Surah Fatir
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ فَاطِرِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ جَاعِلِ الْمَلٰۤىِٕكَةِ رُسُلًاۙ اُولِيْٓ اَجْنِحَةٍ مَّثْنٰى وَثُلٰثَ وَرُبٰعَۗ يَزِيْدُ فِى الْخَلْقِ مَا يَشَاۤءُۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ١
Al-ḥamdu lillāhi fāṭiris-samāwāti wal-arḍi jā‘ilil-malāikati rusulā(n), ulī ajniḥatim maṡnā wa ṡulāṡa wa rubā‘(a), yazīdu fil-khalqi mā yasyā'(u), innallāha ‘alā kulli syai'in qadīr(un).
[1]
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो आकाशों तथा धरती का पैदा करने वाला है, (और) दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले फ़रिश्तों को संदेशवाहक बनाने वाला1 है। वह संरचना में जैसी चाहता है अभिवृद्धि करता है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ का सामर्थ्य रखता है।
1. अर्थात फ़रिश्तों के द्वारा नबियों तक अपनी प्रकाशना तथा संदेश पहुँचाता है।
مَا يَفْتَحِ اللّٰهُ لِلنَّاسِ مِنْ رَّحْمَةٍ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۚوَمَا يُمْسِكْۙ فَلَا مُرْسِلَ لَهٗ مِنْۢ بَعْدِهٖۗ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ٢
Mā yaftaḥillāhu lin-nāsi mir raḥmatin falā mumsika lahā, wa mā yumsik falā mursila lahū mim ba‘dih(ī), wa huwal-‘azīzul-ḥakīm(u).
[2]
अल्लाह लोगों के लिए जो दया2 खोल दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं। तथा जिसे रोक ले, तो उसके बाद, उसे कोई भेजने (खोलने) वाला नहीं। तथा वही सब पर प्रभुत्ववशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
2. अर्थात स्वास्थ्य, धन, ज्ञान आदि प्रदान करे।
يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ عَلَيْكُمْۗ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللّٰهِ يَرْزُقُكُمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِۗ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۖ فَاَنّٰى تُؤْفَكُوْنَ٣
Yā ayyuhan-nāsużkurū ni‘matallāhi ‘alaikum, hal min khāliqin gairullāhi yarzuqukum minas-samā'i wal-arḍ(i), lā ilāha illā huw(a), fa'annā tu'fakūn(a).
[3]
ऐ लोगो! अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और उत्पत्तिकर्ता है, जो तुम्हें आकाश तथा धरती से जीविका प्रदान करे? उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं। फिर तुम कहाँ बहकाए जाते हो?
وَاِنْ يُّكَذِّبُوْكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّنْ قَبْلِكَۗ وَاِلَى اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ٤
Wa iy yukażżibūka faqad kużżibat rusulum min qablik(a), wa ilallāhi turja‘ul-umūr(u).
[4]
और यदि वे आपको झुठलाते हैं, तो निश्चय ही आपसे पहले भी रसूलों को झुठलाया जा चुका है। और सभी मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं।3
3. अर्थात अंततः सभी विषयों का निर्णय हमें ही करना है, तो ये कहाँ जाएँगे? अतः आप धैर्य से काम लें।
يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيٰوةُ الدُّنْيَاۗ وَلَا يَغُرَّنَّكُمْ بِاللّٰهِ الْغَرُوْرُ٥
Yā ayyuhan-nāsu inna wa‘dallāhi ḥaqqun falā tagurrannakumul-ḥayātud-dun-yā, wa lā yagurrannakum billāhil-garūr(u).
[5]
ऐ लोगो! निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न वह धोखेबाज़ (शैतान) तुम्हें अल्लाह के विषय में धोखा देने पाए।
اِنَّ الشَّيْطٰنَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوْهُ عَدُوًّاۗ اِنَّمَا يَدْعُوْا حِزْبَهٗ لِيَكُوْنُوْا مِنْ اَصْحٰبِ السَّعِيْرِۗ٦
Innasy-syaiṭāna lakum ‘aduwwun fattakhiżūhu ‘aduwwā(n), innamā yad‘ū ḥizbahū liyakūnū min aṣḥābis-sa‘īr(i).
[6]
निःसंदेह शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम उसे अपना शत्रु ही समझो। वह तो अपने समूह को केवल इसलिए बुलाता है कि वे नरक वालों में से हो जाएँ।
اَلَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيْدٌ ەۗ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَهُمْ مَّغْفِرَةٌ وَّاَجْرٌ كَبِيْرٌ ࣖ٧
Allażīna kafarū lahum ‘ażābun syadīd(un), wal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti lahum magfiratuw wa ajrun kabīr(un).
