Surah Luqman
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
الۤمّۤ ۗ١
Alif lām mīm.
[1]
अलिफ़, लाम, मीम।
تِلْكَ اٰيٰتُ الْكِتٰبِ الْحَكِيْمِۙ٢
Tilka āyātul-kitābil-ḥakīm(i).
[2]
ये हिकमत वाली किताब की आयतें हैं।
هُدًى وَّرَحْمَةً لِّلْمُحْسِنِيْنَۙ٣
Hudaw wa raḥmatal lil-muḥsinīn(a).
[3]
नेकी करने वालों के लिए मार्गदर्शन तथा दया है।
الَّذِيْنَ يُقِيْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَهُمْ بِالْاٰخِرَةِ هُمْ يُوْقِنُوْنَۗ٤
Allażīna yuqīmūnaṣ-ṣalāta wa yu'tūnaz-zakāta wa hum bil-ākhirati hum yūqinūn(a).
[4]
जो नमाज़ क़ायम करते तथा ज़कात देते हैं और वही हैं, जो आख़िरत (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।
اُولٰۤىِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنْ رَّبِّهِمْ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ٥
Ulā'ika ‘alā hudam mir rabbihim wa ulā'ika humul-mufliḥūn(a).
[5]
यही लोग अपने पालनहार की ओर से मार्गदर्शन पर हैं तथा यही लोग सफल होने वाले हैं।
وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَّشْتَرِيْ لَهْوَ الْحَدِيْثِ لِيُضِلَّ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ بِغَيْرِ عِلْمٍۖ وَّيَتَّخِذَهَا هُزُوًاۗ اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِيْنٌ٦
Wa minan-nāsi may yasytarī lahwal-ḥadīṡi liyuḍilla ‘an sabīlillāhi bigairi ‘ilmiw wa yattakhiżahā huzuwā(n), ulā'ika lahum ‘ażābum muhīn(un).
[6]
तथा लोगों में कोई ऐसा (भी) है, जो असावधान करने वाली बात1 खरीदता है, ताकि बिना ज्ञान के (लोगों को) अल्लाह के मार्ग (इस्लाम) से गुमराह करे और अल्लाह की आयतों का उपहास करे। यही लोग हैं, जिनके लिए अपमानकारी यातना है।
1. इससे अभिप्राय गाना-बजाना तथा संगीत और प्रत्येक वे साधन हैं, जो सत्कर्म से अचेत कर दें। इसमें क़िस्से, कहानियाँ, काम संबंधी साहित्य सब सम्मिलित हैं।
وَاِذَا تُتْلٰى عَلَيْهِ اٰيٰتُنَا وَلّٰى مُسْتَكْبِرًا كَاَنْ لَّمْ يَسْمَعْهَا كَاَنَّ فِيْٓ اُذُنَيْهِ وَقْرًاۚ فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ اَلِيْمٍ٧
Wa iżā tutlā ‘alaihi āyātunā wallā mustakbiran ka'allam yasma‘hā ka'anna fī użunaihi waqrā(n), fabasyyirhu bi‘ażābin alīm(in).
[7]
और जब उसके समक्ष हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो घमंड करते हुए मुँह फेर लेता है, जैसे उसने उन्हें सुना ही नहीं, मानो उसके दोनों कानों में बहरापन है। तो आप उसे दुःखदायी यातना की शुभसूचना दे दें।
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَهُمْ جَنّٰتُ النَّعِيْمِۙ٨
Innal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti lahum jannātun na‘īm(i).
[8]
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए तथा उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके लिए नेमत के बाग़ हैं।
خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ وَعْدَ اللّٰهِ حَقًّاۗ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ٩
Khālidīna fīhā, wa‘dallāhi ḥaqqā(n), wa huwal-‘azīzul-ḥakīm(u).
