Surah Al-Ikhlas

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌۚ١
Qul huwallāhu aḥad(un).
[1] (ऐ रसूल!) आप कह दीजिए : वह अल्लाह एक है।1
1. आयत संख्या 1 में 'अह़द' शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ है, उसके अस्तित्व एवं गुणों में कोई साझी नहीं है। यहाँ 'अह़द' शब्द का प्रयोग यह बताने के लिए किया गया है कि वह अकेला है। वह वृक्ष के समान एक नहीं है जिसकी अनेक शाखाएँ होती हैं। आयत संख्या 2 में 'समद' शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है अब्रण होना। अर्थात जिसमें कोई छिद्र न हो जिससे कुछ निकले, या वह किसी से निकले। और आयत संख्या 3 इसी अर्थ की व्याख्या करती है कि न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।

اَللّٰهُ الصَّمَدُۚ٢
Allāhuṣ-ṣamad(u).
[2] अल्लाह बेनियाज़ है।

لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُوْلَدْۙ٣
Lam yalid wa lam yūlad.
[3] न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।

وَلَمْ يَكُنْ لَّهٗ كُفُوًا اَحَدٌ ࣖ٤
Wa lam yakul lahū kufuwan aḥad(un).
[4] और न कोई उसका समकक्ष है।2
2. इस आयत में यह बताया गया है कि उसकी प्रतिमा तथा उसके बराबर और समतुल्य कोई नहीं है। उसके कर्म, गुण और अधिकार में कोई किसी रूप में बराबर नहीं। न उसकी कोई जाति है न परिवार। इन आयतों में क़ुरआन उन विषयों को जो लोगों के तौह़ीद से फिसलने का कारण बने, उसे अनेक रूप में वर्णित करता है। और देवियों और देवताओं के विवाहों और उन के पुत्र और पौत्रों का जो विवरण देव मालाओं में मिलता है, क़ुरआन ने उसका खंडन किया है।