Surah Al-Anbiya

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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اِقْتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمْ وَهُمْ فِيْ غَفْلَةٍ مُّعْرِضُوْنَ ۚ١
Iqtaraba lin-nāsi ḥisābuhum wa hum fī gaflatim mu‘riḍūn(a).
[1] लोगों के लिए उनका हिसाब1 बहुत निकट आ गया और वे बड़ी लापरवाही में मुँह फेरने वाले हैं।
1. अर्थात प्रलय का समय, फिर भी लोग उससे अचेत माया मोह में लिप्त हैं।

مَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ ذِكْرٍ مِّنْ رَّبِّهِمْ مُّحْدَثٍ اِلَّا اسْتَمَعُوْهُ وَهُمْ يَلْعَبُوْنَ ۙ٢
Mā ya'tīhim min żikrim mir rabbihim muḥdaṡin illastama‘ūhu wa hum yal‘abūn(a).
[2] उनके पालनहार की ओर से उनके पास कोई नया उपदेश2 नहीं आता, परंतु वे उसे हँसी-खेल करते हुए बड़ी कठिनाई से सुनते हैं।
2. अर्थात क़ुरआन की कोई आयत अवतरित होती है, तो उसमें चिंतन और विचार नहीं करते।

لَاهِيَةً قُلُوْبُهُمْۗ وَاَسَرُّوا النَّجْوَىۖ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْاۖ هَلْ هٰذَآ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْۚ اَفَتَأْتُوْنَ السِّحْرَ وَاَنْتُمْ تُبْصِرُوْنَ٣
Lāhiyatan qulūbuhum, wa asarrun-najwal-lażīna ẓalamū, hal hāżā illā basyarum miṡlukum, afa ta'tūnas-siḥra wa antum tubṣirūn(a).
[3] उनके दिल पूरी तरह ग़ाफ़िल होते हैं। और उन लोगों ने चुपके-चुपके कानाफूसी की जिन्होंने अत्याचार किया था, कि यह (नबी) तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान है, तो क्या तुम जादू के पास आते हो, हालाँकि तुम देख रहे हो?3
3. अर्थात यह कि वह तुम्हारे जैसा मनुष्य है। अतः इसका जो भी प्रभाव है, वह जादू के कारण है।

قٰلَ رَبِّيْ يَعْلَمُ الْقَوْلَ فِى السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِۖ وَهُوَ السَّمِيْعُ الْعَلِيْمُ٤
Qāla rabbī ya‘lamul-qaula fis-samā'i wal-arḍ(i), wa huwas-samī‘ul-‘alīm(u).
[4] उस (रसूल) ने कहा : मेरा पालनहार आकाश और धरती की हर बात को जानता है और वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।

بَلْ قَالُوْٓا اَضْغَاثُ اَحْلَامٍۢ بَلِ افْتَرٰىهُ بَلْ هُوَ شَاعِرٌۚ فَلْيَأْتِنَا بِاٰيَةٍ كَمَآ اُرْسِلَ الْاَوَّلُوْنَ٥
Bal qālū aḍgāṡu aḥlāmim baliftarāhu bal huwa syā‘ir(un), falya'tinā bi'āyatin kamā ursilal-awwalūn(a).
[5] बल्कि उन्होंने (क़ुरआन के बारे में) कहा : यह4 सपनों की उलझी हुई बातें हैं, बल्कि उसने इसे स्वयं गढ़ लिया है, बल्कि वह कवि है! अतः उसे चाहिए कि हमारे पास कोई निशानी लाए, जैसे पहले के रसूल (निशानियों के साथ) भेजे गए थे।
4. अर्थात क़ुरआन की आयतें।

مَآ اٰمَنَتْ قَبْلَهُمْ مِّنْ قَرْيَةٍ اَهْلَكْنٰهَاۚ اَفَهُمْ يُؤْمِنُوْنَ٦
Mā āmanat qablahum min qaryatin ahlaknāhā, afahum yu'minūn(a).
[6] इनसे पहले कोई बस्ती, जिसे हमने विनष्ट किया, ईमान5 नहीं लाई। तो क्या ये ईमान ले आएँगे?
5. अर्थात निशानियाँ देख कर भी ईमान नहीं लाई।

وَمَآ اَرْسَلْنَا قَبْلَكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوْحِيْٓ اِلَيْهِمْ فَسْـَٔلُوْٓا اَهْلَ الذِّكْرِ اِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ٧
Wa mā arsalnā qablaka illā rijālan nūḥī ilaihim fas'alū ahlaż-żikri in kuntum lā ta‘lamūn(a).
[7] और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजे, जिनकी ओर हम वह़्य (प्रकाशना) करते थे। अतः तुम ज़िक्र (किताब) वालों6 से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो।
6. अर्थात पिछली आकाशीय पुस्तकों के ज्ञानियों से।

وَمَا جَعَلْنٰهُمْ جَسَدًا لَّا يَأْكُلُوْنَ الطَّعَامَ وَمَا كَانُوْا خٰلِدِيْنَ٨
Wa mā ja‘alnāhum jasadal lā ya'kulūnaṭ-ṭa‘āma wa mā kānū khālidīn(a).
[8] तथा हमने उन्हें ऐसे शरीर (वाले) नहीं बनाए थे, जो खाना न खाते हों और न वे हमेशा रहने वाले थे।7
7. अर्थात उनमें मनुष्य ही की सब विशेषताएँ थीं।

ثُمَّ صَدَقْنٰهُمُ الْوَعْدَ فَاَنْجَيْنٰهُمْ وَمَنْ نَّشَاۤءُ وَاَهْلَكْنَا الْمُسْرِفِيْنَ٩
Ṡumma ṣadaqnāhumul-wa‘da fa anjaināhum wa man nasyā'u wa ahlaknal-musrifīn(a).
[9] फिर हमने उनसे किए हुए वादे को सच कर दिखाया। तो हमने उन्हें बचा लिया और उसे भी जिसे हम चाहते थे। और हमने हद से बढ़ने वालों को नष्ट कर दिया।

لَقَدْ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكُمْ كِتٰبًا فِيْهِ ذِكْرُكُمْۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ࣖ١٠
Laqad anzalnā ilaikum kitāban fīhi żikrukum, afalā ta‘qilūn(a).
[10] निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर एक किताब (क़ुरआन) उतारी है, जिसमें तुम्हारा सम्मान है। तो क्या तुम नहीं समझते?

وَكَمْ قَصَمْنَا مِنْ قَرْيَةٍ كَانَتْ ظَالِمَةً وَّاَنْشَأْنَا بَعْدَهَا قَوْمًا اٰخَرِيْنَ١١
Wa kam qaṣamnā min qaryatin kānat ẓālimataw wa ansya'nā ba‘dahā qauman ākharīn(a).
[11] और हमने बहुत-सी बस्तियों को तोड़कर रख दिया, जो अत्याचारी थीं और हमने उनके बाद दूसरी जाति को पैदा कर दिया।

فَلَمَّآ اَحَسُّوْا بَأْسَنَآ اِذَا هُمْ مِّنْهَا يَرْكُضُوْنَ ۗ١٢
Falammā aḥassū ba'sanā iżā hum minhā yarkuḍūn(a).
[12] फिर जब उन्होंने हमारे अज़ाब को देख लिया, तो वे तुरंत वहाँ से भागने लगे।

لَا تَرْكُضُوْا وَارْجِعُوْٓا اِلٰى مَآ اُتْرِفْتُمْ فِيْهِ وَمَسٰكِنِكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْـَٔلُوْنَ١٣
Lā tarkuḍū warji‘ū ilā mā utriftum fīhi wa masākinikum la‘allakum tus'alūn(a).
[13] (तो उनसे उपहास के तौर पर कहा जाएगा :) भागो नहीं, और वापस चलो उन (जगहों) की ओर जिनमें तुम्हें खुशहाली दी गई थी और अपने घरों की ओर, ताकि तुमसे पूछा जाए।8
8. अर्थात यह कि यातना आने पर तुम्हारी क्या दशा हुई?

