Surah Ar-Rum
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
الۤمّۤ ۚ١
Alif lām mīm.
[1]
अलिफ़, लाम, मीम।
غُلِبَتِ الرُّوْمُۙ٢
Gulibatir-rūm(u).
[2]
रूमी पराजित हो गए।
فِيْٓ اَدْنَى الْاَرْضِ وَهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُوْنَۙ٣
Fī adnal-arḍi wa hum mim ba‘di galabihim sayaglibūn(a).
[3]
निकटतम क्षेत्र में। और वे अपनी पराजय के बाद जल्द ही विजयी हो जाएँगे!
فِيْ بِضْعِ سِنِيْنَ ەۗ لِلّٰهِ الْاَمْرُ مِنْ قَبْلُ وَمِنْۢ بَعْدُ ۗوَيَوْمَىِٕذٍ يَّفْرَحُ الْمُؤْمِنُوْنَۙ٤
Fī biḍ‘i sinīn(a), lillāhil-amru min qablu wa mim ba‘d(u), wa yauma'iżiy yafraḥul-mu'minūn(a).
[4]
कुछ वर्षों में। सारा मामला अल्लाह के अधिकार में है, पहले भी और बाद में भी। और उस दिन ईमान वाले प्रसन्न होंगे।
بِنَصْرِ اللّٰهِ ۗيَنْصُرُ مَنْ يَّشَاۤءُۗ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ٥
Binaṣrillāh(i), yanṣuru may yasyā'(u), wa huwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[5]
अल्लाह की सहायता से। वह जिसकी चाहता है, सहायता करता है। वह सब पर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान है।
وَعْدَ اللّٰهِ ۗ لَا يُخْلِفُ اللّٰهُ وَعْدَهٗ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ٦
Wa‘dallāh(i), lā yukhlifullāhu wa‘dahū wa lākinna akṡaran-nāsi lā ya‘lamūn(a).
[6]
यह अल्लाह का वादा है। अल्लाह अपने वादे1 के विरुद्ध नहीं करता। परंतु अधिकतर लोग नहीं जानते।
1. इन आयतों के अंदर दो भविष्यवाणियाँ की गई हैं। जो क़ुरआन शरीफ़ तथा स्वयं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सत्य होने का ऐतिहासिक प्रमाण हैं। यह वह युग था जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और मक्का के क़ुरैश के बीच युद्ध आरंभ हो गया था। रूम के राजा क़ैसर को उस समय, ईरान के राजा किस्रा ने पराजित कर दिया था। जिससे मक्का वासी प्रसन्न थे। क्योंकि वह अग्नि के पुजारी थे। और रूमी ईसाई अकाशीय धर्म के अनुयायी थे। और कह रहे थे कि हम मिश्रणवादी भी इसी प्रकार मुसलमानों को पराजित कर देंगे जिस प्रकार रूमियों को ईरानियों ने पराजित किया। इसी पर यह दो भविष्यवाणी की गई कि रूमी कुछ वर्षों में फिर विजयी हो जाएँगे और यह भविष्यवाणी इसके साथ पूरी होगी कि मुसलमान भी उसी समय विजय होकर प्रसन्न हो रहे होंगे। और ऐसा ही हुआ कि 9 वर्ष के भीतर रूमियों ने ईरानियों को पराजित कर दिया।
يَعْلَمُوْنَ ظَاهِرًا مِّنَ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَاۖ وَهُمْ عَنِ الْاٰخِرَةِ هُمْ غٰفِلُوْنَ٧
Ya‘lamūna ẓāhiram minal-ḥayātid-dun-yā, wa hum ‘anil-ākhirati hum gāfilūn(a).
[7]
वे केवल दुनिया के जीवन के कुछ बाहरी स्वरूप2 को जानते हैं, और वे आख़िरत से बिलकुल गाफ़िल हैं।
2. अर्थात सुख-सुविधा और आनंद को। और वे इससे अचेत हैं कि एक और जीवन भी है जिसमें कर्मों के परिणाम सामने आएँगे। बल्कि यही देखा जाता है कि कभी एक जाति उन्नति कर लेने के पश्चात् असफल हो जाती है।
اَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوْا فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ ۗ مَا خَلَقَ اللّٰهُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَآ اِلَّا بِالْحَقِّ وَاَجَلٍ مُّسَمًّىۗ وَاِنَّ كَثِيْرًا مِّنَ النَّاسِ بِلِقَاۤئِ رَبِّهِمْ لَكٰفِرُوْنَ٨
Awalam yatafakkarū fī anfusihim, mā khalaqallāhus-samāwāti wal-arḍa wa mā bainahumā illā bil-ḥaqqi wa ajalim musammā(n), wa inna kaṡīram minan-nāsi biliqā'i rabbihim lakāfirūn(a).
[8]
क्या उन लोगों ने अपने दिलों में विचार नहीं किया कि अल्लाह ने आकाशों और धरती को और उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों3 को सत्य के साथ और एक निश्चित अवधि के लिए ही पैदा किया है?! और निःसंदेह बहुत-से लोग अपने पालनहार से मिलने का इनकार करते हैं।
3. संसार की व्यवस्था बता रही है कि यह अकारण नहीं, बल्कि इसका कुछ अभिप्राय है।
اَوَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ كَانُوْٓا اَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَّاَثَارُوا الْاَرْضَ وَعَمَرُوْهَآ اَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوْهَا وَجَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِۗ فَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَۗ٩
Awalam yasīrū fil-arḍi fayanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-lażīna min qablihim, kānū asyadda minhum quwwataw wa aṡārul-arḍa wa ‘amarūhā akṡara mimmā ‘amarūhā wa jā'athum rusuluhum bil-bayyināt(i), famā kānallāhu liyaẓlimahum wa lākin kānū anfusahum yaẓlimūn(a).