[9]
वे उनमें सदैव रहेंगे। यह अल्लाह का सच्चा वादा है। और वह अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
خَلَقَ السَّمٰوٰتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا وَاَلْقٰى فِى الْاَرْضِ رَوَاسِيَ اَنْ تَمِيْدَ بِكُمْ وَبَثَّ فِيْهَا مِنْ كُلِّ دَاۤبَّةٍۗ وَاَنْزَلْنَا مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَاَنْۢبَتْنَا فِيْهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ كَرِيْمٍ١٠
Khalaqas-samāwāti bigairi ‘amadin taraunahā wa alqā fil-arḍi rawāsiya an tamīda bikum wa baṡṡa fīhā min kulli dābbah(tin), wa anzalnā minas-samā'i mā'an fa ambatnā fīhā min kulli zaujin karīm(in).
[10]
उसने आकाशों को बिना स्तंभों के पैदा किया, जिन्हें तुम देखते हो। और धरती में पर्वत डाल दिए, ताकि वह तुम्हें लेकर हिलने-डुलने न लगे। और उसके ऊपर हर प्रकार के जीव फैला दिए। तथा हमने आकाश से पानी उतारा, फिर उसमें हर तरह की अच्छी क़िस्म उगाई।
هٰذَا خَلْقُ اللّٰهِ فَاَرُوْنِيْ مَاذَا خَلَقَ الَّذِيْنَ مِنْ دُوْنِهٖۗ بَلِ الظّٰلِمُوْنَ فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ࣖ١١
Hāżā khalqullāhi fa arūnī māżā khalaqal-lażīna min dūnih(ī), baliẓ-ẓālimūna fī ḍalālim mubīn(in).
[11]
यह अल्लाह की उत्पत्ति है। तो तुम मुझे दिखाओ कि उन लोगों ने जो उसके अतिरिक्त हैं, क्या पैदा किया है? बल्कि अत्याचारी लोग खुली गुमराही में हैं।
وَلَقَدْ اٰتَيْنَا لُقْمٰنَ الْحِكْمَةَ اَنِ اشْكُرْ لِلّٰهِ ۗوَمَنْ يَّشْكُرْ فَاِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ حَمِيْدٌ١٢
Wa laqad ātainā luqmānal-ḥikmata anisykur lillāh(i), wa may yasykur fa'innamā yasykuru linafsih(ī), wa man kafara fa'innallāha ganiyyun ḥamīd(un).
[12]
और हमने लुक़मान को प्रबोध (हिकमत) प्रदान किया था कि अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करो, तथा जो आभार प्रकट करता है, वह अपने ही (लाभ के) लिए आभार प्रकट करता है, और जो कृतघ्नता दिखाए, तो निश्चय अल्लाह बेनियाज़, सराहनीय है।
وَاِذْ قَالَ لُقْمٰنُ لِابْنِهٖ وَهُوَ يَعِظُهٗ يٰبُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللّٰهِ ۗاِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيْمٌ١٣
Wa iż qāla luqmānu libnihī wa huwa ya‘iẓuhū yā bunayya lā tusyrik billāh(i), innasy-syirka laẓulmun ‘aẓīm(un).
[13]
तथा (याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से कहा, जबकि वह उसे समझा रहा था : ऐ मेरे बेटे! अल्लाह के साथ किसी को साझी न ठहराना। निःसंदेह शिर्क महा अत्याचार2 है।
2. ह़दीस में है कि घोर पापों में से : अल्लाह के साथ शिर्क करना, माँ-बाप के साथ बुरा व्यवहार, जान मारना तथा झूठी शपथ लेना है। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 7257)
وَوَصَّيْنَا الْاِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِۚ حَمَلَتْهُ اُمُّهٗ وَهْنًا عَلٰى وَهْنٍ وَّفِصَالُهٗ فِيْ عَامَيْنِ اَنِ اشْكُرْ لِيْ وَلِوَالِدَيْكَۗ اِلَيَّ الْمَصِيْرُ١٤
Wa waṣṣainal-insāna biwālidaih(i), ḥamalathu ummuhū wahnan ‘alā wahniw wa fiṣāluhū fī ‘āmaini anisykur lī wa liwālidaik(a), ilayyal-maṣīr(u).
