Surah Al-Hijr
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
الۤرٰ ۗتِلْكَ اٰيٰتُ الْكِتٰبِ وَقُرْاٰنٍ مُّبِيْنٍ ۔١
Alif lām rā, tilka āyātul-kitābi wa qur'ānim mubīn(in).
[1]
अलिफ़, लाम, रा। ये किताब और स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं।
رُبَمَا يَوَدُّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَوْ كَانُوْا مُسْلِمِيْنَ٢
Rubamā yawaddul-lażīna kafarū lau kānū muslimīn(a).
[2]
(एक समय आएगा कि) काफ़िर चाहेंगे कि काश वे (दुनिया में) मुसलमान होते!1
1. ऐसा उस समय होगा जब फ़रिश्ते उनकी आत्मा निकालने आएँगे, और उनको उनका नरक का स्थान दिखा देंगे। और क़ियामत के दिन तो ऐसी दुर्दशा होगी कि धूल हो जाने की कामना करेंगे। (देखिए : सूरतुन-नबा, आयत : 40)
ذَرْهُمْ يَأْكُلُوْا وَيَتَمَتَّعُوْا وَيُلْهِهِمُ الْاَمَلُ فَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَ٣
Żarhum ya'kulū wa yatamatta‘ū wa yulhihimul-amalu fa saufa ya‘lamūn(a).
[3]
(ऐ नबी!) आप उन्हें छोड़ दें। वे खाएँ और लाभ उठाएँ, तथा (लंबी) आशा उन्हें ग़ाफ़िल रखे, फिर शीघ्र ही जान लेंगे।2
2. अपने दुष्परिणाम को।
وَمَآ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ اِلَّا وَلَهَا كِتَابٌ مَّعْلُوْمٌ٤
Wa mā ahlaknā min qaryatin illā wa lahā kitābum ma‘lūm(un).
[4]
और हमने जिस बस्ती को भी नष्ट किया, उसका एक निर्धारित समय था।
مَا تَسْبِقُ مِنْ اُمَّةٍ اَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُوْنَ٥
Mā tasbiqu min ummatin ajalahā wa mā yasta'khirūn(a).
[5]
कोई जाति अपने नियत समय से न आगे बढ़ती है और न वे पीछे रहते हैं।
وَقَالُوْا يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْ نُزِّلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ اِنَّكَ لَمَجْنُوْنٌ ۗ٦
Wa qālū yā ayyuhal-lażī nuzzila ‘alaihiż-żikru innaka lamajnūn(un).
[6]
तथा उन (काफ़िरों) ने कहा : ऐ वह व्यक्ति जिसपर स्मरण (क़ुरआन) अवतरित किया गया है, निःसंदेह तू तो पागल है।
لَوْمَا تَأْتِيْنَا بِالْمَلٰۤىِٕكَةِ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ٧
Lau mā ta'tīnā bil-malā'ikati in kunta minaṣ-ṣādiqīn(a).
[7]
यदि तू सच्चों में से है, तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आता?
مَا نُنَزِّلُ الْمَلٰۤىِٕكَةَ اِلَّا بِالْحَقِّ وَمَا كَانُوْٓا اِذًا مُّنْظَرِيْنَ٨
Mā nunazzilul-malā'ikata illā bil-ḥaqqi wa mā kānū iżam munẓarīn(a).
[8]
हम फ़रिश्तों को सत्य के साथ ही उतारते हैं और उस समय उन्हें कोई मोहलत नहीं दी जाती।
اِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَاِنَّا لَهٗ لَحٰفِظُوْنَ٩
Innā naḥnu nazzalnaż-żikra wa innā lahū laḥāfiẓūn(a).
[9]
निःसंदेह हमने ही यह ज़िक्र (क़ुरआन) उतारी है और निःसंदेह हम ही इसकी अवश्य रक्षा करने वाले3 हैं।
3. यह ऐतिहासिक सत्य है। इस विश्व के धर्म ग्रंथों में क़ुरआन ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें उसके अवतरित होने के समय से अब तक एक अक्षर तो क्या एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ। और न हो सकता है। यह विशेषता इस विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। तौरात हो अथवा इंजील या इस विश्व के अन्य धर्म शास्त्र हों, सब में इतने परिवर्तन किए गए हैं कि सत्य मूल धर्म की पहचान असंभव हो गई है। इसी प्रकार इस (क़ुरआन) की व्याख्या जिसे ह़दीस कहा जाता है, वह भी सुरक्षित है। और उसका पालन किए बिना किसी का जीवन इस्लामी नहीं हो सकता। क्योंकि क़ुरआन का आदेश है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हें जो दें उसको ले लो। और जिससे रोक दें उससे रुक जाओ। (देखिए सूरतुल-ह़श्र, आयत : 7) क़ुरआन कहता है कि ऐ नबी! अल्लाह ने आप पर क़ुरआन इसलिए उतारा है कि आप लोगों के लिए उसकी व्याख्या कर दें। क़ुरआन कहता है कि ऐ नबी! (सूरतुन-नह़्ल, आयत : 44) जिस व्याख्या से नमाज़, रोज़ा आदि इस्लामी अनिवार्य कर्तव्यों की विधि का ज्ञान होता है। इसीलिए उसको सुरक्षित किया गया है। और हम ह़दीस के एक-एक रावी के जन्म और मौत का समय और उसकी पूरी दशा को जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि वह विश्वसनीय है या नहीं? इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में इस्लाम के सिवा कोई धर्म ऐसा नहीं है, जिसकी मूल पुस्तकें तथा उसके नबी की सारी बातें सुरक्षित हों।
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ فِيْ شِيَعِ الْاَوَّلِيْنَ١٠
Wa laqad arsalnā min qablika fī syiya‘il-awwalīn(a).