قَالُوْا يٰوَيْلَنَآ اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ١٤
Qālū yā wailanā innā kunnā ẓālimīn(a).
[14] उन्होंने कहा : हाय हमारा विनाश! निश्चय हम अत्याचारी थे।

فَمَا زَالَتْ تِّلْكَ دَعْوٰىهُمْ حَتّٰى جَعَلْنٰهُمْ حَصِيْدًا خٰمِدِيْنَ١٥
Famā zālat tilka da‘wāhum ḥattā ja‘alnāhum ḥaṣīdan khāmidīn(a).
[15] तो उनकी पुकार हमेशा यही रही, यहाँ तक कि हमने उन्हें कटे हुए, बुझे हुए बना दिया।

وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاۤءَ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لٰعِبِيْنَ١٦
Wa mā khalaqnas-samā'a wal-arḍa wa mā bainahumā lā‘ibīn(a).
[16] तथा हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, खेलते हुए नहीं बनाया।

لَوْ اَرَدْنَآ اَنْ نَّتَّخِذَ لَهْوًا لَّاتَّخَذْنٰهُ مِنْ لَّدُنَّآ ۖاِنْ كُنَّا فٰعِلِيْنَ١٧
Lau aradnā an nattakhiża lahwal lattakhażnāhum mil ladunnā, in kunnā fā‘ilīn(a).
[17] यदि हम कोई खेल बनाना चाहते, तो निश्चय उसे अपने पास से बना9 लेते। (परंतु) हम ऐसा करने वाले नहीं हैं।
9. अर्थात इस विशाल संसार को बनाने की आवश्यक्ता न थी। इस आयत में यह बताया जा रहा है कि इस संसार को खेल नहीं बनाया गया है। यहाँ एक साधारण नियम काम कर रहा है। और वह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष का नियम है। अर्थात यहाँ जो कुछ होता है वह सत्य की विजय और असत्य की पराजय के लिए होता है। और सत्य के आगे असत्य समाप्त हो कर रह जाता है।

بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهٗ فَاِذَا هُوَ زَاهِقٌۗ وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُوْنَ١٨
Bal naqżifu bil-ḥaqqi ‘alal-bāṭili fa yadmaguhū fa iżā huwa zāhiq(un), wa lakumul-wailu mimmā taṣifūn(a).
[18] बल्कि हम सत्य को असत्य पर फेंक मारते हैं, तो वह उसका सिर कुचल देता है, तो एकाएक वह मिटने वाला होता है। और तुम्हारे लिए उसके कारण विनाश है, जो तुम बयान करते हो।

وَلَهٗ مَنْ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ وَمَنْ عِنْدَهٗ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ عَنْ عِبَادَتِهٖ وَلَا يَسْتَحْسِرُوْنَ ۚ١٩
Wa lahū man fis-samāwāti wal-arḍ(i), wa man ‘indahū lā yastakbirūna ‘an ‘ibādatihī wa lā yastaḥsirūn(a).
[19] और उसी का है, जो कोई आकाशों तथा धरती में है। और जो (फ़रिश्ते) उसके पास हैं, वे न उसकी इबादत से अभिमान करते हैं और न ज़रा भर थकते हैं।

يُسَبِّحُوْنَ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ لَا يَفْتُرُوْنَ٢٠
Yusabbiḥūnal-laila wan-nahāra wa lā yafturūn(a).
[20] वे रात-दिन (अल्लाह की) पवित्रता का गान करते हैं, दम नहीं लेते।

اَمِ اتَّخَذُوْٓا اٰلِهَةً مِّنَ الْاَرْضِ هُمْ يُنْشِرُوْنَ٢١
Amittakhażū ālihatam minal-arḍi hum yunsyirūn(a).
[21] क्या उन्होंने धरती से ऐसे पूज्य बना लिए हैं, जो मरे हुए लोगों को ज़िंदा कर सकते हैं?

لَوْ كَانَ فِيْهِمَآ اٰلِهَةٌ اِلَّا اللّٰهُ لَفَسَدَتَاۚ فَسُبْحٰنَ اللّٰهِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُوْنَ٢٢
Lau kāna fīhimā ālihatun illallāhu lafasadatā, fa subḥānallāhi rabbil-‘arsyi ‘ammā yaṣifūn(a).
[22] अगर उन दोनों में अल्लाह के सिवा कोई और पूज्य होते, तो वे दोनों अवश्य बिगड़10 जाते। अतः पवित्र है अल्लाह जो अर्श (सिंहासन) का मालिक है, उन चीज़ों से जो वे बयान करते हैं।
10. क्योंकि दोनों अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग करते और उनके आपस के संघर्ष के कारण इस संसार की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती। अतः इस संसार की व्यवस्था स्वयं बता रही है कि इसका स्वामी एक ही है। और वही अकेला पूज्य है।

لَا يُسْـَٔلُ عَمَّا يَفْعَلُ وَهُمْ يُسْـَٔلُوْنَ٢٣
Lā yus'alu ‘ammā yaf‘alu wa hum yus'alūn(a).
[23] वह जो कुछ करता है, उससे (उसके बारे में) नहीं पूछा जाता, और उनसे पूछा जाता है।

اَمِ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِهٖٓ اٰلِهَةً ۗقُلْ هَاتُوْا بُرْهَانَكُمْۚ هٰذَا ذِكْرُ مَنْ مَّعِيَ وَذِكْرُ مَنْ قَبْلِيْۗ بَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَۙ الْحَقَّ فَهُمْ مُّعْرِضُوْنَ٢٤
Amittakhażū min dūnihī ālihah(tan), qul hātū burhānakum, hāżā żikru mam ma‘iya wa żikru man qablī, bal akṡaruhum lā ya‘lamūnal-ḥaqqa fahum mu‘riḍūn(a).
[24] क्या उन्होंने उसके सिवा और भी पूज्य बना लिए हैं? (ऐ नबी!) आप कह दें कि अपना प्रमाण लाओ। यह मेरे साथ वालों की किताब (क़ुरआन) है, और ये मुझसे पहले के लोगों पर उतरने वाली किताबें11 हैं, (इनमें तुम्हारे लिए कोई प्रमाण नहीं है)। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग सत्य का ज्ञान नहीं रखते। इसी कारण, वे मुँह फेरने वाले हैं।
11. आयत का भावार्थ यह है कि यह क़ुरआन है और ये तौरात तथा इंजील हैं। इनमें कोई प्रमाण दिखा दो कि अल्लाह के अन्य साझी और पूज्य हैं। बल्कि ये मिश्रणवादी निर्मूल बातें कर रहे हैं।

وَمَآ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا نُوْحِيْٓ اِلَيْهِ اَنَّهٗ لَآ اِلٰهَ اِلَّآ اَنَا۠ فَاعْبُدُوْنِ٢٥
Wa mā arsalnā min qablika mir rasūlin illā nūḥī ilaihi annahū lā ilāha illā ana fa‘budūn(i).
[25] और हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजा, उसकी ओर यही वह़्य (प्रकाशना) करते थे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही इबादत करो।

وَقَالُوا اتَّخَذَ الرَّحْمٰنُ وَلَدًا سُبْحٰنَهٗ ۗبَلْ عِبَادٌ مُّكْرَمُوْنَ ۙ٢٦
Wa qāluttakhażar-raḥmānu waladan subḥānah(ū), bal ‘ibādum mukramūn(a).
[26] और उन (मुश्रिकों) ने कहा कि 'रहमान' (अत्यंत दयावान्) ने कोई संतान बना रखी है। वह (इससे) पवित्र है। बल्कि वे (फ़रिश्ते)12 सम्मानित बंदे हैं।
12. अर्थात अरब के मिश्रणवादी जिन फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते हैं, वास्तव में वे उसके बंदे तथा दास हैं।

لَا يَسْبِقُوْنَهٗ بِالْقَوْلِ وَهُمْ بِاَمْرِهٖ يَعْمَلُوْنَ٢٧
Lā yasbiqūnahū bil-qauli wa hum bi'amrihī ya‘malūn(a).
[27] वे बात करने में उससे पहल नहीं करते और वे उसके आदेशानुसार ही काम करते हैं।

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ اَيْدِيْهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يَشْفَعُوْنَۙ اِلَّا لِمَنِ ارْتَضٰى وَهُمْ مِّنْ خَشْيَتِهٖ مُشْفِقُوْنَ٢٨
Ya‘lamū mā baina aidīhim wa mā khalfahum wa lā yasyfa‘ūna illā limanirtaḍā wa hum min khasy-yatihī musyfiqūn(a).
[28] वह जानता है, जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है। और वे सिफ़ारिश नहीं करते, परंतु उसी के लिए जिसे वह पसंद13 करे। तथा वे उसी के भय से डरने वाले हैं।
13. अर्थात जो एकेश्वरवादी होंगे।

۞ وَمَنْ يَّقُلْ مِنْهُمْ اِنِّيْٓ اِلٰهٌ مِّنْ دُوْنِهٖ فَذٰلِكَ نَجْزِيْهِ جَهَنَّمَۗ كَذٰلِكَ نَجْزِى الظّٰلِمِيْنَ ࣖ٢٩
Wa may yaqul minhum innī ilāhun min dūnihī fa żālika najzīhi jahannam(a), każālika najziẓ-ẓālimīn(a).
[29] और उनमें से जो यह कहे कि मैं अल्लाह के सिवा पूज्य हूँ, तो यही है जिसे हम जहन्नम की सज़ा देंगे। ऐसे ही हम ज़ालिमों को सज़ा देते हैं।

