Surah Asy-Syu`ara`

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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
طٰسۤمّۤ١
Ṭā Sīm Mīm.
[1] ता, सीन, मीम।

تِلْكَ اٰيٰتُ الْكِتٰبِ الْمُبِيْنِ٢
Tilka āyātul-kitābil-mubīn(i).
[2] ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं।

لَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَّفْسَكَ اَلَّا يَكُوْنُوْا مُؤْمِنِيْنَ٣
La‘allaka bākhi‘un nafsaka allā yakūnū mu'minīn(a).
[3] शायद (ऐ रसूल!) आप अपने आपको हलाक करने वाले हैं, इसलिए कि वे ईमान नहीं लाते।1
1. अर्थात उनके ईमान न लाने के शोक में।

اِنْ نَّشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ اٰيَةً فَظَلَّتْ اَعْنَاقُهُمْ لَهَا خٰضِعِيْنَ٤
In nasya' nunazzil ‘alaihim minas-samā'i āyatan fa ẓallat a‘nāquhum lahā khāḍi‘īn(a).
[4] यदि हम चाहें, तो उनपर आकाश से कोई निशानी उतार दें, फिर उसके सामने उनकी गर्दनें झुकी रह जाएँ।2
2. परंतु ऐसा नहीं किया, क्योंकि दबाव का ईमान स्वीकार्य तथा मान्य नहीं होता।

وَمَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ ذِكْرٍ مِّنَ الرَّحْمٰنِ مُحْدَثٍ اِلَّا كَانُوْا عَنْهُ مُعْرِضِيْنَ٥
Wa mā ya'tīhim min żikrim minar-raḥmāni muḥdaṡin illā kānū ‘anhu mu‘riḍīn(a).
[5] और जब भी 'रह़मान' (अति दयावान्) की ओर से उनके पास कोई नई नसीहत आती है, तो वे उससे मुँह फेरने वाले होते हैं।

فَقَدْ كَذَّبُوْا فَسَيَأْتِيْهِمْ اَنْۢبـٰۤؤُا مَا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ٦
Faqad każżabū fa saya'tīhim ambā'u mā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[6] अतः निःसंदेह उन्होंने झुठला दिया, तो शीघ्र ही उनके पास उस चीज़ की खबरें आ जाएँगी, जिसका वे उपहास उड़ाया करते थे।

اَوَلَمْ يَرَوْا اِلَى الْاَرْضِ كَمْ اَنْۢبَتْنَا فِيْهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ كَرِيْمٍ٧
Awalam yarau ilal-arḍi kam ambatnā fīhā min kulli zaujin karīm(in).
[7] और क्या उन्होंने धरती की ओर नहीं देखा कि हमने उसमें हर उत्तम प्रकार के कितने पौधे उगाए हैं?

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةًۗ وَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ٨
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[8] निःसंदे इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी3 है। (परंतु) उनमें से अधिकतर ईमान लाने वाले नहीं थे।
3. अर्थात अल्लाह के सामर्थ्य की।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ٩
Inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[9] तथा निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

وَاِذْ نَادٰى رَبُّكَ مُوْسٰٓى اَنِ ائْتِ الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ ۙ١٠
Wa iż nādā rabbuka mūsā ani'til-qaumaẓ-ẓālimīn(a).
[10] और जब आपके पालनहार ने मूसा को पुकारा कि उन ज़ालिम लोगों4 के पास जाओ।
4. यह उस समय की बात है जब मूसा (अलैहिस्सलाम) दस वर्ष मदयन में रहकर मिस्र वापस आ रहे थे।

قَوْمَ فِرْعَوْنَ ۗ اَلَا يَتَّقُوْنَ١١
Qauma fir‘aun(a), alā yattaqūn(a).
[11] फ़िरऔन की जाति के पास। क्या वे डरते नहीं?

قَالَ رَبِّ اِنِّيْٓ اَخَافُ اَنْ يُّكَذِّبُوْنِ ۗ١٢
Qāla rabbi innī akhāfu ay yukażżibūn(i).
[12] उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! निःसंदेह मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे।

وَيَضِيْقُ صَدْرِيْ وَلَا يَنْطَلِقُ لِسَانِيْ فَاَرْسِلْ اِلٰى هٰرُوْنَ١٣
Wa yaḍīqu ṣadrī wa lā yanṭaliqu lisānī fa arsil ilā hārūn(a).
[13] और मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती, अतः हारून की ओर संदेश भेज।

وَلَهُمْ عَلَيَّ ذَنْۢبٌ فَاَخَافُ اَنْ يَّقْتُلُوْنِ ۚ١٤
Wa lahum ‘alayya żambun fa akhāfu ay yaqtulūn(i).
[14] और उनका मुझपर एक अपराध का आरोप है। अतः मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।

قَالَ كَلَّا ۚفَاذْهَبَا بِاٰيٰتِنَآ اِنَّا مَعَكُمْ مُّسْتَمِعُوْنَ ۙ١٥
Qāla kallā, fażhabā bi'āyātinā innā ma‘akum mustami‘ūn(a).
[15] (अल्लाह ने) फरमाया : ऐसा कभी नहीं होगा, अतः तुम दोनों हमारी निशानियों के साथ जाओ। निःसंदेह हम तुम्हारे साथ ख़ूब सुनने5 वाले हैं।
5. अर्थात तुम दोनों की सहायता करते रहेंगे।

فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُوْلَآ اِنَّا رَسُوْلُ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۙ١٦
Fa'tiyā fir‘auna faqūlā innā rasūlu rabbil-‘ālamīn(a).
[16] तो तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ और कहो कि निःसंदेह हम सारे संसारों के पालनहार के संदेशवाहक हैं।

اَنْ اَرْسِلْ مَعَنَا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۗ١٧
An arsil ma‘anā banī isrā'īl(a).
[17] कि तू बनी इसराईल को हमारे साथ भेज दे।

قَالَ اَلَمْ نُرَبِّكَ فِيْنَا وَلِيْدًا وَّلَبِثْتَ فِيْنَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِيْنَ ۗ١٨
Qāla alam nurabbika fīnā walīdaw wa labiṡta fīnā min ‘umurika sinīn(a).
[18] (फ़िरऔन ने) कहा : क्या हमने तुझे अपने यहाँ इस हाल में नहीं पाला कि तू बच्चा था और तू हमारे बीच अपनी आयु के कई वर्ष रहा?

وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ الَّتِيْ فَعَلْتَ وَاَنْتَ مِنَ الْكٰفِرِيْنَ١٩
Wa fa‘alta fa‘latakal-latī fa‘alta wa anta minal-kāfirīn(a).
[19] और तूने अपना वह काम6 किया, जो तूने किया। और तू अकृतज्ञों में से है।
6. यह क़िबती को क़त्ल करने की ओर संकेत है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) से नबी बनाए जाने से पहले हो गया था। (देखिए : सूरतुल-क़स़स़)

قَالَ فَعَلْتُهَآ اِذًا وَّاَنَا۠ مِنَ الضَّاۤلِّيْنَ٢٠
Qāla fa‘altuhā iżaw wa ana minaḍ-ḍāllīn(a).
[20] (मूसा ने) कहा : मैंने उस समय वह काम इस हाल में किया कि मैं अनजानों में से था।

فَفَرَرْتُ مِنْكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِيْ رَبِّيْ حُكْمًا وَّجَعَلَنِيْ مِنَ الْمُرْسَلِيْنَ٢١
Fa farartu minkum lammā khiftukum fa wahaba lī rabbī ḥukmaw wa ja‘alanī minal-mursalīn(a).
[21] फिर मैं तुम्हारे पास से भाग गया, जब मैं तुमसे डरा, तो मेरे पालनहार ने मुझे हुक्म (नुबुव्वत एवं ज्ञान) प्रदान किया और मुझे रसूलों में से बना दिया।

وَتِلْكَ نِعْمَةٌ تَمُنُّهَا عَلَيَّ اَنْ عَبَّدْتَّ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۗ٢٢
Wa tilka ni‘matun tamunnuhā ‘alayya an ‘abbatta banī isrā'īl(a).
[22] और यह कोई उपकार है, जो तू मुझपर जता रहा है कि तूने बनी इसराईल काे ग़ुलाम बना रखा है।

قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ٢٣
Qāla fir‘aunu wa mā rabbul-‘ālamīn(a).
[23] फ़िरऔन ने कहा : और 'रब्बुल-आलमीन' (सारे संसारों का पालनहार) क्या है?

قَالَ رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَاۗ اِنْ كُنْتُمْ مُّوْقِنِيْنَ٢٤
Qāla rabbus-samāwāti wal-arḍi wa mā bainahumā, in kuntum mūqinīn(a).
[24] (मूसा ने) कहा : जो आकाशों और धरती का रब है और जो उनके बीच है उसका भी, यदि तुम विश्वास करने वाले हो।

قَالَ لِمَنْ حَوْلَهٗٓ اَلَا تَسْتَمِعُوْنَ٢٥
Qāla liman ḥaulahū alā tastami‘ūn(a).
[25] उसने अपने आस-पास के लोगों से कहा : क्या तुम सुनते नहीं?

قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ اٰبَاۤىِٕكُمُ الْاَوَّلِيْنَ٢٦
Qāla rabbukum wa rabbu ābā'ikumul-awwalīn(a).
[26] (मूसा ने) कहा : जो तुम्हारा पालनहार तथा तुम्हारे पहले बाप-दादा का पालनहार है।

قَالَ اِنَّ رَسُوْلَكُمُ الَّذِيْٓ اُرْسِلَ اِلَيْكُمْ لَمَجْنُوْنٌ٢٧
Qāla inna rasūlakumul-lażī ursila ilaikum lamajnūn(un).
[27] (फ़िरऔन ने) कहा : निश्चय तुम्हारा यह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, अवश्य पागल है।

قَالَ رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَاۗ اِنْ كُنْتُمْ تَعْقِلُوْنَ٢٨
Qāla rabbul-masyriqi wal-magribi wa mā bainahumā, in kuntum ta‘qilūn(a).
[28] (मूसा ने) कहा : जो पूर्व तथा पश्चिम रब है और उसका भी जो उन दोनों के बीच है, अगर तुम समझते हो।

قَالَ لَىِٕنِ اتَّخَذْتَ اِلٰهًا غَيْرِيْ لَاَجْعَلَنَّكَ مِنَ الْمَسْجُوْنِيْنَ٢٩
Qāla la'inittakhażta ilāhan gairī la'aj‘alannaka minal-masjūnīn(a).
[29] (फ़िरऔन ने) कहा : निश्चय यदि तूने मेरे अलावा किसी और को पूज्य बनाया, तो मैं तुझे अवश्य ही बंदी बनाए हुए लोगों में शामिल कर दूँगा।‌

قَالَ اَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَيْءٍ مُّبِيْنٍ٣٠
Qāla awalau ji'tuka bisyai'im mubīn(in).
[30] (मूसा ने) कहा : क्या भले ही मैं तेरे पास कोई स्पष्ट चीज़ ले आऊँ?

قَالَ فَأْتِ بِهٖٓ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ٣١
Qāla fa'ti bihī in kunta minaṣ-ṣādiqīn(a).
[31] उसने कहा : तू उसे ले आ, यदि तू सच्चे लोगों में से है।

فَاَلْقٰى عَصَاهُ فَاِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُّبِيْنٌ ۚ٣٢
Fa alqā ‘aṣāhu fa iżā hiya ṡu‘bānum mubīn(un).
[32] फिर उसने अपनी लाठी फेंक दी, तो अचानक वह एक प्रत्यक्ष अजगर बन गई।

وَنَزَعَ يَدَهٗ فَاِذَا هِيَ بَيْضَاۤءُ لِلنّٰظِرِيْنَ ࣖ٣٣
Wa naza‘a yadahū fa iżā hiya baiḍā'u lin-nāẓirīn(a).
[33] तथा उसने अपना हाथ निकाला, तो एकाएक वह देखने वालों के लिए सफेद (चमकदार) था।

قَالَ لِلْمَلَاِ حَوْلَهٗٓ اِنَّ هٰذَا لَسٰحِرٌ عَلِيْمٌ ۙ٣٤
Qāla lil-mala'i ḥaulahū inna hāżā lasāḥirun ‘alīm(un).
[34] उसने अपने आस-पास के प्रमुखों से कहा : निश्चय यह तो एक बड़ा कुशल जादूगर है।

يُّرِيْدُ اَنْ يُّخْرِجَكُمْ مِّنْ اَرْضِكُمْ بِسِحْرِهٖۖ فَمَاذَا تَأْمُرُوْنَ٣٥
Yurīdu ay yukhrijakum min arḍikum bisiḥrih(ī), fa māżā ta'murūn(a).
[35] जो चाहता है कि अपने जादू के साथ तुम्हें तुम्हारी धरती से निकाल7 दे। तो तुम क्या आदेश देते हो?
7. अर्थात यह उग्रवाद करके हमारे देश पर अधिकार कर ले।

قَالُوْٓا اَرْجِهْ وَاَخَاهُ وَابْعَثْ فِى الْمَدَاۤىِٕنِ حٰشِرِيْنَ ۙ٣٦
Qālū arjih wa akhāhu wab‘aṡ fil-madā'ini ḥāsyirīn(a).
[36] उन्होंने कहा : इसके तथा इसके भाई को मोहलत दें और नगरों में (लोगों को) जमा करने वालों को भेज दें।

يَأْتُوْكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيْمٍ٣٧
Ya'tūka bikulli saḥḥārin ‘alīm(in).
[37] कि वे तेरे पास हर बड़ा जादूगर ले आएँ, जो जादू में बहुत कुशल हो।

فَجُمِعَ السَّحَرَةُ لِمِيْقَاتِ يَوْمٍ مَّعْلُوْمٍ ۙ٣٨
Fa jumi‘as-saḥaratu limīqāti yaumim ma‘lūm(in).
[38] तो जादूगर एक निश्चित दिन के नियत समय पर इकट्ठा कर लिए गए।

وَّقِيْلَ لِلنَّاسِ هَلْ اَنْتُمْ مُّجْتَمِعُوْنَ ۙ٣٩
Wa qīla lin-nāsi hal antum mujtami‘ūn(a).
[39] तथा लोगों से कहा गया : क्या तुम एकत्र होने वाले8 हो?
8. अर्थात लोगों को प्रेरणा दी जा रही है कि इस प्रतियोगिता में अवश्य उपस्थित हों।

لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ السَّحَرَةَ اِنْ كَانُوْا هُمُ الْغٰلِبِيْنَ٤٠
La‘allanā nattabi‘us-saḥarata in kānū humul-gālibīn(a).
[40] शायद हम इन जादूगरों के अनुयायी बन जाएँ, यदि वही विजयी हों।

فَلَمَّا جَاۤءَ السَّحَرَةُ قَالُوْا لِفِرْعَوْنَ اَىِٕنَّ لَنَا لَاَجْرًا اِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغٰلِبِيْنَ٤١
Falammā jā'as-saḥaratu qālū lifir‘auna a'inna lanā la'ajran in kunnā naḥnul-gālibīn(a).
[41] फिर जब जादूगर आ गए, तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा : क्या सचमुच हमें कुछ पुरस्कार मिलेगा, यदि हम ही प्रभावी रहे?

قَالَ نَعَمْ وَاِنَّكُمْ اِذًا لَّمِنَ الْمُقَرَّبِيْنَ٤٢
Qāla na‘am wa innakum iżal laminal-muqarrabīn(a).
[42] उसने कहा : हाँ! और निश्चय तुम उस समय निकटवर्तियों में से हो जाओगे ।

قَالَ لَهُمْ مُّوْسٰٓى اَلْقُوْا مَآ اَنْتُمْ مُّلْقُوْنَ٤٣
Qāla lahum mūsā alqū mā antum mulqūn(a).
[43] मूसा ने उनसे कहा : फेंको, जो कुछ तुम फेंकने वाले हो।

فَاَلْقَوْا حِبَالَهُمْ وَعِصِيَّهُمْ وَقَالُوْا بِعِزَّةِ فِرْعَوْنَ اِنَّا لَنَحْنُ الْغٰلِبُوْنَ٤٤
Fa alqau ḥibālahum wa ‘iṣiyyahum wa qālū bi‘izzati fir‘auna innā lanaḥnul-gālibūn(a).
[44] तो उन्होंने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ फेंकीं और कहा : फ़िरऔन के प्रभुत्व की सौगंध! निःसंदेह हम, निश्चय हम ही विजयी रहेंगे।

فَاَلْقٰى مُوْسٰى عَصَاهُ فَاِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُوْنَ ۚ٤٥
Fa alqā mūsā ‘aṣāhu fa iżā hiya talqafu mā ya'fikūn(a).
[45] फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी, तो एकाएक वह उन चीज़ों को निगल रही थी, जो वे झूठ बना रहे थे।

فَاُلْقِيَ السَّحَرَةُ سٰجِدِيْنَ ۙ٤٦
Fa ulqiyas-saḥaratu sājidīn(a).
[46] इसपर जादूगर सजदा करते हुए गिर गए।9
9. क्योंकि उन्हें विश्वास हो गया कि मूसा (अलैहिस्सलाम) जादूगर नहीं, बल्कि वह सत्य के उपदेशक हैं।

قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۙ٤٧
Qālū āmannā birabbil-‘ālamīn(a).
[47] उन्होंने कहा : हम सारे संसारों के पालनहार पर ईमान ले आए।

رَبِّ مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ٤٨
Rabbi mūsā wa hārūn(a).
[48] मूसा तथा हारून के पालनहार पर।