[7]
जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके लिए कठोर यातना है, तथा जो लोग ईमान लाए और सत्कर्म किए, उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
اَفَمَنْ زُيِّنَ لَهٗ سُوْۤءُ عَمَلِهٖ فَرَاٰهُ حَسَنًاۗ فَاِنَّ اللّٰهَ يُضِلُّ مَنْ يَّشَاۤءُ وَيَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُۖ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرٰتٍۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلِيْمٌ ۢبِمَا يَصْنَعُوْنَ٨
Afaman zuyyina lahū sū'u ‘amalihī fara'āhu ḥasanā(n), fa'innallāha yuḍillu may yasyā'u wa yahdī may yasyā'(u), falā tażhab nafsuka ‘alaihim ḥasarāt(in), innallāha ‘alīmum bimā yaṣna‘ūn(a).
[8]
तो क्या वह व्यक्ति जिसके लिए उसके कुकर्म को सुंदर बना दिया गया हो, तो वह उसे अच्छा समझता हो, (उसके समान है जो मार्गदर्शन पर है?) निःसंदेह अल्लाह जिसे चाहता है, गुमराह कर देता है और जिसे चाहता है, मार्गदर्शन प्रदान करता है। अतः आप उनपर अफ़सोस के कारण अपने आपको व्यथित न करें। निःसंदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जानने वाला है जो कुछ वे कर रहे हैं।
وَاللّٰهُ الَّذِيْٓ اَرْسَلَ الرِّيٰحَ فَتُثِيْرُ سَحَابًا فَسُقْنٰهُ اِلٰى بَلَدٍ مَّيِّتٍ فَاَحْيَيْنَا بِهِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاۗ كَذٰلِكَ النُّشُوْرُ٩
Wallāhul-lażī arsalar-riyāḥa fatuṡīru saḥāban fasuqnāhu ilā baladim mayyitin fa'aḥyainā bihil-arḍa ba‘da mautihā, każālikan-nusyūr(u).
[9]
तथा अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है, तो वे बादल उठाती हैं। फिर हम उसे मृत नगर की ओर हाँक ले जाते हैं। फिर हम उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित कर देते हैं। इसी प्रकार (क़ियामत के दिन) जीवित होकर उठना4 है।
4. अर्थात जिस प्रकार वर्षा से सूखी धरती हरी हो जाती है, इसी प्रकार प्रलय के दिन तुम्हें भी जीवित कर दिया जाएगा।
مَنْ كَانَ يُرِيْدُ الْعِزَّةَ فَلِلّٰهِ الْعِزَّةُ جَمِيْعًاۗ اِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهٗ ۗوَالَّذِيْنَ يَمْكُرُوْنَ السَّيِّاٰتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيْدٌ ۗوَمَكْرُ اُولٰۤىِٕكَ هُوَ يَبُوْرُ١٠
Man kāna yurīdul-‘izzata falillāhil-‘izzatu jamī‘ā(n), ilaihi yaṣ‘adul-kalimuṭ-ṭayyibu wal-‘amaluṣ-ṣāliḥu yarfa‘uh(ū), wal-lażīna yamkurūnas-sayyi'āti lahum ‘ażābun syadīd(un), wa makru ulā'ika huwa yabūr(u).
[10]
जो व्यक्ति सम्मान (इज़्ज़त) चाहता है, तो सब सम्मान अल्लाह ही के लिए है। पवित्र वाक्य5 उसी की ओर चढ़ते हैं और सत्कर्म उन्हें ऊपर उठाता6 है। तथा जो लोग बुरी चालें चलते हैं, उनके लिए कठोर यातना है और उनकी चाल ही मटियामेट होकर रहेगी।
5. पवित्र वाक्य से अभिप्राय ((ला इलाहा इल्लल्लाह)) है। जो तौह़ीद का शब्द है। तथा चढ़ने का अर्थ है : अल्लाह के यहाँ स्वीकार होना। 6. आयत का भावार्थ यह है कि सम्मान अल्लाह की उपासना से मिलता है, अन्य की पूजा से नहीं। और तौह़ीद के साथ सत्कर्म का होना भी अनिवार्य है। और जब ऐसा होगा, तो उसे अल्लाह स्वीकार कर लेगा।
وَاللّٰهُ خَلَقَكُمْ مِّنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُّطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ اَزْوَاجًاۗ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ اُنْثٰى وَلَا تَضَعُ اِلَّا بِعِلْمِهٖۗ وَمَا يُعَمَّرُ مِنْ مُّعَمَّرٍ وَّلَا يُنْقَصُ مِنْ عُمُرِهٖٓ اِلَّا فِيْ كِتٰبٍۗ اِنَّ ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ يَسِيْرٌ١١
Wallāhu khalaqakum min turābin ṡumma min nuṭfatin ṡumma ja‘alakum azwājā(n), wa mā taḥmilu min unṡā wa lā taḍa‘u illā bi‘ilmih(ī), wa mā yu‘ammaru mim mu‘ammariw wa lā yunqaṣu min ‘umurihī illā fī kitāb(in), inna żālika ‘alallāhi yasīr(un).