اَوَلَمْ يَرَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنَّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ كَانَتَا رَتْقًا فَفَتَقْنٰهُمَاۗ وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاۤءِ كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّۗ اَفَلَا يُؤْمِنُوْنَ٣٠
Awalam yaral-lażīna kafarū annas-samāwāti wal-arḍa kānatā ratqan fa fataqnāhumā, wa ja‘alnā minal-mā'i kulla syai'in ḥayy(in), afalā yu'minūn(a).
[30] क्या जिन लोगों ने कुफ़्र किया यह नहीं देखा कि आकाश और धरती दोनों मिले हुए14 थे, फिर हमने दोनों को अलग-अलग कर दिया, तथा हमने पानी से हर जीवित चीज़ को बनाया? तो क्या ये लोग ईमान नहीं लाते?
14. अर्थात अपनी उत्पत्ति के आरंभ में।

وَجَعَلْنَا فِى الْاَرْضِ رَوَاسِيَ اَنْ تَمِيْدَ بِهِمْۖ وَجَعَلْنَا فِيْهَا فِجَاجًا سُبُلًا لَّعَلَّهُمْ يَهْتَدُوْنَ٣١
Wa ja‘alnā fil-arḍi rawāsiya an tamīda bihim, wa ja‘anā fīhā fijājan subulal la‘allahum yahtadūn(a).
[31] और हमने धरती में पर्वत बना दिए, ताकि वह उनके साथ हिलने-डुलने15 न लगे और उसमें चौड़े रास्ते बना दिए, ताकि वे मार्ग पाएँ।
15. अर्थात ये पर्वत न होते तो धरती सदा हिलती रहती।

وَجَعَلْنَا السَّمَاۤءَ سَقْفًا مَّحْفُوْظًاۚ وَهُمْ عَنْ اٰيٰتِهَا مُعْرِضُوْنَ٣٢
Wa ja‘alnas-samā'a saqfam maḥfūẓā(n), wa hum ‘an āyātihā mu‘riḍūn(a).
[32] और हमने आकाश को एक संरक्षित छत बनाया। और वे उसकी निशानियों से मुँह फेरने वाले हैं।

وَهُوَ الَّذِيْ خَلَقَ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَۗ كُلٌّ فِيْ فَلَكٍ يَّسْبَحُوْنَ٣٣
Wa huwal-lażī khalaqal-laila wan-nahāra wasy-syamsa wal-qamar(a), kullun fī falakiy yasbaḥūn(a).
[33] और वही है, जिसने रात और दिन, तथा सूरज और चाँद बनाए। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।16
16. क़ुरआन अपनी शिक्षा में संसार की व्यवस्था से एक ही पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। यहाँ भी आयत : 30 से 33 तक एक अल्लाह के पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत किया गया है।

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِّنْ قَبْلِكَ الْخُلْدَۗ اَفَا۟ىِٕنْ مِّتَّ فَهُمُ الْخٰلِدُوْنَ٣٤
Wa mā ja‘alnā libasyarim min qablikal-khuld(a), afa'im mitta fahumul-khālidūn(a).
[34] और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले किसी मनुष्य के लिए अमरता नहीं रखी। फिर क्या अगर आप मर17 गए, तो ये सदैव रहने वाले हैं?
17. जब मनुष्य किसी का विरोधी बन जाता है, तो उसके मरण की कामना करता है। यही दशा मक्का के काफ़िरों की भी थी। वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मरण की कामना कर रहे थे। फिर यह कहा गया है कि संसार के प्रत्येक जीव को मरना है। यह कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो यह है कि अल्लाह इस संसार में सबके कर्मों की परीक्षा कर रहा है और फिर सबको अपने कर्मों का फल भी परलोक में मिलना है, तो कौन इस परीक्षा में सफल होता है?

كُلُّ نَفْسٍ ذَاۤىِٕقَةُ الْمَوْتِۗ وَنَبْلُوْكُمْ بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً ۗوَاِلَيْنَا تُرْجَعُوْنَ٣٥
Kullu nafsin żā'iqatul-maut(i), wa nablūkum bisy-syarri wal-khairi fitnah(tan), wa ilainā turja‘ūn(a).
[35] हर जीव को मौत का स्वाद चखना है। और हम अच्छी तथा बुरी परिस्थितियों से तुम्हारी परीक्षा करते हैं तथा तुम हमारी ही ओर लौटाए जाओगे।

وَاِذَا رَاٰكَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِنْ يَّتَّخِذُوْنَكَ اِلَّا هُزُوًاۗ اَهٰذَا الَّذِيْ يَذْكُرُ اٰلِهَتَكُمْۚ وَهُمْ بِذِكْرِ الرَّحْمٰنِ هُمْ كٰفِرُوْنَ٣٦
Wa iżā ra'ākal-lażīna kafarū iy yattakhiżūnaka illā huzuwā(n), ahāżal-lażī yażkuru ālihatakum, wa hum biżikrir-raḥmāni hum kāfirūn(a).
[36] तथा जब काफ़िर आपको देखते हैं, तो आपको उपहास बना लेते हैं। (वे कहते हैं :) क्या यही है, जो तुम्हारे पूज्यों की चर्चा करता है? जबकि वे स्वयं 'रहमान' (अत्यंत दयावान्) के ज़िक्र18 का इनकार करने वाले हैं।
18. अर्थात अल्लाह को नहीं मानते।

خُلِقَ الْاِنْسَانُ مِنْ عَجَلٍۗ سَاُورِيْكُمْ اٰيٰتِيْ فَلَا تَسْتَعْجِلُوْنِ٣٧
Khuliqal-insānu min ‘ajal(in), sa'urīkum āyātī falā tasta‘jilūn(i).
[37] इनसान जन्मजात जल्दबाज़ है। मैं शीघ्र तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाऊँगा। अतः तुम मुझसे जल्दी की माँग न करो।

وَيَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ٣٨
Wa yaqūlūna matā hāżal-wa‘du in kuntum ṣādiqīn(a).
[38] तथा वे कहते हैं : यह वादा19 कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?
19. अर्थात हमारे न मानने पर यातना आने की धमकी।

لَوْ يَعْلَمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا حِيْنَ لَا يَكُفُّوْنَ عَنْ وُّجُوْهِهِمُ النَّارَ وَلَا عَنْ ظُهُوْرِهِمْ وَلَا هُمْ يُنْصَرُوْنَ٣٩
Lau ya‘lamul-lażīna kafarū ḥīna lā yakuffūna ‘aw wujūhihimun nāra wa lā ‘an ẓuhūrihim wa lā hum yunṣarūn(a).
[39] यदि ये काफ़िर लोग उस समय को जान लें, जब वे न अपने चेहरों से आग को रोक सकेंगे और न अपनी पीठों से और न उनकी सहायता की जाएगी। (तो यातना के लिए जल्दी न मचाएँ)।

بَلْ تَأْتِيْهِمْ بَغْتَةً فَتَبْهَتُهُمْ فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَ رَدَّهَا وَلَا هُمْ يُنْظَرُوْنَ٤٠
Bal ta'tīhim bagtatan fa tabhatuhum falā yastaṭī‘ūna raddahā wa lā hum yunẓarūn(a).
[40] बल्कि वह उनपर अचानक आएगी, तो उन्हें आश्चर्यचकित कर देगी। फिर वे न उसे फेर सकेंगे और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।

وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّنْ قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِيْنَ سَخِرُوْا مِنْهُمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ٤١
Wa laqadistuhzi'a birusulim min qablika fa ḥāqa bil-lażīna sakhirū minhum mā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[41] निःसंदेह आपसे पहले कई रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया, तो उनमें से जिन लोगों ने मज़ाक उड़ाया, उन्हें उसी चीज़20 ने घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते थे।
20. अर्थात यातना ने।

قُلْ مَنْ يَّكْلَؤُكُمْ بِالَّيْلِ وَالنَّهَارِ مِنَ الرَّحْمٰنِۗ بَلْ هُمْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِمْ مُّعْرِضُوْنَ٤٢
Qul may yakla'ukum bil-laili wan-nahāri minar-raḥmān(i), bal hum ‘an żikrihim mu‘riḍūn(a).
[42] आप पूछिए कि कौन है जो रात और दिन में 'रहमान' से21 तुम्हारी रक्षा करता है? बल्कि वे अपने पालनहार की याद से मुँह फेरने वाले हैं।
21. अर्थात उसकी यातना से।

اَمْ لَهُمْ اٰلِهَةٌ تَمْنَعُهُمْ مِّنْ دُوْنِنَاۗ لَا يَسْتَطِيْعُوْنَ نَصْرَ اَنْفُسِهِمْ وَلَا هُمْ مِّنَّا يُصْحَبُوْنَ٤٣
Am lahum ālihatun tamna‘uhum min dūninā, lā yastaṭī‘ūna naṣra anfusihim wa lā hum minnā yuṣḥabūn(a).
[43] क्या उनके कुछ पूज्य हैं, जो उन्हें हमारी यातना से बचाते हैं? वे न तो खुद अपनी सहायता कर सकते हैं और न हमारी यातना से उन्हें बचाया जाता है।