قَالَ اٰمَنْتُمْ لَهٗ قَبْلَ اَنْ اٰذَنَ لَكُمْۚ اِنَّهٗ لَكَبِيْرُكُمُ الَّذِيْ عَلَّمَكُمُ السِّحْرَۚ فَلَسَوْفَ تَعْلَمُوْنَ ەۗ لَاُقَطِّعَنَّ اَيْدِيَكُمْ وَاَرْجُلَكُمْ مِّنْ خِلَافٍ وَّلَاُصَلِّبَنَّكُمْ اَجْمَعِيْنَۚ٤٩
Qāla āmantum lahū qabla an āżana lakum, innahū lakabīrukumul-lażī ‘allamakumus-siḥr(a), fa lasaufa ta‘lamūn(a), la'uqaṭṭi‘anna aidiyakum wa arjulakum min khilāfiw wa la'uṣallibannakum ajma'īn(a).
[49] (फ़िरऔन ने) कहा : तुम उसपर ईमान ले आए, इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति दूँ? निःसंदेह यह अवश्य तुम्हारा बड़ा (गुरू) है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। अतः निश्चय तुम जल्दी जान लोगे। मैं अवश्य तुम्हारे हाथ और तुम्हारे पाँव विपरीत दिशा10 से काट दूँगा तथा निश्चय तुम सभी को अवश्य बुरी तरह सूली पर चढ़ा दूँगा।
10. अर्थात दाँया हाथ और बायाँ पैर या बायाँ हाथ और दायाँ पैर।

قَالُوْا لَا ضَيْرَ ۖاِنَّآ اِلٰى رَبِّنَا مُنْقَلِبُوْنَ ۚ٥٠
Qālū lā ḍair(a), innā ilā rabbinā munqalibūn(a).
[50] उन्होंने कहा : कोई नुक़सान नहीं, निश्चित रूप से हम अपने पालनहार की ओर पलटने वाले हैं।

اِنَّا نَطْمَعُ اَنْ يَّغْفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطٰيٰنَآ اَنْ كُنَّآ اَوَّلَ الْمُؤْمِنِيْنَ ۗ ࣖ٥١
Innā naṭma‘u ay yagfira lanā rabbunā khaṭāyānā an kunnā awwalal-mu'minīn(a).
[51] हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमारे लिए, हमारे पापों को क्षमा कर देगा, इस कारण कि हम सबसे पहले ईमान लाने वाले हैं।

۞ وَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰىٓ اَنْ اَسْرِ بِعِبَادِيْٓ اِنَّكُمْ مُّتَّبَعُوْنَ٥٢
Wa auḥainā ilā mūsā an asri bi‘ibādī innakum muttaba‘ūn(a).
[52] और हमने मूसा की ओर वह़्य की कि मेरे बंदों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा।

فَاَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِى الْمَدَاۤىِٕنِ حٰشِرِيْنَ ۚ٥٣
Fa arsala fir‘aunu fil-madā'ini ḥāsyirīn(a).
[53] तो फ़िरऔन ने नगरों में (सेना) एकत्र करने वालों को भेज दिया।11
11. जब मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह के आदेशानुसार अपने साथियों को लेकर निकल गए तो फ़िरऔन ने उनका पीछा करने के लिए नगरों में हरकारे भेजे।

اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ لَشِرْذِمَةٌ قَلِيْلُوْنَۙ٥٤
Inna hā'ulā'i lasyirzimatun qalīlūn(a).
[54] कि निःसंदेह ये लोग एक छोटा-सा समूह हैं।

وَاِنَّهُمْ لَنَا لَغَاۤىِٕظُوْنَ ۙ٥٥
Wa innahum lanā lagā'iẓūn(a).
[55] और निःसंदेह ये हमें निश्चित रूप से गुस्सा दिलाने वाले हैं।

وَاِنَّا لَجَمِيْعٌ حٰذِرُوْنَ ۗ٥٦
Wa innā lajamī‘un ḥāżirūn(a).
[56] और निश्चय ही हम सब चौकन्ना रहने वाले हैं।

فَاَخْرَجْنٰهُمْ مِّنْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍ ۙ٥٧
Fa akhrajnāhum min jannātiw wa ‘uyūn(in).
[57] इस तरह हमने उन्हें बाग़ों और सोतों से निकाल दिया।

وَّكُنُوْزٍ وَّمَقَامٍ كَرِيْمٍ ۙ٥٨
Wa kunūziw wa maqāmin karīm(in).
[58] तथा ख़ज़ानों और उत्तम आवासों से।

كَذٰلِكَۚ وَاَوْرَثْنٰهَا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ۗ٥٩
Każālik(a), wa auraṡnāhā banī isrā'īl(a).
[59] ऐसा ही हुआ और हमने उनका वारिस बनी इसराईल को बना दिया।

فَاَتْبَعُوْهُمْ مُّشْرِقِيْنَ٦٠
Fa atba‘ūhum musyriqīn(a).
[60] तो उन्होंने सूर्योदय के समय उनका पीछा किया।

فَلَمَّا تَرٰۤءَا الْجَمْعٰنِ قَالَ اَصْحٰبُ مُوْسٰٓى اِنَّا لَمُدْرَكُوْنَ ۚ٦١
Falammā tarā'al-jam‘āni qāla aṣḥābu mūsā innā lamudrakūn(a).
[61] फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देखा, तो मूसा के साथियों ने कहा : निःसंदेह हम निश्चय ही पकड़े जाने[12) वाले हैं।
12. क्योंकि अब सामने सागर और पीछे फ़िरऔन की सेना थी।

قَالَ كَلَّا ۗاِنَّ مَعِيَ رَبِّيْ سَيَهْدِيْنِ٦٢
Qāla kallā, inna ma‘iya rabbī sayahdīn(i).
[62] (मूसा ने) कहा : हरगिज़ नहीं! निश्चय मेरे साथ मेरा पालनहार है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।

فَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اَنِ اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْبَحْرَۗ فَانْفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍ كَالطَّوْدِ الْعَظِيْمِ ۚ٦٣
Fa auḥainā ilā mūsā aniḍrib bi‘aṣākal-baḥr(a), fanfalaqa fa kāna kullu firqin kaṭ-ṭaudil ‘aẓīm(i).
[63] तो हमने मूसा की ओर वह़्य की कि अपनी लाठी को सागर पर मारो। (उसने लाठी मारी) तो वह फट गया और हर टुकड़ा बड़े पहाड़ की13 तरह हो गया।
13. अर्थात बीच से मार्ग बन गया और दोनों ओर पानी पर्वत के समान खड़ा हो गया।

وَاَزْلَفْنَا ثَمَّ الْاٰخَرِيْنَ ۚ٦٤
Wa azlafnā ṡammal-ākharīn(a).
[64] तथा वहीं हम दूसरों को निकट ले आए।

وَاَنْجَيْنَا مُوْسٰى وَمَنْ مَّعَهٗٓ اَجْمَعِيْنَ ۚ٦٥
Wa anjainā mūsā wa mam ma‘ahū ajma‘īn(a).
[65] और हमने मूसा को और जो उसके साथ थे, सबको बचा लिया।

ثُمَّ اَغْرَقْنَا الْاٰخَرِيْنَ ۗ٦٦
Ṡumma agraqnal-ākharīn(a).
[66] फिर हमने दूसरों को डुबो दिया।

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ٦٧
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[67] निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर लोग ईमान लाने वाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ٦٨
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[68] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् हैl

وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ اِبْرٰهِيْمَ ۘ٦٩
Watlu ‘alaihim naba'a ibrāhīm(a).
[69] तथा आप उन्हें इबराहीम का समाचार सुनाएँ।

اِذْ قَالَ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖ مَا تَعْبُدُوْنَ٧٠
Iż qāla li'abīhi wa qaumihī mā ta‘budūn(a).
[70] जब उसने अपने बाप तथा अपनी जाति से कहा : तुम किसकी पूजा करते हो?

قَالُوْا نَعْبُدُ اَصْنَامًا فَنَظَلُّ لَهَا عٰكِفِيْنَ٧١
Qālū na‘budu aṣnāman fa naẓallu lahā ‘ākifīn(a).
[71] उन्होंने कहा : हम कुछ मूर्तियों की पूजा करते हैं, इसलिए उन्हीं की सेवा में लगे रहते हैं।

قَالَ هَلْ يَسْمَعُوْنَكُمْ اِذْ تَدْعُوْنَ ۙ٧٢
Qāla hal yasma‘ūnakum iż tad‘ūn(a).
[72] उसने कहा : क्या वे तुम्हें सुनते हैं, जब तुम (उन्हें) पुकारते हो?

اَوْ يَنْفَعُوْنَكُمْ اَوْ يَضُرُّوْنَ٧٣
Au yanfa‘ūnakum au yaḍurrūn(a).
[73] या तुम्हें लाभ देते हैं, या हानि पहुँचाते हैं?

قَالُوْا بَلْ وَجَدْنَآ اٰبَاۤءَنَا كَذٰلِكَ يَفْعَلُوْنَ٧٤
Qālū bal wajadnā ābā'anā każālika yaf‘alūn(a).
[74] उन्होंने कहा : बल्कि हमने अपने बाप-दादा को पाया कि वे ऐसा ही करते थे।

قَالَ اَفَرَءَيْتُمْ مَّا كُنْتُمْ تَعْبُدُوْنَ ۙ٧٥
Qāla afa ra'aitum mā kuntum ta‘budūn(a).
[75] उसने कहा : तो क्या तुमने देखा कि जिनको तुम पूजते रहे।

اَنْتُمْ وَاٰبَاۤؤُكُمُ الْاَقْدَمُوْنَ ۙ٧٦
Antum wa ābā'ukumul-aqdamūn(a).
[76] तुम तथा तुम्हारे पहले बाप-दादा?

