Surah An-Nas
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِۙ١
Qul a‘ūżu birabbin-nās(i).
[1]
(ऐ नबी!) कह दीजिए : मैं शरण लेता हूँ लोगों के पालनहार की।
مَلِكِ النَّاسِۙ٢
Malikin-nās(i).
[2]
लोगों के बादशाह की।
اِلٰهِ النَّاسِۙ٣
Ilāhin-nās(i).
[3]
लोगों के सत्य पूज्य की।1
1. (1-3) यहाँ अल्लाह को उसके तीन गुणों के साथ याद करके उसकी शरण लेने की शिक्षा दी गई है। एक उसका सब मानवजाति का पालनहार और स्वामी होना। दूसरे उसका सभी इनसानों का अधिपति और शासक होना। तीसरे उसका इनसानों का सत्य पूज्य होना। भावार्थ यह है कि (मैं) उस अल्लाह की शरण माँगता हूँ जो इनसानों का पालनहार, शासक और पूज्य होने के कारण उनपर पूरा नियंत्रण और अधिकार रखता है। जो वास्तव में, उस बुराई से इनसानों को बचा सकता है, जिससे वे स्वयं बचने और दूसरों को बचाने में अक्षम हैं, उसके सिवा कोई है भी नहीं जो शरण दे सकता हो।
مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ ەۙ الْخَنَّاسِۖ٤
Min syarril-waswāsil-khannās(i).
[4]
वसवसा डालने वाले, पीछे हट जाने वाले की बुराई से।
الَّذِيْ يُوَسْوِسُ فِيْ صُدُوْرِ النَّاسِۙ٥
Allażī yuwaswisu fī ṣudūrin-nās(i).
[5]
जो लोगों के दिलों में वसवसे डालता है।
مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ ࣖ٦
Minal jinnati wan-nās(i).
[6]
जिन्नों और इनसानों में से।2
2. (4-6) आयत संख्या 4 में 'वसवास' शब्द का प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है दिलों में ऐसी बुरी बातें डाल देना कि जिसके दिल में डाली जा रही हों उसे उसका ज्ञान भी न हो। और इसी प्रकार आयत संख्या 4 में 'ख़न्नास' का शब्द प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है सुकड़ जाना, छुप जाना, पीछे हट जाना, धीरे-धीरे किसी को बुराई के लिए तैयार करना आदि। अर्थात दिलों में भ्रम डालने वाला, और सत्य के विरुद्ध मन में बुरी भावनाएँ उत्पन्न करने वाला। चाहे वह जिन्नों में से हो, अथवा मनुष्यों में से हो। इन सब की बुराइयों से हम अल्लाह की शरण लेते हैं, जो हमारा स्वामी और सच्चा पूज्य है।