[14]
और हमने इनसान को उसके माता-पिता के संबंध में ताकीद की है, उसकी माँ ने उसे कमज़ोरी पर कमज़ोरी के बावजूद उठाए रखा और उसका दूध छुड़ाना दो वर्ष में है, कि मेरा आभार प्रकट कर और अपने माता-पिता का। मेरी ही ओर लौटकर आना है।
وَاِنْ جَاهَدٰكَ عَلٰٓى اَنْ تُشْرِكَ بِيْ مَا لَيْسَ لَكَ بِهٖ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِى الدُّنْيَا مَعْرُوْفًا ۖوَّاتَّبِعْ سَبِيْلَ مَنْ اَنَابَ اِلَيَّۚ ثُمَّ اِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَاُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ١٥
Wa in jāhadāka ‘alā an tusyrika bī mā laisa laka bihī ‘ilmun falā tuṭi‘humā wa ṣāḥibhumā fid-dun-yā ma‘rūfā(n), wattabi‘ sabīla man anāba ilayya(a), ṡumma ilayya marji‘ukum fa unabbi'ukum bimā kuntum ta‘malūn(a).
[15]
और यदि वे दोनों तुझपर दबाव डालें कि तू मेरे साथ उस चीज़ को साझी ठहराए, जिसका तुझे कोई ज्ञान नहीं, तो उन दोनों की बात मत मान3 और दुनिया में उनके साथ सुचारु रूप से रह4, तथा उसके मार्ग पर चल, जो मेरी ओर पलटता है। फिर मेरी ही ओर तुम्हें लौटकर आना है। तो मैं तुम्हें बताऊँगा, जो कुछ तुम किया करते थे।
3. ह़दीस में है कि पाप में किसी की बात नहीं माननी है, पुण्य में माननी है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 7257) 4. अर्थात माता-पिता यदि मिश्रणवादी और काफ़िर हों, तब भी उनकी संसार में सहायता करो।
يٰبُنَيَّ اِنَّهَآ اِنْ تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ فَتَكُنْ فِيْ صَخْرَةٍ اَوْ فِى السَّمٰوٰتِ اَوْ فِى الْاَرْضِ يَأْتِ بِهَا اللّٰهُ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَطِيْفٌ خَبِيْرٌ١٦
Yā bunayya innahā in taku miṡqāla ḥabbatim min khardalin fatakun fī ṣakhratin au fis-samāwāti au fil-arḍi ya'ti bihallāh(u), innallāha laṭīfun khabīr(un).
[16]
ऐ मेरे बेटे! निःसंदेह यदि वह (कार्य) राई के दाने के बराबर हो, फिर वह किसी पत्थर के भीतर, या आकाशों में, या धरती में हो, तो अल्लाह उसे ले आएगा।5 निःसंदेह अल्लाह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी, पूरी ख़बर रखने वाला है।
5. प्रलय के दिन उसका प्रतिफल देने के लिए।
يٰبُنَيَّ اَقِمِ الصَّلٰوةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوْفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَاصْبِرْ عَلٰى مَآ اَصَابَكَۗ اِنَّ ذٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ١٧
Yā bunayya aqimiṣ-ṣalāta wa'mur bil-ma‘rūfi wanha ‘anil-munkari waṣbir ‘alā mā aṣābak(a), inna żālika min ‘azmil-umūr(i).
[17]
ऐ मेरे बेटे! नमाज़ क़ायम कर, भलाई का आदेश दे और बुराई से रोक, तथा जो कष्ट तुझे पहुँचे, उसपर धैर्य से काम ले। निश्चय यह अनिवार्य कामों में से है।
وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِى الْاَرْضِ مَرَحًاۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرٍۚ١٨
Wa lā tuṣa‘‘ir khaddaka lin-nāsi wa lā tamsyi fil-arḍi maraḥā(n), innallāha lā yuḥibbu kulla mukhtālin fakhūr(in).