[10]
और निःसंदेह हमने आपसे पहले विगत समुदायों के समूहों में रसूल भेजे हैं।
وَمَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ١١
Wa mā ya'tīhim mir rasūlin illā kānū bihī yastahzi'ūn(a).
[11]
और उनके पास जो भी रसूल आता, वे उसका मज़ाक उड़ाया करते थे।
كَذٰلِكَ نَسْلُكُهٗ فِيْ قُلُوْبِ الْمُجْرِمِيْنَۙ١٢
Każālika naslukuhū fī qulūbil-mujrimīn(a).
[12]
इसी तरह हम यह4 (झुठलाने की प्रवृत्ति) अपराधियों के दिलों में डाल देते हैं।
4. अर्थात रसूलों को झुठलाने और उनका मज़ाक उड़ाने को, अर्थात उन्हें इसका दंड देंगे।
لَا يُؤْمِنُوْنَ بِهٖ وَقَدْ خَلَتْ سُنَّةُ الْاَوَّلِيْنَ١٣
Lā yu'minūna bihī wa qad khalat sunnatul-awwalīn(a).
[13]
वे उसपर ईमान नहीं लाते। और प्रथम जातियों से यही परंपरा चली आ रही है।
وَلَوْ فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَابًا مِّنَ السَّمَاۤءِ فَظَلُّوْا فِيْهِ يَعْرُجُوْنَۙ١٤
Wa lau fataḥnā ‘alaihim bābam minas-samā'i fa ẓallū fīhi ya‘rujūn(a).
[14]
और यदि हम उनपर आकाश का कोई द्वार खोल दें, फिर वे उसमें चढ़ते चले जाएँ।
لَقَالُوْٓا اِنَّمَا سُكِّرَتْ اَبْصَارُنَا بَلْ نَحْنُ قَوْمٌ مَّسْحُوْرُوْنَ ࣖ١٥
Laqālū innamā sukkirat abṣārunā bal naḥnu qaumum masḥūrūn(a).
[15]
तब भी निश्चय वे यही कहेंगे कि हमारी निगाहें बाँध दी गई हैं। बल्कि हमपर जादू कर दिया गया है।
وَلَقَدْ جَعَلْنَا فِى السَّمَاۤءِ بُرُوْجًا وَّزَيَّنّٰهَا لِلنّٰظِرِيْنَۙ١٦
Wa laqad ja‘alnā fis-samā'i burūjaw wa zayyannāhā lin-nāẓirīn(a).
[16]
निःसंदेह हमने आकाश में कई बुर्ज (बड़े सितारे) बनाए हैं और उन्हें देखने वालों के लिए सुशोभित किया है।
وَحَفِظْنٰهَا مِنْ كُلِّ شَيْطٰنٍ رَّجِيْمٍۙ١٧
Wa ḥafiẓnāhā min kulli syaiṭānir rajīm(in).
[17]
और हमने उसे प्रत्येक धिक्कारे हुए शैतान से सुरक्षित किया है।
اِلَّا مَنِ اسْتَرَقَ السَّمْعَ فَاَتْبَعَهٗ شِهَابٌ مُّبِيْنٌ١٨
Illā manistaraqas-sam‘a fa atba‘ahū syihābum mubīn(un).
[18]
परंतु जो (शैतान) चोरी-छिपे सुनना चाहे, तो एक स्पष्ट ज्वाला (उल्का) उसका पीछा5 करती है।
5. शैतान चोरी से फ़रिश्तों की बात सुनने का प्रयास करते हैं। तो ज्वलंत उल्का उन्हें मारता है। अधिक विवरण के लिए, देखिए : सूरतुल-मुल्क, आयत : 5)
وَالْاَرْضَ مَدَدْنٰهَا وَاَلْقَيْنَا فِيْهَا رَوَاسِيَ وَاَنْۢبَتْنَا فِيْهَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍ مَّوْزُوْنٍ١٩
Wal-arḍa madadnāhā wa alqainā fīhā rawāsiya wa ambatnā fīhā min kulli syai'im mauzūn(in).
[19]
और हमने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत डाल (गाड़) दिए और उसमें हर चीज़ निर्धारित मात्रा में उगाई।
وَجَعَلْنَا لَكُمْ فِيْهَا مَعَايِشَ وَمَنْ لَّسْتُمْ لَهٗ بِرٰزِقِيْنَ٢٠
Wa ja‘alnā lakum fīhā ma‘āyisya wa mal lastum lahū birāziqīn(a).
[20]
और हमने उसमें तुम्हारे लिए जीवन के संसाधन बना दिए। तथा उनके लिए (भी) जिन्हें तुम हरगिज़ रोज़ी देने वाले नहीं।
وَاِنْ مِّنْ شَيْءٍ اِلَّا عِنْدَنَا خَزَاۤىِٕنُهٗ وَمَا نُنَزِّلُهٗٓ اِلَّا بِقَدَرٍ مَّعْلُوْمٍ٢١
Wa im min syai'in illā ‘indanā khazā'inuhū wa mā nunazziluhū illā biqadarim ma‘lūm(un).