[9]
और क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते उन लोगों का परिणाम कैसा हुआ, जो उनसे पहले थे? वे उनसे अधिक शक्तिशाली थे और उन्होंने धरती को जोता-बोया और उसे आबाद किया उससे अधिक जितना उन्होंने उसे आबाद किया था, और उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर आए। तो अल्लाह ऐसा न था कि उनपर अत्याचार करे, लेकिन वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते थे।
ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِيْنَ اَسَاۤءُوا السُّوْۤاٰىٓ اَنْ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَكَانُوْا بِهَا يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ١٠
Ṡumma kāna ‘āqibatal-lażīna asā'us-sū'ā an każżabū bi'āyātillāhi wa kānū bihā yastahzi'ūn(a).
[10]
फिर जिन लोगों ने बुराई की, उनका बहुत ही बुरा अंत हुआ, इसलिए कि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और वे उनका उपहास करते थे।
اَللّٰهُ يَبْدَؤُا الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيْدُهٗ ثُمَّ اِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ١١
Allāhu yabda'ul-khalqa ṡumma yu‘īduhū ṡumma ilaihi turja‘ūn(a).
[11]
अल्लाह ही सृष्टि का आरंभ करता है। फिर वही उसे दोबारा पैदा करेगा। फिर तुम उसी की ओर लौटाए4 जाओगे।
4. अर्थात प्रलय के दिन अपने सांसारिक अच्छे-बुरे कामों का प्रतिकार पाने के लिए।
وَيَوْمَ تَقُوْمُ السَّاعَةُ يُبْلِسُ الْمُجْرِمُوْنَ١٢
Wa yauma taqūmus-sā‘atu yublisul-mujrimūn(a).
[12]
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, अपराधी निराश5 हो जाएँगे।
5. अर्थात अपनी मुक्ति से और चकित होकर रह जएँगे।
وَلَمْ يَكُنْ لَّهُمْ مِّنْ شُرَكَاۤىِٕهِمْ شُفَعٰۤؤُا وَكَانُوْا بِشُرَكَاۤىِٕهِمْ كٰفِرِيْنَ١٣
Wa lam yakul lahum min syurakā'ihim syufa‘ā'u wa kānū bisyurakā'ihim kāfirīn(a).
[13]
और उनके लिए उनके साझियों में से कोई सिफ़ारिश करने वाले नहीं होंगे और वे अपने साझियों का इनकार करने वाले6 होंगे।
6. क्योंकि वे देख लेंगे कि उन्हें सिफ़ारिश करने का कोई अधिकार नहीं होगा। (देखिए : सूरतुल अन्आम, आयत : 23)
وَيَوْمَ تَقُوْمُ السَّاعَةُ يَوْمَىِٕذٍ يَّتَفَرَّقُوْنَ١٤
Wa yauma taqūmus-sā‘atu yauma'iżiy yatafarraqūn(a).
[14]
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, उस दिन वे अलग-अलग हो जाएँगे।
فَاَمَّا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ فَهُمْ فِيْ رَوْضَةٍ يُّحْبَرُوْنَ١٥
Fa ammal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti fahum fī rauḍatiy yuḥbarūn(a).
[15]
फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए, वे जन्नत में प्रसन्नमय रखे जाएँगे।
وَاَمَّا الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَلِقَاۤئِ الْاٰخِرَةِ فَاُولٰۤىِٕكَ فِى الْعَذَابِ مُحْضَرُوْنَ١٦
Wa ammal-lażīna kafarū wa każżabū bi'āyātinā wa liqā'il-ākhirati fa'ulā'ika fil-‘ażābi muḥḍarūn(a).
[16]
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया, वे यातना में उपस्थित किए जाएँगे।
فَسُبْحٰنَ اللّٰهِ حِيْنَ تُمْسُوْنَ وَحِيْنَ تُصْبِحُوْنَ١٧
Fa subḥānallāhi ḥīna tumsūna wa ḥīna tuṣbiḥūn(a).
[17]
अतः तुम अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करो,जब तुम शाम करते हो और जब सुबह करते हो।
وَلَهُ الْحَمْدُ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَعَشِيًّا وَّحِيْنَ تُظْهِرُوْنَ١٨
Wa lahul-ḥamdu fis-samāwāti wal-arḍi wa ‘asyiyyaw wa ḥīna tuẓhirūn(a).
[18]
तथा उसी के लिए सब प्रशंसा है आकाशों एवं धरती में, और तीसरे पहर तथा जब तुम ज़ुहर के समय में प्रवेश करते हो।
يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَيُحْيِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۗوَكَذٰلِكَ تُخْرَجُوْنَ ࣖ١٩
Yukhrijul-ḥayya minal-mayyiti wa yukhrijul-mayyita minal-ḥayyi wa yuḥyil-arḍa ba‘da mautihā, wa każālika tukhrajūn(a).