[18]
और (घमंड के कारण) लोगों से अपना मुँह न फेर और धरती में अकड़कर न चल। निःसंदेह अल्लाह किसी अकड़ने वाले, गर्व करने वाले से प्रेम नहीं करता।6
6. सह़ीह़ ह़दीस में कहा गया है कि : वह व्यक्ति स्वर्ग में नहीं जाएगा जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी अहंकार हो। (मुसनद अहमद : 1/412)
وَاقْصِدْ فِيْ مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِنْ صَوْتِكَۗ اِنَّ اَنْكَرَ الْاَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيْرِ ࣖ١٩
Waqṣid fī masy-yika wagḍuḍ min ṣautik(a), inna ankaral-aṣwāti laṣautul-ḥamīr(i).
[19]
और अपनी चाल7 में मध्यमता रख तथा अपनी आवाज़ धीमी रख। निःसंदेह आवाज़ों में सबसे बुरी आवाज़ निश्चय गधे की आवाज़ है।
7. (देखिए : सूरतुल फ़ुरक़ान, आयत : 63)
اَلَمْ تَرَوْا اَنَّ اللّٰهَ سَخَّرَ لَكُمْ مَّا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِ وَاَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهٗ ظَاهِرَةً وَّبَاطِنَةً ۗوَمِنَ النَّاسِ مَنْ يُّجَادِلُ فِى اللّٰهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَّلَا هُدًى وَّلَا كِتٰبٍ مُّنِيْرٍ٢٠
Alam tarau annallāha sakhkhara lakum mā fis-samāwāti wa mā fil-arḍi wa asbaga ‘alaikum ni‘amahū ẓāhirataw wa bāṭinah(tan), wa minan-nāsi may yujādilu fillāhi bigairi ‘ilmiw wa lā hudaw wa lā kitābim munīr(in).
[20]
क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, सबको तुम्हारे लिए वशीभूत8 कर दिया है, तथा तुमपर अपनी खुली तथा छिपी नेमतें पूर्ण कर दी हैं?! और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के विषय9 में बिना किसी ज्ञान, बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी रोशन पुस्तक के विवाद करते हैं।
8. अर्थात तुम्हारी सेवा में लगा रखा है। 9. अर्थात उसके अस्तित्व और उसके अकेले पूज्य होने के विषय में।
وَاِذَا قِيْلَ لَهُمُ اتَّبِعُوْا مَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ قَالُوْا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ اٰبَاۤءَنَاۗ اَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطٰنُ يَدْعُوْهُمْ اِلٰى عَذَابِ السَّعِيْرِ٢١
Wa iżā qīla lahumuttabi‘ū mā anzalallāhu qālū bal nattabi‘u mā wajadnā ‘alaihi ābā'anā, awalau kānasy-syaiṭānu yad‘ūhum ilā ‘ażābis-sa‘īr(i).
[21]
और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो (क़ुरआन) उतारा है, उसका अनुसरण करो, तो कहते हैं कि हम तो उसी रास्ते पर चलेंगे, जिसपर अपने पूर्वजों को पाया है। क्या अगरचे शैतान उन्हें धधकती आग की यातना की ओर बुला रहा हो तो भी?10
10. अर्थात क्या वे सत्य और असत्य में अंतर किए बिना, असत्य ही का पालन करेंगे, और न समझ से काम लेंगे, न धर्म पुस्तक को मानेंगे?
۞ وَمَنْ يُّسْلِمْ وَجْهَهٗٓ اِلَى اللّٰهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقٰىۗ وَاِلَى اللّٰهِ عَاقِبَةُ الْاُمُوْرِ٢٢
Wa may yuslim wajhahū ilallāhi wa huwa muḥsinun faqadistamsaka bil-‘urwatil-wuṡqā, wa ilallāhi ‘āqibatul-umūr(i).
[22]
और जो व्यक्ति अपना चेहरा अल्लाह की ओर झुका दे (समर्पित कर दे) और वह सत्कर्मी भी हो, तो उसने मज़बूत कड़ा थाम लिया। और समस्त कार्यों का परिणम अल्लाह ही की ओर है।
وَمَنْ كَفَرَ فَلَا يَحْزُنْكَ كُفْرُهٗۗ اِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ فَنُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوْاۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلِيْمٌۢ بِذَاتِ الصُّدُوْرِ٢٣
Wa man kafara falā yaḥzunka kufruh(ū), ilainā marji‘uhum fanunabbi'uhum bimā ‘amilū, innallāha ‘alīmum biżātiṣ-ṣudūr(i).