[21]
और कोई चीज़ ऐसी नहीं है, जिसके ख़ज़ाने हमारे पास न हों। और हम उसे एक निश्चित मात्रा ही में उतारते हैं।
وَاَرْسَلْنَا الرِّيٰحَ لَوَاقِحَ فَاَنْزَلْنَا مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَاَسْقَيْنٰكُمُوْهُۚ وَمَآ اَنْتُمْ لَهٗ بِخٰزِنِيْنَ٢٢
Wa arsalnar-riyāḥa lawāqiha fa anzalnā minas-samā'i mā'an fa asqainākumūh(u), wa mā antum lahū bikhāzinīn(a).
[22]
और हमने बादलों को पानी से गर्भित करने वाली हवाओं को भेजा, फिर हमने आकाश से पानी उतारा, और उसे तुम्हें पिलाया, तथा तुम हरगिज़ उसे संग्रह करने वाले नहीं।
وَاِنَّا لَنَحْنُ نُحْيٖ وَنُمِيْتُ وَنَحْنُ الْوٰرِثُوْنَ٢٣
Wa innā lanaḥnu nuḥyī wa numītu wa naḥnul-wāriṡūn(a).
[23]
तथा निःसंदेह हम ही जीवित करते और मारते हैं और हम ही (सबके) उत्तराधिकारी हैं।
وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَقْدِمِيْنَ مِنْكُمْ وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَأْخِرِيْنَ٢٤
Wa laqad ‘alimnal-mustaqdimīna minkum wa laqad ‘alimnal-musta'khirīn(a).
[24]
तथा निःसंदेह हम तुम्हारे पहले लोगों को भी जानते हैं, और बाद में आने वालों को भी जानते हैं।
وَاِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَحْشُرُهُمْۗ اِنَّهٗ حَكِيْمٌ عَلِيْمٌ ࣖ٢٥
Wa inna rabbaka huwa yaḥsyuruhum, innahū ḥakīmun ‘alīm(un).
[25]
और निःसंदेह आपका पालनहार ही उन्हें इकट्ठा6 करेगा। निश्चय वह पूर्ण हिकमत वाला, सब कुछ जानने वाला है।
6. अर्थात प्रलय के दिन ह़िसाब के लिए।
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْاِنْسَانَ مِنْ صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَاٍ مَّسْنُوْنٍۚ٢٦
Wa laqad khalaqnal-insāna min ṣalṣālim min ḥama'im masnūn(in).
[26]
और निःसंदेह हमने मनुष्य को सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया है।
وَالْجَاۤنَّ خَلَقْنٰهُ مِنْ قَبْلُ مِنْ نَّارِ السَّمُوْمِ٢٧
Wal-jānna khalaqnāhu min qablu min nāris-samūm(i).
[27]
और इससे पहले जिन्नों को हमने धुँआ रहित अति गर्म आग से पैदा किया।
وَاِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلٰۤىِٕكَةِ اِنِّيْ خَالِقٌۢ بَشَرًا مِّنْ صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَاٍ مَّسْنُوْنٍۚ٢٨
Wa iż qāla rabbuka lil-malā'ikati innī khāliqum basyaram min ṣalṣālim min ḥama'im masnūn(in).
[28]
और (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा : मैं सड़े हुए गारे की खनखनाती मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करने वाला हूँ।
فَاِذَا سَوَّيْتُهٗ وَنَفَخْتُ فِيْهِ مِنْ رُّوْحِيْ فَقَعُوْا لَهٗ سٰجِدِيْنَ٢٩
Fa iżā sawwaituhū wa nafakhtu fīhi mir rūḥī fa qa‘ū lahū sājidīn(a).
[29]
तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी रूह़ फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदा करते हुए गिर जाओ।7
7. फ़रिश्तों का आदम को सजदा करना अल्लाह के आदेश से उनकी परीक्षा के लिए था, किंतु इस्लाम में मनुष्य के लिए किसी मनुष्य या वस्तु को सजदा करना शिर्क और अक्षम्य पाप है। (सूरत ह़ा-मीम-सजदा, आयत संख्या : 37)
فَسَجَدَ الْمَلٰۤىِٕكَةُ كُلُّهُمْ اَجْمَعُوْنَۙ٣٠
Fa sajadal-malā'ikatu kulluhum ajma‘ūn(a).
[30]
तो सब के सब फ़रिश्तों ने सजदा किया।
اِلَّآ اِبْلِيْسَۗ اَبٰىٓ اَنْ يَّكُوْنَ مَعَ السّٰجِدِيْنَ٣١
Illā iblīs(a), abā ay yakūna ma‘as-sājidīn(a).
[31]
सिवाय इबलीस के। उसने सजदा करने वालों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया।
قَالَ يٰٓاِبْلِيْسُ مَا لَكَ اَلَّا تَكُوْنَ مَعَ السّٰجِدِيْنَ٣٢
Qāla yā iblīsu mā laka allā takūna ma‘as-sājidīn(a).
[32]
अल्लाह ने पूछा : ऐ इबलीस! तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करने वालों में शामिल नहीं हुआॽ
قَالَ لَمْ اَكُنْ لِّاَسْجُدَ لِبَشَرٍ خَلَقْتَهٗ مِنْ صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَاٍ مَّسْنُوْنٍ٣٣
Qāla lam akul li'asjuda libasyarin khalaqtahū min ṣalṣālim min ḥama'im masnūn(in).