[19]
वह जीवित को मृत से निकालता7 है तथा मृत को जीवित से निकालता है और धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित करता है। और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।
7. यहाँ से यह बताया जा रहा है कि परलोक में सब को पुनः जीवित किया जाना संभव है और उसका प्रमाण दिया जा रहा है। इसी के साथ यह भी बताया जा रहा है कि इस ब्रह्मांड का स्वामी और व्यवस्थापक अल्लाह ही है, अतः पूज्य भी केवल वही है।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖٓ اَنْ خَلَقَكُمْ مِّنْ تُرَابٍ ثُمَّ اِذَآ اَنْتُمْ بَشَرٌ تَنْتَشِرُوْنَ٢٠
Wa min āyātihī an khalaqakum min turābin ṡumma iżā antum basyarun tantasyirūn(a).
[20]
और उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर एकाएक तुम मनुष्य हो, जो फैल रहे हो।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖٓ اَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِّنْ اَنْفُسِكُمْ اَزْوَاجًا لِّتَسْكُنُوْٓا اِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَّوَدَّةً وَّرَحْمَةً ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّتَفَكَّرُوْنَ٢١
Wa min āyātihī an khalaqa lakum min anfusikum azwājal litaskunū ilaihā wa ja‘ala bainakum mawaddataw wa raḥmah(tan), inna fī żālika la'āyātil liqaumiy yatafakkarūn(a).
[21]
तथा उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्ही में से जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उनके पास शांति प्राप्त करो। तथा उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दया रख दी। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशाननियाँ हैं, जो सोच-विचार करते हैं।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖ خَلْقُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَاخْتِلَافُ اَلْسِنَتِكُمْ وَاَلْوَانِكُمْۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّلْعٰلِمِيْنَ٢٢
Wa min āyātihī khalqus-samāwāti wal-arḍi wakhtilāfu alsinatikum wa alwānikum, inna fī żālika la'āyātil lil-‘ālimīn(a).
[22]
तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारे रंगों का अलग-अलग होना है। निःसंदेह इसमें ज्ञान रखने वालों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ8 है।
8. क़ुरआन ने यह कहकर कि भाषाओं और वर्ग-वर्ण का भेद अल्लाह की रचना की निशानियाँ हैं, उस भेद-भाव को सदा के लिए समाप्त कर दिया, जो पक्षपात, आपसी बैर और र्गव का आधार बनते हैं। और संसार की शांति को भंग करने का कारण होते हैं। (देखिए : सूरतुल ह़ुजुरात, आयत : 13) यदि आज भी इस्लाम की इस शिक्षा को अपना लिया जाए तो संसार शांति का गहवारा बन सकता है।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖ مَنَامُكُمْ بِالَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَابْتِغَاۤؤُكُمْ مِّنْ فَضْلِهٖۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّسْمَعُوْنَ٢٣
Wa min āyātihī manāmukum bil-laili wan-nahāri wabtigā'ukum min faḍlih(ī), inna fī żālika la'āyātil liqaumiy yasma‘ūn(a).
[23]
तथा उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन को सोना और तुम्हारा उसके अनुग्रह को तलाश करना है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖ يُرِيْكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَّطَمَعًا وَّيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَيُحْيٖ بِهِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّعْقِلُوْنَ٢٤
Wa min āyātihī yurīkumul-barqa khaufaw wa ṭama‘aw wa yunazzilu minas-samā'i mā'an fa yuḥyī bihil-arḍa ba‘da mautihā, inna fī żālika la'āyātil liqaumiy ya‘qilūn(a).
[24]
और उसकी निशानियों में से (यह भी) है कि वह तुम्हें भय और आशा के लिए बिजली दिखाता है और आकाश से पानी उतारता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित कर देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझते हैं।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖٓ اَنْ تَقُوْمَ السَّمَاۤءُ وَالْاَرْضُ بِاَمْرِهٖۗ ثُمَّ اِذَا دَعَاكُمْ دَعْوَةًۖ مِّنَ الْاَرْضِ اِذَآ اَنْتُمْ تَخْرُجُوْنَ٢٥
Wa min āyātihī an taqūmas-samā'u wal-arḍu bi'amrih(ī), ṡumma iżā da‘ākum da‘watam minal-arḍi iżā antum takhrujūn(a).
[25]
और उसकी निशानियों में से है कि आकाश तथा धरती उसके आदेश से स्थापित हैं। फिर जब वह तुम्हें धरती में से एक ही बार पुकारेगा, तो सहसा तुम (बाहर) निकल आओगे।
وَلَهٗ مَنْ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ كُلٌّ لَّهٗ قٰنِتُوْنَ٢٦
Wa lahū man fis-samāwāti wal-arḍ(i), kullul lahū qānitūn(a).
[26]
और आकाशों और धरती में जो भी है, उसी का है। सब उसी के आज्ञाकारी हैं।
وَهُوَ الَّذِيْ يَبْدَؤُا الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيْدُهٗ وَهُوَ اَهْوَنُ عَلَيْهِۗ وَلَهُ الْمَثَلُ الْاَعْلٰى فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ࣖ٢٧
Wa huwal-lażī yabda'ul-khalqa ṡumma yu‘īduhū wa huwa ahwanu ‘alaih(i), wa lahul-maṡalul-a‘lā fis-samāwāti wal-arḍ(i), wa huwal-‘azīzul-ḥakīm(u).