بَلْ مَتَّعْنَا هٰٓؤُلَاۤءِ وَاٰبَاۤءَهُمْ حَتّٰى طَالَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُۗ اَفَلَا يَرَوْنَ اَنَّا نَأْتِى الْاَرْضَ نَنْقُصُهَا مِنْ اَطْرَافِهَاۗ اَفَهُمُ الْغٰلِبُوْنَ٤٤
Bal matta‘nā hā'ulā'i wa ābā'ahum ḥattā ṭāla ‘alaihimul-‘umur(u), afalā yarauna annā na'til-arḍa nanquṣuhā min aṭrāfihā, afahumul-gālibūn(a).
[44] बल्कि हमने इन (काफ़िरों) को और इनके बाप-दादों को जीवन की सुख-सुविधाएँ प्रदान कीं, यहाँ तक कि उनपर लंबा समय बीत गया। तो क्या वे देखते नहीं कि हम धरती को उसके किनारों से कम करते आ रहे हैं? तो क्या वही प्रभावी रहने वाले हैं?22
22.अर्थ यह है कि वे मक्का के काफ़िर सुख-सुविधा मंद रहने के कारण अल्लाह से विमुख हो गए हैं, और सोचते हैं कि उनपर यातना नहीं आएगी और वही विजयी होंगे। जबकि दशा यह है कि उनके अधिकार का क्षेत्र कम होता जा रहा है और इस्लाम बराबर फैलता जा रहा है। फिर भी वे इस भ्रम में हैं कि वे प्रभुत्व प्राप्त कर लेंगे।

قُلْ اِنَّمَآ اُنْذِرُكُمْ بِالْوَحْيِۖ وَلَا يَسْمَعُ الصُّمُّ الدُّعَاۤءَ اِذَا مَا يُنْذَرُوْنَ٤٥
Qul innamā unżirukum bil-waḥy(i), wa lā yasma‘uṣ-ṣummud-du‘ā'a iżā mā yunżarūn(a).
[45] (ऐ नबी!) आप कह दें कि मैं तो तुम्हें केवल वह़्य के साथ डराता हूँ। और बहरे पुकार को नहीं सुनते, जब कभी डराए जाते हैं।

وَلَىِٕنْ مَّسَّتْهُمْ نَفْحَةٌ مِّنْ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُوْلُنَّ يٰوَيْلَنَآ اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ٤٦
Wa la'im massathum nafḥatum min ‘ażābi rabbika layaqūlunna yā wailanā innā kunnā ẓālimīn(a).
[46] और निश्चय यदि उन्हें आपके पालनहार की तनिक यातना भी छू जाए, तो अवश्य पुकार उठेंगे : हाय हमारा विनाश! निश्चय हम ही अत्याचारी23 थे।
23. अर्थात अपने पापों को स्वीकार कर लेंगे।

وَنَضَعُ الْمَوَازِيْنَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيٰمَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْـًٔاۗ وَاِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ اَتَيْنَا بِهَاۗ وَكَفٰى بِنَا حٰسِبِيْنَ٤٧
Wa naḍa‘ul-mawāzīnal-qisṭa liyaumil-qiyāmati falā tuẓlamu nafsun syai'ā(n), wa in kāna miṡqāla ḥabbatim min khardalin atainā bihā, wa kafā binā ḥāsibīn(a).
[47] और हम क़ियामत के दिन न्याय के तराज़ू24 रखेंगे। फिर किसी पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा। और अगर राई के एक दाने के बराबर (भी किसी का) कर्म होगा, तो हम उसे ले आएँगे। और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं।
24. अर्थात कर्मों को तौलने और ह़िसाब करने के लिए, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मानुसार बदला दिया जाए।

وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ الْفُرْقَانَ وَضِيَاۤءً وَّذِكْرًا لِّلْمُتَّقِيْنَ ۙ٤٨
Wa laqad ātainā mūsā wa hārūnal-furqāna wa ḍiyā'aw wa żikral lil-muttaqīn(a).
[48] और निःसंदेह हमने मूसा तथा हारून को सत्य एवं असत्य के बीच अंतर करने वाली चीज़, तथा प्रकाश और तक़्वा वालों के लिए उपदेश प्रदान किया।

الَّذِيْنَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَهُمْ مِّنَ السَّاعَةِ مُشْفِقُوْنَ٤٩
Allażīna yakhsyauna rabbahum bil-gaibi wa hum minas-sā‘ati musyfiqūn(a).
[49] जो अपने पालनहार से बिन देखे डरते हैं और वे क़ियामत से भयभीत रहने वाले हैं।

وَهٰذَا ذِكْرٌ مُّبٰرَكٌ اَنْزَلْنٰهُۗ اَفَاَنْتُمْ لَهٗ مُنْكِرُوْنَ ࣖ٥٠
Wa hāżā żikrum mubārakun anzalnāh(u), afa antum lahū munkirūn(a).
[50] और यह (क़ुरआन) एक बरकत वाला उपदेश है, जिसे हमने उतारा है। तो क्या तुम इसके इनकारी हो?

۞ وَلَقَدْ اٰتَيْنَآ اِبْرٰهِيْمَ رُشْدَهٗ مِنْ قَبْلُ وَكُنَّا بِهٖ عٰلِمِيْنَ٥١
Wa laqad ātainā ibrāhīma rusydahū min qablu wa kunnā bihī ‘ālimīn(a).
[51] और निःसंदेह हमने इससे पहले इबराहीम को उसकी समझ-बूझ प्रदान की थी और हम उससे भली-भाँति अवगत थे।

اِذْ قَالَ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖ مَا هٰذِهِ التَّمَاثِيْلُ الَّتِيْٓ اَنْتُمْ لَهَا عٰكِفُوْنَ٥٢
Iż qāla li'abīhi wa qaumihī mā hāżihit-tamāṡīlul-latī antum lahā ‘ākifūn(a).
[52] जब उसने अपने बाप तथा अपनी जाति से कहा : ये प्रतिमाएँ (मूर्तियाँ) क्या हैं, जिनकी पूजा में तुम लगे हुए हो?

قَالُوْا وَجَدْنَآ اٰبَاۤءَنَا لَهَا عٰبِدِيْنَ٥٣
Qālū wajadnā ābā'anā lahā ‘ābidīn(a).
[53] उन्होंने कहा : हमने अपने बाप-दादा को इन्हीं की पूजा करने वाला पाया है।

قَالَ لَقَدْ كُنْتُمْ اَنْتُمْ وَاٰبَاۤؤُكُمْ فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ٥٤
Qāla laqad kuntum antum wa ābā'ukum fī ḍalālim mubīn(in).
[54] उस (इबराहीम) ने कहा : निश्चय तुम और तुम्हारे बाप-दादा खुली गुमराही में रहे हो।

قَالُوْٓا اَجِئْتَنَا بِالْحَقِّ اَمْ اَنْتَ مِنَ اللّٰعِبِيْنَ٥٥
Qālū aji'tanā bil-ḥaqqi am anta minal-lā‘ibīn(a).
[55] उन्होंने कहा : क्या तुम हमारे पास सत्य लाए हो या (हमसे) दिल-लगी कर रहे हो?

قَالَ بَلْ رَّبُّكُمْ رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ الَّذِيْ فَطَرَهُنَّۖ وَاَنَا۠ عَلٰى ذٰلِكُمْ مِّنَ الشّٰهِدِيْنَ٥٦
Qāla bar rabbukum rabbus-samāwāti wal-arḍil-lażī faṭarahunn(a), wa ana ‘alā żālikum minasy-syāhidīn(a).
[56] उसने कहा : बल्कि तुम्हारा पालनहार आकाशों तथा धरती का पालनहार है, जिसने उन्हें पैदा किया है और मैं इसकी गवाही देने वालों में से हूँ।

وَتَاللّٰهِ لَاَكِيْدَنَّ اَصْنَامَكُمْ بَعْدَ اَنْ تُوَلُّوْا مُدْبِرِيْنَ٥٧
Wa tallāhi la'akīdanna aṣnāmakum ba‘da an tuwallū mudbirīn(a).
[57] और अल्लाह की क़सम! मैं अवश्य ही तुम्हारी मूर्तियों का गुप्त उपाय करूँगा, इसके बाद कि तुम पीठ फेरकर चले जाओगे।

فَجَعَلَهُمْ جُذٰذًا اِلَّا كَبِيْرًا لَّهُمْ لَعَلَّهُمْ اِلَيْهِ يَرْجِعُوْنَ٥٨
Fa ja‘alahum jużāżan illā kabīral lahum la‘allahum ilaihi yarji‘ūn(a).
[58] फिर उसने उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया, सिवाय उनके एक बड़े के, ताकि वे उसकी ओर लौटें।

قَالُوْا مَنْ فَعَلَ هٰذَا بِاٰلِهَتِنَآ اِنَّهٗ لَمِنَ الظّٰلِمِيْنَ٥٩
Qālū man fa‘ala hāżā bi'ālihatinā innahū laminaẓ-ẓālimīn(a).
[59] उन्होंने कहा : हमारे पूज्यों के साथ यह किसने किया है? निःसंदेह वह निश्चय अत्याचारियों में से है!

