahū min ‘ibādinal-mu'minīn(a).
[132]
निश्चय वह हमारे ईमान वाले बंदों में से था।
وَاِنَّ لُوْطًا لَّمِنَ الْمُرْسَلِيْنَۗ١٣٣
Wa inna lūṭal laminal-mursalīn(a).
[133]
और निःसंदेह लूत निश्चय रसूलों में से था।
اِذْ نَجَّيْنٰهُ وَاَهْلَهٗٓ اَجْمَعِيْنَۙ١٣٤
Iż najjaināhu wa ahlahū ajma‘īn(a).
[134]
जब हमने उसे तथा उसके सब घर वालों को बचाया।
اِلَّا عَجُوْزًا فِى الْغٰبِرِيْنَ١٣٥
Illā ‘ajūzan fil-gābirīn(a).
[135]
सिवाय एक बुढ़िया20 के, जो पीछे रह जाने वालों में से थी।
20. यह लूत (अलैहिस्सलाम) की काफ़िर पत्नी थी।
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْاٰخَرِيْنَ١٣٦
Ṡumma dammarnal-ākharīn(a).
[136]
फिर हमने दूसरों का विनाश कर दिया।
وَاِنَّكُمْ لَتَمُرُّوْنَ عَلَيْهِمْ مُّصْبِحِيْنَۙ١٣٧
Wa innakum latamurrūna ‘alaihim muṣbiḥīn(a).
[137]
तथा निःसंदेह तुम21 निश्चय सुबह के समय जाते हुए उनपर से गुज़रते हो।
21. मक्का वासियों को संबोधित किया गया है।
وَبِالَّيْلِۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ࣖ١٣٨
Wa bil-lail(i), afalā ta‘qilūn(a).
[138]
तथा रात के समय भी। तो क्या तुम समझते नहीं?
وَاِنَّ يُوْنُسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِيْنَۗ١٣٩
Wa inna yūnusa laminal-mursalīn(a).
[139]
तथा निःसंदेह यूनुस निश्चय रसूलों में से था।
اِذْ اَبَقَ اِلَى الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِۙ١٤٠
Iż abaqa ilal-fulkil-masyḥūn(i).
[140]
जब वह भरी नाव की ओर भागकर गया।22
22. अल्लाह की अनुमति के बिना अपने नगर से नगर वासियों को यातना के आने की सूचना देकर निकल गए। और नाव पर सवार हो गए। नाव सागर की लहरों में घिर गई। इसलिए बोझ कम करने के लिए नाम निकाला गया, तो यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम निकला और उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया।
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ الْمُدْحَضِيْنَۚ١٤١
Fa sāhama fakāna minal-mudḥaḍīn(a).
[141]
फिर वह क़ुर'आ में शामिल हुआ, तो हारने वालों में से हो गया।
فَالْتَقَمَهُ الْحُوْتُ وَهُوَ مُلِيْمٌ١٤٢
Faltaqamahul-ḥūtu wa huwa mulīm(un).
[142]
फिर मछली ने उसे निगल लिया, इस हाल में कि वह निंदनीय था।
فَلَوْلَآ اَنَّهٗ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِيْنَ ۙ١٤٣
Falau lā annahū kāna minal-musabbiḥīn(a).
[143]
फिर अगर यह बात न होती कि वह अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करने वालों में से था।
لَلَبِثَ فِيْ بَطْنِهٖٓ اِلٰى يَوْمِ يُبْعَثُوْنَۚ١٤٤
Lalabiṡa fī baṭnihī ilā yaumi yub‘aṡūn(a).
[144]
तो निश्चय वह उसके पेट में उस दिन तक रहता, जिसमें लोग उठाए जाएँगे।23
23. अर्थात प्रयल के दिन तक। (देखिए : सूरतुल-अंबिया, आयत : 87)
۞ فَنَبَذْنٰهُ بِالْعَرَاۤءِ وَهُوَ سَقِيْمٌ ۚ١٤٥
Fa nabażnāhu bil-‘arā'i wa huwa saqīm(un).
[145]
फिर हमने उसे चटियल मैदान में फेंक दिया, इस हाल में कि वह बीमार24 था।
24. अर्थात निर्बल नवजात शिशु के समान।
وَاَنْۢبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِّنْ يَّقْطِيْنٍۚ١٤٦
Wa ambatnā ‘alaihi syajaratam miy yaqṭīn(in).
[146]
तथा हमने उसपर एक लता वाला वृक्ष उगा दिया।25
25. रक्षा के लिए।
وَاَرْسَلْنٰهُ اِلٰى مِائَةِ اَلْفٍ اَوْ يَزِيْدُوْنَۚ١٤٧
Wa arsalnāhu ilā mi'ati alfin au yazīdūn(a).
[147]
तथा हमने उसे एक लाख की ओर भेजा, बल्कि वे अधिक होंगे।
فَاٰمَنُوْا فَمَتَّعْنٰهُمْ اِلٰى حِيْنٍ١٤٨
Fa'āmanū famatta‘nāhum ilā ḥīn(in).