[11]
अल्लाह ही ने तुम्हें मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुम्हें जोड़े-जोड़े बनाया। जो भी मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, तो अल्लाह को उसका ज्ञान होता है। तथा किसी आयु वाले की आयु बढ़ाई जाती है या उसकी आयु कम की जाती है, तो यह सब कुछ एक किताब में (लिखा हुआ) है।7 निःसंदेह यह सब अल्लाह पर अति सरल है।
7. अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की पूरी दशा उसके भाग्य-लेख में पहले ही से अंकित है।
وَمَا يَسْتَوِى الْبَحْرٰنِۖ هٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَاۤىِٕغٌ شَرَابُهٗ وَهٰذَا مِلْحٌ اُجَاجٌۗ وَمِنْ كُلٍّ تَأْكُلُوْنَ لَحْمًا طَرِيًّا وَّتَسْتَخْرِجُوْنَ حِلْيَةً تَلْبَسُوْنَهَا ۚوَتَرَى الْفُلْكَ فِيْهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ١٢
Wa mā yastawil-baḥrān(i), hāżā ‘ażbun furātun sā'igun syarābuhū wa hāżā milḥun ujāj(un), wa min kullin ta'kulūna laḥman ṭariyyaw wa tastakhrijūna ḥilyatan talbasūnahā, wa taral-fulka fīhi mawākhira litabtagū min faḍlihī wa la‘allakum tasykurūn(a).
[12]
तथा दो सागर बारबर नहीं हैं। यह (एक) मीठा, प्यास बुझाने वाला, पीने में रुचिकर है, और यह (दूसरा) खारा-कड़वा है। तथा प्रत्येक में से तुम ताज़ा माँस खाते हो तथा आभूषण निकालते हो, जिसे तुम पहनते हो। और तुम उसमें नावों को देखते हो कि पानी को चीरती हुई चलती हैं, ताकि तुम अल्लाह का अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
يُوْلِجُ الَّيْلَ فِى النَّهَارِ وَيُوْلِجُ النَّهَارَ فِى الَّيْلِۚ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَّجْرِيْ لِاَجَلٍ مُّسَمًّىۗ ذٰلِكُمُ اللّٰهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُۗ وَالَّذِيْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ مَا يَمْلِكُوْنَ مِنْ قِطْمِيْرٍۗ١٣
Yūlijul-laila fin-nahāri wa yūlijun-nahāra fil-lail(i), wa sakhkharasy-syamsa wal-qamara kulluy yajrī li'ajalim musammā(n), żālikumullāhu rabbukum lahul-mulk(u), wal-lażīna tad‘ūna min dūnihī mā yamlikūna min qiṭmīr(in).
[13]
वह रात को दिन में दाखिल करता है, तथा दिन को रात में दाखिल करता है, तथा सूर्य एवं चाँद को काम में लगा रखा है। उनमें से प्रत्येक एक निश्चित समय तक चल रहा है।वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है। तथा जिन्हें तुम उसके सिवा पुकारते हो, वे खजूर की गुठली के छिलके के भी मालिक नहीं हैं।
اِنْ تَدْعُوْهُمْ لَا يَسْمَعُوْا دُعَاۤءَكُمْۚ وَلَوْ سَمِعُوْا مَا اسْتَجَابُوْا لَكُمْۗ وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ يَكْفُرُوْنَ بِشِرْكِكُمْۗ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيْرٍ ࣖ١٤
In tad‘ūhum lā yasma‘ū du‘ā'akum, wa lau sami‘ū mastajābū lakum, wa yaumal-qiyāmati yakfurūna bisyirkikum, wa lā yunabbi'uka miṡlu khabīr(in).
[14]
यदि तुम उन्हें पुकारो, तो वे तुम्हारी पुकार नहीं सुन सकते। और यदि सुन भी लें, तो तुम्हें उत्तर नहीं दे सकते। और वे क़ियामत के दिन तुम्हारे शिर्क का इनकार कर देंगे। और (ऐ रसूल!) आपको एक सर्वज्ञाता (अल्लाह) की तरह कोई सूचना नहीं देगा।8
8. इस आयत में प्रलय के दिन उनके पूज्यों की दशा का वर्णन किया गया है कि वे प्रलय के दिन उनके शिर्क को अस्वीकार कर देंगे। और अपने पुजारियों से बरी होने की घोषणा कर देंगे। जिससे विदित हुआ कि अल्लाह का कोई साझी नहीं है। और जिनको मुश्रिकों ने साझी बना रखा है, वह सब धोखा है।
۞ يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اَنْتُمُ الْفُقَرَاۤءُ اِلَى اللّٰهِ ۚوَاللّٰهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيْدُ١٥
Yā ayyuhan-nāsu antumul-fuqarā'u ilallāh(i), wallāhu huwal-ganiyyul-ḥamīd(u).
[15]
ऐ लोगो! तुम सब अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह बेनियाज़, प्रशंसित है।
اِنْ يَّشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيْدٍۚ١٦
Iy yasya' yużhibkum wa ya'ti bikhalqin jadīd(in).