فَاِنَّهُمْ عَدُوٌّ لِّيْٓ اِلَّا رَبَّ الْعٰلَمِيْنَ ۙ٧٧
Fa innahum ‘aduwwul lī illā rabbal-‘ālamīn(a).
[77] सो निःसंदेह वे मेरे शत्रु हैं, सिवाय सारे संसारों के पालनहार के।

الَّذِيْ خَلَقَنِيْ فَهُوَ يَهْدِيْنِ ۙ٧٨
Allażī khalaqanī fa huwa yahdīn(i).
[78] वह जिसने मुझे पैदा किया, फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है।

وَالَّذِيْ هُوَ يُطْعِمُنِيْ وَيَسْقِيْنِ ۙ٧٩
Wal-lażī huwa yuṭ‘imunī wa yasqīn(i).
[79] और वही जो मुझे खिलाता है और मुझे पिलाता है।

وَاِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِيْنِ ۙ٨٠
Wa iżā mariḍtu fa huwa yasyfīn(i).
[80] और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे अच्छा करता है।

وَالَّذِيْ يُمِيْتُنِيْ ثُمَّ يُحْيِيْنِ ۙ٨١
Wal-lażī yumītunī ṡumma yuḥyīn(i).
[81] तथा वह जो मुझे मारेगा, फिर14 मुझे जीवित करेगा।
14. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों का फल भोगने के लिए।

وَالَّذِيْٓ اَطْمَعُ اَنْ يَّغْفِرَ لِيْ خَطِيْۤـَٔتِيْ يَوْمَ الدِّيْنِ ۗ٨٢
Wal-lażī aṭma‘u ay yagfira lī khaṭī'atī yaumad-dīn(i).
[82] तथा वह, जिससे मैं आशा रखता हूँ कि वह बदले के दिन मेरे पाप क्षमा कर देगा।

رَبِّ هَبْ لِيْ حُكْمًا وَّاَلْحِقْنِيْ بِالصّٰلِحِيْنَ ۙ٨٣
Rabbi hab lī ḥukmaw wa alḥiqnī biṣ-ṣāliḥīn(a).
[83] ऐ मेरे पालनहार! मुझे हुक्म (धर्म का ज्ञान) प्रदान कर और मुझे नेक लोगों के साथ मिला।

وَاجْعَلْ لِّيْ لِسَانَ صِدْقٍ فِى الْاٰخِرِيْنَ ۙ٨٤
Waj‘al lī lisāna ṣidqin fil-ākhirīn(a).
[84] और बाद में आने वालों में मुझे सच्ची ख्याति प्रदान कर।

وَاجْعَلْنِيْ مِنْ وَّرَثَةِ جَنَّةِ النَّعِيْمِ ۙ٨٥
Waj‘alnī miw waraṡati janatin na‘īm(i).
[85] और मुझे नेमतों वाली जन्नत के वारिसों में से बना दे।

وَاغْفِرْ لِاَبِيْٓ اِنَّهٗ كَانَ مِنَ الضَّاۤلِّيْنَ ۙ٨٦
Wagfir li'abī innahū kāna minaḍ-ḍāllīn(a).
[86] तथा मेरे बाप को क्षमा कर दे।15 निश्चय वह गुमराहों में से था।
15. (देखिए : सूरतुत-तौबा, आयत : 114)

وَلَا تُخْزِنِيْ يَوْمَ يُبْعَثُوْنَۙ٨٧
Wa lā tukhzinī yauma yub‘aṡūn(a).
[87] तथा मुझे रुसवा न कर, जिस दिन लोग उठाए जाएँगे।16
16. ह़दीस में वर्णित है कि प्रलय के दिन इबराहीम अलैहिस्सलाम अपने बाप से मिलेंगे। और कहेंगे : ऐ मेरे पालनहार! तूने मुझे वचन दिया था कि मुझे पुनः जीवित होने के दिन अपमानित नहीं करेगा। तो अल्लाह कहेगा : मैंने स्वर्ग को काफ़िरों के लिए अवैध कर दिया है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4769)

يَوْمَ لَا يَنْفَعُ مَالٌ وَّلَا بَنُوْنَ ۙ٨٨
Yauma lā yanfa‘u māluw wa lā banūn(a).
[88] जिस दिन न कोई धन लाभ देगा और न बेटे।

اِلَّا مَنْ اَتَى اللّٰهَ بِقَلْبٍ سَلِيْمٍ ۗ٨٩
Illā man atallāha biqalbin salīm(in).
[89] परंतु जो अल्लाह के पास पाक-साफ़ दिल लेकर आया।

وَاُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِيْنَ ۙ٩٠
Wa uzlifatil-jannatu lil-muttaqīn(a).
[90] और (अपने रब से) डरने वालों के लिए जन्नत निकट लाई जाएगी।

وَبُرِّزَتِ الْجَحِيْمُ لِلْغَاوِيْنَ ۙ٩١
Wa burrizatil-jaḥīmu lil-gāwīn(a).
[91] तथा पथभ्रष्ट लोगों के लिए भड़कती आग प्रकट कर दी जाएगी।

وَقِيْلَ لَهُمْ اَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُوْنَ ۙ٩٢
Wa qīla lahum ainamā kuntum ta‘budūn(a).
[92] तथा उनसे कहा जाएगा : कहाँ हैं वे, जिन्हें तुम पूजते थे?

مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗهَلْ يَنْصُرُوْنَكُمْ اَوْ يَنْتَصِرُوْنَ ۗ٩٣
Min dūnillāh(i), hal yanṣurūnakum au yantaṣirūn(a).
[93] अल्लाह के सिवा। क्या वे तुम्हारी मदद करते हैं, या अपनी रक्षा करते हैं?

فَكُبْكِبُوْا فِيْهَا هُمْ وَالْغَاوٗنَ ۙ٩٤
Fa kubkibū fīhā hum wal-gāwūn(a).
[94] फिर वे और सब पथभ्रष्ट लोग उसमें औंधे मुँह फेंक दिए जाएँगे।

وَجُنُوْدُ اِبْلِيْسَ اَجْمَعُوْنَ ۗ٩٥
Wa junūdu iblīsa ajma‘ūn(a).
[95] और इबलीस की समस्त सेनाएँ भी।

قَالُوْا وَهُمْ فِيْهَا يَخْتَصِمُوْنَ٩٦
Qālū wa hum fīhā yakhtaṣimūn(a).
[96] वे उसमें आपस में झगड़ते हुए कहेंगे :

تَاللّٰهِ اِنْ كُنَّا لَفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ۙ٩٧
Tallāhi in kunnā lafī ḍalālim mubīn(in).
[97] अल्लाह की क़सम! निःसंदेह हम निश्चय खुली गुमराही में थे।

اِذْ نُسَوِّيْكُمْ بِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَ٩٨
Iż nusawwīkum birabbil-‘ālamīn(a).
[98] जब हम तुम्हें सारे संसारों के पालनहार के बराबर ठहराते थे।

وَمَآ اَضَلَّنَآ اِلَّا الْمُجْرِمُوْنَ٩٩
Wa mā aḍallanā illal-mujrimūn(a).
[99] और हमें तो सिर्फ़ इन अपराधियों ने गुमराह किया।

فَمَا لَنَا مِنْ شٰفِعِيْنَ ۙ١٠٠
Famā lanā min syāfi‘īn(a).
[100] अब न हमारे लिए कोई सिफारिश करने वाले हैं।

وَلَا صَدِيْقٍ حَمِيْمٍ١٠١
Wa lā ṣadīqin ḥamīm(in).
[101] और न कोई घनिष्ट मित्र।

فَلَوْ اَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَكُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ١٠٢
Falau anna lanā karratan fa nakūna minal-mu'minīn(a).
[102] तो यदि वास्तव में हमारे लिए वापस जाने का अवसर होता, तो हम ईमानवालों में से हो जाते।17
17. इस आयत में संकेत है कि संसार में एक ही जीवन कर्म के लिए मिलता है। और दूसरा जीवन परलोक में कर्मों के फल के लिए मिलेगा।

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٠٣
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[103] निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٠٤
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[104] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली,18 अत्यंत दयावान् हैl
18. परंतु लोग स्वयं अत्याचार करके नरक के भागी बन रहे हैं।

كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوْحِ ِۨالْمُرْسَلِيْنَ ۚ١٠٥
Każżabat qaumu nūḥinil-mursalīn(a).
[105] नूह़ की जाति ने रसूलों को झुठलाया।

اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ نُوْحٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ١٠٦
Iż qāla lahum akhūhum nūḥun alā tattaqūn(a).
[106] जब उनसे उनके भाई नूह़ ने कहा : क्या तुम डरते नहीं?