قَالُوْا سَمِعْنَا فَتًى يَّذْكُرُهُمْ يُقَالُ لَهٗٓ اِبْرٰهِيْمُ ۗ٦٠
Qālū sami‘nā fatay yażkuruhum yuqālu lahū ibrāhīm(u).
[60] लोगों ने कहा : हमने एक नवयुवक को उनकी चर्चा करते हुए सुना है, जिसे इबराहीम कहा जाता है।

قَالُوْا فَأْتُوْا بِهٖ عَلٰٓى اَعْيُنِ النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَشْهَدُوْنَ٦١
Qālū fa'tū bihī ‘alā a‘yunin-nāsi la‘allahum yasyhadūn(a).
[61] उन्होंने कहा : उसे लोगों की आँखों के सामने लाओ, ताकि वे गवाह हो जाएँ।

قَالُوْٓا ءَاَنْتَ فَعَلْتَ هٰذَا بِاٰلِهَتِنَا يٰٓاِبْرٰهِيْمُ ۗ٦٢
Qālū a'anta fa‘alta hāżā bi'ālihatinā yā ibrāhīm(u).
[62] उन्होंने पूछा : ऐ इबराहीम! क्या तूने ही हमारे पूज्यों के साथ यह किया है?

قَالَ بَلْ فَعَلَهٗ كَبِيْرُهُمْ هٰذَا فَسْـَٔلُوْهُمْ اِنْ كَانُوْا يَنْطِقُوْنَ٦٣
Qāla bal fa‘alahū kabīruhum hāżā fas'alūhum in kānū yanṭiqūn(a).
[63] उसने कहा : बल्कि यह उनके इस बड़े ने किया है। अतः उन्हीं से पूछ लो, यदि वे बोलते हैं?25
25. यह बात इबराहीम अलैहिस्सलाम ने उन्हें उनके पूज्यों की विवशता दिखाने के लिए कही।

فَرَجَعُوْٓا اِلٰٓى اَنْفُسِهِمْ فَقَالُوْٓا اِنَّكُمْ اَنْتُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۙ٦٤
Fa raja‘ū ilā anfusihim fa qālū innakum antumuẓ-ẓālimūn(a).
[64] फिर उन्होंने अपने मन में विचार किया और कहने लगे : निश्चय तुम खुद ही अत्याचारी हो।

ثُمَّ نُكِسُوْا عَلٰى رُءُوْسِهِمْۚ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا هٰٓؤُلَاۤءِ يَنْطِقُوْنَ٦٥
Ṡumma nukisū ‘alā ru'ūsihim, laqad ‘alimta mā hā'ulā'i yanṭiqūn(a).
[65] फिर वे अपने सिरों के बल औंधे कर दिए गए26, (और बोले :) निःसंदेह तू जानता है कि ये बोलते नहीं।
26. अर्थात सत्य को स्वीकार करके उससे फिर गए और अपनी ज़िद पर लौट आए।

قَالَ اَفَتَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ مَا لَا يَنْفَعُكُمْ شَيْـًٔا وَّلَا يَضُرُّكُمْ ۗ٦٦
Qāla afata‘budūna min dūnillāhi mā lā yanfa‘ukum syai'aw wa lā yaḍurrukum.
[66] (इबराहीम ने) कहा : फिर क्या तुम अल्लाह को छोड़ उस चीज़ की इबादत करते हो, जो न तुम्हें कुछ लाभ पहुँचाती है और न तुम्हें हानि पहुँचाती है?

اُفٍّ لَّكُمْ وَلِمَا تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗاَفَلَا تَعْقِلُوْنَ٦٧
Uffil lakum wa limā ta‘budūna min dūnillāh(i), afalā ta‘qilūn(a).
[67] तुफ़ है तुमपर और उनपर जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर इबादत करते हो। तो क्या तुम समझते नहीं?

قَالُوْا حَرِّقُوْهُ وَانْصُرُوْٓا اٰلِهَتَكُمْ اِنْ كُنْتُمْ فٰعِلِيْنَ٦٨
Qālū ḥarriqūhu wanṣurū ālihatakum in kuntum fā‘ilīn(a).
[68] उन्होंने कहा : इसे जला दो तथा अपने पूज्यों की सहायता करो, अगर तुम कुछ करने वाले हो।

قُلْنَا يٰنَارُ كُوْنِيْ بَرْدًا وَّسَلٰمًا عَلٰٓى اِبْرٰهِيْمَ ۙ٦٩
Qulnā yā nāru kūnī bardaw wa salāman ‘alā ibrāhīm(a).
[69] हमने कहा : ऐ आग! तू इबराहीम पर ठंडक और सुरक्षा सुरक्षा बन जा।

وَاَرَادُوْا بِهٖ كَيْدًا فَجَعَلْنٰهُمُ الْاَخْسَرِيْنَ ۚ٧٠
Wa arādū bihī kaidan fa ja‘alnāhumul-akhsarīn(a).
[70] और उन्होंने उसके साथ एक चाल का इरादा किया, तो हमने उन्हीं को अत्यंत घाटे वाला कर दिया।

وَنَجَّيْنٰهُ وَلُوْطًا اِلَى الْاَرْضِ الَّتِيْ بٰرَكْنَا فِيْهَا لِلْعٰلَمِيْنَ٧١
Wa najjaināhu wa lūṭan ilal-arḍil-latī bāraknā fīhā lil-‘ālamīn(a).
[71] और हम उसे (इबराहीम को) और लूत27 को बचाकर उस भूमि28 की ओर ले गए, जिसमें हमने संसार वालों के लिए बरकत रखी।
27. लूत अलैहिस्सलाम इबराहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। 28. इससे अभिप्राय शाम देश है। और अर्थ यह है कि अल्लाह ने इबराहीम अलैहिस्सलाम की अग्नि से रक्षा करने के पश्चात् उन्हें शाम देश की ओर प्रस्तथान कर जाने का आदेश दिया। और वह शाम चले गए।

وَوَهَبْنَا لَهٗٓ اِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَ نَافِلَةً ۗوَكُلًّا جَعَلْنَا صٰلِحِيْنَ٧٢
Wa wahabnā lahū isḥāqa wa ya‘qūba nāfilah(tan), wa kullan ja‘alnā ṣāliḥīn(a).
[72] और हमने उन्हें इसहाक़ प्रदान किया और उसके अतिरिक्त याक़ूब भी। और हमने हर एक को नेक बनाया।

وَجَعَلْنٰهُمْ اَىِٕمَّةً يَّهْدُوْنَ بِاَمْرِنَا وَاَوْحَيْنَآ اِلَيْهِمْ فِعْلَ الْخَيْرٰتِ وَاِقَامَ الصَّلٰوةِ وَاِيْتَاۤءَ الزَّكٰوةِۚ وَكَانُوْا لَنَا عٰبِدِيْنَ ۙ٧٣
Wa ja‘alnāhum a'immatay yahdūna bi'amrinā wa auḥainā ilaihim fi‘lal-khairāti wa iqāmaṣ-ṣalāti wa ītā'az-zakāh(ti), wa kānū lanā ‘ābidīn(a).
[73] और हमने उन्हें ऐसे अग्रणी (पेशवा) बनाया, जो हमारे आदेशानुसार (लोगों को) सही राह दिखाते थे। और हमने उनकी ओर नेक कार्य करने, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने की वह़्य (प्रकाशना) की। और वे केवल हमारी इबादत करने वाले थे।

وَلُوْطًا اٰتَيْنٰهُ حُكْمًا وَّعِلْمًا وَّنَجَّيْنٰهُ مِنَ الْقَرْيَةِ الَّتِيْ كَانَتْ تَّعْمَلُ الْخَبٰۤىِٕثَ ۗاِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمَ سَوْءٍ فٰسِقِيْنَۙ٧٤
Wa lūṭan ātaināhu ḥumkaw wa ‘ilmaw wa najjaināhu minal-qaryatil-latī kānat ta‘malul-khabā'iṡ(a), innahum kānū qauma sau'in fāsiqīn(a).
[74] और लूत को हमने निर्णय शक्ति और ज्ञान दिया और उसे उस बस्ती से बचा लिया, जो गंदे काम किया करती थी। निश्चय वे बुरे, अवज्ञा करने वाले लोग थे।

وَاَدْخَلْنٰهُ فِيْ رَحْمَتِنَاۗ اِنَّهٗ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ ࣖ٧٥
Wa adkhalnāhu fī raḥmatinā, innahū minaṣ-ṣāliḥīn(a).
[75] और हमने उन्हें अपनी दया में दाख़िल कर लिया। निःसंदेह वह सदाचारियों में से थे।

وَنُوْحًا اِذْ نَادٰى مِنْ قَبْلُ فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ فَنَجَّيْنٰهُ وَاَهْلَهٗ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيْمِ ۚ٧٦
Wa nūḥan iż nādā min qablu fastajabnā lahū fa najjaināhu wa ahlahū minal-karbil-‘aẓīm(i).
[76] तथा नूह को (याद करो) जब उन्होंने इससे पहले (अल्लाह को) पुकारा, तो हमने उनकी दुआ क़बूल कर ली, फिर उन्हें और उनके घर वालों को बड़े कष्ट से बचा लिया।