[23]
तथा जिसने कुफ़्र किया, उसका कुफ़्र आपको शोकाकुल न करे। हमारी ही ओर उन्हें लौटकर आना है, फिर हम उन्हें बताएँगे, जो कुछ उन्होंने किया। निःसंदेह अल्लाह दिलों के भेदों को ख़ूब जानने वाला है।
نُمَتِّعُهُمْ قَلِيْلًا ثُمَّ نَضْطَرُّهُمْ اِلٰى عَذَابٍ غَلِيْظٍ٢٤
Numatti‘uhum qalīlan ṡumma naḍṭarruhum ilā ‘ażābin galīẓ(in).
[24]
हम उन्हें थोड़े समय11 के लिए आनंद देंगे, फिर हम उन्हें कठोर यातना के लिए बाध्य करेंगे।
11. अर्थात सांसारिक जीवन का लाभ।
وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ لَيَقُوْلُنَّ اللّٰهُ ۗقُلِ الْحَمْدُ لِلّٰهِ ۗبَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ٢٥
Wa la'in sa'altahum man khalaqas-samāwāti wal-arḍa layaqūlunnallāh(u), qulil-ḥamdu lillāh(i), bal akṡaruhum lā ya‘lamūn(a).
[25]
और यदि आप उनसे प्रश्न करें कि आकाशों और धरती को किसने पैदा किया? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, बल्कि उनमें अधिकतर नहीं जानते।12
12. कि उन्होंने सत्य को स्वीकार कर लिया।
لِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ اِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيْدُ٢٦
Lillāhi mā fis-samāwāti wal-arḍ(i), innallāha huwal-ganiyyul-ḥamīd(u).
[26]
आकाशों और धरती में जो कुछ है, अल्लाह ही का है। निःसंदेह अल्लाह सबसे बेनियाज़, सभी प्रशंसा के योग्य है।
وَلَوْ اَنَّ مَا فِى الْاَرْضِ مِنْ شَجَرَةٍ اَقْلَامٌ وَّالْبَحْرُ يَمُدُّهٗ مِنْۢ بَعْدِهٖ سَبْعَةُ اَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمٰتُ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ حَكِيْمٌ٢٧
Wa lau anna mā fil-arḍi min syajaratin aqlāmuw wal-baḥru yamudduhū mim ba‘dihī sab‘atu abḥurim mā nafidat kalimātullāh(i), innallāha ‘azīzun ḥakīm(un).
[27]
और यदि धरती में जितने वृक्ष हैं, सब क़लम बन जाएँ तथा समुद्र उसकी स्याही हो जाए, जिसके बाद सात समुद्र और हों, तो भी अल्लाह के शब्द समाप्त नहीं होंगे। निःसंदेह अल्लाह अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
مَا خَلْقُكُمْ وَلَا بَعْثُكُمْ اِلَّا كَنَفْسٍ وَّاحِدَةٍ ۗاِنَّ اللّٰهَ سَمِيْعٌۢ بَصِيْرٌ٢٨
Mā khalqukum wa lā ba‘ṡukum illā kanafsiw wāḥidah(tin), innallāha samī‘um baṣīr(un).
[28]
तुम्हें पैदा करना और पुनः जीवित करके उठाना केवल एक प्राण के समान13 है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।
13. अर्थात प्रलय के दिन अपनी शक्ति व सामर्थ्य से सबको एक प्राणी को पैदा करने एवं जीवित करने के समान पुनः जीवित कर देगा।
اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ يُوْلِجُ الَّيْلَ فِى النَّهَارِ وَيُوْلِجُ النَّهَارَ فِى الَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَۖ كُلٌّ يَّجْرِيْٓ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى وَّاَنَّ اللّٰهَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرٌ٢٩
Alam tara annallāha yūlijul-laila fin-nahāri wa yūlijun-nahāra fil-laili wa sakhkharasy-syamsa wal-qamar(a), kulluy yajrī ilā ajalim musammaw wa annallāha bimā ta‘malūna khabīr(un).