[33]
उसने कहा : मैं ऐसा नहीं कि एक मनुष्य को सजदा करूँ, जिसे तूने सड़े हुए गारे की खनखनाती मिट्टी से पैदा किया है।
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَاِنَّكَ رَجِيْمٌۙ٣٤
Qāla fakhruj minhā fa innaka rajīm(un).
[34]
अल्लाह ने कहा : फिर तू यहाँ से निकल जा। क्योंकि निश्चय तू धिक्कारा हुआ है।
وَّاِنَّ عَلَيْكَ اللَّعْنَةَ اِلٰى يَوْمِ الدِّيْنِ٣٥
Wa inna ‘alaikal-la‘nata ilā yaumid-dīn(i).
[35]
और निःसंदेह तुझपर बदले (क़ियामत) के दिन तक धिक्कार है।
قَالَ رَبِّ فَاَنْظِرْنِيْٓ اِلٰى يَوْمِ يُبْعَثُوْنَ٣٦
Qāla rabbi fa anẓirnī ilā yaumi yub‘aṡūn(a).
[36]
उस (इबलीस) ने कहा8 : ऐ मेरे पालनहार! तो फिर मुझे उस दिन तक मोहलत दे, जब वे (पुनः जीवित कर) उठाए जाएँगे।
8. अर्थात फ़रिश्ते परीक्षा में सफल हुए और इबलीस असफल रहा। क्योंकि उसने आदेश का पालन न करके अपनी मनमानी की। इसी प्रकार वे भी हैं, जो अल्लाह की बात न मानकर मनमानी करते हैं।
قَالَ فَاِنَّكَ مِنَ الْمُنْظَرِيْنَۙ٣٧
Qāla fa innaka minal-munẓarīn(a).
[37]
(अल्लाह ने) कहा : तू निःसंदेह मोहलत दिए गए लोगों में से है।
اِلٰى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُوْمِ٣٨
Ilā yaumil-waqtil-ma‘lūm(i).
[38]
ज्ञात समय के दिन तक।
قَالَ رَبِّ بِمَآ اَغْوَيْتَنِيْ لَاُزَيِّنَنَّ لَهُمْ فِى الْاَرْضِ وَلَاُغْوِيَنَّهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ٣٩
Qāla rabbi bimā agwaitanī la'uzayyinanna lahum fil-arḍi wa la'ugwiyannahum ajma‘īn(a).
[39]
वह बोला : ऐ मेरे पालनहार! चूँकि तूने मुझे पथभ्रष्ट किया है, मैं अवश्य ही उनके लिए धरती में (पाप को) सुशोभित करूँगा और उन सभी को पथभ्रष्ट कर दूँगा।
اِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِيْنَ٤٠
Illā ‘ibādaka minhumul-mukhlaṣīn(a).
[40]
सिवाय तेरे उनमें से चुने हुए बंदों के।
قَالَ هٰذَا صِرَاطٌ عَلَيَّ مُسْتَقِيْمٌ٤١
Qāla hāżā ṣirāṭun ‘alayya mustaqīm(un).
[41]
(अल्लाह ने) कहा : यह रास्ता है जो मुझ तक सीधा है।
اِنَّ عِبَادِيْ لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطٰنٌ اِلَّا مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغَاوِيْنَ٤٢
Inna ‘ibādī laisa laka ‘alaihim sulṭānun illā manittaba‘aka minal-gāwīn(a).
[42]
निःसंदेह मेरे बंदों पर तेरा कोई वश नहीं9, परंतु जो बहके हुए लोगों में से तेरे पीछे चले।
9. अर्थात जो बंदे क़ुरआन तथा ह़दीस (नबी का तरीक़ा) का ज्ञान रखेंगे, उनपर शैतान का प्रभाव नहीं होगा। और जो इन दोनों के ज्ञान से जाहिल होंगे, वही उसके झाँसे में आएँगे। किंतु जो तौबा कर लें, तो उनको क्षमा कर दिया जाएगा।
وَاِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوْعِدُهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ٤٣
Wa inna jahannama lamau‘iduhum ajma‘īn(a).
[43]
और निश्चय ही उन सब के वादा की जगह जहन्नम है।
لَهَا سَبْعَةُ اَبْوَابٍۗ لِكُلِّ بَابٍ مِّنْهُمْ جُزْءٌ مَّقْسُوْمٌ ࣖ٤٤
Lahā sab‘atu abwāb(in), likulli bābim minhum juz'um maqsūm(un).
[44]
उस (जहन्नम) के सात द्वार हैं। और प्रत्येक द्वार के लिए उन (इबलीस के अनुयायियों) का एक विभाजित भाग10 है।
10. अर्थात इबलीस के अनुयायी अपने कुकर्मों के अनुसार नरक के द्वार में प्रवेश करेंगे।
اِنَّ الْمُتَّقِيْنَ فِيْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍۗ٤٥
Innal-muttaqīna fī jannātiw wa ‘uyūn(in).
[45]
निःसंदेह आज्ञाकारी लोग जन्नतों तथा स्रोतों में होंगे।
اُدْخُلُوْهَا بِسَلٰمٍ اٰمِنِيْنَ٤٦
Udkhulūhā bisalāmin āminīn(a).
[46]
(उनसे कहा जाएगा :) इसमें सलामती के साथ निर्भय होकर प्रवेश कर जाओ।
وَنَزَعْنَا مَا فِيْ صُدُوْرِهِمْ مِّنْ غِلٍّ اِخْوَانًا عَلٰى سُرُرٍ مُّتَقٰبِلِيْنَ٤٧
Wa naza‘nā mā fī ṣudūrihim min gillin ikhwānan ‘alā sururim mutaqābilīn(a).