[16]
यदि वह चाहे, तो तुम्हें ले जाए और (तुम्हारी जगह) एक नई मख़लूक़9 ले आए।
9. भावार्थ यह कि मनुष्य को प्रत्येक क्षण अपने अस्तित्व तथा स्थायित्व के लिए अल्लाह की आवश्यकता है। और अल्लाह ने निर्लोभ होने के साथ ही उसके जीवन के संसाधन की व्यवस्था कर दी है। अतः यह न सोचो कि तुम्हारा विनाश हो गया, तो उसकी महिमा में कोई अंतर आ जाएगा। वह चाहे, तो तुम्हें एक क्षण में ध्वस्त करके दूसरी मख़लूक़ ले आए, क्योंकि वह एक शब्द "कुन" (जिस का अनुवाद है 'हो जा') से जो चाहे पैदा कर दे।
وَمَا ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ بِعَزِيْزٍ١٧
Wa mā żālika ‘alallāhi bi‘azīz(in).
[17]
और यह अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं।
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰى ۗوَاِنْ تَدْعُ مُثْقَلَةٌ اِلٰى حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَّلَوْ كَانَ ذَا قُرْبٰىۗ اِنَّمَا تُنْذِرُ الَّذِيْنَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ ۗوَمَنْ تَزَكّٰى فَاِنَّمَا يَتَزَكّٰى لِنَفْسِهٖ ۗوَاِلَى اللّٰهِ الْمَصِيْرُ١٨
Wa lā taziru wāziratuw wizra ukhrā, wa in tad‘u muṡqalatun ilā ḥimlihā lā yuḥmal minhu syai'uw wa lau kāna żā qurbā, innamā tunżirul-lażīna yakhsyauna rabbahum bil-gaibi wa aqāmuṣ-ṣalāh(ta), wa man tazakkā fa innamā yatazakkā linafsih(ī), wa ilallāhil-maṣīr(u).
[18]
और कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ10 नहीं उठाएगा। और अगर कोई बोझ से दबा हुआ व्यक्ति (किसी को) बोझ उठाने के लिए पुकारेगा, तो उसका तनिक भी बोझ नहीं उठाया जाएगा, यद्यपि वह निकट का संबंधी ही क्यों न हो। आप तो केवल उन्हीं लोगों को सचेत करते हैं, जो अपने पालनहार से बिन देखे डरते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। तथा जो पवित्र हुआ, वह अपने ही लाभ के लिए पवित्र होता है। और (सबको) अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है।
10. अर्थात पापों का बोझ। अर्थ यह है कि प्रलय के दिन कोई किसी की सहायता नहीं करेगा।
وَمَا يَسْتَوِى الْاَعْمٰى وَالْبَصِيْرُ ۙ١٩
Wa mā yastawil-a‘mā wal-baṣīr(u).
[19]
और अंधा तथा देखने वाला समान नहीं हो सकते।
وَلَا الظُّلُمٰتُ وَلَا النُّوْرُۙ٢٠
Wa laẓ-ẓulumātu wa lan-nūr(u).
[20]
और न अंधकार तथा प्रकाश।
وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُوْرُۚ٢١
Wa laẓ-ẓillu wa lal-ḥarūr(u).
[21]
और न छाया तथा गर्म हवा।
وَمَا يَسْتَوِى الْاَحْيَاۤءُ وَلَا الْاَمْوَاتُۗ اِنَّ اللّٰهَ يُسْمِعُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَمَآ اَنْتَ بِمُسْمِعٍ مَّنْ فِى الْقُبُوْرِ٢٢
Wa mā yastawil-aḥyā'u wa lal-amwāt(u), innallāha yusmi‘u may yasyā'(u), wa mā anta bimusmi‘im man fil-qubūr(i).
[22]
तथा जीवित एवं मृत समान नहीं हो सकते। निःसंदेह अल्लाह जिसे चाहता है, सुना देता है और आप उन्हें नहीं सुना सकते, जो क़ब्रों में हैं।
اِنْ اَنْتَ اِلَّا نَذِيْرٌ٢٣
In anta illā nażīr(un).
[23]
आप तो मात्र एक डराने वाले हैं।
اِنَّآ اَرْسَلْنٰكَ بِالْحَقِّ بَشِيْرًا وَّنَذِيْرًا ۗوَاِنْ مِّنْ اُمَّةٍ اِلَّا خَلَا فِيْهَا نَذِيْرٌ٢٤
Innā arsalnāka bil-ḥaqqi basyīraw wa nażīrā(n), wa im min ummatin illā khalā fīhā nażīr(un).
[24]
निःसंदेह हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचना देने वाला तथा डराने वाला बनाकर भेजा है। और कोई समुदाय ऐसा नहीं, जिसमें कोई डराने वाला न आया हो।
وَاِنْ يُّكَذِّبُوْكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚجَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتٰبِ الْمُنِيْرِ٢٥
Wa iy yukażżibūka faqad każżabal-lażīna min qablihim, jā'athum rusuluhum bil-bayyināti wa biz-zuburi wa bil-kitābil-munīr(i).