[29]
क्या तुमने नहीं देखा14 कि अल्लाह रात को दिन में दाखिल करता है और दिन को रात में दाखिल15 करता है, तथा सूर्य और चाँद को वशीभूत कर दिया है, हर एक एक निर्धारित समय तक चल रहा है। और तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे भली-भाँति अवगत है।
14. क़ुरआन ने एकेश्वरवाद का आमंत्रण देने तथा मिश्रणवाद का खंडन करने के लिए फिर इसका वर्णन किया है कि जब सृष्टि का रचयिता तथा विधाता अल्लाह ही है, तो पूज्य भी वही है, फिर भी यह विश्वव्यापि कुपथ है कि लोग अल्लाह के सिवा अन्य की पूजा करते तथा सूर्य और चाँद को सज्दा करते हैं। निर्धारित समय से अभिप्राय प्रलय है। 15. तो कभी दिन बड़ा होता है, तो कभी रात्रि।
ذٰلِكَ بِاَنَّ اللّٰهَ هُوَ الْحَقُّ وَاَنَّ مَا يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهِ الْبَاطِلُۙ وَاَنَّ اللّٰهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيْرُ ࣖ٣٠
Żālika bi'annallāha huwal-ḥaqqu wa anna mā yad‘ūna min dūnihil-bāṭil(u), wa annallāha huwal-‘aliyyul-kabīr(u).
[30]
यह इसलिए है कि अल्लाह ही सत्य है, और यह कि उसके सिवा जिसे वेे पुकारते हैं, वह असत्य है, और यह कि अल्लाह ही सर्वोच्च, सबसे महान है।
اَلَمْ تَرَ اَنَّ الْفُلْكَ تَجْرِيْ فِى الْبَحْرِ بِنِعْمَتِ اللّٰهِ لِيُرِيَكُمْ مِّنْ اٰيٰتِهٖۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُوْرٍ٣١
Alam tara annal-fulka tajrī fil-baḥri bini‘matillāhi liyuriyakum min āyātih(ī), inna fī żālika la'āyātil likulli ṣabbārin syakūr(in).
[31]
क्या तुमने नहीं देखा कि नाव समुद्र में अल्लाह के अनुग्रह से चलती है, ताकि वह (अल्लाह) तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाए। निःसंदेह इसमें हर बड़े धैर्यवान, बड़े कृतज्ञ के लिए कई निशानियाँ हैं।
وَاِذَا غَشِيَهُمْ مَّوْجٌ كَالظُّلَلِ دَعَوُا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ەۚ فَلَمَّا نَجّٰىهُمْ اِلَى الْبَرِّ فَمِنْهُمْ مُّقْتَصِدٌۗ وَمَا يَجْحَدُ بِاٰيٰتِنَآ اِلَّا كُلُّ خَتَّارٍ كَفُوْرٍ٣٢
Wa iżā gasyiyahum maujun kaẓ-ẓulali da‘awullāha mukhliṣīna lahud-dīn(a), falammā najjāhum ilal-barri faminhum muqtaṣid(un), wa mā yajḥadu bi'āyātinā illā kullu khattārin kafūr(in).