[27]
तथा वही है, जो उत्पत्ति का आरंभ करता है। फिर वही उसे पुनः पैदा करेगा। और यह उसके लिए अधिक सरल है। तथा आकाशों और धरती में सर्वोच्च गुण उसी का है। और वही प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला है।
ضَرَبَ لَكُمْ مَّثَلًا مِّنْ اَنْفُسِكُمْۗ هَلْ لَّكُمْ مِّنْ مَّا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ مِّنْ شُرَكَاۤءَ فِيْ مَا رَزَقْنٰكُمْ فَاَنْتُمْ فِيْهِ سَوَاۤءٌ تَخَافُوْنَهُمْ كَخِيْفَتِكُمْ اَنْفُسَكُمْۗ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الْاٰيٰتِ لِقَوْمٍ يَّعْقِلُوْنَ٢٨
Ḍaraba lakum maṡalam min anfusikum, hal lakum mim mā malakat aimānukum min syurakā'a fī mā razaqnākum fa'antum fīhi sawā'un takhāfūnahum kakhīfatikum anfusakum, każālika nufaṣṣilul-āyāti liqaumiy ya‘qilūn(a).
[28]
उसने तुम्हारे लिए स्वयं तुम्हीं में से एक उदाहरण पेश किया है। हमने जो रोज़ी तुम्हें प्रदान की है, क्या उसमें तुम्हारे9 दासों में से तुम्हारा कोई साझी है कि तुम उसमें समान हो, उनसे वैसे ही डरते हो, जैसे एक-दूसरे से डरते हो? इसी प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर वर्णन करते हैं, जो समझ रखते हैं।
9. परलोक और एकेश्वरवाद के तर्कों का वर्णन करने के पश्चात् इस आयत में शुद्ध एकेश्वरवाद के प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहे हैं कि जब तुम स्वयं अपने दासों को अपनी जीविका में साझी नहीं बना सकते, तो जिस अल्लाह ने सबको बनाया है उसकी उपासना में दूसरों को कैसे साझी बनाते हो?
بَلِ اتَّبَعَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْٓا اَهْوَاۤءَهُمْ بِغَيْرِ عِلْمٍۗ فَمَنْ يَّهْدِيْ مَنْ اَضَلَّ اللّٰهُ ۗوَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِيْنَ٢٩
Balittaba‘al-lażīna ẓalamū ahwā'ahum bigairi ‘ilm(in), famay yahdī man aḍallallāh(u), wa mā lahum min nāṣirīn(a).
[29]
बल्कि वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया बिना किसी ज्ञान के अपनी इच्छाओं के पीछे चल पड़े।फिर उसे कौन मार्ग पर लाए, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया हो। और उनके लिए कोई सहायक नहीं है।
فَاَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّيْنِ حَنِيْفًاۗ فِطْرَتَ اللّٰهِ الَّتِيْ فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَاۗ لَا تَبْدِيْلَ لِخَلْقِ اللّٰهِ ۗذٰلِكَ الدِّيْنُ الْقَيِّمُۙ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَۙ٣٠
Fa aqim wajhaka lid-dīni ḥanīfā(n), fiṭratallāhil-latī faṭaran-nāsa ‘alaihā, lā tabdīla likhalqillāh(i), żālikad-dīnul-qayyim(u), wa lākinna akṡaran-nāsi lā ya‘lamūn(a).
[30]
तो (ऐ नबी!) आप एकाग्र होकर अपने चेहरे को इस धर्म की ओर स्थापित करें। उस फ़ितरत पर जमे रहें, जिसपर10 अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।11
10. एक ह़दीस में कुछ इस प्रकार आया है कि प्रत्येक शिशु प्रकृति (अर्थात इस्लाम) पर जन्म लेता है। परंतु उसके माँ-बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बना देते हैं। (देखिए : सह़ीह़ मुस्लिम : 2656) और यदि उसके माता पिता हिन्दु अथवा बुद्ध या और कुछ हैं, तो वे अपने शिशु को अपने धर्म के रंग में रंग देते हैं। आयत का भावार्थ यह है कि स्वभाविक धर्म इस्लाम और तौह़ीद को न बदलो, बल्कि सह़ीह पालन-पोषण द्वारा अपने शिशु को इसी स्वभाविक धर्म इस्लाम की शिक्षा दो। 11. इसीलिए वे इस्लाम और तौह़ीद को नहीं पहचानते।
۞ مُنِيْبِيْنَ اِلَيْهِ وَاتَّقُوْهُ وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَلَا تَكُوْنُوْا مِنَ الْمُشْرِكِيْنَۙ٣١
Munībīna ilaihi wattaqūhu wa aqīmuṣ-ṣalāta wa lā takūnū minal-musyrikīn(a).
[31]
उसी (अल्लाह) की ओर पलटते हुए, और उससे डरो तथा नमाज़ क़ायम करो और मुश्रिकों में से न हो जाओ।
مِنَ الَّذِيْنَ فَرَّقُوْا دِيْنَهُمْ وَكَانُوْا شِيَعًا ۗ كُلُّ حِزْبٍۢ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُوْنَ٣٢
Minal-lażīna farraqū dīnahum wa kānū syiya‘ā(n), kullu ḥizbim bimā ladaihim fariḥūn(a).