وَنَصَرْنٰهُ مِنَ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمَ سَوْءٍ فَاَغْرَقْنٰهُمْ اَجْمَعِيْنَ٧٧
Wa naṣarnāhu minal-qaumil-lażīna każżabū bi'āyātinā, innahum kānū qauma sau'in fa agraqnāhum ajma‘īn(a).
[77] और हमने उन लोगों के विरुद्ध उनकी मदद की, जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया। निःसंदेह वे बुरे लोग थे। अतः हमने उन सभी को डुबो दिया।

وَدَاوٗدَ وَسُلَيْمٰنَ اِذْ يَحْكُمٰنِ فِى الْحَرْثِ اِذْ نَفَشَتْ فِيْهِ غَنَمُ الْقَوْمِۚ وَكُنَّا لِحُكْمِهِمْ شٰهِدِيْنَ ۖ٧٨
Wa dāwūda wa sulaimāna iż yaḥkumāni fil-ḥarṡi iż nafasyat fīhi ganamul-qaum(i), wa kunnā liḥukmihim syāhidīn(a).
[78] तथा दाऊद और सुलैमान को (याद करो), जब वे दोनों खेत के विषय में निर्णय कर रहे थे, जब रात के समय उसमें अन्य लोगों की बकरियाँ फैल गईं थीं, और हम उनके निर्णय के समय उपस्थित थे।

فَفَهَّمْنٰهَا سُلَيْمٰنَۚ وَكُلًّا اٰتَيْنَا حُكْمًا وَّعِلْمًاۖ وَّسَخَّرْنَا مَعَ دَاوٗدَ الْجِبَالَ يُسَبِّحْنَ وَالطَّيْرَۗ وَكُنَّا فٰعِلِيْنَ٧٩
Fa fahhamnāhā sulaimān(a), wa kullan ātainā ḥukmaw wa ‘ilmā(n), wa sakhkharnā ma‘a dāwūdal-jibāla yusabbiḥna waṭ-ṭair(a), wa kunnā fā‘ilīn(a).
[79] तो हमने वह (निर्णय) सुलैमान29 को समझा दिया। और हमने हर एक को हुक्म (नुबुव्वत या निर्णय-शक्ति) और ज्ञान प्रदान किया। और हमने पहाड़ों को दाऊद के अधीन कर दिया, जो (अल्लाह की) पवित्रता का गान करते थे, तथा पक्षियों को भी। और हम ही (इस कार्य के) करने वाले थे।
29. ह़दीस में वर्णित है कि दो नारियों के साथ शिशु थे। भेड़िया आया और एक को ले गया, तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम्हारे शिशु को ले गया है और निर्णय के लिए दाऊद के पास गईं। उन्होंने बड़ी के लिए निर्णय कर दिया। फिर वे सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास आयीं, उन्होंने कहा : छुरी लाओ, मैं तुम दोनों के लिए दो भाग कर दूँ। तो छोटी ने कहा : ऐसा न करें, अल्लाह आप पर दया करे, यह उसी का शिशु है। यह सुनकर उन्होंने छोटी के पक्ष में निर्णय कर दिया। ( बुख़ारी : 3427, मुस्लिम :1720)

وَعَلَّمْنٰهُ صَنْعَةَ لَبُوْسٍ لَّكُمْ لِتُحْصِنَكُمْ مِّنْۢ بَأْسِكُمْۚ فَهَلْ اَنْتُمْ شٰكِرُوْنَ٨٠
Wa ‘allamnāhu ṣan‘ata labūsil lakum lituḥṣinakum mim ba'sikum, fahal antum syākirūn(a).
[80] तथा हमने उन्हें (दाऊद को) तुम्हारे लिए कवच बनाना सिखाया, ताकि वह तुम्हारी लड़ाई से तुम्हारी रक्षा करे। तो क्या तुम शुक्रिया अदा करने वाले हो?

وَلِسُلَيْمٰنَ الرِّيْحَ عَاصِفَةً تَجْرِيْ بِاَمْرِهٖٓ اِلَى الْاَرْضِ الَّتِيْ بٰرَكْنَا فِيْهَاۗ وَكُنَّا بِكُلِّ شَيْءٍ عٰلِمِيْنَ٨١
Wa lisulaimānar-rīḥa ‘āṣifatan tajrī bi'amrihī ilal-arḍil-latī bāraknā fīhā, wa kunnā bikulli syai'in ‘ālimīn(a).
[81] और तेज़ चलने वाली हवा को सुलैमान के अधीन कर दिया, जो उसके आदेश30 से उस धरती की ओर चलती थी, जिसमें हमने बरकत रखी और हम हर चीज़ को जानने वाले थे।
30. अर्थात वायु उनके सिंहासन को उनके राज्य में जहाँ चाहते क्षणों में पहुँचा देती थी।

وَمِنَ الشَّيٰطِيْنِ مَنْ يَّغُوْصُوْنَ لَهٗ وَيَعْمَلُوْنَ عَمَلًا دُوْنَ ذٰلِكَۚ وَكُنَّا لَهُمْ حٰفِظِيْنَ ۙ٨٢
Wa minasy-syayāṭīna may yagūṣūna lahū wa ya‘malūna ‘amalan dūna żālik(a), wa kunnā lahum ḥāfiẓīn(a).
[82] और कई शैतान (उनके अधीन कर दिए गए थे), जो उनके लिए ग़ोता लगाते31 थे तथा इसके अलावा काम (भी) करते थे। और हम ही उनके निरीक्षक32 थे।
31. अर्थात मोतियाँ तथा जवाहिरात निकालने के लिए। 32. ताकि शैतान उनको कोई हानि न पहुँचाए।

۞ وَاَيُّوْبَ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗٓ اَنِّيْ مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَاَنْتَ اَرْحَمُ الرّٰحِمِيْنَ ۚ٨٣
Wa ayyūba iż nādā rabbahū annī massaniyaḍ-ḍurru wa anta arḥamur-rāḥimīn(a).
[83] तथा अय्यूब (की कहानी) को (याद करो), जब उन्होंने अपने पालनहार को पुकारा कि निःसंदेह मुझे कष्ट पहुँची है और तू दया करने वालों में सबसे अधिक दयावान् है।

فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ فَكَشَفْنَا مَا بِهٖ مِنْ ضُرٍّ وَّاٰتَيْنٰهُ اَهْلَهٗ وَمِثْلَهُمْ مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنْ عِنْدِنَا وَذِكْرٰى لِلْعٰبِدِيْنَ ۚ٨٤
Fastajabnā lahū fa kasyafnā mā bihī min ḍurriw wa ātaināhu ahlahū wa miṡlahum ma‘ahum raḥmatam min ‘indinā wa żikrā lil-‘ābidīn(a).
[84] तो हमने उनकी दुआ क़बूल कर ली।33 चुनाँचे उन्हें जो भी कष्ट था, उसे दूर कर दिया और हमने उन्हें उनके घर वाले तथा उनके साथ उनके समान (और) भी प्रदान किए। अपनी ओर से दया के रूप में और उन लोगों की याद-दहानी के लिए जो इबादत करने वाले हैं।
33. आदरणीय अय्यूब अलैहिस्सलाम की अल्लाह ने उनके धन-धान्य तथा परिवार में परीक्षा ली। वह स्वयं रोगग्रस्त हो गए। परंतु उनके धैर्य के कारण अल्लाह ने उनको फिर स्वस्थ कर दिया और धन-धान्य के साथ ही पहले से दो गुने पुत्र प्रदान किए।

وَاِسْمٰعِيْلَ وَاِدْرِيْسَ وَذَا الْكِفْلِۗ كُلٌّ مِّنَ الصّٰبِرِيْنَ ۙ٨٥
Wa ismā‘īla wa idrīsa wa żal-kifl(i), kullum minaṣ-ṣābirīn(a).
[85] तथा इसमाईल, इदरीस और ज़ुल किफ़्ल को (याद करो)। हर एक धैर्यवानों में से था।

وَاَدْخَلْنٰهُمْ فِيْ رَحْمَتِنَاۗ اِنَّهُمْ مِّنَ الصّٰلِحِيْنَ٨٦
Wa adkhalnāhum fī raḥmatinā, innahum minaṣ-ṣāliḥīn(a).
[86] और हमने उन्हें अपनी दया में दाख़िल कर लिया। निःसंदेह वे सदाचारियों में से थे।

