Surah An-Nasr

Daftar Surah

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اِذَا جَاۤءَ نَصْرُ اللّٰهِ وَالْفَتْحُۙ١
Iżā jā'a naṣrullāhi wal-fatḥ(u).
[1] (ऐ नबी!) जब अल्लाह की सहायता एवं विजय आ जाए।

وَرَاَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُوْنَ فِيْ دِيْنِ اللّٰهِ اَفْوَاجًاۙ٢
Wa ra'aitan-nāsa yadkhulūna fī dīnillāhi afwājā(n).
[2] और आप लोगों को देखें कि वे अल्लाह के धर्म में दल के दल प्रवेश कर रहे हैं।1
1. (1-2) इसमें विजय का अर्थ वह निर्णायक विजय है, जिसके बाद कोई शक्ति इस्लाम का सामना करने के योग्य नहीं रह जाएगी। और यह स्थिति सन् 8 (हिज्री) की है जब मक्का विजय हो गया। अरब के कोने-कोने से प्रतिनिधि मंडल रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सेवा में उपस्थित होकर इस्लाम लाने लगे। और सन् 10 (हिज्री) में जब आप 'ह़ज्जतुल वदाअ' (अर्थात अंतिम ह़ज्ज) के लिए गए, तो उस समय पूरा अरब इस्लाम के अधीन आ चुका था और देश में कोई मुश्रिक (मूर्तिपूजक) नहीं रह गया था।

فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُۗ اِنَّهٗ كَانَ تَوَّابًا ࣖ٣
Fasabbiḥ biḥamdi rabbika wastagfirh(u), innahū kāna tawwābā(n).
[3] तो आप अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करें और उससे क्षमा माँगें, निःसंदेह वह बहुत तौबा क़बूल करने वाला है।2
2. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा गया है कि इतना बड़ा काम आपने अल्लाह की दया से पूरा किया है, इसके लिए उसकी प्रशंसा और पवित्रता का वर्णन तथा उसकी कृतज्ञता व्यक्त करें। इसमें सभी के लिए यह शिक्षा है कि कोई पुण्य कार्य अल्लाह की दया के बिना नहीं होता। इसलिए उसपर घमंड नहीं करना चाहिए।