[32]
और जब उनपर छत्रों के समान कोई लहर छा जाती है, तो वे अल्लाह को इस हाल में पुकारते हैं कि धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करने वाले होते हैं। फिर जब वह उन्हें सुरक्षित थल तक पहुँचा देता है, तो उनमें से कुछ ही मध्यम-मार्ग पर क़ायम रहने वाले होते हैं। और हमारी निशानियों का इनकार केवल वही व्यक्ति करता है, जो अत्यंत विश्वासघाती, अति कृतघ्न है।
يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوْا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِيْ وَالِدٌ عَنْ وَّلَدِهٖۖ وَلَا مَوْلُوْدٌ هُوَ جَازٍ عَنْ وَّالِدِهٖ شَيْـًٔاۗ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيٰوةُ الدُّنْيَاۗ وَلَا يَغُرَّنَّكُمْ بِاللّٰهِ الْغَرُوْرُ٣٣
Ya ayyuhan-nāsuttaqū rabbakum wakhsyau yaumal lā yajzī wālidun ‘aw waladih(ī), wa lā maulūdun huwa jāzin ‘aw wālidihī syai'ā(n), inna wa‘dallāhi ḥaqqun falā tagurrannakumul-ḥayātud-dun-yā, wa lā yagurrannakum billāhil-garūr(u).
[33]
ऐ लोगो! अपने पालनहार से डरो तथा उस दिन से डरो, जिस दिन कोई पिता अपनी संतान के काम नहीं आएगा और न कोई पुत्र अपने पिता के कुछ काम आ सकेगा।16 निःसंदेह अल्लाह का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें कदापि धोखे में न रखे और न धोखेबाज़ (शैतान) तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा देने पाए।
16. अर्थात परलोक की यातना सांसारिक दंड के समान नहीं होगी कि कोई किसी की सहायता से दंड मुक्त हो जाए।
اِنَّ اللّٰهَ عِنْدَهٗ عِلْمُ السَّاعَةِۚ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَۚ وَيَعْلَمُ مَا فِى الْاَرْحَامِۗ وَمَا تَدْرِيْ نَفْسٌ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًاۗ وَمَا تَدْرِيْ نَفْسٌۢ بِاَيِّ اَرْضٍ تَمُوْتُۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلِيْمٌ خَبِيْرٌ ࣖ٣٤
Innallāha ‘indahū ‘ilmus-sā‘ah(ti), wa yunazzilul-gaiṡ(a), wa ya‘lamu mā fil-arḥām(i), wa mā tadrī nafsum māżā taksibu gadā(n), wa mā tadrī nafsum bi'ayyi arḍin tamūt(u), innallāha ‘alīmun khabīr(un).
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निःसंदेह अल्लाह ही के पास क़ियामत का ज्ञान17 है और वही वर्षा उतारता है, और वह जानता है जो कुछ गर्भाशयों में है, और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह कल क्या कमाएगा, और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह किस धरती में मरेगा। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ की ख़बर रखने वाला है।
17. अबू हुरैरह (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक दिन लोगों के बीच बैठे हुए थे कि एक व्यक्ति आ गया, और प्रश्न किया कि अल्लाह के रसूल! ईमान क्या है? आपने कहा : ईमान यह है कि तुम अल्लाह पर तथा उसके फ़रिश्तों, उसके सब रसूलों और उससे मिलने और फिर दोबारा जीवित किए जाने पर ईमान लाओ। उसने कहा : इस्लाम क्या है? आपने कहा : इस्लाम यह है कि केवल अल्लाह की इबादत करो और किसी वस्तु को उसका साझी न बनाओ, तथा नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो, तथा रमज़ान के रोज़े रखो। उसने कहा : एहसान किया है? आपने कहा : एहसान यह है कि अल्लाह की इबादत ऐसे करो जैसे तुम उसे देख रहे हो। यदि यह न हो सके, तो यह ख़्याल रखो कि निश्चय वह तुम्हें देख रहा है। उसने कहा : प्रलय कब होगी? आप ने कहा : मैं प्रश्नकर्ता से अधिक नहीं जानता। परंतु मैं तुम्हें उसकी कुछ निशानियाँ बताऊँगा : जब स्त्री अपने स्वामिनी को जन्म देगी और जब नंगे निःवस्त्र लोग मुखिया हो जाएँगे। क़ियामत उन पाँच बातों में से एक है जो अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। और आपने यही आयत पढ़ी। फिर वह व्यक्ति चला गया। आपने कहा : उसे बुलाओ, तो वह नहीं मिला। आपने फरमाया : यह जिबरील थे, तुम्हें तुम्हारा धर्म सिखाने आए थे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4777)