[47]
और हम निकाल देंगे उनके दिलों में जो कुछ द्वेष होगा। वे भाई-भाई होकर एक-दूसरे के आमने-सामने तख़्तों पर (बैठे) होंगे।
لَا يَمَسُّهُمْ فِيْهَا نَصَبٌ وَّمَا هُمْ مِّنْهَا بِمُخْرَجِيْنَ٤٨
Lā yamassuhum fīhā naṣabuw wa mā hum minhā bimukhrajīn(a).
[48]
न उसमें उन्हें कोई थकान होगी और न वे वहाँ से निकाले जाएँगे।
۞ نَبِّئْ عِبَادِيْٓ اَنِّيْٓ اَنَا الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُۙ٤٩
Nabbi' ‘ibādī annī anal-gafūrur-raḥīm(u).
[49]
(ऐ नबी!) आप मेरे बंदों को सूचित कर दें कि निःसंदेह मैं ही बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान्11 हूँ।
11. ह़दीस में है कि अल्लाह ने सौ दया पैदा की, निन्नानवे अपने पास रख लीं। और एक को पूरे संसार के लिए भेज दिया। अतः यदि काफ़िर उसकी पूरी दया जान जाए, तो स्वर्ग से निराश नहीं होगा। और ईमान वाला उसकी पूरी यातना जान जाए, तो नरक से निर्भय नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6469)
وَاَنَّ عَذَابِيْ هُوَ الْعَذَابُ الْاَلِيْمُ٥٠
Wa anna ‘ażābī huwal-‘ażābul-alīm(u).
[50]
और यह भी कि निःसंदेह मेरी यातना ही कष्टदायक यातना है।
وَنَبِّئْهُمْ عَنْ ضَيْفِ اِبْرٰهِيْمَۘ٥١
Wa nabbi'hum ‘an ḍaifi ibrāhīm(a).
[51]
और आप उन्हें इबराहीम (अलैहिस्सलाम) के अतिथियों के बारे में सूचित कर दें।
اِذْ دَخَلُوْا عَلَيْهِ فَقَالُوْا سَلٰمًاۗ قَالَ اِنَّا مِنْكُمْ وَجِلُوْنَ٥٢
Iż dakhalū ‘alaihi fa qālū salāmā(n), qāla innā minkum wajilūn(a).
[52]
जब वे इबराहीम के पास आए, तो उन्होंने सलाम किया। उसने कहा : हमें तो तुमसे डर लग रहा है।
قَالُوْا لَا تَوْجَلْ اِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلٰمٍ عَلِيْمٍ٥٣
Qālū lā taujal innā nubasysyiruka bigulāmin ‘alīm(in).
[53]
उन्होंने कहा : डरिए नहीं, निःसंदेह हम आपको एक ज्ञानी बालक की शुभ सूचना देते हैं।
قَالَ اَبَشَّرْتُمُوْنِيْ عَلٰٓى اَنْ مَّسَّنِيَ الْكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُوْنَ٥٤
Qāla abasysyartumūnī ‘alā am massaniyal-kibaru fa bima tubasysyirūn(a).
[54]
उसने कहा : क्या तुम मुझे इस बुढ़ापे के आ जाने के उपरांत शुभ सूचना दे रहे हो? तो तुम किस आधार पर यह शुभ सूचना दे रहे होॽ
قَالُوْا بَشَّرْنٰكَ بِالْحَقِّ فَلَا تَكُنْ مِّنَ الْقٰنِطِيْنَ٥٥
Qālū basysyarnāka bil-ḥaqqi falā takum minal-qāniṭīn(a).
[55]
उन्होंने कहा : हमने आपको सच्ची शुभ सूचना दी है। अतः आप निराश होने वालों में से न हों।
قَالَ وَمَنْ يَّقْنَطُ مِنْ رَّحْمَةِ رَبِّهٖٓ اِلَّا الضَّاۤلُّوْنَ٥٦
Qāla wa may yaqnaṭu mir raḥmati rabbihī illaḍ-ḍāllūn(a).
[56]
(इबराहीम अलैहिस्सलाम ने) कहा : और पथभ्रष्टों के सिवा अपने पालनहार की दया से कौन निराश होता है।
قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ اَيُّهَا الْمُرْسَلُوْنَ٥٧
Qāla famā khaṭbukum ayyuhal-mursalūn(a).
[57]
उसने कहा : ऐ भेजे हुए फ़रिश्तो! तुम्हारा अभियान क्या है?
قَالُوْٓا اِنَّآ اُرْسِلْنَآ اِلٰى قَوْمٍ مُّجْرِمِيْنَۙ٥٨
Qālū innā ursilnā ilā qaumim mujrimīn(a).
[58]
उन्होंने उत्तर दिया : निःसंदेह हम एक अपराधी जाति की ओर भेजे गए हैं।
اِلَّآ اٰلَ لُوْطٍۗ اِنَّا لَمُنَجُّوْهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ٥٩
Illā āla lūṭ(in), innā lamunajjūhum ajma‘īn(a).
[59]
लूत के घर वालों के सिवा। निश्चय हम उन सभी को अवश्य बचा लेने वाले हैं।
اِلَّا امْرَاَتَهٗ قَدَّرْنَآ اِنَّهَا لَمِنَ الْغٰبِرِيْنَ ࣖ٦٠
Illamra'atahū qaddarnā innahā laminal-gābirīn(a).