[25]
और अगर ये लोग आपको झुठलाते हैं, तो इनसे पूर्व के लोगों ने भी (रसूलों को) झुठलाया है, जिनके पास हमारे रसूल खुले प्रमाण, ग्रंथ और ज्योतिमान करने वाली पुस्तक लेकर आए।
ثُمَّ اَخَذْتُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا فَكَيْفَ كَانَ نَكِيْرِ ࣖ٢٦
Ṡumma akhażtul-lażīna kafarū fakaifa kāna nakīr(i).
[26]
फिर मैंने उन लोगों को पकड़ लिया, जिन्होंने इनकार किया। तो मेरी पकड़ कैसी रही?
اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ اَنْزَلَ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءًۚ فَاَخْرَجْنَا بِهٖ ثَمَرٰتٍ مُّخْتَلِفًا اَلْوَانُهَا ۗوَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ ۢبِيْضٌ وَّحُمْرٌ مُّخْتَلِفٌ اَلْوَانُهَا وَغَرَابِيْبُ سُوْدٌ٢٧
Alam tara annallāha anzala minas-samā'i mā'ā(n), fa'akhrajnā bihī ṡamarātim mukhtalifan alwānuhā, wa minal-jibāli judadum bīḍuw wa khumrum mukhtalifun alwānuhā wa garābību sūd(un).
[27]
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी उतारा, फिर हमने उसके द्वारा विभिन्न रंगों के बहुत-से फल निकाल दिए। तथा पर्वतों में विभिन्न रंगों की सफेद और लाल धारियाँ (और टुकड़े) हैं, तथा कुछ गहरी काली धारियाँ हैं।
وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَاۤبِّ وَالْاَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ اَلْوَانُهٗ كَذٰلِكَۗ اِنَّمَا يَخْشَى اللّٰهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمٰۤؤُاۗ اِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ غَفُوْرٌ٢٨
Wa minan-nāsi wad-dawābbi wal-an‘āmi mukhtalifun alwānuhū każālik(a), innamā yakhsyallāha min ‘ibādihil-ulamā'(u), innallāha ‘azīzun gafūr(un).
[28]
तथा इसी प्रकार मनुष्यों, जानवरों और चौपायों में से भी ऐसे हैं जिनके रंग विभिन्न हैं। वास्तविकता यह है कि अल्लाह से उसके वही बंदे डरते हैं, जो ज्ञानी11 हैं। निःसंदेह अल्लाह अति प्रभुत्वशाली, बेहद क्षमाशील है।
11. अर्थात अल्लाह की इन शक्तियों और उसकी परिपूर्ण कारीगरी को वही जान सकते हैं जो क़ुरआन एवं सुन्नत का ज्ञान रखने वाले हैं। और उन्हें जितना ही अल्लाह का ज्ञान होता है, उतना ही वे अल्लाह से डरते हैं। मानो जिनके दिल में अल्लाह का डर नहीं, समझ लो कि वे सही ज्ञान से वंचित हैं। (इब्ने कसीर)
اِنَّ الَّذِيْنَ يَتْلُوْنَ كِتٰبَ اللّٰهِ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ وَاَنْفَقُوْا مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ سِرًّا وَّعَلَانِيَةً يَّرْجُوْنَ تِجَارَةً لَّنْ تَبُوْرَۙ٢٩
Innal-lażīna yatlūna kitāballāhi wa aqāmuṣ-ṣalāta wa anfaqū mimmā razaqnāhum sirraw wa ‘alāniyatay yarjūna tijāratal lan tabūr(a).
[29]
निःसंदेह जो लोग अल्लाह की पुस्तक (क़ुरआन) पढ़ते हैं, और नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से छिपे और खुले खर्च करते हैं, वे ऐसे व्यापार की आशा रखते हैं, जिसमें कभी घाटा नहीं होगा।
لِيُوَفِّيَهُمْ اُجُوْرَهُمْ وَيَزِيْدَهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖۗ اِنَّهٗ غَفُوْرٌ شَكُوْرٌ٣٠
Liyuwaffiyahum ujūrahum wa yazīdahum min faḍlih(ī), innahū gafūrun syakūr(un).
[30]
ताकि अल्लाह उन्हें उनका पूरा-पूरा बदला दे और उन्हें अपनी कृपा से और अधिक प्रदान करे। निःसंदेह वह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत गुणग्राही है।
وَالَّذِيْٓ اَوْحَيْنَآ اِلَيْكَ مِنَ الْكِتٰبِ هُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِۗ اِنَّ اللّٰهَ بِعِبَادِهٖ لَخَبِيْرٌۢ بَصِيْرٌ٣١
Wal-lażī auḥainā ilaika minal-kitābi huwal-ḥaqqu muṣaddiqal limā baina yadaih(i), innallāha bi‘ibādihī lakhabīrum baṣīr(un).