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ١٠٧
Innī lakum rasūlun amīn(un).
[107] निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।19
19. अल्लाह का संदेश बिना कमी और अधिकता के तुम्हें पहुँचा रहा हूँ।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِۚ١٠٨
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[108] अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۚ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۚ١٠٩
Wa mā as'alukum ‘alaihi min ajr(in), in ajriya illā ‘alā rabbil-‘ālamīn(a).
[109] मैं इस (कार्य) पर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता। मेरा बदला तो केवल सारे संसारों के पालनहार पर है।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ١١٠
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[110] अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।

۞ قَالُوْٓا اَنُؤْمِنُ لَكَ وَاتَّبَعَكَ الْاَرْذَلُوْنَ ۗ١١١
Qālū anu'minu laka wattaba‘akal-arżalūn(a).
[111] उन्होंने कहा : क्या हम तुझपर ईमान ले आएँ, जबकि तेरे पीछे चलने वाले अत्यंत नीच20 लोग हैं?
20. अर्थात धनी नहीं, निर्धन लोग कर रहे हैं।

قَالَ وَمَا عِلْمِيْ بِمَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ۚ١١٢
Qāla wa mā ‘ilmī bimā kānū ya‘malūn(a).
[112] (नूह़ ने) कहा : मूझे क्या मालूम कि वे क्या कर्म करते रहे हैं?

اِنْ حِسَابُهُمْ اِلَّا عَلٰى رَبِّيْ لَوْ تَشْعُرُوْنَ ۚ١١٣
In ḥisābuhum illā ‘alā rabbī lau tasy‘urūn(a).
[113] उनका ह़िसाब तो मेरे पालनहार ही के ज़िम्मे है, यदि तुम समझो।

وَمَآ اَنَا۠ بِطَارِدِ الْمُؤْمِنِيْنَ ۚ١١٤
Wa mā ana biṭāridil-mu'minīn(a).
[114] और मैं ईमान वालों को धुतकारने वाला21 नहीं हूँ।
21. अर्थात मैं हीन वर्ग के लोगों को जो ईमान लाए हैं, अपने से दूर नहीं कर सकता जैसा कि तुम चाहते हो।

اِنْ اَنَا۠ اِلَّا نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ ۗ١١٥
In ana illā nażīrum mubīn(un).
[115] मैं तो बस एक खुला डराने वाला हूँ

قَالُوْا لَىِٕنْ لَّمْ تَنْتَهِ يٰنُوْحُ لَتَكُوْنَنَّ مِنَ الْمَرْجُوْمِيْنَۗ١١٦
Qālū la'illam tantahi yā nūḥu latakūnanna minal-marjūmīn(a).
[116] उन्होंने कहा : ऐ नूह़! यदि तू बाज़ नहीं आया, तो अवश्य संगसार किए गए लोगों में से हो जाएगा।

قَالَ رَبِّ اِنَّ قَوْمِيْ كَذَّبُوْنِۖ١١٧
Qāla rabbi inna qaumī każżabūn(i).
[117] उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! निःसंदेह मेरी जाति ने मुझे झुठला दिया!

فَافْتَحْ بَيْنِيْ وَبَيْنَهُمْ فَتْحًا وَّنَجِّنِيْ وَمَنْ مَّعِيَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ١١٨
Faftaḥ bainī wa bainahum fatḥaw wa najjinī wa mam ma‘iya minal-mu'minīn(a).
[118] अतः तू मेरे और उनके बीच दो-टूक निर्णय कर दे, तथा मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ हैं, उन्हें बचा ले।

فَاَنْجَيْنٰهُ وَمَنْ مَّعَهٗ فِى الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِ١١٩
Fa anjaināhu wa mam ma‘ahū fil-fulkil-masyḥūn(i).
[119] तो हमने उसे और उन लोगों को जो उसके साथ भरी हुई नाव में थे, बचा लिया।

ثُمَّ اَغْرَقْنَا بَعْدُ الْبَاقِيْنَ١٢٠
Ṡumma agraqnā ba‘dul-bāqīn(a).
[120] फिर उसके बाद शेष लोगों को डुबो दिया।

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٢١
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[121] निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٢٢
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[122] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

كَذَّبَتْ عَادُ ِۨالْمُرْسَلِيْنَ ۖ١٢٣
Każżabat ‘ādunil-mursalīn(a).
[123] आद ने रसूलों को झुठलाया।

اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ هُوْدٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ١٢٤
Iż qāla lahum akhūhum hūdun alā tattaqūn(a).
[124] जब उनसे उनके भाई हूद22 ने कहा : क्या तुम डरते नहीं हो?
22. आद जाति के नबी हूद (अलैहिस्सलाम) को उनका भाई कहा गया है; क्योंकि वह भी उन्हीं के समुदाय में से थे।

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ١٢٥
Innī lakum rasūlun amīn(un).
[125] निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ١٢٦
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[126] अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۚ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ١٢٧
Wa mā as'alukum ‘alaihi min ajr(in), in ajriya illā ‘alā rabbil-‘ālamīn(a).
[127] मैं इस (कार्य) पर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता, मेरा बदला तो केवल सारे संसारों के पालनहार पर है।

اَتَبْنُوْنَ بِكُلِّ رِيْعٍ اٰيَةً تَعْبَثُوْنَ ۙ١٢٨
Atabnūna bikulli rī‘in āyatan ta‘baṡūn(a).
[128] क्या तुम हर ऊँचे स्थान पर एक स्मारक बनाते हो? इस स्थिति में कि व्यर्थ कार्य करते हो।

وَتَتَّخِذُوْنَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُوْنَۚ١٢٩
Wa tattakhiżūna maṣāni‘a la‘allakum takhludūn(a).
[129] तथा बड़े-बड़े भवन बनाते हो, शायद कि तुम सदा जीवित रहोगे।

وَاِذَا بَطَشْتُمْ بَطَشْتُمْ جَبَّارِيْنَۚ١٣٠
Wa iżā baṭasytum baṭasytum jabbārīn(a).
[130] और जब तुम पकड़ते हो, तो बड़ी निर्दयता से पकड़ते हो।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِۚ١٣١
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[131] अतः अल्लाह से डरो और जो मैं कहता हूँ, उसे मानो।

وَاتَّقُوا الَّذِيْٓ اَمَدَّكُمْ بِمَا تَعْلَمُوْنَ ۚ١٣٢
Wattaqul-lażī amaddakum bimā ta‘lamūn(a).
[132] तथा उससे डरो जिसने उन चीज़ों से तुम्हारी मदद की, जिन्हें तुम जानते हो।

اَمَدَّكُمْ بِاَنْعَامٍ وَّبَنِيْنَۙ١٣٣
Amaddakum bi'an‘āmiw wa banīn(a).
[133] उसने चौपायों और बेटों से तुम्हारी मदद की।

وَجَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍۚ١٣٤
Wa jannātiw wa ‘uyūn(in).
[134] तथा बाग़ों और जल स्रोताें से।

اِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ ۗ١٣٥
Innī akhāfu ‘alaikum ‘ażāba yaumin ‘aẓīm(in).
[135] निश्चय ही मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।

قَالُوْا سَوَاۤءٌ عَلَيْنَآ اَوَعَظْتَ اَمْ لَمْ تَكُنْ مِّنَ الْوٰعِظِيْنَ ۙ١٣٦
Qālū sawā'un ‘alainā awa‘aẓta am lam takum minal-wā‘iẓīn(a).
[136] उन्होंने कहा : हमारे लिए बराबर है कि तू नसीहत करे, या नसीहत करने वालों में से हो।

اِنْ هٰذَآ اِلَّا خُلُقُ الْاَوَّلِيْنَ ۙ١٣٧
In hāżā illā khuluqul-awwalīn(a).
[137] यह तो केवल पहले लोगों की आदत है।23
23. अर्थात प्राचीन युग से होती चली आ रही है।

وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِيْنَ ۚ١٣٨
Wa mā naḥnu bimu‘ażżabīn(a).
[138] और हम निश्चित रूप से दंडित नहीं होंगे।

فَكَذَّبُوْهُ فَاَهْلَكْنٰهُمْۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٣٩
Fa każżabūhu fa ahlaknāhum, inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[139] तो उन्होंने उसे झुठला दिया, तो हमने उन्हें विनष्ट कर दिया। निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर लोग ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٤٠
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[140] तथा निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

كَذَّبَتْ ثَمُوْدُ الْمُرْسَلِيْنَ ۖ١٤١
Każżabat ṡamūdul-mursalīn(a).
[141] समूद ने रसूलों24 को झुठलाया।
24. यहाँ यह बात याद रखने की है कि एक रसूल का इनकार सभी रसूलों का इनकार है; क्योंकि सबका उपदेश एक ही था।

اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ صٰلِحٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ١٤٢
Iż qāla lahum akhūhum ṣāliḥun alā tattaqūn(a).
[142] जब उनसे उनके भाई सालेह़ ने कहा : क्या तुम डरते नहीं हो?

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ١٤٣
Innī lakum rasūlun amīn(un).
[143] निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ١٤٤
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[144] अतः अल्लाह से डरो और जो मैं कहता हूँ, उसका पालन करो।

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۚ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ١٤٥
Wa mā as'alukum ‘alaihi min ajr(in), in ajriya illā ‘alā rabbil-‘ālamīn(a).
[145] मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता। मेरा बदला तो केवल सारे संसारों के पालनहार पर है।

اَتُتْرَكُوْنَ فِيْ مَا هٰهُنَآ اٰمِنِيْنَ ۙ١٤٦
Atutrakūna fīmā hāhunā āminīn(a).
[146] क्या तुम उन चीज़ों में जो यहाँ हैं, निश्चिंत छोड़ दिए जाओगे?

فِيْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍ ۙ١٤٧
Fī jannātiw wa ‘uyūn(in).
[147] बाग़ों तथा स्रोतों में।

وَّزُرُوْعٍ وَّنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيْمٌ ۚ١٤٨
Wa zurū‘iw wa nakhlin ṭal‘uhā haḍīm(un).
[148] तथा खेतों और खजूर के पेड़ों में, जिनके फल मुलायम और पके हुए हैं।

وَتَنْحِتُوْنَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوْتًا فٰرِهِيْنَ١٤٩
Wa tanḥitūna minal-jibāli buyūtan fārihīn(a).
[149] तथा तुम पर्वतों को काटकर बड़ी निपुणता के साथ घर बनाते हो।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ١٥٠
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[150] अतः अल्लाह से डरो और मेरा आज्ञापालन करो।

وَلَا تُطِيْعُوْٓا اَمْرَ الْمُسْرِفِيْنَ ۙ١٥١
Wa lā tuṭī‘ū amral-musrifīn(a).
[151] और हद से आगे बढ़ने वालों का हुक्म न मानो।

الَّذِيْنَ يُفْسِدُوْنَ فِى الْاَرْضِ وَلَا يُصْلِحُوْنَ١٥٢
Allażīna yufsidūna fil-arḍi wa lā yaṣliḥūn(a).
[152] जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं और सुधार नहीं करते।

قَالُوْٓا اِنَّمَآ اَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِيْنَ ۙ١٥٣
Qālū innamā anta minal-musaḥḥarīn(a).
[153] उन्होंने कहा : निःसंदेह तू उन लोगों में से है जिनपर प्रबल जादू किया गया है।

مَآ اَنْتَ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَاۙ فَأْتِ بِاٰيَةٍ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ١٥٤
Mā anta illā basyarum miṡlunā, fa'ti bi'āyatin in kunta minaṣ-ṣādiqīn(a).
[154] तू तो बस हमारे ही जैसा एक मनुष्य है। अतः कोई निशानी ले आ, यदि तू सच्चों में से है।

قَالَ هٰذِهٖ نَاقَةٌ لَّهَا شِرْبٌ وَّلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍ مَّعْلُوْمٍ ۚ١٥٥
Qāla hāżihī nāqatul lahā syirbuw wa lakum syirbu yaumim ma‘lūm(in).
[155] उसने कहा : यह एक ऊँटनी25 है। इसके लिए पानी पीने की एक बारी है और तुम्हारे लिए एक निश्चित दिन पानी पीने की बारी है।
25. अर्थता यह ऊँटनी चमत्कार है जो उनकी माँग पर पत्थर से निकली थी।

وَلَا تَمَسُّوْهَا بِسُوْۤءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيْمٍ١٥٦
Wa lā tamassūhā bisū'in fa ya'khużakum ‘ażābu yaumin ‘aẓīm(in).
[156] तथा उसे किसी बुराई से हाथ न लगाना, अन्यथा तुम्हें एक बड़े दिन की यातना पकड़ लेगी।

فَعَقَرُوْهَا فَاَصْبَحُوْا نٰدِمِيْنَ ۙ١٥٧
Fa ‘aqarūhā fa aṣbaḥū nādimīn(a).
[157] तो उन्होंने उसकी कूँचें काट दीं, फिर पछताने वाले हो गए।

فَاَخَذَهُمُ الْعَذَابُۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٥٨
Fa akhażahumul-‘ażāb(u), inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[158] तो उन्हें यातना ने पकड़ लिया। निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٥٩
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[159] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوْطِ ِۨالْمُرْسَلِيْنَ ۖ١٦٠
Każżabat qaumu lūṭinil-mursalīn(a).
[160] लूत की जाति ने रसूलों को झुठलाया।

اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ لُوْطٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ١٦١
Iż qāla lahum akhūhum lūṭun alā tattaqūn(a).
[161] जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा : क्या तुम डरते नहीं हो?

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ١٦٢
Innī lakum rasūlun amīn(un).
[162] निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ١٦٣
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[163] अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ١٦٤
Wa mā as'alukum ‘alaihi min ajrin in ajriya illā ‘alā rabbil-‘ālamīn(a).
[164] मैं इस (कार्य) पर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता, मेरा बदला तो केवल सारे संसारों के पालनहार पर है।

اَتَأْتُوْنَ الذُّكْرَانَ مِنَ الْعٰلَمِيْنَ ۙ١٦٥
Ata'tūnaż-żukrāna minal-‘ālamīn(a).
[165] क्या सभी संसारों में से तुम पुरुषों के पास आते26 हो।
26. इस कुकर्म का आरंभ संसार में लूत (अलैहिस्सलाम) की जाति से हुआ। और अब यह कुकर्म पूरे विश्व में विशेष रूप से यूरोपीय देशों में व्यापक है। और समलैंगिक विवाह को यूरोप के बहुत-से देशों में वैध मान लिया गया है। जिसके कारण कभी भी उन पर अल्लाह की यातना आ सकती है।

وَتَذَرُوْنَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِّنْ اَزْوَاجِكُمْۗ بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ عَادُوْنَ١٦٦
Wa tażarūna mā khalaqa lakum rabbukum min azwājikum, bal antum qamun ‘ādūn(a).
[166] तथा उन्हें छोड़ देते हो, जो तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे लिए तुम्हारी पत्नियाँ पैदा की हैं। बल्कि तुम हद से आगे बढ़ने वाले लोग हो।

قَالُوْا لَىِٕنْ لَّمْ تَنْتَهِ يٰلُوْطُ لَتَكُوْنَنَّ مِنَ الْمُخْرَجِيْنَ١٦٧
Qālū la'illam tantahi yā lūṭu latakūnanna minal-mukhrajīn(a).
[167] उन्होंने कहा : ऐ लूत! निःसंदेह यदि तू नहीं रुका, तो निश्चित रूप से तू अवश्य निष्कासित लोगों में से हो जाएगा।

قَالَ اِنِّيْ لِعَمَلِكُمْ مِّنَ الْقَالِيْنَ ۗ١٦٨
Qāla innī li‘amalikum minal-qālīn(a).
[168] उसने कहा : निःसंदेह मैं तुम्हारे काम से सख़्त घृणा करने वालों में से हूँ।

رَبِّ نَجِّنِيْ وَاَهْلِيْ مِمَّا يَعْمَلُوْنَ١٦٩
Rabbi najjinī wa ahlī mimmā ya‘malūn(a).
[169] ऐ मेरे पालनहार! मुझे तथा मेरे घर वालों को उससे बचा ले, जो ये करते हैं।

فَنَجَّيْنٰهُ وَاَهْلَهٗٓ اَجْمَعِيْنَ ۙ١٧٠
Fa najjaināhu wa ahlahū ajma‘īn(a).
[170] तो हमने उसे और उसके सभी घर वालों को बचा लिया।

اِلَّا عَجُوْزًا فِى الْغٰبِرِيْنَ ۚ١٧١
Illā ‘ajūzan fil-gābirīn(a).
[171] सिवाय एक बुढ़िया27 के, जो पीछे रहने वालों में से थी।
27. इससे अभिप्रेत लूत (अलैहिस्सलाम) की काफ़िर पत्नी थी।

ثُمَّ دَمَّرْنَا الْاٰخَرِيْنَ ۚ١٧٢
Ṡumma dammarnal-ākharīn(a).
[172] फिर हमने दूसरों को विनष्ट कर दिया।

وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَّطَرًاۚ فَسَاۤءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِيْنَ١٧٣
Wa amṭarnā ‘alaihim maṭarā(n), fa sā'a maṭarul-munżarīn(a).
[173] और हमने उनपर ज़ोरदार बारिश28 बरसाई। तो उन लोगों की बारिश बहुत बुरी थी, जिन्हें डराया गया था।
28. अर्थात पत्थरों की बारिश। (देखिए : सूरत हूद, आयत : 82-83)

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٧٤
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[174] निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٧٥
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[175] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

كَذَّبَ اَصْحٰبُ لْـَٔيْكَةِ الْمُرْسَلِيْنَ ۖ١٧٦
Każżaba aṣḥābul-aikatil-mursalīn(a).
[176] ऐका29 वालों ने रसूलों को झुठलाया।
29. ऐका का अर्थ झाड़ी है। यह मदयन का क्षेत्र है जिसमें शुऐब अलैहिस्सलाम को भेजा गया था।

اِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ١٧٧
Iż qāla lahum syu‘aibun alā tattaqūn(a).
[177] जब उनसे शुऐब ने कहा : क्या तुम डरते नहीं हो?