[60]
परंतु लूत की पत्नी, हमने नियत कर दिया है कि निःसंदेह वह निश्चय ही पीछे रह जाने वालों में से है।
فَلَمَّا جَاۤءَ اٰلَ لُوْطِ ِۨالْمُرْسَلُوْنَۙ٦١
Falammā jā'a āla lūṭinil-mursalūn(a).
[61]
फिर जब लूत के घर वालों के पास भेजे हुए (फ़रिश्ते) आए।
قَالَ اِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ٦٢
Qāla innakum qaumum munkarūn(a).
[62]
तो उस (लूत अलैहिस्सलाम) ने कहा : तुम तो अपरिचित लोग हो।
قَالُوْا بَلْ جِئْنٰكَ بِمَا كَانُوْا فِيْهِ يَمْتَرُوْنَ٦٣
Qālū bal ji'nāka bimā kānū fīhi yamtarūn(a).
[63]
उन्होंने कहा : (डरो नहीं) बल्कि हम तुम्हारे पास वह चीज़ लेकर आए हैं, जिसमें वे संदेह किया करते थे।
وَاَتَيْنٰكَ بِالْحَقِّ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ٦٤
Wa ataināka bil-ḥaqqi wa innā laṣādiqūn(a).
[64]
और हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं और निःसंदेह हम निश्चय सच्चे हैं।
فَاَسْرِ بِاَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ الَّيْلِ وَاتَّبِعْ اَدْبَارَهُمْ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنْكُمْ اَحَدٌ وَّامْضُوْا حَيْثُ تُؤْمَرُوْنَ٦٥
Fa asri bi'ahlika biqiṭ‘im minal-laili wattabi‘ adbārahum wa lā yaltafit minkum aḥaduw wamḍū ḥaiṡu tu'marūn(a).
[65]
अतः तुम अपने घर वालों को लेकर रात के किसी हिस्से में निकल जाओ और खुद उनके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई मुड़कर न देखे। तथा चले जाओ, जहाँ तुम्हें आदेश दिया जाता है।
وَقَضَيْنَآ اِلَيْهِ ذٰلِكَ الْاَمْرَ اَنَّ دَابِرَ هٰٓؤُلَاۤءِ مَقْطُوْعٌ مُّصْبِحِيْنَ٦٦
Wa qaḍainā ilaihi żālikal-amra anna dābira hā'ulā'i maqṭū‘um muṣbiḥīn(a).
[66]
और हमने उसकी ओर इस बात की वह़्य कर दी कि इन लोगों की जड़ सुबह होते ही काट दी जाने वाली है।
وَجَاۤءَ اَهْلُ الْمَدِيْنَةِ يَسْتَبْشِرُوْنَ٦٧
Wa jā'a ahlul-madīnati yastabsyirūn(a).
[67]
और उस नगर वाले इस हाल में आए कि बहुत खुश हो रहे थे।12
12. अर्थात जब फ़रिश्तों को नवयुवकों के रूप में देखा, तो लूत अलैहिस्सलाम के यहाँ आ गए ताकि उनके साथ कुकर्म करें।
قَالَ اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ ضَيْفِيْ فَلَا تَفْضَحُوْنِۙ٦٨
Qāla inna hā'ulā'i ḍaifī falā tafḍaḥūn(i).
[68]
उस (लूत अलैहिस्सलाम) ने कहा : ये लोग तो मेरे अतिथि हैं। अतः मुझे अपमानित न करो।
وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَلَا تُخْزُوْنِ٦٩
Wattaqullāha wa lā tukhzūn(i).
[69]
तथा अल्लाह से डरो और मुझे अपमानित न करो।
قَالُوْٓا اَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعٰلَمِيْنَ٧٠
Qālū awalam nanhaka ‘anil-‘ālamīn(a).
[70]
उन्होंने कहा : क्या हमने तुम्हें विश्व वासियों (को अतिथि बनाने) से मना13 नहीं किया?
13. कि सबके समर्थक न बनो।
قَالَ هٰٓؤُلَاۤءِ بَنٰتِيْٓ اِنْ كُنْتُمْ فٰعِلِيْنَۗ٧١
Qāla hā'ulā'i banātī in kuntum fā‘ilīn(a).
[71]
उस (लूत अलैहिस्सलाम) ने कहा : ये मेरी बेटियाँ हैं, यदि तुम कुछ करने वाले14 हो।
14. अर्थात् इनसे विवाह कर लो, और अपनी कामवासना पूरी करो, और कुकर्म न करो।
لَعَمْرُكَ اِنَّهُمْ لَفِيْ سَكْرَتِهِمْ يَعْمَهُوْنَ٧٢
La‘amruka innahum lafī sakratihim ya‘mahūn(a).
[72]
ऐ नबी! आपकी आयु की क़सम!15 निःसंदेह वे निश्चय अपनी मस्ती में भटके फिरते थे।
15. अल्लाह के सिवा किसी मनुष्य के लिए उचित नहीं है कि वह अल्लाह के सिवा किसी और चीज़ की क़सम खाए।
فَاَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُشْرِقِيْنَۙ٧٣
Fa akhażathumuṣ-ṣaiḥatu musyriqīn(a).