[32]
उन लोगों में से जिन्होंने अपने धर्म को टुकड़े-टुकड़े कर दिया, और कई गिरोह हो गए। प्रत्येक गिरोह उसी12 पर खुश है, जो उसके पास है।
12. वह समझता है कि मैं ही सत्य पर हूँ और उन्हें तथ्य की कोई चिंता नहीं।
وَاِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُّنِيْبِيْنَ اِلَيْهِ ثُمَّ اِذَآ اَذَاقَهُمْ مِّنْهُ رَحْمَةً اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُوْنَۙ٣٣
Wa iżā massan-nāsa ḍurrun da‘au rabbahum munībīna ilaihi ṡumma iżā ażāqahum minhu raḥmatan iżā farīqum minhum birabbihim yusyrikūn(a).
[33]
और जब लोगों को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वे अपने पालनहार को, उसकी ओर लौटते हुए पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें अपनी ओर से कोई दया चखाता है, तो सहसा उनमें से एक समूह अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।
لِيَكْفُرُوْا بِمَآ اٰتَيْنٰهُمْۗ فَتَمَتَّعُوْاۗ فَسَوْفَ تَعْلَمُوْنَ٣٤
Liyakfurū bimā ātaināhum, fatamatta‘ū, fasaufa ta‘lamūn(a).
[34]
ताकि वे उसके प्रति कृतघ्नता दिखाएँ, जो हमने उन्हें प्रदान किया है। तो तुम लाभ उठा लो, शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा।
اَمْ اَنْزَلْنَا عَلَيْهِمْ سُلْطٰنًا فَهُوَ يَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُوْا بِهٖ يُشْرِكُوْنَ٣٥
Am anzalnā ‘alaihim sulṭānan fahuwa yatakallamu bimā kānū bihī yusyrikūn(a).
[35]
क्या हमने उनपर कोई प्रमाण उतारा है कि वह उस चीज़ को (उचित) बताता है, जिसे वे अल्लाह के साथ साझी ठहराया13 करते थे।
13. यह प्रश्न नकारात्मक है अर्थात उनके पास इसका कोई प्रमाण नहीं है।
وَاِذَآ اَذَقْنَا النَّاسَ رَحْمَةً فَرِحُوْا بِهَاۗ وَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ اِذَا هُمْ يَقْنَطُوْنَ٣٦
Wa iżā ażaqnan-nāsa raḥmatan fariḥū bihā, wa in tuṣibhum sayyi'atum bimā qaddamat aidīhim iżā hum yaqnaṭūn(a).
[36]
और जब हम लोगों को कोई दया चखाते हैं, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं, और अगर उन्हें उनकी करतूतों के कारण कोई विपत्ति पहुँचती है, तो वे सहसा निराश हो जाते हैं।
اَوَلَمْ يَرَوْا اَنَّ اللّٰهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَقْدِرُۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ٣٧
Awalam yarau annallāha yabsuṭur-rizqa limay yasyā'u wa yaqdir(u), inna fī żālika la'āyātil liqaumiy yu'minūn(a).
[37]
क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी विस्तृत कर देता है, और जिसके लिए चाहता है, तंग कर देता है? निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो ईमान रखते हैं।
فَاٰتِ ذَا الْقُرْبٰى حَقَّهٗ وَالْمِسْكِيْنَ وَابْنَ السَّبِيْلِۗ ذٰلِكَ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يُرِيْدُوْنَ وَجْهَ اللّٰهِ ۖوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ٣٨
Fa āti żal-qurbā ḥaqqahū wal-miskīna wabnas-sabīl(i), żālika khairul lil-lażīna yurīdūna wajhallāh(i), wa ulā'ika humul-mufliḥūn(a).
[38]
अतः रिश्तेदार को उसका हक़ दो, तथा निर्धन और यात्री को (भी)। यह उन लोगों के लिए बेहतर है, जो अल्लाह का चेहरा चाहते हैं और वही सफल होने वाले हैं।
وَمَآ اٰتَيْتُمْ مِّنْ رِّبًا لِّيَرْبُوَا۟ فِيْٓ اَمْوَالِ النَّاسِ فَلَا يَرْبُوْا عِنْدَ اللّٰهِ ۚوَمَآ اٰتَيْتُمْ مِّنْ زَكٰوةٍ تُرِيْدُوْنَ وَجْهَ اللّٰهِ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُضْعِفُوْنَ٣٩
Wa mā ātaitum mir ribal liyarbuwa fī amwālin-nāsi falā yarbū ‘indallāh(i), wa mā ātaitum min zakātin turīdūna wajhallāhi fa'ulā'ika humul-muḍ‘ifūn(a).