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ١٧٨
Innī lakum rasūlun amīn(un).
[178] निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ١٧٩
Fattaqullāha wa aṭī‘ūn(i).
[179] अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ١٨٠
Wa mā as'alukum ‘alaihi min ajrin in ajriya illā ‘alā rabbil-‘ālamīn(a).
[180] मैं इस (कार्य) पर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता, मेरा बदला तो केवल सारे संसारों के पालनहार पर है।

۞ اَوْفُوا الْكَيْلَ وَلَا تَكُوْنُوْا مِنَ الْمُخْسِرِيْنَ ۚ١٨١
Auful-kaila wa lā takūnū minal-mukhsirīn(a).
[181] नाप पूरा दो और कम देने वालों में से न बनो।

وَزِنُوْا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيْمِ ۚ١٨٢
Wazinū bil-qisṭāsil-mustaqīm(i).
[182] और सीधे तराज़ू से तोलो।

وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ اَشْيَاۤءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ ۚ١٨٣
Wa lā tabkhasun-nāsa asy-yā'ahum wa lā ta‘ṡau fil-arḍi mufsidīn(a).
[183] और लाेगों को उनका सामान कम न दो। और धरती में उपद्रव फैलाते मत फिरो।

وَاتَّقُوا الَّذِيْ خَلَقَكُمْ وَالْجِبِلَّةَ الْاَوَّلِيْنَ ۗ١٨٤
Wattaqul-lażī khalaqakum wal-jibillatal-awwalīn(a).
[184] और उससे डरो, जिसने तुम्हें तथा पहले लोगों को पैदा किया है।

قَالُوْٓا اِنَّمَآ اَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِيْنَ ۙ١٨٥
Qālū innamā anta minal-musaḥḥarīn(a).
[185] उन्होंने कहा : निःसंदेह तू तो उन लोगों में से है जिनपर ताक़तवर जादू किया गया है।

وَمَآ اَنْتَ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا وَاِنْ نَّظُنُّكَ لَمِنَ الْكٰذِبِيْنَ ۚ١٨٦
Wa mā anta illā basyarum miṡlunā wa in naẓunnuka laminal-kāżibīn(a).
[186] और तू तो बस हमारे ही जैसा एक मनुष्य30 है और निःसंदेह हम तो तुझे झूठों में से समझते हैं।
30. यहाँ यह बात विचारणीय है कि सभी विगत जातियों ने अपने रसूलों को उनके मानव होने के कारण नकार दिया। और जिसने स्वीकार भी किया, तो उसने कुछ युग बीतने के पश्चात् अतिशयोक्ति करके अपने रसूलों को प्रभु अथवा प्रभु का अंश बना कर उन्हीं को पूज्य बना लिया। तथा एकेश्वरवाद को कड़ा आघात पहुँचाकर मिश्रणवाद का द्वार खोल लिया और कुपथ हो गए। वर्तमान युग में भी इसी का प्रचलन है और इसका आधार अपने पूर्वजों की रीतियों को बनाया जाता है। इस्लाम इसी कुपथ का निवारण करके एकेश्वरवाद की स्थापना के लिए आया है और वास्तव में यही सत्धर्म है। ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : मूझे वैसे न बढ़ाओ जैसे ईसाइयों ने मरयम के पुत्र (ईसा) को बढ़ा दिया। निःसंदेह मैं उसका दास हूँ। अतः मुझे अल्लाह का दास और उसका रसूल कहो। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 3445)

فَاَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًا مِّنَ السَّمَاۤءِ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ ۗ١٨٧
Fa asqiṭ ‘alainā kisafam minas-samā'i in kunta minaṣ-ṣādiqīn(a).
[187] तो हम पर आसमान से कुछ टुकड़े गिरा दे, यदि तू सच्चों में से है।

قَالَ رَبِّيْٓ اَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ١٨٨
Qāla rabbī a‘lamu bimā ta‘malūn(a).
[188] उसने कहा : मेरा पालनहार अधिक जानने वाला है जो कुछ तुम कर रहे हो।

فَكَذَّبُوْهُ فَاَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ الظُّلَّةِ ۗاِنَّهٗ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ١٨٩
Fa każżabūhu fa akhażahum ‘ażābu yaumiẓ-ẓullah(ti), innahū kāna ‘ażāba yaumin ‘aẓīm(in).
[189] चुनाँचे उन्होंने उसे झुठला दिया। तो उन्हें छाया31 के दिन की यातना ने पकड़ लिया। निश्चय वह एक बड़े दिन की यातना थी।
31. अर्थात उनकी यातना के दिन उनपर बादल छा गया। फिर आग बरसने लगी और धरती कंपित हो गई। फिर एक कड़ी ध्वनि ने उनकी जानें ले लीं। (इब्ने कसीर)

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ١٩٠
Inna fī żālika la'āyah(tan), wa mā kāna akṡaruhum mu'minīn(a).
[190] निःसंदेह इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी है। और उनमें से अधिकतर ईमानवाले नहीं थे।

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ١٩١
Wa inna rabbaka lahuwal-‘azīzur-raḥīm(u).
[191] और निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

وَاِنَّهٗ لَتَنْزِيْلُ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ١٩٢
Wa innahū latanzīlu rabbil-‘ālamīn(a).
[192] तथा निःसंदेह, यह (क़ुरआन) निश्चय सारे संसारों के पालनहार का उतारा हुआ है।

نَزَلَ بِهِ الرُّوْحُ الْاَمِيْنُ ۙ١٩٣
Nazala bihir rūḥul-amīn(u).
[193] इसे रूह़ुल-अमीन32 (अत्यंत विश्वसनीय फ़रिश्ता) लेकर उतरा है।
32. रूह़ुल-अमीन से अभिप्राय आदरणीय फ़रिश्ता जिबरीलल (अलैहिस्सलाम) हैं, जो मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह की ओर से वह़्य लेकर उतरते थे, जिसके कारण आप रसूलों की और उनकी जातियों की दशा से अवगत हुए। अतः यह आपके सत्य रसूल होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

عَلٰى قَلْبِكَ لِتَكُوْنَ مِنَ الْمُنْذِرِيْنَ ۙ١٩٤
‘Alā qalbika litakūna minal-munżirīn(a).
[194] आपके दिल पर, ताकि आप सावधान करने वालों में से हो जाएँ।

بِلِسَانٍ عَرَبِيٍّ مُّبِيْنٍ ۗ١٩٥
Bilisānin ‘arabiyyim mubīn(in).
[195] स्पष्ट अरबी भाषा में।

وَاِنَّهٗ لَفِيْ زُبُرِ الْاَوَّلِيْنَ١٩٦
Wa innahū lafī zuburil-awwalīn(a).
[196] तथा निःसंदेह यह निश्चित रूप से पहले लोगों की पुस्तकों में मौजूद है।33
33. अर्थात सभी आकाशीय ग्रंथों में अंतिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन तथा आपपर पुस्तक क़ुरआन के अवतरित होने की भविष्वाणी की गई है। और सब नबियों ने इसकी शुभ-सूचना दी है।

اَوَلَمْ يَكُنْ لَّهُمْ اٰيَةً اَنْ يَّعْلَمَهٗ عُلَمٰۤؤُا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ١٩٧
Awalam yakul lahum āyatan ay ya‘lamahū ‘ulamā'u banī isrā'īl(a).
[197] क्या उनके लिए यह एक निशानी न थी है कि इसे बनी इसराईल के विद्वान34 जानते हैं।
34. बनी इसराईल के विद्वान अब्दुल्लाह बिन सलाम आदि, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और क़ुरआन पर ईमान लाए, वे इसके सत्य होने का खुला प्रमाण हैं।

وَلَوْ نَزَّلْنٰهُ عَلٰى بَعْضِ الْاَعْجَمِيْنَ ۙ١٩٨
Wa lau nazzalnāhū ‘alā ba‘ḍil-a‘jamīn(a).
[198] और यदि हम इसे ग़ैर-अरब35 लोगों में से किसी पर उतार देते।
35. अर्थात ऐसे व्यक्ति पर जो अरब देश और जाति के अतिरिक्त किसी अन्य जाति का हो।

فَقَرَاَهٗ عَلَيْهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ مُؤْمِنِيْنَ ۗ١٩٩
Fa qara'ahū ‘alaihim mā kānū bihī mu'minīn(a).
[199] फिर वह इसे उनके सामने पढ़ता, तो भी वे उसपर ईमान लाने वाले न होते।36
36. अर्थात अरबी भाषा में न होता, तो कहते कि यह हमारी समझ में नहीं आता। (देखिए : सूरत ह़ा, मीम, सजदा, आयत : 44)

كَذٰلِكَ سَلَكْنٰهُ فِيْ قُلُوْبِ الْمُجْرِمِيْنَ ۗ٢٠٠
Każālika salaknāhu fī qulūbil-mujrimīn(a).
[200] इसी प्रकार हमने इसे अपराधियों के हृदयों में प्रवेश कर दिया।

لَا يُؤْمِنُوْنَ بِهٖ حَتّٰى يَرَوُا الْعَذَابَ الْاَلِيْمَ٢٠١
Lā yu'minūna bihī ḥattā yarawul-‘ażābal-alīm(a).
[201] वे उसपर ईमान नहीं लाएँगे, यहाँ तक कि वे दर्दनाक यातना देख लें।

فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ۙ٢٠٢
Fa ya'tiyahum bagtataw wa hum lā yasy‘urūn(a).
[202] तो वह उनपर अचानक आ पड़े और वे सोचते भी न हों।

فَيَقُوْلُوْا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُوْنَ ۗ٢٠٣
Fa yaqūlū hal naḥnu munẓarūn(a).
[203] फिर वे कहें : क्या हम मोहलत दिए जाने वाले हैं

اَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُوْنَ٢٠٤
Afa bi‘ażābinā yasta‘jilūn(a).
[204] तो क्या वे हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं?