[31]
और हमने आपकी ओर जिस किताब की वह़्य (प्रकाशना) की है, वही सर्वथा सच है और अपने से पहले की पुस्तकों की पुष्टि करने वाली है। निःसंदेह अल्लाह अपने बंदों की पूरी खबर रखने वाला, सब कुछ देखने वाला है।12
12. कि कौन उसके अनुग्रह के योग्य है। इसी कारण उसने नबियों को सबपर प्रधानता दी है। तथा नबियों को भी एक-दूसरे पर प्रधानता दी है। (देखिए : इब्ने कसीर)
ثُمَّ اَوْرَثْنَا الْكِتٰبَ الَّذِيْنَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَاۚ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهٖ ۚوَمِنْهُمْ مُّقْتَصِدٌ ۚوَمِنْهُمْ سَابِقٌۢ بِالْخَيْرٰتِ بِاِذْنِ اللّٰهِ ۗذٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيْرُۗ٣٢
Ṡumma auraṡnal-kitābal-lażīnaṣṭafainā min ‘ibādinā, fa minhum ẓālimul linafsih(ī), wa minhum muqtaṣid(un), wa minhum sābiqum bil-khairāti bi'iżnillāh(i), żālika huwal-faḍlul-kabīr(u).
[32]
फिर हमने इस पुस्तक का उत्तराधिकारी उन लोगों को बनाया, जिन्हें हमने अपने बंदों13 में से चुन लिया। तो उनमें से कुछ लोग अपने ऊपर अत्याचार करने वाले हैं, और उनमें से कुछ लोग मध्यमार्गी हैं, और उनमें से कुछ लोग अल्लाह की अनुमति से भलाई के कामों में आगे निकल जाने वाले हैं। यही महान अनुग्रह है।
13. इस आयत में क़ुरआन के अनुयायियों की तीन श्रेणियाँ बताई गई हैं। और तीनों ही स्वर्ग में प्रवेश करेंगी : अग्रगामी बिना ह़िसाब के। मध्यवर्ती सरल ह़िसाब के पश्चात्। तथा अत्याचारी दंड भुगतने के पश्चात् शफ़ाअत द्वारा। (फ़त्ह़ुल क़दीर)
جَنّٰتُ عَدْنٍ يَّدْخُلُوْنَهَا يُحَلَّوْنَ فِيْهَا مِنْ اَسَاوِرَ مِنْ ذَهَبٍ وَّلُؤْلُؤًا ۚوَلِبَاسُهُمْ فِيْهَا حَرِيْرٌ٣٣
Jannātu ‘adniy yadkhulūnahā yuḥallauna fīhā min asāwira min żahabiw wa lu'lu'ā(n), wa libāsuhum fīhā ḥarīr(un).
[33]
सदा रहने के बाग़ हैं, जिनमें वे प्रवेश करेंगे। उनमें वे सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और उनमें उनके वस्त्र रेशम के होंगे।
وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْٓ اَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَۗ اِنَّ رَبَّنَا لَغَفُوْرٌ شَكُوْرٌۙ٣٤
Wa qālul-ḥamdu lillāhil-lażī ażhaba ‘annal-ḥazan(a), inna rabbanā lagafūrun syakūr(un).
[34]
तथा वे कहेंगे : सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया। निःसंदेह हमारा पालनहार अत्यंत क्षमाशील, बड़ा गुणग्राही है।
ۨالَّذِيْٓ اَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِنْ فَضْلِهٖۚ لَا يَمَسُّنَا فِيْهَا نَصَبٌ وَّلَا يَمَسُّنَا فِيْهَا لُغُوْبٌ٣٥
Allażī aḥallanā dāral-muqāmati min faḍlih(ī), lā yamassunā fīhā naṣabuw wa lā yamassunā fīhā lugūb(un).
[35]
जिसने हमें अपनी कृपा से स्थायी घर में उतारा। न इसमें हमें कोई कष्ट उठाना पड़ता है और न इसमें हमें कोई थकान पहुँचती है।
وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَۚ لَا يُقْضٰى عَلَيْهِمْ فَيَمُوْتُوْا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمْ مِّنْ عَذَابِهَاۗ كَذٰلِكَ نَجْزِيْ كُلَّ كَفُوْرٍ ۚ٣٦
Wal-lażīna kafarū lahum nāru jahannam(a), lā yuqḍā ‘alaihim fayamūtū wa lā yukhaffafu ‘anhum min ‘ażābihā, każālika najzī kulla kafūr(in).
[36]
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके लिए जहन्नम की आग है। न उनपर (मृत्यु का) फैसला किया जाएगा कि वे मर जाएँ, और न उनसे उसकी यातना ही कुछ हल्की की जाएगी। हम प्रत्येक अकृतज्ञ को इसी तरह बदला दिया करते हैं।
وَهُمْ يَصْطَرِخُوْنَ فِيْهَاۚ رَبَّنَآ اَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِيْ كُنَّا نَعْمَلُۗ اَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَّا يَتَذَكَّرُ فِيْهِ مَنْ تَذَكَّرَ وَجَاۤءَكُمُ النَّذِيْرُۗ فَذُوْقُوْا فَمَا لِلظّٰلِمِيْنَ مِنْ نَّصِيْرٍ ࣖ٣٧
Wa hum yaṣṭarikhūna fīhā, rabbanā akhirjnā na‘mal ṣāliḥan gairal-lażī kunnā na‘mal(u), awalam nu‘ammirkum mā yatażakkaru fīhi man tażakkara wa jā'akumun nażīr(u), fa żūqū famā liẓ-ẓālimīna min naṣīr(in).