[148]
चुनाँचे वे ईमान ले आए, तो हमने उन्हें एक समय तक लाभ उठाने दिया।26
26. देखिए : सूरत यूनुस।
فَاسْتَفْتِهِمْ اَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُوْنَۚ١٤٩
Fastaftihim alirabbikal-banātu wa lahumul-banūn(a).
[149]
तो (ऐ नबी!) आप उनसे पूछें कि क्या आपके पालनहार के लिए बेटियाँ हैं और उनके लिए बेटे?
اَمْ خَلَقْنَا الْمَلٰۤىِٕكَةَ اِنَاثًا وَّهُمْ شٰهِدُوْنَ١٥٠
Am khalaqnal-malā'ikata ināṡaw wa hum syāhidūn(a).
[150]
या हमने फ़रिश्तों को मादा पैदा किया, जबकि वे उस समय उपस्थित27 थे?
27. इसमें मक्का के मिश्रणवादियों का खंडन किया जा रहा है, जो फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते थे। जबकि वे स्वयं पुत्रियों के जन्म को अप्रिय मानते थे।
اَلَآ اِنَّهُمْ مِّنْ اِفْكِهِمْ لَيَقُوْلُوْنَۙ١٥١
Alā innahum min ifkihim layaqūlūn(a).
[151]
सुन लो! निःसंदेह वे निश्चय अपने झूठ ही से कहते हैं।
وَلَدَ اللّٰهُ ۙوَاِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَۙ١٥٢
Waladallāh(u), wa innahum lakāżibūn(a).
[152]
कि अल्लाह ने संतान बनाया है। और निःसंदेह वे निश्चय झूठे हैं।
اَصْطَفَى الْبَنَاتِ عَلَى الْبَنِيْنَۗ١٥٣
Aṣṭafal-banāti ‘alal-banīn(a).
[153]
क्या उसने पुत्रियों को पुत्रों पर प्राथमिकता दी?
مَا لَكُمْۗ كَيْفَ تَحْكُمُوْنَ١٥٤
Mā lakum, kaifa taḥkumūn(a).
[154]
तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसा फ़ैसला कर रहे हो?
اَفَلَا تَذَكَّرُوْنَۚ١٥٥
Afalā tażakkarūn(a).
[155]
तो क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?
اَمْ لَكُمْ سُلْطٰنٌ مُّبِيْنٌۙ١٥٦
Am lakum sulṭānum mubīn(un).
[156]
या तुम्हारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण है?
فَأْتُوْا بِكِتٰبِكُمْ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ١٥٧
Fa'tū bikitābikum in kuntum ṣādiqīn(a).
[157]
तो लाओ अपनी किताब, यदि तुम सच्चे हो?
وَجَعَلُوْا بَيْنَهٗ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا ۗوَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ اِنَّهُمْ لَمُحْضَرُوْنَۙ١٥٨
Wa ja‘alū bainahū wa bainal-jinnati nasabā(n), wa laqad ‘alimatil-jinnatu innahum lamuḥḍarūn(a).
[158]
और उन्होंने अल्लाह तथा जिन्नों के बीच रिश्तेदारी बना दी। हालाँकि निःसंदेह जिन्न जान चुके हैं कि निःसंदेह वे (मुश्रिक) अवश्य उपस्थित किए जाने वाले हैं।28
28. अर्थात यातना के लिए। तो यदि वे उसके संबंधी होते, तो उन्हें यातना क्यों देता?
سُبْحٰنَ اللّٰهِ عَمَّا يَصِفُوْنَۙ١٥٩
Subḥānallāhi ‘ammā yaṣifūn(a).
[159]
अल्लाह उन बातों से पवित्र है, जो वे वर्णन करते हैं।
اِلَّا عِبَادَ اللّٰهِ الْمُخْلَصِيْنَ١٦٠
Illā ‘ibādallāhil-mukhlaṣīn(a).
[160]
सिवाय अल्लाह के ख़ालिस किए हुए बंदों के।29
29. वे अल्लाह को ऐसे दुर्गुणों से युक्त नहीं करते।
فَاِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُوْنَۙ١٦١
Fa'innakum wa mā ta‘budūn(a).
[161]
अतः निःसंदेह तुम तथा जिनकी तुम पूजा करते हो।
مَآ اَنْتُمْ عَلَيْهِ بِفٰتِنِيْنَۙ١٦٢
Mā antum ‘alaihi bifātinīn(a).
[162]
तुम उसके विरुद्ध (किसी को) बहकाने वाले नहीं।
اِلَّا مَنْ هُوَ صَالِ الْجَحِيْمِ١٦٣
Illā man huwa ṣālil-jaḥīm(i).
[163]
परंतु उसको, जो भड़कती आग में प्रवेश करने वाला है।
وَمَا مِنَّآ اِلَّا لَهٗ مَقَامٌ مَّعْلُوْمٌۙ١٦٤
Wa mā minnā illā lahū maqāmum ma‘lūm(un).