اَفَرَءَيْتَ اِنْ مَّتَّعْنٰهُمْ سِنِيْنَ ۙ٢٠٥
Afa ra'aita im matta‘nāhum sinīn(a).
[205] तो क्या आपने विचार किया यदि हम इन्हें कुछ वर्षों तक लाभ दें।

ثُمَّ جَاۤءَهُمْ مَّا كَانُوْا يُوْعَدُوْنَ ۙ٢٠٦
Ṡumma jā'ahum mā kānū yū‘adūn(a).
[206] फिर उनपर वह (यातना) आ जाए, जिसका उनसे वादा किया जाता था।

مَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يُمَتَّعُوْنَ ۗ٢٠٧
Mā agnā ‘anhum mā kānū yumatta‘ūn(a).
[207] तो उन्हें जो लाभ दिया जाता था, वह उनके किस काम आएगा?

وَمَآ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ اِلَّا لَهَا مُنْذِرُوْنَ ۖ٢٠٨
Wa mā ahlaknā min qaryatin illā lahā munżirūn(a).
[208] और हमने किसी बस्ती को विनष्ट नहीं किया, परंतु उसके लिए कई सावधान करने वाले थे।

ذِكْرٰىۚ وَمَا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ٢٠٩
Żikrā, wa mā kunnā ẓālimīn(a).
[209] याद दिलाने के लिए। और हम अत्याचारी नहीं थे।

وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ الشَّيٰطِيْنُ٢١٠
Wa mā tanazzalat bihisy-syayāṭīn(u).
[210] तथा इस (क़ुरआन) को लेकर शैतान नहीं उतरे।

وَمَا يَنْۢبَغِيْ لَهُمْ وَمَا يَسْتَطِيْعُوْنَ ۗ٢١١
Wa mā yambagī lahum wa mā yastaṭī‘ūn(a).
[211] और न यह उनके योग्य है, और न वे ऐसा कर सकते हैं।

اِنَّهُمْ عَنِ السَّمْعِ لَمَعْزُوْلُوْنَ ۗ٢١٢
Innahum ‘anis-sam‘i lama‘zūlūn(a).
[212] निःसंदेह वे तो (इसके) सुनने ही से अलग37 कर दिए गए हैं।
37. अर्थात इसके अवतरित होने के समय शैतान आकाश की ओर जाते हैं तो उल्का उन्हें भस्म कर देते हैं।

فَلَا تَدْعُ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَ فَتَكُوْنَ مِنَ الْمُعَذَّبِيْنَ٢١٣
Falā tad‘u ma‘allāhi ilāhan ākhara fa takūna minal-mu‘ażżabīn(a).
[213] अतः आप अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को न पुकारें, अन्यथा आप दंड पाने वालों में हो जाएँगे।

وَاَنْذِرْ عَشِيْرَتَكَ الْاَقْرَبِيْنَ ۙ٢١٤
Wa anżir ‘asyīratakal-aqrabīn(a).
[214] और आप अपने निकटतम रिश्तेदारों को डराएँ।38
38. आदरणीय इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि जब यह आयत उतरी तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सफ़ा पर्वत पर चढ़े। और क़ुरैश के परिवारों को पुकरा। और जब सब एकत्र हो गए, और जो स्वयं नहीं आ सका तो उसने किसी प्रतिनिधि को भेज दिया। और अबू लहब तथा क़ुरैश आ गए तो आपने फरमाया : यदि मैं तुमसे कहूँ कि उस वादी में एक सेना है जो तुम पर आक्रमण करने वाली है, तो क्या तुम मुझे सच्चा मानोगे? सबने कहा : हाँ। हमने आपको सदा ही सच्चा पाया है। आपने कहा : मैं तुम्हें आगामी कड़ी यातना से सावधान कर रहा हूँ। इसपर अबू लहब ने कहा : तेरा पूरे दिन नाश हो! क्या हमें इसी के लिए एकत्र किया है? और इसीपर सूरत लह्ब उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4770)

وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ ۚ٢١٥
Wakhfiḍ janāḥaka limanittaba‘aka minal-mu'minīn(a).
[215] और ईमान वालों में से जो आपका अनुसरण करे, उसके लिए अपना बाज़ू39 झुका दें।
39. अर्थात उसके साथ विनम्रता का व्यवहार करें।

فَاِنْ عَصَوْكَ فَقُلْ اِنِّيْ بَرِيْۤءٌ مِّمَّا تَعْمَلُوْنَ ۚ٢١٦
Fa in ‘aṣauka faqul innī barī'um mimmā ta‘malūn(a).
[216] फि यदि वे आपकी अवज्ञा करें, तो आप कह दें कि तुम जो कुछ कर रहे हो उसकी ज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।

وَتَوَكَّلْ عَلَى الْعَزِيْزِ الرَّحِيْمِ ۙ٢١٧
Wa tawakkal ‘alal-‘azīzir-raḥīm(i).
[217] तथा उस सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् पर भरोसा करें।

الَّذِيْ يَرٰىكَ حِيْنَ تَقُوْمُ٢١٨
Allażī yarāka ḥīna taqūm(u).
[218] जो आपको देखता है, जब आप खड़े होते हैं।

وَتَقَلُّبَكَ فِى السّٰجِدِيْنَ٢١٩
Wa taqallubaka fis-sājidīn(a).
[219] और सजदा करने वालों में आपके फिरने को भी।40
40. अर्थात प्रत्येक समय, अकेले हों या लोगों के बीच हों।

اِنَّهٗ هُوَ السَّمِيْعُ الْعَلِيْمُ٢٢٠
Innahū huwas-samī‘ul-‘alīm(u).
[220] निःसंदेह वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।

هَلْ اُنَبِّئُكُمْ عَلٰى مَنْ تَنَزَّلُ الشَّيٰطِيْنُ ۗ٢٢١
Hal unabbi'ukum ‘alā man tanazzalusy-syayāṭīn(u).
[221] क्या मैं आपको बताऊँ कि शैतान किस पर उतरते हैं?

تَنَزَّلُ عَلٰى كُلِّ اَفَّاكٍ اَثِيْمٍ ۙ٢٢٢
Tanazzalu ‘alā kulli affākin aṡīm(in).
[222] वे हर बड़े झूठे और बड़े पापी41 पर उतरते हैं।
41. ह़दीस में है कि फ़रिश्ते बादल में उतरते हैं, और आकाश में होने वाले निर्णय की बात करते हैं, जिसे शैतान चोरी से सुन लेते हैं। और ज्योतिषियों को पहुँचा देते हैं। फिर वह उसमें सौ झूठ मिलाते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3210)

يُّلْقُوْنَ السَّمْعَ وَاَكْثَرُهُمْ كٰذِبُوْنَ ۗ٢٢٣
Yulqūnas-sam‘a wa akṡaruhum kāżibūn(a).
[223] वे सुनी हुई बात को (काहिनों तक) पहुँचा देते हैं, और उनमें से अधिकतर झूठे हैं।

وَالشُّعَرَاۤءُ يَتَّبِعُهُمُ الْغَاوٗنَ ۗ٢٢٤
Wasy-syu‘arā'u yattabi‘uhumul-gāwūn(a).
[224] और कवि लोग, उनके पीछे भटके हुए लोग ही चलते हैं।

اَلَمْ تَرَ اَنَّهُمْ فِيْ كُلِّ وَادٍ يَّهِيْمُوْنَ ۙ٢٢٥
Alam tara annahum fī kulli wādiy yahīmūn(a).
[225] क्या आपने नहीं देखा कि वे प्रत्येक वादी में भटकते फिरते42 हैं।
42. अर्थात कल्पना की उड़ान में रहते हैं।

وَاَنَّهُمْ يَقُوْلُوْنَ مَا لَا يَفْعَلُوْنَ ۙ٢٢٦
Wa annahum yaqūlūna mā lā yaf‘alūn(a).
[226] और यह कि निःसंदेह ऐसी बात कहते हैं, जो करते नहीं।

اِلَّا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَذَكَرُوا اللّٰهَ كَثِيْرًا وَّانْتَصَرُوْا مِنْۢ بَعْدِ مَا ظُلِمُوْا ۗوَسَيَعْلَمُ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْٓا اَيَّ مُنْقَلَبٍ يَّنْقَلِبُوْنَ ࣖ٢٢٧
Illal-lażīna āmanū wa ‘amiluṣ-ṣāliḥāti wa żakarullāha kaṡīraw wantaṣarū mim ba‘di mā ẓulimū, wa saya‘lamul-lażīna ẓalamū ayya munqalabiy yanqalibūn(a).
[227] सिवाय उन (कवियों) के, जो43 ईमान लाए, और अच्छे कर्म किए और अल्लाह को बहुत याद किया तथा बदला लिया, इसके बाद कि उनके ऊपर ज़ुल्म किया गया। तथा वे लोग, जिन्होंने अत्याचार किया, शीघ्र ही जान लेंगे कि वे किस जगह लौटकर जाएँगे।
43. इनसे अभिप्रेत ह़स्सान बिन साबित आदि कवि हैं, जो क़ुरैश के कवियों की भर्त्सना किया करते थे। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 4124)