[37]
और वे उसमें चिल्लाएँगे : ऐ हमारे पालनहार! हमें (जहन्नम से) निकाल ले। हम जो कुछ किया करते थे, उसके अलावा नेकी के काम करेंग। क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि उसमें जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता, वह शिक्षा ग्रहण कर लेता, हालाँकि तुम्हारे पास डराने वाला (नबी) भी तो आया था? अतः, तुम (यातना) चखो। अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है।
اِنَّ اللّٰهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ اِنَّهٗ عَلِيْمٌ ۢبِذَاتِ الصُّدُوْرِ٣٨
Innallāha ‘ālimu gaibis-samāwāti wal-arḍ(i), innahū ‘alīmum biżātiṣ-ṣudūr(i).
[38]
निःसंदेह अल्लाह आकाशों और धरती के परोक्ष (गुप्त चीज़ों) को जानने वाला है। निःसंदेह वही सीनों की बातों को भली-भाँति जानता है।
هُوَ الَّذِيْ جَعَلَكُمْ خَلٰۤىِٕفَ فِى الْاَرْضِۗ فَمَنْ كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهٗۗ وَلَا يَزِيْدُ الْكٰفِرِيْنَ كُفْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ اِلَّا مَقْتًا ۚوَلَا يَزِيْدُ الْكٰفِرِيْنَ كُفْرُهُمْ اِلَّا خَسَارًا٣٩
Huwal-lażī ja‘alakum khalā'ifa fil-arḍ(i), faman kafara fa‘alaihi kufruh(ū), wa lā yazīdul-kāfirīna kufruhum ‘inda rabbihim illā maqtā(n), wa lā yazīdul-kāfirīna kufruhum illā khasārā(n).
[39]
वही है जिसने तुम्हें धरती पर उत्तराधिकारी बनाया। फिर जिसने कुफ़्र किया, तो उसके कुफ़्र का दुष्परिणाम उसी पर होगा। और काफ़िरों को उनका कुफ़्र उनके पालनहार के यहाँ क्रोध ही में बढ़ाता है। और काफ़िरों को उनका कुफ़्र उनके घाटे ही में वृद्धि करता है।
قُلْ اَرَءَيْتُمْ شُرَكَاۤءَكُمُ الَّذِيْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗاَرُوْنِيْ مَاذَا خَلَقُوْا مِنَ الْاَرْضِ اَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِى السَّمٰوٰتِۚ اَمْ اٰتَيْنٰهُمْ كِتٰبًا فَهُمْ عَلٰى بَيِّنَتٍ مِّنْهُۚ بَلْ اِنْ يَّعِدُ الظّٰلِمُوْنَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا اِلَّا غُرُوْرًا٤٠
Qul ara'aitum syurakā'akumul-lażīna tad‘ūna min dūnillāh(i), arūnī māżā khalaqū minal-arḍi am lahum syirkun fis-samāwāt(i), am ātaināhum kitāban fahum ‘alā bayyinatim minh(u), bal iy ya‘iduẓ-ẓālimūna ba‘ḍuhum ba‘ḍan illā gurūrā(n).
[40]
(ऐ नबी!)14 उनसे कह दें : क्या तुमने अपने उन साझियों को देखा, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो? मुझे दिखाओ कि उन्होंने धरती का कौन-सा भाग पैदा किया है? या उनकी आकाशों (की रचना) में कुछ साझेदारी है? या हमने उन्हें कोई पुस्तक प्रदान की है कि वे उसके किसी स्पष्ट प्रमाण पर (क़ायम) हैं? बल्कि (वास्तविकता यह है कि) अत्याचारी लोग एक-दूसरे को केवल धोखे का वादा करते हैं।
14. यहाँ से सूरत के अंत तक शिर्क (अनेकेश्वरवाद) का खंडन किया जा रहा है।
۞ اِنَّ اللّٰهَ يُمْسِكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ اَنْ تَزُوْلَا ەۚ وَلَىِٕنْ زَالَتَآ اِنْ اَمْسَكَهُمَا مِنْ اَحَدٍ مِّنْۢ بَعْدِهٖ ۗاِنَّهٗ كَانَ حَلِيْمًا غَفُوْرًا٤١
Innallāha yumsikus-samāwāti wal-arḍa an tazūlā, wa la'in zālatā in amsakahumā min aḥadim mim ba‘dih(ī), innahū kāna ḥalīman gafūrā(n).