[39]
और तुम ब्याज पर जो (उधार) देते हो, ताकि वह लोगों के धनों में मिलकर अधिक14 हो जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ अधिक नहीं होता। तथा तुम अल्लाह का चेहरा चाहते हुए जो कुछ ज़कात से देते हो, तो वही लोग कई गुना बढ़ाने वाले हैं।
14. इस आयत में सामाजिक अधिकारों की ओर ध्यान दिलाया गया है कि जब सब कुछ अल्लाह ही का दिया हुआ है, तो तुम्हें अल्लाह की प्रसन्नता के लिए सबका अधिकार देना चाहिए। ह़दीस में है कि जो व्याज खाता-खिलाता है और उसे लिखता तथा उसपर गवाही देता है उस पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने धिक्कार किया है।
اَللّٰهُ الَّذِيْ خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيْتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيْكُمْۗ هَلْ مِنْ شُرَكَاۤىِٕكُمْ مَّنْ يَّفْعَلُ مِنْ ذٰلِكُمْ مِّنْ شَيْءٍۗ سُبْحٰنَهٗ وَتَعٰلٰى عَمَّا يُشْرِكُوْنَ ࣖ٤٠
Allāhul-lażī khalaqakum ṡumma razaqakum ṡumma yumītukum ṡumma yuḥyīkum, hal min syurakā'ikum may yaf‘alu min żālikum min syai'(in), subḥānahū wa ta‘ālā ‘ammā yusyrikūn(a).
[40]
अल्लाह वह (अस्तित्व) है, जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें जीविका प्रदान की, फिर तुम्हें मृत्यु देगा, फिर तुम्हें जीवित करेगा।15 क्या तुम्हारे साझियों में से कोई है, जो इन कामों में से कुछ भी कर सके? वह पवित्र है और सर्वोच्च है, उनके साझी बनाने से।
15. इसमें फिर एकेश्वरवाद का वर्णन तथा शिर्क का खंडन किया गया है।
ظَهَرَ الْفَسَادُ فِى الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ اَيْدِى النَّاسِ لِيُذِيْقَهُمْ بَعْضَ الَّذِيْ عَمِلُوْا لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ٤١
Żaharal-fasādu fil-barri wal-baḥri bimā kasabat aidin-nāsi liyużīqahum ba‘ḍal-lażī ‘amilū la‘allahum yarji‘ūn(a).
[41]
जल और थल में लोगों के हाथों की कमाई के कारण बिगाड़ फैल गया16 है, ताकि वह (अल्लाह) उन्हें उनके कुछ कर्मों का मज़ा चखाए, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।
16. आयत में बताया गया है कि इस संसार में जो उपद्रव तथा अत्याचार हो रहा है यह सब शिर्क के कारण हो रहा है। जब लोगों ने एकेश्वर्वाद को छोड़कर शिर्क अपना लिया, तो अत्याचार और उपद्रव होने लगा। क्योंकि न एक अल्लाह का भय रह गया और न उसके नियमों का पालन।
قُلْ سِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلُۗ كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّشْرِكِيْنَ٤٢
Qul sīrū fil-arḍi fanẓurū kaifa kāna ‘āqibatul-lażīna min qabl(u), kāna akṡaruhum musyrikīn(a).
[42]
आप कह दें कि धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि उन लोगों का अंत कैसा रहा, जो इनसे पहले थे। उनमें अधिकतर मुश्रिक थे।
فَاَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّيْنِ الْقَيِّمِ مِنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهٗ مِنَ اللّٰهِ يَوْمَىِٕذٍ يَّصَّدَّعُوْنَ٤٣
Fa aqim wajhaka lid-dīnil-qayyimi min qabli ay ya'tiya yaumul lā maradda lahū minallāhi yauma'iżiy yaṣṣadda‘ūn(a).
[43]
अतः आप अपना चेहरा सीधे धर्म पर स्थापित रखें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए, जिसे अल्लाह की ओर से टलना नहीं है। उस दिन लोग अलग-अलग17 हो जाएँगे।
17. अर्थात ईमान वाले और काफ़िर।
مَنْ كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهٗۚ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِاَنْفُسِهِمْ يَمْهَدُوْنَۙ٤٤
Man kafara fa ‘alaihi kufruh(ū), wa man ‘amila ṣāliḥan fali'anfusihim yamhadūn(a).
[44]
जिसने कुफ़्र किया, उसके कुफ़्र का नुकसान उसी पर है, और जिसने सत्कर्म किया, तो वे अपने ही लिए (आराम का) साधन जुटा रहे हैं।
لِيَجْزِيَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ مِنْ فَضْلِهٖۗ اِنَّهٗ لَا يُحِبُّ الْكٰفِرِيْنَ٤٥
Liyajziyal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti min faḍlih(ī), innahū lā yuḥibbul-kāfirīn(a).
[45]
ताकि वह (अल्लाह) अपने अनुग्रह से उन लोगों को बदला दे, जो ईमान लाए और उन्होंने सत्कर्म किए। निःसंदेह वह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
وَمِنْ اٰيٰتِهٖٓ اَنْ يُّرْسِلَ الرِّيٰحَ مُبَشِّرٰتٍ وَّلِيُذِيْقَكُمْ مِّنْ رَّحْمَتِهٖ وَلِتَجْرِيَ الْفُلْكُ بِاَمْرِهٖ وَلِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ٤٦
Wa min āyātihī ay yursilar-riyāḥa mubasysyirātiw wa liyużīqakum mir raḥmatihī wa litajriyal-fulka bi'amrihī wa litabtagū min faḍlihī wa la‘allakum tasykurūn(a).