[73]
अंततः सूर्योदय के समय ही चिंघाड़ ने उन्हें पकड़ लिया।
فَجَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّنْ سِجِّيْلٍ٧٤
Fa ja‘alnā ‘āliyahā sāfilahā wa amṭarnā ‘alaihim ḥijāratam min sijjīl(in).
[74]
फिर हमने उस बस्ती के ऊपरी भाग को नीचे कर दिया और उनपर कंकड़ के पत्थर बरसाए।
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّلْمُتَوَسِّمِيْنَۙ٧٥
Inna fī żālika la'āyātil lil-mutawassimīn(a).
[75]
निःसंदेह इसमें सोच-विचार करने वालों16 के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।
16. अर्थात जो लक्षणों से तथ्य को समझ जाते हैं।
وَاِنَّهَا لَبِسَبِيْلٍ مُّقِيْمٍ٧٦
Wa innahā labisabīlim muqīm(in).
[76]
और निःसंदेह वह (बस्ती) एक सार्वजनिक17 मार्ग पर स्थित है।
17. अर्थात जो सार्वजनिक मार्ग ह़िजाज़ (मक्का) से शाम को जाता है। यह शिक्षाप्रद बस्ती उसी मार्ग में आती है, जिससे तुम गुज़रते हुए शाम जाते हो।
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّلْمُؤْمِنِيْنَۗ٧٧
Inna fī żālika la'āyatal lil-mu'minīn(a).
[77]
निःसंदेह इसमें ईमान वलों के लिए निश्चय बड़ी निशानी है।
وَاِنْ كَانَ اَصْحٰبُ الْاَيْكَةِ لَظٰلِمِيْنَۙ٧٨
Wa in kāna aṣḥābul-aikati laẓālimīn(a).
[78]
और निःसंदेह 'ऐका'18 वाले निश्चित रूप से अत्याचारी थे।
18. इससे अभिप्रेत शुऐब अलैहिस्सलाम की जाति है, ऐका का अर्थ वन तथा झाड़ी है।
فَانْتَقَمْنَا مِنْهُمْۘ وَاِنَّهُمَا لَبِاِمَامٍ مُّبِيْنٍۗ ࣖ٧٩
Fantaqamnā minhum, wa innahumā labi'imāmim mubīn(in).
[79]
तो हमने उनसे बदला लिया। और निःसंदेह वे दोनों19 (बस्तियाँ) स्पष्ट मार्ग पर हैं।
19. अर्थात मदयन और ऐका का क्षेत्र भी ह़िजाज़ से फ़िलस्तीन और सीरिया जाते हुए, राह में पड़ता है।
وَلَقَدْ كَذَّبَ اَصْحٰبُ الْحِجْرِ الْمُرْسَلِيْنَۙ٨٠
Wa laqad każżaba aṣḥābul-ḥijril-mursalīn(a).
[80]
तथा निःसंदेह ह़िज्र20 के रहने वालों ने (भी) रसूलों को झुठलाया।
20. ह़िज्र समूद जाति की बस्ती थी, जो सालेह (अलैहिस्सलाम) की जाति थी, यह बस्ती मदीना और तबूक के बीच में स्थित थी।
وَاٰتَيْنٰهُمْ اٰيٰتِنَا فَكَانُوْا عَنْهَا مُعْرِضِيْنَۙ٨١
Wa ātaināhum āyātinā fa kānū ‘anhā mu‘riḍīn(a).
[81]
और हमने उन्हें अपनी निशानियाँ दीं, तो वे उनसे मुँह फेरने वाले थे।
وَكَانُوْا يَنْحِتُوْنَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوْتًا اٰمِنِيْنَ٨٢
Wa kānū yanḥitūna minal-jibāli buyūtan āminīn(a).
[82]
और वे निर्भय होकर पर्वतों को काटकर घर बनाते थे।
فَاَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُصْبِحِيْنَۙ٨٣
Fa akhażathumuṣ-ṣaiḥatu muṣbiḥīn(a).
[83]
अंततः सुबह होते ही उन्हें चिंघाड़ ने पकड़ लिया।
فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَۗ٨٤
Famā agnā ‘anhum mā kānū yaksibūn(a).
[84]
फिर उनके किसी काम न आया, जो वे कमाया करते थे।
وَمَا خَلَقْنَا السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَآ اِلَّا بِالْحَقِّۗ وَاِنَّ السَّاعَةَ لَاٰتِيَةٌ فَاصْفَحِ الصَّفْحَ الْجَمِيْلَ٨٥
Wa mā khalaqnas-samāwāti wal-arḍa wa mā bainahumā illā bil-ḥaqq(i), wa innas-sā‘ata la'ātiyatun faṣfaḥiṣ-ṣafḥal-jamīl(a).
[85]
और हमने आकाशों तथा धरती और उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों को सत्य के साथ पैदा किया है। और निःसंदेह क़ियामत अवश्य आने वाली है। अतः (ऐ नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
اِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْخَلّٰقُ الْعَلِيْمُ٨٦
Inna rabbaka huwal-khallāqul-‘alīm(u).
[86]
निःसंदेह आपका पालनहार ही हर चीज़ को पैदा करने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَلَقَدْ اٰتَيْنٰكَ سَبْعًا مِّنَ الْمَثَانِيْ وَالْقُرْاٰنَ الْعَظِيْمَ٨٧
Wa laqad ātaināka sab‘am minal-maṡānī wal-qur'ānal-‘aẓīm(a).