وَذَا النُّوْنِ اِذْ ذَّهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ اَنْ لَّنْ نَّقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادٰى فِى الظُّلُمٰتِ اَنْ لَّآ اِلٰهَ اِلَّآ اَنْتَ سُبْحٰنَكَ اِنِّيْ كُنْتُ مِنَ الظّٰلِمِيْنَ ۚ٨٧
Wa żan-nūni iż żahaba mugāḍiban fa ẓanna allan naqdira ‘alaihi fa nādā fiẓ-ẓulumāti allā ilāha illā anta subḥānaka innī kuntu minaẓ-ẓālimīn(a).
[87] तथा मछली वाले34 (की कहानी याद करो), जब वह ग़ुस्से से भरा हुआ चला गया35 और उसने सोचा कि हम उसे तंगी में नहीं डालेंगे। अंततः उसने अंधेरों में पुकारा कि (ऐ अल्लाह!) तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तू पवित्र है। निश्चय मैं ही अत्याचारियों में हो गया।36
34. इससे अभिप्रेत यूनुस अलैहिस्सलाम हैं। उनको ''ज़ुन्नून'' और "साह़िबुल ह़ूत" कहा गया है। अर्थात मछली वाला। क्योंकि उनको अल्लाह के आदेश से एक मछली ने निगल लिया था। इसका कुछ वर्णन सूरत यूनुस में आ चुका है। और कुछ सूरतुस-साफ़्फ़ात में आ रहा है। 35. अर्थात अपनी जाति से क्रोधित होकर अल्लाह के अनुमति के बिना अपनी बस्ती से चले गए। इसी पर उन्हें पकड़ लिया गया। 36. सह़ीह़ ह़दीस में आता है कि जो भी मुसलमान इस शब्द के साथ किसी विषय में दुआ करेगा तो अल्लाह उसकी दुआ को स्वीकार करेगा। (तिर्मिज़ी : 3505)

فَاسْتَجَبْنَا لَهٗۙ وَنَجَّيْنٰهُ مِنَ الْغَمِّۗ وَكَذٰلِكَ نُـْۨجِى الْمُؤْمِنِيْنَ٨٨
Fastajabnā lahū wa najjaināhu minal-gamm(i), wa każālika nunjil-mu'minīn(a).
[88] तो हमने उनकी दुआ क़बूल की तथा उन्हें शोक से मुक्त कर दिया। और इसी तरह हम ईमान वालों को बचा लिया करते हैं।

وَزَكَرِيَّآ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗ رَبِّ لَا تَذَرْنِيْ فَرْدًا وَّاَنْتَ خَيْرُ الْوٰرِثِيْنَ ۚ٨٩
Wa zakariyyā iż nādā rabbahū rabbi lā tażarnī fardaw wa anta khairul-wāriṡīn(a).
[89] तथा ज़करिया को (याद करो), जब उन्होंने अपने पालनहार को पुकारा : ऐ मेरे पालनहार!37 मुझे अकेला मत छोड़ और तू सब वारिसों से बेहतर है।
37. आदरणीय ज़करिय्या ने एक पुत्र के लिए प्रार्थना की, जिसका वर्णन सूरत आल-इमरान तथा सूरत-ताहा में आ चुका है।

فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ ۖوَوَهَبْنَا لَهٗ يَحْيٰى وَاَصْلَحْنَا لَهٗ زَوْجَهٗۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا يُسٰرِعُوْنَ فِى الْخَيْرٰتِ وَيَدْعُوْنَنَا رَغَبًا وَّرَهَبًاۗ وَكَانُوْا لَنَا خٰشِعِيْنَ٩٠
Fastajabnā lah(ū), wa wahabnā lahū yaḥyā wa aṣlaḥnā lahū zaujah(ū), innahum kānū yusāri‘ūna fil-khairāti wa yad‘ūnanā ragabaw wa rahabā(n), wa kānū lanā khāsyi‘īn(a).
[90] तो हमने उनकी दुआ क़बूल की और उन्हें यह़या प्रदान किया, और उनकी पत्नी को उनके लिए ठीक कर दिया। निःसंदेह वे नेकी के कामों में बहुत जल्दी करते थे और हमें आशा तथा भय के साथ पुकारते थे, और वे हमसे दीनतापूर्वक विनती करने वाले थे।

وَالَّتِيْٓ اَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيْهَا مِنْ رُّوْحِنَا وَجَعَلْنٰهَا وَابْنَهَآ اٰيَةً لِّلْعٰلَمِيْنَ٩١
Wal-latī aḥṣanat farjahā fa nafakhnā fīhā mir rūḥinā wa ja‘alnāhā wabnahā āyatal lil-‘ālamīn(a).
[91] तथा उस महिला (को याद करो) जिसने अपने सतीत्व की रक्षा की, तो हमने उसमें अपनी रूह से फूँका तथा उसे और उसके पुत्र को संसार वालों के लिए एक बड़ी निशानी बना दिया।38
38. इससे संकेत मरयम तथा उनके पुत्र ईसा (अलैहिस्सलाम) की ओर है।

اِنَّ هٰذِهٖٓ اُمَّتُكُمْ اُمَّةً وَّاحِدَةًۖ وَّاَنَا۠ رَبُّكُمْ فَاعْبُدُوْنِ٩٢
Inna hāżihī ummatukum ummataw wāḥidah(tan), wa ana rabbukum fa‘budūn(i).
[92] निःसंदेह यह है तुम्हारी उम्मत (धर्म) जो एक ही उम्मत (धर्म)39 है, और मैं ही तुम्हारा पालनहार (पूज्य) हूँ। अतः मेरी इबादत करो।
39. अर्थात सब नबियों का मूल धर्म एक है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : मैं मरयम के पुत्र ईसा से अधिक संबंध रखता हूँ। क्योंकि सब नबी भाई-भाई हैं, उनकी माएँ अलग-अलग हैं, सबका धर्म एक है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3443) और दूसरी ह़दीस में यह वृद्धि है कि : मेरे और उसके बीच कोई और नबी नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3442)

وَتَقَطَّعُوْٓا اَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْۗ كُلٌّ اِلَيْنَا رٰجِعُوْنَ ࣖ٩٣
Wa taqaṭṭa‘ū amrahum bainahum, kullun ilainā rāji‘ūn(a).
[93] और वे अपने धर्म के मामले में आपस में टुकड़े-टुकड़े हो गए। सब हमारी ही ओर लोटने वाले हैं।

فَمَنْ يَّعْمَلْ مِنَ الصّٰلِحٰتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَا كُفْرَانَ لِسَعْيِهٖۚ وَاِنَّا لَهٗ كٰتِبُوْنَ٩٤
Famay ya‘mal minaṣ-ṣāliḥāti wa huwa mu'minun falā kufrāna lisa‘yih(ī), wa innā lahū kātibūn(a).
[94] अतः जो व्यक्ति अच्छे काम करे और वह मोमिन हो, तो उसके प्रयास की उपेक्षा नहीं की जाएगी और निश्चय हम उसके लिए लिखने वाले हैं।

وَحَرٰمٌ عَلٰى قَرْيَةٍ اَهْلَكْنٰهَآ اَنَّهُمْ لَا يَرْجِعُوْنَ٩٥
Wa ḥarāmun ‘alā qaryatin ahlaknāhā, innahum lā yarji‘ūn(a).
[95] तथा जिस बस्ती को हम विनष्ट40 कर दें, उसके लिए असंभव है कि वह फिर (संसार में) लौट आए।
40. अर्थात उसके वासियों के दुराचार के कारण।

حَتّٰىٓ اِذَا فُتِحَتْ يَأْجُوْجُ وَمَأْجُوْجُ وَهُمْ مِّنْ كُلِّ حَدَبٍ يَّنْسِلُوْنَ٩٦
Ḥattā iżā futiḥat ya'jūju wa ma'jūju wa hum min kulli ḥadabiy yansilūn(a).
[96] यहाँ तक कि जब याजूज और माजूज41 खोल दिए जाएँगे और वे प्रत्येक ऊँची जगह से दौड़ते हुए आएँगे।
41. याजूज तथा माजूज के विषय में देखिए : सूरतुल-कह्फ, आयत : 93 से 100 तक का अनुवाद।

وَاقْتَرَبَ الْوَعْدُ الْحَقُّ فَاِذَا هِيَ شَاخِصَةٌ اَبْصَارُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْاۗ يٰوَيْلَنَا قَدْ كُنَّا فِيْ غَفْلَةٍ مِّنْ هٰذَا بَلْ كُنَّا ظٰلِمِيْنَ٩٧
Waqtarabal-wa‘dul-ḥaqqu fa iżā hiya syākhiṣatun abṣārul-lażīna kafarū, yā wailanā qad kunnā fī gaflatim min hāżā bal kunnā ẓālimīn(a).
[97] और सच्चा वादा42 क़रीब आ जाएगा, तो अचानक यह होगा कि उन लोगों की आँखें खुली रह जाएँगी, जिन्होंने कुफ़्र किया। (वे कहेंगे :) हाय हमारा विनाश! निःसंदेह हम इससे ग़फ़लत में थे, बल्कि हम अत्याचारी थे।
42. सच्चा वादा से अभिप्राय प्रलय का वादा है।

اِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ حَصَبُ جَهَنَّمَۗ اَنْتُمْ لَهَا وٰرِدُوْنَ٩٨
Innakum wa mā ta‘budūna min dūnillāhi ḥaṣabu jahannam(a), antum lahā wāridūn(a).
[98] निःसंदेह तुम और जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो, नरक का ईंधन हैं। तुम उसी में दाखिल होने वाले हो।