[41]
निःसंदेह अल्लाह ही आकाशों और धरती को थामे (रोके)14 हुए है कि (कहीं) वे दोनों (अपनी जगह से) हट (टल) न जाएँ। और वास्तव में यदि वे दोनों हट (टल) जाएँ, तो उसके बाद कोई भी उन्हें थाम (रोक) नहीं सकेगा। निःसंदेह वह अत्यंत सहनशील, बहुत क्षमा करने वाला है।
15. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात में नमाज़ के लिए जागते, तो आकाश की ओर देखते और यह पूरी आयत पढ़ते थे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 7452)
وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَيْمَانِهِمْ لَىِٕنْ جَاۤءَهُمْ نَذِيْرٌ لَّيَكُوْنُنَّ اَهْدٰى مِنْ اِحْدَى الْاُمَمِۚ فَلَمَّا جَاۤءَهُمْ نَذِيْرٌ مَّا زَادَهُمْ اِلَّا نُفُوْرًاۙ٤٢
Wa aqsamū billāhi jahda aimānihim la'in jā'ahum nażīrul layakūnunna ahdā min iḥdal-umam(i), falammā jā'ahum nażīrum mā zādahum illā nufūrā(n).
[42]
और उन (काफ़िरों) ने अल्लाह की पक्की क़समें खाई थीं कि यदि उनके पास कोई डराने वाला (नबी) आया, तो वे अवश्य किसी भी अन्य समुदाय से अधिक सीधे रास्ते पर चलने वाले हो जाएँगे। फिर जब उनके पास एक डराने वाला14 आ गया, तो इससे उनके (सत्य से) दूर भागने ही में वृद्धि हुई।
16. अर्थात् मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
ۨاسْتِكْبَارًا فِى الْاَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِۗ وَلَا يَحِيْقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ اِلَّا بِاَهْلِهٖ ۗفَهَلْ يَنْظُرُوْنَ اِلَّا سُنَّتَ الْاَوَّلِيْنَۚ فَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّتِ اللّٰهِ تَبْدِيْلًا ەۚ وَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّتِ اللّٰهِ تَحْوِيْلًا٤٣
Istikbāran fil-arḍi wa makras-sayyi'(i), wa lā yaḥīqul-makrus-sayyi'u illā bi'ahlih(ī), fahal yanẓurūna illā sunnatal-awwalīn(a), falan tajida lisunnatillāhi tabdīlā(n), wa lan tajida lisunnatillāhi taḥwīlā(n).
[43]
धरती में अभिमान करने और बुरी चाल के कारण। और बुरी चाल उसके चलने वाले ही को घेरती है। तो क्या वे पहले लोगों (के बारे में अल्लाह) की रीति17 की प्रतीक्षा कर रहे हैं? तो आप अल्लाह की रीति में हरगिज़ कोई बदलाव नहीं पाएँगे, तथा आप अल्लाह की रीति में कभी कोई परिवर्तन18 नहीं पाएँगे।
17. अर्थात यातना की। 18. अर्थात प्रत्येक युग और स्थान के लिए अल्लाह का नियम एक ही रहा है।
اَوَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَكَانُوْٓا اَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۗوَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيُعْجِزَهٗ مِنْ شَيْءٍ فِى السَّمٰوٰتِ وَلَا فِى الْاَرْضِۗ اِنَّهٗ كَانَ عَلِيْمًا قَدِيْرًا٤٤
Awalam yasīrū fil-arḍi fa yanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-lażīna min qablihim wa kānū asyadda minhum quwwah(tan), wa mā kānallāhu liyu‘jizahū min syai'in fis-samāwāti wa lā fil-arḍ(i), innahū kāna ‘alīman qadīrā(n).
[44]
और क्या वे धरती में नहीं चले-फिरे कि देखते कि उन लोगों का परिणाम कैसा रहा, जो इनसे पहले थे, हालाँकि वे शक्ति में इनसे बढ़े हुए थे? तथा अल्लाह ऐसा नहीं है कि आकाशों और धरती में कोई चीज़ उसे विवश कर सके। निःसंदेह वह सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللّٰهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوْا مَا تَرَكَ عَلٰى ظَهْرِهَا مِنْ دَاۤبَّةٍ وَّلٰكِنْ يُّؤَخِّرُهُمْ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّىۚ فَاِذَا جَاۤءَ اَجَلُهُمْ فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِعِبَادِهٖ بَصِيْرًا ࣖ٤٥
Wa lau yu'ākhiżullāhun-nāsa bimā kasabū mā taraka ‘alā ẓahrihā min dābbatiw wa lākiy yu'akhkhiruhum ilā ajalim musammā(n), fa iżā jā'a ajaluhum fa innallāha kāna bi‘ibādihī baṣīrā(n).
[45]
और यदि अल्लाह लोगों की उनके कार्यों के कारण पकड़ करने लगे, तो धरती के ऊपर किसी चलने वाले को न छोड़े। परंतु वह उन्हें एक निर्धारित अवधि तक मोहलत देता है। फिर जब उनका निर्धारित समय आ जाएगा, तो अल्लाह अपने बंदों को भली-भाँति देखने वाला है।19
19. अर्थात उस दिन उनके कर्मों का बदला चुका देगा।