[87]
तथा (ऐ नबी!) हमने आपको बार-बार दोहराई जाने वाली सात आयतें और महान क़ुरआन21 प्रदान किया है।
21. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि उम्मुल क़ुरआन (सूरतुल-फ़ातिह़ा) ही वे सात आयतें हैं जो दुहराई जाती हैं, तथा महा क़ुरआन हैं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4704) एक दूसरी ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" ही वह सात आयतें हैं जो बार-बार दुहराई जाती हैं, और महा क़ुरआन हैं, जो मुझे प्रदान किया गया है। (संक्षिप्त अनुवाद, सह़ीह़ बुख़ारी : 4702) यही कारण है कि इसके पढ़े बिना नमाज़ नहीं होती। ( सह़ीह़ बुख़ारी : 756, मुस्लिम : 394)
لَا تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ اِلٰى مَا مَتَّعْنَا بِهٖٓ اَزْوَاجًا مِّنْهُمْ وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِلْمُؤْمِنِيْنَ٨٨
Lā tamuddanna ‘ainaika ilā mā matta‘nā bihī azwājam minhum wa lā taḥzan ‘alaihim wakhfiḍ janāḥaka lil-mu'minīn(a).
[88]
आप उसकी ओर हरगिज़ न देखें, जो सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दे रखी है और न उनपर दुखी हों और ईमान वालों के लिए अपने बाज़ू झुका दें (यानी उनके लिए विनम्र रहें)।
وَقُلْ اِنِّيْٓ اَنَا النَّذِيْرُ الْمُبِيْنُۚ٨٩
Wa qul innī anan-nażīrul-mubīn(u).
[89]
और कह दें कि निःसंदेह मैं तो खुल्लम-खुल्ला डराने22 वाला हूँ।
22. अर्थात अवज्ञा पर यातना से।
كَمَآ اَنْزَلْنَا عَلَى الْمُقْتَسِمِيْنَۙ٩٠
Kamā anzalnā ‘alal-muqtasimīn(a).
[90]
जैसे कि हमने (अल्लाह की किताब को) विभाजित करने वालों23 पर (यातना) उतारी थी।
23. विभाजन कारियों से अभिप्राय : यहूदी और ईसाई हैं। जिन्होंने अपनी पुस्तकों तौरात तथा इंजील को खंड-खंड कर दिए। अर्थात उनके कुछ भाग पर ईमान लाए और कुछ को नकार दिया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4705-4706)
الَّذِيْنَ جَعَلُوا الْقُرْاٰنَ عِضِيْنَ٩١
Allażīna ja‘alul-qur'āna ‘iḍīn(a).
[91]
जिन्होंने क़ुरआन को खंड-खंड कर दिया।24
24. इसी प्रकार इन्होंने भी क़ुरआन के कुछ भाग को मान लिया और कुछ का अगलों की कहानियाँ बता कर इनकार कर दिया। तो ऐसे सभी लोगों से प्रलय के दिन पूछ होगी कि मेरी पुस्तकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?
فَوَرَبِّكَ لَنَسْـَٔلَنَّهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ٩٢
Fa wa rabbika lanas'alannahum ajma‘īn(a).
[92]
अतः आपके पालनहार की क़सम! हम उन सबसे अवश्य पूछेंगे।
عَمَّا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ٩٣
‘Ammā kānū ya‘malūn(a).
[93]
उसके बारे में जो वे किया करते थे।
فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ وَاَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِيْنَ٩٤
Faṣda‘ bimā tu'maru wa a‘riḍ ‘anil-musyrikīn(a).
[94]
अतः आपको जो आदेश दिया जा रहा है, उसका ऐलान कर दें और मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादियो) से मुँह फेर लें।
اِنَّا كَفَيْنٰكَ الْمُسْتَهْزِءِيْنَۙ٩٥
Innā kafainākal-mustahzi'īn(a).
[95]
निःसंदेह हम आपकी ओर से मज़ाक उड़ाने वालों के विरुद्ध काफ़ी हैं।
الَّذِيْنَ يَجْعَلُوْنَ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَۚ فَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَ٩٦
Allażīna yaj‘alūna ma‘allāhi ilāhan ākhar(a), fa saufa ya‘lamūn(a).
[96]
जो अल्लाह के साथ दूसरा पूज्य बनाते हैं। तो उन्हें जल्द पता चल जाएगा।
وَلَقَدْ نَعْلَمُ اَنَّكَ يَضِيْقُ صَدْرُكَ بِمَا يَقُوْلُوْنَۙ٩٧
Wa laqad na‘lamu annaka yaḍīqu ṣadruka bimā yaqūlūn(a).
[97]
और निश्चय हम जानते हैं कि उनकी बातों से आपका सीना तंग होता है।
فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَكُنْ مِّنَ السّٰجِدِيْنَۙ٩٨
Fa sabbiḥ biḥamdi rabbika wa kum minas-sājidīn(a).
[98]
अतः आप अपने रब की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का गान करें और सजदा करने वालों में शामिल हो जाएँ।
وَاعْبُدْ رَبَّكَ حَتّٰى يَأْتِيَكَ الْيَقِيْنُ ࣖࣖ٩٩
Wa‘bud rabbaka ḥattā ya'tiyakal-yaqīn(u).
[99]
और अपने रब की इबादत करते रहें, यहाँ तक कि आपके पास यक़ीन (मौत) आ जाए।25
25. अर्थात मरण का समय आ जाए, जिसका आना यक़ीनी (निश्चित) है।