[164]
और हम (फ़रिश्तों) में से जो भी है उसका एक नियत स्थान है।
وَّاِنَّا لَنَحْنُ الصَّۤافُّوْنَۖ١٦٥
Wa innā lanaḥnuṣ-ṣāffūn(a).
[165]
तथा निःसंदेह हम निश्चय पंक्तिबद्ध रहने वाले हैं।
وَاِنَّا لَنَحْنُ الْمُسَبِّحُوْنَ١٦٦
Wa innā lanaḥnul-musabbiḥūn(a).
[166]
तथा निःसंदेह हम निश्चय तस्बीह़ (पवित्रता गान) करने वाले हैं।
وَاِنْ كَانُوْا لَيَقُوْلُوْنَۙ١٦٧
Wa in kānū layaqūlūn(a).
[167]
तथा निःसंदेह वे (मुश्रिक) तो कहा करते थे
لَوْ اَنَّ عِنْدَنَا ذِكْرًا مِّنَ الْاَوَّلِيْنَۙ١٦٨
Lau anna ‘indanā żikram minal-awwalīn(a).
[168]
यदि हमारे पास पहले लोगों की कोई शिक्षा (किताब) होती,
لَكُنَّا عِبَادَ اللّٰهِ الْمُخْلَصِيْنَ١٦٩
Lakunnā ‘ibādallāhil-mukhlaṣīn(a).
[169]
तो हम अवश्य अल्लाह के ख़ालिस (चुने हुए) बंदे होते।
فَكَفَرُوْا بِهٖۚ فَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَ١٧٠
Fa kafarū bih(ī), fasaufa ya‘lamūn(a).
[170]
(फिर जब किताब आ गई) तो उन्होंने उसका इनकार कर दिया। अतः जल्द ही उन्हें पता चल जाएगा।
وَلَقَدْ سَبَقَتْ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا الْمُرْسَلِيْنَ ۖ١٧١
Wa laqad sabaqat kalimatunā li‘ibādinal-mursalīn(a).
[171]
और निःसंदेह हमारे भेजे हुए बंदों के लिए हमारी बात पहले ही निश्चित हो चुकी
اِنَّهُمْ لَهُمُ الْمَنْصُوْرُوْنَۖ١٧٢
Innahum lahumul-manṣūrūn(a).
[172]
कि निःसंदेह वही हैं, जिनकी सहायता की जाएगी।
وَاِنَّ جُنْدَنَا لَهُمُ الْغٰلِبُوْنَ١٧٣
Wa inna jundanā lahumul-gālibūn(a).
[173]
तथा निःसंदेह हमारी सेना ही निश्चय प्रभुत्वशाली रहेगी।
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتّٰى حِيْنٍۙ١٧٤
Fatawalla ‘anhum ḥattā ḥīn(in).
[174]
तो आप कुछ समय तक के लिए उनसे मुँह फेर लें।
وَّاَبْصِرْهُمْۗ فَسَوْفَ يُبْصِرُوْنَ١٧٥
Wa abṣirhum, fa saufa yubṣirūn(a).
[175]
तथा उन्हें देखते रहें। वे भी शीघ्र ही देख लेंगे।
اَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُوْنَ١٧٦
Afabi‘ażābinā yasta‘jilūn(a).
[176]
तो क्या वे हमारी यातना की शीघ्र माँग कर रहे हैं?
فَاِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمْ فَسَاۤءَ صَبَاحُ الْمُنْذَرِيْنَ١٧٧
Fa iżā nazala bisāḥatihim fa sā'a ṣabāḥul-munżarīn(a).
[177]
फिर जब वह उनके आँगन में उतरेगी, तो डराए गए लोगों की सुबह बहुत बुरी होगी।
وَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتّٰى حِيْنٍۙ١٧٨
Wa tawalla ‘anhum ḥattā ḥīn(in).
[178]
َऔर आप कुछ समय तक के लिए उनसे मुँह फेर लें।
وَّاَبْصِرْۗ فَسَوْفَ يُبْصِرُوْنَ١٧٩
Wa abṣir, fasaufa yubṣirūn(a).
[179]
तथा देखते रहें। जल्द ही वे भी देख लेंगे।
سُبْحٰنَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُوْنَۚ١٨٠
Subḥāna rabbika rabbil-‘izzati ‘ammā yaṣifūn(a).
[180]
पवित्र है आपका पालनहार, पराक्रम व शक्ति का स्वामी!, उस बात से, जो वे बयान करते हैं।
وَسَلٰمٌ عَلَى الْمُرْسَلِيْنَۚ١٨١
Wa salāmun ‘alal-mursalīn(a).
[181]
तथा सलाम हो रसूलों पर।
وَالْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ࣖ١٨٢
Wal-ḥamdu lillāhi rabbil-‘ālamīn(a).
[182]
और हर प्रकार की प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सर्व संसार का पालनहार है।