لَوْ كَانَ هٰٓؤُلَاۤءِ اٰلِهَةً مَّا وَرَدُوْهَاۗ وَكُلٌّ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ٩٩
Lau kāna hā'ulā'i ālihatam mā waradūhā, wa kullun fīhā khālidūn(a).
[99] यदि ये पूज्य होते, तो उस (नरक) में प्रवेश न करते। और ये सब उसी में सदैव रहने वाले हैं।

لَهُمْ فِيْهَا زَفِيْرٌ وَّهُمْ فِيْهَا لَا يَسْمَعُوْنَ١٠٠
Lahum fīhā zafīruw wa hum fīhā lā yasma‘ūn(a).
[100] उनकी साँस चढ़ी होगी (तेज़ साँसें निकलेंगी) तथा वे उसमें (कुछ) नहीं सुन सकेंगे।

اِنَّ الَّذِيْنَ سَبَقَتْ لَهُمْ مِّنَّا الْحُسْنٰىٓۙ اُولٰۤىِٕكَ عَنْهَا مُبْعَدُوْنَ ۙ١٠١
Innal-lażīna sabaqat lahum minnal-ḥusnā, ulā'ika ‘anhā mub‘adūn(a).
[101] निःसंदेह वे लोग जिनके लिए हमारी ओर से पहले भलाई का निर्णय हो चुका है, वे उससे दूर रखे गए होंगे।

لَا يَسْمَعُوْنَ حَسِيْسَهَاۚ وَهُمْ فِيْ مَا اشْتَهَتْ اَنْفُسُهُمْ خٰلِدُوْنَ ۚ١٠٢
Lā yasma‘ūna ḥasīsahā, wa hum fīmasytahat anfusuhum khālidūn(a).
[102] वे उस (जहन्नम) की आहट भी नहीं सुनेंगे, और वे अपनी मनचाही चीज़ों में सदा रहने वाले हैं।

لَا يَحْزُنُهُمُ الْفَزَعُ الْاَكْبَرُ وَتَتَلَقّٰىهُمُ الْمَلٰۤىِٕكَةُۗ هٰذَا يَوْمُكُمُ الَّذِيْ كُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ١٠٣
Lā yaḥzunuhumul-faza‘ul-akbaru wa tatalaqqāhumul-malā'ikah(tu), hāżā yaumukumul-lażī kuntum tū‘adūn(a).
[103] उन्हें सबसे बड़ी घबराहट दुःखित नहीं करेगी, तथा फ़रिश्ते उनका स्वागत करेंगे (और कहेंगे :) यह है तुम्हारा वह दिन, जिसका तुम्हें वचन दिया जाता था।

يَوْمَ نَطْوِى السَّمَاۤءَ كَطَيِّ السِّجِلِّ لِلْكُتُبِۗ كَمَا بَدَأْنَآ اَوَّلَ خَلْقٍ نُّعِيْدُهٗۗ وَعْدًا عَلَيْنَاۗ اِنَّا كُنَّا فٰعِلِيْنَ١٠٤
Yauma naṭwis-samā'a kaṭayyis-sijilli lil-kutib(i), kamā bada'nā awwala khalqin nu‘īduh(ū), wa‘dan ‘alainā, innā kunnā fā‘ilīn(a).
[104] जिस दिन हम आकाश को पंजिका के पन्नों को लपेटने की तरह लपेट43 देंगे। जिस तरह हमने प्रथम सृष्टि का आरंभ किया, (उसी तरह) हम उसे लौटाएँगे।44 यह हमारे ज़िम्मे वादा है। निश्चय हम इसे पूरा करने वाले हैं।
43. (देखिए : सूरतुज़्-ज़ुमर, आयत : 67) 44. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भाषण दिया कि लोग अल्लाह के पास बिना जूते के, नग्न तथा बिना ख़तने के एकत्र किए जाएँगे। फिर इबराहीम अलैहिस्सलाम सर्व प्रथम वस्त्र पहनाए जाएँगे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3349)

وَلَقَدْ كَتَبْنَا فِى الزَّبُوْرِ مِنْۢ بَعْدِ الذِّكْرِ اَنَّ الْاَرْضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ الصّٰلِحُوْنَ١٠٥
Wa laqad katabnā fiz-zabūri mim ba‘diż-żikri annal-arḍa yariṡuhā ‘ibādiyaṣ-ṣāliḥūn(a).
[105] तथा निःसंदेह हमने 'लौहे महफ़ूज़' (में लिखने) के बाद अवतरित पुस्तकों45 में लिख दिया कि धरती के उत्तराधिकारी मेरे सदाचारी बंदे होंगे।
45. ''ज़बूर'' का अर्थ पुस्तक है, और यहाँ उससे अभिप्राय रसूलों पर अवतरित पिछली आकाशीय पुस्तकों हैं। कुछ भाष्यकारों के निकट ज़बूर से अभिप्राय वह पुस्तक है जो दाऊद अलैहिस्सलाम को प्रदान की गई।

اِنَّ فِيْ هٰذَا لَبَلٰغًا لِّقَوْمٍ عٰبِدِيْنَ ۗ١٠٦
Inna fī hāżā labalāgal liqaumin ‘ābidīn(a).
[106] निःसंदेह इबादत करने वालों के लिए इसमें एक बड़ा संदेश है।

وَمَآ اَرْسَلْنٰكَ اِلَّا رَحْمَةً لِّلْعٰلَمِيْنَ١٠٧
Wa mā arsalnāka illā raḥmatal lil-‘ālamīn(a).
[107] और (ऐ नबी!) हमने आपको समस्त संसार के लिए दया46 बनाकर भेजा है।
46. अर्थात जो आपपर ईमान लाएगा, वही लोक-परलोक में अल्लाह की दया का अधिकारी होगा।

قُلْ اِنَّمَا يُوْحٰىٓ اِلَيَّ اَنَّمَآ اِلٰهُكُمْ اِلٰهٌ وَّاحِدٌۚ فَهَلْ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ١٠٨
Qul innamā yūḥā ilayya annamā ilāhukum ilāhuw wāḥid(un), fahal antum muslimūn(a).
[108] (ऐ रसूल!) आप कह दें कि मेरी ओर केवल यही वह़्य की जाती है कि तुम्हारा पूज्य केवल एक ही पूज्य है। तो क्या तुम आज्ञाकारी47 बनते हो?
47. अर्थात दया एकेश्वरवाद में है, मिश्रणवाद में नहीं।

فَاِنْ تَوَلَّوْا فَقُلْ اٰذَنْتُكُمْ عَلٰى سَوَاۤءٍۗ وَاِنْ اَدْرِيْٓ اَقَرِيْبٌ اَمْ بَعِيْدٌ مَّا تُوْعَدُوْنَ١٠٩
Fa in tawallau fa qul āżantukum ‘alā sawā'(in), wa in adrī aqarībun am ba‘īdum mā tū‘adūn(a).
[109] फिर अगर वे मुँह फेरें, तो (ऐ रसूल!) आप कह दें कि मैंने तुम्हें इस प्रकार सावधान48 कर दिया है कि (हम और तुम इसकी जानकारी में) बराबर हैं। और मैं नहीं जानता कि जिस (यातना) का तुम्हें वचन दिया जा रहा है, वह क़रीब है अथवा दूर।
48. अर्थात ईमान न लाने और मिश्रणवाद के दुष्परिणाम से।

اِنَّهٗ يَعْلَمُ الْجَهْرَ مِنَ الْقَوْلِ وَيَعْلَمُ مَا تَكْتُمُوْنَ١١٠
Innahū ya‘lamul-jahra minal-qauli wa ya‘lamu mā taktumūn(a).
[110] निःसंदेह वह ऊँची आवाज़ से कही हुई बात को जानता है और वह भी जानता है जो तुम छिपाते हो।

وَاِنْ اَدْرِيْ لَعَلَّهٗ فِتْنَةٌ لَّكُمْ وَمَتَاعٌ اِلٰى حِيْنٍ١١١
Wa in adrī la‘allahū fitnatul lakum wa matā‘un ilā ḥīn(in).
[111] और मैं नहीं जानता शायद यह49 तुम्हारे लिए एक परीक्षा हो और एक समय तक कुछ लाभ उठाना हो।
49. अर्थात यातना में विलंब।

قٰلَ رَبِّ احْكُمْ بِالْحَقِّۗ وَرَبُّنَا الرَّحْمٰنُ الْمُسْتَعَانُ عَلٰى مَا تَصِفُوْنَ ࣖ١١٢
Qāla rabbiḥkum bil-ḥaqq(i), wa rabbunar-raḥmānul-musta‘ānu ‘alā mā taṣifūn(a).
[112] उस (नबी) ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! सत्य के साथ फ़ैसला कर दे। और हमारा पालनहार ही वह अत्यंत दयावान् है, जिससे उन बोतों पर सहायता माँगी जाती है, जो तुम बयान करते हो।