[46]
और उसकी निशानियों में से है कि वह शुभ सूचना देने वाली हवाएँ भेजता है, और ताकि तुम्हें अपनी दया (वर्षा) चखाए, और ताकि उसके आदेश से नावें चलें, और ताकि तुम उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो, और ताकि तुम आभार प्रकट करो।
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ رُسُلًا اِلٰى قَوْمِهِمْ فَجَاۤءُوْهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ فَانْتَقَمْنَا مِنَ الَّذِيْنَ اَجْرَمُوْاۗ وَكَانَ حَقًّاۖ عَلَيْنَا نَصْرُ الْمُؤْمِنِيْنَ٤٧
Wa laqad arsalnā min qablika rusulan ilā qaumihim fajā'ūhum bil-bayyināti fantaqamnā minal-lażīna ajramū, wa kāna ḥaqqan ‘alainā naṣrul-mu'minīn(a).
[47]
निश्चय हमने आपसे पहले कई रसूल उनकी जातियों की ओर भेजे। तो वे उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए। फिर हमने उन लोगों से बदला लिया, जिन्होंने अपराध किया। और हमपर ईमान वालों की सहायता18 करना अनिवार्य था।
18. आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके अनुयायियों को सांत्वना दी जा रही है।
اَللّٰهُ الَّذِيْ يُرْسِلُ الرِّيٰحَ فَتُثِيْرُ سَحَابًا فَيَبْسُطُهٗ فِى السَّمَاۤءِ كَيْفَ يَشَاۤءُ وَيَجْعَلُهٗ كِسَفًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلٰلِهٖۚ فَاِذَآ اَصَابَ بِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِهٖٓ اِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُوْنَۚ٤٨
Allāhul-lażī yursilur-riyāḥa fatuṡīru saḥāban fayabsuṭuhū fis-samā'i kaifa yasyā'u wa yaj‘aluhū kisafan fataral-wadqa yakhruju min khilālih(ī), fa'iżā aṣāba bihī may yasyā'u min ‘ibādihī iżā hum yastabsyirūn(a).
[48]
अल्लाह ही है, जो हवाओं को भेजता है। तो वे बादल उठाती हैं। फिर वह उसे जैसे चाहता है, आकाश में फैला देता है, और उसे टुकड़े-टुकड़े कर देता है। तो तुम वर्षा की बूँदों को उसके बीच से निकलते देखते हो। फिर जब वह उसे अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, बरसाता है, तो सहसा वे बहुत खुश हो जाते हैं।
وَاِنْ كَانُوْا مِنْ قَبْلِ اَنْ يُّنَزَّلَ عَلَيْهِمْ مِّنْ قَبْلِهٖ لَمُبْلِسِيْنَۚ٤٩
Wa in kānū min qabli ay yunazzala ‘alaihim min qablihī lamublisīn(a).
[49]
हालाँकि निश्चय वे इससे पहले, उसके उनपर बरसाए जाने से पहले बहुत निराश थे।
فَانْظُرْ اِلٰٓى اٰثٰرِ رَحْمَتِ اللّٰهِ كَيْفَ يُحْيِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاۗ اِنَّ ذٰلِكَ لَمُحْيِ الْمَوْتٰىۚ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ٥٠
Fanẓur ilā āṡāri raḥmatillāhi kaifa yuḥyil-arḍa ba‘da mautihā, inna żālika lamuḥyil-mautā, wa huwa ‘alā kulli syai'in qadīr(un).
[50]
तो आप अल्लाह की दया के संकेतों को देखें कि वह किस तरह धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात् जीवित करता है! निःसंदेह वही निश्चय मुर्दों को जीवित करने वाला है और वह हर चीज़ में पूरी तरह सक्षम है।
وَلَىِٕنْ اَرْسَلْنَا رِيْحًا فَرَاَوْهُ مُصْفَرًّا لَّظَلُّوْا مِنْۢ بَعْدِهٖ يَكْفُرُوْنَ٥١
Wa la'in arsalnā rīḥan fara'auhu muṣfarral laẓallū mim ba‘dihī yakfurūn(a).
[51]
और निश्चय अगर हम कोई वायु भेजे, फिर वे उस (खेती) को पीली पड़ी हुई देखें, तो वे इसके बाद अवश्य नाशुक्री करने लगेंगे।
فَاِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتٰى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاۤءَ اِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِيْنَ٥٢
Fa innaka lā tusmi‘ul-mautā wa lā tusmi‘uṣ-ṣummad-du‘ā'a iżā wallau mudbirīn(a).
[52]
निःसंदेह आप मुर्दों19 को नहीं सुना सकते और न बहरों को (अपनी) पुकार सुना सकते हैं, जब वे पीठ फेरकर लौट जाएँ।
19. अर्थात जिनकी अंतरात्मा मर चुकी हो और सत्य सुनने के लिए तैयार न हों।
وَمَآ اَنْتَ بِهٰدِ الْعُمْيِ عَنْ ضَلٰلَتِهِمْۗ اِنْ تُسْمِعُ اِلَّا مَنْ يُّؤْمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمْ مُّسْلِمُوْنَ ࣖ٥٣
Wa mā anta bihādil-‘umyi ‘an ḍalālatihim, in tusmi‘u illā may yu'minu bi'āyātinā fahum muslimūn(a).
