Surah Al-Fil

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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِاَصْحٰبِ الْفِيْلِۗ١
Alam tara kaifa fa‘ala rabbuka bi'aṣḥābil-fīl(i).
[1] क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे पालनहार ने हाथी वालों के साथ किस तरह किया?

اَلَمْ يَجْعَلْ كَيْدَهُمْ فِيْ تَضْلِيْلٍۙ٢
Alam yaj‘al kaidahum fī taḍlīl(in).
[2] क्या उसने उनकी चाल को विफल नहीं कर दिया?

وَّاَرْسَلَ عَلَيْهِمْ طَيْرًا اَبَابِيْلَۙ٣
Wa arsala ‘alaihim ṭairan abābīl(a).
[3] और उनपर झुंड के झुंड पक्षी भेजे।

تَرْمِيْهِمْ بِحِجَارَةٍ مِّنْ سِجِّيْلٍۙ٤
Tarmīhim biḥijāratim min sijjīl(in).
[4] जो उनपर पकी हुई मिट्टी (खंगर) की कंकड़ियाँ फेंक रहे थे।

فَجَعَلَهُمْ كَعَصْفٍ مَّأْكُوْلٍ ࣖ٥
Fa ja‘alahum ka‘aṣfim ma'kūl(in).
[5] तो उसने उन्हें खाए हुए भूसे की तरह कर दिया।1
1. (1-5) इस सूरत का लक्ष्य यह बताना है कि काबा को आक्रमण से बचाने के लिए तुम्हारे देवी-देवता कुछ काम न आए। क़ुरैश के प्रमुखों ने अल्लाह ही से दुआ की थी और उनपर इसका इतना प्रभाव पड़ा था कि कई वर्षों तक साधारण नागरिकों तक ने भी अल्लाह के सिवा किसी की पूजा नहीं की थी। यह बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाइश से कुछ पहले की थी और वहाँ बहुत सारे लोग अभी जीवित थे जिन्होंने यह चित्र अपने नेत्रों से देखा था। अतः उनसे यह कहा जा रहा है कि मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जो आमंत्रण दे रहे हैं वह यही तो है कि अल्लाह के सिवाय किसी की पूजा न की जाए, और इसको दबाने का परिणाम वही हो सकता है जो हाथी वालों का हुआ। (इब्ने कसीर)