[53]
तथा आप अंधों को उनकी गुमारही से हटाकर सीधे मार्ग पर नहीं ला सकते। आप तो केवल उन्हीं को सुना सकते हैं, जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं। तो वही आज्ञाकारी हैं।
۞ اَللّٰهُ الَّذِيْ خَلَقَكُمْ مِّنْ ضَعْفٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْۢ بَعْدِ ضَعْفٍ قُوَّةً ثُمَّ جَعَلَ مِنْۢ بَعْدِ قُوَّةٍ ضَعْفًا وَّشَيْبَةً ۗيَخْلُقُ مَا يَشَاۤءُۚ وَهُوَ الْعَلِيْمُ الْقَدِيْرُ٥٤
Allāhul-lażī khalaqakum min ḍa‘fin ṡumma ja‘ala mim ba‘di ḍa‘fin quwwatan ṡumma ja‘ala mim ba‘di quwwatin ḍa‘faw wa syaibah(tan), yakhluqu mā yasyā'(u), wa huwal-‘alīmul-qadīr(u).
[54]
अल्लाह वह है, जिसने तुम्हें कमज़ोरी (की स्थिति) से पैदा, फिर (बचपन की) कमज़ोरी के बाद शक्ति प्रदान की, फिर शक्ति के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा20 बना दिया। वह जो चाहता है, पैदा करता है। और वही सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
20. अर्थात एक व्यक्ति जन्म से मरण तक अल्लाह के सामर्थ्य के अधीन रहता है, फिर उसकी उपासना में उसके अधीन होने और उसके पुनः पैदा कर देने के सामर्थ्य को अस्वीकार क्यों करते है?
وَيَوْمَ تَقُوْمُ السَّاعَةُ يُقْسِمُ الْمُجْرِمُوْنَ ەۙ مَا لَبِثُوْا غَيْرَ سَاعَةٍ ۗ كَذٰلِكَ كَانُوْا يُؤْفَكُوْنَ٥٥
Wa yauma taqūmus-sā‘atu yuqsimul-mujrimūn(a), mā labiṡū gaira sā‘ah(tin), każālika kānū yu'fakūn(a).
[55]
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, अपराधी क़समें खाएँगें कि वे घड़ी भर21 से अधिक नहीं ठहरे। इसी तरह वे बहकाए जाते थे।
21. अर्थात संसार में।
وَقَالَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَ وَالْاِيْمَانَ لَقَدْ لَبِثْتُمْ فِيْ كِتٰبِ اللّٰهِ اِلٰى يَوْمِ الْبَعْثِۖ فَهٰذَا يَوْمُ الْبَعْثِ وَلٰكِنَّكُمْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ٥٦
Wa qālal-lażīna ūtul-‘ilma wal-īmāna laqad labiṡtum fī kitābillāhi ilā yaumil-ba‘ṡ(i), fa hāżā yaumul-baṡi wa lākinnakum kuntum lā ta‘lamūn(a).
[56]
तथा जिन लोगों को ज्ञान और ईमान दिया गया, वे कहेंगे कि तुम अल्लाह के लेख के अनुसार उठाए जाने के दिन तक ठहरे रहे। तो यह उठाए जाने का दिन है। लेकिन तुम नहीं जानते थे।
فَيَوْمَىِٕذٍ لَّا يَنْفَعُ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مَعْذِرَتُهُمْ وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُوْنَ٥٧
Fa yauma'iżil lā yanfa‘ul-lażīna ẓalamū ma‘żiratuhum wa lā hum yusta‘tabūn(a).
[57]
तो उस दिन, अत्याचारियों को उनका बहाना लाभ न देगा और न उनसे अल्लाह को खुश करने के लिए कहा जाएगा।
وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِيْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍۗ وَلَىِٕنْ جِئْتَهُمْ بِاٰيَةٍ لَّيَقُوْلَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِنْ اَنْتُمْ اِلَّا مُبْطِلُوْنَ٥٨
Wa laqad ḍarabnā lin-nāsi fī hāżal-qur'āni min kulli maṡal(in), wa la'in ji'tahum bi'āyatil layaqūlannal-lażīna kafarū in antum illā mubṭilūn(a).
[58]
और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर तरह के उदाहरण बयान किए हैं और यदि आप उनके पास कोई निशानी लाएँ, तो निश्चय कुफ़्र करने वाले अवश्य कहेंगे कि तुम तो केवल मिथ्यावादी हो।
كَذٰلِكَ يَطْبَعُ اللّٰهُ عَلٰى قُلُوْبِ الَّذِيْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ٥٩
Każālika yaṭba‘ullāhu ‘alā qulūbil-lażīna lā ya‘lamūn(a).
[59]
इसी प्रकार, अल्लाह उन लोगों के दिलों पर मुहर लगा देता है, जो नहीं जानते।
فَاصْبِرْ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ وَّلَا يَسْتَخِفَّنَّكَ الَّذِيْنَ لَا يُوْقِنُوْنَ ࣖ٦٠
Faṣbir inna wa‘dallāhi ḥaqquw wa lā yastakhiffannakal-lażīna lā yūqinūn(a).
[60]
तो आप धैर्य से काम लें। निःसंदेह अल्लाह का वचन सत्य है और वे लोग आपको22 कदापि हल्का (अधीर) न कर दें, जो यक़ीन नहीं रखते।
22. अंतिम आयत में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धैर्य तथा साहस रखने का आदेश दिया गया है। और अल्लाह ने जो विजय देने तथा सहायता करने का वचन दिया है, उसके पूरा होने और निराश न होने के लिए कहा जा रहा है।